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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-३ क्रिया | Hindi | 182 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पमत्तसंजयस्स णं भंते! पमत्तसंजमे वट्टमाणस्स सव्वा वि य णं पमत्तद्धा कालओ केवच्चिरं होइ?
मंडिअपुत्ता! एगं जीवं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। नानाजीवे पडुच्च सव्वद्धा।
अप्पमत्तसंजयस्स णं भंते! अप्पमत्तसंजमे वट्टमाणस्स सव्वा वि य णं अप्पमत्तद्धा कालओ केवच्चिरं होइ?
मंडिअपुत्ता! एगं जीवं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी नाणाजीवे पडुच्च सव्वद्धं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं मंडिअपुत्ते अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। Translated Sutra: भगवन् ! प्रमत्त – संयम में प्रवर्तमान प्रमत्तसंयत का सब मिलाकर प्रमत्तसंयमकाल कितना होता है ? मण्डितपुत्र ! एक जीव की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि – होता है। अनेक जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होता है। भगवन् ! अप्रमत्तसंयम में प्रवर्तमान अप्रमत्तसंयम का सब मिलाकर अप्रमत्तसंयमकाल कितना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-३ क्रिया | Hindi | 183 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगे वड्ढइ वा? हायइ वा?
लवणसमुद्दवत्तव्वया नेयव्वा जाव लोयट्ठिई, लोयाणुभावे।
सेवं भंते! सेवं भंते? त्ति जाव विहरति। Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन् ! लवणसमुद्र; चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पूर्णमासी; इन चार तिथियों में क्यों अधिक बढ़ता या घटता है ? हे गौतम ! जीवाभिगमसूत्र में लवणसमुद्र के सम्बन्ध में जैसा कहा है, वैसा यावत् ‘लोकस्थिति’ से ‘लोकानुभाव’ शब्द तक कहना चाहिए। ‘हे | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-४ यान | Hindi | 184 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा देवं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जामाणं जाणइ-पासइ?
गोयमा! १. अत्थेगइए देवं पासइ, नो जाणं पासइ। २. अत्थेगइए जाणं पासइ, नो देवं पासइ। ३. अत्थेगइए देवं पि पासइ, जाणं पि पासइ। ४. अत्थेगइए नो देवं पासइ, नो जाणं पासइ।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा देविं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जामाणिं जाणइ-पासइ?
गोयमा! १. अत्थेगइए देविं पासइ, नो जाणं पासइ। २. अत्थेगइए जाणं पासइ, नो देविं पासइ। ३. अत्थेगइए देविं पि पासइ, जाणं पि पासइ। ४. अत्थेगइए नो देविं पासइ, नो जाणं पासइ।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा देवं सदेवीअं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं Translated Sutra: भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से समवहत हुए और यानरूप से जाते हुए देव को जानता देखता है ? गौतम ! (१) कोई (भावितात्मा अनगार) देव को तो देखता है, किन्तु यान को नहीं देखता; (२) कोई यान को देखता है, किन्तु देव को नहीं देखता; (३) कोई देव को भी देखता है और यान को भी देखता है; (४) कोई न देव को देखता है और न यान को | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-४ यान | Hindi | 185 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! वाउकाए एगं महं इत्थिरूवं वा पुरिसरूवं वा [आसरूवं वा?] हत्थिरूवं वा जाणरूवं वा जुग्गरूवं वा गिल्लिरूवं वा थिल्लिरूवं वा सीयरूवं वा संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। वाउकाए णं विकुव्वमाणे एगं महं पडागासंठियं रूवं विकुव्वइ।
पभू णं भंते! वाउकाए एगं महं पडागासंठियं रूवं विउव्वित्ता अनेगाइं जोयणाइं गमित्तए? हंता पभू।
से भंते! किं आइड्ढीए गच्छइ? परिड्ढीए गच्छइ?
गोयमा! आइड्ढीए गच्छइ, नो परिड्ढीए गच्छइ।
से भंते! किं आयकम्मुणा गच्छइ? परकम्मुणा गच्छइ?
गोयमा! आयकम्मुणा गच्छइ, नो परकम्मुणा गच्छइ।
से भंते! किं आयप्पयोगेण गच्छइ? परप्पयोगेण गच्छइ?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! क्या वायुकाय एक बड़ा स्त्रीरूप, पुरुषरूप, हस्तिरूप, यानरूप, तथा युग्य, गिल्ली, थिल्ली, शिविका, स्यन्दमानिका, इन सबके रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। किन्तु वायुकाय एक बड़ी पताका के आकार के रूप की विकुर्वणा कर सकता है। भगवन् ! क्या वायुकाय एक बड़ी पताका के आकार की विकुर्वणा करके | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-४ यान | Hindi | 186 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा परिणामेत्तए?
हंता पभू।
पभू णं भंते! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेत्ता अनेगाइं जोयणाइं गतित्तए।
हंता पभू।
से भंते! किं आइड्ढीए गच्छइ? परिड्ढीए गच्छइ?
गोयमा! नो आइड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ।
से भंते! किं आयकम्मुणा गच्छइ? परकम्मुणा गच्छइ?
गोयमा! नो आयकम्मुणा गच्छइ, परकम्मुणा गच्छइ।
से भंते! किं आयप्पयोगेणं गच्छइ? परप्पयोगेणं गच्छइ?
गोयमा! नो आयप्पयोगेणं गच्छइ, परप्पयोगेणं गच्छइ।
से भंते! किं ऊसिओदयं गच्छइ? पतोदयं गच्छइ?
गोयमा! ऊसिओदयं पि गच्छइ, पतोदयं पि गच्छइ।
से भंते! किं बलाहए? इत्थी?
गोयमा! बलाहए णं से, Translated Sutra: भगवन् ! क्या बलाहक (मेघ) एक बड़ा स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका (म्याने) रूप में परिणत होने में समर्थ है? हाँ, गौतम ! समर्थ है। भगवन् ! क्या बलाहक एक बड़े स्त्रीरूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जाने में समर्थ है? हाँ, गौतम ! समर्थ है। भगवन् ! क्या वह बलाहक आत्मऋद्धि से गति करता है या परऋद्धि से ? गौतम ! वह आत्मऋद्धि से | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-४ यान | Hindi | 187 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उववज्जइ?
गोयमा! जल्लेस्साइं दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ, तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा–कण्हलेस्सेसु वा, नीललेस्सेसु वा, काउलेस्सेसु वा। एवं जस्स वा लेस्सा वा तस्स भाणियव्वा। जाव–
जीवे णं भंते! जे भविए जोइसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उववज्जइ?
गोयमा! जल्लेसाइं दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा–तेउलेस्सेसु।
जीवे णं भंते! जे भविए वेमाणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उववज्जइ?
गोयमा! जल्लेस्साइं दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा–तेउलेस्सेसु Translated Sutra: भगवन् ! जो जीव, नैरयिकों में उत्पन्न होने वाला है, वह कौन – सी लेश्या वालों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जीव जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके काल करता है, उसी लेश्या वाले नारकों में उत्पन्न होता है। यथा – कृष्णलेश्या वालों में, नीललेश्या वालों में, अथवा कापोतलेश्या वालों में। इस प्रकार जो जिसकी लेश्या हो, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-४ यान | Hindi | 188 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू वेभारं पव्वयं उल्लंघेत्तए वा? पल्लंघेत्तए वा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू वेभारं पव्वयं उल्लंघेत्तए वा? पल्लंघेत्तए वा?
हंता पभू।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता जावइयाइं रायगिहे नगरे रूवाइ, एवइयाइं विकुव्वित्ता वेभारं पव्वयं अंतो अनुप्पविसित्ता पभू समं वा विसमं करेत्तए? विसमं वा समं करेत्तए?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता जावइयाइं रायगिहे नगरे रूवाइं, एवइयाइं विकुव्वित्ता वेभारं Translated Sutra: भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किए बिना वैभारगिरि को उल्लंघ सकता है, अथवा प्रलंघ सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! भावितात्मा अनगार बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके क्या वैभारगिरि को उल्लंघन या प्रलंघन करने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ है। भगवन् ! भावितात्मा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-५ स्त्री | Hindi | 189 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए?
नो इणट्ठे समट्ठे।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए?
हंता पभू।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइआइं पभू इत्थिरूवाइं विउव्वित्तए?
गोयमा! से जहानामए–जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणवारे वि भाविअप्पा वेउव्वियससमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थि-रूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं Translated Sutra: भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किए बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत् स्यन्द – मानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके क्या एक बड़े स्त्रीरूप की यावत् स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-६ नगर | Hindi | 191 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरिं समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ।
से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेसं दंसण-विवच्चासे भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
अनगारे णं भंते! भावियप्पा Translated Sutra: भगवन् ! राजगृह नगर में रहा हुआ मिथ्यादृष्टि और मायी भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञानलब्धि से वाराणसी नगरी की विकुर्वणा करके क्या तद्गत रूपों को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह जानता और देखता है। भगवन् ! क्या वह (उन रूपों को) यथार्थरूप से जानता – देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-६ नगर | Hindi | 192 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहं नगरं समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ।
से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेस दंसण-अविवच्चासे भवति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ।
अनगारे णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधिज्ञानलब्धि से, राजगृहनगर और वाराणसी नगरी के बीच में एक बड़े जनपदवर्ग को जानता – देखता है ? हाँ (गौतम ! उस जनपदवर्ग को) जानता – देखता है। भगवन् ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा अन्यथाभाव से ? गौतम! वह उस जनपदवर्ग | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-६ नगर | Hindi | 193 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररन्नो कइ आयरक्खदेवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! चत्तारि चउसट्ठीओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ। ते णं आयरक्खा–वण्णओ।
एवं सव्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा ते भाणियव्वा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 194 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति लोगपाला पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे जमे वरुणे वेसमणे।
एएसि णं भंते! चउण्हं लोगपालाणं कति विमाना पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा– संज्झप्पभे वरसिट्ठे सयंजले वग्गू।
कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो संज्झप्पभे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने (पूछा – ) भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के कितने लोकपाल कहे गए हैं ? गौतम ! चार। सोम, यम, वरुण और वैश्रमण। भगवन् ! इन चारों लोकपालों के कितने विमान हैं ? गौतम ! चार। सन्ध्याप्रभ, वरशिष्ट, स्वयंज्वल और वल्गु। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम नामक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 195 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयण-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते–अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं–जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहानी तहेव जाव पासायपंतीओ।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो इमे देवा आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–जमकाइया इ वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेतकाइया इ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयपाला, Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल – यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ है ? गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्य हजार योजन आगे चलने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान बताया गया है, जो साढ़े बारह लाख योजन लम्बा – चौड़ा है, इत्यादि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 196 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अंबे अंबरिसे चेव, सामे सबले त्ति यावरे ।
रुद्दोवरुद्दे काले य, महाकाले त्ति यावरे ॥ Translated Sutra: ‘अम्ब, अम्बरिष, श्याम, शबल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल। तथा – असिपत्र, धनुष, कुम्भ, वालू, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष ये पन्द्रह विख्यात हैं। सूत्र – १९६, १९७ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 197 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असिपत्ते धनू कुंभे, वालुए वेतरणी त्ति य ।
खरस्सरे महाघोसे, एते पन्नरसाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९६ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 198 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो सतिभागं पलिअ ठिई पन्नत्ता, अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। एमहिड्ढीए जाव महानुभागे जमे महाराया। Translated Sutra: देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल – यम महाराज की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की है और उसके अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम है। ऐसी महाऋद्धि वाला यावत् यममहाराज है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 199 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो सयंजले नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स पच्चत्थिमे णं जहा सोमस्स तहा विमान-रायधानीओ भाणियव्वा जाव पासादवडेंसया, नवरं–नामनाणत्तं।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो इमे देवा आणाउववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वरुणकाइया इ वा, वरुणदेवयकाइया इ वा, नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहि-कुमारा, उदहिकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया, तप्पक्खिया, तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल – वरुण महाराज का स्वयंज्वल नामक महाविमान कहाँ है? गौतम ! उस सौधर्मावतंसक महाविमान से पश्चिम में सौधर्मकल्प से असंख्येय हजार योजन पार करने के बाद, स्वयंज्वल नाम का महाविमान आता है; इसका सारा वर्णन सोममहाराज के महाविमान की तरह जान लेना, राजधानी यावत् प्रासादावतंसकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 200 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो वग्गू नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स उत्तरे णं जहा सोमस्स विमान-रायहाणि-वत्तव्वया तहा नेयव्वा जाव पासादवडेंसया।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो इमे देवा आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वेसमणकाइया इ वा, वेसमणदेवयकाइया इ वा, सुवण्णकुमारा, सुवण्णकुमारीओ, दीवकुमारा, दीवकुमारीओ, दिसाकुमारा, दिसाकुमारीओ, वाणमंतरा, वाणमंतरीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तप्पक्खिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के (चतुर्थ) लोकपाल – वैश्रमण महाराज का वल्गु नामक महाविमान कहाँ है? गौतम ! सौधर्मावतंसक नामक महाविमान के उत्तरमें है। इस सम्बन्ध में सारा वर्णन सोम महाराज के महा – विमान की तरह जानना चाहिए; और वह यावत् राजधानी यावत् प्रासादावतंसक तक का वर्णन भी उसी तरह जान लेना चाहिए देवेन्द्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-८ देवाधिपति | Hindi | 201 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–असुरकुमाराणं भंते! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति?
गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–चमरे असुरिंदे असुरराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे, बली वइरोयणिंदे वइरोयणराया, सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
नागकुमाराणं भंते! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति?
गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–धरणे णं नागकुमारिंदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, सेलवाले, संखवाले, भूयानंदे नागकुमारिंदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, संखवाले, सेलवाले।
जहा नागकुमारिंदाणं एताए वत्तव्वयाए नीयं एवं इमाणं नेयव्वं –
सुवण्णकुमाराणं – Translated Sutra: राजगृह नगर में, यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा – ‘भगवन् ! असुरकुमार देवों पर कितने देव आधिपत्य करते रहते हैं ?’ गौतम ! असुरकुमार देवों पर दस देव आधिपत्य करते हुए यावत् रहते हैं। असुरेन्द्र असुरराज चमर, सोम, यम, वरुण, वैश्रमण तथा वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-८ देवाधिपति | Hindi | 202 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] काले य महाकाले, सुरूव-पडिरूव-पुण्णभद्दे य ।
अमरवई माणिभद्दे, भीमे य तहा महाभीमे ॥ Translated Sutra: (१) काल और महाकाल, (२) सुरूप और प्रतिरूप, (३) पूर्णभद्र और मणिभद्र, (४) भीम और महाभीम। तथा – (५) किन्नर और किम्पुरुष, (६) सत्पुरुष और महापुरुष, (७) अतिकाय और महाकाय, तथा (८) गीतरति और गीतयश। ये सब वाणव्यन्तर देवों के अधिपति – इन्द्र हैं। सूत्र – २०२, २०३ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-८ देवाधिपति | Hindi | 203 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] किन्नर-किंपुरिसे खलु, सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे ।
अइकाय-महाकाए, गीयरई चेव गीयजसे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०२ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-८ देवाधिपति | Hindi | 204 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एते वाणमंतराणं देवाणं।
जोइसियाणं देवाणं दो देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–चंदे य, सूरे य।
सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति?
गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–सक्के देविंदे देवराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। ईसाने देविंदे देव-राया, सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
एसा वत्तव्वया सव्वेसु वि कप्पेसु एए चेव भाणियव्वा। जे य इंदा ते य भाणियव्वा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: ज्योतिष्क देवों पर आधिपत्य करते हुए दो देव यावत् विचरण करते हैं। यथा – चन्द्र और सूर्य। भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में आधिपत्य करते हुए कितने देव विचरण करते हैं ? गौतम ! उन पर आधिपत्य करते हुए यावत् दस देव विचरण करते हैं। यथा – देवेन्द्र देवराज शक्र, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण, देवेन्द्र देवराज ईशान, सोम, यम, वरुण | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-९ ईन्द्रिय | Hindi | 205 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कइविहे णं भंते! इंदियविसए पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे इंदियविसए पन्नत्ते, तं जहा–सोतिंदियविसए चक्खिंदियविसए घाणिंदिय-विसए रसिंदियविसए फासिंदियविसए। जीवाभिगमे जोइसियउद्देसओ नेयव्वो अपरिसेसो। Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् श्रीगौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन् ! इन्द्रियों के विषय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! इन्द्रियों के विषय पाँच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – श्रोत्रेन्द्रिय – विषय इत्यादि। इस सम्बन्ध में जीवाभिगमसूत्र में कहा हुआ ज्योतिष्क उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१० परिषद् | Hindi | 206 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररन्नो कइ पारिसाओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिया, चंडा, जाया। एवं जहाणुपुव्वीए जाव अच्चुओ कप्पो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् श्री गौतम ने इस प्रकार पूछा – भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएं कही गई हैं ? हे गौतम ! उसकी तीन परिषदाएं कही गई हैं। यथा – शमिता, चण्डा और जाता। इसी प्रकार क्रमपूर्वक यावत् अच्युतकल्प तक कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४ |
उद्देशक-१ थी ८ लोकपाल विमान अने राजधानी | Hindi | 208 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–ईसानस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कइ लोगपाला पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
एएसि णं भंते! लोगपालाणं कइ विमाना पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा–सुमणे, सव्वओभद्दे, वग्गू, सुवग्गू।
कहि णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो सुमणे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाने नामं कप्पे पन्नत्ते।
तत्थ णं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं जहा– अंकवडेंसए, फलिहवडेंसए, रयणवडेंसए, जायरूव-वडेंसए, मज्झे ईसानवडेंसए।
तस्स Translated Sutra: राजगृह नगर में, यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा – भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के कितने लोकपाल कहे गए हैं ? हे गौतम ! उसके चार लोकपाल कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – सोम, यम, वैश्रमण और वरुण। भगवन् ! इन लोकपालों के कितने विमान कहे गए हैं ? गौतम ! इनके चार विमान हैं; वे इस प्रकार हैं – सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सुवल्गु। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४ |
उद्देशक-१ थी ८ लोकपाल विमान अने राजधानी | Hindi | 210 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायहानीसु वि चत्तारि उद्देसा भाणियव्वा जाव एमहिड्ढीए जाव वरुणे महाराया। Translated Sutra: चारों लोकपालों की राजधानीयोंके चार उद्देशक कहने चाहिए यावत् वरुण महाराज इतनी महाऋद्धि वाले हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४ |
उद्देशक-९ नैरयिक | Hindi | 211 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जइ? अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ?
ए लेस्सापए तइओ उद्देसओ भाणियव्वो जाव नाणाइं। Translated Sutra: भगवन् ! जो नैरयिक है, क्या वह नैरयिकों में उत्पन्न होता है, या जो अनैरयिक है, वह नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? (हे गौतम !) प्रज्ञापनासूत्र में कथित लेश्यापद का तृतीय उद्देशक यहाँ कहना चाहिए, और वह यावत् ज्ञानों के वर्णन तक कहना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४ |
उद्देशक-१० लेश्या | Hindi | 212 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए, तावण्णत्ताए, तागंधत्ताए, तारसत्ताए, ताफासत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमति?
हंता गोयमा! कण्हलेसा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए, तावण्णत्ताए, तागंधत्ताए, तारसत्ताए, ताफास-त्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमति। एवं चउत्थो उद्देसओ पन्नवणाए चेव लेस्सापदे नेयव्वो जाव– Translated Sutra: भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या का संयोग पाकर तद्रुप और तद्वर्ण में परिणत हो जाती है ? (हे गौतम !) प्रज्ञापनासूत्र में उक्त लेश्यापद का चतुर्थ उद्देशक यहाँ कहना चाहिए, और वह यावत् परिणाम इत्यादि द्वार – गाथा तक कहना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४ |
उद्देशक-१० लेश्या | Hindi | 214 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 216 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं चंपाए नगरीए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–वण्णओ। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं जाव एवं वयासी– जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिण-मागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीण-मागच्छंति, दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीण-मागच्छंति, पडीण-उदीण-मुग्गच्छ उदीचि-पाईणमागच्छंति?
हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ जाव उदीचि-पाईणमागच्छंति।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। उस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र नामका चैत्य था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे यावत् परिषद् धर्मोपदेश सूनने के लिए गई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति अनगार थे, यावत् उन्होंने पूछा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 217 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि दिवसे भवइ; जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ?
हंता गोयमा! जया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे जाव उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे उवकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ; जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं जहन्निया Translated Sutra: भगवन् ! जब जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत से पूर्व – पश्चिम में जघन्य बारह मुहूर्त्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 218 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ?
हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स Translated Sutra: भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर – पर्वत से पूर्व में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पुरस्कृत समय में होता है ? हाँ, गौतम ! यह इसी तरह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 219 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो।
जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति।
एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ Translated Sutra: भगवन् ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर क्या अग्निकोण में जाते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम! जम्बूद्वीप में सूर्यों के समान यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहना। विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना। भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, इत्यादि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-२ वायु | Hindi | 220 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति?
हंता अत्थि।
अत्थि णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति?
हंता अत्थि।
एवं पच्चत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तर-पुरत्थिमे णं, दाहिणपच्चत्थिमे णं, दाहिण-पुरत्थिमे णं उत्तर-पच्चत्थिमेणं।
जया णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पच्चत्थिमे ण वि ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति; जया णं पच्चत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पुरत्थिमे ण वि?
हंता Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् (श्री गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा – भगवन् ! क्या ईषत्पुरोवात (ओस आदि से कुछ स्निग्ध, या गीली हवा), पथ्यवात (वनस्पति आदि के लिए हितकर वायु), मन्दवात (धीमे – धीमे चलने वाली हवा), तथा महावात, प्रचण्ड तूफानी वायु बहती है ? हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त वायु (हवाएं) बहती हैं। भगवन् ! पूर्व दिशा से ईषत्पुरोवात, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-२ वायु | Hindi | 221 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह णं भंते! ओदणे, कुम्मासे, सुरा–एए णं किंसरीरा ति वत्तव्वं सिया?
गोयमा! ओदने, कुम्मासे, सुराए य जे घणे दव्वे– एए णं पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च वणस्सइ जीव-सरीरा। तओ पच्छा सत्थातीया, सत्थपरिणामिया, अगनिज्झामिया, अगनिज्झूसिया, अगनि-परिणामिया अगनिजीवसरीरा ति वत्तव्वं सिया।
सुराए य जे दवे दव्वे– एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च आउजीवसरीरा। तओ पच्छा सत्थातीया जाव अगनिजीवसरीरा ति वत्तव्वं सिया।
अह णं भंते! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसट्टिया– एए णं किंसरीरा ति वत्तव्वं सिया?
गोयमा! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसट्टिया– एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च पुढवी-जीवसरीरा। तओ पच्छा सत्थातीया Translated Sutra: भगवन् ! अब यह बताएं कि ओदन, उड़द और सुरा, इन तीनों द्रव्यों को किन जीवों का शरीर कहना चाहिए? गौतम ! ओदन, कुल्माष और सुरा में जो घन द्रव्य हैं, वे पूर्वभाव – प्रज्ञापना की अपेक्षा से वनस्पतिजीव के शरीर हैं। उसके पश्चात् जब वे (ओदनादि द्रव्य) शस्त्रातीत हो जाते हैं, शस्त्रपरिणत हो जाते हैं; आग से जलाये अग्नि से सेवित | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-२ वायु | Hindi | 222 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते?
एयं नेयव्वं जाव लोगट्ठिई, लोगाणुभावे।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! लवणसमुद्र का चक्रवाल – विष्कम्भ कितना कहा गया है ? गौतम ! (लवणसमुद्र के सम्बन्ध में सारा वर्णन) पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए, यावत् लोकस्थिति लोकानुभाव तक कहना चाहिए। हे भगवन्! यह इसी प्रकार है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-३ जालग्रंथिका | Hindi | 223 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति भासंति पन्नवेंति परूवेंति–से जहानामए जालगंठिया सिया–आनुपुव्विगढिया अनंतरगढिया परंपरगढिया अन्नमन्नगढिया, अन्नमन्नगरुयत्ताए अन्नमन्नभारियत्ताए अन्नमन्नगरुय संभारियत्ताए अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठइ, एवामेव बहूणं जीवाणं बहूसु आजातिसहस्सेसु बहूइं आउयसहस्साइं आनुपुव्विगढियाइं जाव चिट्ठंति।
एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पडिसंवेदेइ, तं जहा –इहभवियाउयं च,
परभवियाउयं च।
जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ।
जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ ।
इहभवियाउयस्स पडिसंवेदणयाए Translated Sutra: भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई (एक) जालग्रन्थि हो, जिसमें क्रम से गाँठें दी हुई हों, एक के बाद दूसरी अन्तररहित गाँठें लगाई हुई हों, परम्परा से गूँथी हुईं हों, परस्पर गूँथी हुई हों, ऐसी वह जालग्रन्थि परस्पर विस्तार रूप से, परस्पर भाररूप से तथा परस्पर विस्तार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-३ जालग्रंथिका | Hindi | 224 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं साउए संकमइ? निराउए संकमइ?
गोयमा! साउए संकमइ, नो निराउए संकमइ।
से णं भंते! आउए कहिं कडे? कहिं समाइण्णे?
गोयमा! पुरिमे भवे कडे, पुरिमे भवे समाइण्णे।
एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ।
से नूनं भंते! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा–नेरइयाउयं वा?
तिरिक्खजोणियाउयं वा? मनुस्साउयं वा? देवाउयं वा?
हंता गोयमा! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा–नेरइयाउयं वा, तिरिक्खजोणियाउयं वा, मनुस्साउयं वा, देवाउयं वा। नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा, सक्करप्पभापुढविनेरइयाउयं Translated Sutra: भगवन् ! जो जीव नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, क्या वह जीव यहीं से आयुष्य – युक्त होकर नरक में जाता है, अथवा आयुष्य रहित होकर जाता है ? गौतम ! वह यहीं से आयुष्ययुक्त होकर नरक में जाता है, परन्तु आयुष्यरहित होकर नरक में नहीं जाता। हे भगवन् ! उस जीव ने वह आयुष्य कहाँ बाँधा ? और उस आयुष्य – सम्बन्धी आचरण कहाँ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 225 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से आउडिज्जमाणाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा–संखसद्दाणि वा, सिंगसद्दाणि वा, संखियस-द्दाणि वा, खरमुहीसद्दाणि वा, पोयासद्दाणि वा, पिरिपिरियासद्दाणि वा, पणवसद्दाणि वा, पडहसद्दाणि वा, भंभासद्दाणि वा, होरं-भसद्दाणि वा, भेरिसद्दाणि वा, ज्झल्लरीसद्दाणि वा, दुंदुभिसद्दाणि वा, तताणि वा, वितताणि वा, धणाणि वा, ज्झुसिराणि वा?
हंता गोयमा! छउमत्थे णं मनुस्से आउडिज्जमाणाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा–संखसद्दाणि वा जाव ज्झुसिराणि वा।
ताइं भंते! किं पुट्ठाइं सुणेइ? अपुट्ठाइं सुणेइ?
गोयमा! पुट्ठाइं सुणेइ, नो अपुट्ठाइं सुणेइ।
जाइ भंते! पुट्ठाइं सुणेइ ताइं किं ओगाढाइं Translated Sutra: भगवन् ! छद्मस्थ मनुष्य क्या बजाये जाते हुए वाद्यों (के) शब्दों को सूनता है ? यथा – शंख के शब्द, रणसींगे के शब्द, शंखिका के शब्द, खरमुही के शब्द, पोता के शब्द, परिपीरिता के शब्द, पणव के शब्द, पटह के शब्द, भंभा के शब्द, झल्लरी के शब्द, दुन्दुभि के शब्द, तत शब्द, विततशब्द, घनशब्द, शुषिरशब्द, इत्यादि बाजों के शब्दों को। हाँ, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 226 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा?
हंता हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा।
जहा णं भंते! छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, तहा णं केवली वि हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा?
गोयमा! जं णं जीवा चरित्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हसंति वा, उस्सुयायंति वा। से णं केवलिस्स नत्थि। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा।
जीवे णं भंते! हसमाणे Translated Sutra: भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य हँसता है तथा उत्सुक (उतावला) होता है ? गौतम ! हाँ, छद्मस्थ मनुष्य हँसता तथा उत्सुक होता है। भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य हँसता है तथा उत्सुक होता है, वैसे क्या केवली भी हँसता और उत्सुक होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि केवली मनुष्य न तो हँसता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 227 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! हरिनेगमेसी सक्कदूए इत्थीगब्भं संहरमाणे किं गब्भाओ गब्भं साहरइ? गब्भाओ जोणिं साहरइ? जोणीओ गब्भं साहरइ? जोणीओ जोणिं साहरइ?
गोयमा! नो गब्भाओ गब्भं साहरइ, नो गब्भाओ जोणिं साहरइ, नो जोणीओ जोणिं साहरइ, परामुसिय-परामुसिय अव्वाबाहेणं अव्वाबाहं जोणीओ गब्भं साहरइ।
पभू णं भंते! हरिनेगमेसी सक्कदूए इत्थीगब्भं नहसिरंसि वा, रोमकूवंसि वा साहरित्तए वा? नीहरित्तए वा?
हंता पभू, नो चेव णं तस्स गब्भस्स किंचि आबाहं वा विवाहं वा उप्पाएज्जा, छविच्छेदं पुण करेज्जा। एसुहुमं च णं साहरेज्ज वा, नीहरेज्ज वा। Translated Sutra: भगवन् ! इन्द्र (हरि) – सम्बन्धी शक्रदूत हरिनैगमेषी देव जब स्त्री के गर्भ का संहरण करता है, तब क्या वह एक गर्भाशय से गर्भ को उठाकर दूसरे गर्भाशय में रखता है ? या गर्भ को लेकर योनि द्वारा दूसरी (स्त्री) के उदर में रखता है? अथवा योनि से गर्भाशय में रखता है ? या फिर योनि द्वारा गर्भ को पेट में से बाहर नीकालकर योनि द्वारा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 228 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अइमुत्ते नामं कुमार-समणे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए।
तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे अन्नया कयाइ महावुट्ठिकायंसि निवयमाणंसि कक्ख-पडिग्गहरयहरणमायाए बहिया संपट्ठिए विहाराए।
तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे वाहयं वहमाणं पासइ, पासित्ता मट्टियाए पालिं बंधइ, बंधित्ता नाविया मे, नाविया मे नाविओ विव णावमयं पडिग्गहगं उदगंसि पव्वाहमाणे-नव्वाहमाणे अभिरमइ। तं च थेरा अद्दक्खु। जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वदासी–
एवं खलु देवानुप्पियाणं Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के अन्तेवासी अतिमुक्तक नामक कुमार श्रमण थे। वे प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे। पश्चात् वह अतिमुक्तक कुमार श्रमण किसी दिन मूसलधार वर्षा पड़ रही थी, तब कांख में अपने रजोहरण तथा पात्र लेकर बाहर स्थण्डिल भूमिका में (बड़ी शंका निवारण) के लिए रवाना हुए। तत्पश्चात् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 229 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ, महासामाणाओ विमानाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महानुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया। तए णं ते देवा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, मनसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति–
कति णं भंते! देवानुप्पियाणं अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति?
तए णं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहिं मनसे पुट्ठे तेसिं देवाणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! ममं सत्त अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति।
तए णं देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मनसे पुट्ठेणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा Translated Sutra: उस काल और उस समय में महाशुक्र कल्प से महासामान नामक महाविमान (विमान) से दो महर्द्धिक यावत् महानुभाग देव श्रमण भगवान महावीर के पास प्रगट हुए। तत्पश्चात् उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके उन्होंने मन से ही इस प्रकार का ऐसा प्रश्न पूछा – भगवन् ! आपके कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत् सर्व | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 230 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति जाव एवं वयासी– देवा णं भंते! संजया त्ति वत्तव्वं सिया?
गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। अब्भक्खाणमेयं देवाणं।
देवा णं भंते! असंजता वि वत्तव्वं सिया?
गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। निट्ठुरवयणमेयं देवाणं।
देवा णं भंते! नो संजयासंजया ति वत्तव्वं सिया?
गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। असब्भूयमेयं देवाणं।
से किं खाइ णं भंते! देवा त्ति वत्तव्वं सिया?
गोयमा! देवा णं नोसंजया ति वत्तव्वं सिया। Translated Sutra: ‘भगवन् !’ इस प्रकार सम्बोधित करके भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार किया यावत् पूछा – भगवन् ! क्या देवों को ‘संयत’ कहा जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, यह देवों के लिए अभ्याख्यान है। भगवन् ! क्या देवों को ‘असंयत’ कहना चाहिए ? गौतम ! यह अर्थ (भी) समर्थ नहीं है। देवों के लिए यह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 231 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] देवा णं भंते! कयराए भासाए भासंति? कयरा व भासा भासिज्जमाणी विसिस्सति? गोयमा! देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति। सा वि य णं अद्धमागहा भासा भासिज्जमाणी विसिस्सति। Translated Sutra: भगवन् ! देव कौन – सी भाषा बोलते हैं ? अथवा (देवों द्वारा) बोली जाती हुई कौन – सी भाषा विशिष्टरूप होती है ? गौतम ! देव अर्धमागधी भाषा बोलते हैं, और बोली जाती हुई वह अर्धमागधी भाषा ही विशिष्टरूप होती है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 232 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ।
जहा णं भंते! केवली अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ, तहा णं छउमत्थे वि अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। सोच्चा जाणइ-पासइ, पमाणतो वा।
से किं तं सोच्चा?
सोच्चा णं केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलि-उवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा तप्पक्खिय-उवासगस्स वा तप्पक्खियउवासियाए वा। से तं सोच्चा। Translated Sutra: भगवन् ! क्या केवली मनुष्य संसार का अन्त करने वाले को अथवा चरमशरीरी को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह उसे जानता – देखता है। भगवन् ! जिस प्रकार केवली मनुष्य अन्तकर को, अथवा अन्तिमशरीरी को जानता – देखता है, क्या उसी प्रकार छद्मस्थ – मनुष्य जानता – देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, छद्मस्थ मनुष्य किसी से सूनकर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 233 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पमाणे?
पमाणे चउव्विहे पन्नत्ते; तं जहा–पच्चक्खे अणुमाणे ओवम्मे आगमे, जहा अनुओगदारे तहा नेयव्वं पमाणं जाव तेण परं सुत्तस्स वि अत्थस्स वि नो अत्तागमे, नो अनंतरागमे, परंपरागमे। Translated Sutra: भगवन् ! वह ‘प्रमाण’ क्या है ? कितने हैं ? गौतम ! प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – (१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) औपम्य (उपमान) और (४) आगम। प्रमाण के विषय में जिस प्रकार अनुयोग – द्वारसूत्र में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना यावत् न आत्मागम, न अनन्तरागम, किन्तु परम्परागम तक कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 234 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ।
जहा णं भंते! केवली चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाणइ-पासइ, तहा णं छउमत्थे वि चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाणइ-पासइ?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। सोच्चा जाणइ-पासइ, पमाणतो वा। जहा णं अंतकरेणं आलावगो तहा चरिमकम्मेण वि अपरिसेसिओ नेयव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! क्या केवली मनुष्य चरम कर्म को अथवा चरम निर्जरा को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! केवली चरम कर्म को या चरम निर्जरा को जानता – देखता है। भगवन् ! जिस प्रकार केवली चरमकर्म को या चरम निर्जरा को जानता – देखता है, क्या उसी तरह छद्मस्थ भी यावत् जानता – देखता है ? गौतम ! जिस प्रकार ‘अन्तकर’ के विषय में आलापक कहा था, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 235 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा?
हंता धारेज्जा।
जण्णं भंते! केवली पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा, तण्णं वेमाणिया देवा जाणंति-पासंति?
गोयमा! अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति?
गोयमा! वेमाणिया देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– माइमिच्छादिट्ठी उववन्नागा य, अमाइ-सम्मदिट्ठी-उववन्नगा य। तत्थ णं जे ते माइमिच्छादिट्ठीउववन्नगा ते ण जाणंति ण पासंति। तत्थ णं जे ते अमाइसम्मदिट्ठीउववन्नगा ते णं जाणंति-पासंति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! अमाइसम्मदिट्ठी दुविहा पन्नत्ता, Translated Sutra: भगवन् ! क्या केवली प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन धारण करता है ? हाँ, गौतम ! धारण करता है। भगवन् केवली जिस प्रकार के प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन को धारण करता है, क्या उसे वैमानिक देव जानते – देखते हैं ? गौतम ! कितने ही (वैमानिक देव उसे) जानते – देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते – देखते। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 236 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए? हंता पभू।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए?
गोयमा! जण्णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा अट्ठं वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा पुच्छंति, तण्णं इहगए केवली अट्ठे वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा वागरेइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए।
जण्णं भंते! इहगए केवली Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, यहाँ रहे हुए केवली के साथ आलाप और संलाप करने में समर्थ हैं ? गौतम ! हाँ, हैं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण (व्याख्या) पूछते हैं, उसका उत्तर यहाँ रहे हुए केवली |