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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 237 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनुत्तरोववाइया णं भंते! देवा किं उदिण्णमोहा? उवसंतमोहा? खीणमोहा? गोयमा! नो उदिण्ण-मोहा, उवसंतमोहा, नो खीणमोहा। Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव उदीर्णमोह हैं, उपशान्त – मोह हैं, अथवा क्षीणमोह हैं ? गौतम ! वे उदीर्ण – मोह नहीं हैं, उपशान्तमोह हैं, क्षीणमोह नहीं हैं। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 238 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! आयाणेहिं जाणइ-पासइ?
गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–केवली णं आयाणेहिं न जाणइ, न पासइ?
गोयमा! केवली णं पुरत्थिमे णं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ। एवं दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं, उड्ढं, अहे मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ।
सव्वं जाणइ केवली, सव्वं पासइ केवली।
सव्वओ जाणइ केवली, सव्वओ पासइ केवली।
सव्वकालं जाणइ केवली, सव्वकालं पासइ केवली।
सव्वभावे जाणइ केवली, सव्वभावे पासइ केवली।
अनंते नाणे केवलिस्स, अनंते दंसणे केवलिस्स।
निव्वुडे नाणे केवलिस्स निव्वुडे दंसणे केवलिस्स। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–केवली णं आयाणेहिं न जाणइ, न Translated Sutra: भगवन् ! क्या केवली भगवान आदानों (इन्द्रियों) से जानते और देखते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! किस कारण से केवली भगवान इन्द्रियों से नहीं जानते – देखते ? गौतम ! केवली भगवान पूर्वदिशा में सीमित भी जानते – देखते हैं, अमित (असीम) भी जानते – देखते हैं, यावत् केवली भगवान का (ज्ञान और) दर्शन निरावरण है। इस कारण | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 239 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! अस्सिं समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा उरुं वा ओगाहित्ता णं चिट्ठति, पभू णं केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा ओगाहित्ताणं चिट्ठित्तए?
गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–केवली णं अस्सिं समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा ओगाहित्ताणं चिट्ठति, नो णं पभू केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा उरुं वा ओगाहित्ता णं चिट्ठित्तए?
गोयमा! केवलिस्स णं वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए चलाइं उवकरणाइं भवंति।
चलोवकरणट्ठयाए य णं केवली अस्सिं समयंसि Translated Sutra: भगवन् ! केवली भगवान इस समय में जिन आकाश – प्रदेशों पर अपने हाथ, पैर, बाहू और उरू को अवगाहित करके रहते हैं, क्या भविष्यकाल में भी वे उन्हीं आकाशप्रदेशों पर अपने हाथ आदि को अवगाहित करके रह सकते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! केवली भगवान का जीवद्रव्य वीर्यप्रधान योग वाला | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 240 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वट्टेत्ता उवदंसेत्तए? हंता पभू।
से केणट्ठेणं पभू चोद्दसपुव्वी जाव उवदंसेत्तए?
गोयमा! चोद्दसपुव्विस्स णं अनंताइं दव्वाइं उक्कारियाभेएणं भिज्जमाणाइं लद्धाइं पत्ताइं अभिसमन्नागयाइं भवंति।
से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पभू णं चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वट्टेत्ता उवदंसेत्तए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या चतुर्दशपूर्वधारी (श्रुतकेवली) एक घड़े में से हजार घड़े, एक वस्त्र में से हजार वस्त्र, एक कट में से हजार कट, एक रथ में से हजार रथ, एक छत्र में से हजार छत्र और एक दण्ड में से हजार दण्ड करके दिखलाने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वे ऐसा करके दिखलाने में समर्थ हैं। भगवन् ! चतुर्दशपूर्वधारी एक घट में से हजार घट यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Hindi | 241 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीयमनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिनिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। जहा पढमसए चउत्थुद्देसे आलावगा तहा नेयव्वा जाव अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया। Translated Sutra: भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य शाश्वत, अनन्त, अतीत काल में केवल संयम द्वारा सिद्ध हुआ है ? गौतम ! जिस प्रकार प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहा है, वैसा ही आलापक यहाँ भी कहना; यावत् ‘अलमस्तु’ कहा जा सकता है; यहाँ तक कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Hindi | 242 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता एवं भूयं वेदनं वेदेंति।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव सव्वे सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदेणं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति?
गोयमा! जे णं पाणा Translated Sutra: भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व, एवंभूत (जिस प्रकार कर्म बाँधा है, उसी प्रकार) वेदना वेदते हैं, भगवन् ! यह ऐसा कैसे है ? गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Hindi | 243 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते इह भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था, गोयमा! सत्त एव
तित्थयरमायरो पियरो पढमा सिस्सिणीओ चक्कवट्टिमायरो इत्थिरयणं बलदेवा वासुदेवा वासुदेव मायरो लदेव वासुदेव पियरो एएसिं पडिसत्तु जहा समवाए परिवाडी तहा नेयव्वा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ॥ Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में, इस भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणी काल में कितने कुलकर हुए हैं ? गौतम ! सात। इसी तरह तीर्थंकरों की माता, पिता, प्रथम शिष्याएं, चक्रवर्तियों की माताएं, स्त्रीरत्न, बलदेव, वासुदेव, वासुदेवों के माता – पिता, प्रतिवासुदेव आदि का कथन जिस प्रकार ‘समवायांगसूत्र’ अनुसार यहाँ भी कहना। ‘हे भगवन् ! यह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 244 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहन्नं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
गोयमा! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अनेस-णिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता–एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
कहन्नं भंते! जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
गोयमा! नो पाणे अइवाएत्ता, नो मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएणं एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता–एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति।
कहन्नं भंते! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
गोयमा! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता निंदित्ता खिसित्ता गरहित्ता अवमन्नित्ता Translated Sutra: भगवन् ! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किस कारण से बाँधते हैं ? गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बाँधते हैं – (१) प्राणियों की हिंसा करके, (२) असत्य भाषण करके और (३) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम – दे कर। जीव अल्पायुष्कफल वाला कर्म बाँधते हैं भगवन् ! जीव दीर्घायु | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 245 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, तस्स णं भंते! भंडं अनुगवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ? पारिग्गहिया किरिया कज्जइ? मायावत्तिया किरिया कज्जइ? अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जइ?
गोयमा! आरंभिया किरिया कज्जइ, पारिग्गहिया किरिया कज्जइ, मायावत्तिया किरिया कज्जइ, अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, मिच्छादंसणकिरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ।
अह से भंडे अभिसमन्नागए भवइ, तओ से पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुईभवंति।
गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंडं साइज्जेजा, भंडे य से अनुवणीए सिया।
गाहावइस्स णं भंते! ताओ भंडाओ किं आरंभिया Translated Sutra: भगवन् ! भाण्ड बेचते हुए किसी गृहस्थ का वह किराने का माल कोई अपहरण कर ले, फिर उस किराने के सामान की खोज करते हुए उस गृहस्थ को, हे भगवन् ! क्या आरम्भिकी क्रिया लगती है, या पारिग्रहिकी क्रिया लगती है ? अथवा मायाप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी या मिथ्यादर्शन – प्रत्ययिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उनको आरम्भिकी क्रिया | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 246 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाइ, ठिच्चा आयत-कण्णातयं उसुं करेति, उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहइ।
तए णं से उसूं उड्ढं वेहासं उव्विहिए समाणे जाइं तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणइ वत्तेति लेसेति संघाएइ संघट्टेति परितावेइ किलामेइ, ठाणाओ ठाणं संकामेइ, जीवियाओ ववरोवेइ। तए णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए?
गोयमा! जावं च णं से पुरिसे धनुं परामुसइ, उसुं परामुसइ, ठाणं ठाइ, आयतकण्णातयं उसुं करेंति, उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए, पाओसियाए, पारिया-वणियाए, पाणाइवायकिरियाए–पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे। Translated Sutra: भगवन् ! कोई पुरुष धनुष को स्पर्श करता है, धनुष का स्पर्श करके वह बाण का स्पर्श (ग्रहण) करता है, बाण का स्पर्श करके स्थान पर से आसनपूर्वक बैठता है, उस स्थिति में बैठकर फैंके जाने वाले बाण को कान तक आयात करे – खींचे, खींचकर ऊंचे आकाश में बाण फैंकता है। ऊंचे आकाश में फैंका हुआ वह बाण, वहाँ आकाश में जिन प्राण, भूत, जीव | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 247 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए, भारियत्ताए, गुरेसंभारियत्ताए अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाइं तत्थ पाणाइं जाव जीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कतिकिरिए?
गोयमा! जावं च णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए जाव जीवियाओ, ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहिं किरि-याहिं पुट्ठे। जेसिं पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए ते वि जीवा चउहिं किरियाहिं, धणुपुट्ठे चउहिं, जीवा चउहिं, ण्हारू चउहिं, उसू पंचहिं–सरे, पत्तणे, फले, ण्हारू पंचहिं। जे वि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वट्टंति ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। Translated Sutra: हे भगवन् ! जब वह बाण अपनी गुरुता से, अपने भारीपन से, अपने गुरुसंभारता से स्वाभाविकरूप से नीचे गिर रहा हो, तब वह (बाण) प्राण, भूत, जीव और सत्व को यावत् जीवन से रहित कर देता है, तब उस बाण फैंकने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! जब वह बाण अपनी गुरुता आदि से नीचे गिरता हुआ, यावत् जीवों को जीवन रहित कर देता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 248 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमातिक्खंति जाव परूवेंति– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमातिक्खंति जाव बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एमामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे निरयलोए नेरइएहिं। Translated Sutra: भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती का हाथ पकड़े हुए हो, अथवा जैसे आरों से एकदम सटी (जकड़ी) हुई चक्र की नाभि हो, इसी प्रकार यावत् चार सौ – पाँच सौ योजन तक यह मनुष्यलोक मनुष्यों से ठसाठस भरा हुआ है। भगवन् ! यह सिद्धान्त प्ररूपण कैसे है ? हे गौतम ! अन्यतीर्थियों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 249 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं एगत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहत्तं पभू विउव्वित्तए?
गोयमा! एगत्तं पि पहू विउव्वित्तए, पुहत्तंपि पहू विउव्वित्तए। जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयव्वो जाव विउव्वित्ता अन्नमन्नस्स कायं अभिहणमाणा-अभिहणमाणा वेयणं उदीरेंति– उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं फरुसं निट्ठुरं चंडं तिव्वं दुक्खं दुग्गं दुरहियासं। Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक जीव, एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है, अथवा बहुत से रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! इस विषय में जीवाभिगमसूत्र के समान आलापक यहाँ भी ‘दुरहियास’ शब्द तक कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 250 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आहाकम्मं अणवज्जे त्ति मणं पहारेत्ता भवति, से णं तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंते कालं करेइ–नत्थि तस्स आराहणा। से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ–अत्थि तस्स आराहणा।
एएणं गमेणं नेयव्वं–कीयगडं, ठवियं, रइयं, कंतारभत्तं दुब्भिक्खभत्तं, वद्दलियाभत्तं, गिलाणभत्तं, सेज्जायरपिंडं रायपिंडं।
आहाकम्मं अणवज्जे त्ति सयमेव परिभुंजित्ता भवति, से णं तस्स ठाणस्स अनालोइय पडिक्कंते कालं करेइ–नत्थि तस्स आराहणा। से णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कंते कालं करेइ–अत्थि तस्स आराहणा।
एयं पि तेह चेव जाव रायपिंडं।
आहाकम्मं अणवज्जे त्ति अन्नमन्नस्स अनुप्पदावइत्ता भवइ, से णं तस्स Translated Sutra: ‘आधाकर्म अनवद्य – निर्दोष है’, इस प्रकार जो साधु मन में समझता है, वह यदि उस आधाकर्म – स्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना ही काल कर जाता है, तो उसके आराधना नहीं होती। वह यदि उस (आधाकर्म – ) स्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है। आधाकर्म के आलापकद्वय के अनुसार ही क्रीतकृत, स्थापित | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 251 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए णं भंते! सविसयंसि गणं अगिलाए संगिण्हमाणे, अगिलाए उवगिण्हमाणे कइहिं भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति?
गोयमा! अत्थेगतिए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति, अत्थेगतिए दोच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झति, तच्चं पुण भवग्गहणं नाइक्कमति। Translated Sutra: भगवन् ! अपने विषय में गण को अग्लान (अखेद) भाव से स्वीकार करते (अर्थात् – सूत्रार्थ पढ़ाते) हुए तथा अग्लानभाव से उन्हें सहायता करते हुए आचार्य और उपाध्याय, कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! कितने ही आचार्य – उपाध्याय उसी भव से सिद्ध होते हैं, कितने ही दो भव ग्रहण करके | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 252 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं भंते! परं अलिएणं असब्भूएणं अब्भक्खाणेणं अब्भक्खाति, तस्स णं कहप्पगारा कम्मा कज्जंति?
गोयमा! जे णं परं अलिएणं, असंतएणं अब्भक्खाणेणं अब्भक्खाति, तस्स णं तहप्पगारा चेव कम्मा कज्जंति। जत्थेव णं अभिसमागच्छति तत्थेव णं पडिसंवेदेति, तओ से पच्छा वेदेति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो दूसरे पर सद्भूत का अपलाप और असद्भूत का आरोप करके असत्य मिथ्यादोषारोपण करता है, उसे किस प्रकार के कर्म बंधते हैं ? गौतम ! जो दूसरे पर सद्भूत का अपलाप और असद्भूत का आरोपण करके मिथ्या दोष लगाता है, उसके उसी प्रकार के कर्म बंधते हैं। वह जिस योनि में जाता है, वहीं उन कर्मों को वेदता है और वेदन करने के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 253 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमति?
गोयमा! सिय एयति वेयति जाव तं तं भावं परिणमति; सिय नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति।
दुप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति जाव तं तं भावं परिणमति?
गोयमा! सिय एयति जाव तं तं भावं परिणमति। सिय नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति। सिय देसे एयति, देसे नो एयति।
तिप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति?
गोयमा! सिय एयति, सिय नो एयति। सिय देसे एयति, नो देसे एयति। सिय देसे एयति, नो देसा एयति। सिय देसा एयंति, नो देसे एयति।
चउप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति?
गोयमा! सिय एयति, सिय नो एयति। सिय देसे एयति, नो देसे एयति। सिय देसे एयति, नो देसा Translated Sutra: भगवन् ! क्या परमाणु पुद्गल काँपता है, विशेष रूप से काँपता है ? यावत् उस – उस भाव में परिणत होता है? गौतम ! परमाणु पुद्गल कदाचित् काँपता है, विशेष काँपता है, यावत् उस – उस भाव में परिणत होता है, कदाचित् नहीं काँपता, यावत् उस – उस भाव में परिणत नहीं होता। भगवन् ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध काँपता है, विशेष काँपता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 254 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा।
से णं भंते! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा?
गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
एवं जाव असंखेज्जपएसिओ।
अनंतपएसिए णं भंते! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा?
हंता ओगाहेज्जा।
गोयमा! अत्थेगइए छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा, अत्थेगइए नो छिज्जेज्ज वा नो भिज्जेज्ज वा।
परमाणुपोग्गले णं भंते? अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा?
हंता वीइवएज्जा।
से णं भंते! तत्थ ज्झियाएज्जा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
से णं भंते! पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा?
हंता Translated Sutra: भगवन् ! क्या परमाणु पुद्गल तलवार की धार या उस्तरे की धार पर अवगाहन करके रह सकता है ? हाँ, गौतम ! वह अवगाहन करके रह सकता है। भगवन् ! उस धार पर अवगाहित होकर रहा हुआ परमाणुपुद्गल छिन्न या भिन्न हो जाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। परमाणुपुद्गल में शस्त्र क्रमण (प्रवेश) नहीं कर सकता। इसी तरह यावत् असंख्यप्रदेशी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 255 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सअड्ढे समज्झे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे?
गोयमा! अणड्ढे अमज्झे अपएसे, नो सअड्ढे नो समज्झे नो सपएसे।
दुप्पएसिए णं भंते! खंधे किं सअड्ढे समज्झे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे?
गोयमा! सअड्ढे अमज्झे सपएसे, नो अणड्ढे नो समज्झे नो अपएसे।
तिप्पएसिए णं भंते! खंधे पुच्छा।
गोयमा! अणड्ढे समज्झे सपएसे, नो सअड्ढे नो अमज्झे नो अपएसे।
जहा दुप्पएसिओ तहा जे समा ते भाणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा।
संखेज्जपएसिए णं भंते! खंधे किं सअड्ढे? पुच्छा।
गोयमा! सिय सअड्ढे अमज्झे सपएसे, सिय अणड्ढे समज्झे सपएसे।
जहा संखेज्जपएसिओ तहा असंखेज्जपएसिओ Translated Sutra: भगवन् ! क्या परमाणु – पुद्गल सार्ध, समध्य और सप्रदेश है, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश हैं ? गौतम ! (परमाणुपुद्गल) अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है, किन्तु, सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश नहीं है। भगवन् ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध सार्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश हैं ? गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्ध, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 256 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं –१. देसेणं देसं फुसइ, २. देसेहिं देसे फुसइ, ३. देसेणं सव्वं फुसइ, ४. देसेहिं देसे फुसइ, ५. देसेहिं देसे फुसइ, ६. देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. सव्वेणं देसं फुसइ, ८. सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ?
गोयमा! १. नो देसेणं देसं फुसइ, २. नो देसेणं देसे फुसइ, ३. नो देसेणं सव्वं फुसइ, ४. नो देसेहिं देसं फुसइ, ५. नो देसेहिं देसे फुसइ, ६. नो देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. नो सव्वेणं देसं फुसइ, ८. नो सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ।
परमाणुपोग्गले दुप्पएसियं फुसमाणे सत्तम-नवमेहिं फुसइ।
परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसमाणे निपच्छिमएहिं तिहिं फुसइ।
जहा Translated Sutra: भगवन् ! परमाणुपुद्गल, परमाणुपुद्गल को स्पर्श करता हुआ १ – क्या एकदेश से एकदेश को स्पर्श करता है ?, २ – एकदेश से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, ३ – अथवा एकदेश से सबको स्पर्श करता है ?, ४ – अथवा बहुत देशों से एकदेश को स्पर्श करता है ?, ५ – या बहुत देशों से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, ६ – अथवा बहुत देशों से सभी को स्पर्श | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 257 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव अनंतपएसिओ।
एगपएसोगाढे णं भंते! पोग्गले सेए तम्मि वा ठाणे वा, अन्नम्मि वा ठाणे कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। एवं जाव असंखेज्ज-पएसोगाढे।
एगपएसोगाढे णं भंते! पोग्गले निरेए कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढे।
एगगुणकालए णं भंते! पोग्गले कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव अनंतगुणकालए। एवं
वण्ण-गंध-रस-फास जाव Translated Sutra: भगवन् ! परमाणुपुद्गल काल की अपेक्षा कब तक रहता है ? गौतम ! परमाणुपुद्गल (परमाणुपुद्गल के रूप में) जघन्य एक समय तक रहता है, और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है। इसी प्रकार यावत् अनन्त – प्रदेशीस्कन्ध तक कहना चाहिए। भगवन् ! एक आकाश – प्रदेशावगाढ़ पुद्गल उस (स्व) स्थान में या अन्य स्थान में काल की अपेक्षा से | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 258 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एयस्स णं भंते! दव्वट्ठाणाउयस्स, खेत्तट्ठाणाउयस्स, ओगाहणट्ठाणाउयस्स, भावट्ठाणाउयस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे खेत्तट्ठाणाउए, ओगाहणट्ठाणाउए, असंखेज्जगुणे, दव्वट्ठाणाउए असंखे-ज्जगुणे, भावट्ठाणाउए असंखेज्ज-गुणे। Translated Sutra: भगवन् ! इन द्रव्यस्थानायु, क्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु और भावस्थानायु; इन सबमें कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे कम क्षेत्रस्थानायु है, उससे अवगाहनास्थानायु असंख्येय – गुणा है, उससे द्रव्य – स्थानायु असंख्येयगुणा है और उससे भावस्थानायु असंख्येयगुणा है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 260 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु अनारंभा अपरिग्गहा?
गोयमा! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा?
गोयमा! नेरइया णं पुढविकायं समारंभंति, आउकायं समारंभंति, तेउकायं समारंभंति, वाउकायं समारंभंति, वणस्सइकायं समारंभंति तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा।
असुरकुमारा णं भंते! किं सारंभा? पुच्छा।
गोयमा! असुरकुमारा Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक आरम्भ और परिग्रह से सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम! नैरयिक सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! नैरयिक पृथ्वीकाय का यावत् त्रसकाय का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Hindi | 261 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउं जाणइ, हेउं पासइ, हेउं बुज्झइ, हेउं अभिसमागच्छइ, हेउं छउमत्थमरणं मरइ।
पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउणा जाणइ जाव हेउणा छउमत्थमरणं मरइ।
पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउं ण जाणइ जाव हेउं अन्नाणमरणं मरइ।
पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउणा न जाणइ जाव हेउणा अन्नाणमरणं मरइ।
पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउं जाणइ जाव अहेउं केवलिमरणं मरइ।
पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउणा जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ।
पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउं न जाणइ जाव अहेउं छउमत्थमरणं मरइ।
पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउणा न जाणइ जाव अहेउणा छउमत्थमरणं मरइ।
सेवं भंते! सेवं भंते! Translated Sutra: पाँच हेतु कहे गए हैं, (१) हेतु को जानता है, (२) हेतु को देखता, (३) हेतु का बोध प्राप्त करता – (४) हेतु का अभिसमागम – अभिमुख होकर सम्यक् रूप से प्राप्त – करता है, और (५) हेतुयुक्त छद्मस्थमरणपूर्वक मरता है। पाँच हेतु (प्रकारान्तर से) कहे गए हैं। वे इस प्रकार – (१) हेतु द्वारा सम्यक् जानता है, (२) हेतु से देखता है; (३) हेतु द्वारा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र | Hindi | 262 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नारयपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विहरति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नियंठिपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विहरति। तए णं से नियंठिपुत्ते अनगारे जेणामेव नारयपुत्ते अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नारयपुत्तं अनगारं एवं वयासी–सव्वपोग्गला ते अज्जो! किं सअड्ढा समज्झा सपएसा? उदाहु अनड्ढा अमज्झा अपएसा? अज्जो! त्ति नारयपुत्ते अनगारे नियंठिपुत्तं अनगारं एवं वयासी–सव्वपोग्गला मे अज्जो! सअड्ढा समज्झा सपएसा, नो अनड्ढा अमज्झा अपएसा।
तए णं Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर पधारे। परीषद् दर्शन के लिए गई, यावत् धर्मोपदेश श्रवण कर वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी नारदपुत्र नाम के अनगार थे। वे प्रकृतिभद्र थे यावत् आत्मा को भावित करते विचरते थे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी निर्ग्रन्थीपुत्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र | Hindi | 263 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेत्ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जीवा णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया?
गोयमा! जीवा नो वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया।
नेरइया णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया?
गोयमा! नेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि।
जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया।
सिद्धा णं भंते! पुच्छा।
गोयमा! सिद्धा वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया वि।
जीवा णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया?
गोयमा! सव्वद्धं।
नेरइया णं भंते! केवतियं कालं वड्ढंति?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं।
एवं हायंति वि।
नेरइया णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया?
गोयमा! Translated Sutra: ‘भगवन् !’ यों कहकर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी से यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, पर अवस्थित रहते हैं भगवन् ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Hindi | 264 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी–किमिदं भंते! नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं पुढवी नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं आऊ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं तेऊ वाऊ वणस्सई नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं टंका कूडा सेवा सिहरी पब्भारा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं जल-थल-बिल-गुह-लेणा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं उज्झर-निज्झर-चिल्लल -पल्लल-वप्पिणा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं अगड-तडाग दह-नईओ वावी-पुक्खरिणी-दीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं आरामुज्जाण-काणणा वणा वणसंडा वणराईओ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं देवउल-सभ-पव-थूभ-खाइय-परिखाओ Translated Sutra: उस काल और उस समय में यावत् गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन् ! यह ‘राजगृह’ नगर क्या है – ? क्या पृथ्वी राजगृह नगर कहलाता है ? अथवा क्या जल राजगृह – नगर कहलाता है ? यावत् वनस्पति क्या राजगृहनगर कहलाता है ? जिस प्रकार ‘एजन’ नामक उद्देशक में पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों की (परिग्रह – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Hindi | 265 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! दिया उज्जोए? राइं अंधयारे?
हंता गोयमा! दिया उज्जोए, राइं अंधयारे।
से केणट्ठेणं? गोयमा! दिया सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे, राइं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं।
नेरइयाणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे?
गोयमा! नेरइयाणं नो उज्जोए, अंधयारे।
से केणट्ठेणं?
गोयमा! नेरइयाणं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं।
असुरकुमाराणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे?
गोयमा! असुरकुमाराणं उज्जोए, नो अंधयारे।
से केणट्ठेणं? गोयमा! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे।
से तेणट्ठेणं। जाव थणियकुमाराणं।
पुढविक्काइया जाव तेइंदिया जहा नेरइया।
चउरिंदियाणं Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? हाँ, गौतम ! दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है। भगवन् ! किस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? गौतम ! दिन में शुभ पुद्गल होते हैं अर्थात् शुभ पुद्गल – परिणाम होते हैं, किन्तु रात्रि में अशुभ पुद्गल अर्थात् अशुभपुद्गल | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Hindi | 266 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा?
नो तिणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेण भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं तत्थगयाणं नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा?
गोयमा! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, इहं तेसिं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। से तेणट्ठेणं जाव नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा।
एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं।
अत्थि णं भंते! मनुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायते, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा?
हंता अत्थि।
से केणट्ठेणं? Translated Sutra: भगवन् ! क्या वहाँ (नरकक्षेत्र में) रहे हुए नैरयिकों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, जैसे कि – समय, आवलिका, यावत् उत्सर्पिणी काल (या) अवसर्पिणी काल ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! किस कारण से नरकस्थ नैरयिकों को काल का प्रज्ञान नहीं होता ? गौतम ! यहाँ (मनुष्यलोक में) समयादि का मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Hindi | 267 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी– से नूनं भंते! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया उपज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा? परित्ता राइंदिया उप्पज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा?
हंता अज्जो! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया तं चेव।
से केणट्ठेणं जाव विगच्छिस्संति वा?
से नूनं भे अज्जो! पासेनं अरहया पुरिसादानिएणं सासए लोए बुइए–अनादीए Translated Sutra: उस काल और उस समय में पार्श्वापत्य स्थविर भगवंत, जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आए। वहाँ आकर वे श्रमण भगवान महावीर से अदूरसामन्त खड़े रहकर इस प्रकार पूछने लगे – भगवन् ! असंख्य लोक में क्या अनन्त रात्रि – दिवस उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे; तथा नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और नष्ट होंगे ? अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Hindi | 268 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: कइविहा णं भंते! देवलोगा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा देवलोगा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतर-जोतिसिय-वेमानियभेदेणं।
भवनवासी दसविहा, वाणमंतरा अट्ठविहा, जोतिसिया पंचविहा वेमाणिया दुविहा। Translated Sutra: भगवन् ! देवगण कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के – भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क वैमानिक भवनवासी दस प्रकार के हैं। वाणव्यन्तर आठ प्रकार के हैं, ज्योतिष्क पाँच प्रकार के हैं और वैमानिक दो प्रकार के हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Hindi | 270 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१० चंद्र | Hindi | 271 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी, जहा पढमिल्लो उद्देसओ तहा नेयव्वो एसो वि, नवरं–चंदिमा भाणियव्वा। Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। पंचम शतक के प्रथम उद्देशक समान यह उद्देशक भी कहना। विशेष यह कि यहाँ ‘चन्द्रमा’ कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-१ वेदना | Hindi | 273 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! जे महावेदने से महानिज्जरे? जे महानिज्जरे से महावेदने? महावेदणस्स य अप्पवेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए?
हंता गोयमा! जे महावेदने से महानिज्जरे, जे महानिज्जरे से महावेदने, महावेदनस्स य अप्पवेदनस्स य से सेए जे पसत्थ-निज्जराए।
छट्ठ-सत्तमासु णं भंते! पुढवीसु नेरइया महावेदना?
हंता महावेदना।
ते णं भंते! समणेहिंतो निग्गंथेहिंतो महानिज्जरतरा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणं खाइ अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जे महावेदने से महानिज्जरे? जे महानिज्जरे से महावेदने? महावेदणस्स य अप्पवेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए?
गोयमा! से जहानामए दुवे वत्था सिया–एगे वत्थे Translated Sutra: भगवन् ! क्या यह निश्चित है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है और जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है ? तथा क्या महावेदना वाला और अल्पवेदना वाला, इन दोनों में वही जीव श्रेयान् (श्रेष्ठ) है, जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है ? हाँ, गौतम ! जो महावेदना वाला है इत्यादि जैसा ऊपर कहा है, इसी प्रकार समझना चाहिए भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-१ वेदना | Hindi | 274 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! करणे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे करणे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
एवं पंचिंदियाणं सव्वेसिं चउव्विहे करणे पन्नत्ते।
एगिंदियाणं दुविहे–कायकरणे य, कम्मकरणे य।
विगलिंदियाणं तिविहे–वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
नेरइयाणं भंते! किं करणओ असायं वेदनं वेदेंति? अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति?
गोयमा! नेरइया णं करणओ असायं वेदनं वेदेंति, नो अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया णं चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, Translated Sutra: भगवन् ! करण कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! करण चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। भगवन् ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गए हैं ? गौतम ! चार प्रकार के। मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। इसी प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-१ वेदना | Hindi | 275 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं महावेदना महानिज्जरा? महावेदना अप्पनिज्जरा? अप्पवेदना महानिज्जरा? अप्पवेदना अप्पनिज्जरा?
गोयमा! अत्थेगतिया जीवा महावेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा महावेदना अप्प-निज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा।
से केणट्ठेणं?
गोयमा! पडिमापडिवन्नए अनगारे महावेदने महानिज्जरे। छट्ठ-सत्तमासु पुढवीसु नेरइया महावेदना अप्पनिज्जरा। सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे अप्पवेदने महानिज्जरे। अनुत्तरोववाइया देवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जीव (क्या) महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, अथवा अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कईं जीव अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, तथा कईं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-२ आहार | Hindi | 277 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहं नगरं जाव एवं वयासी–आहारुद्देसओ जो पन्नवणाए सो सव्वो निरवसेसो नेयव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् भगवान महावीर ने फरमाया – यहाँ प्रज्ञापना सूत्र में जो आहार – उद्देशक कहा है, वह सम्पूर्ण जान लेना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 278 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] १ बहुकम्म २ वत्थपोग्गल-पयोगसा-वीससा य ३ सादीए ।
४ कम्मट्ठिति ५ त्थि ६ संजय ७ सम्मदिट्ठी य ८ सन्नी य ॥ Translated Sutra: १. बहुकर्म, २. वस्त्रमें प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से (विस्रसा) पुद्गल, ३. सादि, ४. कर्मस्थिति, ५. स्त्री, ६. संयत, ७. सम्यग्दृष्टि, ८. संज्ञी, ९. भव्य, १०. दर्शन, ११. पर्याप्त, १२. भाषक, १३. परित्त, १४. ज्ञान, १५. योग, १६. उपयोग, १७. आहारक, १८. सूक्ष्म, १९. चरम – बन्ध २०. अल्पबहुत्व का वर्णन इस उद्देशकमें किया गया है। सूत्र – २७८, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 279 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ९ भविए १ दंसण ११ पज्जत्त १२ भासय १३ परित्ते १४ नाण १५ जोगेय ।
१६.१७ उवओगाहारग १८ सुहुम १९ चरिमबंधे य २ अप्पबहुं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७८ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 280 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! महाकम्मस्स, महाकिरियस्स, महासवस्स, महावेदणस्स सव्वओ पोग्गला बज्झंति, सव्वओ पोग्गला चिज्जंति, सव्वओ पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं पोग्गला बज्झंति, सया समियं पोग्गला चिज्जंति, सया समियं पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं च णं तस्स आया दुरूवत्ताए दुवण्णत्ताए दुगंधत्ताए दुरसत्ताए दुफासत्ताए, अनिट्ठत्ताए अकंतत्ताए अप्पियत्ताए असुभत्ताए अमणुन्नत्ताए अमणामत्ताए अनिच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए अहत्ताए–नो उड्ढत्ताए, दुक्खत्ताए–नो सुहत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति?
हंता गोयमा! महाकम्मस्स तं चेव।
से केणट्ठेणं? गोयमा! से जहानामए वत्थस्स अहयस्स वा, धोयस्स Translated Sutra: भगवन् ! क्या निश्चय ही महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाश्रव वाले और महावेदना वाले जीव के सर्वतः पुद्गलों का बन्ध होता है ? सर्वतः पुद्गलों का चय होता है ? सर्वतः पुद्गलों का उपचय होता है ? सदा सतत पुद्गलों का चय होता है ? सदा सतत पुद्गलों का उपचय होता है ? क्या सदा निरन्तर उसका आत्मा दुरूपता में, दुर्वर्णता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 281 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं पयोगसा? वीससा?
गोयमा! पयोगसा वि, वीससा वि।
जहा णं भंते! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए पयोगसा वि, वीससा वि, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए किं पयोगसा? वीससा?
गोयमा! पयोगसा, नो वीससा।
से केणट्ठेणं? गोयमा! जीवाणं तिविहे पयोगे पन्नत्ते, तं जहा– मनप्पयोगे, वइप्पयोगे, कायप्पयोगे। इच्चेएणं तिविहेणं पयोगेणं जीवाणं कम्मोवचए पयोगसा, नो वीससा।
एवं सव्वेसिं पंचिंदियाणं तिविहे पयोगे भाणियव्वे।
पुढवीकाइयाणं एगविहेणं पयोगेणं, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं।
विगलिंदियाणं दुविहे पयोगे पन्नत्ते, तं जहा–वइपयोगे, कायपयोगे य। इच्चेएणं दुविहेणं पयोगेणं कम्मोवचए पयोगसा, Translated Sutra: भगवन् ! वस्त्र में जो पुद्गलों का उपचय होता है, वह क्या प्रयोग (पुरुष – प्रयत्न) से होता है, अथवा स्वाभाविक रूप से ? गौतम ! वह प्रयोग से भी होता है, स्वाभाविक रूप से भी होता है। भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलों का उपचय प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से होता है, तो क्या उसी प्रकार जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 282 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए? सादीए अपज्जवसिए? अनादीए सपज्जवसिए? अनादीए अपज्जवसिए?
गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए।
जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतियाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए।
से केणट्ठेणं? गोयमा! इरियावहियबंधयस्स कम्मोवचए Translated Sutra: भगवन् ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त है, सादिअनन्त है, अनादि – सान्त है, अथवा अनादि – अनन्त है ? गौतम ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त होता है, किन्तु न तो वह सादि – अनन्त होता है, न अनादि – सान्त होता है और न अनादि – अनन्त होता है। हे भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलोपचय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 283 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. नाणावरणिज्जं, २. दरिसणावरणिज्जं, ३. वेदणिज्जं, ४. मोहणिज्जं, ५. आउगं, ६. नामं, ७. गोयं, ८. अंतराइयं।
नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ।
दरिसावरणिज्जं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ।
वेदणिज्जं जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, Translated Sutra: भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म की बन्धस्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 284 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ?
गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ।
एवं आउगवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ।
आउगं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ?
गोयमा! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। पुरिसो सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ न बंधइ।
नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं संजए बंधइ? अस्संजए बंधइ? संजयासंजए बंधइ? नोसंजए नोअसंजए नोसंजयासंजए बंधइ?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बाँधती है ? पुरुष बाँधता है, अथवा नपुंसक बाँधता है ? अथवा नो – स्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को स्त्री भी बाँधती है, पुरुष भी बाँधता है और नपुंसक भी बाँधता है, परन्तु नोस्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक होता है, वह कदाचित् बाँधता है, कदाचित् नहीं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 285 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं इत्थीवेदगाणं पुरिसवेदगाणं, नपुंसगवेदगाणं, अवेदगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेदगा, इत्थिवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अनंतगुणा, नपुंसगवेदगा अनंतगुणा।
एएसिं सव्वेसिं पदाणं अप्पबहुगाइं उच्चारेयव्वाइं जाव सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा अनंतगुणा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: हे भगवन् ! स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक; इन जीवों में से कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव पुरुषवेदक हैं, उनसे संख्येयगुणा स्त्रीवेदक जीव हैं, उनसे अनन्तगुणा अवेदक हैं और उनसे भी अनन्तगुणा नपुंसकवेदक हैं। इन सर्व पदों का यावत् सबसे थोड़े अचरम जीव हैं और | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-४ सप्रदेशक | Hindi | 286 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! नियमा सपदेसे।
नेरइए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे।
एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! नियमा सपदेसा।
नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा २. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा सपदेसा य अपदेसा य।
एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! सपदेसा वि, अपदेसा वि।
एवं जाव वणप्फइकाइया।
सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा।
आहारगाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अनाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः सप्रदेश हैं। भगवन् ! क्या नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश हैं ? गौतम ! एक नैरयिक जीव कालादेश से कदाचित् सप्रदेश है और कदाचित् अप्रदेश है। इस प्रकार यावत् एक सिद्ध – जीव – पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन् ! कालादेश की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-४ सप्रदेशक | Hindi | 288 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? पच्चक्खाणापच्चक्खाणी?
गोयमा! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी वि।
सव्वजीवाणं एवं पुच्छा।
गोयमा! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चउरिंदिया [सेसा दो पडिसेहेयव्वा] ।
पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो पच्चक्खाणी, अप-च्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणा-पच्चक्खाणी वि। मणूसा तिन्नि वि। सेसा जहा नेरइया।
जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणं जाणंति? अपच्चक्खाणं जाणंति? पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति?
गोयमा! जे पंचिंदिया ते तिन्नि वि जाणंति, अवसेसा पच्चक्खाणं न जाणंति, अपच्चक्खाणं न जाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं न जाणंति।
जीवा णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी है, अप्रत्याख्यानी है या प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी है ? गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी है, अप्रत्याख्यानी भी है और प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी भी हैं। इसी तरह सभी जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है। गौतम ! नैरयिक जीव यावत् चतुरिन्द्रिय जीव अप्रत्याख्यानी है, इन जीवों में शेष | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-४ सप्रदेशक | Hindi | 289 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] १ पच्चक्खाणं २ जाणइ, ३ कुव्वइ तिण्णेव ४ आउनिव्वत्ती ।
सपएसुद्देसम्मि य, एमेए दंडगा चउरो ॥ Translated Sutra: प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का जानना, करना, तीनों का (जानना, करना) तथा आयुष्य की निर्वृत्ति, इस प्रकार ये चार दण्डक सप्रदेश उद्देशक में कहे गए हैं। भगवन् ! यह इसी प्रकार है। यह इसी प्रकार है। सूत्र – २८९, २९० | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-४ सप्रदेशक | Hindi | 290 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-५ तमस्काय | Hindi | 291 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति?
गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं।
तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए?
गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए।
सत्तरस-एक्कवीसे Translated Sutra: भगवन् ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी |