Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 64 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयाणि, जहेवित्थीणं जाव–
एतेसि णं भंते! देवपुरिसाणं–भवनवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं वेमाणियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा वेमानियदेवपुरिसा २. भवनवइदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३. वाणमंतरदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ४. जोतिसियदेव-पुरिसा संखेज्जगुणा।
एतेसि णं भंते! तिरिक्खजोणियपुरिसाणं–जलयराणं थलयराणं खहयराणं, मनुस्सपुरिसाणं–कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, देवपुरिसाणं–भवनवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं सोधम्माणं जाव सव्वट्ठसिद्धगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया Translated Sutra: स्त्रियों का जैसा अल्पबहुत्व कहा यावत् हे भगवन् ! देव पुरुषों – भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े वैमानिक देवपुरुष, उनसे भवनपति देवपुरुष असंख्येयगुण, उनसे वानव्यन्तर देवपुरुष असंख्येय गुण, उनसे ज्योतिष्क देवपुरुष संख्येयगुणा हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 65 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अट्ठ संवच्छराणि, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दसवाससयाइं अबाहा अबाहूणिया कम्मट्ठिती कम्म-निसेओ।
पुरिसवेदे णं भंते! किंपकारे पन्नत्ते? गोयमा! दवग्गिजालसमाणे पन्नत्ते। सेत्तं पुरिसा। Translated Sutra: हे भगवन् ! पुरुषवेद की कितने काल की बंधस्थिति है ? गौतम ! जघन्य आठ वर्ष और उत्कृष्ट दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम। एक हजार वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल से रहित स्थिति कर्मनिषेक है। भगवन्! पुरुषवेद किस प्रकार का हे ? गौतम ! वन की अग्निज्वाला के समान है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 66 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नपुंसगा? नपुंसगा तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइयनपुंसगा तिरिक्खजोणियनपुंसगा मनुस्सजोणियनपुंसगा।
से किं तं नेरइयनपुंसगा? नेरइयनपुंसगा सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइय-
नपुंसगा सक्करप्पभापुढविनेरइयनपुंसगा जाव अधेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगा।
से किं तं तिरिक्खजोणियनपुंसगा? तिरिक्खजोणियनपुंसगा पंचविधा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसया बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा चउरिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा।
से किं तं एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा? एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा Translated Sutra: भन्ते ! नपुंसक कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के नैरयिक नपुंसक, तिर्यक्योनिक नपुंसक और मनुष्ययोनिक नपुंसक। नैरयिक नपुंसक सात प्रकार के हैं, यथा – रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक नपुंसक, यावत् अधः – सप्तमीपृथ्वी नैरयिक नपुंसक। तिर्यंचयोनिक नपुंसक पाँच प्रकार के हैं, यथा – एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 67 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
नेरइयनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं सव्वेसिं ठिती भाणियव्वा जाव अधेसत्तमापुढविनेरइया।
तिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! नपुंसक की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। भगवन् ! नैरयिक नपुंसक की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। भगवन् ! तिर्यक्योनिक नपुंसक की ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी। भगवन् ! एकेन्द्रिय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 68 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! नेरइयनपुंसगाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं मनुस्सनपुंसगाणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा मनुस्सनपुंसगा २. नेरइय-नपुंसगा असंखेज्जगुणा ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अनंतगुणा।
एतेसि णं भंते! नेरइयनपुंसगाणं–रयणप्पहापुढविनेरइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा अहेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगा, ६. छट्ठपुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा जाव दोच्च-पुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा, ७. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा।
एतेसि Translated Sutra: भगवन् ! इन नैरयिक नपुंसक, तिर्यक्योनिक नपुंसक और मनुष्ययोनिक नपुंसकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य नपुंसक, उनसे नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण हैं। भगवन् ! इन रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिक नपुंसकों में कौन किससे अल्प, | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 69 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नपुंसगवेदस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दोन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेण ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ, दोन्नि य वाससहस्साइं अबाधा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मनिसेगो।
नपुंसगवेदे णं भंते! किंपगारे पन्नत्ते? गोयमा! महानगरदाहसमाने पन्नत्ते समणाउसो! से तं नपुंसगा। Translated Sutra: हे भगवन् ! नपुंसकवेद कर्म की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से सागरोपम के (दो सातिया भाग) भाग में पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम और उत्कृष्ट से बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की बंधस्थिति कही गई है। दो हजार वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल से हीन स्थिति का कर्मनिषेक है अर्थात् अनुभवयोग्य कर्मदलिक की रचना है। भगवन् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 70 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतासि णं भंते! इत्थीणं पुरिसाणं नपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! १. सव्वत्थोवा पुरिसा २. इत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. नपुंसगा अनंतगुणा।
एतासि णं भंते! तिरिक्खजोणिइत्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणियपुरिसा २. तिरिक्खजोणिइत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अनंतगुणा।
एतासि णं भंते! मनुस्सित्थीणं मनुस्सपुरिसाणं मनुस्सनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा Translated Sutra: (१) भगवन् ! इन स्त्रियों में, पुरुषों में और नपुंसकों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है? गौतम ! सबसे थोड़े पुरुष, स्त्रियाँ संख्यातगुणी और नपुंसक अनन्तगुण हैं। (२) इन तिर्यक्योनिक में, सबसे थोड़े तिर्यक्योनिक पुरुष, तिर्यक्योनिक स्त्रियाँ उनसे असंख्यातगुणी, उनसे तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 71 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगेणं आएसेणं जहा पुव्विं भणियं। एवं पुरिसस्सवि नपुंसगस्सवि। संचिट्ठणा पुनरवि तिण्हंपि जहा पुव्विं भणिया। अंतरंपि तिण्हंपि जहा पुव्विं भणियं तहा नेयव्वं। Translated Sutra: भगवन् ! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! ‘एक अपेक्षा से’ इत्यादि कथन जो स्त्री – प्रकरण में किया गया है, वही यहाँ कहना। इसी प्रकार पुरुष और नपुंसक की भी स्थिति आदि का कथन पूर्ववत् समझना। तीनों की संचिट्ठणा और तीनों का अन्तर भी जो अपने – अपने प्रकरण में कहा गया है, वही यहाँ कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 76 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमा णं भंते! पुढवी किंनामा किंगोत्ता पन्नत्ता? गोयमा! धम्मा नामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं।
दोच्चा णं भंते! पुढवी किंनामा किंगोत्ता पन्नत्ता? गोयमा! वंसा नामेणं, सक्करप्पभा गोत्तेणं। एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, नामानि इमानि सेला तच्चा अंजना चउत्थी रिट्ठा पंचमी मघा छट्ठी माघवती सत्तमा जाव तमतमा गोत्तेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: हे भगवन् ! प्रथम पृथ्वी का क्या नाम और क्या गोत्र है ? गौतम ! प्रथम पृथ्वी का नाम ‘धम्मा’ है और उसका गोत्र रत्नप्रभा है। गौतम ! दूसरी पृथ्वी का नाम वंशा है और गोत्र शर्कराप्रभा है। तीसरी पृथ्वी का नाम शैला, चौथी का अंजना, पाँचवी का रिष्ठा है, छठी का मघा और सातवीं पृथ्वी का नाम माघवती है। इस प्रकार तीसरी पृथ्वी का | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 79 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी केवतिया बाहल्लेणं पन्नत्ता? गोयमा! इमा णं रयणप्पभापुढवी असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्लेणं पन्नत्ता। एवं एतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अनुगंतव्वा– Translated Sutra: भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितनी मोटी कही गई है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है। ‘प्रथम पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है। दूसरी एक लाख बत्तीस हजार योजन की, तीसरी एक लाख अट्ठाईस हजार योजन की, चौथी एक लाख बीस हजार योजन की, पाँचवी एक लाख अठारह हजार योजन की, छठी एक लाख सोलह हजार | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 81 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी कतिविधा पन्नत्ता? गोयमा! तिविधा पन्नत्ता, तं जहा–खरकंडे पंकबहुले कंडे आवबहुले कंडे।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे कतिविधे पन्नत्ते? गोयमा! सोलसविधे पन्नत्ते, तं जहा–१. रयणे २. वइरे ३. वेरुलिए ४. लोहितक्खे ५. मसारगल्ले ६. हंसगब्भे ७. पुलए ८. सोयंधिए ९. जोतिरसे १०. अंजणे ११. अंजणपुलए १२. रयते १३. जातरूवे १४. अंके १५. फलिहे १६. रिट्ठे कंडे।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे कतिविधे पन्नत्ते? गोयमा! एगागारे पन्नत्ते। एवं जाव रिट्ठे।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पंकबहुले कंडे कतिविधे पन्नत्ते? गोयमा! एगागारे पन्नत्ते।
एवं आवबहुले Translated Sutra: भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की – खरकाण्ड, पंकबहुलकांड और अप्बहुल कांड। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का खरकाण्ड कितने प्रकार का है ? गौतम ! सोलह प्रकार का – रत्नकांड, वज्रकांड, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 82 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, इमा गाहा अनुगंतव्वा– Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकवास हैं ? गौतम ! तीस लाख। प्रथम पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पाँचवी में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवी पृथ्वी में पाँच अनुत्तर महानरकावास हैं। अधःसप्तमपृथ्वी में महानरकावास पाँच हैं, यथा – काल, महाकाल, रौरव, | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 89 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ, चरिमंताओ केवतियुं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते? गोयमा! दुवालसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं दाहिणिल्लातो पच्चत्थिमिलातो उत्तरिल्लातो।
सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए पुरत्थिमिल्लातो चरिमंतातो केवतियं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते? गोयमा! तिभागूणेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं चउद्दिसिंपि।
वालुयप्पभाए णं भंते! पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ पुच्छा। गोयमा! सतिभागेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं चउद्दिसिंपि।
एवं सव्वासिं चउसुवि दिसासु पुच्छितव्वं–पंकप्पभाए चोद्दसहिं जोयणेहिं Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के उपरिमान्त से कितने अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा है ? गौतम ! १२ योजन के बाद। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम और उत्तरदिशा के उपरिमान्त से बारह योजन अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है। शर्कराप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से त्रिभाग कम तेरह योजन के अपान्तराल के | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 90 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! छ जोयणाणि बाहल्लेणं पन्नत्ते।
सक्करप्पभाए पुढवीए घनोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! सतिभागाइं छजोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते।
वालुयप्पभाए पुच्छा। गोयमा! तिभागूणाइं सत्त जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते। एवं एतेणं अभिलावेणं– पंकप्पभाए सत्त जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते। धूमप्पभाए सतिभागाइं सत्त जोयणाइं। तमप्पभाए तिभागूणाइं अट्ठ जोयणाइं। तमतमप्पभाए अट्ठ जोयणाइं।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनवायवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! अद्धपंचमाइं जोयणाइं बाहल्लेणं।
सक्करप्पभाए Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधिवलय कितना मोटा है ? गौतम ! छह योजन, शर्कराप्रभापृथ्वी का घनोदधिवलय त्रिभागसहित छह योजन मोटा है। वालुकाप्रभा त्रिभागशून्य सात योजन का है। पंकप्रभा का घनोदधिवलय सात योजन का, धूमप्रभा का त्रिभागसहित सात योजन का, तमःप्रभा का त्रिभागन्यून आठ योजन का और तमस्तमःप्रभा का आठ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 91 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववन्नपुव्वा? सव्वजीवा उववन्ना? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववन्नपुव्वा, नो चेव णं सव्वजीवा उववन्ना। एवं जाव अहेसत्तमाए।
इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी सव्वजीवेहिं विजढपुव्वा? सव्वजीवेहिं विजढा? गोयमा! इमा णं रयणप्पभा पुढवी सव्वजीवेहिं विजढपुव्वा, नो चेव णं सव्वजीवविजढा। एवं जाव अधेसत्तमा।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए सव्वपोग्गला पविट्ठपुव्वा? सव्वपोग्गला पविट्ठा? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वपोग्गला पविट्ठपुव्वा, नो चेव णं सव्वपोग्गला पविट्ठा। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमा णं भंते! रयणप्पभा Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभापृथ्वी में सब जीव पहले काल – क्रम से उत्पन्न हुए हैं तथा युगपत् उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! कालक्रम से सब जीव पहले उत्पन्न हुए हैं किन्तु सब जीव एक साथ रत्नप्रभा में उत्पन्न नहीं हुए। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कालक्रम से सब जीवों के द्वारा पूर्व | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 92 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी किं सासत्ता? असासता? गोयमा! सिय सासता, सिय असासता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसिय सासता सिय असासता? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासता, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासता। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–सिय सासता, सिय असासता। एवं जाव अधेसत्तमा।
इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सति। भुविं च भवइ य भविस्सति य धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिता निच्चा। एवं जाव अधेसत्तमा। Translated Sutra: हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी शाश्वत है या अशाश्वत ? गौतम ! कथञ्चित् शाश्वत है और कथञ्चित् अशाश्वत है। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है – गौतम ! द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से शाश्वत है और वर्ण, गंध, रस, स्पर्श पर्यायों से अशाश्वत हैं। इसलिए गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि यह रत्नप्रभापृथ्वी कथंचित् शाश्वत है और कथंचित् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 93 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लातो चरिमंताओ हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लातो चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! दो जोयणसहस्साइं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते। एवं कंडेकंडे दो दो आलावगा Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमांत से नीचे के चरमान्त के बीच कितना अन्तर कहा गया है ? गौतम ! एक लाख अस्सी हजार योजन। रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से खरकांड के नीचे के चरमान्त के बीच सोलह हजार योजन का अन्तर है। रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से रत्नकांड के नीचे के चरमान्त के बीच एक हजार योजन | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 94 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला? विसेसाहिया? संखेज्जगुणा? वित्थारेणं किं तुल्ला? विसेसहीणा? संखेज्जगुणहीना? गोयमा! इमा णं रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं नो तुल्ला, विसेसाहिया, नो संखेज्जगुणा। वित्थारेणं नो तुल्ला, विसेसहीणा, नो संखेज्जगुणहीना।
दोच्चा णं भंते! पुढवी तच्चं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला? एवं चेव भाणितव्वं। एवं तच्चा चउत्थी पंचमी छट्ठी।
छट्ठी णं भंते! पुढवी सत्तमं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला? विसेसाहिया? संखेज्जगुणा? एवं चेव भाणि यव्वं। सेवं भंते! सेवं भंते! । Translated Sutra: हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में क्या तुल्य है, विशेषाधिक है या संख्येयगुण है ? और विस्तार की अपेक्षा क्या तुल्य है, विशेषहीन है या संख्येयहीन है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में तुल्य नहीं है, विशेषाधिक है, संख्यातगुणहीन है। विस्तार की अपेक्षा | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 95 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं केवतियं ओगाहित्ता हेट्ठा केवइयं वज्जित्ता मज्झे केवतिए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठावि एगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अडहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं तीसं निरयावाससयसहस्साइं भवंतित्तिमक्खाया।
ते णं नरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा जाव असुभा नरएसु वेयणा, एवं एएणं अभिलावेणं Translated Sutra: हे भगवन् ! पृथ्वीयाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! सात पृथ्वीयाँ कही गई हैं – जैसे कि रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी। भगवन् ! एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण बाहल्य वाली इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर से कितनी दूर जाने पर और नीचे के कितने भाग को छोड़कर मध्य के कितने भाग में कितने लाख नरकावास कहे गये हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 96 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आवलियपविट्ठा य आवलियबाहिरा य।
तत्थ णं जेते आवलियपविट्ठा ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–वट्टा तंसा चउरंसा। तत्थ णं जेते आवलियबाहिरा ते नानासंठाणसंठिया पन्नत्ता, तं जहा–अयकोट्ठसंठिता पिट्ठपयणगसंठिता कंडूसंठिता लोहीसंठिता कडाहसंठिता थालीसंठिता पिहडगसंठिता किण्हसंठिता उवडसंठिता मुरवसंठिता मुयंगसंठिता नंदिमुयंगसंठिता आलिंगकसंठिता सुघोससंठिता दद्दरयसंठिता पनव-संठिता पडहसंठिता भेरिसंठिता झल्लरीसंठिता कुत्तुंबकसंठिता नालिसंठिता। एवं जाव तमाए।
अहेसत्तमाए णं भंते! Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों का आकार कैसा है ? गौतम ! ये नरकावास दो तरह के हैं – आवलिकाप्रविष्ट और आवलिकाबाह्य। इनमें जो आवलिकाप्रविष्ट हैं वे तीन प्रकार के हैं – गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण। जो आवलिका से बाहर हैं वे नाना प्रकार के आकारों के हैं, जैसे कोई लोहे की कोठी के आकार के हैं, कोई मदिरा बनाने | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 97 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि जोयणसहस्साइं, बाहल्लेणं पन्नत्ता, तं जहा– हेट्ठा घना सहस्सं, मज्झे झुसिरा सहस्सं, उप्पिं संकुइया सहस्सं। एवं जाव अहेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवइयं परिक्खवेणं पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य।
तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं, जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पन्नत्ता। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों की मोटाई कितनी है ? गौतम ! ३००० योजन की। वे नीचे १००० योजन तक घन हैं, मध्य में एक हजार योजन तक झुषिर हैं और ऊपर एक हजार योजन तक संकुचित हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों की लम्बाई – चौड़ाई तथा परिक्षेप कितना है ? गौतम ! वे नरकावास | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 98 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए अहिमडेति वा गोमडेति वा सुनमडेति वा मज्जारमडेति वा मनुस्समडेति वा महिसमडेति वा मूसगमडेति वा आसमडेति वा हत्थिमडेति वा सीहमडेति वा वग्घमडेति वा विगमडेति वा दीविय-मडेति वा मयकुहियविणट्ठकुणिमवावण्णदुरभिगंधे असुइविलीणविगय बीभच्छदरिसणिज्जे किमि-जालाउलसंसत्ते भवेयारूवे सिया? नो इणट्ठे समट्ठे। गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नरगा एत्तो अनिट्ठतरका चेव अकंततरका चेव अप्पियतरका चेव अमणुन्नतरका चेव अमनामतरका चेव गंधेणं पन्नत्ता। एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास गंध की अपेक्षा कैसे हैं ? गौतम ! जैसे सर्प का मृतकलेवर हो, गाय का मृतकलेवर हो, कुत्ते का मृतकलेवर हो, बिल्ली का मृतकलेवर हो, इसी प्रकार मनुष्य का, भैंस का, चूहे का, घोड़े का, हाथी का, सिंह का, व्याघ्र का, भेड़िये का, चीत्ते का मृतकलेवर हो जो धीरे – धीरे सूज – फूलकर सड़ गया हो और जिसमें | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 99 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरगा किंमया पन्नत्ता? गोयमा! सव्ववइरामया पन्नत्ता। तत्थ णं नरएसु बहवे जीवा य पोग्गला य अवक्कमंति विउक्कमंति चयंति उववज्जंति। सासता णं ते नरगा दव्वट्ठयाए, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया। एवं जाव अहेसत्तमाए। Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास किसके बने हुए हैं ? गौतम ! वे नरकावास सम्पूर्ण रूप से वज्र के बने हुए हैं। उन नरकावासों में बहुत से (खरबादर पृथ्वीकायिक) जीव और पुद्गल च्यवते हैं और उत्पन्न होते हैं, पुराने नीकलते हैं और नये आते हैं। द्रव्यार्थिकनय से वे नरकावास शाश्वत हैं परन्तु वर्ण, गंध, रस और स्पर्श | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 100 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कतोहिंतो उववज्जंति–किं असन्नीहिंतो उववज्जंति? सरीसिवेहिंतो उववज्जंति? पक्खीहिंतो उववज्जंति? चउप्पएहिंतो उववज्जंति? उरगेहिंतो उवव-ज्जंति? इत्थियाहिंतो उववज्जंति? मच्छमनुएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! असन्नीहिंतो उववज्जंति जाव मच्छमनुएहिंतो वि उववज्जंति। एवं एतेणं अभिलावेणं इमा गाथा घोसेयव्वा– Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या असंज्ञी जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, सरीसृपों से आकर उत्पन्न होते हैं, पक्षियों से आकर उत्पन्न होते हैं, चौपदों से आकर उत्पन्न होते हैं, उरगों से आकर उत्पन्न होते हैं, स्त्रियों से आकर उत्पन्न होते हैं या मत्स्यों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 102 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छट्ठिं च इत्थियाओ, मच्छा मनुया य सत्तमिं जंति ।
एसो खलु उववातो, नेरइयाणं तु नातव्वो ॥
जाव अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया नो असन्नीहिंतो उववज्जंति जाव नो इत्थियाहिंतो उववज्जंति, मच्छमनुस्सेहिंतो उववज्जंति।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया एक्कसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखिज्जा वा उववज्जंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया समएसमए अवहीरमाणाअवहीरमाणा केवति-कालेणं अवहिता सिता? गोयमा! ते णं असंखेज्जा समएसमए अवहीरमाणाअवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति, Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में नारकजीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य से एक, दो, तीन, उत्कृष्ट से संख्यात या असंख्यात। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का प्रतिसमय एक – एक का अपहार करने पर कितने काल में यह रत्नप्रभापृथ्वी खाली हो सकती है ? गौतम ! नैरयिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 103 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी– नेवट्ठी नेव छिरा नवि ण्हारू। जे पोग्गला अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुहा अमणुन्ना अमणामा, ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए परिणमंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया पन्नत्ता, तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया तेवि हुंडसंठिता पन्नत्ता। एवं जाव अहेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरगा केरिसगा वण्णेणं Translated Sutra: हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संहनन क्या है ? गौतम ! कोई संहनन नहीं है, क्योंकि उनके शरीर में हड्डियाँ नहीं है, शिराएं नहीं हैं, स्नायु नहीं हैं। जो पुद्गल अनिष्ट और अमणाम होते हैं वे उनके शरीर रूप में एकत्रित हो जाते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 104 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केरिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति? गोयमा! जे पोग्गला अनिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं आहारस्सवि सत्तसुवि।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एक्का काउलेसा पन्नत्ता। एवं सक्करप्पभाएवि।
वालुयप्पभाए पुच्छा। दो लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नीललेसा काउलेसा य। ते बहुतरगा जे काउलेसा, ते थोवतरगा जे णीललेस्सा।
पंकप्पभाए पुच्छा। एक्का नीललेसा पन्नत्ता।
धूमप्पभाए पुच्छा। गोयमा! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य। ते बहुतरका जे नीललेस्सा, Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं ? गौतम! अनिष्ट यावत् अमणाम पुद्गल परिणत होते हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक जानना। इसी प्रकार जो पुद्गल अनिष्ट एवं अमणाम होते हैं, वे नैरयिकी के आहार रूप में परिणत होते हैं। ऐसा ही कथन रत्नप्रभादि सातों नरक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 105 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?
गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्व-पोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा नो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहुत्तंपि पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एगं महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं– मोग्गरमुसुंढिकरवतअसिसत्तीहलगतामुसलचक्का।
नारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! असत् कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्य पुद्गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 106 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेवि उक्कोसेणवि ठिती भाणितव्वा जाव अधेसत्तमाए। Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य से और उत्कर्ष से पन्नवणा के स्थितिपद अनुसार अधःसप्तमीपृथ्वी तक कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 108 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पुढविफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! अनिट्ठं जाव अमणामं। एवं जाव अहेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं आउफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! अनिट्ठं जाव अमणामं। एवं जाव अहेसत्तमाए एवं जाव वणप्फतिफासं अधेसत्तमाए पुढवीए
इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतियाबाहल्लेणं सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु? हंता गोयमा! इमा णं रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु।
दोच्चा णं भंते! पुढवी तच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं पुच्छा। Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमणाम भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के जलस्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत् अमणाम जलस्पर्श का अनुभव करते | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 109 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु जे पुढविक्काइया जाव वणप्फतिकाइया, ते णं भंते! जीवा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव महाआसवतरा चेव महावेयणतरा चेव?
हंता गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु जे पुढविक्काइया जाव वणप्फतिकाइया ते णं जीवा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव महाआसवतरा चेव महावेदनतरा चेव। एवं जाव अधेसत्तमा। Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों के पर्यन्तवर्ती प्रदेशों में जो पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पति – कायिक जीव हैं, वे जीव महाकर्मवाले, महाक्रियावाले और महाआस्रववाले और महावेदनावाले हैं क्या ? हाँ, गौतम! इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 110 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए नरयावाससयसहस्सेसु इक्कमिक्कंसि निरयावासंसि सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असतिं अदुवा अनंतखुत्तो। एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, नवरं–जत्थ जत्तिया नरगा। Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक रूप में और नैरयिक रूप में पूर्व में उत्पन्न हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! उत्पन्न हुए हैं। इस प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। विशेषता यह है – जिस पृथ्वी में जितने नरकावास हैं | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-३ | Hindi | 117 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पोग्गलपरिणामं पच्चणुभवमाणा विहरंति?
गोयमा! अनिट्ठं जाव अमणामं। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं– वेदना लेस्स खुहा पिवासा वाहि उस्सास अनुताव कोह मान माया लोह आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा पोग्गल परिणामाइं। Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के पुद्गलों के परिणमन का अनुभव करते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत् अमणाम पुद्गलों का। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी के नैरयिकों तक कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 130 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिरिक्खजोणिया?
तिरिक्खजोणिया पंचविधा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणिया बेइंदियतिरिक्खजोणिया तेइंदियतिरिक्खजोणिया चउरिंदियतिरिक्खजोणिया पंचिंदियतिरिक्खजोणिया य।
से किं तं एगिंदियतिरिक्खजोणिया? एगिंदियतिरिक्खजोणिया पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वणस्सइकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया।
से किं तं पुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया? पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया बादरपुढविकाइयएगिंदिय-तिरिक्खजोणिया य।
से किं तं सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया? Translated Sutra: तिर्यक्योनिक जीवों का क्या स्वरूप है ? तिर्यक्योनिक जीव पाँच प्रकार के हैं, यथा – एकेन्द्रिय तिर्यक् – योनिक, यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक। एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक का क्या स्वरूप है ? एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक पाँच प्रकार के हैं, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक तिर्यक्योनिक। पृथ्वीकायिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 131 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा।
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? गोयमा! सम्मदिट्ठीवि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि।
ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि–तिन्नि नाणाइं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए।
ते णं भंते! जीवा किं मनजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! तिविधावि।
ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्तावि।
ते णं भंते! जीवा कओ उववज्जंति? –किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? पुच्छा। Translated Sutra: हे भगवन् ! इन जीवों के कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! छह – कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं। गौतम ! तीनों। भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञानवाले हैं और | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 132 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! गंधंगा? कइ णं भंते! गंधंगसया पन्नत्ता? गोयमा! सत्त गंधंगा सत्त गंधंगसया पन्नत्ता।
कइ णं भंते! पुप्फजातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! सोलस पुप्फ-जातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पन्नत्ता, तं जहा– चत्तारि जलजा णं चत्तारि थलजाणं चत्तारि महारुक्खाणं चत्तारि महागुम्मियाणं।
कति णं भंते! वल्लीओ? कति वल्लिसता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि वल्लीओ चत्तारि वल्लीसता पन्नत्ता।
कति णं भंते! लताओ? कति लतासता पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ लताओ अट्ठ लतासता पन्नत्ता।
कति णं भंते! हरियकाया? कति हरियकायसया पन्नत्ता? गोयमा! तओ हरियकाया तओ हरियकायसया पन्नत्ता। फलसहस्सं Translated Sutra: हे भगवन् ! गंध कितने हैं ? गन्धशत कितने हैं ? गौतम ! सात गंध हैं और सात ही गन्धशत हैं। हे भगवन्! फूलों की कितनी लाख जातिकुलकोडी हैं ? गौतम ! सोलह लाख, यथा – चार लाख जलज पुष्पों की, चार लाख स्थलज पुष्पों की, चार लाख महावृक्षों के फूलों की और चार लाख महागुल्मिक फूलों की। हे भगवन् ! वल्लियाँ और वल्लिशत कितने प्रकार के | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 133 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! विमानाइं अच्चीणि अच्चियावत्ताइं अच्चिप्पभाइं अच्चिकंताइं अच्चिवण्णाइं अच्चि-लेस्साइं अच्चि ज्झयाइं अच्चिसिंगाइं अच्चिसिट्ठाइं अच्चिकूडाइं अच्चुत्तरवडिंसगाइं? हंता अत्थि।
ते णं भंते! विमाना केमहालता पन्नत्ता? गोयमा! जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाइं तिन्नोवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता। से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे-वीतीवयमाणे जहन्नेणं एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे बीतीवएज्जा–अत्थेगतियं विमाणं वीतीवएज्जा अत्थेगतियं Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या स्वस्तिक नामवाले, स्वस्तिकावर्त नामवाले, स्वस्तिकप्रभ, स्वस्तिककान्त, स्वस्तिकवर्ण, स्वस्तिकलेश्य, स्वस्तिकध्वज, स्वस्तिकशृंगार, स्वस्तिककूट, स्वस्तिकशिष्ट और स्वस्तिकोत्तरावतंसक नामक विमान हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! वे विमान कितने बड़े हैं ? गौतम ! जितनी दूरी से सूर्य उदित होता दीखता | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-२ | Hindi | 134 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया।
से किं तं पुढविकाइया? दुविहा पन्नत्ता तं सुहुमपुढविकाइया बायरपुढविकाइया से किं तं सुहुमपुढविकाइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से तं सुहुमपुढविक्काइया से किं तं बादरपुढविक्काइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य एवं जहा पन्नवणाए, सण्हा सत्तविहा पन्नत्ता, खरा अनेगविहा पन्नत्ता जाव असंखिज्जा से तं बादरपुढविक्काइया से तं पुढविक्काइया एवं चेव जइ पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वणप्फइकाइया एवं जत्थेको तत्थ सिय संखिज्जा सिय Translated Sutra: हे भगवन् ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के – पृथ्वीकायिक यावत् त्रस – कायिक। पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। बादरपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-२ | Hindi | 135 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविधा णं भंते! पुढवी पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा पुढवी पन्नत्ता, तं जहा–सण्हपुढवी सुद्धपुढवी वालुयापुढवी मनोसिलापुढवी सक्करापुढवी खरपुढवी।
सण्हपुढवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगं वाससहस्सं।
सुद्धपुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस वाससहस्साइं।
वालुयापुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चोद्दस वाससहस्साइं।
मनोसिलापुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सोलस वाससहस्साइं।
सक्करापुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठारस वाससहस्साइं।
खरपुढवीपुच्छा। Translated Sutra: हे भगवन् ! पृथ्वी कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! छह प्रकार की – श्लक्ष्णपृथ्वी, शुद्धपृथ्वी, बालुका – पृथ्वी, मनःशिलापृथ्वी, शर्करापृथ्वी और खरपृथ्वी। हे भगवन् ! श्लक्ष्णपृथ्वी की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट एक हजार वर्ष। शुद्धपृथ्वी की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-२ | Hindi | 136 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पडुप्पन्नपुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स णिल्लेवा सिता? गोयमा! जहन्नपदे असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं, उक्कोसपदेवि असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं– जहन्नपदातो उक्कोसपए असंखेज्जगुणा। एवं जाव पडुप्पन्नवाउक्काइया।
पडुप्पन्नवणप्फइकाइया णं भंते! केवतिकालस्स निल्लेवा सिता? गोयमा! पडुप्पन्नवणप्फइ-काइया जहन्नपदे अपदा उक्कोसपदेवि अपदा– पडुप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं नत्थि निल्लेवणा।
पडुप्पन्नतसकाइया णं भंते! केवतिकालस्स निल्लेवा सिया? गोयमा! पडुप्पन्नतसकाइया जहन्नपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स, उक्कोसपदेवि सागरोवमसतपुहत्तस्स– जहन्नपदा उक्कोसपदे Translated Sutra: भगवन् ! अभिनव (तत्काल उत्पद्यमान) पृथ्वीकायिक जीव कितने काल में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य से और उत्कृष्ट से भी असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल में निर्लेप (खाली) हो सकते हैं। यहाँ जघन्य पद से उत्कृष्ट पद में असंख्यातगुण अधिकता जानना। इसी प्रकार अभिनव वायुकायिक तक की वक्तव्यता जानना। भगवन् ! अभिनव | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-२ | Hindi | 137 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अविसुद्धलेस्से णं भंते! अनगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देविं अनगारं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
अविसुद्धलेस्से णं भंते! अनगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अनगारं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
अविसुद्धलेस्से णं भंते! अनगारे समोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देविं अनगारं जाणति-पासति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
अविसुद्धलेस्से णं भंते! अनगारे समोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अनगारं जाणति-पासति? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे।
अविसुद्धलेस्से णं भंते! अनगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं Translated Sutra: हे भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घात से विहीन आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी को और अनगार को जानता – देखता है क्या ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! अविशुद्ध – लेश्या वाला अनगार वेदनादि विहीन आत्मा द्वारा विशुद्धलेश्या वाले देव को, देवी को और अनगार को जानता – देखता है | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-२ | Hindi | 138 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति एवं भासेंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति–एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेंति, तं जहा–सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च।
जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति, तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति।
जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति, तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति।
सम्मत्तकिरियापकरणताए मिच्छत्तकिरियं पकरेति।
मिच्छत्तकिरियापकरणताए सम्मत्तकिरियं पकरेति।
एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा–सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च।
से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति एवं भासेंति एवं पण्णवेंति Translated Sutra: हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, बोलते हैं, प्रज्ञापना करते हैं, प्ररूपणा करते हैं कि ‘एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है, यथा सम्यक् क्रिया और मिथ्याक्रिया। जिस समय सम्यक् क्रिया करता है उसी समय मिथ्याक्रिया भी करता है, और जिस समय मिथ्याक्रिया करता है, उस समय सम्यक् क्रिया भी करता है। हे भगवन् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 140 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य।
से किं तं संमुच्छिममनुस्सा? संमुच्छिममनुस्सा एगागारा पन्नत्ता।
कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतोमनुस्सखेत्ते जहा पन्नवणाए जाव अंतोमुहुत्तद्धाउया चेव कालं पकरेंति। सेत्तं संमुच्छिममनुस्सा। Translated Sutra: हे भगवन् ! मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, सम्मूर्च्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य। भगवन् ! सम्मूर्च्छिम मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! एक ही प्रकार के। भगवन् ! ये सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहाँ पैदा होते हैं ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र अनुसार यहाँ कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 141 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गब्भवक्कंतियमनुस्सा? गब्भवक्कंतियमनुस्सा तिविधा पन्नत्ता, तं जहा–कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। Translated Sutra: हे भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के – कर्मभूमिक, अकर्म – भूमिक और आन्तर्द्वीपिक। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 142 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतरदीवगा? अंतरदीवगा अट्ठावीसतिविधा पन्नत्ता, तं जहा–एगोरुया आभासिता वेसाणिया णंगूलिया हयकण्णा गयकण्णा गोकण्णा सक्कुलिकण्णा आयंसमुहा मेंढमुहा अयोमुहा गोमुहा आसमुहा हत्थिमुहा सीहमुहा वग्घमुहा आसकण्णा सीहकण्णा अकण्णा कण्णपाउरणा उक्कामुहा मेहमुहा विज्जुमुहा विज्जुदंता घनदंता लट्ठदंता गूढदंता सुद्धदंता। Translated Sutra: हे भगवन् ! आन्तर्द्वीपिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! अट्ठाईस प्रकार के – एकोरुक, आभाषिक, यावत् शुद्धदंत। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 150 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेसा जहा एगरुयदीवस्स जाव सुद्धदंतदीवे देवलोगपरिग्गहा णं ते मनुयगणा पन्नत्ता समणाउसो,
कहिं णं भंते! उत्तरिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं सिहरिस्स वासधरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं उत्तरिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते। तहेव उत्तरेण विभासा भाणितव्वा। से तं अंतरदीवगा। Translated Sutra: आयुष्मन् श्रमण ! शेष वर्णन एकोरुकद्वीप की तरह शुद्धदंतद्वीप पर्यन्त समझ लेना यावत् वे मनुष्य देवलोक में उत्पन्न होते हैं। हे भगवन् ! उत्तरदिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधरपर्वत के उत्तरपूर्वी चरमान्त से लवणसमुद्र में तीन सौ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 151 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अकम्मभूमगमनुस्सा? अकम्मभूमगमनुस्सा तीसविधा पन्नत्ता, तं जहा–पंचहिं हेमवएहिं पंचहिं हिरण्णवएहिं पंचहिं हरिवासेहिं पंचहिं रम्मगवासेहिं पंचहिं देवकुरूहिं पंचहिं उत्तरकुरूहिं। सेत्तं अकम्मभूमगा।
से किं तं कम्मभूमगा? कम्मभूमगा पन्नरसविधा पन्नत्ता, तं जहा–पंचहिं भरहेहिं पंचहिं एरवएहिं पंचहिं महा विदेहेहिं। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आरिया मिलेच्छा। एवं जहा पन्नवणापदे जाव सेत्तं आरिया। सेत्तं गब्भवक्कंतिया सेत्तं मनुस्सा। Translated Sutra: हे भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीस प्रकार के – पाँच हैमवत में इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना। हे भगवन् ! कर्मभूमिक मनुष्यों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार के – पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह के मनुष्य। वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं, यथा – आर्य और म्लेच्छ। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 154 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! भवनवासिदेवाणं भवना पन्नत्ता? कहि णं भंते! भवनवासी देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए, एवं जहा पन्नवणाए जाव भवना पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं भवनवासीणं देवाणं सत्त भवनकोडीओ बावत्तरिं भवनावाससयसहस्सा भवंतित्तिमक्खाता। तत्थ णं बहवे भवनवासी देवा परिवसंति–असुरा नाम सुवण्णा य जहा पन्नवणाए जाव विहरंति। Translated Sutra: हे भगवन् ! भवनवासी देवों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? वे भवनवासी देव कहाँ रहते हैं ? हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के मध्य के एक लाख अठहतर हजार योजनप्रमाण क्षेत्र में भवनावास कहे गये हैं आदि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र अनुसार जानना। वहाँ भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवनावास हैं। उनमें बहुत से भवनवासी देव रहते हैं, | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 155 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं भवना पन्नत्ता? पुच्छा। एवं जहा पन्नवणा ठाणपदे जाव विहरंति।
कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणुं असुरकुमारदेवाणं भवना पुच्छा। एवं जहा ठाणपदे जाव चमरे, एत्थ असुरकुमारिंदे असुरकुमारराया परिवसति जाव विहरति। Translated Sutra: हे भगवन् ! असुरकुमार देवों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के स्थानपद अनुसार यहाँ समझना यावत् दिव्य – भोगों को भोगते हुए वे विचरण करते हैं। हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों के भवनों के संबंध में प्रश्न है ? गौतम ! स्थानपद समान जानना यावत् असुरकुमारों का इन्द्र चमर वहाँ दिव्य भोगों का उपभोग | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 156 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता चंडा जाया। अब्भिंतरिया समिता, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाया।
चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? बाहिरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए चउवीसं देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ बाहिरियाए परिसाए बत्तीसं देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
चमरस्स णं Translated Sutra: हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएं हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चंडा और जाता। आभ्यन्तर पर्षदा समिता, मध्यम परिषदा चंडा और बाह्य परिषदा जाया कहलाती है। गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा में २४०००, मध्यम परिषदा में २८००० और बाह्य परिषदा में ३२००० देव हैं। हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज |