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Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 55 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं विनीयाए रायहानीए भरहे नामं राया चाउरंतचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। बिइओ गमो रायवण्णगस्स इमो–तत्थ असंखेज्जकालवासंतरेण उपज्जए जसंसो उत्तमे अभिजाए सत्त-वीरियपरक्कमगुणे पसत्थवण्ण सर सार संघयण बुद्धि धारण मेहा संठाण सील प्पगई पहाणगारवच्छायागइए अनेगवयणप्पहाणे तेय आउ बल वीरियजुत्ते अझुसिरघननिचिय-लोहसंकल नारायवइरउसहसंघयणदेहधारी झस-जुग भिंगार वद्धमाणग भद्दासण संख छत्त वीयणि पडाग चक्क नंगल मुसल रह सोत्थिय अंकुस चंदाइच्च अग्गि जूव सागर इंदज्झय पुहवि पउम कुंजर सीहासन दंड कुम्भ गिरिवर तुरगवर

Translated Sutra: विनीता राजधानी में भरत चक्रवर्ती राजा उत्पन्न हुआ। वह महाहिमवान्‌ पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह राजा भरत राज्य का शासन करता था। राजा के वर्णन का दूसरा गम इस प्रकार है – वहाँ असंख्यात वर्ष बाद भरत नामक चक्रवर्ती उत्पन्न हुआ। वह यशस्वी, उत्तम,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 56 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पज्जित्था। तए णं से आउहघरिए भरहस्स रन्नो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पन्नं पासाइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणामेव से दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं० कट्टु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं

Translated Sutra: एक दिन राजा भरत की आयुधशाला में दिव्य चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। आयुधशाला के अधिकारी ने देखा। वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ, चित्त में आनन्द तथा प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ अत्यन्त सौम्य मानसिक भाव और हर्षातिरेक से विकसित हृदय हो उठा। दिव्य चक्र – रत्न को तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की, हाथ जोड़ते हुए चक्ररत्न को
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 230 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे सुरिंदे उत्तरड्ढलोगाहिवई अट्ठावीसविमनावाससयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे, एवं जहा सक्के, इमं नाणत्तं–महाघोसा घंटा, लहुपरक्कमो पायत्ताणियाहिवई, पुप्फओ विमानकारी, दक्खिणा निज्जाणभूमी, उत्तरपुरत्थिमिल्लो रइकरगपव्वओ, मंदरे समोसरिओ जाव पज्जुवासइ। एवं अवसिट्ठावि इंदा भाणियव्वा जाव अच्चुओ, इमं नाणत्तं–

Translated Sutra: उस काल, उस समय हाथ में त्रिशूल लिये, वृषभ पर सवार, सुरेन्द्र, उत्तरार्धलोकाधिपति, अठ्ठाईस लाख विमानों का स्वामी, निर्मल वस्त्र धारण किये देवेन्द्र, देवराज ईशान मन्दर पर्वत पर आता है। शेष वर्णन सौधर्मेन्द्र शक्र के सदृश है। अन्तर इतना है – घण्टा का नाम महाघोषा है। पदातिसेनाधिपति का नाम लघुपराक्रम है, विमानकारी
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 236 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहानीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए सामानियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए तावत्तीसेहिं, चउहिं लोगपालेहिं, पंचहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, चउहिं चउ-सट्ठीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहि य जहा सक्के, नवरं– इमं नाणत्तं–दुमो पायत्तणीयाहिवई, ओघस्सरा घंटा, विमानं पन्नासं जोयणसहस्साइं, महिंदज्झओ पंचजोयणसयाइं, विमानकारी आभि-ओगिओ देवो, अवसिट्ठं तं चेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिंदे असुरराया एवमेव नवरं–सट्ठी

Translated Sutra: उस काल, उस समय चमरचंचा राजधानी में, सुधर्मासभा में, चमर नामक सिंहासन पर स्थित असुरेन्द्र, असुरराज चमर अपने ६४००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, सपरिवार पाँच अग्रमहिषियों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, ६४००० अंगरक्षक देवों तथा अन्य देवों से संपरिवृत होता हुआ आता है। उसके
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 1 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमो अरहंताणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नयरी होत्था–रिद्ध-त्थिमिय-समिद्धा, वण्णओ। से णं मिहिलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे नामं चेइए होत्था, वण्णओ। जियसत्तू राया, धारिणी देवी, वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढो, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया।

Translated Sutra: अरिहंत भगवंतो को नमस्कार हो। उस काल, उस समय, मिथिला नामक नगरी थी। वह वैभव, सुरक्षा, समृद्धि आदि विशेषताओं से युक्त थी। मिथिला नगरी के बाहर ईशान कोण में माणिभद्र नामक चैत्य था। जितशत्रु राजा था। धारिणी पटरानी थी। तब भगवान्‌ महावीर वहाँ समवसृत हुए – लोग अपने – अपने स्थानों से रवाना हुए, भगवान्‌ ने धर्मदेशना
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 2 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिघसपह्मगोरे उग्ग-तवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबह्मचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्न-कोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले

Translated Sutra: उसी समय की बात है, भगवान्‌ महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी – शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार – जो गौतम गोत्र में उत्पन्न थे, जिनकी ऊंचाई सात हाथ थी, समचतुरस्र संस्थानसंस्थित, जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन, कसौटी पर अंकित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौरवर्ण थे, जो उग्र तपस्वी, दीप्त तपस्वी, तप्त – तपस्वी,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 11 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते– खाणुबहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्वयबहुले पवायबहुले उज्झरबहुले निज्झरबहुले खुड्डाबहुले दरिबहुले नदीबहुले दहबहुले रुक्खबहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले लयाबहुले वल्लीबहुले अडवीबहुले सावयबहुये तेनबहुले तक्करबहुले डिंबबहुले डमरबहुले दुब्भिक्खबहुले दुक्कालबहुले पासंडबहुले किवणबहुले वणीमगबहुले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत नामक वर्ष – क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्ल हिमवंत पर्वत के दक्षिण में, दक्षिणवर्ती लवणसमुद्र के उत्तर में, पूर्ववर्ती लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमवर्ती लवणसमुद्र के पूर्व में है। इसमें स्थाणुओं, काँटों, ऊंची – नीची भूमि, दुर्गमस्थानों, पर्वतों, प्रपातों, अवझरों, निर्झरों,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 22 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–ओसप्पिणिकालेउस्सप्पिणिकाले य। ओसप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुसमसुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समा-काले उस्सप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दुस्समदुस्समाको दुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले सुसमाकाले सुसमसुसमाकाले। एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया? गोयमा! असंखेज्जाणं सम-याणं समुदय-समिइ-समागमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में कितने प्रकार का काल है ? गौतम ! दो प्रकार का, अवस – र्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल। अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का, सुषम – सुषमाकाल, सुषमाकाल, सुषम – दुःषमाकाल, दुःषम – सुषमाकाल, दुःषमाकाल, दुःषम – दुःषमाकाल। उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 26 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं मुहुत्तप्पमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तो, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उदू, तिन्नि उदू अयने, दो अयना संवच्छरे, पंच संवच्छरिए जुगे, वीसं जुगाइं वाससए, दस वाससयाइं वाससहस्से, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्से, चउरासीइं वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीई पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं बिगुणं बिगुणं नेयव्वं–तुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे नलिनंगे नलिने अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे अउयंगे अउए नउयंगे नउए पउयंगे पउए चूलियंगे चूलिया जाव चउरासीइं सीसपहेलियंग-सयसहस्साइं सा एगा सीसपहेलिया। एतावताव

Translated Sutra: इस मुहूर्त्तप्रमाण से तीस मुहूर्त्तों का एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयनों का एक संवत्सर – वर्ष, पाँच वर्षों का एक युग, बीस युगों का एक वर्ष – शतक, दश वर्षशतकों का एक वर्ष – सहस्र, सौ वर्षसहस्रों का एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 27 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवमिए? ओवमिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पलिओवमे य सागरोवमे य। से किं तं पलिओवमे? पलिओवमस्स परूवणं करिस्सामि– परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य। अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिइ-समागमेणं वावहारिए परमाणू निप्फज्जइ, तत्थ नो सत्थं कमइ–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! औपमिक काल का क्या स्वरूप है ? गौतम ! औपमिक काल दो प्रकार का है – पल्योपम तथा सागरोपम। पल्योपम का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पल्योपम की प्ररूपणा करूँगा – परमाणु दो प्रकार का है – सूक्ष्म तथा व्यावहारिक परमाणु। अनन्त सूक्ष्म परमाणु – पुद्‌गलों के एक – भावापन्न समुदाय से व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 29 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणूणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिआइ वा सण्ह-सण्हियाइ वा उद्धरेणूइ वा तस-रेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जवमज्झेइ वा उस्सेहंगुलेइ वा अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू, अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ सा एगे देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे हरिवास-रम्मयवासाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ हेमवय-एरण्णवयाणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ

Translated Sutra: अनन्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदाय – संयोग से एक उत्‌श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है। आठ उत्‌श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिकाओं की एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है। आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओं का एक ऊर्ध्वरेणु होता है। आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु होता है। आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु होता है। आठ रथरेणुओं का देवकुरु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 31 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं सागरोवमप्पमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा, तिन्नि सागरोवम-कोडाकोडीओ कालो सुसमा दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा, एगा सागरोवम-कोडाकोडीओ बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दुस्सम-सुसमा, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दुस्समा, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दुस्समदुस्समा। पुनरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वास-सहस्साइं कालो दुस्समदुस्समा, एवं पडिलोमं नेयव्वं जाव चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा। दससागरोवमकोडाकोडीओ ओसप्पिणी, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी।

Translated Sutra: ऐसे सागरोपम परिमाण से सुषमसुषमा का काल चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम, सुषमा का काल तीन कोड़ाकोड़ी सागरोपम, सुषमदुःषमा का काल दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम, दुःषमसुषमा का काल ४२००० वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम, दुःषमा का काल २१००० वर्ष तथा दुःषमदुःषमा का काल २१००० वर्ष है। अव – सर्पिणी काल के छह आरों का परिमाण है। उत्सर्पिणी काल
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 32 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविधपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो य तणाण य भाणिअव्वो जाव तत्थ णं बहवे मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति। तीसे णं समाए भरहे वासे बहवे उद्दाला कोद्दाला मोद्दाला कयमाला नट्टमाला दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला सेयमाला नामं दुमगणा पन्नत्ता, कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के सुषमासुषमा नामक प्रथम आरे में, जब वह अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा में था, भरतक्षेत्र का आकार – स्वरूप अवस्थिति – सब किस प्रकार का था ? गौतम ! उस का भूमिभाग बड़ा समतल तथा रमणीय था। मुरज के ऊपरी भाग की ज्यों वह समतल था। नाना प्रकार के काले यावत्‌ सफेद मणियों एवं तृणों
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 34 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! तेणं मनुया सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा जाव लक्खण-वंजण-गुणोववेया सुजाय-सुविभत्त-संगयंगा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मणुईणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ताओ अइकंत-विसप्पमाणमउय-सुकुमाल-कुम्मसंठिय-विसिट्ठचलणाओ उज्जु-मउय पीवर-सुसाहयंगुलीओ अब्भुन्नय-रइय-तलिण-तंब सुइ निद्धनक्खा रोमरहिय-वट्ट-लट्टसंठिय-अजहण्ण-पसत्थलक्खण-अक्कोप्प-जंघजुयला सुनिम्मिय-सुगूढसुजाणू मंसलसुबद्धसंधीओ कयलीखंभाइरेकसंठिय-निव्वण-सुकुमाल-मउय-मंसलअविरल-समसंहियसुजायवट्टपीवरनिरंतरोरू

Translated Sutra: उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार – स्वरूप कैसा था ? गौतम ! उस समय वहाँ के मनुष्य बड़े सुन्दर, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थे। उनके चरण – सुन्दर रचना युक्त तथा कछुए की तरह उठे हुए होने से मनोज्ञ प्रतीत होते थे इत्यादि वर्णन पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! उस समय भरतक्षेत्र में स्त्रियों का आकार – स्वरूप कैसा था ? गौतम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 35 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते मनुआणं केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! अट्ठमभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ पुढवी पुप्फफलाहारा णं ते मनुआ पन्नत्ता समणाउसो। तीसे णं भंते! पुढवीए केरिसए आसाए पन्नत्ते? गोयमा! से जहानामए गुलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा मच्छंडियाइ वा पप्पडमोयएइ वा भिसेइ वा पुप्फुत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाइ वा महाविजयाइ वा आकासियाइ वा आदंसियाइ वा आगासफलोवमाइ वा उग्गाइ वा अणोवमाइ वा, भवे एयारूवे? नो इणट्ठे समट्ठे। सा णं पुढवी इत्तो इट्ठतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुन्नतरिया चेव मणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता। तेसि णं भंते! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पन्नत्ते?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उन मनुष्यों को कितने समय बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है ? हे गौतम ! तीन दिन के बाद होती है। कल्पवृक्षों से प्राप्त पृथ्वी तथा पुष्प – फल का आहार करते हैं। उस पृथ्वी का आस्वाद कैसा होता है ? गौतम ! गुड़, खांड़, शक्कर, मत्स्यंडिका, राब, पर्पट, मोदक, मृणाल, पुष्पोत्तर, पद्मोत्तर, विजया, महाविजया, आकाशिका, आदर्शिका,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 38 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए भारहे वासे मनुयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। तीसे णं समाए भरहे वासे मनुयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। ते णं भंते! मनुया किं संघयणी पन्नत्ता? गोयमा! वइरोसभणारायसंघयणी पन्नत्ता। तेसि णं भंते! मनुयाणं सरीरा किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! समचउरंससंठाणसंठिया पन्नत्ता। तेसि णं मनुयाणं बेछप्पणा पिट्ठिकरंडगसया पन्नत्ता समणाउसो! । ते णं भंते! मनुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? गोयमा! छम्मासावसेसाउया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों की स्थिति – आयुष्य कितने काल का होता है ? गौतम ! आयुष्य जघन्य – कुछ कम तीन पल्योपम का तथा उत्कृष्ट – तीन पल्योपम का होता है। उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों के शरीर कितने ऊंचे होते हैं ? गौतम ! जघन्यतः कुछ कम तीन कोस तथा उत्कृष्टतः तीन कोस ऊंचे होते हैं। उन मनुष्यों का संहनन
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 39 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए चउहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं सुसमा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! । जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे

Translated Sutra: गौतम ! प्रथम आरक का जब चार सागर कोड़ा – कोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ हो जाता है। उसमें अनन्त वर्ण, अनन्त गंध, अनन्त रस, अनन्त स्पर्श, अनन्त संहनन, अनन्त संस्थान, अनन्त उच्चत्व, अनन्त आयु, अनन्त गुरु – लघु, अनन्त अगुरु – लघु, अनन्त उत्थान – कर्म – बल – वीर्य – पुरुषकार
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 40 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्थ णं सुसमदुस्समा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! । सा णं समा तिहा विभज्जइ–पढमे तिभाए, मज्झिमे तिभाए, पच्छिमे तिभाए। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे

Translated Sutra: गौतम ! द्वितीय आरक का तीन सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी – काल का सुषम – दुःषमा नामक तृतीय आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त वर्ण – पर्याय यावत्‌ पुरुषकार – पराक्रमपर्याय की अनन्त गुण परिहानि होती है। उस आरक को तीन भागों में विभक्त किया है – प्रथम त्रिभाग, मध्यम त्रिभाग, अंतिम त्रिभाग।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 43 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिंसि, एत्थ णं उसहे नामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था। तए णं उसभे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारावासमज्झावसइ, अज्झावसित्ता तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसइ, तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झा-वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चोसट्ठिं महिला गुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिन्नि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावस, अज्झावसत्ता... ...जेसे

Translated Sutra: नाभि कुलकर के, उन की भार्या मरुदेवी की कोख से उस समय ऋषभ नामक अर्हत्‌, कौशलिक, प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर चतुर्दिग्व्याप्त अथवा चार गतियों का अन्त करने में सक्षम धर्म – साम्राज्य के प्रथम चक्रवर्ती उत्पन्न हुए। कौशलिक अर्हत्‌ ऋषभ ने बीस लाख पूर्व कुमार – अवस्था में व्यतीत किए। तिरेसठ
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 44 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए

Translated Sutra: कौशलिक अर्हत्‌ ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात्‌ निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत्‌ यावत्‌ जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक्‌ भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान्‌ ऐसे उत्तम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 46 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता, तेवट्ठिं पुव्वसय-सहस्साइं रज्जवासमज्झा वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे

Translated Sutra: कौशलिक भगवान्‌ ऋषभ वज्रऋषभनाराचसंहनन युक्त, समचौरससंस्थानसंस्थित तथा ५०० धनुष दैहिक ऊंचाई युक्त थे। वे २० लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा ६३ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे। यों ८३ लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात्‌ मुंडित होकर अगारवास से अनगार – धर्म में प्रव्रजित हुए। १००० वर्ष छद्मस्थ – पर्याय
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 47 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमप-ज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए० परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! । तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे

Translated Sutra: गौतम ! तीसरे आरक का दो सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम – सुषमा नामक चौथा आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है। भगवन्‌ ! उस समय भरतक्षेत्र का आकार – स्वरूप कैसा होता है ? गौतम ! उस समय भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है यावत्‌
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 48 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए [भरहे वासे] एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहि अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण कम्म बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कम पज्जवेहिं अनंतगुण परिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमा नामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! । तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ?

Translated Sutra: गौतम ! चतुर्थ आरक के ४२००० वर्ष कम एक सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत हो जाने पर अव – सर्पिणी – काल का दुःषमा नामक पंचम आरक प्रारंभ होता है। उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है। भगवन्‌ ! उस काल में भरतक्षेत्र का कैसा आकार – स्वरूप होता है ? गौतम ! भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 60 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पेगइयाओ वंदनकलसहत्थगयाओ भिंगार आदंस थाल पाति सुपइट्ठग बायकरग रयणकरंड पुप्फचंगेरी मल्ल वण्ण चुण्ण गंधहत्थगयाओ वत्थ आभरण लोमहत्थयचंगेरी पुप्फपडलहत्थ- गयाओ जाव लोमहत्थगडलहत्थगयाओ अप्पेगइयाओ सीहासनहत्थगयाओ छत्त चामर हत्थ-गयाओ तेल्लसमुग्गयहत्थगयाओ कोट्ठसमुग्गयहत्थगयाओ जाव सासवसमुग्गहत्थगयाओ। अप्पेगइयाओ तालियंटहत्थगयाओ धूवकडुच्छुयहत्थगयाओ भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्ठओ अनुगच्छंति। तए णं से भरहे राया सव्विड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थ पुप्फ गंध मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय सद्दसन्निनाएणं

Translated Sutra: उनमें से किन्हीं – किन्हीं के हाथों में मंगलकलश, भृंगार, दर्पण, थाल, छोटे पात्र, सुप्रतिष्ठक, वातकरक, रत्न करंडक, फूलों की डलियाँ, माला, वर्ण, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभूषण, मोर – पंखों से बनी फूलों की गुलदस्तों से भरी डलियाँ, मयूरपिच्छ, सिंहासन, छत्र, चँवर तथा तिलसमुद्‌गक – आदि भिन्न – भिन्न वस्तुएं थीं। यों वह राजा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 62 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं अस्सरहं दुरुढे समाणे हय गय रह पवरजोहकलियाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभडचडगर पहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अनेगरायवरसहस्साणुजायमग्गे महया उक्किट्ठि सीहनाय बोल कलकलरवेणं पक्खु भियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे-करेमाणे पुरत्थिम-दिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुद्दं ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला। तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धनुं परामुसइ। तए णं तं अइरुग्गयबालचंद इंदधनु सन्निकासं वरमहिस दरिय दप्पिय दढघणसिंगग्गरइयसारं उरगवर पवरगवल पवरपरहुय भमरकुल णीलि णिद्ध धंत धोयपट्टं निउणोविय

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राज भरत चातुर्घंट – अश्वरथ पर सवार हुआ। वह घोड़े, हाथी, रथ तथा पदातियों से युक्त चातुरंगिणी सेना से घिरा था। बड़े – बड़े योद्धाओं का समूह साथ चल रहा था। हजारों मुकुटधारी श्रेष्ठ राजा पीछे – पीछे चल रहे थे। चक्ररत्न द्वारा दिखाये गये मार्ग पर वह आगे बढ़ रहा था। उस के द्वारा किये गये सिंहनाद के कलकल शब्द
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 68 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदामतित्थाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेह, आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह त्तिकट्टु मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता तेणेव कमेणं जाव धवलमहामेहनिग्गए जाव सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं-उद्धुव्वमाणीहिं, मगइयवरफलग पवरपरिगरखेडय वरवम्म कवय माढी सहस्स-कलिए उक्कडवरमउड तिरीड पडाग झय वेजयंति चामरचलंत

Translated Sutra: राजा भरत ने दिव्य चक्ररत्न को दक्षिण – पश्चिम दिशा में वरदामतीर्थ की ओर जाते हुए देखा। वह बहुत हर्षित तथा परितुष्ट हुआ। उस के कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं – से परिगठित चातुरंगिणी सेना को तैयार करो, आभिषेक्य हस्तिरत्न को शीघ्र ही सुसज्ज करो। यों कहकर राजा स्नानघर में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 69 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आसम दोणमुह गाम पट्टण पुरवर खंधावार गिहावणविभागकुसले, एगासीतिपदेसु सव्वेसु चेव वत्थूसु नेगगुणजाणए पंडिए विहिण्णू पणयालीसाए देवयाणं, वत्थुपरिच्छाए नेमिपासेसु भत्तसालासु कोट्टणिसु य वासघरेसु य विभागकुसले, छेज्जे वेज्झे य दानकम्मे पहाणबुद्धी, जलयाणं भूमियाण य भायणे, जलथलगुहासु जंतेसु परिहासु य कालनाणे, तहेव सद्दे वत्थुप्पएसे पहाणे, गब्भिणि कण्ण रुक्ख वल्लिवेढिय गुणदोसवियाणए, गुणड्ढे, सोलसपासायकरणकुसले, चउसट्ठि-विकप्पवित्थयमई, नंदावत्ते य वद्धमाणे सोत्थियरुयग तह सव्वओभद्दसन्निवेसे य बहुविसेसे, उद्दंडिय देव कोट्ठ दारु गिरि खाय वाहन विभागकुसले

Translated Sutra: वह शिल्पी आश्रम, द्रोणमुख, ग्राम, पट्टन, नगर, सैन्यशिबिर, गृह, आपण – इत्यादि की समुचित संरचना में कुशल था। इक्यासी प्रकार के वास्तु – क्षेत्र का जानकार था। विधिज्ञ था। विशेषज्ञ था। विविध परम्परानुगत भवनों, भोजनशालाओं, दुर्ग – भित्तियों, वासगृहों – के यथोचित रूप में निर्माण करने में निपुण था। काठ आदि के छेदन
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 73 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं तं धरणितलगमनलहु ततोव्विद्ध लक्खणपसत्थं हिमवंत कंदरंतरणिवाय संवद्धिय चित्त तिनिसदलियं जंबूणयसुकयकुव्वरं कनयदंडियारं पुलय वइर इंदणील सासग पवाल फलिहवर रयण लेट्ठु मणि विद्दुमविभूसियं अडयालीसारर-इयतवणिज्जपट्टसंगहिय जुत्ततुंबं पघसियपसिय-निम्मियनवपट्ट पुट्ठ परिनिट्ठियं विसिट्ठलट्ठणवलोहवद्धकम्मं हरिपहरणरयणसरिसचक्कं कक्केयण-इंदणी सासगसुसमाहिय बद्धजालकंकडं पसत्थविच्छिण्णसमधुरं पुरवरं व गुत्तं सुकरणतवणिज्ज-जुत्तकलियं कंकडगणिजुत्तकप्पणं पहरणानुजायं खेडग कनग धनु मंडलग्ग वरसत्ति कोंत तोमर सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं कनगरयणचित्तं जुत्तं हलीमुह

Translated Sutra: वह रथ पृथ्वी पर शीघ्र गति से चलनेवाला था। अनेक उत्तम लक्षण युक्त था। हिमालय पर्वत की वायु – रहित कन्दराओं में संवर्धित तिनिश नामक रथनिर्माणोपयोगी वृक्षों के काठ से बना था। उसका जुआ जम्बूनद स्वर्ण से निर्मित था। आरे स्वर्णमयी ताड़ियों के थे। पुलक, वरेन्द्र, नील सासक, प्रवाल, स्फटिक, लेष्टु, चन्द्रकांत, विद्रुम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 76 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेनावइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छाहि णं भो देवानुप्पिया! सिंधूए महानईए पच्चत्थिमिल्लं निक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तते णं से सेनावई बलस्स नेया, भरहे वासंमि विस्सुयजसे, महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निण्णाण य दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थ-कुसले रयणं सेनावई सुसेने

Translated Sutra: कृतमाल देव के विजयोपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर राजा भरत ने अपने सुषेण सेनापति को बुलाकर कहा – सिंधु महानदी के पश्चिम से विद्यमान, पूर्व में तथा दक्षिण में सिन्धु महानदी द्वारा, पश्चिम में पश्चिम समुद्र द्वारा तथा उत्तर में वैताढ्य पर्वत द्वारा विभक्त भरतक्षेत्र के कोणवर्ती
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 77 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अन्नया कयाइ सुसेणं सेनावइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छ णं खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से सुसेने सेनावई भरहेणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुनेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रन्नो अंतियाओ पडिनि-क्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भसंथारगं संथरइ,

Translated Sutra: राजा भरत ने सेनापति सुषेण को बुलाकर कहा – जाओ, शीघ्र ही तमिस्र गुफा के दक्षिणी द्वार के दोनों कपाट उद्‌घाटित करो। राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर सेनापति सुषेण अपने चित्त में हर्षित, परितुष्ट तथा आनन्दित हुआ। उसने अपने दोनों हाथ जोड़े। विनयपूर्वक राजा का वचन स्वीकार किया। पौषधशाला में आया। डाभ का बिछौना
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 78 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया मणिरयणं परामुसइ– तो तं चउरंगुलप्पमाणमेत्तं च अनग्घियं तंसच्छलंसं अनोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं वेढो– जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, ण किंचि जायइ हवइ आरोग्गे य सव्वकालं। तेरिच्छिय-देवमाणुसकया य, उवसग्गा सव्वे न करेंति तस्स दुक्खं। संगामे वि असत्थवज्झो, होइ णरो मणिवरं धरेंतो। ठियजोव्वण-केसअवट्ठियणहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को। तं मणिरयणं गहाय से नरवई हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए निक्खिवइ। तए णं से भरहाहिवे नरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए नरसीहे नरवई नरिंदे नरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राजा भरत ने मणिरत्न का स्पर्श किया। वह मणिरत्न विशिष्ट आकारयुक्त, सुन्दरतायुक्त था। चार अंगुल प्रमाण था, अमूल्य था – वह तिखूंटा, ऊपर नीचे षट्‌कोणयुक्त, अनुपम द्युतियुक्त, दिव्य, मणिरत्नों में सर्वोत्कृष्ट, सब लोगों का मन हरने वाला था – जो सर्व – कष्ट – निवारक था, सर्वकाल आरोग्यप्रद था। उस के प्रभाव
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 80 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरड्ढभरहे वासे बहवे आवाडा नामं चिलाया परिवसंति–अड्ढा दित्ता बित्ता विच्छिण्णविउलभवन सयणासण जानवाहनाइण्णा बहुधन बहुजायरूवरयया आओगपओग-संपउत्ता विच्छड्डियपउरभत्तपाणा बहुदासी-दास गो महिस गवेलगप्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया सूरा वीरा विक्कंता विच्छिण्णविउलबलबाहणा बहुसु समरसंपराएसु लद्धलक्खा यावि होत्था। तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अन्नया कयाइ विसयंसि बहूइं उप्पाइयसयाइं पाउब्भवित्था, तं जहा– अकाले गज्जियं, अकाले विज्जुयं, अकाले पायवा पुप्फंति, अभिक्खणं-अभिक्खणं आगासे देवयाओ नच्चंति। तए णं ते आवाडचिलाया विसयंसि बहूइं उप्पाइयसयाइं

Translated Sutra: उस समय उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में – आपात संज्ञक किरात निवास करते थे। वे आढ्य, दीप्त, वित्त, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन तथा स्वर्ण, रजत आदि प्रचुर धन के स्वामी थे। आयोग – प्रयोग – संप्रवृत्त – थे। उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खाने – पीने के बहुत पदार्थ बचते थे। उनके घरों में बहुत से नौकर – नौकरानियाँ, गायें, भैंसे,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 81 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेनाबलस्स नेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निन्नाणय दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेनावई सुसेने भरहस्स रन्नो अग्गाणीयं आवाड-चिलाएहिं हयमहियपवरवीर घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरुहइ, तए णं तं असीइमंगुलमूसियं नवनउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसिय सिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाकं चउरंगुलजण्णुकं

Translated Sutra: सेनापति सुषेण ने राजा भरत के सैन्य के अग्रभाग के अनेक योद्धाओं को आपात किरातों द्वारा हत, मथित देखा। सैनिकों को भागते देखा। सेनापति सुषेण तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल एवं कुपित हुआ। वह मिसमिसाहट करता हुआ – कमलामेल नामक अश्वरत्न पर – आरूढ़ हुआ। वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊंचा था, निन्यानवे अंगुल मध्य परिधियुक्त
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 84 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते आवाडचिलाया सुसेनसेनावइणा हयमहिय पवरवीरघाइय विवडियचिंधद्धयपडागा किच्छ- प्पाणोवगया दिसोदिसिं पडिसेहिया समाणा भीया तत्था वहिया उव्विग्गा संजायभया अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमितिकट्टु अनेगाइं जोयणाइं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता एगयओ मिलायंति, मिलायित्ता जेणेव सिंधू महानई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वालुयासंथारए संथरेंति, संथरेत्ता वालुयासंथारए दुरुहंति, दुरुहित्ता अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति, पगिण्हित्ता वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया जे तेसिं कुलदेवया मेहमुहा नामं नागकुमारा देवा ते मनसीकरेमाणा-मनसीकरेमाणा

Translated Sutra: सेनापति सुषेण द्वारा हत – मथित किये जाने पर, मेदान छोड़कर भागे हुए आपात किरात बड़े भीत, त्रस्त, व्यथित, पीड़ायुक्त, उद्विग्न होकर घबरा गये। वे अपने को निर्बल, निर्वीर्य तथा पौरुष – पराक्रम रहित अनुभव करने लगे। शत्रु – सेना का सामना करना शक्य नहीं है, यह सोचकर वे वहाँ से अनेक योजन दूर भाग गये। यों दूर जाकर वे एक स्थान
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 88 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया छत्तरयणं खंधावारस्सुवरिं ठवेइ, ठवेत्ता मणिरयणं परामुसइ– तो तं चउरंगुल-प्पमाणमेत्तं च अणग्घियं तंसच्छलंसं अनोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं– जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, न किंचि जायइ हवइ आरोग्गे य सव्वकालं । तेरिच्छिय-देवमानुसकया य, उवसग्गा सव्वे न करेंति तस्स दुक्खं ॥ संगामे वि असत्थवज्झो, होइ नरो मणिवरं धरेंतो । ठियजोव्वण-केसअवट्ठिय-नहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को ॥ तं मणिरयणं गहाय छत्तरयणस्स वत्थिभागंसि ठवेइ, तस्स य अनतिवरं चारुरूवं सिलनिहि-यत्थमंतसित्त सालि जव गोहूम मुग्ग मास तिल कुलत्थ सट्ठिग निप्फाव चणग कोद्दव कोत्थुंभरि

Translated Sutra: राजा भरत ने छत्ररत्न को अपनी सेना पर तान दिया। मणिरत्न का स्पर्श किया। उस मणिरत्न को राजा भरत ने छत्ररत्न के बस्तिभाग में – स्थापित किया। राजा भरत के साथ गाथापतिरत्न था। वह अपनी अनुपम विशेषता – लिये था। शिला की ज्यों अति स्थिर चर्मरत्न पर केवल वपन मात्र द्वारा शालि, जौ, गेहूँ, मूँग, उर्द, तिल, कुलथी, षष्टिक,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 91 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वसुहर! गुणहर! जयहर! हिरिसिरिधीकित्तिधारकनरिंद! लक्खणसहस्सधारक! रायमिणं णे चिरं धारे ॥

Translated Sutra: षट्‌खण्डवर्ती वैभव के स्वामिन्‌ ! गुणभूषित ! जयशील ! लज्जा, लक्ष्मी, धृति, कीर्ति के धारक ! राजोचित सहस्रों लक्षणों से सम्पन्न ! नरेन्द्र ! हमारे इस राज्य का चिरकाल पर्यन्त आप पालन करें।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 92 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हयवति! गयवति! नरवति! नवनिहिवति! भरहवासपढमवति! बत्तीसजनवयसहस्सराय! सामी चिरं जीव ॥

Translated Sutra: अश्वपते ! गजपते ! नरपते ! नवनिधिपते ! भरत क्षेत्र के प्रथमाधिपते ! बत्तीस हजार देशों के राजाओं के अधिनायक ! आप चिरकाल तक जीवित रहें – दीर्घायु हों।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 97 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता जेणेव उसहकूडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसहकूडं पव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ, फुसित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता छत्तलं दुवालसं- सियं अट्ठकण्णियं अहिगरणिसंठियं सोवण्णियं काग-निरयणं परामुसइ, परामुसित्ता उसभकूडस्स पव्वयस्स पुरत्थिमिल्लंसि कडगंसि नामगं आउडेइ–

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राजा भरत ने अपने रथ के घोड़ों को नियन्त्रित किया। रथ को वापस मोड़ा। ऋषभकूट पर्वत आया। रथ के अग्र भाग से तीन बार ऋषभकूट पर्वत का स्पर्श किया। काकणी रत्न का स्पर्श किया। वह रत्न चार दिशाओं तथा ऊपर, नीचे छह तलयुक्त था। यावत्‌ अष्टस्वर्णमानपरिमाण था। राजा ने काकणी रत्न का स्पर्श कर ऋषभकूट पर्वत के
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 102 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिसु तनुयं तिसु तंबं तिवलीणं तिउन्नयं तिगंभीरं । तिसु कालं तिसु सेयं तियायतं तिसु य विच्छिण्णं ॥

Translated Sutra: वह तीन स्थानों में – कृश थी। तीन स्थानों में लाल थी। त्रिवलियुक्त थी। तीन स्थानों में – उन्नत थी। तीन स्थानों में गंभीर थी। तीन स्थानों में कृष्णवर्ण थी। तीन स्थानों में – श्वेतता लिये थी। तीन स्थानों में – लम्बाई लिये थी। तीन स्थानों में – चौड़ाई युक्त थी।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 103 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समसरीरं भरहे वासंमि सव्वमहिलप्पहाणं सुंदरथण जघन वरकर चरण नयन सिरसिजदसण जननहिदयरमण मनहरिं सिंगारागार चारुवेसं संगयगय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास संलाव निउण जुत्तोवयारकुसलं अमरबहूणं, सुरूवं रूवेणं अनुहरंति सुभद्दं भद्दंमि जोव्वणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं, नमी य रयणाणि य कडगाणि य तुडियाणिय गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं

Translated Sutra: वह समचौरस दैहिक संस्थानयुक्त थी। भरतक्षेत्र में समग्र महिलाओं में वह प्रधान – थी। उसके स्तन, जघन, हाथ, पैर, नेत्र, केश, दाँत – सभी सुन्दर थे, देखने वाले पुरुष के चित्त को आह्लादित करनेवाले थे, आकृष्ट करनेवाले थे। वह मानो शृंगार – रस का आगार थी। लोक – व्यवहार में वह कुशल थी। वह रूप में देवांगनाओं के सौन्दर्य का
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 104 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे गंगाए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघर- सालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडिय सद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं गंगाए महानईए पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसिं खंडप्पवाय गुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था। तते णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महानईए पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसिं खंडप्पवायगुहाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव जेणेव खंडप्पवायगुहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सव्वा कय-मालकवत्तव्वया नेयव्वा, नवरि–नट्ट-मालगे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। उसने गंगा महानदी के पश्चिमी किनारे दक्षिण दिशा के खण्डप्रपात गुफा की ओर प्रयाण किया। तब राजा भरत खण्डप्रपात गुफा आया। शेष कथन तमिस्रा गुफा के अधिपति कृतमाल देव समान है। केवल इतना सा अन्तर है, खण्डप्रपात गुफा के अधिपति नृत्तमालक देव ने प्रीतिदान
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 105 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया गंगाए महानईए पच्चत्थिमिल्ले कूले दुवालसजोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुनेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रन्नो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ – गुफा से निकलने के बाद राजा भरत ने गंगा महानदी के पश्चिमी तट पर बारह योजन लम्बा, नौ योजन चौड़ा, श्रेष्ठ – नगर – सदृश – सैन्यशिबिर स्थापित किया। शेष कथन मागध देव समान है। फिर राजा ने नौ निधिरत्नों को – उद्दिष्ट कर तेला किया। राजा भरत नौ निधियों का मन में चिन्तन करता हुआ पौषधशाला में अवस्थित रहा। नौ
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 106 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नेसप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयण महापउमे । कालेमहाकाले, मानवग महानिही संखे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०५
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 112 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काले कालन्नाणं, भव्वपुराणं च तिसुवि वासेसु । सिप्पसयं कम्माणि य, तिन्नि पयाए हियकराणि ॥

Translated Sutra: काल निधि – समस्त ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान, तीर्थंकर, चक्रवर्ती तथा बलदेव – वासुदेव – वंश में जो शुभ, अशुभ घटित हुआ, होगा, हो रहा है, उन सब के ज्ञान, सौ प्रकार के शिल्पों के ज्ञान, उत्तम, मध्यम तथा अधम कर्मों के ज्ञान को उत्पन्न करने में समर्थ होती है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 113 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकाले आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि-मोत्ति-सिल-प्पवालाणं ॥

Translated Sutra: महाकाल निधि – विविध प्रकार के लोह, रजत, स्वर्ण, मणि, मोती, स्फटिक तथा प्रवाल आदि के आकारों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 121 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो निज्जियसत्तू उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे नवनिहिवई समिद्धकोसे बत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सण्णा हेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह निग्गए

Translated Sutra: राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया – । शत्रुओं को जीता। उसके यहाँ समग्र रत्न उद्‌भूत हुए। नौ निधियाँ प्राप्त हुईं। खजाना समृद्ध था – । बत्तीस हजार राजाओं से अनुगत था। साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र को साध लिया। तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियों ! शीघ्र
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 122 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अभिजिए णं मए नियगबल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमेणं चुल्ल-हिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महयारायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तए त्तिकट्टु एवं संपेहेति, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर संडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिंमि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ,

Translated Sutra: राजा भरत अपने राज्य का दायित्व सम्हाले था। एक दिन उसके मन में ऐसा भाव, उत्पन्न हुआ – मैंने अपना बल, वीर्य, पौरुष एवं पराक्रम द्वारा समस्त भरतक्षेत्र को जीत लिया है। इसलिए अब उचित है, मैं विराट्‌ राज्याभिषेक – समारोह आयोजित करवाऊं, जिसमें मेरा राजतिलक हो। दूसरे दिन राजा भरत, स्नान कर बाहर निकला, पूर्व की ओर मुँह
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 125 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अन्नया कयाइ जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाण-मंडवंसि नानामणि रयण भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसन्ने सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जनविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमाला वण्णग विलेवने आविद्ध-मणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार तिसरय पालंबपलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे

Translated Sutra: किसी दिन राजा भरत ने स्नान किया। देखने में प्रिय एवं सुन्दर लगनेवाला राजा स्नानघर से बाहर निकला। जहाँ आदर्शगृह में, जहाँ सिंहासन था, वहाँ आया। पूर्व की और मुँह किये सिंहासन पर बैठा। शीशों पर पड़ते अपने प्रतिबिम्ब को बार बार देखता था। शुभ परिणाम, प्रशस्त – अध्यवसाय, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं, विशुद्धिक्रम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 129 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महानई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिन्नि य एगून-वीसइभाए जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ। गंगा महानई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पन्नत्ता। सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा। गंगा महानई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते–सट्ठिं

Translated Sutra: उस पद्मद्रह के पूर्वी तोरण – द्वार से गंगा महानदी निकलती है। वह पर्वत पर पाँच ५०० बहती है, गंगावर्त कूट के पास से वापस मुड़ती है, ५२३ – ३/१९ योजन दक्षिण की ओर बहती है। घड़े के मुँह से निकलते हुए पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक, मोतियों के बने हार के सदृश आकार में वह प्रपात – कुण्ड में गिरती है। उस समय
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 131 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेमवए नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए नामं वासे पन्नत्ते– पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेपलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे– पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, दोन्नि य जोयणसहस्साइं एगं च पंचुत्तरं जोयणसयं पंच य एगूनवीसइभाए जोयणस्स विक्खं-भेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीपमें हैमवत क्षेत्र कहाँ है ? महाहिमवान्‌ वर्षधरपर्वत के दक्षिण में, चुल्ल हिमवान्‌ वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा उत्तर – दक्षिण चौड़ा, पलंग आकारमें अवस्थित है। दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है,
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