Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 890 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाव गुरुणो न रयहरणं, पव्वज्जा य न अल्लिया।
तावाकज्जं न कायव्वं, लिंगमवि जिन-देसियं॥ Translated Sutra: जैसे कि जब तक गुरु को रजोहरण और प्रव्रज्या वापस अर्पण न की जाए तब तक चारित्र के खिलाफ किसी भी अपकार्य का आचरण न करना चाहिए। जिनेश्वर के उपदेशीत यह वेश – रजोहरण गुरु को छोड़कर दूसरे स्थान पर न छोड़ना चाहिए। अंजलिपूर्वक गुरु को रजोहरण अर्पण करना चाहिए। यदि गुरु महाराज समर्थ हो और उसे समझा सके तो समझाकर सही मार्ग | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 895 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किंवा निमित्तमुवयरिउं सो भमे बहु-दुहट्ठिओ ।
चरिमस्सन्नस्स तित्थम्मि गोयमा कंचण-च्छवी॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! माया प्रपंच करने के स्वभाववाला आसड़ कौन था ? वो हम नहीं जानते। फिर किस निमित्त से काफी दुःख से परेशान यहाँ भटका ? हे गौतम ! दूसरे किसी अंतिम कांचन समान कान्तिवाले तीर्थंकर के तीर्थ में भूतीक्ष नाम के आचार्य का आसड़ नाम का शिष्य था। महाव्रत अंगीकार करके उसने सूत्र और अर्थ का अध्ययन किया। तब विषय का दर्द | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1000 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वाणमंतर-देवत्ता चइऊणं गोयमासडो।
रासहत्ताए तेरिच्छेसुं नरिंद-घरमागओ॥ Translated Sutra: वाणमंतर देव में से च्यवकर हे गौतम ! वो आसड़ तिर्यंच गति में राजा के घर गधे के रूप में आएगा। वहाँ हंमेशा घोड़े के साथ संघट्टन करने के दोष से उसके वृषण में व्याधि पैदा हुआ और उसमें कृमि पैदा हुए। वृषण हिस्से में कृमि से खाए जानेवाले हे गौतम ! आहार न मिलने से दर्द से पीड़ित था और पृथ्वी चाटता था। इतने में दूर से साधु वापस | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1004 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काग-साणेहि खज्जंतो, सुद्ध-भावेण गोयमा ।
अरहंताणं ति सरमाणो सम्मं उज्झियं तणूं॥ Translated Sutra: कौए – कुत्तों से खाए जानेवाला हे गौतम ! शुद्ध भाव से अरिहंत का स्मरण करते – करते शरीर का त्याग करके काल पाकर उस देवेन्द्र का महाघोष नाम का सामानिक देव हुआ। वहाँ दिव्य ऋद्धि अच्छी तरह से भुगतकर च्यवा। वहाँ से वो वेश्या के रूप में पैदा हुआ। जो छल किया था उसे प्रकट नहीं किया था इसलिए वहाँ से मरके कईं अधम, तुच्छ, अन्त | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1012 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयवं अकिच्चं काऊणं पच्छित्तं जो करेज्ज वा।
तस्स लट्ठयरं पुरओ जं अकिच्चं न कुव्वए॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! अकार्य करके अगर अतिचार सेवन करके यदि किसी प्रायश्चित्त का सेवन करे उससे अच्छा जो अकार्य न करे वो ज्यादा सुन्दर है ? हे गौतम ! अकार्य सेवन करके फिर मैं प्रायश्चित्त सेवन करके शुद्धि कर लूँगा। उस प्रकार मन से भी वो वचन धारण करके रखना उचित नहीं है। जो कोई ऐसे वचन सुनकर उसकी श्रद्धा करता है, या उसके अनुसार | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1016 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भगवं जो बलविरियं पुरिसयार-परक्कमं।
अनिगूहंतो तवं चरइ, पच्छित्तं तस्स किं भवे॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! जो कोई भी मानव अपने में जो कोई बल, वीर्य पुरुषकार पराक्रम हो उसे छिपाकर तप सेवन करे तो उसका क्या प्रायश्चित्त आए ? हे गौतम ! अशठ भाववाले उसे यह प्रायश्चित्त हो सकता है। क्योंकि वैरी का सामर्थ्य जानकर अपनी ताकत होने के बावजूद भी उसने उसकी अपेक्षा की है जो अपना बल वीर्य, सत्त्व पुरुषकार छिपाता है, वो शठ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1020 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] से भगवं पावयं कम्मं परं वेइय समुद्धरे।
अणणुभूएण नो मोक्खं, पायच्छित्तेण किं तहिं॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! बड़ा पापकर्म वेदकर खपाया जा सकता है। क्योंकि कर्म भुगते बिना उसका छूटकारा नहीं किया जा सकता। तो वहाँ प्रायश्चित्त करने से क्या फायदा ? हे गौतम ! कईं क्रोड़ साल से इकट्ठे किए गए पापकर्म सुरज से जैसे तुषार – हीम पीगल जाए वैसे प्रायश्चित्त समान सूरज के स्पर्श से पीगल जाता है। घनघोर अंधकार वाली रात हो लेकिन | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1025 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयवं कस्सालोएज्जा, पच्छित्तं को वदेज्ज वा।
कस्स व पच्छित्तं देज्जा, आलोयावेज्ज वा कहं॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! किसके पास आलोचना करनी चाहिए ? प्रायश्चित्त कौन दे सकता है ? प्रायश्चित्त किसे दे सकते हैं ? हे गौतम ! सौ योजन दूर जाकर केवली के पास शुद्ध भाव से आलोचना निवेदन कर सके। केवलज्ञानी की कमी में चार ज्ञानी के पास, उसकी कमी में अवधिज्ञानी, उसकी कमी में श्रुतज्ञानी के पास, जिसके ज्ञात अतिशय ज्यादा निर्मल हो, उसको | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1031 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] से भयवं केत्तियं तस्स, पच्छित्तं हवइ णिच्छियं
पायच्छित्तस्स ठाणाइं, केवतियाइं कहेहि मे ॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! उसका निश्चित प्रायश्चित्त कितना होगा ? प्रायश्चित्त लगने के स्थानक कितने और कौन – से हैं? वो मुझे बताओ। हे गौतम ! सुन्दर शीलवाले श्रमण को स्खलना होने से आए हुए प्रायश्चित्त करते संयती साध्वी को उससे ज्यादा नौ गुना प्रायश्चित्त आता है, यदि वो साध्वी शील की विराधना करे तो उसे नौ गुना प्रायश्चित्त आता | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1037 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चक्कमंती य गाढाइं काइयं वोसिरंति या।
वावाइज्जा उ दो तिण्णि, सेसाइं परियावई॥ Translated Sutra: स्त्री जब चलती है तब वो जीव गहरा दर्द पाते हैं। पेशाब करते हैं तब दो या तीन जीव मर जाते हैं। और बाकी के परिताप दुःख पाते हैं। हे गौतम ! प्रायश्चित्त के अनगिनत स्थानक हैं, उसमें से एक भी यदि आलोवण रहित रह जाए और शल्यसहित मर जाए तो, एक लाख स्त्रीयों का पेट फाड़कर किसी निर्दय मानव सात, आँठ महिने के गर्भ को बाहर नीकाले, | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1044 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जम्हा तीसु वि एएसु, अवरज्झंतो हु गोयमा ।
उम्मग्गमेव वद्धारे, मग्गं निट्ठवइ सव्वहा॥ Translated Sutra: इस तीन में अपराध करनेवाला हे गौतम ! उन्मार्ग का व्यवहार करते थे और सर्वथा मार्ग का विनाश करनेवाला होता है। हे भगवंत ! इस दृष्टांत से जो गृहस्थ उत्कट मदवाले होते हैं। और रात या दिन में स्त्री का त्याग नहीं करते उसकी क्या गति होगी ? वो अपने शरीर के अपने ही हस्त से छेदन करके तल जितने छोटे टुकड़े करके अग्नि में होम करे | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1063 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु-साहुणी-वग्गेणं, विण्णायव्वमिह गोयमा ।
जेसिं मोत्तूण ऊसासं णीसासं णाणुजाणियं॥ Translated Sutra: साधु – साध्वी के वर्ग को यहाँ समझ लेना चाहिए कि हे गौतम ! उश्वास निश्वास के अलावा दूसरी किसी भी क्रिया गुरु की परवानगी के सिवा नहि करना। वो भी जयणा से ही करने की आज्ञा है। अजयणा से नहीं। अजयणा से साँस लेने – रखने का सर्वथा नहीं होता। अजयणा से साँस लेनेवाले को तप या धर्म कहाँ से मिले ? सूत्र – १०६३, १०६४ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1065 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयवं जावइयं दिट्ठं, तावइयं कहणुपालिया।
जे भवे अवीय-परमत्थे, किच्चाकिच्चमयाणगे॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! जितना देखा हो या जाना हो तो उसका पालन उतने प्रमाण में किस तरह कर सके ? जिन्होंने अभी परमार्थ नहीं जाना, कृत्य और अकृत्य के जानकार नहीं है। वो पालन किस तरह कर सकेंगे ? हे गौतम ! केवली भगवंत एकान्त हीत वचन को कहते हैं। वो भी जीव का हाथ पकड़कर बलात्कार से धर्म नहीं करवाते। लेकिन तीर्थंकर भगवान के बताए हुए | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1072 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमस्स पुढवि-जीवस्स जत्थेगस्स किलामणा।
अप्पारंभं तयं बेंति, गोयमा सव्व-केवली॥ Translated Sutra: हे गौतम ! जहाँ सूक्ष्म पृथ्वीकाय के एक जीव को कीलामणा होती है तो उस को सर्वज्ञ केवली अल्पारंभ कहते हैं। जहाँ छोटे पृथ्वीकाय के एक जीव का प्राण विलय हो उसे सभी केवली महारंभ कहते हैं। एक पृथ्वीकाय के जीव को थोड़ा सा भी मसला जाए तो उससे अशातावेदनीय कर्मबंध होता है कि जो पापशल्य काफी मुश्किल से छोड़ सके। उसी प्रकार | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1077 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता जे अविदिय-परमत्थे, गोयमा नो य जे मुणे।
तम्हा ते विवज्जेज्जा, दोग्गई-पंथ-दायगे॥ Translated Sutra: इसलिए जो परमार्थ को नहीं जानते और हे गौतम ! जो अज्ञानी हैं, वो दुर्गति के पंथ को देनेवाले ऐसे पृथ्वीकाय आदि कि विराधना गीतार्थ गुरु निश्रा में रहकर संयम आराधना करनी। गीतार्थ के वचन से हलाहल झहर का पान करना। किसी भी विकल्प किए बिना उनके वचन के मुताबिक तत्काल झहर का भी भक्षण कर लेना। परमार्थ से सोचा जाए तो वो विष | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1090 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अगीयत्थत्तदोसेणं गोयमा ईसरेण उ।
जं पत्तं तं निसामित्ता लहुं गीयत्थो मुनी भवे॥ Translated Sutra: हे गौतम ! किसी दूसरी चौबीस के पहले तीर्थंकर भगवंत का जब विधिवत् निर्वाण हुआ तब मनोहर निर्वाण महोत्सव प्रवर्तता था और सुन्दर रूपवाले देव और असुर नीचे उतरते थे और ऊपर चड़ते थे। तब पास में रहनेवाले लोग यह देखकर सोचने लगे कि अरे ! आज मानव लोक में ताज्जुब देखते हैं। किसी वक्त भी कहीं भी ऐसी इन्द्रजाल – सपना देखने | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1511 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कहं पुन एरिसे सुलभबोही जाए महायसे सुगहिय-णामधेज्जे से णं कुमारं महरिसी गोयमा ते णं समणभावट्ठिएणं अन्न-जम्मम्मि वाया दंडे पउत्ते अहेसि, तन्निमित्तेणं जावज्जीवं मूणव्वए गुरूवएसे णं संधारिए अन्नं च तिन्नि महापावट्ठाणे संजयाणं तं जहा–आऊ तेऊ मेहुणे। एते य सव्वोवाएहिं परिवज्जए ते णं तु एरिसे सुलभबोही जाए।
अहन्नया णं गोयमा बहु सीसगण परियरिए से णं कुमारमहरिसी पत्थिए सम्मेयसेलसिहरे देहच्चाय निमित्तेणं, कालक्कमेणं तीए चेव वत्तणीए जत्थ णं से राय कुल बालियानरिंदे चक्खुकुसीले। जाणावियं च रायउले, आगओ य वंदनवत्तियाए सो इत्थी-नरिंदो उज्जानवरम्मि।
कुमार महरिसिणो Translated Sutra: हे भगवंत ! वो महायशवाले सुग्रहीत नाम धारण करनेवाले कुमार महर्षि इस तरह के सुलभबोधि किस तरह बने ? हे गौतम ! अन्य जन्म में श्रमणभाव में रहे थे तब उसने वचन दंड़ का प्रयोग किया था। उस निमित्त से जीवनभर गुरु के उपदेश से मौनव्रत धारण किया था। दूसरा संयतोने तीन महापाप स्थानक बताए हैं, वो इस प्रकार – अप्काय, अग्निकाय | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1512 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सा उण रायकुल वालिया नरिंद समणी गोयमा तेण माया सल्ल भाव दोसेणं उववण्णा विज्जुकुमारीणं वाहणत्ताए णउली-रूवेणं किंकरीदेवेसुं। ततो चुया समाणी पुणो पुणो उववज्जंती वावज्जंती अहिंडिया मानुस तिरिच्छेसुं सयल दोहग्ग दुक्ख दारिद्द परिगया सव्वलोय परिभूया सकम्मफलमनुभवमाणी गोयमा जाव णं कह कह वि कम्माणं खओवसमेणं बहु भवंतरेसुं तं आय-रिय पयं पाविऊण निरइयार सामन्न परिपालणेणं सव्वत्थामेसुं च सव्वपमायालंबण विप्पमुक्केणं तु उज्जमिऊणं निद्दड्ढावसेसी कय भवंकुरे तहा वि गोयमा जा सा सरागा चक्खुणालोइया तया तक्कम्मदोसेणं माहणित्थित्ताए परिनिव्वुडे णं से रायकुलवालियानरिंद Translated Sutra: हे गौतम ! वो राजकुलबालिका नरेन्द्र श्रमणी उस माया शल्य के भावदोष से विद्युत्कुमार देवलोक में सेवक देव में स्त्री नेवले के रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ से च्यवकर फिर उत्पन्न होती और मर जाती मानव और तिर्यंच गति में समग्र दौर्भाग्य दुःख दारिद्र पानेवाली समग्र लोक से पराभव – अपमान, नफरत पाते हुए अपने कर्म के फल को | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1124 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुहं सुहेण जं धम्मं सव्वो वि अणुट्ठए जणो।
न कालं कडयडस्सऽज्जं धम्मस्सिति जा विचिंतइ॥ Translated Sutra: या उनको एक ओर रख दो। मैं खुद ही सुख से हो सके और सब लोग कर सके ऐसा धर्म बताऊंगा। यह जो कड़कड़ – कठिन धर्म करने का समय नहीं है। ऐसा जितने में चिन्तवन करते हैं उतने में तो उन धड़धड़ आवाज करनेवाली बिजली गिर पड़ी। हे गौतम ! वो वहाँ मरकर सातवीं नरक पृथ्वी में पैदा हुआ। शासन श्रमणपन श्रुतज्ञान के संसर्ग के प्रत्यनीकपन की | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1141 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं का उण सा रज्जज्जिया किंवा तीए अगीयत्थ-अत्त-दोसेणं वाया-मेत्तेणं पि पावं कम्मं समज्जियं, जस्स णं विवागऽयं सोऊणं नो धिइं लभेज्जा
(२) गोयमा णं इहेव भारहे वासे भद्दो नाम आयरिओ अहेसि, तस्स य पंच सए साहूणं महानुभागाणं दुवालस सए निग्गंथीणं।
(३) तत्थ य गच्छे चउत्थरसियं ओसावणं तिदंडोऽचित्तं च कढिओदगं विप्प-मोत्तूणं चउत्थं न परिभुज्जई।
(४) अन्नया रज्जा नामाए अज्जियाए पुव्वकय असुह पाव कम्मोदएण सरीरगं कुट्ठवाहीए परिसडि-ऊणं किमिएहिं सुमद्दिसिउमारद्धं।
(५) अह अन्नया परिगलंत पूइ रुहिरतणूं तं रज्जज्जियं पासिया, ताओ संजईओ भणंति। जहा हला हला दुक्करकारिगे, किमेयं Translated Sutra: हे भगवंत ! वो रज्जु आर्या कौन थी और उसने अगीतार्थपन के दोष से केवल वचन से कैसा पापकर्म उपार्जन किया कि जो विपाक सुनकर धृति न पा सके ? हे गौतम ! इसी भरतक्षेत्र में भद्र नामके आचार्य थे। उन्हें महानुभाव ऐसे पाँचसौ शिष्य और बारह सौ निर्ग्रन्थी – साध्वी थी। उस गच्छ में चौथे (आयंबिल) रसयुक्त ओसामण तीन उबालावाला हुआ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1143 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१३) चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलं णाणं कया य देवेहिं केवलिमहिमा।
(१४) केवलिणा वि नर सुरासुराणं पणासियं संसय तम पडलं अज्जियाणं च।
(१५) तओ भत्तिब्भरनिब्भराए पणामपुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं किमट्ठमहं एमहंताणं महा वाहि वेयणाणं भायणं संवुत्ता
(१६) ताहे गोयमा सजल जलहर सुरदुंदुहि निग्घोस मणोहारि गंभीर सरेणं भणियं केव-लिणा जहा–सुणसु दुक्करकारिए। जं तुज्झ सरीर विहडण कारणं ति।
(१७) तए रत्त पित्त दूसिए अब्भंतरओ सरीरगे सिणिद्धाहारमाकंठाए कोलियग मीसं परिभुत्तं
(१८) अन्नं च एत्थ गच्छे एत्तिए सए साहु साहुणीणं, तहा वि जावइएणं अच्छीणि पक्खालि-ज्जंति तावइयं पि बाहिर Translated Sutra: ऐसा सोचते हुए उस साध्वीजी को केवलज्ञान पैदा हुआ। उस वक्त देव ने केवलज्ञान का महोत्सव किया। वो केवली साध्वीजी ने मानव, देव, असुर के और साध्वी के संशयरूप अंधकार के पड़ल को दूर किया। उसके बाद भक्ति से भरपूर हृदयवाली रज्जा आर्या ने प्रणाम करके सवाल पूछा कि – हे भगवंत ! किस वजह से मुझे इतनी बड़ी महावेदनावाला व्याधि | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1147 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयवं नाहं वियाणामि, लक्खणदेवी हु अज्जिया।
जा अणुकलुसमगीयत्थत्ता काउं पत्ता दुक्ख-परंपरं॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! लक्ष्मणा आर्या जो अगीतार्थ और कलुषतावाली थी और उसकी वजह से दुःख परम्परा पाई वो मैं नहीं जानता। हे गौतम ! पाँच भरत और पाँच ऐरावत् क्षेत्र के लिए उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के सर्व काल में एक – एक संसार में यह अतिध्रुव चीज है। जगत् की यह स्थिति हंमेशा टिकनेवाली है। हे गौतम ! मैं हूँ उस तरह सात हाथ के प्रमाणवाली | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1189 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह सा पर-ववएसेणं आलोइत्ता तवं चरे।
पायच्छित्तं निमित्तेणं, पण्णासं संवच्छरे॥ Translated Sutra: अब वो लक्ष्मण साध्वी पराये के बहाने से आलोचना ग्रहण करके तपस्या करने लगी, प्रायश्चित्त निमित्त से पचास साल तक छठ्ठ – अठ्ठम चार उपवास करके दश साल पसार किए। अपने लिए न किए हो, न करवाए हो, किसी ने साधु का संकल्प कर के भोजन तैयार न किए हो, भोजन करनेवाले गृहस्थ के घर बचा हो वैसा आहार भिक्षा में मिले उससे उपवास पूरा करे, | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1209 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता सा पुणो विचिंतेइ जाव जीवं न उड्डए।
ताव देमी से दाहाइं जेण मे भव-सएसु वि॥ Translated Sutra: और फिर वो ब्याहता स्त्री चिन्तवन करने लगी कि जीवनभर खड़ी न हो सके वैसे उसे डाम दूँ कि सौ भव तक मेरे प्रियतम को याद न करे। तब कुम्हार की शाला में से लोहे का कोष बनाकर तप्त लाल हो जाए उतना तपाकर उसकी योनि में उसे जोर से घुसेड़कर उस प्रकार इस भारी दुःख की वजह से आक्रान्त होनेवाली वहाँ मर के हे गौतम ! चक्रवर्ती की स्त्रीरत्न | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1215 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह सो लक्खणदेवीए जीवो खंडोट्ठियत्तणा।
इत्थि-रयणं भवेत्ताणं गोयमा छट्ठियं गओ॥ Translated Sutra: अब लक्ष्मणा देवी का जीव खंडोष्ठीपन में से स्त्रीरत्न होकर हे गौतम ! फिर उसका जीव छठ्ठी नारकी में जा पहुँचा। वहाँ नारकी का महाघोर काफी भयानक दुःख त्रिकोण नरकावास में दीर्घकाल तक भुगतकर यह आया हुआ उसका जीव तिर्यंच योनि में श्वान के रूप में पैदा हुआ। वहाँ काम का उन्माद हुआ। इसलिए मैथुन सेवन करने लगी। वहाँ बैल | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1227 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ य गोयम मनुयत्ते नारय-दुक्खानुसरिसिए।
अनेगे रन्न-ऽरन्नेणं घोरे दुक्खेऽनुभोत्तुं णं॥ Translated Sutra: हे गौतम ! उस मानव में भी नारकी के दुःख समान कईं रूलानेवाले घोर दुःख महसूस करके उस लक्ष्मणा देवी का जीव अति रौद्र ध्यान के दोष से मरकर सातवीं नारक पृथ्वी में खड़ाहड़ नाम के नरकावास में पैदा हुआ। वहाँ उस तरह के महादुःख का अहेसास करके तेंतीस सागरोपम की आयु पूर्ण करके वंध्या गाय के रूप में पैदा हुआ। पराये खेतर और आँगन | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1233 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं सो लक्खणज्जाए जीवो गोयमा चिरं।
घन-घोर-दुक्ख-संतत्तो, चउगइ-संसार-सागरे॥ Translated Sutra: उस प्रकार लक्ष्मणा साध्वी का जीव हे गौतम ! लम्बे अरसे तक कठिन घोर दुःख भुगतते हुए चार गति रूप संसार में नारकी तिर्यंच और कुमानवपन में भ्रमण करके फिर से यहाँ श्रेणीक राजा का जीव जो आनेवाली चौबीसी में पद्मनाभ के पहले तीर्थंकर होंगे उनके तीर्थ में कुब्जिका के रूप में पैदा होगा। शरीरसीबी की खाण समान गाँव में या | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1242 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एसा सा लक्खणदेवी, जा अगीयत्थ-दोसओ।
गोयम अणुकलुसचित्तेणं, पत्ता दुक्ख-परंपरं॥ Translated Sutra: हे गौतम ! यह वो लक्ष्मणा आर्या है कि जिसने अगीतार्थपन के दोष से अल्प कलुषता युक्त चित्त के दुःख की परम्परा पाई। | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1243 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहा णं गोयमा एसा लक्खण-देवज्जिया, तहा।
सकलुस-चित्ते अगीयत्थे ऽणंते पत्ते दुहावली॥ Translated Sutra: हे गौतम ! जिस प्रकार यह लक्ष्मणा आर्या ने दुःख परम्परा पाई उसके अनुसार कलुषित चित्तवाले अनन्त अगीतार्थ दुःख की परम्परा पाने के लिए यह समझकर सर्व भाव से सर्वथा गीतार्थ होना या अगीतार्थ के साथ उनकी आज्ञा में रहना और काफी शुद्ध सुनिर्मल विमल शल्य रहित निष्कलुष मनवाला होना, उस प्रकार भगवंत के पास से श्रवण किया | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1254 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं पुणो सोऊण मइविगलो बालयणो केसरिस्स व।
सद्दं गय-जुव तसिउं-नासे-दिसोदिसिं॥ Translated Sutra: ऐसी कठिन बाते सुनकर अल्प बुद्धिवाले बालजन उद्वेग पाए, कुछ लोगों का भरोसा उठ जाए, जैसे शेर की आवाज से हाथी इकट्ठे भाग जाते हैं वैसे बालजन कष्टकारी धर्म सुनकर दश दिशा में भाग जाते हैं। उस तरह का कठिन संचय दुष्ट ईच्छावाला और बूरी आदतवाला सुकुमाल शरीरवाला सुनने की भी ईच्छा नहीं रखते। तो उस प्रकार व्यवहार करने | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1270 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे पुन खरहर-फुट्टसिरे एग-जम्म सुहेसिणो।
तेसिं दुल्ललियाणं पि सुट्ठु वि नो हियइच्छियं॥ Translated Sutra: और फिर जो मस्तक फूट जाए वैसी आवाज करनेवाले इस जन्म के सुख के अभिलाषी, दुर्लभ चीज की ईच्छा करनेवाले होने के बावजूद भी मनोवांछित चीज सरलता से नहीं पा सकते। हे गौतम ! केवल जितनी मधु की बूँद है उतना केवल सुख मरणांत कष्ट सहे तो भी नहीं पा सकते। उनका दुर्विदग्धपन – अज्ञान कितना माने ? या हे गौतम ! जिस तरह के मानव है वो | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1275 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अत्ताणं वि गोवेउं ढिणि-ढिणिंते य हिंडिउं।
नग्गुग्घाडे किलेसेणं, जा समज्जंति परिहणं॥ Translated Sutra: दूसरे न देखे इस तरह खुद को छिपाकर ढिणीं ढिणीं आवाज करके चले, नग्न खूले शरीरवाला क्लेश का अहेसास करते हुए चले जिससे पहनने के कपड़े न मिले, वो भी पुराने, फटे, छिद्रवाले महा मुश्किल से पाए हो वो फटे हुए ओढ़ने के वस्त्र आज सी लूँगा – कल सी लूँगा ऐसा करके वैसे ही फटे हुए कपड़े पहने और इस्तमाल करे। तो भी हे गौतम ! साफ प्रकट | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1281 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एरिसयं दुल्ललियत्तं, सुकुमालत्तं च गोयमा ।
धम्मारंभम्मि संपडइ, कम्मारंभे न संपडे॥ Translated Sutra: हे गौतम ! इस तरह के दुर्लभ चीज की अभिलाषा और सुकुमारपन धर्मारंभ के समय प्राप्त होती है। लेकिन कर्मारंभ में आकर विघ्न नहीं करते। क्योंकि किसी एक के मुँह में नीवाला है वहाँ तो दूसरे आकर उसके पास इख की गंड़ेरी धरते हैं। भूमि पर पाँव भी स्थापन नहीं करता। और लाखो स्त्रीयों के साथ क्रीड़ा करता है। ऐसे लोगों को भी दूसरे | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1289 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्व-बला थोभेणं खंडं खंडेण जुज्झिउं।
अह तं नरिदं निज्जिणइ, अह वा तेण पराजियए॥ Translated Sutra: शायद उस राजा से पराभव हो तो कईं प्रहार लगने से गलते – बहते लहू से खरड़ित शरीरवाला हाथी, घोड़े और आयुध से व्याप्त रणभूमि में नीचे मुखवाला नीचे गिर जाए। तो हे गौतम ! उस वक्त चाहे जैसा भी दुर्लभ चीज पाने की अभिलाषा, बूरी आदत और सुकुमालपन कहाँ चला गया ? जो केवल खुद के हाथ से अपना आधा हिस्सा धोकर कभी भी भूमि पर पाँव स्थापन | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1293 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ भन्ने धम्मं चेट्ठे, ता पडिभणइ न सक्किमो।
ता गोयम अहन्नानं पाव कम्माण पाणिणं॥ Translated Sutra: यदि उसे कहा जाए कि महानुभाव धर्म कर तो प्रत्युत्तर मिले कि मैं समर्थ नहीं हूँ। तो हे गौतम ! अधन्य निर्भागी, पापकर्म करनेवाला ऐसे प्राणी को धर्मस्थान में प्रवृत्ति करने की कभी भी बुद्धि नहीं होती। वो यह धर्म एक जन्म में हो वैसा सरल कहना जैसे खाते पीते हमें सर्व होगा, तो जो जिसकी ईच्छा रखते हैं वो उनकी अनुकूलता | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1298 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तित्थंकराण नो भूयं नो भवेज्जा उ गोयमा ।
मुसावायं न भासंते गोयमा तित्थंकरे॥ Translated Sutra: दूसरा तीर्थंकर भगवंत को भी राग, द्वेष, मोह, भय, स्वच्छंद व्यवहार भूतकाल में नहीं था, और भावि में होगा भी नहीं। हे गौतम ! तीर्थंकर भगवंत कभी भी मृषावाद नहीं बोलते। क्योंकि उन्हें प्रत्यक्ष केवलज्ञान है, पूरा जगत साक्षात् देखता है। भूत भावि, वर्तमान, पुण्य – पाप और तीन लोक में जो कुछ है वो सब उनको प्रकट है, शायद | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1305 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयवं नो एरिसं भणिमो-जह छंदं अणुवत्तयं।
मेयं तु पुच्छामो जो जं सक्के, स तं करे॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! हम ऐसा कहना नहीं चाहते कि अपनी मरजी से हम व्यवहार करते हैं। केवल इतना ही पूछते हैं कि जितना मुमकीन हो उतना वो कर सके। हे गौतम ! ऐसा करना युक्त नहीं है, वैसा पलभर भी मन से चिन्तवन करना हितावह नहीं है यदि ऐसा माने तो जानो कि उसके बल का वध किया गया है। सूत्र – १३०५, १३०६ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1307 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] घयऊरे खंडरब्बाए एक्को सक्केइ खाइउं।
अन्नो महु-मंस-मज्जाइ, अन्नो रमिऊण इत्थियं॥ Translated Sutra: एक मानव घी – खाण्ड की राबडी खाने के लिए समर्थ होता है। दूसरा माँस सहित मदिरा, तीसरा स्त्री के साथ खेलने के लिए शक्तिमान हो और चौथा वो भी न कर सके, दूसरा तर्क करने के पूर्व पक्ष की स्थापना करे यानि वादविवाद कर सके। दूसरा क्लेश करने के स्वभाववाला यह विवाद न कर सके। एक – दूसरे का किया हुआ देखा करे और दूसरा बकवास करे। | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1311 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एत्थ जम्मे नरो कोइ, कसिणुग्गं संजमं तवं।
जइ नो सक्कइ काउं जे तह वि सोग्गइ-पिवासिओ॥ Translated Sutra: किसी मानव इस जन्म में समग्र उग्र संयम तप करने के लिए समर्थ न हो सके तो भी सद्गति पाने की अभिलाषावाला है। पंछी के दूध का, एक केश ऊखेड़ने का, रजोहरण की एक दशी धारण करना, वैसे नियम धारण करना, लेकिन इतने नियम भी जावज्जीव तक पालन के लिए समर्थ नहीं, तो हे गौतम ! उस के लिए तुम्हारी बुद्धि से सिद्धि का क्षेत्र इस के अलावा | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1318 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं पुन गोयम ते भणियं-परिवाडिए कीरइ।
अत्थक्के-हुडि-दुद्धेणं कज्जं तं कत्थ लब्भए॥ Translated Sutra: हे गौतम ! आगे तुने जो कहा है कि परिपाटी क्रम के अनुसार बताए अनुष्ठान करने चाहिए। हे गौतम ! दृष्टांत सुन ! बड़े समुद्र के भीतर दूसरे कईं मगरमच्छ आदि के टकराने की वजह से भयभीत कछुआ जल में बुड़ाबुड़ करते, किसी दूसरे ताकतवर जन्तु से काटते हुए, डँसते हुए, ऊपर फेंकते हुए, धक्के खाते हुए, नीगलते हुए, त्रस होते हुए छिपते, दौड़ते, | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1334 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पावो पमाय-वसओ जीवो संसार-कज्जमुज्जुत्तो।
दुक्खेहिं न निव्विन्नो सोक्खेहिं न गोयमा तिप्पे॥ Translated Sutra: प्रमादित हुए यह पापी जीव संसार के कार्य करने में अप्रमत्त होकर उद्यम करते हैं, उसे दुःख होने के बाद भी वो ऊंब नहीं जाता और हे गौतम ! उसे सुख से भी तृप्ति नहीं होती। | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1342 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पत्ते य काम-भोगे कालं अनंतं इहं सउवभोगे।
अपुव्वं चिय मन्नए जीवो तह वि य विसय-सोक्खं॥ Translated Sutra: इस जीव ने अनन्तकाल तक हर – एक कामभोग यहाँ भुगते हैं। फिर भी हरएक वक्त विषय सुख अपूर्ण लगते हैं। लू – खस, खुजली के दर्दवाला शरीर को खुजलाते हुए दुःख को सुख मानता है वैसे मोह में बेचैन मानव काम के दुःख का सुख रूप मानते हैं। जन्म, जरा, मरण से होनेवाले दुःख को पहचानते हैं, अहेसास करते हैं। वो भी हे गौतम ! दुर्गति में | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1350 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाव आउ सावसेसं, जाव य थेवो वि अत्थि ववसाओ।
ताव करे अप्प-हियं, मा तप्पिहहा पुणो पच्छा॥ Translated Sutra: तब तक आयु थोड़ा सा भी भुगतना बाकी है, जब तक अभी अल्प भी व्यवसाय कर सकते हो, तब तक में आत्महित की साधना कर लो। वरना पीछे से पश्चात्ताप करने का अवसर प्राप्त होगा। इन्द्रधनुष, बिजली देखते ही पल में अदृश्य हो वैसे संध्या के व्याधि और सपने समान यह देह है जो कच्चे मिट्टी के घड़े में भरे जल की तरह पलभर में पीगल जाता है। इतना | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1355 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न य संसारम्मि सुहं जाइ-जरा-मरण-दुक्ख-गहियस्स।
जीवस्स अत्थि जम्हा, तम्हा मोक्खो उवाए उ। Translated Sutra: जन्म, जरा और मरण के दुःख से घिरे इस जीव को संसार में सुख नहीं है, इसलिए मोक्ष ही एकान्त उपदेश – ग्रहण करने के लायक है। हे गौतम ! सर्व तरह से और सर्व भाव से मोक्ष पाने के लिए मिला हुआ मानव भव सार्थक करना। सूत्र – १३५५, १३५६ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1357 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयवं ता एय नाएणं जं भणियं आसि मे, तुमं।
जहा परिवाडिए तच्चं किं न अक्खसि पायच्छित्तं तत्थमज्झवी॥ Translated Sutra: हे भगवंत ! इस दृष्टांत से पहले आपने कहा था कि परिपाटी क्रम अनुसार (वो) प्रायश्चित्त आप मुझे क्यों नहीं कहते ? हे गौतम ! यदि तुम उसका अवलंबन करोगे तो प्रायश्चित्त वाकई तुम्हारी जो प्रकट धर्म सोच है वो और सुंदर सोच माना जाता है। फिर गौतम ने पूछा तब भगवंत ने कहा कि – जब तक देह में – आत्मा में संदेह हो तब तक मिथ्यात्व | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1362 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे पव्वज्जिय जहा तहा।
अविहीए तह चरे धम्मं जह संसारा न मुच्चए॥ Translated Sutra: हे गौतम ! ऐसे जीव भी होते हैं कि जो जैसे तैसे प्रव्रज्या अंगीकार कर के वैसी अविधि से धर्म का सेवन करते हैं कि जिससे संसार से मुक्त न हो सके। उस विधि के श्लोक कौन – से हैं ? हे गौतम ! वो विधि श्लोक इस प्रकार जानना। सूत्र – १३६२, १३६३ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1369 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं चिर-चिंतियाभिमुह-मणोरहोरु संपत्ति-हरिस-समुल्लसिओ।
भत्ति-भर-निब्भरोणय-रोमंच-उक्कंच-पुलय-अंगो॥ Translated Sutra: इस अनुसार बड़े अरसे से चिन्तवे हुए मनोरथ के सन्मुख होनेवाला उस रूप महासंपत्ति के हर्ष से उल्लासित होनेवाले, भक्ति के अनुग्रह से निर्भर होकर नमस्कार करके, रोमांच खड़ा होने से रोम – रोम व्याप्त आनन्द अंगवाला, १८ हजार शिलांग धारण करने के लिए उत्साहपूर्वक ऊंचे किए गए खंभेवाला, छत्तीस तरह के आचार पालन करने के लिए | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1374 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो चंदनेन बाहुं आलिंपइ वासिणा व जो तच्छे।
संथुणइ जो अ निंदइ सम-भावो हुज्ज दुण्हं पि॥ Translated Sutra: जो कोइ बावन चंदन के रस से शरीर और और बाहूँ पर विलेपन करे, या किसी बाँस से शरीर छिले, कोई उसके गुण की स्तुति करे या अवगुण की नींदा करे तो दोनो पर समान भाव रखनेवाला उस प्रकार बल, वीर्य, पुरुषार्थ पराक्रम को न छिपाते हुए, तृण और मणि, ढ़ेफा और कंचन की ओर समान मनवाला, व्रत, नियम, ज्ञान, चारित्र, तप आदि समग्र भुवन में अद्वितीय, | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1376 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कइविहं पायच्छित्तं उवइट्ठं गोयमा दसविहं पायच्छित्तं उवइट्ठं, तं च अनेगहा जाव णं पारंचिए। Translated Sutra: हे भगवंत ! कितने प्रकार के प्रायश्चित्त उपदिष्ट हैं ? हे गौतम ! दश प्रकार के प्रायश्चित्त उपदिष्ट हैं, वे पारंचित तक में कईं प्रकार का है। हे भगवंत ! कितने समय तक इस प्रायश्चित्त सूत्र के अनुष्ठान का वहन होगा ? हे गौतम ! कल्की नाम का राजा मर जाएगा। एक जिनालय से शोभित पृथ्वी होगी और श्रीप्रभ नाम का अणगार होगा तब तक | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1378 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केवइयाइं पायच्छित्तस्स णं पयाइं गोयमा संखाइयाइं पायच्छित्तस्स णं पयाइं।
से भयवं तेसिं णं संखाइयाणं पायच्छित्तस्स पयाणं किं तं पढणं पायच्छित्तस्स णं पयं गोयमा पइदिन-किरियं। से भयवं किं तं पइदिण-किरियं गोयमा जं नुसमयं अहन्निसा-पाणोवरमं जाव अणुट्ठेयव्वाणि संखेज्जाणि आवस्सगाणि।
से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं–आवस्सगाणि गोयमा असेस कसिणट्ठ कम्म- क्खयकारि उत्तम सम्म दंसण नाण चारित्त अच्चंत घोर वीरुग्ग कट्ठ सुदुक्कर तव साहणट्ठाए परुविज्जंति नियमिय विभत्तुद्दिट्ठ परिमिएणं काल समएणं पयंपएण अहन्निस नुसमयं आजम्मं अवस्सं एव तित्थयराइसु कीरंति Translated Sutra: हे भगवंत ! प्रायश्चित्त के कितने स्थान हैं ? हे गौतम ! प्रायश्चित्त के स्थान संख्यातीत बताए हैं। हे भगवंत! वो संख्यातीत प्रायश्चित्त स्थान में से प्रथम प्रायश्चित्त का पद कौन – सा है ? हे गौतम ! प्रतिदिन क्रिया सम्बन्धी जानना। हे भगवंत ! वो प्रतिदिन क्रिया कौन – सी कहलाती है ? हे गौतम ! जो बार – बार रात – दिन प्राण |