Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (18391)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-२ थी १० लसी, वंश, इक्षु, सेडिय, अम्ररुह, तुलसी Hindi 809 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खंधे वि उद्देसओ नेयव्वो।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-२ थी १० लसी, वंश, इक्षु, सेडिय, अम्ररुह, तुलसी Hindi 810 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं तयाए वि उद्देसो भाणियव्वो।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-२ थी १० लसी, वंश, इक्षु, सेडिय, अम्ररुह, तुलसी Hindi 811 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] साले वि उद्देसो भाणियव्वो।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-२ थी १० लसी, वंश, इक्षु, सेडिय, अम्ररुह, तुलसी Hindi 812 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवाले वि उद्देसो भाणियव्वो।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-२ थी १० लसी, वंश, इक्षु, सेडिय, अम्ररुह, तुलसी Hindi 813 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पत्ते वि उद्देसो भाणियव्वो। एए सत्त वि उद्देसगा अपरिसेसं जहा मूले तहा नेयव्वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-२ थी १० लसी, वंश, इक्षु, सेडिय, अम्ररुह, तुलसी Hindi 814 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: एवं पुप्फे वि उद्देसओ, नवरं–देवा उववज्जंति जहा उप्पलुद्देसे। चत्तारि लेस्साओ, असीति भंगा। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं अंगुलपुहत्तं, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। जहा पुप्फे एवं फले वि उद्देसओ अपरिसेसो भाणियव्वो। एवं बीए वि उद्देसओ। एए दस उद्देसगा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०८
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 815 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-निप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सतीण-पलिमंथगाणं–एएसिं णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं मूलादीय दस उद्देसगा भाणियव्वा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कलाय, मसूर, तिल, मूँग, उड़द, निष्पाव, कुलथ, आलिसंदक, सटिन और पलिमंथक; इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! शालि आदि के अनुसार यहाँ भी मूल आदि दस उद्देशक कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 816 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अयसि-कुसुंभ-कोद्दव-कंगु-रालग-वरा-कोदूसा-सण-सरिसव-मूलग-बीयाणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव भाणियव्वा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अलसी, कुसुम्ब, कोद्रव, कांग, राल, तूअर, कोदूसा, सण, सर्षप तथा मूलक बीज, इन वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) ‘शालि’ वर्ग के समान कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 817 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! वंस-वेणु-कणक-कक्कावंस-चारुवंस-दंडा-कुडा-विमा-कंडा-वेलुया-कल्लाणाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा जहेव सालीणं, नवरं–देवी सव्वत्थ वि न उववज्जति। तिन्नि लेसाओ। सव्वत्थ वि छव्वीसं भंगा, सेसं तं चेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बाँस, वेणु, कनक, कर्कावंश, चारुवंश, उड़ा, कुड़ा, विमा, कण्डा, वेणुका और कल्याणी, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) शालि – वर्ग के समान मूल आदि दश उद्देशक कहना चाहिए। विशेष यह है कि देव यहाँ किसी स्थान में उत्पन्न नहीं होते। सर्वत्र तीन लेश्याएं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 818 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! उक्खु-उक्खुवाडिय-वीरण-इक्कड-भमास-सुंब-सर-वेत्त-तिमिर-सतपोरग-नलाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं जहेव वंसवग्गो तहेव एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा, नवरं–खंधुद्देसे देवो उववज्जति। चत्तारि लेस्साओ, सेसं तं चेव।

Translated Sutra:
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 819 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सेडिय-भंतिय-कोंतिय-दब्भ-कुस-पव्वग-पोदइल अज्जुण-आसाढग-रोहियंस-सुय-क्खीर-भुस-एरंड-कुरु कुंद-करकर सुंठ विभंगु महुरतण थुरग-सिप्पिय-सुंकलितणाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सेडिय, भंतिय, कौन्तिय, दर्भ – कुश, पर्वक, पोदेइल, अर्जुन, आषाढ़क, रोहितक, मुतअ, खीर, भुस, एरण्ड, कुरुकुन्द, करकर, सूँठ, विभंगु, मधुरयण, थुरग, शिल्पिक और सुंकलितृण, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चतुर्थ वंशवर्ग के समान कहना चाहिए। शतक – २१ – वर्ग –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 820 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अब्भरुह-बीयाण-हरितग-तंदुलेज्जग-तण-वत्थुल-पोरग-मज्जारपाइ-विल्लि-पालक्क-दगपिप्पलिय-दव्वि-सोत्थिक-सायमंडुक्कि-मूलग-सरिसव-अंबिलसाग-जियंतगाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अभ्ररुह, वायाण, हरीतक, तंदुलेय्यक, तृण, वत्थुल, बोरक, मार्जाणक, पाई, बिल्ली, पालक, दगपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक, शाकमण्डुकी, मूलक, सर्षप, अम्बिलशाक, जीयन्तक, इन सब वनस्पतियों के मूल रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चतुर्थ वंशवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 821 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कुलसी-कण्ह-दराल-फणेज्जा-अज्जा-भूयणा-चोरा-जीरा-दमणा-मरुया-इंदीवर-सय-पुप्फाणं –एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहा वंसाणं। एवं एएसु अट्ठसु वग्गेसु असीतिं उद्देसगा भवति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तुलसी, कृष्णदराल, फणेज्जा, अज्जा, भूयणा, चोरा, जीरा, दमणा, मरुया, इन्दीवर और शतपुष्प इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) चौथे वंशवर्ग के समान यहाँ भी मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए। इस प्रकार आठ वर्गों में अस्सी उद्देशक होते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

Hindi 822 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १-२. तालेगट्ठिय ३. बहुबीयगा य ४. गुच्छा य ५. गुम्म ६. वल्ली य । छद्दस वग्गा एए, सट्ठिं पुण होंति उद्देसा ॥

Translated Sutra: इस शतक में छह वर्ग हैं – ताल, एकास्थिक, बहुबीजक, गुच्छ, गुल्म और वल्लि। प्रत्येक वर्ग के १० – १० उद्देशक होने से, सब मिलाकर साठ उद्देशक हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-१

Hindi 823 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अह भंते! ताल-तमाल-तक्कलि-तेतलि-साल-सरला-सारकल्लाण-जावति-केयइ-कदलि-कंदलि-चम्मरुक्ख-भुयरुक्ख-हिंगुरुक्ख-लवंगरुक्ख-पूयफलि-खज्जूरि-नालिएरीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, ते णं भंते! जीव कओहिंतो उववज्जंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा जहेव सालीणं, नवरं–इमं नाणत्तं–मूले कंदे खंधे तयाए साले य एएसु पंचसु उद्देसगेसु देवो न उववज्जति। तिन्नि लेसाओ। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दसवासस-हस्साइं। उवरिल्लेसु पंचसु उद्देसएसु देवो उववज्जति। चत्तारि लेसाओ। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं। ओगाहणा मूले

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! ताल, तमाल, तक्कली, तेतली, शाल, सरल, सारगल्ल, यावत्‌ – केतकी, कदली, चर्मवृक्ष, गुन्दवृक्ष, हिंगवृक्ष, लवंगवृक्ष, पूगफल, खजूर और नारियल, इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) शालिवर्ग के दश उद्देशक के समान यहाँ भी समझना। विशेष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 824 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! निंबंब जंबु-कोसंब-साल-अंकोल्ल-पीलु-सेलु-सल्लइ-मोयइ-मालुय-बउल-पलास-करंज-पुत्तंजीवग-अरिट्ठ-विहेलग-हरित्तग-भल्लाय-उंबभरिय-खीरणि-धायइ-पियाल-पूइयणिंबारग सेण्हय पासिय सीसव असन पुण्णाग नागरुक्ख-सीवण्णि-असोगाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा निरवसेसं जहा तालवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नीम, आम्र, जम्बू, कोशम्ब, ताल, अंकोल्ल, पीलु, सेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज, पुत्रंजीवक, अरिष्ट, बहेड़ा, हरितक, भिल्लामा, उम्बरिय, क्षीरणी, धातकी, प्रियाल, पूतिक, निवाग, सेण्हक, पासिय, शीशम, अतसी, पुन्नाग, नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक, इन सब वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 825 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अत्थिय-तिंदुय-बोर-कविट्ठ–अंबाडग-माउलिंग-बिल्ल-आमलग-फणस-दाडिम-आसोत्थ-उंबर- वड- नग्गोह- नंदिरुक्ख-पिप्पलि- सत्तरि- पिलक्खुरुक्ख- काउंबरिय- कुत्थुंभरिय- देवदालि-तिलग- लउय- छत्तोह- सिरीस- सत्तिवण्ण- दहिवण्ण- लोद्ध- धव- चंदन- अज्जुण- नीम- कुडग-कलंबाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा तालवग्गसरिसा नेयव्वा जाव बीयं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अगस्तिक, तिन्दुक, बोर, कवीठ, अम्बाडक, बिजौरा, बिल्व, आमलक, फणस, दाड़िम, अश्वत्थ, उंबर, बड़, न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली, सतर, प्लक्षवृक्ष, काकोदुम्बरी, कुस्तुम्भरी, देवदालि, तिलक, लकुच, छत्रोघ, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्रक, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुटज और कदम्ब, इन सब वृक्षों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 826 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! वाइंगणि-अल्लइ-पोंडइ, एवं जहा पन्नवणाए गाहानुसारेणं नेयव्वं जाव गंज-पाडला-दासि-अंकोल्लाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा नेयव्वा जाव बीयं ति निरवसेसं जहा वंसवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बैंगन, अल्लइ, बोंडइ इत्यादि वृक्षों के नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार जानना चाहिए, यावत्‌ गंजपाटला, दासि अंकोल्ल तक, इन सभी वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ मूलादि दस उद्देशक वंशवर्ग के समान जानने चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 827 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सेरियक-नवमालिय-कोरेंटग-बंधुजीवग-मणोज्जा, जहा पन्नवणाए पढमपदे गाहाणु-सारेणं जाव नवनीतिय-कुंद-महाजाईणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा सालीणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सिरियक, नवमालिक, कोरंटक, बन्धुजीवक, मणोज्ज, इत्यादि सब नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार नलिनी, कुन्द और महाजाति (तक) इन सब पौधों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ भी मूलादि समग्र दश उद्देशक शालिवर्ग के समान (जानने चाहिए)।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 828 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पूसफलि-कालिंगी-तुंबी-तउसी-एलावालुंकी, एवं पदाणि छिंदियव्वाणि पन्नवणा-गाहाणुसारेणं जहा तालवग्गे जाव दधिफोल्लइ-काकलि-मोकलि-अक्कबोंदीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा जहा तालवग्गो, नवरं–फलउद्देसे ओगाहणाए जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। ठिती सव्वत्थ जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं, सेसं तं चेव। एवं छसु वि वग्गेसु सट्ठिं उद्देसगा भवंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पूसफलिका, कालिंगी, तुम्बी, त्रपुषी, ऐला, वालुंकी, इत्यादि वल्लीवाचक नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार अलग कर लेने चाहिए, फिर तालवर्ग के समान, यावत्‌ दधिफोल्लइ, काकली, सोक्कली और अर्कबोन्दी, इन सब वल्लियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 830 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अह भंते! आलुय-मूलग-सिंगबेर-हलिद्दा-रुरु-कंडरिय-जारु-छीरबिरालि-किट्ठि-कुंदु-कण्हाकडभु-मधु-पुयलइ-महुसिंगि-निरुहा-सप्पसुगंधा-छिण्णरुह-बीयरुहाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा वंसवग्गसरिसा, नवरं–परिमाणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति। अवहारो–गोयमा! ते णं अनंता समये-समये अवहीरमाणा-अवहीरमाणा अनंताहिं ओसप्पिणीहिं उस्सप्पिणीहिं एवतिकालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। ठिती जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, सेसं तं चेव

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! आलू, मूला, अदरक, हल्दी, रुरु, कंडरिक, जीरु, क्षीरविराली, किट्ठि, कुन्दु, कृष्णकडसु, मधु, पयलइ, मधुशृंगी, निरुहा, सर्पसुगन्धा, छिन्नरुहा और बीजरुहा, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ वंशवर्ग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 831 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! लोही-णीहू-थीहू-थिभगा-अस्सकण्णी-सीहकण्णी-सिउंढी-मुसुंढीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा जहेव आलुवग्गो, नवरं–ओगाहणा तालवग्गसरिसा, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोही, नीहू, थीहू, थीभगा, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सींउंढी और मुसुंढी इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! आलुकवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक (कहने चाहिए)। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना तालवर्ग के समान है। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 832 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! आय-काय-कुहुण-कंदुरुक्क-उब्बेहलिया-सका-सज्जा-छत्ता-वंसाणिय-कुराणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा आलुवग्गो, नवरं–ओगाहणा तालवग्गसरिसा, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आय, काय, कुहणा, कुन्दुक्क, उव्वेहलिय, सफा, सज्झा, छत्ता, वंशानिका और कुरा; इन वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! आलूवर्ग के मूलादि समग्र दस उद्देशक कहने चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 833 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाढा-मियवालंकि-मधुररसा-रायवल्लि-पउमा-मोढरि-दंति-चंडीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्क-मंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा आलुयवग्गसरिसा, नवरं–ओगाहणा जहा वल्लीणं, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पाठा, मृगवालुंकी, मधुररसा, राजवल्ली, पद्मा, मोढरी, दन्ती और चण्डी, इन वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ? गौतम ! आलूवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना वल्लीवर्ग के समान समझनी चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’ शतक – २३ – वर्ग –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 834 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! मासपण्णी-मुग्गपण्णी- जीवग-सरिसव- करेणुय-काओलि- खीरकाकोलि-भंगि-णहि-किमिरासि-भद्दमुत्थ-णंगलइ-पयुय-किण्हा-पउल-हढ-हरेणुया-लोहीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं आलुयवग्गसरिसा। एवं एत्थ पंचसु वि वग्गेसु पन्नासं उद्देसगा भाणियव्वा। सव्वत्थ देवा न उववज्जंति। तिन्नि लेसाओ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! माषपर्णी, मुद्‌गपर्णी, जीवक, सरसव, करेणुका, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमुस्ता, लाँगली, पयोदकिण्णा, पयोदलता, हरेणुका और लोही, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) आलुकवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना। इस प्रकार इन पाँचों वर्गों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 837 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जीवपदे जीवपदे, जीवाणं दंडगम्मि उद्देसो । चउवीसतिमम्मि सए, चउव्वीसं होंति उद्देसा ॥

Translated Sutra: यह सब विषय चौबीस दण्डक में से प्रत्येक जीवपद में कहे जायेंगे। इस प्रकार चौबीसवें शतक में चौबीस दण्डक – सम्बन्धी चौबीस उद्देशक कहे जायेंगे।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 838 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए-हिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिंदिय, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति। जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 839 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति–पुच्छा। गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति, जहा असण्णी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्त-एहिंतो उववज्जंति। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि नैरयिक संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 840 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जंतगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। कालादेसं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवत्तियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं रयणप्पभपुढविगमसरिसा नव वि गमगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो शर्कराप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 841 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी – मनुष्यों में से या असंज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है। भगवन्‌ ! यदि वह संज्ञी – मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या संख्येय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 842 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? सो चेव रयणप्पभपुढविगमओ नेयव्वो, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं वासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भ-हियाइं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्य, जो शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो; वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले शर्कराप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव वहाँ एक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२ परिमाण Hindi 843 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असुरकुमारा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं जहेव नेरइयउद्देसए जाव– पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवत्तिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं रयणप्पभागमगसरिसा

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! असुरकुमार कहाँ से – किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा Hindi 844 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया तहा एतेसिं पि जाव असण्णित्ति। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते!

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? वे नैरयिकों से यावत्‌ उत्पन्न होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यंचयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। (भगवन्‌ !) यदि वे (नागकुमार)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा Hindi 845 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अवसेसा सुवण्णकुमारादी जाव थणियकुमारा एए अट्ठ वि उद्देसगा जहेव नागकुमारा तहेव निरवसेसा भाणियव्वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: सुवर्णकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक ये आठ उद्देशक भी नागकुमारों के समान कहने चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! वह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 846 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्सदेवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो एवं जहा वक्कंतीए उववाओ जाव– जइ बायरपुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं पज्जत्ताबादर जाव उवव-ज्जंति, अपज्जत्ताबादरपुढवि? गोयमा! पज्जत्ताबादरपुढवि, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जंति। पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों यावत्‌ देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि वे तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 847 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति। बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 848 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति। असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसंसेसा छ न भण्णंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय। जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय?

Translated Sutra: (भगवन्‌ !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 849 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं जहेव पुढविक्काइयउद्देसए जाव– पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए आउक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। एवं पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो भाणियव्वो, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तहेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अप्कायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिक – उद्देशक अनुसार कहना। यावत्‌ भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले अप्कायिक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की। इस प्रकार यह समग्र उद्देशक पृथ्वीकायिक के समान है। विशेष यह है कि इसकी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 850 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो उद्देसो भाणियव्वो, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। देवेहिंतो न उववज्जंति। सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तेजस्कायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिक – उद्देशक की तरह कहना। विशेष यह है कि इसकी स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना। तेजस्कायिक जीव देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 851 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं जहेव तेउक्काइय उद्देसओ तहेव, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वायुकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। तेजस्कायिक – उद्देशक के समान हैं। स्थिति और संवेध तेजस्कायिक से भिन्न समझना चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 852 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वणस्सइकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं पुढविक्काइयसरिसो उद्देसो, नवरं–जाहे वणस्सइकाइओ वणस्सइकाइएसु उववज्जंति ताहे पढम-बितिय-चउत्थ-पंचमेसु गमएसु परिमाणं अनुसमयं अविरहियं अनंता उववज्जंति। भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अनंताइं भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अनंतं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सेसा पंच गमा अट्ठभवग्गहणिया तहेव, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वनस्पतिकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। यह उद्देशक पृथ्वीकायिक – उद्देशक के समान है। विशेष यह है कि जब वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, तब पहले, दूसरे, चौथे और पाँचवें गमक में परिमाण यह है कि प्रतिसमय निरन्तर वे अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं। भव की अपेक्षा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि Hindi 853 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बेंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? जाव– पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए बेंदिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? सच्चेव पुढविकाइयस्स लद्धी जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जाइं भवग्गहणाइं–एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं तेसु चेव चउसु गमएसु संवेहो, सेसेसु पंचसु तहेव अट्ठ भवा। एवं जाव चउरिंदिएणं समं चउसु संखेज्जा भवा, पंचसु अट्ठ भवा। पंचिंदियतिरिक्खजोणियमनुस्सेसु समं तहेव अट्ठ भवा। देवेसु न उववज्जंति। ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं; इत्यादि, यावत्‌ – हे भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ पूर्वोक्त पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता के समान, यावत्‌ कालावेश से – जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट संख्यात भव। पृथ्वीकायिक के साथ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि Hindi 854 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेइंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं तेइंदियाणं जहेव बेइंदियाणं उद्देसो, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। तेउक्काइएसु समं ततियगमे उक्कोसेणं अट्ठुत्तराइं बेराइंदियसयाइं, बेइंदिएहिं समं ततियगमे उक्कोसेणं अडयालीसं संवच्छराइं छन्नउयराइंदियसतमब्भहियाइं, तेइंदिएहिं समं ततिय-गमे उक्कोसेणं बाणउयाइं तिन्नि राइंदियसयाइं। एवं सव्वत्थ जाणेज्जा जाव सण्णिमनुस्स त्ति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! त्रीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। द्वीन्द्रिय – उद्देशक के समान त्रीन्द्रियों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए। तेजस्कायिकों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट २०८ रात्रि – दिवस का और द्वीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि Hindi 855 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउरिंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? जहा तेइंदियाणं उद्देसओ तहेव चउरिंदियाणं वि, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चतुरिन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। त्रीन्द्रिय – उद्देशक चतुरिन्द्रिय जीवों के विषयमें समझना चाहिए। विशेष – स्थिति और संवेध अनुसार (भिन्न) जानना। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२० तिर्यंच पंचेन्द्रिय Hindi 856 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो, मनुस्सेहिंतो वि, देवेहिंतो वि उववज्जंति। जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति– किं रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति। रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठि-तीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से यावत्‌ देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२१ मनुष्य Hindi 857 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति। रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत्‌ देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत्‌ देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत्‌ – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२२ थी २४ देव Hindi 858 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतरा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख? एवं जहेव नागकुमारउद्देसए असण्णी तहेव निरवसेसं। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्ज-वासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए वाणमंतरेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमट्ठितीएसु। सेसं तं चेव जहा नागकुमारउद्देसए जाव कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यंच – योनिकों से ? (गौतम !) नागकुमार – उद्देशक अनुसार असंज्ञी तक कहना चाहिए। भगवन्‌ ! अंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ? गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२२ थी २४ देव Hindi 859 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जोइसिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? भेदो जाव सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिपंचिंदियतिरिक्ख। जइ सण्णि किं संखेज्ज? असंखेज्ज? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जोतिसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमवाससयसहस्स-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा, अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए, नवरं–ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव, नवरं –कालादेसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! तिर्यंचों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ – वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी पंचेन्द्रिय से नहीं। भगवन्‌ ! यदि वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२२ थी २४ देव Hindi 860 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन्‌ ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-१ लेश्या Hindi 863 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! चोद्दसविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–१. सुहुमा अप्पज्जत्तगा २. सुहुमा पज्जत्तगा ३. बादरा अप्पज्जत्तगा ४. बादरा पज्जत्तगा ५. बेइंदिया अप्पज्जत्तगा ६. बेइंदिया पज्जत्तगा ७. तेइंदिया अप्पज्जत्तगा ८. तेइंदिया पज्जत्तगा ९. चउरिंदिया अप्पज्जत्तगा १०. चउरिंदिया पज्जत्तगा ११. असण्णिपंचिंदिया अप्पज्जत्तगा १२. असण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा १३. सण्णिपंचिंदिया अप्पज्जत्तगा १४. सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा। एतेसि णं भंते! चोद्दसविहाणं संसारसमावन्नगाणं जीवाणं जहण्णुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! चौदह हैं। यथा – सूक्ष्म अपर्याप्तक, सूक्ष्म पर्याप्तक, बादर अपर्याप्तक, बादर पर्याप्तक, द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक, द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक – पर्याप्तक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय
Showing 2351 to 2400 of 18391 Results