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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 306 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अब्भस्स निम्मलत्तं, कसिणा य गिरी सविज्जुया मेहा ।
थणियं वाउब्भामो, संज्झा निद्धा य रत्ता य पणिद्धा य ॥ Translated Sutra: आकाश की निर्मलता, पर्वतों का काला दिखाई देना, बिजली सहित मेघों की गर्जना, अनुकूल पवन और संध्या की गाढ़ लालिमा। तथा – | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 307 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: वारुण, महेन्द्र अथवा किसी अन्य प्रशस्त उत्पात को देखकर अनुमान करना कि अच्छी वृष्टि होगी। इसे अनागत – कालग्रहणविशेषदृष्टसाधर्म्यवत् – अनुमान कहते हैं। इनकी विपरीतता में भी तीन प्रकार से ग्रहण होता है – अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागतकालग्रहण। तृण – रहित वन, अनिष्पन्न धान्ययुक्त भूमि और सूखे कुंड, सरोवर, नदी, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 308 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धूमायंति दिसाओ संचिक्खिय मेइणी अपडिबद्धा ।
वाया नेरइया खलु कुवुट्ठिमेवं निवेयंति ॥ Translated Sutra: सभी दिशाओं में धुंआ हो रहा है, आकाश में भी अशुभ उत्पात हो रहे हैं, इत्यादि से यह अनुमान कर लिया जाता है कि यहाँ कुवृष्टि होगी, क्योंकि वृष्टि के अभाव के सूचक चिह्न दृष्टिगोचर हो रहे हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 311 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा।
से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा।
से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया Translated Sutra: संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 312 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुरवर-कवाड-वच्छा, फलिहभुया दुंदुहि-त्थणियघोसा ।
सिरिवच्छंकियवच्छा, सव्वे वि जिणा चउव्वीसं ॥ Translated Sutra: सभी चौबीस जिन – तीर्थंकर प्रधान – उत्तम नगर के कपाटों के समान वक्षःस्थल, अर्गला के समान भुजाओं, देवदुन्दुभि या स्तनित के समान स्वर और श्रीवत्स से अंकित वक्षःस्थल वाले होते हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 313 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] २. संतयं असंतएणं उवमिज्जइ, जहा–संताइं नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मनुस्स देवाणं आउयाइं असंतएहिं पलिओवम-सागरोवमेहिं उवमिज्जंति।
३. असंतयं संतएणं उवमिज्जइ, जहा– Translated Sutra: विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना। जैसे नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की विद्यमान आयु के प्रमाण को अविद्यमान पल्योपम और सागरोपम द्वारा बतलाना। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 314 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिजूरियपेरंतं, चलंतबेंटं पडंतनिच्छीरं ।
पत्तं वसणप्पत्तं, कालप्पत्तं भणइ गाहं ॥ Translated Sutra: अविद्यमान को विद्यमान सद्वस्तु से उपमित करने को असत् – सत् औपम्यसंख्या कहते हैं। सर्व प्रकार से जीर्ण, डंठल से टूटे, वृक्ष से नीचे गिरे हुए, निस्सार और दुःखित ऐसे पत्ते ने वसंत समय प्राप्त नवीन पत्ते से कहा – जीर्ण पीले पत्ते ने नवोद्गत किसलयों कहा – इस समय जैसे तुम हो, हम भी पहले वैसे ही थे तथा इस समय जैसे | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 315 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह तुब्भे तह अम्हे, तुम्हे वि य होहिहा जहा अम्हे ।
अप्पाहेइ पडंतं, पंडुयपत्तं किसलयाणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१४ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 316 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नवि अत्थि न वि य होही, उल्लावो किसल-पंडुपत्ताणं ।
उवमा खलु एस कया, भवियजण-विबोहणट्ठाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१४ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 317 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा।
से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य।
से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा।
से तं कालियसुयपरिमाणसंखा।
से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा Translated Sutra: अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद् – असद्रूप औपम्यसंख्या है। जैसा – खर विषाण है वैसा ही शश विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है। परिमाणसंख्या क्या है ? दो प्रकार की है। जैसे – कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुतपरिमाण – संख्या। कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 318 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वत्तव्वया? वत्तव्वया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–ससमयवत्तव्वया परसमयवत्तव्वया ससमय-परसमयवत्तव्वया।
से किं तं ससमयवत्तव्वया? ससमयवत्तव्वया–जत्थ णं ससमए आघविज्जइ पन्नविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ उवदंसिज्जइ। से तं ससमयवत्तव्वया।
से किं तं परसमयवत्तव्वया? परसमयवत्तव्वया–जत्थ णं परसमए आघविज्जइ पन्नविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ उवदंसिज्जइ। से तं परसमयवत्तव्वया।
से किं तं ससमय-परसमयवत्तव्वया? ससमय-परसमयवत्तव्वया–जत्थ ससमए परसमए आघविज्जइ पन्नवि-ज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ० उवदंसिज्जइ। से तं ससमय-परसमयवत्तव्वया।
इयाणि Translated Sutra: वक्तव्यता क्या है ? तीन प्रकार की है, यथा – स्वसमयवक्तव्यता, परसमयवक्तव्यता और स्वसमय – परसमयवक्तव्यता। अविरोधी रूप से स्वसिद्धान्त के कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन करने को स्वसमयवक्तव्यता कहते हैं। जिस वक्तव्यता में परसमय – का कथन यावत् उपदर्शन किया जाता है, उसे परसमयवक्तव्यता कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 319 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अत्थाहिगारे? अत्थाहिगारे–जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारो, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! अर्थाधिकार क्या है ? (आवश्यकसूत्र के) जिस अध्ययन का जो अर्थ – वर्ण्य विषय है उसका कथन अर्था – धिकार कहलाता है। यथा – सावद्ययोगविरति, उत्कीर्तन – स्तुति करना है। तृतीय अध्ययन का अर्थ गुणवान् पुरुषों को वन्दना, नमस्कार करना है। चौथे में आचार में हुई स्खलनाओं की निन्दा करने का अर्थाधिकार है। कायोत्सर्ग | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 320 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. सावज्जजोगविरई २. उक्कित्तण ३. गुणवओ य पडिवत्ती ।
४. खलियस्स निंदना ५. वणतिगिच्छ ६. गुणधारणा चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 321 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं अत्थाहिगारे। Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 322 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे।
नामट्ठवणाओ गयाओ जाव। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे।
से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुंडे वदराणि, तदुभयसमोयरेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य।
अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य Translated Sutra: समवतार क्या है ? समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे – नामसमवतार, स्थापनासमवतार, द्रव्यसमवतार, क्षेत्रसमवतार, कालसमवतार और भावसमवतार। नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् जानना। द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा है – आगमद्रव्यसमवतार</em>, नोआगमद्रव्यसमवतार</em>। यावत् आगमद्रव्यसमवतार</em> का तथा नोआगमद्रव्यसमवतार</em> के | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 330 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जस्स सामानिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे ।
तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥ Translated Sutra: जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में संनिहित है, उसी को सामायिक होती है, उसी को सामायिक होती है, जो सर्व भूतों, स्थावर आदि प्राणियों के प्रति समभाव धारण करता है, उसी को सामायिक होता है, ऐसा केवली भगवान् ने कहा है। जिस प्रकार मुझे दुःख प्रिय नहीं है, उसी प्रकार सभी जीवों को भी प्रिय नहीं है, ऐसा जानकर – अनुभव कर जो न स्वयं | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 331 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य ।
तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 332 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह मम न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं ।
न हणइ न हणावइ य, सममणती तेण सो समणो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 333 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नत्थि य से कोइ वेसो, पिओ व सव्वेसु चेव जीवेसु ।
एएण होइ समणो, एसो अन्नो वि पज्जाओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 334 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उरग-गिरि-जलण-सागर-नहतल-तरुगणसमो य जो होइ ।
भमर-मिय-धरणि-जलरुह-रवि-पवणसमो य सो समणो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 335 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ न होइ पावमणो ।
सयणे य जणे य समो, समो य मानावमानेसु ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 336 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ</em> भावसामाइए। से तं भावसामाइए। से तं सामाइए। से तं नामनिप्फन्ने।
से किं तं सुत्तालावगनिप्फन्ने? सुत्तालावगनिप्फन्ने–इयाणिं सुत्तालावगनिप्फन्ने निक्खेवे इच्छावेइ, से य पत्त-लक्खणे वि न निक्खिप्पइ, कम्हा? लाघवत्थं। अओ अत्थि तइए अनुओगदारे अनुगमे त्ति। तत्थ निक्खित्ते इहं निक्खित्ते भवइ, इहं वा निक्खित्ते तत्थ निक्खित्ते भवइ, तम्हा इहं न निक्खिप्पइ तहिं चेव निक्खिप्पिस्सइ। से तं निक्खेवे। Translated Sutra: देखो सूत्र ३३० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 337 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे? अनुगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुत्तानुगमे य निज्जुत्तिअनुगमे य।
से किं तं निज्जुत्तिअनुगमे? निज्जुत्तिअनुगमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–निक्खेवनिज्जुत्ति-अनुगमे उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे? निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे अनुगए। से तं निक्खेव-निज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे? उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे–इमाहिं दोहिं दारगाहाहिं अनुगंतव्वे, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! अनुगम का क्या है ? अनुगम के दो भेद हैं। सूत्रानुगम और निर्युक्त्यनुगम। निर्यक्त्यनुगम के तीन प्रकार हैं। यथा – निक्षेपनिर्युक्त्यनुगम, उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम और सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम। (नाम स्थापना आदि रूप) निक्षेप की निर्युक्ति का अनुगम पूर्ववत् जानना। आयुष्मन् ! उपोद्घातनिर्युक्ति | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 338 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. उद्देसे २. निद्देसे य, ३. निग्गमे ४. खेत्त ५. काल ६. पुरिसे य ।
७. कारण ८. पच्चय ९. लक्खण, १०. नए ११. समोयरणा १२. नुमए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३७ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 339 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १३. किं १४. कइविहं १५. कस्स १६. कहिं, १७. केसु १८. कहं १९. केच्चिरं हवइ कालं ।
२०. कइ २१. संतर २२. मविरहियं, २३. भवा २४. गरिस २५. फासण २६. निरुत्ती ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३७ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 340 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे?
सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे– सुत्तं उच्चारेयव्वं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडि-पुण्णं पडिपुन्नघोसं कंटोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं। तओ नज्जिहिति ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा नोसामा-इयपयं वा।
तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिंचि भगवंताणं केइ अत्थाहिगारा अहिगया भवंति, के सिंचि य केइ अनहिगया भवंति, तओ तेसिं अनहिगयाणं अत्थाणं अहिगमनट्ठयाए पदेणं पदं वण्णइस्सामि– Translated Sutra: सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम क्या है ? (जिस सूत्र की व्याख्या की जा रही है उस सूत्र को स्पर्श करने वाली निर्युक्ति के अनुगम को सूत्रस्पर्शिक – निर्युक्त्यनुगम कहते हैं।) इस अनुगम में अस्खलित, अमिलित, अव्यत्या – म्रेडित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोष कंठोष्ठविप्रमुक्त तथा गुरुवाचनोपगत रूप से सूत्र का उच्चारण | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 341 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संहिता य पदं चेव, पदत्थो पदविग्गहो ।
चालणा य पसिद्धी य, छव्विहं विद्धि लक्खणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 342 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे। से तं निज्जुत्तिअनुगमे।
से तं अनुगमे। Translated Sutra: देखो सूत्र ३४० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 343 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नए?
सत्त मूलनया पन्नत्ता, तं जहा–नेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढे एवंभूए। तत्थ– Translated Sutra: नय क्या है ? मूल नय सात हैं। नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढनय और एवंभूत – नय। जो अनेक प्रकारों से वस्तु के स्वरूप को जानता है, अनेक भावों से वस्तु का निर्णय करता है (वह नैगमनय है।) शेष नयों के लक्षण कहूँगा – सुनो। सम्यक् प्रकार से गृहीत – यह संग्रहनय का वचन है। इस प्रकार से संक्षेप में | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 344 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेगेहिं मानेहिं, मिणइ त्ति नेगमस्स य निरुत्ती ।
सेसाणं पि नयाणं, लक्खणमिणमो सुणह वोच्छं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 345 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संगहिय-पिंडियत्थं, संगहवयणं समासओ बेंति ।
वच्चइ विणिच्छियत्थं, ववहारो सव्वदव्वेसु ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 346 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पच्चुप्पन्नग्गाही, उज्जुसुओ नयविही मुणेयव्वो ।
इच्छइ विसेसियतरं, पच्चुप्पन्नं नओ सद्दो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 347 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वत्थूओ संकमणं, होइ अवत्थू नए समभिरूढे ।
वंजण-अत्थ-तदुभयं, एवंभूओ विसेसेइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 348 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नायम्मि गिण्हियव्वे, अगिण्हियव्वम्मि चेव अत्थम्मि ।
जइयव्वमेव इइ जो, उवएसो सो नओ नाम ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 349 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेसिं पि नयाणं, बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता ।
तं सव्वनयविसुद्धं, जं चरणगुणट्ठिओ साहू ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 350 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं नए। Translated Sutra: देखो सूत्र ३४३ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 198 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्दोसं सारवतं च हेउजुत्तमलंकियं ।
उवनीयं सोवयारं च, मियं महुरमेव य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 199 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समं अद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं ।
तिन्नि वित्तप्पयाराइं, चउत्थं नोवलब्भई ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 200 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सक्कया पायया चेव, भणितीओ होंति दोन्नि वि ।
सरमंडलंमि गिज्जंते, पसत्था इसिभासिया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 201 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केसी गायइ महुरं? केसी गायइ खरं च रुक्खं च? ।
केसी गायइ चउरं? केसी य विलंबियं दुतं केसी? विस्सरं पुण केरिसी? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 202 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सामा गायइ महुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च ।
गोरी गायइ चउरं, काणा य विलंबियं, दुतं अंधा ॥ विस्सरं पुण पिंगला ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 203 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एगवीसई ।
ताणा एगूणपन्नासं, समत्तं सरमंडलं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 204 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं सत्तनामे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 205 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अट्ठनामे? अट्ठनामे–अट्ठविहा वयणविभत्ती पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: અષ્ટનામનું સ્વરૂપ કેવું છે? અષ્ટનામમાં આઠ પ્રકારની વચન વિભક્તિ કહેલ છે. વચન વિભક્તિના તે આઠ પ્રકાર આ પ્રમાણે છે – ૧. નિર્દેશ – નિર્દેશ પ્રતિપાદક અર્થમાં કર્તા માટે પ્રથમા વિભક્તિ. ૨. ઉપદેશ – ઉપદેશ ક્રિયાના પ્રતિપાદનમાં દ્વિતીયા વિભક્તિ. ૩. કરણ અર્થમાં તૃતીયા વિભક્તિ. ૪. સંપ્રદાન – સ્વાહા અર્થમાં ચતુર્થી વિભક્તિ. ૫. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 206 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्देसे पढमा होइ, बितिया उवएसणे ।
तइया करणम्मि कया, चउत्थी संपयावणे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૫ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 295 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-खेत्त-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जइ।
से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे।
से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे? सुहुमे खेत्तपलिओवमे – से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गा दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स सरीरोगाहणाओ Translated Sutra: આ વ્યાવહારિક ક્ષેત્ર પલ્યોપમ અને સાગરોપમથી શું પ્રયોજન સિદ્ધ થાય છે ? તેનું કથન શા માટે કર્યું છે ? આ વ્યાવહારિક ક્ષેત્ર પલ્યોપમ – સાગરોપમથી કોઈ પ્રયોજન સિદ્ધ થતું નથી. તેની માત્ર પ્રરૂપણા કરાય છે. સૂક્ષ્મ ક્ષેત્ર પલ્યોપમ સમજવામાં તે સહાયક બને છે માટે તેની પ્રરૂપણા સૂત્રકારે કરી છે. આ વ્યાવહારિક ક્ષેત્ર | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 296 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया ।
तं सुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૫ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 297 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं दिट्ठिवाए दव्वा मविज्जंति। Translated Sutra: આ સૂક્ષ્મ ક્ષેત્ર પલ્યોપમ – સાગરોપમનું શું પ્રયોજન છે ? આ સૂક્ષ્મ ક્ષેત્ર પલ્યોપમ – સાગરોપમ દ્વારા દૃષ્ટિવાદમાં કથિત દ્રવ્યોનું માન કરવામાં આવે છે. |