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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 133 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे गिद्धे कामभोगेसु एगे कूडाय गच्छई । न मे दिट्ठे परे लोए चक्खुदिट्ठा इमा रई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १३२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 158 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तुलिया विसेसमादाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ॥

Translated Sutra: बालमरण और पंडितमरण की परस्पर तुलना करके मेधावी साधक विशिष्ट सकाम मरण को स्वीकार करे, और मरण काल में दया धर्म एवं क्षमा से पवित्र तथाभूत आत्मा से प्रसन्न रहे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 174 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहिया उड्ढमादाय नावकंखे कयाइ वि । पुव्वकम्मखयट्ठाए इमं देहं समुद्धरे ॥

Translated Sutra: मुक्ति का लक्ष्य रखनेवाला साधक कभी भी बाह्य विषयों की आकांक्षा न करे। पूर्व कर्मों के क्षय के लिए ही इस शरीर को धारण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 176 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सन्निहिं च न कुव्वेज्जा लेवमायाए संजए । पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खो परिव्वए ॥

Translated Sutra: साधु लेशमात्र भी संग्रह न करे, पक्षी की तरह संग्रह से निरपेक्ष रहता हुआ पात्र लेकर भिक्षा के लिए विचरण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 226 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा गंडवच्छासुऽणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेल्लंति जहा व दासेहिं ॥

Translated Sutra: जिनके हृदय में कपट है अथवा जो वक्ष में फोड़े के रूप स्तनोंवाली हैं, जो अनेक कामनाओंवाली हैं, जो पुरुष को प्रलोभन मैं फँसाकर उसे दास की भाँति नचाती हैं, ऐसी राक्षसी – स्वरूप साधनाविद्या तक स्त्रियों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। स्त्रियों को त्यागनेवाला अनगार उनमें आसक्त न हो। भिक्षु – धर्म को पेशल जानकर उसमें
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 383 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाइं तीसे वयणाइ सोच्चा पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाइं । इसिस्स वेयावडियट्ठयाए जक्खा कुमारे विनिवाडयंति ॥

Translated Sutra: उस के इन सुभाषित वचनों को सुनकर ऋषि की सेवा के लिए यक्ष कुमारों को रोकने लगे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 395 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहियं गंधोदयपुप्फवासं दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा । पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहिं आगासे अहो दाणं च घुट्ठं ॥

Translated Sutra: देवों ने वहाँ सुगन्धित जल, पुष्प एवं दिव्य धन की वर्षा को और दुन्दुभियाँ बजाईं, आकाश में ‘अहो दानम्‌’ का घोष किया। प्रत्यक्ष में तप की ही विशेषता – महिमा देखी जा रही है, जाति की नहीं। जिसकी ऐसी महान्‌ चमत्कारी ऋद्धि है, वह हरिकेश मुनि – चाण्डाल पुत्र है। सूत्र – ३९५, ३९६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 398 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कुसं च जूवं तणकट्ठमग्गिं सायं च पायं उदगं फुसंता । पाणाइ भूयाइ विहेडयंता भुज्जो वि मंदा! पगरेह पावं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३९७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 416 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववेए ॥

Translated Sutra: मुनि – मनुष्यों के द्वारा समाचरित सब सत्कर्म सफल होते हैं। किए हुए कर्मों के फल को भोगे बिना मुक्ति नहीं है। मेरी आत्मा भी उत्तम अर्थ और कामों के द्वारा पुण्यफल से युक्त रही है। सम्भूत ! जैसे तुम अपने आपको भाग्यवान्‌, महान्‌ ऋद्धि से संपन्न और पुण्यफल से युक्त समझते हो, वैसे चित्र को भी समझो। राजन्‌ ! उसके पास
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 419 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्चोयए महु कक्के य बंभे पवेइया आवसहा य रम्मा । इमं गिहं चित्तधनप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥

Translated Sutra: चक्रवर्ती – उच्चोदय, मधु, कर्क, मध्य और ब्रह्मा – ये मुख्य प्रासाद तथा और भी अनेक रमणीय प्रासाद हैं। पांचाल देश के अनेक विशिष्ट पदार्थों से युक्त तथा प्रचुर एवं विविध धन से परिपूर्ण इन गृहों को स्वीकार करो। तुम नाट्य, गीत और वाद्यों के साथ स्त्रियों से घिरे हुए इन भोगों को भोगो। मुझे यही प्रिय है। प्रव्रज्या
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 431 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से चिईगयं डहिय उ पावगेणं । भज्जा य पुत्ता वि य नायओ य दायारमन्नं अनुसंकमंति ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४२७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१७ पापश्रमण

Hindi 554 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थंतम्मि य सूरम्मि आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥

Translated Sutra: जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक बार – बार खाता रहता है, समझाने पर उलटा पड़ता है – वह पापश्रमण कहलाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 570 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अभओ पत्थिवा! तुब्भं अभयदाया भवाहि य । अनिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसि? ॥

Translated Sutra: पार्थिव ! तुझे अभय है। पर, तू भी अभयदाता बन। इस अनित्य जीवलोक में तू क्यों हिंसा में संलग्न है ? सब कुछ छोड़कर जब तुझे यहाँ से अवश्य लाचार होकर चले जाना है, तो इस अनित्य जीवलोक में तू क्यों राज्य में आसक्त हो रहा है ? राजन्‌ ! तू जिसमें मोहमुग्ध है, वह जीवन और सौन्दर्य बिजली की चमक की तरह चंचल है। तू अपने परलोक के हित
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 594 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सगरो वि सागरंतं भरहवासं नराहिवो । इस्सरियं केवलं हिच्चा दयाए परिनिव्वुडे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ५९३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 607 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोवीररायवसभो चेच्चा रज्जं मुनी चरे । उद्दायणो पव्वइओ पत्तो गइमनुत्तरं ॥

Translated Sutra: सौवीर राजाओं में वृषभ के समान महान्‌ उद्रायण राजा ने राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली, मुनि – धर्म का आचरण किया और अनुत्तर गति प्राप्त की। इसी प्रकार श्रेय और सत्य में पराक्रमशील काशीराज ने काम – भोगों का परित्याग कर कर्मरूपी महावन का नाश किया। अमरकीर्त्ति, महान्‌ यशस्वी विजय राजा ने गुण – समृद्ध राज्य को छोड़कर
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 610 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेवुग्गं तवं किच्चा अव्वक्खित्तेण चेयसा । महाबलो रायरिसी अद्दाय सिरसा सिरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ६०७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 611 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कहं धीरो अहेऊहिं उम्मत्तो व्व महिं चरे? । एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा ॥

Translated Sutra: इन भरत आदि शूर और दृढ पराक्रमी राजाओं ने जिनशासन में विशेषता देखकर ही उसे स्वीकार किया था। अतः अहेतुवादों से प्रेरित होकर अब कोई कैसे उन्मत्त की तरह पृथ्वी पर विचरण करे ?
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 731 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढमे वए महाराय! अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलो दाहो सव्वंगेसु य पत्थिवा ॥

Translated Sutra: महाराज ! युवावस्था में मेरी आँखों में अतुल वेदना उत्पन्न हुई। पार्थिव ! उससे मेरे सारे शरीर में अत्यन्त जलन होती थी। क्रुद्ध शत्रु जैसे शरीर के मर्मस्थानों में तीक्ष्ण शस्त्र घोंप दे और उससे जैसे वेदना हो, वैसे ही मेरी आँखों में भयंकर वेदना हो रही थी। जैसे इन्द्र के वज्रप्रहार से भयंकर वेदना होती है, वैसे ही
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 760 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न तं अरी कंठछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पा । से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छानुतावेण दयाविहूणो ॥

Translated Sutra: स्वयं की अपनी दुष्प्रवृत्ति जो अनर्थ करती है, वह गला काटने वाला शत्रु भी नहीं कर पाता है। उक्त तथ्य को संयमहीन मनुष्य मृत्यु के क्षणों में पश्चात्ताप करते हुए जान पाएगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 785 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेहिं भूएहिं दयानुकंपो खंतिक्खमे संजयबंभयारी । सावज्जजोगं परिवज्जयंतो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइंदिए ॥

Translated Sutra: इन्द्रियों का सम्यक्‌ संवरण करने वाला भिक्षु सब जीवों के प्रति करुणाशील रहे, क्षमा से दुर्वचनादि को सहे, संयत हो, ब्रह्मचारी हो। सदैव सावद्ययोग का परित्याग करता हुआ विचरे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 890 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥

Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है, गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। गौतम ! हृदय के भीतर उत्पन्न एक लता है। उसको विष – तुल्य फल लगते हैं। उसे तुमने कैसे उखाड़ा? सूत्र – ८९०, ८९१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 894 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भवतण्हा लया वुत्ता भीमा भीमफलोदया । तमुद्धरित्तु जहानायं विहरामि महामुनी! ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८९३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 997 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे य माहणे । समुदाय तयं तं तु जयघोसं महामुनिं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार संशय मिट जाने पर विजयघोष ब्राह्मण ने महामुनि जयघोष की वाणी को सम्यक्‌रूप से स्वीकार किया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1014 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विल्लंमि चउब्भाए आइच्चंमि समुट्ठिए । भंडयं पडिलेहित्ता वंदित्ता य तओ गुरु ॥

Translated Sutra: सूर्योदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में उपकरणों का प्रतिलेखन कर गुरु को वन्दना कर हाथ जोड़कर पूछें कि – अब मुझे क्या करना चाहिए ? भन्ते ! मैं चाहता हूँ, मुझे आप आज स्वाध्याय में नियुक्त करते हैं, अथवा वैयावृत्य मैं। वैयावृत्य में नियुक्त किए जाने पर ग्लानि से रहित होकर सेवा करे। अथवा सभी दुःखों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1027 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वल्लंमि चउब्भाए पडिलेहित्ताणं भंडय । गुरुं वंदित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ॥

Translated Sutra: दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में पात्रादि उपकरणों का प्रतिलेखन कर, गुरु को वन्दना कर, दुःख से मुक्त करने वाला स्वाध्याय करे। पौन पौरुषी बीत जाने पर गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण किए बिना ही भाजन का प्रतिलेखन करे। सूत्र – १०२७, १०२८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1039 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निग्गंथो धिइमंतो निग्गंथी वि न करेज्ज छहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं अनइक्कमणा य से होइ ॥

Translated Sutra: घृति – सम्पन्न साधु और साध्वी इन छह कारणों से भक्त – पान की गवेषणा न करे, जिससे संयम का अतिक्रमण न हो। रोग होने पर, उपसर्ग आने पर, ब्रह्मचर्य गुप्ति की सुरक्षा, प्राणियों की दया, तप और शरीरविच्छेद के लिए मुनि भक्त – पान की गवेषणा न करे। सूत्र – १०३९, १०४०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1040 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं सरीरवोच्छेयणट्ठाए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०३९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1125 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] काउस्सग्गेणं भंते! जीवे किं जणयइ? काउस्सग्गेणं तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ। विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहियए ओहरियभारो व्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहंसुहेणं विहरइ।

Translated Sutra: भन्ते ! कायोत्सर्ग से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कायोत्सर्ग से जीव अतीत और वर्तमान के प्रायश्चित्तयोग्य अतिचारों का विशोधन करता है। अपने भार को हटा देनेवाले भार – वाहक की तरह निर्वृतहृदय हो जाता है और प्रशस्त ध्यान में लीन होकर सुखपूर्वक विचरण करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1185 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पेज्जदोसमिच्छादंसणविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ? पेज्जदोसमिच्छादंसणविजएणं नाणदंसणचरित्ताराहणयाए अब्भुट्ठेइ। अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगंठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुव्विं अट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दंसणावरणिज्जं पंचविहं अंतरायं एए तिन्नि वि कम्मंसे जुगवं खवेइ। तओ पच्छा अनुत्तरं अनंतं कसिणं पडिपुण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभावगं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ। जाव सजोगी भवइ ताव य इरियावहियं कम्मं बंधइ सुहफरिसं दुसमयठिइयं। तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए वेइयं तइयसमए निज्जिण्णं तं बद्धं पुट्ठं उदीरियं

Translated Sutra: भन्ते ! राग, द्वेष और मिथ्यादर्शन के विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? राग, द्वेष और मिथ्या – दर्शन के विजय से जीव ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के लिए उद्यत होता है। आठ प्रकार की कर्म – ग्रन्थि को खोलने के लिए सर्व प्रथम मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों का क्रमशः क्षय करता है। अनन्तर ज्ञानावरणीय कर्म
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1220 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं तहेवासनदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा विनओ एस वियाहिओ ॥

Translated Sutra: खड़े होना, हाथ जोड़ना, आसन देना, गुरुजनों की भक्ति तथा भाव – पूर्वक शुश्रूषा करना, ‘विनय’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1453 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव भत्तपानेसु पयण पयावणेसु य । पाणभूयदयट्ठाए न पये न पयावए ॥

Translated Sutra: इसी प्रकार भक्त – पान पकाने और पकवाने में हिंसा होती है। अतः प्राण और भूत जीवों की दया के लिए न स्वयं पकाए न दूसरे से पकवाए। भक्त और पान के पकाने में जल, धान्य, पृथ्वी और काष्ठ के आश्रित जीवों का वध होता है – अतः भिक्षु न पकवाए। सूत्र – १४५३, १४५४
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 416 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववेए ॥

Translated Sutra: મનુષ્યો દ્વારા સમાચરિત બધા સત્કર્મો સફળ થાય છે. કરેલા કર્મોના ફળોને ભોગવ્યા વિના મુક્તિ નથી. મારો આત્મા પણ ઉત્તમાર્થ અને કામો દ્વારા પુન્યફળથી યુક્ત રહેલ છે. હે સંભૂત ! જેમ તું તને પોતાને ભાગ્યવાન, મહાન, ઋદ્ધિસંપન્ન અને પુન્યફળ વાળો સમજે છે, તેમજ ચિત્રને પણ સમજ. હે રાજન્‌ ! તેની પાસે પ્રચૂર ઋદ્ધિ અને દ્યુતિ
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 419 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्चोयए महु कक्के य बंभे पवेइया आवसहा य रम्मा । इमं गिहं चित्तधनप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥

Translated Sutra: ઉચ્ચોદય, મધુ, કર્ક, મધ્ય અને બ્રહ્મા આ મુખ્ય પ્રાસાદ તથા બીજા પણ અનેક રમણીય પ્રાસાદ છે. પાંચાલ દેશના અનેક વિશિષ્ટ પદાર્થોથી યુક્ત તથા પ્રચૂર અને વિવિધ ધનથી પરિપૂર્ણ આ ગૃહો છે. તેનો તમે સ્વીકાર કરો. હે ભિક્ષુ ! તમે નાટ્ય, ગીત અને વાદ્યોની સાથે સ્ત્રીઓ વડે ઘેરાયેલા આ ભોગોને ભોગવો. મને આ જ પ્રિય છે. પ્રવ્રજ્યા નિશ્ચયથી
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 66 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवमादाय मेहावी पंकभूया उ इत्थिओ । नो ताहिं विणिहन्नेजा चरेज्जत्तगवेसए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૫
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 89 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से नूनं मए पुव्वं कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥

Translated Sutra: નિશ્ચે મેં પૂર્વે અજ્ઞાનરૂપ ફળ દેનારા અપકર્મ કરેલ છે, જેથી હું કોઈના દ્વારા કોઈ વિષયમાં પૂછે ત્યારે કંઈ પણ ઉત્તર આપવાનું જાણતો નથી. અજ્ઞાનરૂપ ફળ દેનારા પૂર્વકૃત્‌ કર્મ પરિપક્વ થવાથી ઉદયમાં આવે. એ પ્રમાણે કર્મના વિપાકને જાણીને મુનિ પોતાને આશ્વસ્ત કરે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૮૯, ૯૦
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 92 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवोवहाणमादाय पडिमं पडिवज्जओ । एवं पि विहरओ मे छउमं न नियट्टई ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૧
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Gujarati 118 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेणे जहा संधिमुहे गहीए सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । एवं पया पेच्च इहं च लोए कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ॥

Translated Sutra: જેમ સંધિમુખમાં પકડાયેલો પાપકારી ચોર પોતાના કર્મોથી છેદાય છે, તેમજ જીવ પોતાના કરેલા કર્મોના કારણે આ લોક કે પરલોકમાં છેદાય છે. કરેલા કર્મો ભોગવ્યા વિના છૂટકો નથી.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Gujarati 119 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसारमावन्न परस्स अट्ठा साहारणं जं च करेइ कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उवेंति ॥

Translated Sutra: સંસારી જીવ પોતાના અને બીજાના માટે સાધારણ જે કર્મો કરે છે. પરંતુ તે કર્મના ફળના ઉદયના સમયે કોઈ પણ બંધુ બાંધવતા દેખાડતો નથી. તે પાપમાં ભાગીદાર થતો નથી.)
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Gujarati 133 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे गिद्धे कामभोगेसु एगे कूडाय गच्छई । न मे दिट्ठे परे लोए चक्खुदिट्ठा इमा रई ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૨
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Gujarati 158 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तुलिया विसेसमादाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ॥

Translated Sutra: આત્મગુણોની તુલના કરીને મેધાવી સાધક વિશિષ્ટ સકામ મરણ સ્વીકારે, મરણકાળે દયાધર્મ અને ક્ષમાથી તેવો આત્મા પ્રસન્ન રહે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Gujarati 174 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहिया उड्ढमादाय नावकंखे कयाइ वि । पुव्वकम्मखयट्ठाए इमं देहं समुद्धरे ॥

Translated Sutra: ઉર્ધ્વ લક્ષ્ય રાખનારો સાધક ક્યારેય પણ બાહ્ય વિષયોની આકાંક્ષા ન કરે. પૂર્વકર્મોના ક્ષયને માટે જ આ શરીરને ધારણ કરે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Gujarati 176 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सन्निहिं च न कुव्वेज्जा लेवमायाए संजए । पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खो परिव्वए ॥

Translated Sutra: સાધુ લેશમાત્ર પણ સંગ્રહ ન કરે, પંખીની માફક સંગ્રહથી નિરપેક્ષ રહેતો એવો પાત્ર લઈને ભિક્ષાને માટે વિચરણ કરે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Gujarati 257 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: દેવેન્દ્રના આ અર્થને સાંભળીને હેતુ અને કારણથી પ્રેરિત નમિરાજર્ષિએ દેવેન્દ્રને આ પ્રકારે કહ્યું – આ લોકમાં મનુષ્યો દ્વારા અનેકવાર મિથ્યાદંડનો પ્રયોગ કરે છે. અપરાધ ન કરનારા પકડાય છે અને અપરાધી છૂટી જાય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૫૭, ૨૫૮
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Gujarati 383 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाइं तीसे वयणाइ सोच्चा पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाइं । इसिस्स वेयावडियट्ठयाए जक्खा कुमारे विनिवाडयंति ॥

Translated Sutra: ભદ્રાના આ વચનો – સુભાષિતોને સાંભળીને ઋષિની વૈયાવચ્ચ માટે રહેલો યક્ષ કુમારોને રોકવા લાગ્યો. આકાશમાં સ્થિત ભયંકર રૂપવાળા, અસુર ભાવને પામેલો, ક્રુદ્ધ યક્ષ, તેમને પ્રતિપાદિત કરવા લાગ્યો. કુમારોને ક્ષત – વિક્ષત અને લોહીની ઊલટી કરતા જોઈને ભદ્રાએ ફરીથી આ પ્રમાણે કહ્યું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૩૮૩, ૩૮૪
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Gujarati 395 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहियं गंधोदयपुप्फवासं दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा । पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहिं आगासे अहो दाणं च घुट्ठं ॥

Translated Sutra: દેવોએ ત્યાં સુગંધિત જળ, પુષ્પ અને દિવ્ય ધનની વૃષ્ટિ કરી, દુંદુભિ નાદ કર્યો, આકાશમાં ‘અહોદાનમ્‌’ એવો ઘોષ કર્યો.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Gujarati 398 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कुसं च जूवं तणकट्ठमग्गिं सायं च पायं उदगं फुसंता । पाणाइ भूयाइ विहेडयंता भुज्जो वि मंदा! पगरेह पावं ॥

Translated Sutra: કુશ, યૂપ, તૃણ, કાષ્ઠ અને અગ્નિનો પ્રયોગ તથા પ્રાતઃ અને સંધ્યાકાળે જળનો સ્પર્શ – આ પ્રમાણે તમે મંદબુદ્ધિ લોકો પ્રાણીઓ અને ભૂતોનો વિનાશ કરતા એવા પાપકર્મી રહ્યા છો.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 431 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से चिईगयं डहिय उ पावगेणं । भज्जा य पुत्ता वि य नायओ य दायारमन्नं अनुसंकमंति ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૩૦
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 438 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ ता सि भोगे चइउं असत्तो अज्जाइं कम्माइं करेहि रायं! । धम्मे ठिओ सव्वपयानुकंपी तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ॥

Translated Sutra: હે રાજન્‌ ! જો તું કામભોગોને છોડવામાં અસમર્થ છે, આર્ય કર્મ જ કર. ધર્મમાં સ્થિત થઈને બધા જીવો પ્રતિ દયા કરનારો થા. જેનાથી તું ભાવિમાં વૈક્રિય શરીરધારી દેવ બની શકે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१७ पापश्रमण

Gujarati 553 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुद्धदहीविगईओ आहारेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे पावसमणि त्ति वुच्चई ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૫૩. જે દૂધ, દહીં આદિ વિગઈઓ વારંવાર ખાય છે, જે તપ અને ક્રિયામાં રૂચિ રાખતા નથી, તે પાપશ્રમણ કહેવાય છે. સૂત્ર– ૫૫૪. જે સૂર્યોદયથી સૂર્યાસ્ત સુધી વારંવાર ખાતો રહે છે, જે સમજાવવાથી ઊલટો વર્તે છે, તે પાપશ્રમણ કહેવાય છે. સૂત્ર– ૫૫૫. જે આચાર્યનો ત્યાગ કરીને અન્ય પાખંડને સ્વીકારે છે. જે ગાણંગાણિક છે. તે નિંદિત
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Gujarati 570 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अभओ पत्थिवा! तुब्भं अभयदाया भवाहि य । अनिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसि? ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૭૦. સાધુએ કહ્યું – હે રાજા ! તને અભય છે. તું પણ અભયદાતા બન. આ અનિત્ય જીવલોકમાં તું કેમ હિંસામાં સંલગ્ન છે. સૂત્ર– ૫૭૧. બધું છોડીને જ્યારે તારે અવશ્ય લાચાર થઈને જવાનું છે, તો આ અનિત્ય જીવલોકમાં તું કેમ રાજ્યમાં આસક્ત થાય છે? સૂત્ર– ૫૭૨. રાજન્‌! તું જેમાં મોહમુગ્ધ છે. તે જીવન અને રૂપ વીજળીની ચમક માફક ચંચળ છે.
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