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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 8 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य कंते पिए भोए, लद्धे वि पिट्ठिकुव्वई ।
साहीणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ ॥ Translated Sutra: त्यागी वही कहलाता है, जो कान्त और प्रिय भोग उपलब्ध होने पर भी (उनकी ओर से) पीठ फेर लेता है और स्वाधीन रूप से प्राप्त भोगों का (स्वेच्छा से) त्याग करता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 9 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समाइ पेहाइ परिव्वयंतो सिया मणो निस्सरई बहिद्धा ।
न सा महं नोवि अहं पि तीसे इच्चेव ताओ विणइज्ज रागं ॥ Translated Sutra: समभाव की प्रेक्षा से विचरते हुए (साधु का) मन कदाचित् (संयम से) बाहर निकल जाए, तो ‘वह (स्त्री या कोई काम्य वस्तु) मेरी नहीं है, और न मैं ही उसका हूँ‘ इस प्रकार का विचार करके उस पर से राग को हटा ले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 10 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयावयाही चय सोगमल्लं कामे कमाही कमियं खु दुक्खं ।
छिंदाहि दोसं विणइज्ज रागं एवं सुही होहिसि संपराए ॥ Translated Sutra: आतापना ले, सुकुमारता का त्याग कर। कामभोगों का अतिक्रम कर। (इससे) दुःख स्वतः अतिक्रान्त होगा। द्वेषभाग का छेदन कर, रागभाव को दूर कर। ऐसा करने से तू संसार में सुखी हो जाएगा। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 11 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पक्खंदे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं ।
नेच्छंति वंतयं भोत्तुं कुले जाया अगंधणे ॥ Translated Sutra: अगन्धनकुल में उत्पन्न सर्प प्रज्वलित दुःसह अग्नि में कूद जाते हैं, किन्तु वमन किये हुए विष को वापिस चूसने की इच्छा नहीं करते। हे अपयश के कामी ! तुझे धिक्कार है ! जो तू असंयमी जीवन के लिए वमन किये हुए को पीना चाहता है, इस से तो तेरा मर जाना ही श्रेयस्कर है। सूत्र – ११, १२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 12 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धिरत्थु ते जसोकामी जो तं जीवियकारणा ।
वंतं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 13 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहं च भोयरायस्स तं च सि अंघगवण्हिणो ।
मा कुले गंधणा होमो संजमं निहुओ चर ॥ Translated Sutra: मैं भोजराजा की पुत्री हूँ, और तू अन्धकवृष्णि का पुत्र है। उत्तम कुल में उत्पन्न हम दोनों गन्धन कुलोत्पन्न सर्प के समान न हों। (अतः) तू स्थिरचित्त हो कर संयम का पालन कर। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 14 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारिओ ।
वायाविद्धो व्व हडो अट्ठिअप्पा भविस्ससि ॥ Translated Sutra: तू जिन – जिन नारियों को देखेगा, उनके प्रति यदि इस प्रकार रागभाव करेगा तो वायु से आहत हड वनस्पति की तरह अस्थिरात्मा हो जाएगा। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 15 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाइ सुभासियं ।
अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ॥ Translated Sutra: उस संयती के सुभाषित वचनों को सुन कर वह धर्म में उसी प्रकार स्थिर हो गया जिस प्रकार अंकुश से हाथी स्थिर हो जाता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 16 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं करेंति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा ।
विणियट्टंति भोगेसु जहा से पुरिसोत्तमो ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: सम्बुध्ध, प्रविचक्षण और पण्डित ऐसा ही करते है। वे भोगों से उसी प्रकार निवृत्त हो जाते हैं, जिस प्रकार वह पुरुषोत्तम रथनेमि हुए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 17 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजमे सुट्ठिअप्पाणं विप्पमुक्काण ताइणं ।
तेसिमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं ॥ Translated Sutra: जिनकी आत्मा संयम से सुस्थित है; जो बाह्य – आभ्यन्तर – परिग्रह से विमुक्त हैं; जो त्राता हैं; उन निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिए ये अनाचीर्ण या अग्राह्य हैं – | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 18 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उद्देसियं कीयगडं नियागमभिहडाणि य ।
राइभत्ते सिणाणे य गंधमल्ले य वीयणे ॥ Translated Sutra: औद्देशिक (निर्ग्रन्थ के निमित्त से बनाया गया), क्रीत – साधु के निमित्त खरीदा हुआ, नित्याग्र – निमंत्रित करके दिया जानेवाला), अभिहृत – सम्मुख लाया गया, रात्रिभोजन, स्नान, गन्ध, माल्य, वीजनपंखा झेलना। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 19 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सन्निही गिहिमत्ते य रायपिंडे किमिच्छए ।
संबाहणा दंतपहोयणा य संपुच्छणा देहपलोयणा य ॥ Translated Sutra: सन्निधि – (खाद्य पदार्थो का संयच), गृहि – अमत्र गृहस्थ के बर्तन में भोजन, राजपिण्ड, किमिच्छक – ‘क्या चाहते हो ?’ ऐसा पूछ कर दिया जानेवाला, सम्बाधन – अंगमर्दन, दंतधावन, सम्पृच्छना – गृहस्थों से कुशल आदि पूछना, देहप्रलोकन (दर्पण आदि में शरीर को देखना) | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 20 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठावए य नालीय छत्तस्स य धारणट्ठाए ।
तेगिच्छं पाणहा पाए समारंभं च जोइणो ॥ Translated Sutra: अष्टापद (शतरंज खेलना), नालिका – पासा का जुआ खेलना, छत्रधारण करना, चिकित्सा कर्म – चिकित्सा करना – कराना, उपानह् – जूते आदि पहनना, ज्योति – समारम्भ – (अग्नि प्रज्वलित करना)। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 21 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सेज्जायरपिंडं च आसंदी-पलियंकए ।
गिहंतरनिसेज्जा य गायस्सुव्वट्टणाणि य ॥ Translated Sutra: शय्यातरपिण्ड – स्थानदाता से आहार लेना, आसन्दी – कुर्सी या खाट पर बैठना, पर्यंक पलंग, ढोलिया आदि पर बैठना, गृहान्तरनिषद्या – गृहस्थ के घर में बैठना और गात्रउद्वर्तन – शरीर पर उबटन लगाना। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 22 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गिहिणो वेयावडियं जा य आजीववित्तिया ।
तत्तानिव्वुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य ॥ Translated Sutra: गृहि – वैयावृत्य – गृहस्थ की सेवा – शुश्रूषा करना, आजीववृत्तित्ता – शिल्प, जाति, कुल का अवलम्बन लेकर आजीविका करना, तप्ताऽनिर्वृतभोजित्व – अर्धपक्व आहारपानी का उपभोग करना, आतुरस्मरण – आतुरदशा में पूर्वभुक्त भोगों का स्मरण करना)। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 23 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मूलए सिंगबेरे य उच्छुखंडे अनिव्वुडे ।
कंदे मूले य सच्चित्ते फले बीए य आमए ॥ Translated Sutra: अनिर्वृतमूलक – अपक्व सचित्त मूली, श्रृङ्गबेर – अदरख, इक्षुखण्ड – सजीव ईख के टुकड़े, सचित्त कन्द, मूल, आमक फल – कच्चा फल, बीज (अपक्व बीज लेना व खाना)। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 24 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोवच्चले सिंधवे लोणे रोमालोणे य आमए ।
सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए ॥ Translated Sutra: आमक सौवर्चल – अपक्व सेंवलनमक, सैन्धव – लवण, रुमा लवण, अपक्व समुद्री नमक, पांशु – क्षार, काल – लवण लेना व खाना। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 25 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धूवणेत्ति वमने य वत्थीकम्म विरेयणे ।
अंजने दंतवणे य गायाभंगविभूसणे ॥ Translated Sutra: धूपन – धूप देना, वमन, बस्तिकर्म, विरेचन, अंजन, दंतधावन, गात्राभ्यंग मालिश करना और विभूषण – विभूषा करना। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 26 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं ।
संजमम्मि य जुत्ताणं लहुभूयविहारिणं ॥ Translated Sutra: ‘जो संयम (और तप) में तल्लीन हैं, वायु की तरह लघुभूत होकर विहार करते हैं, तथा जो निर्ग्रन्थ महर्षि हैं, उनके लिए ये सब अनाचीर्ण – अनाचरणीय हैं।‘ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 27 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचासवपरिण्णाया तिगुत्ता छसु संजया ।
पंचनिग्गहणा धीरा निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥ Translated Sutra: वे निर्ग्रन्थ पांच आश्रवों को परित्याग करने वाले, तीन गुप्तियों से गुप्त, षड्जीवनिकाय के प्रति संयमशील, पांच इन्द्रियों का निग्रह करने वाले, धीर और ऋजुदर्शी होते हैं। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 28 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयावयंति गिम्हेसु हेमंतेसु अवाउडा ।
वासासु पडिसंलीणा संजया सुसमाहिया ॥ Translated Sutra: (वे) सुसमाहित संयमी ग्रीष्मऋतु में आतापना लेते हैं; हेमन्त ऋतु में अपावृत हो जाते हैं, और वर्षाऋतु में प्रतिसंलीन हो जाते हैं। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 29 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परीसहरिऊदंता धुयमोहा जिइंदिया ।
सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमंति महेसिणो ॥ Translated Sutra: (वे) महर्षि परीषहरूपी रिपुओं का दमन करते है; मोह को प्रकम्पित कर देते हैं और जितेन्द्रिय (होकर) समस्त दुःखों को नष्ट करने के लिए पराक्रम करते हैं। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 30 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुक्कराइं करेत्ताणं दुस्सहाइं सहेत्तु य ।
केइत्थ देवलोएसु केई सिज्झंति नीरया ॥ Translated Sutra: दुष्कर क्रियाओं का आचरण करके तथा दुःसह को सहन कर, उन में से कई देवलोक में जाते हैं और कई नीरज – कर्म रहित होकर सिद्ध हो जाते है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Hindi | 31 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खवित्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य ।
सिद्धिमग्गमणुपत्ता ताइणो परिनिव्वुडा ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: सिद्धिमार्ग को प्राप्त, त्राता (वे निर्ग्रन्थ) संयम और तप के द्वारा पूर्व – कर्मों का क्षय करके परिनिर्वृत्त हो जाते हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 32 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती।
कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता? सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती।
इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं धम्मपन्नत्ती, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया।
पुढवी चित्तमंतमक्खाया अनेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।
आऊ Translated Sutra: हे आयुष्मन् ! मैंने सुना हैं, उन भगवान् ने कहा – इस निर्ग्रन्थ – प्रवचन में निश्चित ही षड्जीवनिकाय नामक अध्ययन प्रवेदित, सुआख्यात और सुप्रज्ञप्त है। (इस) धर्मप्रज्ञप्ति (जिसमें धर्म की प्ररूपणा है) अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है ? वह ’षड्जीवनिकाय’ है – पृथ्वीकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 33 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेसिं छण्हं जीवनिकायाणं
नेव सयं दंडं समारंभेज्जा नेवन्नेहिं दंडं समारंभावेज्जा दंडं समारंभंते वि अन्ने न समनु-जाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि न समनुजाणामि
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: ‘इन छह जीवनिकायों के प्रति स्वयं दण्ड – समारम्भ न करे, दूसरों से दण्ड – समारम्भ न करावे और दण्डसमारम्भ करनेवाले अन्य का अनुमोदन भी न करे।’ भंते ! मैं यावज्जीवन के लिए तीन करण एवं तीन योग से आरंभ न करूंगा, न कराउंगा, करनेवाले का न अनुमोदन करुंगा। भंते ! मैं उस (अतीत में किये हुए) दण्डसमारम्भ से प्रतिक्रमण करता हूँ, | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 34 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमे भंते! महव्वए पाणाइवायाओ वेरमणं
सव्वं भंते! पाणाइवायं पच्चक्खामि–
से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा
नेव सयं पाणे अइवाएज्जा नेवन्नेहिं पाणे अइवायावेज्जा पाणे अइवायंते वि अन्ने न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
पढमे भंते! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं। Translated Sutra: भंते ! पहले महाव्रत में प्राणातिपात से विरमण करना होता है। हे भदन्त मैं सर्व प्रकार के प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हुं। सूक्ष्म बादर त्रस स्थावर कीसी का भि अतिपात न करना, न करवाना, अनुमोदन करना। यह प्रतिज्ञा यावज्जीवन के लिए मैं तीन योग – तीन करण से करता हुं। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 35 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चे भंते! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं
सव्वं भंते! मुसावायं पच्चक्खामि–
से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा
नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहिं मुसं वायावेज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि
दोच्चे भंते! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं। Translated Sutra: भंते ! द्वीतीय महाव्रत में मृषावाद के विरमण होता है। भंते ! मैं सब प्रकार के मृषावाद का प्रत्याख्यान करता हूँ। क्रोध से, लोभ से, लोभ से, भय से या हास्य से, स्वयं असत्य न बोलना, दूसरों से नहीं बुलवाना और दूसरे वालों का अनुमोदन न करना; इस प्रकार की प्रतिज्ञा मैं यावज्जीवन के लिए, तीन करण, तीन योग से करता हूँ। (अर्थात्) | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 36 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे तच्चे भंते! महव्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं
सव्वं भंते! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि–
से गामे वा नगरे वा अरण्णे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा,
नेव सयं अदिन्नं गेण्हेज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा अदिन्नं गेण्हंते वि अन्ने न समनु-जाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
तच्चे भंते! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं। Translated Sutra: भंते ! तृतीय महाव्रत में अदत्तादान से विरति होती है। भंते ! मैं सब प्रकार के अदत्तादान का प्रत्याख्यान करता हूँ। जैसे कि – गॉंव में, नगर में या अरण्य में अल्प या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त हो या अचित्त, अदत्त वस्तु का स्वयं ग्रहण न करना, दूसरों से ग्रहण न कराना और ग्रहण करने वाले किसी का अनुमोदन न करना; यावज्जीवन | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 37 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे चउत्थे भंते! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं
सव्वं भंते! मेहुणं पच्चक्खामि–
से दिव्वं वा माणुसं वा तिरिक्खजोणियं वा,
नेव सयं मेहुणं सेवेज्जा नेवन्नेहिं मेहुणं सेवावेज्जा मेहुणं सेवंते वि अन्ने न समनुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
चउत्थे भंते! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं। Translated Sutra: चतुर्थ महाव्रत में मैथुन से निवृत होना होता है। मैं सब प्रकार के मैथुन का प्रत्याख्यान करता हूँ। जैसे कि देव – सम्बन्धी, मनुष्य – सम्बन्धि अथवा तिर्यञ्च – सम्बन्धी मैथुन का स्वयं सेवन न करना, दूसरों से न कराना और करनेवालों का अनुमोदन न करना; यावञ्जीवन के लिए, तीन करण तीन योग से मैं मन से, वचन से, काया से स्वयं | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 38 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे पंचमे भंते! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं
सव्वं भंते! परिग्गहं पच्चक्खामि–
से गामे वा नगरे वा रण्णे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा,
नेव सयं परिग्गहं परिगेण्हेज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगेण्हावेज्जा परिग्गहं परिगेण्हंते वि अन्ने न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
पंचमे भंते! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। Translated Sutra: पंचम महाव्रत में परिग्रह से विरत होना होता है। ‘‘भंते ! मैं सब प्रकार के परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ, जैसे कि – गॉंव में, नगर में या अरण्य में, अल्प या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त परिग्रह का परिग्रहण स्वयं न करे, दूसरों से नहीं कराए और न ही करनेवाले का अनुमोदन करे; यावज्जीवन के लिए, तीन करण, तीन | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 39 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे छट्ठे भंते! वए राईभोयणाओ वेरमणं
सव्वं भंते! राईभोयणं पच्चक्खामि–
से असनं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा
नेव सयं राइं भुंजेज्जा नेवन्नेहिं राइं भुंजावेज्जा राइं भुंजंते वि अन्ने न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
छट्ठे भंते! वए उवट्ठिओमि सव्वाओ राईभोयणाओ वेरमणं। Translated Sutra: भंते ! छट्ठे व्रत में रात्रिभोजन से निवृत्त होना होता है। भंते ! मैं सब प्रकार के रात्रिभोजन का प्रत्याख्यान करता हूँ। जैसे कि – अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का रात्रि में स्वयं उपभोग न करे, दूसरों को न कराए और न करनेवाले का अनुमोदन करे, यावज्जीवन के लिए, तीन करण, तीन योग से मैं मन से, वचन से काया से, स्वयं रात्रिभोजन | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 40 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं पंच महव्वयाइं राईभोयणवेरमणछट्ठाइं अत्तहियट्ठयाए उपसंपज्जित्ताणं विहरामि। Translated Sutra: इस प्रकार मैं इन पांच महाव्रतो और रात्रिभोजन – विरमण रूप छठे व्रत को आत्महित के लिए अंगीकार करके विचरण करता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 41 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–
से पुढविं वा भित्तिं वा सिलं वा लेलुं वा ससरक्खं वा कायं ससरक्खं वा वत्थं हत्थेण वा पाएण वा कट्ठेण वा किलिंचेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा सलागहत्थेण वा, न आलिहेज्जा न विलिहेज्जा न घट्टेज्जा न भिंदेज्जा अन्नं न आलिहावेज्जा न विलिहावेज्जा न घट्टावेज्जा न भिंदावेज्जा अन्नं आलिहंतं वा विलिहंतं वा घट्टंतं वा भिंदंतं वा न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि Translated Sutra: भिक्षु अथवा भिक्षुणी, जो कि संयत है, विरत है, जो पापकर्मों का निरोध और प्रत्याख्यान कर चुका है, दिन में या रात में, एकाकी हो या परिषद् में, सोते अथवा जागते; पृथ्वी, भित्ति, शिला, ढेले को, सचित्त रज से संसृष्ट काय, या वस्त्र को, हाथ, पैर, काष्ठ अथवा काष्ठ खण्ड से, अंगुलि, लोहे की सलाई, शलाकासमूह से, आलेखन, विलेखन, घट्टन | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 42 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–
से उदगं वा ओसं वा हिमं वा महियं वा करगं वा हरतणुगं वा सुद्धोदगं वा उदओल्लं वा कायं उदओल्लं वा वत्थं ससिणिद्धं वा कायं ससिणिद्धं वा वत्थं, न आमुसेज्जा न संफुसेज्जा न आवीलेज्जा न पवीलेज्जा न अक्खोडेज्जा न पक्खोडेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा अन्नं न आमुसावेज्जा न संफुसावेज्जा न आवीलावेज्जा न पवीलावेज्जा न अक्खोडावेज्जा न पक्खोडावेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा अन्नं आमुसंतं वा संफुसंतं वा आवीलंतं वा पवीलंतं वा अक्खोडंतं वा पक्खोडंतं वा आयावंतं वा Translated Sutra: वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी, जो कि संयत है, विरत है, तथा जिसने पापकर्मों का निरोध और प्रत्याख्यान किया है; दिन में अथवा रात में, एकाकी या परिषद् में, सोते या जागते; उदक, ओस, हिम, धुंअर, ओले, जलकण, शुद्ध उदक, अथवा जल से भीगे हुए शरीर या वस्त्र को, जल से स्निग्ध शरीर अथवा वस्त्र को थोड़ा – सा अथवा अधिक संस्पर्श, आपीडन या प्रपीडन, | |||||||||
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अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 43 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–
से अगणिं वा इंगालं वा मुम्मुरं वा अच्चिं वा जालं वा अलायं वा सुद्धागणिं वा उक्कं वा, न उंजेज्जा न घट्टेज्जा न उज्जालेज्जा न निव्वावेज्जा अन्नं न उंजावेज्जा न घट्टावेज्जा न उज्जाला-वेज्जा न निव्वावेज्जा अन्नं उज्जंतं वा घट्टंतं वा उज्जालंतं वा निव्वावंतं वा न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: संयत, विरत, प्रतिहत और प्रत्याख्यात – पापकर्मा वह भिक्षु या भिक्षुणी, दिन में या रात में, अकेले या परिषद् में, सोते या जागते; अग्नि, अंगारे, मुर्मुर, अर्चि, ज्वाला, अलात, शुद्ध अग्नि या उल्का को, उत्सिंचन, घट्टन, उज्ज्वालन या प्रज्वालन स्वयं न करे, न दूसरों कराए और न करने वाले का अनुमोदन करे; भंते ! यावज्जीवन के लिए, | |||||||||
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अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 44 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–
से सिएण वा विहुयणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्थेण वा चेलेण चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा अप्पणो वा कायं बाहिरं वा वि पुग्गलं, न फुमेज्जा न वीएज्जा अन्नं न फुमावेज्जा न वीयावेज्जा अन्नं फुमंतं वा वीयंतं वा न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समनुजाणामि।
तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: संयत, विरत, प्रतिहत और प्रत्याख्यातपापकर्मा, वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी; दिन में या रात में, अकेले या परिषद् में, सोते या जागते, चामर, पंखे, ताड़ के पत्तों से बने हुए पंखे, पत्र, शाखा, शाखा के टूटे हुए खण्ड, मोरपिच्छी वस्त्र के पल्ले से, अपने हाथ से या मुँह से, अपने शरीर को अथवा किसी बाह्य पुद्गल को (स्वयं) फूंक न दे, हवा | |||||||||
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अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 45 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–
से बीएसु वा बीयपइट्ठिएसु वा रूढेसु वा रूढपइट्ठिएसु वा जाएसु वा जायपइट्ठिएसु वा हरिएसु वा हरियपइट्ठिएसु वा छिन्नेसु वा छिन्नपइट्ठिएसु वा सच्चित्तकोलपडिनिस्सिएसु वा, न गच्छेज्जा न चिट्ठेज्जा न निसीएज्जा न तुयट्टेज्जा अन्नं न गच्छावेज्जा न चिट्ठावेज्जा न निसीया-वेज्जा न तुयट्टावेज्जा अन्नं गच्छंतं वा चिट्ठंतं वा निसीयंतं वा तुयट्टंतं वा न समनुजाणेज्जा
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं समनुजाणामि। Translated Sutra: संयत, विरत, प्रतिहत और प्रत्याख्यातपापकर्मा, वह भिक्षु या भिक्षुणी; दिन में अथवा रात में, अकेले या परिषद् में हो, सोया हो या जागता हो; बीजों, बीजों पर रखे पदार्थों, फूटे अंकुरों, अंकुरों पर हुए पदार्थों पर, पत्रसंयुक्त अंकुरित वनस्पतियों, पत्रयुक्त अंकुरित वनस्पति पर रखे हुए पदार्थों, हरित वनस्पतियों, हरित | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 46 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–
से कीडं वा पयंगं वा कुंथुं वा पिवीलियं वा हत्थंसि वा पायंसि वा बाहुंसि वा ऊरुं वा उदरंसि वा सीसंसि वा वत्थंसि वा पडिग्गहंसि वा रयहरणंसि वा गोच्छगंसि वा उंडगंसि वा दंडगंसि वा पीढगंसि वा फलगंसि वा सेज्जंसि वा संथारगंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारे उवगरणजाए तओ संजयामेव पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय एगंतमवणेज्जा नो णं संघायमावज्जेज्जा। Translated Sutra: जो संयत है, विरत है, जिसने पाप – कर्मों का निरोध और प्रत्याख्यान कर दिया है, वह भिक्षु या भिक्षुणी, दिन में या रात में, अकेले या परिषद् में हो, सोते या जागते; कीट, पतंगे, कुंथु अथवा पिपीलिका हो हाथ, पैर, भुजा, उरु, उदर, सिर, वस्त्र, पात्र, रजोहरण, गुच्छक, उंडग, दण्डक, पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक अथवा इसी प्रकार के अन्य किसी | |||||||||
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अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 47 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजयं चरमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ Translated Sutra: अयतनापूर्वक – १ – गमन करनेवाला। अयतनापूर्वक – २ – खड़ा होनेवाला – ३ – बैठनेवाला – ४ – सोने वाला – ५ – भोजन करनेवाला – ६ – बोलनेवाला, त्रस और स्थावर जीवों हिंसा करता है। उससे पापकर्म का बन्ध होता है, जो उसके लिए कटु फल वाला होता है। सूत्र – ४७–५२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 48 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजयं चिट्ठमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 49 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजयं आसमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 50 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजयं सयमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 51 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजयं भुंजमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 52 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजयं भासमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 53 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कहं चरे? कहं चिट्ठे? कहमासे? कहं सए? ।
कहं भुंजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई? ॥ Translated Sutra: साधु या साध्वी कैसे चले ? कैसे खडे हो ? कैसे बैठे ? कैसे सोए ? कैसे खाए और बोले ?, जिससे कि पापकर्म का बन्धन हो ? यतनापूर्वक चले, यतनापूर्वक खड़ा हो, यतनापूर्वक बैठे, यतनापूर्वक सोए, यतनापूर्वक खाए और यतनापूर्वक बोले, (तो वह) पापकर्म का बन्ध नहीं करता। सूत्र – ५३, ५४ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 54 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जयं चरे जयं चिट्ठे जयमासे जयं सए ।
जयं भुंजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 55 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वभूयप्पभूयस्स सम्मं भूयाइ पासओ ।
पिहियासवस्स दंतस्स पावं कम्मं न बंधई ॥ Translated Sutra: जो सर्वभूतात्मभूत है, सब जीवों को सम्यग्दृष्टि से देखता है, तथा आश्रव का निरोध कर चुका है और दान्त है, उसके पापकर्म का बन्ध नहीं होता। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 56 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए ।
अण्णाणी किं काही? किं वा नाहिइ छेय पावगं? ॥ Translated Sutra: ‘पहले ज्ञान और फिर दया है’ – इस प्रकार से सभी संयमी (संयम में) स्थित होते हैं। अज्ञानी क्या करेगा ? वह श्रेय और पाप को क्या जानेगा ? | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 57 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावगं ।
उभयं पि जाणई सोच्चा जं छेयं तं समायरे ॥ Translated Sutra: श्रवण करके ही कल्याण को जानता है, पाप को जानता है। कल्याण और पाप – दोनों को जानता है, उनमें जो श्रेय है, उसका आचरण करता है। |