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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Hindi | 511 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं सुत्तं वाएज्जा, तं जहा–संगहट्ठयाए, उवग्गहट्ठयाए, निज्जरट्ठयाए, सुत्ते वा मे पज्जवयाते भविस्सति, सुत्तस्स वा अवोच्छित्तिनयट्ठयाए।
पंचहिं ठाणेहिं सुत्तं सिक्खेज्जा, तं जहा– नाणट्ठयाए, दंसणट्ठयाए, चरित्तट्ठयाए, वुग्गहविमोयण-ट्ठयाए, अहत्थे वा भावे जाणिस्सामीतिकट्टु। Translated Sutra: पाँच कारणों से गुरु शिष्य को वाचना देते हैं – यथा – संग्रह के लिए – शिष्यों को सूत्र का ज्ञान कराने के लिए। उपग्रह के लिए – गच्छ पर उपकार करने के लिए। निर्जरा के लिए – शिष्यों को वाचना देने से कर्मों की निर्जरा होती है। सूत्र ज्ञान दृढ़ करने के लिए। सूत्र का विच्छेद न होने देने के लिए। पाँच कारणों से सूत्र सीखे, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 521 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छ ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणति न पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आयासं, जीवमसरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं।
एताणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा–धम्म-त्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आयासं, जीवमसरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं। Translated Sutra: छः स्थान छद्मस्थ पूर्ण रूप से नहीं जानता है और नहीं देखता है। यथा – धर्मास्तिकाय को, अधर्मास्तिकाय को, आकाशास्तिकाय को, शरीर रहित जीव को, परमाणु पुद्गल को, शब्द को। इन्हीं छः स्थानों को केवलज्ञानी अर्हन्त जिन पूर्णरूप से जानते हैं और देखते हैं। यथा – १. धर्मास्तिकाय को – यावत् शब्द को। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 527 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा तणवणस्सतिकाइया पन्नत्ता, तं जहा– अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा। Translated Sutra: तृण वनस्पतिकाय छः प्रकार के हैं, यथा – १. अग्रबीज, २. मूलबीज, ३. पर्वबीज, ४. स्कन्धबीज, ५. बीज – रूह, ६. सम्मूर्च्छिम। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 568 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ नक्खत्ता पुव्वंभागा समखेत्ता तीसतिमुहुत्ता पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वाभद्दवया, कत्तिया, महा, पुव्वफग्गुणी, मूलो, पुव्वासाढा।
चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ नक्खत्ता नत्तंभागा अवड्ढक्खेत्ता पन्नरसमुहुत्ता पन्नत्ता, तं जहा– सयभिसया, भरणी, भद्दा, अस्सेसा, साती, जेट्ठा।
चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोतिसरण्णो छ नक्खत्ता उभयभागा दिवड्ढखेत्ता पणयालीसमुहुत्ता पन्नत्ता, तं जहा– रोहिणी, पुनव्वसू, उत्तराफग्गुणी, विसाहा, उत्तरासाढा, उत्तराभद्दवया। Translated Sutra: ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के साथ छह नक्षत्र ३०, ३० मुहूर्त्त तक सम्पूर्ण क्षेत्र में योग करते हैं। यथा – पूर्वाभाद्रपद, कृत्तिका, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मूल, पूर्वाषाढ़ा। ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के साथ छह नक्षत्र १५ – १५ मुहूर्त्त तक आधे क्षेत्र में योग करते हैं, यथा – शतभिषा, भरणी, आद्रा, अश्लेषा, स्वाती, ज्येष्ठा। ज्योतिष्केन्द्र | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 574 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छ उदू पन्नत्ता, तं जहा–पाउसे, वरिसारत्ते, सरए, हेमंते, वसंते, गिम्हे। Translated Sutra: ऋतुएं छः हैं, यथा – प्रावृट् – आषाढ़ और श्रावण मास। वर्षा ऋतु – भाद्रपद और आश्विन। शरद् – कार्तिक और मार्गशीर्ष। हेमन्त – पोष और माघ। बसन्त – फाल्गुन और चैत्र। ग्रीष्म – वैशाख और ज्येष्ठ। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 575 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छ ओमरत्ता पन्नत्ता, तं जहा– ततिए पव्वे, सत्तमे पव्वे, एक्कारसमे पव्वे, पन्नरसमे पव्वे, एगूण-वीसइमे पव्वे, तेवीसइमे पव्वे।
छ अतिरत्ता पन्नत्ता, तं जहा– चउत्थे पव्वे, अट्ठमे पव्वे, दुवालसमे पव्वे, सोलसमे पव्वे, वीसइमे पव्वे, चउवीसइमे पव्वे। Translated Sutra: दिनक्षय वाले छः पर्व हैं। यथा – तृतीयपर्व – आषाढ़ कृष्णपक्ष। सप्तम पर्व – भाद्रपद कृष्णपक्ष। ग्यारहवाँ पर्व – कार्तिक कृष्णपक्ष। पन्द्रहवाँ पर्व – पोष कृष्णपक्ष। उन्नीसवाँ पर्व – फाल्गुन कृष्णपक्ष। तेतीसवाँ पर्व – वैशाख कृष्णपक्ष दिन वृद्धि वाले छः पर्व हैं, यथा – चतुर्थ पर्व – आषाढ़ शुक्ल पक्ष। आठवाँ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 588 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विधे भावे पन्नत्ते, तं जहा–ओदइए, उवसमिए, खइए, खओवसमिए, पारिणामिए, सन्निवातिए। Translated Sutra: भाव छः प्रकार के हैं, यथा – औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक, सान्निपातिक। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 589 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहे पडिक्कमणे पन्नत्ते, तं जहा–उच्चारपडिक्कमणे, पासवणपडिक्कमणे, इत्तरिए, आवकहिए, जंकिंचिमिच्छा, सोमनंतिए। Translated Sutra: प्रतिक्रमण छः प्रकार के हैं, यथा – उच्चार प्रतिक्रमण – मल को परठकर स्थान पर आवे और मार्ग में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करे। प्रश्रवण प्रतिक्रमण – मूत्र परठकर पूर्ववत् प्रतिक्रमण करे। इत्वरिक प्रतिक्रमण – थोड़े काल का प्रतिक्रमण, यथा – दिन सम्बन्धी प्रतिक्रमण या रात्रि सम्बन्धी प्रतिक्रमण। यावज्जीवन का | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 590 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कत्तियानक्खत्ते छत्तारे पन्नत्ते।
असिलेसानक्खत्ते छत्तारे पन्नत्ते। Translated Sutra: कृत्तिका नक्षत्र के छः तारे हैं। अश्लेषा नक्षत्र के छः तारे हैं। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 595 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त संगहठाणा पन्नत्ता, तं जहा–
१. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवति।
२. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं सम्मं पउंजित्ता भवति।
३. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते कालेकाले सम्ममनुप्पवाइत्ता भवति।
४. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्ममब्भुट्ठित्ता भवति।
५. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, नो अनापुच्छियचारी।
६. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अनुप्पण्णाइं उवगरणाइं सम्मं उप्पाइत्ता भवति।
७. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि पुव्वुप्पण्णाइं उवकरणाइं सम्मं सारक्खेत्ता Translated Sutra: आचार्य और उपाध्याय सात प्रकार के गण का संग्रह करते हैं। यथा – आचार्य और उपाध्याय गण में रहने वाले साधुओं को सम्यक् प्रकार से आज्ञा (विधि अर्थात् कर्तव्य के लिए आदेश) या धारणा (अकृत्य का निषेध) करे। आगे पांचवे स्थान में कहे अनुसार (यावत् आचार्य और उपाध्याय गच्छ को पूछकर प्रवृत्ति करे किन्तु गच्छ को पूछे बिना | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 662 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सतिकाइया, तसकाइया, अकाइया। अहवा–सत्तविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा, अलेसा। Translated Sutra: सभी जीव सात प्रकार के हैं, यथा – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पति – कायिक, त्रसकायिक और अकायिक। सभी जीव सात प्रकार के हैं, यथा – कृष्णलेश्या वाले, यावत् शुक्ललेश्या वाले और अलेशी। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 667 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं ण याणति ण पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं।
एयाणि चेव उप्पन्ननाण दंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं। Translated Sutra: छद्मस्थ सात स्थानों को पूर्णरूप से न जानता है और न देखता है, यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर रहित जीव, परमाणु पुद्गल, शब्द और गन्ध। इन्हीं सात स्थानों को सर्वज्ञ पूर्ण रूप से जानता है और देखता है। यथा – धर्मास्तिकाय यावत् गन्ध। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 676 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘सारस्सयमाइच्चाणं देवाणं सत्त देवा सत्तदेवसता पन्नत्ता।
गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्त देवा सत्त देवसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: सारस्वत लोकान्तिक देव के सात देवों का परिवार है। आदित्य लोकान्तिक देव के सात सौ देवों का परिवार है। गर्दतोय लोकान्तिक देव के सात देवों का परिवार है। तुषित लोकान्तिक देव के सात हजार देवों का परिवार है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 687 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त समुग्घाता पन्नत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउव्विय-समुग्घाए, तेजससमुग्घाए, आहारगसमुग्घाए, केवलिसमुग्घाए।
मनुस्साणं सत्त समुग्घाता पन्नत्ता एवं चेव। Translated Sutra: समुद्घात सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा – वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात, केवली समुद्घात। मनुष्यों के सात समुद्घात कहे गए हैं, यथा – पूर्ववत्। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 688 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्थंसि सत्त पवयणणिण्हगा पन्नत्ता, तं जहा–बहुरता, जीवपएसिया, अव-त्तिया, सामुच्छेइया, दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया।
एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया हुत्था, तं जहा–जमाली, तीसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्ठामाहिले।
एतेसि णं सत्तण्हं पवयणनिण्हगाणं सत्तउप्पत्तिणगरा हुत्था, तं जहा– Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के तीर्थ में सात प्रवचननिह्नव हुए, यथा – बहुरत – दीर्घकाल में वस्तु की उत्पत्ति मानने वाले, जीव प्रदेशिका – अन्तिम जीव प्रदेश में जीवत्व मानने वाले, अव्यक्तिका – साधु आदि को संदिग्ध दृष्टि से देखने वाले, सामुच्छिदेका – क्षणिक भाव मानने वाले, दो क्रिया – एक समय में दो क्रिया मानने वाले, त्रैराशिका | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 691 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] महानक्खत्ते सत्ततारे पन्नत्ते।
अभिईयादिया णं सत्त नक्खत्ता पुव्वदारिया पन्नत्ता, तं जहा–अभिई, सवणो, धनिट्ठा, सतभिसया, पुव्वभद्दवया, उत्तरभद्दवया, रेवती।
अस्सिणियादिया णं सत्त नक्खत्ता दाहिणदारिया पन्नत्ता, तं जहा–अस्सिणी, भरणी, कित्तिया, रोहिणी, मिगसिरे, अद्दा, पुनव्वसू।
पुस्सादिया णं सत्त नक्खत्ता अवरदारिया पन्नत्ता, तं जहा–पुस्सो, असिलेसा, मघा, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता।
सातियाइया णं सत्त नक्खत्ता उत्तरदारिया पन्नत्ता, तं जहा–साती, विसाहा, अनुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुव्वासाढा, उत्तरासाढा। Translated Sutra: मघा नक्षत्र के सात तारे हैं, अभिजित् आदि सात नक्षत्र पूर्व दिशा में द्वार वाले हैं, यथा – अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती। अश्विनी आदि सात नक्षत्र दक्षिण दिशा में द्वार वाले हैं, यथा – अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु। पुष्य आदि सात नक्षत्र | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 700 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठविधे जोणिसंगहे पन्नत्ते, तं जहा–अंडगा, पोतगा, जराउजा, रसजा, संसेयगा, संमुच्छिमा, उब्भिगा, उववातिया।
अंडगा अट्ठगतिया अट्ठागतिया पन्नत्ता, तं जहा–अंडए अंडएसु उववज्जमाने अंडएहिंतो वा, पोतएहिंतो वा, जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा, उब्भिएहिंतो वा, उववातिएहिंतो वा उववज्जेज्जा।
से चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाने अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा, उब्भियत्ताए वा, उववातियत्ताए वा गच्छेज्जा।
एवं पोतगावि जराउजावि सेसाणं गतिरागती । Translated Sutra: योनिसंग्रह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा – अंडज, पोतज यावत् – उद्भिज और औपपातिक। अंडज आठ गति वाले हैं, और आठ आगति वाले हैं। अण्डज यदि अण्डजों में उत्पन्न हो तो अण्डजों से पोतजों से यावत् – औपपातिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। वही अण्डज अण्डजपने को छोड़कर अण्डज रूप में यावत् – औपपातिक रूप में उत्पन्न होता है। इसी | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 721 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं ण याणति ण पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं।
एताणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं० धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जावं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं। Translated Sutra: आठ स्थानों को छद्मस्थ पूर्णरूप से न देखता है और न जानता है। यथा – धर्मास्तिकाय यावत् गंध और वायु। आठ स्थानों को सर्वज्ञ पूर्णरूप से देखता है और जानता है। यथा – धर्मास्तिकाय यावत् गंध और वायु। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 724 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठविधा तणवणस्सतिकाइया पन्नत्ता, तं जहा–मूले, कंदे, खंधे, तया, साले, पवाले, पत्ते, पुप्फे। Translated Sutra: तृण वनस्पतिकाय आठ प्रकार का है, यथा – मूल, कंद, स्कंध, त्वचा, खाल, प्रवाल, पत्र, पुष्प। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 734 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेट्ठिं बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाण-पत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाण-संठिताओ अट्ठ कण्हराईओ पन्नत्ताओ, तं जहा– पुरत्थिमे णं दो कण्हराईओ, दाहिणे णं दो कण्हराईओ, पच्चत्थिमे णं दो कण्ह-राईओ, उत्तरे णं दो कण्हराईओ। पुरत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। दाहिणा अब्भंतरा कण्हराई पच्चत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। पच्चत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई उत्तरं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। उत्तरा अब्भंतरा कण्हराई पुरत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। पुरत्थिमपच्चत्थिमिल्लाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ छलंसाओ। उत्तरदाहिणाओ Translated Sutra: सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के नीचे ब्रह्मलोक कल्प में रिष्टविमान के प्रस्तट में अखाड़े के समान सम – चतुरस्र संस्थान वाली आठ कृष्णराजियाँ हैं, दो कृष्णराजियाँ पूर्व में, दो कृष्णराजियाँ दक्षिण में, दो कृष्णराजियाँ पश्चिम में, दो कृष्णराजियाँ उत्तर में। पूर्व दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिण दिशा को बाह्य | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 736 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं अट्ठण्हं लोगंतियदेवाणं अजहन्नमणुक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
अट्ठ धम्मत्थिकाय-मज्झपएसा पन्नत्ता। अट्ठ अधम्मत्थिकाय-मज्झपएसा पन्नत्ता।
अट्ठ आगासत्थिकाय-मज्झपएसा पन्नत्ता। अट्ठ जीव-मज्झपएसा पन्नत्ता। Translated Sutra: धर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, अधर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, आकाशास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, जीवास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 761 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा – रिष्ट, तपनीय, कंचन, रजत, दिशास्वस्तिक, प्रलम्ब, अंजन, अंजनपुलक। सूत्र – ७६१, ७६२ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 769 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा – स्वस्तिक, अमोघ, हिमवत्, मंदर, रुचक, चक्रोतम, चन्द्र, सुदर्शन। सूत्र – ७६९, ७७० | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 790 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अट्ठ सया अनुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं ठितिकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अनुत्तरोववाइयसंपया हुत्था। Translated Sutra: भगवान महावीर के उत्कृष्ट ८०० ऐसे शिष्य थे जिनको कल्याणकारी अनुत्तरोपपातिक देवगति यावत् भविष्य में (भद्र) मोक्ष गति निश्चित है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 795 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमद्दं जोगं जोएंति, तं जहा–कत्तिया, रोहिणी, पुनव्वसू, महा, चित्ता, विसाहा, अनुराधा, जेट्ठा। Translated Sutra: आठ नक्षत्र चन्द्र के साथ स्पर्श करके गति करते हैं, यथा – कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 805 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया।
पुढविकाइया नवगतिया नवआगतिया पन्नत्ता, तं जहा– पुढविकाइए पुढविकाइएसु उवव-ज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा, आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहिंतो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वणस्सइकाइएहिंतो वा, बेइंदिएहिंतो वा, तेइंदिएहिंतो वा, चउरिंदिएहिंतो वा, पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा।
से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए वा, आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वनस्सइकाइयत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए Translated Sutra: संसारी जीव नौ प्रकार के हैं, यथा – पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय, एवं बेइन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय। पृथ्वीकायिक जीवों की नौ गति और नौ आगति। यथा – पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो पृथ्वीकायिकों से यावत् पंचेन्द्रियों से आकर उत्पन्न होते हैं। पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकपन को छोड़कर पृथ्वीकायिक | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 823 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकाले आगराणं च ।
रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि-मोत्ति-सिल-प्पवालाणं ॥ Translated Sutra: महाकाल महानिधि – इसके प्रभाव से लोहा, चाँदी, सोना, मणी, मोती, स्फटिकशिला और प्रवाल आदि के खानों की उत्पत्ति होती है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 837 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखाणे निमित्ते काइए पोराणे पारिहत्थिए ।
परपंडिते वाई य, भूतिकम्मे तिगिच्छिए ॥ Translated Sutra: भगवान महावीर के नौ गण थे, यथा – गोदास गण, उत्तर बलिस्सह गण, उद्देह गण, चारण गण, उर्ध्ववातिक गण, विश्ववादी गण, कामार्द्धिक गण, मानव गण और कोटिक गण। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 872 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! सेणिए राया भिंभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठितीयंसि णिरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तत्थ नेरइए भविस्सति– काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं। से णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं।
से णं ततो नरयाओ उव्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जनवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं Translated Sutra: हे आर्य ! यह श्रेणिक राजा मरकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमंतक नरकावास में चौरासी हजार वर्ष की नारकीय स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न होगा और अति तीव्र यावत् – असह्य वेदना भोगेगा। यह उस नरक से नीकलकर आगामी उत्सर्पिणी में इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्यपर्वत के समीप पुण्ड्र जनपद के शतद्वार | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 875 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भविस्सइ, से य पडिबंधे चउव्विहे पन्नत्ता तं जहा- अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ,
तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंत्तीए मुत्तीए गुत्तीए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय चिय फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति Translated Sutra: उन विमलवाहन भगावन का किसी में प्रतिबंध (ममत्व) नहीं होगा। प्रतिबंध चार प्रकार के हैं, यथा – अण्डज, पोतज, अवग्रहिक, प्रग्रहिक। ये अण्डज – हंस आदि मेरे हैं, ये पोतज – हाथी आदि मेरे हैं, ये अवग्रहिक – मकान, पाट, फलक आदि मेरे हैं। ये प्रग्रहिक – पात्र आदि मेरे हैं। ऐसा ममत्वभाव नहीं होगा। वे विमलवाहन भगवान जिस – जिस | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 894 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे संजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढविकाइयसंजमे, आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइय-संजमे, वणस्सतिकाइयसंजमे, बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चउरिंदियसंजमे, पंचिंदियसंजमे, अजीवकायसंजमे।
दसविधे असंजमे पन्नत्ते, तं जहा– पुढविकाइयअसंजमे, आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे वणस्सतिकाइयअसंजमे, बेइंदियअसंजमे, तेइंदियअसंजमे, चउरिंदियअसंजमे, पंचिंदियअसंजमे, अजीवकायअसंजमे।
दसविधे संवरे पन्नत्ते, तं जहा– सोतिंदियसंवरे, चक्खिंदियसंवरे, घाणिंदियसंवरे, जिब्भिंदियसंवरे, फासिंदियसंवरे, मनसंवरे, वयसंवरे, कायसंवरे, उवकरणसंवरे, सूचीकुसग्गसंवरे।
दसविधे असंवरे Translated Sutra: संयम दश प्रकार का है, यथा – पृथ्वीकायिक जीवों का संयम यावत् – वनस्पतिकायिक जीवों का संयम, बेइन्द्रिय जीवों का संयम, तेइन्द्रिय जीवों का संयम, चउरिन्द्रिय जीवों का संयम, पंचेन्द्रिय जीवों का संयम, अजीव काय संयम। असंयम दश प्रकार का है, यथा – पृथ्वीकायिक जीवों का असंयम यावत् – वनस्पतिकायिक जीवों का असंयम, बेइन्द्रिय | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 916 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वेवि णं अंजणपव्वता दस जोयणसयाइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, उवरिं दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता।
सव्वेवि णं दहिमुहपव्वता दस जोयणसताइं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता, दस जोयण-सहस्साइं विक्खंभेणं पन्नत्ता।
सव्वेवि णं रतिकरपव्वता दस जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दसगाउयसताइं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा झल्लरिसंठिता, दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: सभी अंजनक पर्वत भूमि में दश सौ (एक हजार) योजन गहरे हैं। भूमि पर मूल में दश हजार योजन चौड़े हैं। ऊपर से दश सौ (एक हजार) योजन चौड़े हैं। सभी दधिमुख पर्वत दश सौ (एक हजार) योजन भूमि में गहरे हैं। सर्वत्र समान पल्यंक संस्थान से संस्थित हैं और दश हजार योजन चौड़े हैं। सभी रतिकर पर्वत दश सौ (एक हजार) योजन ऊंचे हैं। दश सौ (एक हजार) | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 920 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरवणस्सइकाइयाणं उक्कोसेणं दस जोयणसयाइं सरीरोगाहणा पन्नत्ता।
[सूत्र] जलचर-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं दस जोयणसताइं सरीरोगाहणा पन्नत्ता।
[सूत्र] उरपरिसप्प-थलचर-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं दस जोयणसताइं सरीरोगाहणा पन्नत्ता। Translated Sutra: बादर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (एक हजार) योजन की है। जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (एक हजार) योजन की है। स्थलचर उरपरिसर्प तिर्यंच पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट अवगाहना भी इतनी ही है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 922 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविहे अनंतए पन्नत्ते, तं जहा–नामानंतए ठवनानंतए, दव्वानंतए, गणणानंतए, पएसानंतए, एगणोनंतए, दुहणोनंतए, देसवित्थारानंतए, सव्ववित्थारानंतए सासतानंतए। Translated Sutra: अनन्तक दश प्रकार के हैं, यथा – नाम अनन्तक – सचित्त या अचित्त वस्तु का अनन्तक नाम। स्थापना अनन्तक – अक्ष आदि में किसी पदार्थ में अनन्त की स्थापना। द्रव्य अनन्तक – जीव द्रव्य या पुद्गल द्रव्य का अनन्त पना। गणना – अनन्तक एक, दो, तीन इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त पर्यन्त गिनती करना। प्रदेश अनन्तक – आकाश | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 957 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे पच्चक्खाणे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: प्रत्याख्यान दस प्रकार के हैं, यथा – अनागत प्रत्याख्यान – भविष्य में तप करने से आचार्यादि की सेवा में बाधा आने की सम्भावना होने पर पहले तप कर लेना। अतिक्रान्त प्रत्याख्यान – आचार्यादि की सेवा में किसी प्रकार की बाधा न आवे इस संकल्प से जो तप अतीत में नहीं किया जा सका उस तप को वर्तमान में करना। कोटी सहित प्रत्याख्यान | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 966 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणति न पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं, ‘अयं जिने भविस्सति वा न वा भविस्सति’, अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा न वा करेस्सति।
एताणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहा–धम्म-त्थिकायं अधम्मत्थिकायं आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं, अयं जिने भविस्सति वा न वा भविस्सति, अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा न वा करेस्सति। Translated Sutra: दस पदार्थों छद्मस्थ पूर्ण रूप से न जानता है और न देखता है, यथा – धर्मास्तिकाय यावत् वायु, यह पुरुष जिन होगा या नहीं, यह पुरुष सब दुःखों का अन्त करेगा या नहीं ? इन्हीं दस पदार्थों को सर्वज्ञ सर्वदर्शी पूर्ण रूप से जानते हैं और देखते हैं। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 967 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस दसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– कम्मविवागदसाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अनुत्तरोव-वाइयदसाओ, आयारदसाओ, पण्हावागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ।
कम्मविवागदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: दशा दस हैं, यथा – कर्मविपाक दशा, उपासक दशा, अंतकृद् दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, आचार दशा, प्रश्नव्याकरण दशा, बंध दशा, दोगृद्धि दशा, दीर्घ दशा, संक्षेपित दशा। कर्म विपाक दशा के दश अध्ययन हैं, यथा – मृगापुत्र, गोत्रास, अण्ड, शकट, ब्राह्मण, नंदिसेण, नैरयिक, सौरिक, उदुंबर, सहसोदाह – अमरक, लिच्छवी कुमार। सूत्र – ९६७, ९६८ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 973 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनुत्तरोववातियदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: अनुत्तरोपपातिक दशा के दस अध्ययन हैं, यथा – ऋषिदास, धन्ना, सुनक्षत्र, कार्तिक, संस्थान, शालिभद्र, आनन्द, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। सूत्र – ९७३, ९७४ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 977 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरोववण्णा, परंपरोववण्णा, अनंतरावगाढा, परंपरावगाढा, अनंतराहारगा, परंपराहारगा, अनंतरपज्जत्ता, परंपरपज्जत्ता, चरिमा, अचरिमा।
एवं–निरंतरं जाव वेमाणिया।
चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए दस निरयावाससतसहस्सा पन्नत्ता।
रयणप्पभाए पुढवीए जहन्नेणं नेरइयाणं दसवाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता।
चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं नेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए जहन्नेणं नेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता। एवं जाव थणियकुमाराणं।
बायरवणस्स तिकाइयाणं Translated Sutra: नैरयिक दस प्रकार के हैं, यथा – अनन्तरोपपन्नक, परंपरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ़, परंपरावगाढ़, अनन्तरा – हारक, परंपराहारक, अनन्तर पर्याप्त, परम्पर पर्याप्त, चरिम, अचरिम। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दस प्रकार के हैं। चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में दस लाख नरकावास हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिकों की जघन्य स्थिति दस हजार | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 980 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे धम्मे पन्नत्ते, तं जहा–गामधम्मे, नगरधम्मे, रट्ठधम्मे, पासंडधम्मे, कुलधम्मे, गणधम्मे, संघधम्मे, सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे। Translated Sutra: धर्म दश प्रकार के हैं, यथा – ग्राम धर्म, नगर धर्म, राष्ट्र धर्म, पाषंड धर्म, कुल धर्म, गण धर्म, संघ धर्म, श्रुत धर्म, चारित्र धर्म, अस्तिकाय धर्म। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 994 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा संसारसमवन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–
पढमसमयएगिंदिया, अपढमसमयएगिंदिया, पढमसमयबेइंदिया, अपढमसमयबेइंदिया, पढमसमय तेइंदिया, अपढमसमयतेइंदिया, पढमसमयचउरिंदिया, अपढमसमयचउरिंदिया, पढमसमय पंचिंदिया, अपढमसमयपंचिंदिया।
दसविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा– पुढवीकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, बेंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचेंदिया, अणिंदिया।
अहवा– दसविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया, अपढमसमयनेरइया, पढमसमय- तिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमनुया, अपढमसमयमनुया, पढमसमयदेवा, अपढमसमय-देवा, पढमसमयसिद्धा, अपढमसमयसिद्धा। Translated Sutra: संसारी जीव दश प्रकार के हैं, यथा – प्रथम समयोत्पन्न एकेन्द्रिय, अप्रथम समयोत्पन्न एकेन्द्रिय यावत् अप्रथम समयोत्पन्न पंचेन्द्रिय। सर्व जीव दश प्रकार के हैं, यथा – पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय, अनिन्द्रिय। सर्व जीव दश प्रकार के हैं, प्रथम समयोत्पन्न नैरयिक, अप्रथम समयोत्पन्न | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 997 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा तणवणस्सतिकाइया पन्नत्ता, तं० मूले, कंदे, खंधे, तया, साले, पवाले, पत्ते, पुप्फे, फले, बीये Translated Sutra: तृण वनस्पतिकाय दस प्रकार का है, मूल, कंद, यावत् – पुष्प, फल, बीज। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 1004 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणे कंडे दस जोयणसयाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरे कंडे दस जोयणसताइं बाहल्लेणं पन्नत्ते।
एवं वेरुलिए, लोहितक्खे, मसारगल्ले, हंसगब्भे, पुलए, सोगंधिए, जीतिरसे, अंजणे, अंजणपुलए, रतयं, जातरूवे, अंके, फलिहे, रिट्ठे। जहा रयणे तहा सोलसविधा भाणितव्वा। Translated Sutra: इस रत्नप्रभा पृथ्वी का रत्नकाण्ड दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है। इस रत्नप्रभा पृथ्वी का वज्र काण्ड दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है। इसी प्रकार – ३. वैडूर्य काण्ड, ४. लोहिताक्ष काण्ड, ५. मसारगल्ल काण्ड, ६. हंसगर्भ काण्ड, ७. पुलक काण्ड, ८. सौगंधिक काण्ड, ९. ज्योतिरस काण्ड, १०. अंजन काण्ड, ११. अंजन पुलक काण्ड, १२. रजत काण्ड, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 1006 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कत्तियानक्खत्ते सव्वबाहिराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चरति।
अनुराधानक्खत्ते सव्वब्भंतराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चरति। Translated Sutra: कृत्तिका नक्षत्र चन्द्र के सर्व बाह्य मण्डल से दसवे मण्डल में भ्रमण करता है। अनुराधा नक्षत्र चन्द्र के सर्व आभ्यन्तर मण्डल से दसवें मण्डल में भ्रमण करता है। | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१ |
Gujarati | 3 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगे दंडे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩. દંડ એક છે...(આત્મા જે ક્રિયાથી દંડાય તેને દંડ કહે છે.) સૂત્ર– ૪. ક્રિયા એક છે...(કરવું તે ક્રિયા, તેના કાયિકી આદિ અનેક ભેદો છે.) સૂત્ર– ૫. લોક એક છે... (જ્યાં ધર્માસ્તિકાય આદિ દ્રવ્યો રહેલા છે, તેને લોક કહે છે.) સૂત્ર– ૬. અલોક એક છે...(જ્યાં ધર્માસ્તિકાય આદિ દ્રવ્યો ન હોય, તેને અલોક કહે છે.) સૂત્ર સંદર્ભ– ૩–૬ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१ |
Gujarati | 7 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगे धम्मे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭. ધર્માસ્તિકાય એક છે... (જીવ અને પુદ્ગલની ગતિમાં સહાયક દ્રવ્યને ધર્માસ્તિકાય કહે છે.) સૂત્ર– ૮. અધર્માસ્તિકાય એક છે..(જીવ અને પુદ્ગલની સ્થિતિમાં સહાયક દ્રવ્યને અધર્માસ્તિકાય કહે છે.) સૂત્ર– ૯. બંધ એક છે...(ક્રોધ આદિ કષાયથી કર્મ પુદ્ગલોનું આત્મ પ્રદેશ સાથે બંધાવું તે બંધ કહેવાય) સૂત્ર– ૧૦. મોક્ષ એક છે...(આત્માનું | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 386 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि तरगा पन्नत्ता, तं जहा–समुद्दं तरामीतेगे समुद्दं तरति, समुद्दं तरामीतेगे गोप्पयं तरति, गोप्पयं तरामीतेगे समुद्दं तरति, गोप्पयं तरामीतेगे गोप्पयं तरति।
चत्तारि तरगा पन्नत्ता, तं जहा–समुद्दं ‘तरेत्ता नाममेगे’ समुद्दे विसीयति, समुद्दं तरेत्ता नाममेगे गोप्पए विसीयति, गोप्पयं तरेत्ता नाममेगे समुद्दे विसोयति, गोप्पयं तरेत्ता नाममेगे गोप्पए विसीयति। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૮૬. (૧) તરવૈયા ચાર ભેદે છે – સમુદ્ર તરુ છું કહીને તરે, સમુદ્ર તરુ છું કહીને ખાડી તરે છે, આદિ ચાર. (૨) તરવૈયા ચાર ભેદે છે – સમુદ્ર તરીને વળી સમુદ્રમાં સીદાય છે, સમુદ્ર તરીને ખાડીમાં સીદાય છે, આદિ ચાર. સૂત્ર– ૩૮૭. કુંભ ચાર ભેદે કહ્યા – (૧) પૂર્ણ અને પૂર્ણ, પૂર્ણ અને તુચ્છ, તુચ્છ અને પૂર્ણ, તુચ્છ અને તુચ્છ. (૨) એ પ્રમાણે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 849 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दीहवेतड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૪૯. જંબૂદ્વીપના મેરુની દક્ષિણે ભરતમાં દીર્ઘ વૈતાઢ્ય ઉપર નવ કૂટો કહ્યા છે, તે આ – સૂત્ર– ૮૫૦. સિદ્ધ, ભરત, ખંડપ્રપાત, માણિભદ્ર, વૈતાઢ્ય, પૂર્ણભદ્ર, તિમિસ્રગુફા, ભરત, વૈશ્રમણ – કૂટ. સૂત્ર– ૮૫૧. જંબૂદ્વીપના મેરુની દક્ષિણે નિષધ વર્ષધર પર્વતે નવ કૂટો કહ્યા છે, તે આ – સૂત્ર– ૮૫૨. સિદ્ધ, નિષધ, હરિવર્ષ, વિદેહ, હ્રી, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 892 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसहिं ठाणेहिं अच्छिन्ने पोग्गले चलेज्जा, तं जहा–आहारिज्जमाने वा चलेज्जा। परिणामेज्जमाणे वा चलेज्जा। उस्ससिज्जमाने वा चलेज्जा। निस्ससिज्जमाने वा चलेज्जा। वेदेज्जमाणे वा चलेज्जा। निज्जरिज्जमाणे वा चलेज्जा। विउव्विज्जमाने वा चलेज्जा। परियारिज्जमाणे वा चलेज्जा। जक्खाइट्ठे वा चलेज्जा। वातपरिगए वा चलेज्जा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૯૨. દશ પ્રકારે અચ્છિન્ન પુદ્ગલો ચલિત થાય, તે આ – ૧. આહાર કરાતા પુદ્ગલ ચલે, ૨. પરિણામ પમાડાતા ચલે, ૩. ઊંચો શ્વાસ લેતા ચલે, ૪. નીચો શ્વાસ લેતા ચલે, ૫. વેદાતા ચલે, ૬. નિર્જરાતા ચલે, ૭. વિકુર્વાતા ચલે, ૮. પરિચાર કરતા ચલે, ૯. યક્ષાવિષ્ટતાથી ચલે, ૧૦. શરીરના વાયુથી પ્રેરિત પુદ્ગલો ચલે. સૂત્ર– ૮૯૩. દશ કારણે ક્રોધોત્પત્તિ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१ |
Gujarati | 51 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगा नेरइयाणं वग्गणा।
एगा असुरकुमाराणं वग्गणा।
एगा नागकुमाराणं वग्गणा।
एगा सुवण्णकुमाराणं वग्गणा।
एगा विज्जुकुमाराणं वग्गणा।
एगा अग्गिकुमाराणं वग्गणा।
एगा दीवकुमाराणं वग्गणा।
एगा उदहिकुमाराणं वग्गणा।
एगा दिसाकुमाराणं वग्गणा।
एगा वायुकुमाराणं वग्गणा।
एगा थणियकुमाराणं वग्गणा।
एगा पुढविकाइयाणं वग्गणा।
एगा आउकाइयाणं वग्गणा।
एगा तेउकाइयाणं वग्गणा।
एगा वाउकाइयाणं वग्गणा।
एगा वणस्सइकाइयाणं वग्गणा।
एगा बेइंदियाणं वग्गणा।
एगा तेइंदियाणं वग्गणा।
एगा चउरिंदियाणं वग्गया।
एगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वग्गणा।
एगा मनुस्साणं वग्गणा।
एगा वाणमंतराणं वग्गणा।
एगा Translated Sutra: વર્ગણા એટલે જીવ સમુદાય અથવા એક સમાન પુદ્ગલોનો સમૂહ... નૈરયિકોની વર્ગણા એક છે, અસુરકુમારોની વર્ગણા એક છે, એ રીતે ચોવીશ દંડક યાવત્ વૈમાનિકોની વર્ગણા એક છે. ભવસિદ્ધિક, અભવસિદ્ધિક, ભવસિદ્ધિક નૈરયિક, અભવસિદ્ધિક નૈરયિક – યાવત્ – એ રીતે ભવસિદ્ધિક વૈમાનિક, અભવસિદ્ધિક વૈમાનિક તે પ્રત્યેકની વર્ગણા એક – એક છે. સમ્યગ્દષ્ટિઓ, |