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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 992 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा २. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य होज्जा ३. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ४. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होज्जा ५. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ६. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य नेरइएसु य देवेसु य होज्जा ७. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा ८. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा।
सलेस्सा णं भंते! जीवा पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? एवं चेव। एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। कण्हपक्खिया, Translated Sutra: भगवन् ! जीवों ने किस गति में पापकर्म का समर्जन किया था और किस गति में आचरण किया था ? गौतम! सभी जीव तिर्यंचयोनिकों में थे अथवा तिर्यंचयोनिकों और नैरयिकों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और देवों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, नैरयिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 993 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा, एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा। एवं अनंतरोववन्नगाणं नेरइयाईणं जस्स जं अत्थि लेसादीयं अनागारोवओगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं, नवरं–अनंतरेसु जे परिहरियव्वा ते जहा बंधिसए तहा इहं पि। एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ। एवं जाव अंतराइएणं निरवसेसं। एसो वि नवदंडगसंगहिओ उद्देसओ भाणियव्वो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों ने किस गति में पापकर्मों का समार्जन किया था, कहाँ आचरण किया था। गौतम ! वे सभी तिर्यंचयोनिकों में थे, इत्यादि पूर्वोक्त आठों भंगों कहना। अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों की अपेक्षा लेश्या आदि से लेकर यावत् अनाकारोपयोगपर्यन्त भंगों में से जिसमें जो भंग पाया जाता हो, वह सब विकल्प से वैमानिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२९ समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 995 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं समायं पट्ठविंसु समाय निट्ठविंसु? समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु? विसमायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु? विसमायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु?
गोयमा! अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु जाव अत्थेगतिया विसमायं पट्ठविंसु विसमाय निट्ठविंसु।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु, तं चेव?
गोयमा! जीवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थेगतिया समाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया समाउया विसमोववन्नगा, अत्थे गतिया विसमाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया विसमाउया विसमोववन्नगा। तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा Translated Sutra: भगवन् ! जीव पापकर्म का वेदन एकसाथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं ? अथवा एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न – भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? या भिन्न – भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ? अथवा भिन्न – भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न – भिन्न समय में समाप्त करते हैं? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२९ समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 996 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्मं किं समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु, अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु, तं चेव?
गोयमा! अनंतरोववन्नगा नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थेगतिया समाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया समाउया विसमोववन्नगा। तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु। तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु। से तेणट्ठेणं तं Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक एक काल में पापकर्म वेदन करते हैं तथा एक साथ ही उसका अन्त करते हैं ? गौतम ! कईं पापकर्म को एक साथ भोगते हैं ? एक साथ अन्त करते हैं तथा कितने ही एक साथ पापकर्म को भोगते हैं, किन्तु उसका अन्त विभिन्न समय में करते हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि कईं एक साथ भोगते हैं? इत्यादि प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1033 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एवमेते चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा जाव वणस्सइकाइया।
अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्ता-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगसमइएण वा दुसमइएण वा जाव उववज्जेज्जा?
एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इनके भी प्रत्येक के चार – चार भेद वनस्पतिकायिक – पर्यन्त कहने चाहिए। भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1034 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए एयपयरंसि अणुसेढिं उववज्जित्तए, से Translated Sutra: भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक क्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरण – समुद्घात करके ऊर्ध्वलोक की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक – रूप से उत्पन्न होने योग्य है तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! तीन समय या चार समय की। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1036 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया, भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
परंपरोववन्नगअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमो उद्देसओ जाव लोगचरिमंतो त्ति।
कहि णं भंते! परंपरोववन्नगबादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु।
एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव Translated Sutra: भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक इत्यादि। उनके चार – चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! परम्परोपपन्नक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्व – चरमान्त में मरणसमुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् पश्चिम – चरमान्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Hindi | 1064 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ वा चउसु वि गईसु। संखेज्जवासाउय-असंखेज्जवासाउय-पज्जत्ता-अपज्जत्तएसु य न कओ वि पडिसेहो जाव अनुत्तरविमानत्ति। परिमाणं अवहारो ओगाहणा य जहा असण्णिपंचिंदियाणं। वेयणिज्जवज्जाणं सत्तण्हं पगडीणं बंधगा वा अबंधगा वा, वेयणिज्जस्स बंधगा, नो अबंधगा। मोहणिज्जस्स वेदगा वा अवेदगा वा, सेसाणं सत्तण्ह वि वेदगा, नो अवेदगा। सायावेदगा वा असायावेदगा वा। मोहणिज्जस्स उदई वा अणुदई वा, सेसाणं सत्तण्ह वि उदई, नो अणुदई। नामस्स गोयस्स य उदीरगा, नो अनुदीरगा, सेसाणं छण्ह वि उदीरगा वा अनुदीरगा वा। कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशि रूप संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात चारों गतियों से होता है। ये संख्यात वर्ष और असंख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों से आते हैं। यावत् अनुत्तरविमान तक किसी भी गति से आने का निषेध नहीं है। इनका परिमाण, अपहार और अवगाहना | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
Gujarati | 6 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खु- दए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिने जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खय- मव्वाबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे…
…जाव पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે આદિકર, તીર્થંકર, સ્વયંસંબુદ્ધ, પુરુષોત્તમ, પુરુષસિંહ, પુરુષવરપુંડરીક, પુરુષવરગંધહસ્તિ, લોકમાં ઉત્તમ, લોકનાં નાથ, લોકપ્રદીપ, લોકપ્રદ્યોતકર, અભયદાતા, ચક્ષુદાતા, માર્ગદાતા, શરણદાતા, ધર્મ ઉપદેશક, ધર્મસારથી, ધર્મવરચાતુરંત ચક્રવર્તી, અપ્રતિહત શ્રેષ્ઠ જ્ઞાનદર્શનના ધારક, છદ્મતા(ઘાતિકર્મના આવરણ) | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 112 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ,
पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર રાજગૃહી નગર પાસે આવેલ ગુણશીલ ચૈત્યથી નીકળ્યા. નીકળીને બહાર જનપદમાં વિહાર કર્યો. તે કાળે તે સમયે કૃતંગલા નામે નગરી હતી. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર નગરીનું વર્ણન જાણવું. તે કૃતંગલા નગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં છત્રપલાશક નામે ચૈત્ય હતું. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર ઉદ્યાનનું વર્ણન જાણવું. ત્યારે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 116 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से खंदए अनगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महाव्वयाइं आरुहेइ, आरुहेत्ता समणा य समणीओ य खामेइ, खामेत्ता तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं द्रुहइ, द्रुहित्ता मेहघणसन्निगासं देवसन्निवातं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे Translated Sutra: પછી તે સ્કંદક અણગાર શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની અનુજ્ઞા પામીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ થઈ યાવત્ વિકસિત હૃદય થઈને ઊભા થયા. થઈને ભગવંત મહાવીરને ત્રણ વખત આદક્ષિણ – પ્રદક્ષિણા કરીને યાવત્ નમીને સ્વયમેવ પાંચ મહાવ્રત આરોપે છે. પછી શ્રમણો – શ્રમણીઓને ખમાવે છે પછી તથારૂપ યોગ્ય સ્થવિરો સાથે ધીમે ધીમે વિપુલ પર્વત ચડે છે, મેઘઘન સદૃશ, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 158 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नामं अनगारे पगतिभद्दए जाव विनीए अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं, पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोक-म्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईसाने कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૮. ભગવન્ ! જો દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનની આવી મહાઋદ્ધિ અને આવું વિકુર્વણા સામર્થ્ય છે તો – આપ દેવાનુપ્રિયના શિષ્ય પ્રકૃતિ ભદ્રક યાવત્ વિનિત કુરુદત્તપુત્ર નામે સાધુ કે જે નિરંતર અઠ્ઠમ અઠ્ઠમ અને પારણે આયંબિલ સ્વીકારીને એ પ્રકારે કઠિન તપોકર્મથી આત્માને ભાવિતકરતા, ઊંચે હાથ રાખીને સૂર્યાભિમુખ રહી આતાપના | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 160 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ जाव परिसा पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने देविंदे देवराया ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए, तामेव दिसिं पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी–अहो णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। ईसानस्स णं भंते! सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते? कहिं अनुपविट्ठे?
गोयमा! Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે રાજગૃહી નામે નગરી હતી. નગરી વર્ણન ‘ઉવાવાઈ’ સૂત્ર મુજબ જાણવું. ભગવાન મહાવીર પધાર્યા, પરિષદ(સભા)ધર્મ શ્રવણ માટે નીકળી યાવત પરિષદ ભગવંતને પર્યુપાસે છે. તે કાળે તે સમયે દેવેન્દ્ર દેવરાજ, શૂલપાણી, વૃષભવાહન, ઉત્તરાર્ધ – લોકાધિપતિ, ૨૮ લાખ વિમાનાવાસ અધિપતિ, આકાશસમ નિર્મલ વસ્ત્રધારી, માળાથી સુશોભિત, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-२ चमरोत्पात | Gujarati | 170 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था जाव परिसा पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासनंसि, चउसट्ठीए सामानियसाहसहिं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव अत्थि णं भंते! ईसिप्पब्भाराए पुढवीए अहे असुर-कुमारा देवा परिवसंति? नो इणट्ठे Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. ભગવંત મહાવીર પધાર્યા યાવત્ પર્ષદા પર્યુપાસે છે. તે કાળે તે સમયે અસુરેન્દ્ર, અસુરરાજ ચમર ચમરચંચા રાજધાનીમાં, સુધર્માસભામાં ચમર નામે સિંહાસન ઉપર બેઠેલો, ૬૪,૦૦૦ સામાનિક દેવોથી વીંટળાયેલો ચમરેન્દ્ર ભગવંતના વંદનાર્થે આવ્યો યાવત્ ભગવંતને નૃત્યવિધિ દેખાડીને જે દિશામાંથી | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-२ चमरोत्पात | Gujarati | 172 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए?
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था।
तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं Translated Sutra: અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરે તે દિવ્ય દેવઋદ્ધિ યાવત્ ક્યાં લબ્ધ – પ્રાપ્ત – અભિસન્મુખ કરી ? ગૌતમ ! તે કાળે તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વિંધ્યગિરિની તળેટીમાં બેભેલ નામે સંનિવેશ હતું. તેનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્રાનુસાર ચંપાનગરી મુજબ જાણવું. તે બેભેલ સંનિવેશે પૂરણ નામે ગૃહસ્થ રહેતો હતો, તે આઢ્ય, દિપ્ત યાવત્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-४ यान | Gujarati | 186 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा परिणामेत्तए?
हंता पभू।
पभू णं भंते! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेत्ता अनेगाइं जोयणाइं गतित्तए।
हंता पभू।
से भंते! किं आइड्ढीए गच्छइ? परिड्ढीए गच्छइ?
गोयमा! नो आइड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ।
से भंते! किं आयकम्मुणा गच्छइ? परकम्मुणा गच्छइ?
गोयमा! नो आयकम्मुणा गच्छइ, परकम्मुणा गच्छइ।
से भंते! किं आयप्पयोगेणं गच्छइ? परप्पयोगेणं गच्छइ?
गोयमा! नो आयप्पयोगेणं गच्छइ, परप्पयोगेणं गच्छइ।
से भंते! किं ऊसिओदयं गच्छइ? पतोदयं गच्छइ?
गोयमा! ऊसिओदयं पि गच्छइ, पतोदयं पि गच्छइ।
से भंते! किं बलाहए? इत्थी?
गोयमा! बलाहए णं से, Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૫ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-८ देवाधिपति | Gujarati | 201 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–असुरकुमाराणं भंते! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति?
गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–चमरे असुरिंदे असुरराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे, बली वइरोयणिंदे वइरोयणराया, सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
नागकुमाराणं भंते! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति?
गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–धरणे णं नागकुमारिंदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, सेलवाले, संखवाले, भूयानंदे नागकुमारिंदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, संखवाले, सेलवाले।
जहा नागकुमारिंदाणं एताए वत्तव्वयाए नीयं एवं इमाणं नेयव्वं –
सुवण्णकुमाराणं – Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૦૧. રાજગૃહ નગરમાં ભગવંત મહાવીર પધાર્યા યાવત્ પર્યુપાસના કરતા ગૌતમસ્વામીએ આમ કહ્યું કે – ભગવન્ ! અસુરકુમાર દેવો ઉપર કેટલા દેવો આધિપત્ય કરતા યાવત્ વિચરે છે ? ગૌતમ ! દશ દેવો યાવત્ આધિપત્ય કરતા વિચરે છે. તે આ – અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમર, સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ, વૈરોચનેન્દ્ર વૈરોચનરાજ બલિ, સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ. ભગવન્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Gujarati | 235 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा?
हंता धारेज्जा।
जण्णं भंते! केवली पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा, तण्णं वेमाणिया देवा जाणंति-पासंति?
गोयमा! अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति?
गोयमा! वेमाणिया देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– माइमिच्छादिट्ठी उववन्नागा य, अमाइ-सम्मदिट्ठी-उववन्नगा य। तत्थ णं जे ते माइमिच्छादिट्ठीउववन्नगा ते ण जाणंति ण पासंति। तत्थ णं जे ते अमाइसम्मदिट्ठीउववन्नगा ते णं जाणंति-पासंति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! अमाइसम्मदिट्ठी दुविहा पन्नत्ता, Translated Sutra: ભગવન્ ! શું કેવલિ પ્રકૃષ્ટ મન અને પ્રકૃષ્ટ વચનને ધારણ કરે છે ? હા, ધારણ કરે છે. ભગવન્ ! કેવલિ, જે પ્રકૃષ્ટ મન કે વચનને ધારણ કરે છે, શું તેને વૈમાનિક દેવો જાણે, જુએ ? ગૌતમ ! કેટલાક જાણે, જુએ. કેટલાક ન જાણે, ન જુએ. ભગવન્ !એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! વૈમાનિક દેવો બે ભેદે છે – માયી મિથ્યાદૃષ્ટિ રૂપે ઉત્પન્ન, અમાયી સમ્યગ્દૃષ્ટિ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Gujarati | 251 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए णं भंते! सविसयंसि गणं अगिलाए संगिण्हमाणे, अगिलाए उवगिण्हमाणे कइहिं भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति?
गोयमा! अत्थेगतिए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति, अत्थेगतिए दोच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झति, तच्चं पुण भवग्गहणं नाइक्कमति। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫૧. ભગવન્ ! સ્વવિષયમાં(વાચના પ્રદાન આદિમાં) ગણને અગ્લાનપણે(ખેદ વિના) સ્વીકારતા અને સહાય કરતા આચાર્ય, ઉપાધ્યાય કેટલા ભવો કરીને સિદ્ધ થાય યાવત્ અંત કરે ? ગૌતમ ! કેટલાક તે જ ભવે સિદ્ધ થાય. કેટલાક બે ભવ કરીને સિદ્ધ થાય, પણ ત્રીજા ભવને અતિક્રમે નહીં. સૂત્ર– ૨૫૨. ભગવન્ ! જે બીજાને અસત્ય, અસદ્ભુત, અભ્યાખ્યાન | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Gujarati | 267 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी– से नूनं भंते! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया उपज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा? परित्ता राइंदिया उप्पज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा?
हंता अज्जो! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया तं चेव।
से केणट्ठेणं जाव विगच्छिस्संति वा?
से नूनं भे अज्जो! पासेनं अरहया पुरिसादानिएणं सासए लोए बुइए–अनादीए Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે ભગવંત પાર્શ્વના પ્રશિષ્ય, સ્થવિર ભગવંત, જ્યાં શ્રમણ ભગવંત મહાવીર છે, ત્યાં આવે છે, આવીને ભગવંત મહાવીરની થોડી નજીક યથાયોગ્ય સ્થાને રહીને એમ કહ્યું – ભગવન્ ! અસંખ્યેય લોકમાં અનંતા રાત્રિ – દિવસ ઉત્પન્ન થયા છે – થાય છે – થશે ? નષ્ટ થયા છે – થાય છે – થશે ? અથવા પરિમિત રાત્રી – દિવસ ઉત્પન્ન થયા છે – | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-१ वेदना | Gujarati | 275 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं महावेदना महानिज्जरा? महावेदना अप्पनिज्जरा? अप्पवेदना महानिज्जरा? अप्पवेदना अप्पनिज्जरा?
गोयमा! अत्थेगतिया जीवा महावेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा महावेदना अप्प-निज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा।
से केणट्ठेणं?
गोयमा! पडिमापडिवन्नए अनगारे महावेदने महानिज्जरे। छट्ठ-सत्तमासु पुढवीसु नेरइया महावेदना अप्पनिज्जरा। सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे अप्पवेदने महानिज्जरे। अनुत्तरोववाइया देवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૭૫. ભગવન્ ! જીવો શું ૧. મહાવેદના, મહાનિર્જરાવાળા છે. ૨. મહાવેદના, અલ્પનિર્જરાવાળા છે. ૩. અલ્પ – વેદના, મહાનિર્જરાવાળા છે. ૪. અલ્પવેદના, અલ્પનિર્જરાવાળા છે ? ગૌતમ! ૧. કેટલાક જીવો મહાવેદના, મહાનિર્જરાવાળા છે. ૨. કેટલાક જીવો મહાવેદના, અલ્પનિર્જરાવાળા છે. ૩. કેટલાક જીવો અલ્પ – વેદના, મહાનિર્જરાવાળા છે. ૪. કેટલાક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Gujarati | 282 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए? सादीए अपज्जवसिए? अनादीए सपज्जवसिए? अनादीए अपज्जवसिए?
गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए।
जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतियाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए।
से केणट्ठेणं? गोयमा! इरियावहियबंधयस्स कम्मोवचए Translated Sutra: ભગવન્ ! વસ્ત્રને જે પુદ્ગલનો ઉપચય થયો તે શું ૧. સાદિ સાંત છે, ૨. સાદિ અનંત છે, ૩. અનાદિ સાંત છે કે, ૪. અનાદિ અનંત છે? ગૌતમ ! વસ્ત્રમાં જે પુદ્ગલોનો ઉપચય થાય તે સાદિ સાંત છે. અન્ય ત્રણ ભંગ નથી. ભગવન્ ! જેમ વસ્ત્રનો પુદ્ગલોપચય સાદિ સાંત છે, પણ અન્ય ત્રણ ભંગે નથી, તેમ જીવોનો કર્મોપચય સાદિ સાંત છે, કે યાવત્ અનાદિ અનંત છે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-५ तमस्काय | Gujarati | 291 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति?
गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं।
तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए?
गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए।
सत्तरस-एक्कवीसे Translated Sutra: ભગવન્ ! આ તમસ્કાય શું છે ? શું પૃથ્વી કે પ્રાણી તમસ્કાય કહેવાય ? ગૌતમ ! પૃથ્વી તમસ્કાય ન કહેવાય, પણ પાણી ‘તમસ્કાય’ કહેવાય. ભગવન્ ! એમ શામાટે કહ્યું ? ગૌતમ ! કેટલોક પૃથ્વીકાય શુભ છે, તે અમુક ક્ષેત્રને પ્રકાશિત કરે છે, કેટલોક પૃથ્વીકાય એવો છે કે જે ક્ષેત્રના એક ભાગને પ્રકાશિત નથી કરતો, તેથી એમ કહ્યું. ભગવન્ ! તમસ્કાયના | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-५ तमस्काय | Gujarati | 294 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हरातीओ णं भंते! केवतियं आयामेणं? केवतियं विक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ताओ?
गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परि-क्खेवेणं पन्नत्ताओ।
कण्हरातीओ णं भंते! केमहालियाओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभावे इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबूदीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जाव एकाहं वा, दुयाहं वा, तियाहं वा, उक्कोसेणं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૨ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-६ आयु | Gujarati | 360 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभाव-पडोयारे भविस्सइ?
गोयमा! मनुया भविस्संति दुरूवा दुवण्णा दुग्गंधा दुरसा दुफासा अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा हीनस्सरा दीनस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अप्पियस्सरा असुभस्सरा अमणुन्नस्सरा अमणामस्सरा अनादेज्जवयणपच्चायाया, निल्लज्जा, कूड-कवड-कलह-वह-बंध-वेरनिरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा, अकज्जनिच्चुज्जता, गुरुनियोग-विनयरहिया य, विकल-रूवा, परूढनह-केस-मंसु-रोमा, काला, खर-फरुस-ज्झामवण्णा, फुट्टसिरा, कविलपलियकेसा, बहुण्हारु- संपिणद्ध-दुद्दंसणिज्जरूवा, संकुडितवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा, जरापरिणतव्व थेरगनरा, Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સમયમાં ભરતક્ષેત્રના મનુષ્યોના આકાર, ભાવપ્રત્યાવતાર કેવા હશે ? ગૌતમ ! મનુષ્યો કુરૂપ, કુવર્ણ, દુર્ગંધી, કુરસ, કુસ્પર્શવાળા, અનિષ્ટ, અકાંત યાવત્ અમણામ, હીન – દીન – અનિષ્ટ યાવત્ અમણામ સ્વરવાળા, અનાદેય – અપ્રીતિયુક્ત વચનવાળા, નિર્લજ્જ, કૂડ – કપટ – કલહ – વધ – બંધ – વૈરમાં રત, મર્યાદા ઉલ્લંઘવામાં પ્રધાન, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-९ देव | Gujarati | 554 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–भवियदव्वदेवा, नरदेवा, धम्मदेवा, देवातिदेवा, भावदेवा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–भवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा?
गोयमा! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवेसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–भवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नरदेवा-नरदेवा?
गोयमा! जे इमे रायाणो चाउरंतचक्कवट्टी उप्पन्नसमत्तचक्करयणप्पहाणा नवनिहिपइणो समिद्ध-कीसा बत्तीसरायवरसहस्साणु-यातमग्गा सागरवरमेहलाहिवइणो मणुस्सिंदा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नरदेवा-नरदेवा।
से Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૫૪. ભગવન્ ! દેવો કેટલા પ્રકારે છે ? ગૌતમ ! પાંચ પ્રકારે છે – ભવ્યદ્રવ્યદેવ, નરદેવ, ધર્મદેવ, દેવાધિદેવ અને ભાવદેવ. ભગવન્ ! ભવ્યદ્રવ્ય દેવોને ‘ભવ્યદ્રવ્યદેવ’ કેમ કહે છે ? ગૌતમ ! જે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ કે મનુષ્ય દેવોમાં ઉત્પન્ન થવા યોગ્ય છે, તે ભાવિ દેવપણાથી. હે ગૌતમ ! તે ભવ્યદ્રવ્યદેવ કહેવાય છે. ભગવન્ ! | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-९ देव | Gujarati | 558 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उवज्जंति–किं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, देवेसु उववज्जंति।
जइ देवेसु उववज्जंति? सव्वदेवेसु उववज्जंति जाव सव्वट्ठसिद्धत्ति।
नरदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता–पुच्छा।
गोयमा! नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, नो देवेसु उववज्जंति।
जइ नेरइएसु उववज्जंति? सत्तसु वि पुढवीसु उववज्जंति।
धम्मदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, देवेसु उववज्जंति।
जइ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫૪ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-६ भव्य | Gujarati | 301 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा?
गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तति, तत्तो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, तओ पच्छा आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं Translated Sutra: ભગવન્ ! જે જીવ મારણાંતિક સમુદ્ઘાતથી સમવહત થાય, થઈને આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ૩૦ લાખ નરકા – વાસોમાંના કોઈ એક નરકાવાસમાં નૈરયિકપણે ઉત્પન્ન થવા યોગ્ય છે, તો હે ભગવન્ ! ત્યાં જઈને આહાર કરે ? આહારને પરિણમાવે ? શરીરને બાંધે ? ગૌતમ ! કેટલાક ત્યાં જઈને કરે અને કેટલાક ત્યાં જઈ, અહીં આવીને ફરી વાર મારણાંતિક સમુદ્ઘાત વડે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-८ पृथ्वी | Gujarati | 313 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा जाव ईसीपब्भारा।
अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए गेहा इ वा? गेहावणा इ वा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए अहे गामा इ वा? जाव सन्निवेसा इ वा?
नो इणट्ठे समट्ठे।
अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति?
हंता अत्थि। तिन्नि वि पकरेंति–देवो वि पकरेति, असुरो वि पकरेति, नागो वि पकरेति।
अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बादरे थणियसद्दे?
हंता अत्थि। तिन्नि वि पकरेंति।
अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे बादरे अगनिकाए?
गोयमा! Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧૩. ભગવન્ ! પૃથ્વીઓ કેટલી છે ? ગૌતમ ! આઠ છે. તે આ – રત્નપ્રભા, શર્કારાપ્રભા,વાલુકાપ્રભા, ધૂમપ્રભા, પંકપ્રભા, તમ:પ્રભા, તમ:તમાપ્રભા અને ઈષત્પ્રાગ્ભારા. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વી નીચે ગૃહો કે દુકાનો છે ? ગૌતમ ! ના ત્યાં ઘર, દુકાન નથી. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા નીચે ગામ યાવત્ સંનિવેશ છે ? ના, ત્યાં ગ્રામાદિ નથી. ભગવન્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-८ पृथ्वी | Gujarati | 315 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! आउयबंधे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिहत्ताउए, गतिनामनिहत्ताउए, ठितिनाम-निहत्ताउए, ओगाहणानामनिहत्ताउए, पएसनामनिहत्ताउए, अनुभागनामनिहत्ताउए। दंडओ जाव वेमाणियाणं।
जीवा णं भंते! किं जातिनामहित्ता? गतिनामनिहत्ता? ठितिनामनिहत्ता? ओगाहणानाम-निहत्ता? पएसनामनिहत्ता? अनुभागनामनिहत्ता?
गोयमा! जातिनामनिहत्ता वि जाव अनुभागनामनिहत्ता वि। दंडओ जाव वेमाणियाणं।
जीवा णं भंते! किं जातिनामनिहत्ताउया? जाव अनुभागनामनिहत्ताउया?
गोयमा! जातिनामनिहत्ताउया वि जाव अनुभागनामनिहत्ताउया वि। दंडओ जाव वेमाणियाणं
एवं एए दुवालस दंडगा Translated Sutra: ભગવન્ ! આયુબંધ કેટલા પ્રકારે છે? ગૌતમ ! છ પ્રકારે. તે આ – જાતિનામનિધત્તાયુ, ગતિનામનિધત્તાયુ , સ્થિતિનામનિધત્તાયુ, અવગાહનાનામનિધત્તાયુ, પ્રદેશનામનિધત્તાયુ, અનુભાગનામનિધત્તાયુ. વૈમાનિકો સુધી ૨૪ દંડકોમાં આયુબંધ સંબંધે આ આલાવો કહેવો. ભગવન્ ! શું જીવ, જાતિનામનિધત્ત યાવત્ અનુભાગનામનિધત્ત છે ? ગૌતમ! જીવ જાતિનામનિધત્ત | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Gujarati | 412 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–
गुरू णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता?
गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–आयरियपडिनीए, उवज्झायपडिनीए, थेरपडिनीए।
गति णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता?
गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं० इहलोगपडिनीए, परलोगपडिनीए, दुहओलोग पडिनीए।
समूहण्णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता?
गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–कुलपडिनीए, गणपडिनीए, संघपडिनीए।
अणुकंपं पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता?
गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–तवस्सिपडिनीए, गिलाणपडिनीए, सेहपडिनीए।
सुयण्णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता?
गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–सुत्तपडिनीए, Translated Sutra: રાજગૃહનગરે યાવત્ આમ કહ્યું – ભગવન્ ! ગુરુને આશ્રીને કેટલા પ્રત્યનીકો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ. તે આ – આચાર્ય પ્રત્યનીક, ઉપાધ્યાય પ્રત્યનીક, સ્થવિર પ્રત્યનીક. ભગવન્ ! ગતિને આશ્રીને કેટલા પ્રત્યનીક કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ. તે આ – આલોક પ્રત્યનીક, પરલોક પ્રત્યનીક, ઉભયલોક પ્રત્યનીક. ભગવન્ ! સમૂહને આશ્રીને કેટલા પ્રત્યનીક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Gujarati | 414 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–इरियावहियबंधे य, संपराइयबंधे य।
इरियावहियं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? तिरिक्खजोणिणी बंधइ? मनुस्सो बंधइ? मनुस्सी बंधइ? देवो बंधइ? देवी बंधइ?
गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ। पुव्व पडिवन्नए पडुच्च मनुस्सा य मनुस्सीओ य बंधंति, पडिवज्जमाणए पडुच्च १. मनुस्सो वा बंधइ २. मनुस्सी वा बंधइ ३. मनुस्सा वा बंधंति ४. मनुस्सीओ वा बंधंति ५. अहवा मनुस्सो य मनुस्सी य बंधइ ६. अहवा मनुस्सो य मनुस्सीओ य बंधंति ७. अहवा मनुस्सा य मनुस्सी य बंधंति Translated Sutra: ભગવન્ ! બંધ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! બે ભેદે. ઐર્યાપથિકબંધ, સાંપરાયિક બંધ. ભગવન્ ! ઐર્યાપથિક કર્મ, શું નૈરયિક બાંધે, તિર્યંચ બાંધે, તિર્યંચિણી બાંધે, મનુષ્ય બાંધે – માનુષી સ્ત્રી બાંધે, દેવો બાંધે, કે દેવી બાંધે ? ગૌતમ ! નૈરયિક, તિર્યંચ, તિર્યંચિણી, દેવ કે દેવીમાં કોઈ ન બાંધે, પણ પૂર્વ પ્રતિપન્નક(પૂર્વે વિતરાગી થયેલા)ની | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Gujarati | 415 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] संपराइयं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? जाव देवी बंधइ?
गोयमा! नेरइओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ, मनुस्सो वि बंधइ, मनुस्सी वि बंधइ, देवो वि बंधइ, देवी वि बंधइ।
तं भंते! किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? तहेव जाव नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसगो बंधइ?
गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ जाव नपुंसगा वि बंधंति, अहवा एते य अवगयवेदो य बंधइ, अहवा एते य अवगयवेदा य बंधंति।
जइ भंते! अवगयवेदो य बंधइ, अवगयवेदा य बंधंति तं भंते! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ? पुरिसपच्छाकडो बंधइ? एवं जहेव इरियावहियबंधगस्स तहेव निरवसेसं जाव अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा Translated Sutra: ભગવન્ ! સાંપરાયિક કર્મ શું નૈરયિક બાંધે, તિર્યંચયોનિક બાંધે યાવત્ દેવી બાંધે? ગૌતમ! સાંપરાયિક કર્મ, નૈરયિક પણ બાંધે, તિર્યંચ, તિર્યંચ સ્ત્રી પણ બાંધે, મનુષ્ય – મનુષ્ય સ્ત્રી પણ બાંધે. દેવ – દેવી પણ બાંધે. ભગવન્ ! જો વેદરહિત એક જીવ અને વેદ રહિત અનેક જીવ, સાંપરાયિક કર્મ બાંધે છે, તો શું સ્ત્રી પશ્ચાત્કૃત બાંધે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-२ आराधना | Gujarati | 431 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आराहणा पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा आराहणा पन्नत्ता, तं जहा–नाणाराहणा, दंसणाराहणा, चरित्ताराहणा।
नाणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना।
दंसणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना।
चरित्ताराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना।
जस्स णं भंते! उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा? जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स उक्कोसिया नाणाराहणा?
गोयमा! जस्स उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स दंसणाराहणा Translated Sutra: ભગવન્ ! આરાધના કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ત્રણ ભેદ. તે આ – જ્ઞાનારાધના, દર્શનારાધના, ચારિત્રારાધના. ભગવન્ ! જ્ઞાનારાધના કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ત્રણ ભેદે. તે આ – ઉત્કૃષ્ટા, મધ્યમા, જઘન્યા. ભગવન્ ! દર્શનારાધના કેટલા ભેદે છે ? એ રીતે ત્રણ ભેદે જ છે. ચારિત્રારાધના પણ એ પ્રમાણે જ છે. ભગવન્ ! જેને ઉત્કૃષ્ટા જ્ઞાનારાધના હોય | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-५ अतिपात | Gujarati | 543 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवायवेरमणे, जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे–एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते।
अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता?
गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता।
अह भंते! ओग्गहे, ईहा, अवाए, धारणा–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता?
गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता।
अह भंते! उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार-परक्कमे–एस णं कतिवण्णे जाव कति फासे पन्नत्ते?
गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते।
सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे कतिवण्णे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૪૨ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-८ भूमि | Gujarati | 796 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति?
गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति।
जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए अवसेसाणं तित्थगराणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जित्था?
गोयमा! अत्थेगतियाणं संखेज्जं कालं, अत्थेगतियाणं असंखेज्जं कालं। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૯૩ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Gujarati | 976 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ?
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ।
सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए एवं चउभंगो।
कण्हलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ। एवं Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૭૬. તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહમાં યાવત્ આમ પૂછ્યું – ભગવન્ ! જીવે, ૧. પાપકર્મ બાંધ્યુ, બાંધે છે, બાંધશે ? ૨. બાંધ્યુ, બાંધે છે, બાંધશે નહીં ? ૩. બાંધ્યુ, બાંધતો નથી, બાંધશે? ૪. બાંધ્યુ છે, બાંધતો નથી, બાંધશે નહીં? ગૌતમ! ૧. કેટલાકે બાંધ્યુ છે, બાંધે છે, બાંધશે. ૨. કેટલાકે બાંધ્યુ છે, બાંધે છે, બાંધશે નહીં. ૩. કેટલાકે બાંધ્યુ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Gujarati | 977 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मद्दिट्ठीणं चत्तारि भंगा, मिच्छादिट्ठीणं पढम-बितिया, सम्मामिच्छादिट्ठीणं एवं चेव।
नाणीणं चत्तारि भंगा, आभिनिबोहियनाणीणं जाव मनपज्जवनाणीणं चत्तारि भंगा, केवलनाणीणं चरिमो भंगो जहा अलेस्साणं।
अन्नाणीणं पढम-बितिया, एवं मइअन्नाणीणं, सुयअन्नाणीणं, विभंगनाणीण वि।
आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताणं पढम-बितिया, नोसण्णोवउत्ताणं चत्तारि।
सवेदगाणं पढम-बितिया। एवं इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा वि। अवेदगाणं चत्तारि।
सकसाईणं चत्तारि, कोहकसाईणं पढम-बितिया भंगा, एवं माणकसायिस्स वि, मायाकसायिस्स वि। लोभकसायिस्स चत्तारि भंगा।
अकसायी णं भंते! जीवे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૭૬ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Gujarati | 978 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ?
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी, पढम-बितिया।
सलेस्से णं भंते! नेरइए पावं कम्मं? एवं चेव। एवं कण्हलेस्से वि, नीललेस्से वि, काउलेस्से वि। एवं कण्हपक्खिए सुक्कपक्खिए, सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी, नाणी आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी, अन्नाणी मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी, आहारसण्णोवउत्ते जाव परिग्गहसण्णोवउत्ते, सवेदए नपुंसकवेदए, सकसायी जाव लोभकसायी सजोगी मणजोगी वइजोगी कायजोगी, सागरोवउत्ते अनागारोवउत्ते– एएसु सव्वेसु पदेसु पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा।
एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं–तेउलेसा, Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૭૮. ભગવન્ ! નૈરયિકે પાપકર્મને બાંધ્યુ, બાંધે છે, બાંધશે ? ગૌતમ! કેટલાક બાંધે, પહેલો – બીજો ભંગ. ભગવન્ ! સલેશ્યી નૈરયિક પાપકર્મ ? પૂર્વવત્. એ પ્રમાણે કૃષ્ણલેશ્યી, નીલલેશ્યી, કાપોતલેશ્યીને જાણવા. એ પ્રમાણે કૃષ્ણપાક્ષિક, શુક્લપાક્ષિકને. સમ્યગ્દૃષ્ટિ, મિથ્યાદૃષ્ટિ, મિશ્રદૃષ્ટિને. જ્ઞાની, આભિનિબોધિક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Gujarati | 979 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? एवं जहेव पावकम्मस्स वत्तव्वया तहेव नाणावरणिज्जस्स वि भाणियव्वा, नवरं–जीवपदे मनुस्सपदे य सकसाइम्मि जाव लोभकसाइम्मि य पढम-बितिया भंगा, अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिया। एवं दरिसणावरणिज्जेणं वि दंडगो भाणियव्वो निरवसेसो
जीवे णं भंते! वेयणिज्जं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। सलेस्से वि एवं चेव ततियविहूणा भंगा। कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढम-बितिया भंगा। सुक्कलेस्से ततियविहूणा भंगा। अलेस्से चरिमो भंगो। कण्हपक्खिए Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૭૮ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Gujarati | 980 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! आउयं कम्मं किं बंधी बंधइ–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी चउभंगो। सलेस्से जाव सुक्कलेस्से चत्तारि भंगा। अलेस्से चरिमो भंगो।
कण्हपक्खिए णं–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ। सुक्कपक्खिए सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी चत्तारि भंगा।
सम्मामिच्छादिट्ठी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। नाणी जाव ओहिनाणी चत्तारि भंगा।
मनपज्जवनाणी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। केवलनाणे चरिमो भंगो। एवं Translated Sutra: (૧) ભગવન્ ! જીવ આયુકર્મ બાંધ્યુ, બાંધે છે ? પ્રશ્ન. ગૌતમ! કેટલાકે બાંધ્યુ૦ ચાર ભંગ. સલેશ્યી યાવત્ શુક્લલેશ્યીને ચાર ભંગ, અલેશ્યીને છેલ્લો ભંગ. કૃષ્ણપાક્ષિક વિશે પ્રશ્ન ? ગૌતમ! કેટલાકે બાંધ્યુ, બાંધે છે, બાંધશે. કેટલાકે બાંધ્યુ છે, બાંધતો નથી, બાંધશે. શુક્લપાક્ષિક, સમ્યગ્દૃષ્ટિ, મિથ્યાદૃષ્ટિને ચારે ભંગો છે. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Gujarati | 981 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा तहेव।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी, पढम-बितिया भंगा।
सलेस्से णं भंते! अनंतरोववन्नए नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! पढम-बितिया भंगा। एवं खलु सव्वत्थ पढम-बितिया भंगा, नवरं–सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छि-ज्जइ। एवं जाव थणियकुमाराणं।
बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाणं वइजोगो न भण्णइ। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पि सम्मामिच्छत्तं ओहिनाणं, विभंगनाणं, मणजोगो, वइजोगो– एयाणि पंच न भण्णंति। मनुस्साण अलेस्स-सम्मामिच्छत्त-मनपज्जवनाण-केवलनाण विभंगनाण-नोसण्णोवउत्त-अवेदग-अकसाय-मणजोग-वइजोग-अजोगि–एयाणि एक्कारस Translated Sutra: ભગવન્ ! અનંતરોપપન્નક નૈરયિકે પાપકર્મ બાંધ્યુ૦ ? તે પ્રમાણે જ ગૌતમ ! કોઈક બાંધે૦ પહેલો – બીજો ભંગ. ભગવન્ ! સલેશ્યી અનંતરોપપન્નક નૈરયિક પાપકર્મ બાંધે૦ પ્રશ્ન ? ગૌતમ! પહેલો, બીજો ભંગ. એ રીતે સર્વત્ર પહેલો – બીજો ભંગ. વિશેષ એ – સમ્યક્ત્વ મિથ્યાત્વ, મનોયોગ, વચનયોગ ન પૂછવો. એ રીતે સ્તનિતકુમાર પર્યન્ત કહેવું. બેઇન્દ્રિય | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-१ आहार | Gujarati | 333 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? हंता अत्थि।
कहन्नं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति?
गोयमा! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं, बंधनछेदणयाए, निरिंधणयाए, पुव्वप्पओगेणं अकम्मस्स गती पण्णायति
कहन्नं भंते! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पण्णायति?
से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिड्डं निरूवहयं आनुपुव्वीए परिकम्मेमाणे-परिकम्मेमाणे दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे दलयति, भूतिं-भूतिं सुक्कं समाणं अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा से नूनं गोयमा! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं Translated Sutra: ભગવન્ ! શું કર્મરહિત જીવની ગતિ થાય ? હા, ગૌતમ !થાય. ભગવન્ ! અકર્મની ગતિ કઈ રીતે થાય ? ગૌતમ ! નિસ્સંગતા – નિરાગતા – ગતિ પરિણામ – બંધન છેદનતા – નિરિંધનતા – પૂર્વ પ્રયોગથી અકર્મની ગતિ કહી છે. ભગવન્ ! નિસ્સંગતા, નિરાગતા, ગતિપરિણામથી કર્મ રહિત જીવની ગતિ કઈ રીતે કહી ? જેમ કોઈ પુરુષ નિશ્છિદ્ર, નિરુપહત, સૂકા તુંબડાને ક્રમપૂર્વક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-७ अणगार | Gujarati | 364 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जे इमे भंते! असण्णिणो पाणा, तं जहा–पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया, छट्ठा य एगतिया तसा–एए णं अंधा, मूढा, तमपविट्ठा, तमपडल-मोहजाल-पडिच्छन्ना अकामनिकरणं वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया?
हंता गोयमा! जे इमे असण्णिणो पाणा जाव वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया।
अत्थि णं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति?
हंता अत्थि।
कहन्नं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति?
गोयमा! जे णं नो पभू विणा पदीवेणं अंधकारंसि रूवाइं पासित्तए, जे णं नो पभू पुरओ रूवाइं अनिज्झाइत्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू मग्गओ रूवाइं अनवयक्खित्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू पासओ रूवाइं अनवलोएत्ता णं पासित्तए, जे णं Translated Sutra: ભગવન્ ! જે આ અસંજ્ઞી પ્રાણી છે, જેમ કે – પૃથ્વીકાયિક યાવત્ વનસ્પતિકાયિક, છઠ્ઠા કોઈ ત્રસ જીવ, જે અંધ છે, મૂઢ છે – તમપ્રવિષ્ટ છે – તમઃપટલ અને મોહજાલથી આચ્છાદિત છે, તેઓ અકામનિકરણ(અજાણપણે કે અનિચ્છાએ) વેદના વેદે છે, એવું કહી શકાય ? હા, ગૌતમ ! એવું કહી શકાય. ભગવન્ ! શું તે સમર્થ હોવા છતાં અકામનિકરણ વેદના વેદે છે ? હા, ગૌતમ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-९ असंवृत्त | Gujarati | 374 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कम्हा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रन्नो साहेज्जं दलइत्था?
गोयमा! सक्के देविंदे देवराया पुव्वसंगतिए, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया परियायसंगतिए। एवं खलु गोयमा! सक्के देविंदे देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रन्नो साहेज्जं दलइत्था। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૩ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-९ असंवृत्त | Gujarati | 375 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૩ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-९ असंवृत्त | Gujarati | 376 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वरुणे णं भंते! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने?
गोयमा! सोहम्मे कप्पे, अरुणाभे विमाने देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता तत्थ णं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता।
से णं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति।
वरुणस्स णं भंते! नागनत्तुयस्स पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने?
गोयमा! सुकुले Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૩ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-१ पुदगल | Gujarati | 387 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते दव्वा! किं पयोगपरिणया? मीसापरिणया? वीससापरिणया?
गोयमा! १. पयोगपरिणया वा २. मीसापरिणया वा ३. वीससापरिणया वा ४. अहवेगे पयोग-परिणए, एगे मीसापरिणए ५. अहवेगे पयोगपरिणए, एगे वीससापरिणए ६. अहवेगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए।
जइ पयोगपरिणया किं मनपयोगपरिणया? वइपयोगपरिणया? कायपयोगपरिणया?
गोयमा! १. मनपयोगपरिणया वा २. वइपयोगपरिणया वा ३. कायपयोगपरिणया वा ४. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे वइपयोगपरिणए ५. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए ६. अहवेगे वइपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए।
जइ मनपयोगपरिणया किं सच्चमनपयोगपरिणया? असच्चमनपयोगपरिणया? सच्चमोसमनपयोगपरिणया? असच्चमोसमनपयोगपरिणया?
गोयमा! Translated Sutra: ભગવન્ ! બે દ્રવ્યો(અનંત પ્રદેશી બે સ્કંધો) શું પ્રયોગ પરિણત હોય, મિશ્રપરિણત હોય કે વિસ્રસા પરિણત હોય ?ગૌતમ ! તે બંને દ્રવ્યો – ૧. પ્રયોગ પરિણત હોય કે ૨. મિશ્રપરિણત કે ૩. વીસ્રસા પરિણત કે ૪. એક પ્રયોગ પરિણત, એક મિશ્ર પરિણત કે ૫. એક પ્રયોગ પરિણત, એક વિસ્રસા પરિણત કે ૬. એક મિશ્ર પરિણત, એક વીસ્રસા પરિણત હોય. ભગવન્ !જે બે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-२ आशिविष | Gujarati | 391 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे।
से किं तं आभिनिबोहियनाणे?
आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे।
अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे।
से किं तं मइअन्नाणे?
मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा।
से किं तं ओग्गहे?
ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं Translated Sutra: ભગવન્ ! જ્ઞાન કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! પાંચ ભેદે – આભિનિબોધિક જ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન, મનઃપર્યવજ્ઞાન, કેવળ જ્ઞાન. ભગવન્ ! તે આભિનિબોધિક જ્ઞાન શું છે ? તે ચાર ભેદે છે – અવગ્રહ, ઈહા, અપાય, ધારણા. એ રીતે જેમ રાયપ્પસેણઈયમાં જ્ઞાનના ભેદો કહ્યા છે, તેમ અહીં પણ કહેવા. તે કેવલજ્ઞાન સુધી કથન કરવું. ભગવન્ ! અજ્ઞાન કેટલા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-२ आशिविष | Gujarati | 392 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] निरयगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी?
गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि। तिन्नि नाणाइं नियमा, तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए।
तिरियगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी?
गोयमा! दो नाणा, दो अन्नाणा नियमा।
मनुस्सगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी?
गोयमा! तिन्नि नाणाइं भयणाए, दो अन्नाणाइं नियमा। देवगतिया जहा निरयगतिया।
सिद्धगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी?
जहा सिद्धा।
सइंदिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी?
गोयमा! चत्तारि नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं–भयणाए।
एगिंदिया णं भंते! जीवा किं नाणी?
जहा पुढविकाइया। बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिया णं दो नाणा, दो अन्नाणा नियमा। पंचिंदिया जहा सइंदिया।
अनिंदिया Translated Sutra: ભગવન્ ! નિરયગતિક જીવો જ્ઞાની કે અજ્ઞાની ? ગૌતમ ! તે જ્ઞાની પણ છે અને અજ્ઞાની પણ છે. જે જ્ઞાની છે તે નિયમા ત્રણ જ્ઞાનવાળા છે. જે અજ્ઞાની છે, તેને ત્રણ અજ્ઞાન વિકલ્પે હોય છે. ભગવન્ ! તિર્યંચગતિક જીવો જ્ઞાની છે કે અજ્ઞાની ? ગૌતમ ! બે જ્ઞાન કે બે અજ્ઞાન નિયમા હોય છે. ભગવન્ ! મનુષ્યગતિક જીવો જ્ઞાની કે અજ્ઞાની? ગૌતમ ! ત્રણ |