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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 357 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरे णं भंते! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो। बायरपुढविकाइयाआउतेउ वाउपत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयस्स बायरनिओयस्स एतेसिं जहन्नेणं अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ संखातीयाओ समाओ अंगुलभागे तहा असंखेज्जा ओहे य वायरतरु अनुबंधो सेसओ वोच्छं, बादरपुढविसंचिट्ठणा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ जाव बादरवाऊ।
बादरवणस्सतिकाइयस्स जहा ओहिओ।
बादरपत्तेयवणस्सतिकाइयस्स जहा बादरपुढवी। निओते जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! बादर जीव, बादर के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणियाँ हैं तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक – एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लेप हो जाएं, उतने | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 362 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयाणि– सव्वत्थोवा बायरतसकाइया, बायरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादर-वणस्सतिकाइया असंखेज्जगुणा, बायरणिओया असंखेज्जगुणा, बायरपुढविकाइया असंखेज्ज-गुणा आउवाउकाइया असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सतिकाइया अनंतगुणा, बायरा विसेसाहिया। एवं अपज्जत्तगाणवि। पज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया, बायरतसकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेगसरीरबायरा असंखेज्जगुणा, सेसा तहेव जाव बादरा विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! बायराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्व त्थोवा बायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, एवं सव्वे Translated Sutra: प्रथम औघिक अल्पबहुत्व – सबसे थोड़े बादर त्रसकाय, उनसे बादर तेजस्काय असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्काय, बादर वायुकाय क्रमशः असंख्येयगुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनन्तगुण, उनसे बादर विशेषाधिक। अपर्याप्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 363 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविधा णं भंते! निओदा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–निओदा य निओदजीवा य।
निओदा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमनिओदा य बायरनिओदा य।
सुहुमनिओदा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य।
बादरनिओदावि दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य। Translated Sutra: भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – निगोद और निगोदजीव। भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – सूक्ष्म और बादर। भगवन् ! सूक्ष्मनिगोद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। बादरनिगोद भी दो प्रकार के हैं – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। भगवन् ! निगोदजीव | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 364 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निओदा णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता
अपज्जत्ता णं भंते! निओदा दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता।
पज्जत्ता णं भंते! निओदा दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता।
सुहुमनिओदा णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता।
अपज्जत्ता णं भंते! सुहुमनिओदा दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, असंखेज्जा, नो अनंता।
पज्जत्ता णं भंते! सुहुमनिओदा दव्वट्ठयाए Translated Sutra: भगवन् ! निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त और अपर्याप्त सूत्र भी कहना। भगवन् ! सूक्ष्मनिगोद द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं। इसी प्रकार पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूत्र भी कहना। इसी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अष्टविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 366 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु अट्ठविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पढमसमयनेरइया अपढमसमय-नेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमनुस्सा अपढम-समयमनुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा।
पढमसमयनेरइयस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगं समयं ठिती पन्नत्ता।
अपढमसमयनेरइयस्स जहन्नेणं दसवाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं।
एवं सव्वेसिं पढमसमयगाणं एगं समयं।
अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं समयूणाइं।
मनुस्साणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव आठ प्रकार के हैं, उनके अनुसार – १. प्रथमसमय – नैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमय मनुष्य ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव और ८. अप्रथमसमयदेव। स्थिति – भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 368 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–पढमसमयएगिंदिया अपढमसमयएगिंदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया पढमसमयतेइंदिया अपढमसमय-तेइंदिया पढमसमयचउरिंदिया अपढमसमयचउरिंदिया पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया।
पढमसमयएगिंदियस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! एगं समयं। अपढमसमयएगिंदियस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समयूणाइं। एवं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं एगं समयं, अपढमसमयिकाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयूणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं Translated Sutra: जो आचार्यादि दस प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, वे कहते हैं – १. प्रथमसमय – एकेन्द्रिय, २. अप्रथमसमयएकेन्द्रिय, ३. प्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ४. अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ५. प्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ६. अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ७. प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ८. अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ९. प्रथमसमयपंचेन्द्रिय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 369 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सव्वजीवाभिगमे? सव्वजीवेसु णं इमाओ नव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जंति। एगे एवमाहंसु–दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता जाव दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता।
तत्थ णं जेते एवमाहंसु दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा– सिद्धा चेव असिद्धा चेव।
सिद्धे णं भंते! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! साइए अपज्जवसिए।
असिद्धे णं भंते! असिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! असिद्धे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनाइए वा अपज्जवसिए, अनाइए वा सपज्जवसिए।
सिद्धस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? गोयमा! साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं।
असिद्धस्स णं भंते! केवइयं अंतरं होइ? गोयमा! अनाइयस्स Translated Sutra: भगवन् ! सर्वजीवाभिगम क्या है ? गौतम ! सर्वजीवाभिगम मे नौ प्रतिपत्तियाँ कही हैं। उनमें कोई ऐसा कहते हैं कि सब जीव दो प्रकार के हैं यावत् दस प्रकार के हैं। जो दो प्रकार के सब जीव कहते हैं, वे ऐसा कहते हैं, यथा – सिद्ध और असिद्ध। भगवन् ! सिद्ध, सिद्ध के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! सादिअपर्यवसित। भगवन् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 370 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–सइंदिया चेव अनिंदिया चेव।
सइंदिए णं भंते! सइंदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ? गोयमा! सइंदिए दुविहे पन्नत्ते–अनाइए वा अपज्जवसिए, अनाइए वा सपज्जवसिए, अनिंदिए साइए वा अपज्जवसिए। दोण्हवि अंतरं नत्थि।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा अनिंदिया, सइंदिया अनंतगुणा।
अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–सकाइया चेव अकाइया चेव।
सकाइयस्स संचिट्ठणंतरं जहा असिद्धस्स, अकाइयस्स जहा सिद्धस्स।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा अकाइया, सकाइया अनंतगुणा।
अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–अजोगी य सजोगी य तधेव।
अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–सवेदगा Translated Sutra: अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं, यथा – सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। भगवन् ! सेन्द्रिय, सेन्द्रिय के रूप में काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं – अनादि – अपर्यवसित और अनादि – सपर्य – वसित। अनिन्द्रिय में सादि – अपर्यवसित हैं। दोनों में अन्तर नहीं है। सेन्द्रिय की वक्तव्यता असिद्ध की | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 371 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा नाणी चेव अन्नाणी चेव।
नाणी णं भंते! नाणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! नाणी दुविहे पन्नत्ते–सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं।
अन्नाणी तिविहे जहा सवेदए।
नाणिस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! सादीयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं।
अन्नाणिस्स अंतरं अनादीयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अनादीयस्स सपज्जवसियस्स Translated Sutra: अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं – ज्ञानी और अज्ञानी। भगवन् ! ज्ञानी, ज्ञानीरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। इनमें जो सादि – सपर्यवसित हैं वे जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक ६६ सागरोपम तक रह सकते हैं। अज्ञानी का कथन सवेदक समान है। ज्ञानी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 372 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–आहारगा चेव अनाहारगा चेव।
आहारए णं भंते! आहारएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! आहारए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–छउमत्थआहारए य केवलिआहारए य।
छउमत्थआहारगस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमयूणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं।
केवलिआहारए णं भंते! केवलिआहारएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
अनाहारए णं भंते! अनाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! अनाहारए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–छउमत्थअनाहारए य केवलिअनाहारए य।
छउमत्थअनाहारए Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं – आहारक और अनाहारक। भगवन् ! आहारक, आहारक के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! आहारक दो प्रकार के हैं – छद्मस्थ – आहारक और केवलि – आहारक। छद्मस्थ – आहारक, आहारक के रूप में ? गौतम ! जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से असंख्येय काल तक यावत् क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल का असंख्यातवाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 373 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–भासगा य अभासगा य।
भासए णं भंते! भासएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
अभासए णं भंते! अभासएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! अभासए दुविहे पन्नत्ते–साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
भासगस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सति-कालो।
अभासगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं – सभाषक और अभाषक। भगवन् ! सभाषक, सभाषक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त्त। गौतम ! अभाषक दो प्रकार के हैं – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। इनमें जो सादि – सपर्यवसित अभाषक हैं, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट में अनन्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 375 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा–सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी।
सम्मदिट्ठी णं भंते! सम्मदिट्ठीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! सम्मदिट्ठी दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ जेसे साइए सपज्जवसिते, से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं सातिरेगाइं।
मिच्छादिट्ठी तिविहे पन्नत्ते–अनाइए वा अपज्जवसिते, अनाइए वा सपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ जेसे साइए सपज्जवसिए, से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं।
सम्मामिच्छादिट्ठी Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव तीन प्रकार के हैं, उनका मंतव्य इस प्रकार है – यथा सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि। भगवन् ! सम्यग्दृष्टि काल से सम्यग्दृष्टि कब तक रह सकता है ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। जो सादि – सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि हैं, वे | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 376 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता–परित्ता अपरित्ता नोपरित्तानोअपरित्ता।
परित्ते णं भंते! परित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? परित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायपरित्ते य संसार-परित्ते य।
कायपरित्ते णं भंते! कायपरित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो।
संसारपरित्ते णं भंते! संसारपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं।
अपरित्ते णं भंते! अपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? अपरित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य।
कायअपरित्ते जहन्नेणं Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – परित्त, अपरित्त और नोपरित्त – नोअपरित्त। परित्त दो प्रकार के हैं – कायपरित्त और संसारपरित्त। भगवन् ! कायपरित्त, कायपरित्त के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येय काल तक यावत् असंख्येय लोक। भन्ते ! संसारपरित्त, संसारपरित्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 377 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा अपज्जत्तगा नोपज्जत्तगनोअपज्जत्तगा।
पज्जत्तगे णं भंते! पज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं साइरेगं।
अपज्जत्तगे णं भंते! अपज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं।
नोपज्जत्तणोअपज्जत्तए साइए अपज्जवसिते।
पज्जत्तगस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं।
अपज्जत्तगस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेगं। नोपज्जत्तग-नोअपज्जत्तगस्स नत्थि अंतरं।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा Translated Sutra: अथवा सब जीव तीन तरह के हैं – पर्याप्तक, अपर्याप्तक और नोपर्याप्तक – नोअपर्याप्तक। भगवन् ! पर्याप्तक, पर्याप्तक रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अधिक सागरो – पमशतपृथक्त्व। भगवन् ! अपर्याप्तक, अपर्याप्तक के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य उत्कर्ष से भी अन्तर्मुहूर्त्त। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 392 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा।
कण्हलेसे णं भंते! कण्हलेसत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं।
नीललेस्से णं भंते! णीललेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाइं।
काउलेस्से णं भंते! काउलेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाइं।
तेउलेस्से णं भंते! Translated Sutra: अथवा सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं – कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले और अलेश्य। कृष्ण लेश्या वाला, कृष्णलेश्या वाले के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त्त अधिक तेंतीस सागरोपम तक रह सकता है। नीललेश्या वाला जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्येयभाग | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 393 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु अट्ठविहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहि नाणी मनपज्जवनाणी केवलनाणी मतिअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी।
आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहियनाणित्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं। एवं सुयनाणीवि।
ओहिनाणी णं भंते! ओहिणाणित्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं।
मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
केवलनाणी णं भंते! Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि आठ प्रकार के सर्व जीव हैं, उनका मन्तव्य है कि सब जीव आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, केवलज्ञानी, मति – अज्ञानी, श्रुत – अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं। आभिनिबो – धिकज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से साधिक छियासठ सागरोपम | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 394 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा अट्ठविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइया, तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ मनुस्सा मनुस्सीओ देवा देवीओ सिद्धा।
नेरइए णं भंते! नेरइयत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
तिरिक्खजोणिणी णं भंते! तिरिक्खजोणिणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं। एवं मणूसे मणूसी।
देवे जहा नेरइए।
देवी णं भंते! देवीत्ति कालओ केवचिरं होति? Translated Sutra: अथवा सब जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि – नैरयिक, तिर्यग्योनिक, तिर्यग्योनिकी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवी और सिद्ध। नैरयिक, नैरयिक रूप में गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम तक रहता है। तिर्यग्योनिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल तक रहता है। तिर्यग्योनिकी जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 395 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–एगिंदिया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया नेरइया पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा देवा सिद्धा।
एगिंदिए णं भंते! एगिंदियत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो
बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। एवं तेइंदिएवि, चउरिंदिएवि।
नेरइए णं भंते! नेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! पंचेंदियतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव नौ प्रकार के हैं, वे इस तरह बताते हैं – एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरि – न्द्रिय, नैरयिक, पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक, मनुष्य, देव, सिद्ध। एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। द्वीन्द्रिय जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 396 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा नवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा सिद्धा य।
पढमसमयनेरइया णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं।
पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! Translated Sutra: अथवा सर्वजीव नौ प्रकार के – १.प्रथमसमयनैरयिक, २.अप्रथमसमयनैरयिक, ३.प्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ४.अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५.प्रथमसमयमनुष्य, ६.अप्रथमसमयमनुष्य, ७.प्रथमसमयदेव, ८.अप्रथमसमयदेव ९.सिद्ध। प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूपमें एक समय और अप्रथमसमयनैरयिक जघन्य एक समय कम १०००० वर्ष, उत्कर्ष से एक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 397 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अनिंदिया।
पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउकाइए।
वणस्सतिकाइए णं भंते! वणस्सतिकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं।
बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। भगवन् ! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक, जो असंख्यात | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 398 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमनूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा।
पढमसमयनेरइए णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं।
पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दस प्रकार के हैं, यथा – १. प्रथमसमयनैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमय – तिर्यग्योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमयमनुष्य, ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव, ८. अप्रथमसमयदेव, ९. प्रथमसमयसिद्ध और १०. अप्रथमसमयसिद्ध। प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूप में ? एक समय तक। अप्रथमसमयनैरयिक | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Gujarati | 130 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिरिक्खजोणिया?
तिरिक्खजोणिया पंचविधा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणिया बेइंदियतिरिक्खजोणिया तेइंदियतिरिक्खजोणिया चउरिंदियतिरिक्खजोणिया पंचिंदियतिरिक्खजोणिया य।
से किं तं एगिंदियतिरिक्खजोणिया? एगिंदियतिरिक्खजोणिया पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वणस्सइकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया।
से किं तं पुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया? पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया बादरपुढविकाइयएगिंदिय-तिरिक्खजोणिया य।
से किं तं सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया? Translated Sutra: ભગવન્ ! તે તિર્યંચયોનિક શું છે ? ગૌતમ ! તે પાંચ ભેદે છે – એકેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક, બેઇન્દ્રિય તિર્યંચ યોનિક, તેઇન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક, ચઉરિન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક, પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક. ભગવન્ ! તે એકેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક શું છે ? ગૌતમ ! તે પાંચ ભેદે છે, તે આ – પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક યાવત્ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 172 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–विजए णं दारे विजए णं दारे?
गोयमा! विजए णं दारे विजए नाम देवे महिड्ढीए महज्जुतीए महाबले महायसे महेसक्खे महानुभावे पलिओवमट्ठितीए परिवसति। से णं तत्थ चउण्हं सामानियसाहस्सीणं चउण्हं अग्ग-महिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अनियाणं सत्तण्हं अनियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, विजयस्स णं दारस्स विजयाए रायहाणीए अन्नेसिं च बहूणं विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणाईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! એમ કેમ કહેવાય છે કે વિજયદ્વાર એ વિજયદ્વાર છે ? ગૌતમ ! વિજયદ્વારે વિજય નામક મહર્દ્ધિક, મહાદ્યુતિક યાવત્ મહાનુભાવ એવો પલ્યોપમ – સ્થિતિક દેવ વસે છે. તે ત્યાં ૪૦૦૦ સામાનિક દેવો, સપરિવાર ચાર અગ્રમહિષી, ત્રણ પર્ષદા, સાત સૈન્ય, સાત સૈન્યાધિપતિ, ૧૬,૦૦૦ આત્મરક્ષકદેવ, વિજયદ્વાર, વિજયા રાજધાનીનું, બીજા પણ ઘણા | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 173 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पन्नत्ता?
गोयमा! विजयस्स णं दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बीतिवतित्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया नाम रायहाणी पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं पन्नत्ता।
सा णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। से णं पागारे सत्तसीसं जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, मुले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे सक्कोसाइं छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पिं तिन्नि सद्धकोसाइं Translated Sutra: વિજયદેવની વિજયા નામે રાજધાની ક્યાં કહી છે ? ગૌતમ ! વિજયદ્વારના પૂર્વમાં તિર્છા અસંખ્ય દ્વીપ – સમુદ્ર ઓળંગ્યા પછી અન્ય જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ૧૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી આ વિજયદેવની વિજયા નામે રાજધાની છે. તે ૧૨,૦૦૦ યોજન લાંબી – પહોળી અને ૪૭,૯૪૮ યોજનથી કંઈક વિશેષાધિક પરિધિ કહી છે. તે એક પ્રાકાર વડે ઘેરાયેલ છે. તે પ્રાકાર | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 163 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पन्नत्ता, सा णं पउमवर वेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं, जगतीसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહુમધ્ય દેશભાગમાં અહીં એક મોટી પદ્મવર વેદિકા છે. તે પદ્મવર વેદિકા ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી અર્દ્ધ યોજન, ૫૦૦ ધનુષ વિષ્કંભથી, સર્વરત્નમય, જગતી સમાન પરિધિથી છે. તથા સર્વ રત્નમયી, સ્વચ્છ યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. તે પદ્મવર વેદિકાનું વર્ણન આ પ્રમાણે છે – વજ્રમય નેમ, રિષ્ટરત્નમય પ્રતિષ્ઠાન, વૈડૂર્યમય સ્તંભ, સોના | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહારની પદ્મવરવેદિકામાં અહીં એક મોટું વનખંડ કહ્યું છે. તે દેશોન બે યોજન ચક્રવાલ વિષ્કંભથી છે અને તેની પરિધિ જગતી સમાન છે. તે વનખંડ કૃષ્ણ, કૃષ્ણ આભાવાળું યાવત્ અનેક શકટ – રથ – યાન – યુગ્ય પરિમોચન, સુરમ્ય, પ્રાસાદીય, શ્લક્ષ્ણ, લષ્ટ, ઘૃષ્ટ, મૃષ્ટ, નીરજ, નિષ્પંક, નિર્મળ, નિષ્કંટકછાયા, પ્રભા – કિરણ – ઉદ્યોત | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 166 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजये वेजयंते जयंते अपराजिते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૬. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના કેટલા દ્વારો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – વિજય, વૈજયંત, જયંત, અપરાજિત. સૂત્ર– ૧૬૭. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપનું વિજય નામે દ્વાર ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની પૂર્વે ૪૫,૦૦૦ યોજન અબાધાએ ગયા પછી જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પૂર્વાંતમાં તથા લવણ સમુદ્રના પૂર્વાર્ધના પશ્ચિમ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Gujarati | 389 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी मनपज्जवनाणी केवलनाणी अन्नाणी।
आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं साइरेगाइं। एवं सुयनाणीवि।
ओहिनाणी णं भंते! ओहिनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागारोवमाइं साइरेगाइं।
मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
केवलनाणी णं भंते! केवलनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? Translated Sutra: તેમાં જે એમ કહે છે કે સર્વે જીવો છ ભેદે છે, તે એમ કહે છે – જીવો આભિનિબોધિકજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની, અવધિ જ્ઞાની, મનઃપર્યવજ્ઞાની, કેવળજ્ઞાની અને અજ્ઞાની છ ભેદે છે. ભગવન્ ! આભિનિબોધિક જ્ઞાની, આભિનિબોધિક જ્ઞાની રૂપે કેટલો કાળ રહે ? ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ સાતિરેક છાસઠ સાગરોપમ. એ રીતે શ્રુતજ્ઞાની પણ છે. ભગવન્ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 14 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइ-भागं, उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संघयणा पन्नत्ता? गोयमा! छेवट्टसंघयणा पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संठिया पन्नत्ता? गोयमा! मसूरचंदसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए मानकसाए मायाकसाए लोहकसाए।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि सण्णाओ पन्नत्ताओ, Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિક જીવોના કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ. ઔદારિક, તૈજસ, કાર્મણ. ભગવન્! તે જીવોની શરીર અવગાહના કેટલી મોટી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંગુલનો અસંખ્યાતભાગ, ઉત્કૃષ્ટથી પણ અંગુલનો અસંખ્યાત ભાગ. ભગવન ! તે જીવોના શરીર કયા સંઘયણવાળા છે ? ગૌતમ ! સેવાર્ત્ત સંઘયણી છે. ભગવન્ ! તે જીવોના શરીરનું સંસ્થાન શું | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 16 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सण्हबायरपुढविकाइया? सण्हबायरपुढविकाइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हमत्तिया, भेओ जहा पन्नवणाए जाव–ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसतसहस्साइं। पज्जत्तग-निस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति–जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेज्जा। से त्तं खरबादरपुढविकाइया।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए तं चेव सव्वं, नवरं– चत्तारि Translated Sutra: તે શ્લક્ષ્ણ બાદર પૃથ્વીકાયિક શું છે ? તે સાત ભેદે છે – કાળી માટી વગેરે, તેના પ્રકારો પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર મુજબ જાણવા. યાવત તે સંક્ષેપથી બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્! તે જીવોને કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ – ઔદારિક, તૈજસ, કાર્મણ. બધું કથન પૂર્વવત્ જાણવું. વિશેષ એ કે લેશ્યા ચાર છે, બાકી સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિકવત્ | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 17 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आउक्काइया? आउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमआउक्काइया य बायर-आउक्काइया य। सुहुमआउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए जहेव सुहुमपुढविकाइयाणं, नवरं–थिबुगसंठिया पन्नत्ता, सेसं तं चेव जाव दुगइया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता। से त्तं सुहुमआउक्काइया। Translated Sutra: તે અપ્કાયિકો કેટલાં ભેદે છે ? ગૌતમ ! અપ્કાયિક જીવો બે ભેદે છે – સૂક્ષ્મ અને બાદર. સૂક્ષ્મ અપ્કાયિક જીવો બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્ ! તે જીવોને કેટલા શરીરો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ. ઔદારિક, તૈજસ, કાર્મણ. સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિકવત્ બધું કહેવું. વિશેષ આ – સ્તિબુક સંસ્થિત છે. બાકી પૂર્વવત્ યાવત્ દ્વિગતિ, | |||||||||
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Gujarati | 29 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया? साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया अनेगविहा पन्नत्ता तं जहा–आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्ठिया, छिरिया, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वज्जकंदे, सूरणकंदे, खेलूडे, भद्दमोत्था, पिंडहलिद्दा, लोही, नीहू थोहू अस्सकण्णी, सीहकण्णी सीउंढी, मुसंढी।
जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा तेसिं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तगनिस्साए अपज्जत्तगा Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સાધારણ શરીર બાદર વનસ્પતિકાયિક શું છે ? ગૌતમ ! તે અનેક ભેદે છે – આલુ, મૂળા, આદુ, હિરિલિ, સિરિલિ, સિસ્સિરિલિ, કિટ્ટિયા, છિરિયા, ખલ્લૂડ, છિરિયવિરાલિકા, કૃષ્ણકંદ, વજ્રકંદ, સૂરણકંદ, કૃમિરાશિ, ભદ્ર, મોત્થાપિંડ, હળદર, લોહારી, નિહુ, થિભૂ, અશ્વકર્ણી, સિંહકર્ણી, સીકુંડી, મુસૂંઢી, બીજી પણ આ પ્રકારની હોય તે. તે સાધારણ | |||||||||
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Gujarati | 31 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तेउक्काइया? तेउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमतेउक्काइया य बायरतेउक्काइया य। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧. ભગવન્ ! તે તેઉકાયિક શું છે ? ગૌતમ ! તેઉકાયિક બે ભેદે કહેલ છે. તે આ – સૂક્ષ્મ તેઉકાયિક અને બાદર તેઉકાયિક. સૂત્ર– ૩૨. ભગવન્ ! તે સૂક્ષ્મ તેઉકાયિક શું છે ? સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક માફક જાણવુ. વિશેષ એ – શરીર શૂચિકલાપ સંસ્થિત છે. એકગતિક, બે આગતિક, પ્રત્યેક શરીરી અને અસંખ્યાત કહ્યા છે, બાકી બધું પૂર્વવત્. સૂત્ર– | |||||||||
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Gujarati | 34 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वाउक्काइया? वाउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा–सुहुमवाउक्काइया य बायरवाउक्काइया य। सुहुमवाउक्काइया जहा तेउक्काइया, नवरं–सरीरगा पडागसंठिया। एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखिज्जा। सेत्तं सुहुमवाउक्काइया।
से किं तं बादरवाउक्काइया? बादरवाउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पाईणवाते पडीणवाते दाहिणवाए उदीणवाए उड्ढवाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउब्भामे वाउक्कलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संवट्टगवाए घनवाए तनुवाए सुद्धवाए
जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते Translated Sutra: ભગવન્ ! તે વાયુકાયિકો શું છે ? તે બે ભેદે છે – સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકો અને બાદર વાયુકાયિકો. સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકોને તેઉકાયિકવત્ કહેવા. વિશેષ એ કે શરીર પતાકા સંસ્થિત છે, એક ગતિક, બે આગતિક છે, તે પ્રત્યેક શરીરી અને અસંખ્યાત લોકાકાશ પ્રદેશ પ્રમાણ છે. આ સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકનું વર્ણન પૂરું થયું. ભગવન્ ! તે બાદર વાયુકાયિકો | |||||||||
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Gujarati | 36 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बेइंदिया? बेइंदिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाकिमिया जाव समुद्दलिक्खा, जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्ज-इभागं, उक्कोसेणं बारसजोयणाइं, छेवट्टसंघयणा, हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिन्नि लेसाओ, दो इंदिया, तओ समुग्घाया– वेयणा कसाया मारणंतिया, नोसन्नी असन्नी, नपुंसग-वेयगा, पंच पज्जत्तीओ, पंच अपज्जत्तीओ, सम्मद्दिट्ठीवि Translated Sutra: ભગવન્ ! તે બેઇન્દ્રિયો શું છે ? તે અનેકવિધ છે – પુલાકૃમિક યાવત્ સમુદ્રલિક્ષા, જે આવા બીજા પ્રકારના છે, તે પણ બેઇન્દ્રિય જીવ. સંક્ષેપથી બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્ ! તે જીવોને કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ – ઔદારિક, તૈજસ અને કાર્મણ. ભગવન્! તે જીવોની શરીર અવગાહના કેટલી મોટી છે ? જઘન્યથી અંગુલનો અસંખ્યાત | |||||||||
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Gujarati | 38 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं चउरिंदिया? चउरिंदिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–अंधिया पोत्तिया जाव गोमयकीडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जगा य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता तं चेव नवरं–सरीरोगाहणा उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं, इंदियाइं चत्तारि, चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी, ठिई उक्कोसेणं छम्मासा। सेसं जहा तेइंदियाणं जाव असंखेज्जा पन्नत्ता। से तं चउरिंदिया। Translated Sutra: તે ચઉરિન્દ્રિય શું છે ? તે અનેક ભેદે છે – અંધિકા, પુત્રિકા યાવત્ ગોમયકીડા. આ પ્રકારના અન્ય જીવો પણ છે. તે સંક્ષેપથી બે ભેદે કહ્યા છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્ ! તે જીવોને કેટલા શરીરો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ શરીરો છે, બાકી બધું પૂર્વવત્ કહેવું. વિશેષ આ – શરીરાવગાહના ઉત્કૃષ્ટથી ચાર ગાઉ, ઇન્દ્રિયો ચાર, ચક્ષુદર્શની | |||||||||
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Gujarati | 40 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेरइया? नेरइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–रयणप्पभापुढवि नेरइया जाव अहेसत्तमपुढवि नेरइया । ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा सरीरोगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–भव धारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं धनुसहस्सं।
तेसि Translated Sutra: તે નૈરયિકો શું છે ? તે સાત ભેદે છે – રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિક યાવત્ અધઃસપ્તમી પૃથ્વી નૈરયિક. તે સંક્ષેપથી બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્! તે જીવોને કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ છે – વૈક્રિય, તૈજસ, કાર્મણ. ભગવન્! તે જીવોની શરીરાવગાહના કેટલી મોટી છે ? ગૌતમ ! શરીરાવગાહના બે ભેદે છે – ભવધારણીય અને ઉત્તરવૈક્રિય. | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 42 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? संमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–जलयरा थलयरा खहयरा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૨. તે સંમૂર્ચ્છિમ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ યોનિક શું છે ? તે ત્રણ ભેદે છે – જલચર, સ્થલચર, ખેચર. સૂત્ર– ૪૩. તે જલચર શું છે ? તે પાંચ ભેદે છે – મત્સ્ય, કાચબા, મગર, ગાહ, સુંસુમાર. ભગવન્ ! તે મત્સ્ય શું છે ? જેમ પ્રજ્ઞાપનામાં કહ્યું તેમ અનેક પ્રકારે છે યાવત્ જે આ પ્રકારના અન્ય છે તે. તે સંક્ષેપથી બે ભેદે – પર્યાપ્તા | |||||||||
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Gujarati | 44 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं थलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? थलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– चउप्पयथलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पसंमुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खजोणिया।
से किं तं चउप्पयथलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? चउप्पयथलयरसंमुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– एगखुरा दुखुरा गंडीपया सणप्फया जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तओ सरीरगा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સ્થલચર સંમૂર્ચ્છિમ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક શું છે ? તેઓ બે ભેદે છે – ચતુષ્પદ સ્થલચર સંમૂર્ચ્છિમ તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય અને પરિસર્પ સંમૂર્ચ્છિમ તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય. તે સ્થલચર ચતુષ્પદ સંમૂર્ચ્છિમ તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય શું છે ? તેઓ ચાર ભેદે છે. તે આ – એકખુર, દ્વિખુર, ગંડીપદ, સનખપદ યાવત્ આવા પ્રકારના | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 45 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा –जलयरा थलयरा खहयरा। Translated Sutra: ભગવન્ ! ગર્ભજ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક શું છે ? ગૌતમ! તે ત્રણ ભેદે કહ્યા છે – જલચર, સ્થલચર, ખેચર. | |||||||||
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Gujarati | 46 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जलयरा? जलयरा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–मच्छा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा। सव्वेसिं भेदो भाणियव्वो तहेव जहा पन्नवणाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसिं णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए। सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, छव्विहसंघयणी पन्नत्ता, तं जहा–वइरोसभनारायसंघयणी उसभनारायसंघयणी नारायसंघयणी अद्धनारायसंघयणी कीलियासंघयणी छेवट्टसंघयणी।
छव्विहसंठिया पन्नत्ता, तं जहा–समचउरंससंठिया Translated Sutra: ભગવન્ ! તે જલચરો શું છે ? ગૌતમ ! તે પાંચ ભેદે છે – મત્સ્ય, કચ્છપ, મગર, ગ્રાહ, સુંસુમાર. પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર મુજબ, તે બધા ભેદો કહેવા. યાવત્ આવા પ્રકારના જે ગર્ભજ જલચર છે, તે સંક્ષેપથી બે ભેદે કહ્યા છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્ ! તે જીવોના કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ચાર શરીરો કહ્યા છે – ઔદારિક, વૈક્રિય, તૈજસ, કાર્મણ. તે | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 47 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं थलयरा? थलयरा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–चउप्पया य परिसप्पा य।
से किं तं चउप्पया? चउप्पया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–एगखुरा सो चेव भेदो जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं छ गाउयाइं, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं, नवरं–उव्वट्टित्ता नेरइएसु चउत्थपुढविं ताव गच्छंति, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया चउआगतिया, परित्ता असंखिज्जा पन्नत्ता। से तं चउप्पया।
से किं तं परिसप्पा? परिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–उरपरिसप्पा य Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭. ભગવન્ ! તે સ્થલચરો શું છે ? સ્થલચરો બે ભેદે છે – ચતુષ્પદો અને પરિસર્પો. ભગવન્ ! તે ચતુષ્પદો શું છે ? તે ચાર ભેદે છે – એક ખુરવાળા આદિ ભેદો પ્રજ્ઞાપના સૂત્રાનુસારકહેવા યાવત્ જે આવા પ્રકારના બીજા પણજીવો છે, તે સંક્ષેપથી બે ભેદે કહ્યા છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. તે જીવોને ચાર શરીરો હોય, તેમની અવગાહના | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 49 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य।
कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतो मनुस्सखेत्ते जाव अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। संघयण संठाण कसाय सण्णा लेसा जहा बेइंदियाणं, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, असन्नी, नपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठिदंसण अन्नाण जोग उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहा बेइंदियाणं, उववातो नेरइय देव तेउ वाउ असंखाउवज्जो, अंतोमुहुत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે મનુષ્યો શું છે ? મનુષ્યો બે ભેદે કહ્યા છે. સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો અને ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક મનુષ્યો. ભગવન્ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો ક્યાં સંમૂર્છે છે ? ગૌતમ ! મનુષ્ય ક્ષેત્રની અંદર ઉત્પન્ન થાય છે યાવત્ અંતર્મુહુર્તનું આયુષ્ય પૂર્ણ કરીને મૃત્યુ પામે છે. ભગવન્ ! તે જીવોને કેટલા શરીરો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। एवं भेदो भाणियव्वो जहा पन्नवणाए। ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं तओ सरीरगा–वेउव्विए तेयए कम्मए। ओगाहणा दुविहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, सरीरगा छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुन्ना मणामा ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए Translated Sutra: ભગવન્ ! તે દેવો શું છે ? દેવો ચાર ભેદે કહ્યા છે, તે આ રીતે – ભવનવાસી, વ્યંતર, જ્યોતિષ્ક, વૈમાનિક. ભગવન્ ! તે ભવનવાસી શું છે ? તે ભવનવાસી દશ ભેદે કહ્યા છે. તે આ પ્રમાણે – અસુરકુમારો યાવત્ સ્તનિતકુમાર. તે ભવનવાસી કહ્યા. ભગવન્ ! તે વ્યંતરો શું છે ? અહી સર્વે દેવોના ભેદો કહેવા. યાવત્ તે સંક્ષેપથી બે ભેદે કહ્યા છે. તે | |||||||||
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Gujarati | 51 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थावरस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता।
तसस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
थावरे णं भंते! थावरेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोया असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा, ते णं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो।
ते णं भंते! तसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ Translated Sutra: ભગવન્ ! સ્થવિરની કેટલો કાળ સ્થિતિ કહી છે ? ગૌતમ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી ૨૨,૦૦૦ સ્થિતિ કહી છે. ભગવન્ ! ત્રસની કેટલો કાળ સ્થિતિ કહી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી ૩૩ – સાગરોપમ સ્થિતિ કહી છે. ભગવન્ ! સ્થાવર, સ્થાવરત્વમાં કાળથી ક્યાં સુધી રહે ? જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી અનંતકાળ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 52 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु तिविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–इत्थी पुरिसा नपुंसगा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. તેમાં જે એવું કહે છે કે સંસાર સમાપન્નક જીવો ત્રણ ભેદે છે, તેઓ એમ કહે છે કે તે – સ્ત્રી, પુરુષ, નપુંસક છે. સૂત્ર– ૫૩. ભગવન્ ! તે સ્ત્રીઓ કેટલા ભેદે છે ? ત્રણ ભેદે – તિર્યંચ સ્ત્રી, માનુષી સ્ત્રી અને દેવસ્ત્રી. ભગવન્ ! તે તિર્યંચયોનિક સ્ત્રી કેટલા ભેદે છે ? ત્રણ ભેદે – જલચરી, સ્થલચરી, ખેચરી. ભગવન્ ! તે જલચરી | |||||||||
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त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 54 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगेणं आदेसेणं–जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाइं। एक्केणं आदेसेणं–जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं नव पलिओवमाइं। एगेणं आदेसेणं–जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं। एगेणं आदेसेणं–जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाइं। Translated Sutra: ભગવન્ ! સ્ત્રીઓની કેટલી કાળસ્થિતિ છે ? ગૌતમ ! એક અપેક્ષાએ જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી પંચાવન પલ્યોપમ. એક અપેક્ષાએ જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી નવ પલ્યોપમ. એક અપેક્ષાએ જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી સાત પલ્યોપમ. એક અપેક્ષાએ જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી પચાશ પલ્યોપમ સ્થિતિ છે. | |||||||||
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त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 55 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
जलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहा तिरिक्खजोणित्थीओ।
उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं भुयपरिसप्पतिरिक्खजोणित्थीओ।
एवं खहयरतिरिक्खत्थीणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो।
मनुस्सित्थीणं Translated Sutra: ભગવન્ ! તિર્યંચયોનિ – સ્ત્રીઓની સ્થિતિ કેટલો કાળ છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ પલ્યોપમ છે. ભગવન્ ! જલચર તિર્યંચયોનિ – સ્ત્રીની સ્થિતિ કેટલો કાળ છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ પૂર્વકોડી. ભગવન્ ! ચતુષ્પદ સ્થલચર તિર્યંચ – સ્ત્રીની સ્થિતિ કેટલી છે ? ગૌતમ ! તિર્યંચ સ્ત્રી માફક | |||||||||
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त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 56 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थी णं भंते! इत्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! एक्केणादेसेण–जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियं। एक्केणादेसेण–जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियाइं। एक्केणादेसेण–जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं चउद्दस पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं। एक्केणादेसेण–जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियं। एक्केणादेसेण–जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमपुहत्तं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियं।
तिरिक्खजोणित्थी णं भंते! तिरिक्खजोणित्थित्ति कालओ केवच्चिरं Translated Sutra: ભગવન્ ! સ્ત્રી, સ્ત્રીરૂપે કાળથી કેટલો કાળ રહે ? ગૌતમ ! એક અપેક્ષાએ જઘન્યથી એક સમય, ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકોડી પૃથક્ત્વ અધિક ૧૧૦ પલ્યોપમ સુધી સ્ત્રી, સ્ત્રીરૂપે રહી શકે છે. બીજી અપેક્ષાએ જઘન્યથી એક સમય, ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકોડી પૃથક્ત્વ અધિક ૧૮ – પલ્યોપમ સુધી રહે. ત્રીજી અપેક્ષાએ જઘન્યથી એક સમય, ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકોડી | |||||||||
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त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 57 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थीणं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो।
एवं सव्वासिं तिरिक्खित्थीणं।
मनुस्सित्थीए खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अनंतं कालं–जाव अवड्ढपोग्गलपरियट्टं देसूणं। एवं जाव पुव्वविदेह अवरविदेहियाओ।
अकम्मभूमिगमनुस्सित्थीणं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं जाव अंतरदीवियाओ।
देवित्थियाणं Translated Sutra: ભગવન્ ! સ્ત્રીને ફરી સ્ત્રીત્વ પ્રાપ્તિમાં કેટલા કાળનું અંતર હોય છે ? ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ અનંતકાળ અર્થાત વનસ્પતિકાળ. આ જ રીતે બધી તિર્યંચ સ્ત્રીઓના વિષયમાં પણ કહેવું. ભગવન્ ! મનુષ્યસ્ત્રીનું અંતર ક્ષેત્રને આશ્રીને જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ વનસ્પતિકાળ. ચારિત્ર ધર્મને આશ્રીને જઘન્ય |