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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 190 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए जंबूसुदंसणाए जंबूपेढे नामं पेढे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं नीलवंतस्स वासधरपव्वतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खार-पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमादनस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं सीताए महानदीए पुरत्थिमिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नाम पेढे पन्नत्ते–पंचजोयणसताइं आयामविक्खंभेणं, पन्नरस एक्कासीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोयणाइं बाहल्लेणं, तदानंतरं च णं माताएमाताए पदेसपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे सव्वेसु चरमंतेसु दो कोसे बाहल्लेणं, Translated Sutra: हे भगवन् ! उत्तरकुरु क्षेत्र में सुदर्शना अपर नाम जम्बू का जम्बूपीठ नाम का पीठ कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तरपूर्व में, नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, शीता महानदी के पूर्वीय किनारे पर हैं जो ५०० योजन लम्बा | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 205 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे सिवए संखे मणोसिलए।
एतेसि णं भंते! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वत्ता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे दओभासे संखे दगसीमे।
कहि णं भंते! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते। सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारिं तीसे जोयणसते Translated Sutra: हे भगवन् ! वेलंधर नागराज कितने हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, शिवक, शंख और मनःशिलाक। हे भगवन् ! इन चार वेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत कहे गये हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, उदकभास, शंख और दकसीम। हे भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नामक आवासपर्वत कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बू – द्वीप के मेरुपर्वत के पूर्वमें लवणसमुद्र | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 207 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! अणुवेलंधरनागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि अनुवेलंधरनागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–कक्कोडए कद्दमए केलासे अरुणप्पभे।
एतेसि णं भंते! चउण्हं अणुवेलंधरणागराईणं कति आवासपव्वया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वया पन्नत्ता, तं जहा–कक्कोडए विज्जुप्पभे केलासे अरुणप्पभे।
कहि णं भंते! कक्कोडगस्स अनुवेलंधरणागरायस्स कक्कोडए नाम आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कक्कोडगयस्स नागरायस्स कक्कोडए नाम आवासपव्वते पन्नत्ते–सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसताइं तं चेव Translated Sutra: हे भगवन् ! अनुवेलंधर नागराज कितने हैं ? गौतम ! चार – कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरुणप्रभ। हे भगवन् ! इन चार अनुवेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत हैं ? गौतम ! चार – कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरुणप्रभ। हे भगवन् ! कर्कोटक अनुवेलंधर नागराज का कर्कोटक नाम का आवासपर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 208 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सुट्ठियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे नाम दीवे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दे बारसजोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं सुट्ठियस्स लवणाहि-वइस्स गोयमदीवे नाम दीवे पन्नत्ते–बारसजोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयण-सहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, जंबूदीवंतेणं अद्धेकूननउति जोयणाइं चत्तालीसं च पंचानउतिभागे जोयणस्स ऊसिए जलंताओ लवणसमुद्दं तेणं दो कोसे ऊसिते जलंताओ। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते वण्णओ दोण्हवि।
गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतमद्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे हैं, यावत् वहाँ सुस्थित नाम का महार्द्धिक देव है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 209 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सेसं तं चेव जहा गोत्तमदीवस्स परिक्खेवो। जंबुद्दीवंतेणं अद्धेकोणनउइं जोयणाइं चत्तालीसं पंचानउतिं भागे जोयणस्स ऊसिया जलंताओ, लवणसमुद्दंतेणं दो कोसे ऊसिता जलंताओ। पउमवरवेइया, पत्तेयंपत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ। भूमिभागा तस्स बहुमज्झदेसभागे पासादवडेंसगा विजयमूलपासादसरिसया जाव सीहासना सपरिवारा।
से Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीपगत दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप कहाँ पर हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर हैं। ये द्वीप जम्बूद्वीप की दिशा में ८८१ योजन और ४०/९५ योजन पानी से ऊपर उठे हुए हैं और लवणसमुद्र की दिशा में दो कोस पानी से ऊपर उठे हुए हैं। ये १२००० योजन लम्बे | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 210 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! अब्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं अब्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता, जहा जंबुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा, नवरि– रायहाणीओ अन्नंमि लवणे, सेसं तं चेव।
एवं अब्भिंतरलावणगाणं सूराणवि लवणसमुद्दं बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ।
कहि णं भंते! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा नाम दीवा पन्नत्ता?
गोयमा! लवणस्स समुद्दस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुद्दं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र में रहकर जम्बूद्वीप की दिशा में शिखा से पहले विचरने वाले चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन जाने पर जम्बूद्वीप के चन्द्रद्वीपों समान इनको जानना। विशेषता यह है कि इनकी राजधानीयाँ अन्य लवणसमुद्र में हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 223 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसतसहस्साइं एकासीतिं च सहस्साइं सतं च एगुणयालं किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेधेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते, कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति? नो उप्पीलेति? नो चेव णं एक्कोदगं करेति?
गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाधरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मनुया पगतिभद्दया पगतिविणीया पगतिउवसंता पगतिपयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विनीता, Translated Sutra: भगवन् ! यदि लवणसमुद्र चक्रवाल – विष्कम्भ से दो लाख योजन का है, इत्यादि पूर्ववत्, तो वह जम्बूद्वीप को जल से आप्लावित, प्रबलता के साथ उत्पीड़ित और जलमग्न क्यों नहीं कर देता ? गौतम ! जम्बूद्वीप में भरत – ऐरवत क्षेत्रों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण आदि विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 264 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ते मेरुमनुचरंता, पयाहिणावत्तमंडला सव्वे ।
अनवट्ठितेहिं जोगेहिं, चंदा सूरा गहगणा य ॥ Translated Sutra: ये चन्द्र – सूर्यादि सब ज्योतिष्क मण्डल मेरुपर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं। प्रदक्षिणा करते हुए इन चन्द्रादि के दक्षिणमें ही मेरु होता है, अत एव इन्हें प्रदक्षिणावर्तमण्डल कहा है। चन्द्र, सूर्य और ग्रहों के मण्डल अनवस्थित हैं। नक्षत्र और ताराओं के मण्डल अवस्थित हैं। ये भी मेरुपर्वत के चारों ओर | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 265 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नक्खत्ततारगाणं, अवट्ठिया मंडला मुणेयव्वा ।
तेवि य पयाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६४ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 269 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तेसिं कलुंबयापुप्फसंठिया होइ तावखेत्तपहा ।
अंतो य संकुया बाहिं वित्थडा चंदसूराणं ॥ Translated Sutra: उन चन्द्र – सूर्यों के तापक्षेत्र का मार्ग कदंबपुष्प के आकार जैसा है। यह मेरु की दिशा में संकुचित है और लवणसमुद्र की दिशा में विस्तृत है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 288 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वतस्स जे चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? कप्पोववन्नगा? विमाणोववन्नगा? चारोववन्नगा? चारट्ठितीया? गतिरतिया? गति-समावन्नगा? गोयमा! ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा, नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा, नो चारट्ठितीया, गतिरतिया गतिसमावन्नगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयण-साहस्सि-तेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट गीत वादित तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहनाय-वोलकलकलरवेणं Translated Sutra: भदन्त ! मनुष्यक्षेत्र के अन्दर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण हैं, वे ज्योतिष्क देव क्या ऊर्ध्व विमानों में उत्पन्न हुए हैं या सौधर्म आदि कल्पों में उत्पन्न हुए हैं या (ज्योतिष्क) विमानों में उत्पन्न हुए हैं ? वे गतिशील हैं या गतिरहित हैं ? गतिशील और गति को प्राप्त हुए हैं ? गौतम ! वे देव ज्योतिष्क विमानों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 312 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवतियं अबाहाए जोतिसं चारं चरति?
गोयमा! एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसं चारं चरति।
लोगंताओ भंते! केवतियं अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते?
गोयमा! एक्कारस एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवतियं अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति? केवतियं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति? केवतिए अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति?
गोयमा! सत्त नउते जोयणसते अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति, अट्ठं जोयणसताइं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिष्कदेव कितनी दूर रहकर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी से प्रदक्षिणा करते हैं। इसी तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर चरमान्त से भी समझना। भगवन् ! लोकान्त से कितनी दूरी पर ज्योतिष्कचक्र हैं ? गौतम ! ११११ योजन पर ज्योतिष्कचक्र है। इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહારની પદ્મવરવેદિકામાં અહીં એક મોટું વનખંડ કહ્યું છે. તે દેશોન બે યોજન ચક્રવાલ વિષ્કંભથી છે અને તેની પરિધિ જગતી સમાન છે. તે વનખંડ કૃષ્ણ, કૃષ્ણ આભાવાળું યાવત્ અનેક શકટ – રથ – યાન – યુગ્ય પરિમોચન, સુરમ્ય, પ્રાસાદીય, શ્લક્ષ્ણ, લષ્ટ, ઘૃષ્ટ, મૃષ્ટ, નીરજ, નિષ્પંક, નિર્મળ, નિષ્કંટકછાયા, પ્રભા – કિરણ – ઉદ્યોત | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 166 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजये वेजयंते जयंते अपराजिते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૬. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના કેટલા દ્વારો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – વિજય, વૈજયંત, જયંત, અપરાજિત. સૂત્ર– ૧૬૭. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપનું વિજય નામે દ્વાર ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની પૂર્વે ૪૫,૦૦૦ યોજન અબાધાએ ગયા પછી જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પૂર્વાંતમાં તથા લવણ સમુદ્રના પૂર્વાર્ધના પશ્ચિમ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Gujarati | 143 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं एगोरुयमनुस्साणं एगोरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं तिन्नि जोयणसयाइं ओगहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमनुस्साणं एगोरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते– तिन्नि जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं नव एगूणपण्णे जोयणसए किंचि विसेसेण परिक्खेवेणं।
से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं च वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते सा णं पउमवरवेदिया अद्ध जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं एगोरुयदीवं समंता परिक्खेवेणं पन्नत्ता Translated Sutra: ભગવન્ ! એકોરુક મનુષ્યોનો એકોરુક નામે દ્વીપ ક્યાં આવેલ છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપમાં મેરુ પર્વતની દક્ષિણે લઘુ હિમવંત વર્ષધર પર્વતના ઈશાન ચરમાંતથી લવણસમુદ્રમાં ૩૦૦ યોજન ગયા પછી દક્ષિણ દિશામાં એકોરુક મનુષ્યોનો એકોરુક નામે દ્વીપ કહ્યો છે. તે દ્વીપની લંબાઈ – પહોળાઈ ૩૦૦ યોજન છે, ૯૫૦ યોજનથી કંઈક અધિક પરિધિયુક્ત છે. | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Gujarati | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: એકોરુકદ્વીપ દ્વીપનો અંદરનો ભૂમિભાગ ચર્મમઢિત મૃદંગ સમાનબહુસમ રમણીય કહેલ છે. એ રીતે શયનીય કહેવું યાવત્ પૃથ્વીશિલાપટ્ટકનું પણ વર્ણન કરવું જોઈએ. ત્યાં ઘણા એકોરુકદ્વીપક મનુષ્યો અને સ્ત્રીઓ બેસે છે સુવે છે, યાવત્ વિચરે છે. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! એકોરુક દ્વીપમાં તે – તે દેશમાં, ત્યાં – ત્યાં ઘણા ઉદ્દાલક, કોદ્દાલક, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Gujarati | 146 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं हयकण्णमनुस्साणं हयकण्णदीवे नामं दीवे पन्नत्ते? एगूरुयदीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरपुरत्थिमिल्लेणं लवणसमुद्दं चत्तारि जोयणसयाइं ओगाहित्ता, तत्थ णं दाहिणिल्लाणं हयकण्णमनुस्साणं हयकण्णदीवे नामं दीवे पन्नत्ते–चत्तारि जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं बारस पन्नट्ठ जोयणसया किंचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं, सेसं जहा एगूरुयाणं।
कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं गयकण्णमनुस्साणं गयकण्णदीवे नामं दीवे पन्नत्ते? गोयमा! आभासियदीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपुरत्थिमिल्लेणं लवणसमुद्दं चत्तारि जोयण-सयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૪૬. ભગવન્ ! દાક્ષિણાત્ય હયકર્ણ મનુષ્યોનો હયકર્ણ નામક દ્વીપ ક્યાં છે ? ગૌતમ ! એકોરુકદ્વીપના ઇશાન ચરમાંતથી લવણસમુદ્રમાં ૪૦૦ યોજન ગયા પછી દાક્ષિણાત્ય હયકર્ણ મનુષ્યોનો હયકર્ણ નામે દ્વીપ કહ્યો છે. ૪૦૦ યોજન લંબાઈ – પહોળાઈથી, ૧૨૬૫ યોજનથી અધિક તેની પરિધિ છે. તે એક પદ્મવરવેદિકાથી મંડિત છે. શેષ સર્વ કથન એકોરુક | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 182 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयंते नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाधाए जंबुद्दीवे दीवे दाहिणपेरंते लवणसमुद्ददाहिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयंते नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सच्चेव सव्वा वत्तव्वता जाव दारे।
कहि णं भंते! रायहाणी दाहिणे णं जाव वेजयंते देवे वेजयंते देवे।
कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं जंबुद्दीवे दीवे पच्चत्थिमपेरंते लवणसमुद्द-पच्चत्थिमद्धस्स Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮૨. ભગવન્* – ! જંબૂદ્વીપનું વૈજયંત નામે દ્વાર ક્યાં કહેલ છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની દક્ષિણે ૪૫,૦૦૦ યોજન અબાધાએ ગયા પછી જંબૂદ્વીપ – દ્વીપની દક્ષિણ દિશાને અંતે અને લવણસમુદ્રના દક્ષિણાર્દ્ધની ઉત્તરમાં આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપનું વૈજયંત નામક દ્વાર કહેલ છે. તે આઠ યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી છે ઇત્યાદિ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ, જંબૂદ્વીપ કેમ કહેવાય છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની ઉત્તરે, નીલવંતની દક્ષિણે માલ્યવંત વક્ષસ્કાર પર્વતની પશ્ચિમે, ગંધમાદન વક્ષસ્કાર પર્વતની પૂર્વે ઉત્તરકુરા નામે કુરા ક્ષેત્ર છે. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબું અને ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળું, અર્દ્ધ ચંદ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વિષ્કંભથી | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 190 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए जंबूसुदंसणाए जंबूपेढे नामं पेढे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं नीलवंतस्स वासधरपव्वतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खार-पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमादनस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं सीताए महानदीए पुरत्थिमिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नाम पेढे पन्नत्ते–पंचजोयणसताइं आयामविक्खंभेणं, पन्नरस एक्कासीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोयणाइं बाहल्लेणं, तदानंतरं च णं माताएमाताए पदेसपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे सव्वेसु चरमंतेसु दो कोसे बाहल्लेणं, Translated Sutra: ભગવન્ ! ઉત્તરકુરુમાં જંબૂ – સુદર્શના વૃક્ષની જંબૂપીઠ નામે પીઠ ક્યાં કહેલ છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની ઈશાનમાં નીલવંત વર્ષધર પર્વતની પૂર્વે સીતા મહાનદીના પૂર્વ કિનારે અહીં ‘ઉત્તરકુરુ’ કુરુમાં જંબૂપીઠ નામક પીઠ ૫૦૦ યોજન લંબાઈ – પહોળાઈથી, ૧૫૮૧ યોજનથી કંઈક અધિક પરિધિથી છે. બહુમધ્ય દેશભાગમાં ૧૨ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Gujarati | 205 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे सिवए संखे मणोसिलए।
एतेसि णं भंते! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वत्ता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे दओभासे संखे दगसीमे।
कहि णं भंते! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते। सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारिं तीसे जोयणसते Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૦૫. ભગવન્ ! વેલંધર નાગરાજ કેટલા કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – ગોસ્તૂપ, શિવક, શંખ અને મનઃશિલાક. ભગવન્ ! આ ચાર વેલંધર નાગરાજાના કેટલા આવાસ પર્વતો છે ? ગૌતમ ! ચાર. ગોસ્તૂપ, ઉદકભાસ, શંખ, દકસીમા. ભગવન્ ! ગોસ્તૂપ વેલંધર નાગરાજનો સ્તૂપ નામે આવાસ પર્વત ક્યાં છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ – દ્વીપના મેરુની પૂર્વે લવણસમુદ્રમાં | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Gujarati | 207 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! अणुवेलंधरनागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि अनुवेलंधरनागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–कक्कोडए कद्दमए केलासे अरुणप्पभे।
एतेसि णं भंते! चउण्हं अणुवेलंधरणागराईणं कति आवासपव्वया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वया पन्नत्ता, तं जहा–कक्कोडए विज्जुप्पभे केलासे अरुणप्पभे।
कहि णं भंते! कक्कोडगस्स अनुवेलंधरणागरायस्स कक्कोडए नाम आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कक्कोडगयस्स नागरायस्स कक्कोडए नाम आवासपव्वते पन्नत्ते–सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसताइं तं चेव Translated Sutra: ભગવન્ ! અનુવેલંધર નાગરાજ કેટલા છે ? ગૌતમ! ચાર. તે આ – કર્કોટક, કર્દમક, કૈલાશ, અરુણપ્રભ. ભગવન્ ! આ ચાર અનુવેલંધર નાગરાજના કેટલા આવાસ પર્વતો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – કર્કોટક, કર્દમક, કૈલાશ, અરુણપ્રભ. ભગવન્ ! કર્કોટક અનુવેલંધર નાગરાજનો કર્કોટક આવાસપર્વત ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની ઈશાનમાં લવણસમુદ્રમાં | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Gujarati | 208 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सुट्ठियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे नाम दीवे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दे बारसजोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं सुट्ठियस्स लवणाहि-वइस्स गोयमदीवे नाम दीवे पन्नत्ते–बारसजोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयण-सहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, जंबूदीवंतेणं अद्धेकूननउति जोयणाइं चत्तालीसं च पंचानउतिभागे जोयणस्स ऊसिए जलंताओ लवणसमुद्दं तेणं दो कोसे ऊसिते जलंताओ। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते वण्णओ दोण्हवि।
गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे Translated Sutra: ભગવન્ ! લવણાધિપતિ સુસ્થિત દેવનો ગૌતમ નામે દ્વીપ ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની પશ્ચિમે લવણસમુદ્રમાં ૧૨,૦૦૦ યોજન જતા અહીં લવણાધિપતિ સુસ્થિતનો ગૌતમદ્વીપ કહેલ છે. તે ૧૨,૦૦૦ યોજન લાંબો – પહોળો, ૩૭,૯૪૮ યોજનથી કંઈક ન્યૂન પરિધિથી, જંબૂદ્વીપાંત દિશામાં ૮૮ – ૧/૨ યોજન અને ૪૦/૯૫ યોજન જલાંતથી ઉપર ઉઠેલ છે. લવણસમુદ્ર | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 209 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सेसं तं चेव जहा गोत्तमदीवस्स परिक्खेवो। जंबुद्दीवंतेणं अद्धेकोणनउइं जोयणाइं चत्तालीसं पंचानउतिं भागे जोयणस्स ऊसिया जलंताओ, लवणसमुद्दंतेणं दो कोसे ऊसिता जलंताओ। पउमवरवेइया, पत्तेयंपत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ। भूमिभागा तस्स बहुमज्झदेसभागे पासादवडेंसगा विजयमूलपासादसरिसया जाव सीहासना सपरिवारा।
से Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૦૯. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપગત ચંદ્રોના ચંદ્રદ્વીપો નામક બંને દ્વીપો ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની પૂર્વે લવણસમુદ્રમાં ૧૨,૦૦૦ યોજન જઈને અહીં જંબૂદ્વીપગત ચંદ્રના ચંદ્રદ્વીપ નામે બે દ્વીપ છે. તે જંબૂદ્વીપની દિશામાં ૮૮|| યોજન અને ૪૦/૯૫ યોજન પાણીથી ઉપર બેઠેલ છે. લવણસમુદ્રની દિશામાં જલાંતથી બે | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 222 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! गोतित्थसंठिते नावासंठिते सिप्पिसंपुडसंठिते अस्सखंधसंठिते वलभिसंठिते वट्टे वलयागारसंठिते पन्नत्ते।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं? केवतियं उव्वेहेणं? केवतियं उस्से हेणं? केवतियं सव्वग्गेणं पन्नत्ते? गोयमा! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसय-सहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसतसहस्सं उव्वेधेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्से-हेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૨૨. ભગવન્ ! લવણસમુદ્રનું સંસ્થાન કેવું છે ? ગૌતમ ! ગોતીર્થ આકાર, નાવના આકારે, સીપ સંપુટ આકારે, અશ્વસ્કંધ આકારે, વલભી આકારે, વૃત્ત – વલયાકાર સંસ્થિત કહેલ છે. ભગવન્ ! લવણસમુદ્રના ચક્રવાલ વિષ્કંભ કેટલો છે ? પરિધિ કેટલી છે ? ઉદ્વેધ કેટલો છે ? ઉત્સેધ કેટલો છે ? સમગ્રથી કેટલો છે ? ગૌતમ ! લવણ સમુદ્રનો ચક્રવાલ વિષ્કંભ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 250 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] समयखेत्ते मनुस्सखेत्ते णं भंते! केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–मनुस्सखेत्ते? मनुस्सखेत्ते? गोयमा! मनुस्सखेत्ते णं तिविधा मनुस्सा परिवसंति तं जहा–कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–मनुस्सखेत्ते, मनुस्सखेत्ते।
अदुत्तरं च णं गोयमा! मनुस्सखेत्तस्स सासए नामधेज्जे जाव निच्चे।
मनुस्सखेत्ते णं भंते! कति चंदा Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫૦. ભગવન્ ! સમયક્ષેત્રની લંબાઈ, પહોળાઈ અને પરિધિ કેટલી છે ? ગૌતમ ! લંબાઈ – પહોળાઈ ૪૫ લાખ યોજન અને ૧,૪૨,૩૦,૨૪૯ યોજન પરિધિ છે. ભગવન્! મનુષ્ય ક્ષેત્રને મનુષ્યક્ષેત્ર કેમ કહે છે ? ગૌતમ ! મનુષ્ય ક્ષેત્રમાં ત્રણ ભેદે મનુષ્યો વસે છે, તે આ – કર્મભૂમક, અકર્મભૂમક, અંતર્દ્વીપક. તે કારણે હે ગૌતમ ! મનુષ્યક્ષેત્રને મનુષ્યક્ષેત્ર | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 264 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ते मेरुमनुचरंता, पयाहिणावत्तमंडला सव्वे ।
अनवट्ठितेहिं जोगेहिं, चंदा सूरा गहगणा य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૦ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 265 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नक्खत्ततारगाणं, अवट्ठिया मंडला मुणेयव्वा ।
तेवि य पयाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૦ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 288 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वतस्स जे चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? कप्पोववन्नगा? विमाणोववन्नगा? चारोववन्नगा? चारट्ठितीया? गतिरतिया? गति-समावन्नगा? गोयमा! ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा, नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा, नो चारट्ठितीया, गतिरतिया गतिसमावन्नगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयण-साहस्सि-तेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट गीत वादित तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहनाय-वोलकलकलरवेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! મનુષ્યક્ષેત્રની અંદર જે ચંદ્ર, સૂર્ય, ગ્રહ, નક્ષત્ર, તારાગણ છે, તેઓ હે ભદંત ! શું ઉર્ધ્વોત્પન્ન છે, કલ્પોત્પન્ન છે, વિમાનોત્પન્ન છે, ચારોત્પન્ન છે, ચારસ્થિતિક છે, ગતિરતિક છે કે ગતિસમાપન્નક છે ? ગૌતમ ! તે દેવો ઉર્ધ્વોત્પન્ન નથી, કલ્પોત્પન્ન નથી, વિમાનોત્પન્ન છે. તેઓ ગતિશીલ છે, સ્થિતિશીલ નથી, ગતિરતિક છે, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Gujarati | 312 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवतियं अबाहाए जोतिसं चारं चरति?
गोयमा! एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसं चारं चरति।
लोगंताओ भंते! केवतियं अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते?
गोयमा! एक्कारस एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवतियं अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति? केवतियं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति? केवतिए अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति?
गोयमा! सत्त नउते जोयणसते अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति, अट्ठं जोयणसताइं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧૨. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતના પૂર્વચરમાંતથી કેટલે દૂર જ્યોતિષ્કદેવ તેની પ્રદક્ષિણા કરે છે ? ગૌતમ ! ૧૧૨૧ યોજન દૂરથી જ્યોતિષ્ક પ્રદક્ષિણા કરે છે. એ પ્રમાણે દક્ષિણ – પશ્ચિમ – ઉત્તરના ચરમાંતથી પણ ૧૧૨૧ યોજનથી ચાર ચરે છે. ભગવન્ ! લોકાંતથી કેટલે દૂર જયોતિષ્ ચક્ર છે ? ગૌતમ ! ૧૧૧૧ યોજને જ્યોતિષ્ ચક્ર | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 372 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नारय-तेरिच्छ-दुक्खाओ कुंथु-जानियाउ अंतरं।
मंदरगिरि-अनंत-गुणियस्स परमाणुस्सा वि नो घडे॥ Translated Sutra: नारकी और तिर्यंच के दुःख और कुंथुआ के पाँव के स्पर्श का दुःख वो दोनों दुःख का अंतर कितना है ? तो कहते हैं मेरु पर्वत के परमाणु को अनन्त गुने किए जाए तो एक परमाणु जितना भी कुंथु के पाँव के स्पर्श का दुःख नहीं है। यह जीव भव के भीतर लम्बे अरसे से सुख की आकांक्षा कर रहे हैं। उसमें भी उसे दुःख की प्राप्ति होती है। और | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 504 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सयल-नरामर-तियसिंद-सुंदरी-रूव-कंति-लावन्नं।
सव्वं पि होज्ज जइ एगरासि-सपिंडियं कह वि॥ Translated Sutra: समग्र मानव, देव, इन्द्र और देवांगना के रूप, कान्ति, लावण्य वो सब इकट्ठे करके उसका ढ़ग शायद एक और किया जाए और उसकी दूसरी ओर जिनेश्वर के चरण के अँगूठे के अग्र हिस्से का करोड़ या लाख हिस्से की उसके साथ तुलना की जाए तो वो देव – देवी के रूप का पिंड़ सुवर्ण के मेरू पर्वत के पास रखे गए ढ़ग की तरह शोभारहित दिखता है। या इस जगत | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 531 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं जहा–मेरुत्तुंगे मणि-मंडिएक्क-कंचणगए परमरम्मे।
नयन-मनाऽऽनंदयरे पभूय-विण्णाण-साइसए॥ Translated Sutra: लाख योजन प्रमाण मेरु पर्वत जैसे ऊंचे, मणिसमुद्र से शोभायमान, सुवर्णमय, परम मनोहर, नयन और मन को आनन्द देनेवाला, अति विज्ञानपूर्ण, अति मजबूत, दिखाई न दे उस तरह जुड़ दिया हो ऐसा, अति घिसकर मुलायम बनाया हुआ, जिसके हिस्से अच्छी तरह से बाँटे गए हैं ऐसा कईं शिखरयुक्त, कईं घंट और ध्वजा सहित, श्रेष्ठ तोरण युक्त कदम – कदम पर | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 562 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा धम्मतित्थंकरे जिने अरहंते।
अह तारिसे वि इड्ढी-पवित्थरे, सयल-तिहुयणाउलिए।
साहीणे जग-बंधू मनसा वि न जे खणं लुद्धे॥ Translated Sutra: हे गौतम ! धर्म तीर्थंकर भगवंत, अरिहंत, जिनेश्वर जो विस्तारवाली ऋद्धि पाए हुए हैं। ऐसी समृद्धि स्वाधीन फिर भी जगत् बन्धु पलभर उसमें मन से भी लुभाए नहीं। उनका परमैश्वर्य रूप शोभायमय लावण्य, वर्ण, बल, शरीर प्रमाण, सामर्थ्य, यश, कीर्ति जिस तरह देवलोक में से च्यवकर यहाँ अवतरे, जिस तरह दूसरे भव में, उग्र तप करके देवलोक | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 569 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रोमंच-कंचु-पुलइय-भत्तिब्भर-मोइय-सगत्ते।
मन्नंते सकयत्थं जम्मं अम्हाण मेरुगिरि-सिहरे॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५६२ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 822 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केवतियं कालं जाव एस आणा पवेइया गोयमा जाव णं महायसे महासत्ते महानुभागे सिरिप्पभे अनगारे। से भयवं केवतिएणं काले णं से सिरिप्पभे अनगागरे भवेज्जा ।
गोयमा होही दुरंत पंत लक्खणे अदट्ठव्वे रोद्दे चंडे पयंडे उग्ग पयंडे दंडे निम्मेरे निक्किवे निग्घिणे नित्तिंसे कूरयर पाव मती अनारिए मिच्छदिट्ठी कक्की नाम रायाणे। से णं पावे पाहुडियं भमाडिउकामे सिरि समण संघं कयत्थेज्जा। जाव णं कयत्थे इ ताव णं गोयमा जे केई तत्थ सीलड्ढे महानुभागे अचलियसत्ते तवो हणे अनगारे तेसिं च पाडिहेरियं कुज्जा सोहम्मे कुलिसपाणी एरावण-गामी सुरवरिंदे।
एवं च गोयमा देविंद वंदिए दिट्ठपच्चए Translated Sutra: हे भगवंत ! कितने अरसे तक यह आज्ञा प्रवेदन की है ? हे गौतम ! जब तक महायशवाले, महासत्त्ववाले, महागुणभाग, श्री प्रभुनाम के अणगार होंगे तब तक आज्ञा का प्रवर्तन होगा। हे भगवन् ! कितने समय के बाद श्री प्रभ नाम के अणगार होंगे ? हे गौतम ! दुरन्त प्रान्त – तुच्छ लक्षणवाला न देखने के लायक रौद्र, क्रोधी, प्रचंड, कठिन, उग्रभारी, | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1508 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कम्मट्ठ-गंठि-मुसुमूरण, जय जय परमेट्ठी महायस
जय जय जयाहिचारित्त-दंसण-नाण-समण्णिय॥ Translated Sutra: हे कर्म की आँठ गठान के टुकड़े करनेवाले ! परमेष्ठिन् ! महायशवाले ! चारित्र दर्शन ज्ञान सहित तुम्हारी जय हो। इस जगतमें एक वो माता हर पल वंदनीय है जिसके उदर में मेरु पर्वत समान महामुनि उत्पन्न होकर बसे। सूत्र – १५०८, १५०९ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1257 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जेणं गब्भट्ठाणम्मि देविंदो अमयं अंगुट्ठयं कयं।
आहारं देइ भत्तीए, संथवं सययं करे॥ Translated Sutra: जो लोग गर्भ में थे तब भी देवेन्द्र ने अमृतमय अँगूठा किया था। भक्ति से इन्द्र महाराजा आहार भी भगवंत को देते थे। और हंमेशा स्तुति भी करते थे। देवलोक में जब वो चव्य थे और जिनके घर अवतार लिया था उनके घर उसके पुष्प – प्रभाव से हंमेशा सुवर्ण की वृष्टि बरसती थी। जिनके गर्भ में पैदा हुए हो, उस देश में हर एक तरह की इति | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1335 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जीवेण जाणि उ विसज्जियाणि जाई-सएसु देहाणि।
थेवेहिं तओ सयलं पि तिहुयणं होज्जा पडहत्थं॥ Translated Sutra: इस जीवने सेंकड़ो जाति में उत्पन्न होकर जितने शरीर का त्याग किया है लेकिन उनमें से कुछ शरीर से भी समग्र तीनों भुवन भी भर जाए। शरीर में भी जो नाखून, दाँत, मस्तक, भ्रमर, आँख, कान आदि अवयव का जो त्याग किया है उन सबके अलग – अलग ढ़ग किए जाए तो उसके भी कुल पर्वत या मेरु पर्वत जितने ऊंचे ढ़ग बने, सर्व जो आहार ग्रहण किया है वो समग्र | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1336 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नह-दंत-मुद्ध-भमुहक्खि-केस-जीवेण विप्पमुक्केसु।
तेसु वि हवेज्ज कुल-सेल-मेरु-गिरि-सन्निभे कूडे॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३३५ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1484 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ।
से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1499 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो दलइ मुट्ठि-पहरेहि मंदरं, धरइ करयले वसुहं।
सव्वोदहीन वि जलं आयरिसइ एक्क घोट्टेणं॥ Translated Sutra: जो केवल मुष्ठि के प्रहार से मेरु के टुकड़े कर देते हैं, पृथ्वी को पी जाते हैं, इन्द्र को स्वर्ग से बेदखल कर सकते हैं, पलभर में तीनों भुवन का भी शिव कल्याण करनेवाले होते हैं लेकिन ऐसा भी अक्षत शीलवाले की तुलना में नहीं आ सकता। वाकई वो ही उत्पन्न हुआ है ऐसा माना जाता है, वो तीनों भुवन को वंदन करने के लायक है, वो पुरुष | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Gujarati | 372 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नारय-तेरिच्छ-दुक्खाओ कुंथु-जानियाउ अंतरं।
मंदरगिरि-अनंत-गुणियस्स परमाणुस्सा वि नो घडे॥ Translated Sutra: નારકી અને તિર્યંચના દુઃખો તથા કુંથુના પગના સ્પર્શનું દુઃખ, એ બંનેનું અંતર કેટલું ? મેરુ પર્વતના અનંતગણા કરીએ તો એક પરમાણુ જેટલુ પણ કુંથુના પગનું સ્પર્શ – દુઃખ નથી. આ જીવ લાંબા કાળથી સુખ કાંક્ષી છે, તેમાં પણ તેને દુઃખ પ્રાપ્તિ થાય છે. વળી ભૂતકાલીન દુઃખ સ્મરતા તે અતિ દુઃખી થાય છે. એ રીતે ઘણા દુઃખના સંકટમાં રહેલ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 504 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सयल-नरामर-तियसिंद-सुंदरी-रूव-कंति-लावन्नं।
सव्वं पि होज्ज जइ एगरासि-सपिंडियं कह वि॥ Translated Sutra: સમગ્ર મનુષ્યો, દેવો, ઇન્દ્રો દેવાંગનાઓના રૂપ, કાંતિ, લાવણ્ય એ સર્વ એકત્ર કરી, તેનો ઢગલો એક બાજુ કરાય અને બીજી બાજુ જિનેશ્વરના ચરણના અંગૂઠાના અગ્રભાગને કરોડ કે લાખમો ભાગ તેની સાથે સરખાવીએ તો તે દેવ – દેવીના રૂપનો પીંડ સુવર્ણના મેરુ પાસે રાખના ઢગલા જેવો શોભારહિત દેખાય છે. અથવા આ જગતના સર્વે પુરુષોના બધા ગુણો | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 531 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं जहा–मेरुत्तुंगे मणि-मंडिएक्क-कंचणगए परमरम्मे।
नयन-मनाऽऽनंदयरे पभूय-विण्णाण-साइसए॥ Translated Sutra: લાખ યોજના પ્રમાણ મેરુ પર્વત જેટલા ઊંચા, મણિ સમુદ્રથી શોભિત, સુવર્ણમય, પરમ મનોહર, નયન અને મનને આનંદ આપનાર, અતિશય વિજ્ઞાનપૂર્ણ, અતિ મજબૂત ન દેખાય તેમ સાંધાને જોડી દીધા હોય તેવું અતિશય ઘસીને સુંવાળુ કરેલ, જેના વિભાગો સારી રીતે વિભાજિત છે તેવું, ઘણા શિખરો યુક્ત અનેક ઘંટા અને ધ્વજા સહિત, શ્રેષ્ઠ તોરણોયુક્ત, આગળ – | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 562 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा धम्मतित्थंकरे जिने अरहंते।
अह तारिसे वि इड्ढी-पवित्थरे, सयल-तिहुयणाउलिए।
साहीणे जग-बंधू मनसा वि न जे खणं लुद्धे॥ Translated Sutra: ગૌતમ ! ધર્મતીર્થંકર અરિહંતો, જેવી વિસ્તૃત ઋદ્ધિ પામેલા છે, એવી સમૃદ્ધિ અસ્વાધીન છતાં એ જગતબંધુ ક્ષણવાર તેમાં લોભાયા નથી. તેમનું પરમૈશ્વર્યરૂપ, શોભામય લાવણ્ય, વર્ણ, બળ, શરીર પ્રમાણ, સામર્થ્ય, યશ, કીર્તિ, જે રીતે દેવલોકથી અવતર્યા, જે રીતે બીજા ભવોમાં ઉગ્રતપથી દેવલોક પામ્યા. જે રીતે એક તેઓએ આદિ વીશ સ્થાનકો આરાધી | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 569 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रोमंच-कंचु-पुलइय-भत्तिब्भर-मोइय-सगत्ते।
मन्नंते सकयत्थं जम्मं अम्हाण मेरुगिरि-सिहरे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૬૨ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 822 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केवतियं कालं जाव एस आणा पवेइया गोयमा जाव णं महायसे महासत्ते महानुभागे सिरिप्पभे अनगारे। से भयवं केवतिएणं काले णं से सिरिप्पभे अनगागरे भवेज्जा ।
गोयमा होही दुरंत पंत लक्खणे अदट्ठव्वे रोद्दे चंडे पयंडे उग्ग पयंडे दंडे निम्मेरे निक्किवे निग्घिणे नित्तिंसे कूरयर पाव मती अनारिए मिच्छदिट्ठी कक्की नाम रायाणे। से णं पावे पाहुडियं भमाडिउकामे सिरि समण संघं कयत्थेज्जा। जाव णं कयत्थे इ ताव णं गोयमा जे केई तत्थ सीलड्ढे महानुभागे अचलियसत्ते तवो हणे अनगारे तेसिं च पाडिहेरियं कुज्जा सोहम्मे कुलिसपाणी एरावण-गामी सुरवरिंदे।
एवं च गोयमा देविंद वंदिए दिट्ठपच्चए Translated Sutra: ભગવન્ ! કેટલો કાળ આ આજ્ઞા પ્રવેદન કરેલી છે ? ગૌતમ ! જ્યાં સુધી મહાયશા, મહાસત્વી, મહાનુભાગ શ્રીપ્રભુ નામે અણગાર થશે, ત્યાં સુધી આજ્ઞા પ્રવર્તશે. ભગવન્ ! શ્રીપ્રભ અણગાર કેટલા સમય પછી જશે ? ગૌતમ ! દુરંત, પ્રાંત, તુચ્છ લક્ષણવાળો ન જોવાલાયક, રૌદ્ર, ક્રોધી, પ્રચંડ, આકરો, ઉગ્ર અને ભારે દંડ કરનાર, મર્યાદા હીન, નિષ્કુરણ, નિર્દય, | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1257 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जेणं गब्भट्ठाणम्मि देविंदो अमयं अंगुट्ठयं कयं।
आहारं देइ भत्तीए, संथवं सययं करे॥ Translated Sutra: જેઓ ગર્ભમાં હતા ત્યારે પણ દેવેન્દ્રએ અમૃતમય અંગૂઠો કર્યો હતો. ભક્તિથી ઇન્દ્ર મહારાજા આહાર પણ આપતા હતા. નિરંતર સ્તુતિ કરતા હતા. દેવલોકથી જ્યારે તેઓ ચ્યવ્યા અને જેમના ઘેર અવતર્યા તેમના ઘેર તેમના પુન્ય પ્રભાવથી નિરંતર સુવર્ણની વૃષ્ટિ વરસતી હતી. જેમના ગર્ભમાં ઉત્પન્ન થયો હોય, તે દેશમાં દરેક પ્રકારે ઇતિ – ઉપદ્રવો, |