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Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 256 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं ओमाणप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं ओमाणप्पमाणेणं खाय-चिय-रचिय-कर-कचिय-कड-पड-भित्ति-परिक्खेवसंसियाणं दव्वाणं ओमाणप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ से तं ओमाणे से किं तं गणिमे? गणिमेजण्णं गणिज्जइ, तं जहाएगो दस सयं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी एएणं गणिमप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं गणिमप्पमाणेणं भित्तग-भिति-भत्त-वेयण-आय-व्वयसंसियाणं दव्वाणं गणिमप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ से तं गणिमे से किं तं पडिमाणे? पडिमाणेजण्णं पडिमिणिज्जइ, तं जहागुंजा कागणी निप्फावो कम्ममासओ मंडलओ सुवण्णो पंच गुंजाओ कम्ममासओ, चत्तारि कागणीओ कम्ममासओ, तिन्नि निप्फावा

Translated Sutra: अवमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से खात, कुआ आदि, ईंट, पत्थर आदि से निर्मित प्रासाद, पीठ, क्रकचित, आदि, कट, पट, भींत, परिक्षेप, अथवा नगर की परिखा आदि में संश्रित द्रव्यों की लंबाई चौड़ाई, गहराई और ऊंचाई के प्रमाण का परिज्ञान होता है गणिमप्रमाण क्या है ? जो गिना जाए अथवा जिसके द्वारा गणना की जाए, उसे गणिमप्रमाण
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 257 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं खेत्तप्पमाणं? खेत्तप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहापएसनिप्फन्ने विभागनिप्फन्ने य से किं तं पएसनिप्फन्ने? पएसनिप्फन्नेएगपएसोगाढे दुपएसोगाढे तिपएसोगाढे जाव दसपएसोगाढे संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे से तं पएसनिप्फन्ने से किं तं विभागनिप्फन्ने? विभागनिप्फन्ने

Translated Sutra: क्षेत्रप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न प्रदेशनिष्पन्नक्षेत्रप्रमाण क्या है ? एक प्रदेशावगाढ, दो प्रदेशावगाढ यावत्‌ संख्यात प्रदेशावगाढ, असंख्यात प्रदेशावगाढ क्षेत्ररूप प्रमाण को प्रदेश निष्पन्न क्षेत्रप्रमाण कहते हैं विभागनिष्पन्नक्षेत्रप्रमाण क्या है ?
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 258 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अंगुल विहत्थि रयणी, कुच्छी धणु गाउयं बोधव्वं जोयण सेढी पयरं, लोगमलोगे वि तहेव

Translated Sutra: अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, धनुष गाऊ, योजन, श्रेणि, प्रतर, लोक और अलोक को विभाग निष्पन्नक्षेत्रप्रमाण जानना
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 259 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंगुले? अंगुले तिविहे पन्नत्ते, तं जहाआयंगुले उस्सेहंगुले पमाणंगुले से किं तं आयंगुले? आयंगुलेजे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाइं मुहं, नवमुहाइं पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोणीए पुरिसे मानजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ

Translated Sutra: अंगुल क्या है ? अंगुल तीन प्रकार का है आत्मांगुल, उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल आत्मांगुल किसे कहते हैं ? जिस काल में जो मनुष्य होते हैं उनके अंगुल आत्मांगुल हैं उनके अपने अपने अंगुल से बारह अंगुल का एक मुख होता है नौ मुख प्रमाण वाला पुरुष प्रमाणयुक्त माना जाता है, द्रोणिक पुरुष मानयुक्त माना जाता है और
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 260 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माणुम्माणप्पमाणजुत्ता, लक्खणवंजणगुणेहिं उववेया उत्तमकुलप्पसूया, उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा

Translated Sutra: जो पुरुष मान उन्मान और प्रमाण से संपन्न होते हैं तथा लक्षणों एवं व्यंजनो से और मानवीय गुणों से युक्त होते हैं एवं उत्तम कुलों में उत्पन्न होते हैं, ऐसे पुरुषों को उत्तम पुरुष समझना ये उत्तम पुरुष अपने अंगुल से १०८ अंगुल प्रमाण ऊंचे होते हैं अधम पुरुष ९६ अंगुल और मध्यम पुरुष १०४ अंगुल ऊंचे होते हैं ये हीन
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 261 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] होंति पुण अहियपुरिसा, अट्ठसयं अंगुलाण उव्विद्धा छन्नउइ अहमपुरिसा, चउरुत्तरा मज्झिमिल्ला

Translated Sutra: देखो सूत्र २६०
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 262 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हीणा वा अहिया वा, जे खलु सर-सत्त-सारपरिहीणा ते उत्तमपुरिसाणं, अवसा पेसत्तणमुवेंति

Translated Sutra: देखो सूत्र २६०
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 263 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं अंगुलप्पमाणेणं अंगुलाइं पाओ, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ दंडं धणू जुगे नालिया अक्खे मुसले, दो धणुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं एएणं आयंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं आयंगुलप्पमाणेणंजे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं अगड-तलाग-दह-नदी-वावी-पुक्खरिणी-दीहिया-गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ आरामुज्जाण-काणण-वण-वणसंड-वणराईओ देवकुल-सभा-पवा-थूभ-खाइय-परिहाओ, पागार-अट्टालय-चरिय-दार-गोपुर-पासाय-घर-सरण-लेण-आवण- सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह- महापह-पह- सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणियाओ

Translated Sutra: इस आत्मांगुल से छह अंगुल का एक पाद होता है दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्ति की एक रत्नि और दो रत्नि की एक कुक्षि होती है दो कुक्षि का एक दंड, धनुष, युग, नालिका अक्ष और मूसल जानना दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है आत्मांगुलप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से कुआ, तडाग, द्रह, वापी, पुष्करिणी,
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 264 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमाणू तसरेणू, रहरेणू अग्गयं वालस्स लिक्खा जूया जवो, अट्ठगुणविवड्ढिया कमसो

Translated Sutra: परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका और यव, ये सभी क्रमशः उत्तरोत्तर आठ गुणे जानना
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 265 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परमाणू? परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहासुहुमे वावहारिए तत्थ सुहुमो ठप्पो से किं तं वावहारिए? वावहारिएअनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ. से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ. से णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा से णं तत्थ डहेज्जा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ. से णं भंते! पोक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणु क्या है ? दो प्रकार का सूक्ष्म परमाणु और व्यवहार परमाणु इनमें से सूक्ष्म परमाणु स्थापनीय है अनन्तानंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय एक व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है व्यावहारिक परमाणु तलवार की धार या छुरे की धार को अवगाहित कर सकता है ? हाँ, कर सकता है तो क्या वह उस से छिन्न भिन्न हो सकता
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 266 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्थेण सुतिक्खेण वि, छेत्तुं भेत्तुं जं किर सक्का तं परमाणुं सिद्धा, वयंति आइं पमाणाणं

Translated Sutra: देखो सूत्र २६५
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 267 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उसण्ह-सण्हिया वा, सण्हसण्हिया वा, उड्ढरेणू वा, तसरेणू वा, रहरेणू वा, वालग्गे वा, लिक्खा वा, जूया वा, जवमज्झे वा, अंगुले वा? अट्ठ उसण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरु-गाणं मणुस्साणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं

Translated Sutra: अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान्‌ परमाणु कहते हैं वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है उस अनन्तान्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम से एक उत्‌श्र्लक्ष्णलक्ष्णिका, श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका, ऊर्ध्व रेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्पन्न
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Hindi 268 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोयणसहस्स गाउयपुहुत्तं तत्तो जोयणपुहुत्तं गाउयपुहुत्त तु धणु-पुहुत्तं संमुच्छिमे होइ उच्चत्तं

Translated Sutra: संमूर्च्छिम जलचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना १००० योजन, चतुष्पदस्थलचर की गव्यूतिपृथक्त्व, उरपरिसर्पस्थलचर की योजनपृथक्त्व, भुजपरिसर्पस्थलचर की एवं खेचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय की धनुषपृथक्त्व प्रमाण है गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में से जलचरों की १००० योजन, चतुष्पदस्थलचरों की
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 269 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोयणसहस्स छग्गाउयाइं तत्तो जोयणसहस्सं गाउयपुहुत्त भुयगे पक्खीसु भवे धणपुहुत्तं

Translated Sutra: देखो सूत्र २६८
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 270 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहासेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो,

Translated Sutra: मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है संमूर्च्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 271 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कालप्पमाणे? कालप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहापएसनिप्फन्ने विभागनिप्फन्ने

Translated Sutra: कालप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है प्रदेशनिष्पन्न, विभागनिष्पन्न
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 272 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पएसनिप्फन्ने? पएसनिप्फन्नेएगसमयट्ठिईए दुसमयट्ठिईए तिसमयट्ठिईए जाव दससमयट्ठिईए संखेज्जसमयट्ठिईए असंखेज्जसमयट्ठिईए से तं पएसनिप्फन्ने

Translated Sutra: प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण क्या है ? एक समय की स्थितिवाला, दो समय की स्थितिवाला, तीन समय की स्थितिवाला, यावत्‌ दस समय की स्थितिवाला, संख्यात समय की स्थितिवाला, असंख्यात समय की स्थितिवाला (परमाणु या स्कन्ध) प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण है इस प्रकार से प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण का स्वरूप जानना
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 273 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विभागनिप्फन्ने? विभागनिप्फन्ने

Translated Sutra: विभागनिष्पन्न कालप्रमाण क्या है ? समय, आवलिका, मुहूर्त्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागर, अवसर्पिणी(उत्सर्पिणी) और (पुद्‌गल)परावर्तन रूप काल को विभागनिष्पन्न कालप्रमाण कहते हैं सूत्र २७३, २७४
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 274 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समयावलिय-मुहुत्ता, दिवसमहोरत्त-पक्ख-मासा संवच्छर-जुग-पलिया, सागर-ओसप्पि-परियट्टा

Translated Sutra: देखो सूत्र २७३
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 275 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समए? समयस्स णं परूवणं करिस्सामिसे जहानामए तुन्नागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठं-तरोरुपरिणते तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू चम्मेट्ठग-दुहण-मुट्ठिय-समाहत-निचित-गत्तकाए उरस्सबलसमन्नागए लंघण, पवण-जइण-वायामसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महतिं पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय सयराहं हत्थमेत्तं ओसारेज्जा तत्थ चोयए पन्नवयं एवं वयासीजेणं कालेणं तेणं तुन्नागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्तं ओसारिए से समए भवइ? नो इणमट्ठे समट्ठे कम्हा? जम्हा संखेज्जाणं

Translated Sutra: समय किसे कहते हैं ? समय की प्ररूपणा करूँगा जैसे कोई एक तरुण, बलवान्‌, युगोत्पन्न, नीरोग, स्थिरहस्ताग्र, सुद्रढ़ विशाल हाथ पैर, पृष्ठभाग, पृष्ठान्त और उरु वाला, दीर्घता, सरलता एवं पीनत्व की दृष्टि से समान, समश्रेणी में स्थित तालवृक्षयुगल अथवा कपाट अर्गला तुल्य दो भुजाओं का धारक, चर्मेष्टक, मुद्‌गर मुष्टिक
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Hindi 276 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हट्ठस्स अणवगल्लस, निरुवक्किट्ठस्स जंतुणो एगे ऊसास-नीसासे, एस पाणु त्ति वुच्चइ

Translated Sutra: हृष्ट, वृद्धावस्था से रहित, व्याधि से रहित मनुष्य आदि के एक उच्छ्‌वास और निःश्वास के काल को प्राण कहते हैं ऐसे सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव और लवों का एक मुहूर्त्त जानना अथवा सर्वज्ञ ३७७३ उच्छ्‌वास निश्वासों का एक मुहूर्त्त कहा है इस मुहूर्त्त प्रमाण से तीस मुहूर्त्तों का एक अहोरात्र
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Hindi 277 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए

Translated Sutra: देखो सूत्र २७६
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Hindi 278 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नि सहस्सा सत्त , सयाइं तेहत्तरि ऊसासा एस मुहुत्तो भणियो, सव्वेहिं अनंतनाणीहिं

Translated Sutra: देखो सूत्र २७६
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Hindi 279 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तं, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उऊ, तिन्नि उऊ अयणं, दो अयणाइं संवच्छरे, पंच संवच्छराइं जुगे, वीसं जुगाइं वाससयं, दस वाससयाइं वाससहस्सं सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्सं, चउरासीइं वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीइं पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं से एगे तुडि-यंगे, चउरासीइं तुडियंगसयसहस्साइं से एगे तुडिए, चउरासीइं तुडियसयसहस्साइं से एगे अडडंगे, चउरासीइं अडडंगसयसहस्साइं से एगे अडडे, एवं अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे,

Translated Sutra: देखो सूत्र २७६
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Hindi 280 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवमिए? ओवमिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहापलिओवमे सागरोवमे से किं तं पलिओवमे? पलिओवमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहाउद्धारपलिओवमे अद्धापलिओवमे खेत्तपलिओवमे य से किं तं उद्धारपलिओवमे? उद्धारपलिओवमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहासुहुमे वावहारिए तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे तत्थ णं जेसे वावहारिए, से जहानामए पल्ले सियाजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा,

Translated Sutra: औपमिक (काल) प्रमाण क्या है ? वह दो प्रकार का है पल्योपम और सागरोपम पल्योपम के तीन प्रकार हैं उद्धारपल्योपम, अद्धापल्योपम और क्षेत्रपल्योपम उद्धारपल्योपम दो प्रकार से है, सूक्ष्म और व्यावहारिक उद्धारपल्योपम इन दोनों में सूक्ष्म उद्धारपल्योपम अभी स्थापनीय है व्यावहारिक उद्धारपल्योपम का स्वरूप
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Hindi 281 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया तं वावहारियस्स उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं

Translated Sutra: ऐसे दस कोडाकोडी पल्योपमों का एक व्यावहारिक उद्धार सागरोपम होता है
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Hindi 282 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-उद्धार-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जति से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे से किं तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे? सुहुमे उद्धारपलिओवमे से जहानामए पल्ले सियाजोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स

Translated Sutra: व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे किसी प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है ये दोनों केवल प्ररूपणामात्र के लिए हैं सूक्ष्म उद्धार पल्योपम क्या है ? इस प्रकार है धान्य के पल्य के समान कोई एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एवं कुछ अधिक तीन योजन की परिधिवाला पल्य हो इस पल्य
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Hindi 283 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया तं सुहुमस्स उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं

Translated Sutra: इस पल्योपम की दस गुणित कोटाकोटि का एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम का परिमाण होता है (अर्थात्‌ दस कोटाकोटि सूक्ष्म उद्धारपल्योपमों का एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम होता है)
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 284 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं सुहुमउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं सुहुमउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारो घेप्पइ केवइया णं भंते! दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नत्ता? गोयमा! जावइया णं अड्ढाइज्जाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धार-समया एवइया णं दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नत्ता से तं सुहुमे उद्धार-पलिओवमे से तं उद्धारपलिओवमे से किं तं अद्धापलिओवमे? अद्धापलिओवमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहासुहुमे वावहारिए तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे तत्थ णं जेसे वावहारिए; से जहानामए पल्ले सियाजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं

Translated Sutra: सूक्ष्म उद्धारपल्योपम और सूक्ष्म उद्धारसागरोपम से किस प्रयोजन को सिद्धि होती है ? इससे द्वीप समुद्रों का प्रमाण जाना जाता है अढ़ाई उद्धार सूक्ष्म सागरोपम के उद्धार समयों के बराबर द्वीप समुद्र हैं अद्धापल्योपम के दो भेद हैं सूक्ष्म अद्धापल्योपम और व्यावहारिक अद्धापल्योपम उनमें से सूक्ष्म अद्धापल्योपम
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Hindi 285 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया तं वावहारियस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं

Translated Sutra: दस कोटाकोटि व्यावहारिक अद्धापल्योपमों का एक व्यावहारिक सागरोपम होता है
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Hindi 286 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-अद्धा-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जति से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे से किं तं सुहुमे अद्धापलिओवमे? सुहुमे अद्धापलिओवमे से जहानामए पल्ले सियाजोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गे दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजी-वस्स सरीरोगाहणाओ

Translated Sutra: व्यावहारिक अद्धा पल्योपम ‌और सागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है ये केवल प्ररूपणा के लिये हैं सूक्ष्म अद्धापल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा एवं साधिक तीन योजन की परिधिवाला एक पल्य हो उस पल्य को एक दो तीन दिन के यावत्‌ बालाग्र
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Hindi 287 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया तं सुहुमस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं

Translated Sutra: इस अद्धापल्योपम को दस कोटाकोटि से गुणा करने से अर्थात्‌ दस कोटाकोटि सूक्ष्म अद्धापल्योपमों का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम होता है
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Hindi 288 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं सुहुमअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं सुहुमअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं नेरइय-तिरि-क्खजोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाइं मविज्जंति

Translated Sutra: सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? इस से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों के आयुष्य का प्रमाण जाना जाता है
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Hindi 289 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं जहा पन्नवणाए ठिईपए सव्वसत्ताणं से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे से तं अद्धापलिओवमे जाव जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागो अंतोमुहुत्तो एत्थ एएसिं संगहणि गाहाओ भवंति तं जहा

Translated Sutra: नैरयिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गोतम ! सामान्य रूप में जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की होती है रत्नप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की होती है
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Hindi 290 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समुच्छिमे पुव्वकोडी चउरासीइं भवे सहस्साइं तेवन्ना बायाला बावत्तरिमेव पक्खीणं

Translated Sutra: संमूर्च्छिम तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि वर्ष, स्थलचरचतुष्पद संमूर्च्छिमों की ८४००० वर्ष, उरपरिसर्पों की ५३००० वर्ष, भुजपरिसर्पों की ४२००० वर्ष और पक्षी की ७२००० वर्ष की है गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यंचों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि
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Hindi 291 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गब्भम्मि पुव्वकोडी तिन्नि पलिओवमाइं परमाउ उरग भुअपुव्वकोडी पलिओवमासंखभावो

Translated Sutra: देखो सूत्र २९०
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Hindi 292 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते! केवइअं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं जाव अजहन्नमणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाइं से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे से तं अद्धा पलिओवमे

Translated Sutra: मनुष्यों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है संमूर्च्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है अपर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों
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Hindi 293 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं खेत्तपलिओवमे? खेत्तपलिओवमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहासुहुमे वावहारिए तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे तत्थ णं जेसे वावहारिएसे जहानामए पल्ले सियाजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा जे णं तस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना, तओ णं समए-समए एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्षेत्रपल्योपम क्या है ? गौतम ! दो प्रकार सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम उनमें से सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम स्थापनीय है व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप इस प्रकार जैसे कोई एक योजन आयाम विष्कम्भ और एक योजन ऊंचा तथा कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला धान्य मापने के पल्य के समान
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Hindi 294 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया तं वावहारियस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं

Translated Sutra: इस (व्यावहारिक क्षेत्र ) पल्योपम की दस गुणित कोटाकोटि का एक व्यावहारिक क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है अर्थात्‌ दस कोटाकोटि व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपमों का एक व्यावहारिक क्षेत्र सागरोपम होता है
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Hindi 295 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-खेत्त-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जइ से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे? सुहुमे खेत्तपलिओवमे से जहानामए पल्ले सियाजोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गा दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स सरीरोगाहणाओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम से कौन सा प्रयोजन सिद्ध होता है ? गौतम ! इन से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता मात्र इनके स्वरूप की प्ररूपणा ही की गई है भगवन्‌ ! सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम क्या है ? वह इस प्रकार जानना जैसे धान्य के पल्य के समान एक पल्य हो जो एक योजन लम्बा चौड़ा, एक योजन ऊंचा और कुछ
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Hindi 296 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया तं सुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं

Translated Sutra: इन पल्यों को दस कोटाकोटि से गुणा करने पर एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है
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Hindi 297 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं दिट्ठिवाए दव्वा मविज्जंति

Translated Sutra: इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे दृष्टिवाद में वर्णित द्रव्यों का मान किया जाता है
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Hindi 298 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! दव्वा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं०जीवदव्वा अजीवदव्वा अजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहाअरूविअजीवदव्वा रूविअजीवदव्वा अरूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहाधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसा धम्मत्थिकायस्स पएसा, अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसा अधम्मत्थिकायस्स पएसा, आगासत्थिकाए आगास-त्थिकायस्स देसा आगासत्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए रूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहाखंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला ते णं भंते!

Translated Sutra: द्रव्य कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य अजीवद्रव्य दो प्रकार के हैं अरूपी अजीवद्रव्य और रूपी अजीवद्रव्य अरूपी अजीवद्रव्य दस प्रकार के हैं धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय के देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायदेश, अधर्मास्तिकायप्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्ति
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Hindi 299 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहाओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए नेरइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहावेउव्विए तेयए कम्मए असुरकुमाराणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहावेउव्विए तेयए कम्मए एवं तिन्नि-तिन्नि एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहाओरालिए तेयए कम्मए एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एए चेव तिन्नि सरीरा भाणियव्वा वाउकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता, तं जहाओरालिए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण नैरयिकों के तीन शरीर हैं वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर असुरकुमारों के तीन शरीर हैं वैक्रिय, तैजस और कार्मण इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन, औदारिक, तैजस और
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Hindi 300 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावप्पमाणे? भावप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहागुणप्पमाणे नयप्पमाणे संखप्पमाणे

Translated Sutra: भावप्रमाण क्या है ? तीन प्रकार का है गुणप्रमाण, नयप्रमाण और संख्याप्रमाण
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Hindi 301 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गुणप्पमाणे? गुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहाजीवगुणप्पमाणे अजीवगुण-प्पमाणे से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहावण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्पमाणे से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? वण्णगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहाकालवण्णगुणप्पमाणे नीलवण्णगुणप्प-माणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगुणप्पमाणे सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे से तं वण्णगुणप्पमाणे से किं तं गंधगुणप्पमाणे? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहासुब्भिगंधगुणप्पमाणे दुब्भिगंधगुणप्पमाणे से तं गंधगुणप्पमाणे से

Translated Sutra: गुणप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है जीवगुणप्रमाण और अजीवगुणप्रमाण अजीवगुणप्रमाण पाँच प्रकार का है वर्ग गुणप्रमाण, गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और संस्थानगुणप्रमाण भगवन्‌ ! वर्णगुणप्रमाण क्या है ? पाँच प्रकार का है कृष्णवर्णगुणप्रमाण यावत्‌ शुक्लवर्णगुणप्रमाण गंधगुणप्रमाण दो
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Hindi 302 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माता पुत्तं जहा नट्ठं, जुवाणं पुणरागतं काई पच्चभिजाणेज्जा, पुव्वलिंगेण केणई

Translated Sutra: माता बाल्यकाल से गुम हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्र्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है जैसे देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह पूर्ववत्‌ अनुमान है शेषवत्‌ अनुमान किसे कहते हैं ? पाँच प्रकार का है कार्येण,
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Hindi 303 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं जहाखतेण वा वणेण वा लंछणेण वा मसेण वा तिलएण वा से तं पुव्ववं से किं तं सेसवं? सेसवं पंचविहं पन्नत्तं, तंकज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आसएणं से किं तं कज्जेणं? कज्जेणंसंखं सद्देणं, भेरिं तालिएणं, वसभं ढिंकिएणं, मोरं केकाइएणं, हयं हेसिएणं, हत्थिं गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं से तं कज्जेणं से किं तं कारणेणं? कारणेणंतंतवो पडस्स कारणं पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं कडो वीरणका-रणं, मप्पिंडो घडस्स कारणं घडो मप्पिंडकारणं से तं कारणेणं से किं तं गुणेणं? गुणेणंसुवण्णं निकसेणं, पुप्फं गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं आसाएणं, वत्थं फासेणं से तं गुणेणं से किं

Translated Sutra: देखो सूत्र ३०२
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Hindi 304 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परियरबंधेण भडं, जाणेज्जा महिलियं निवसणेणं सित्थेण दोणपागं, कविं एगाए गाहाए

Translated Sutra: देखो सूत्र ३०२
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Hindi 305 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से तं अवयवेणं से किं तं आसएणं? आसएणंअग्गिं धूमेणं सलिलं बलागाहिं, वुट्ठिं अब्भविकारेणं, कुलपुत्तं सीलसमायारेणं इङ्गिताकारितै र्ज्ञेयैः, क्रियाभि र्भाषितेन नेत्र-वक्त्रविकारैश्च, गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः से तं आसएणं से तं सेसवं से किं तं दिट्ठसाहम्मवं? दिट्ठसाहम्मवं दुविहं पन्नत्तं, तं जहासामन्नदिट्ठं विसेसदिट्ठं से किं तं सामन्नदिट्ठं? सामन्नदिट्ठंजहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा, जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा, जहा बहवे करिसावणा तहा एगो करिसावणो से तं सामन्नदिट्ठं से किं तं विसेसदिट्ठं? विसेसदिट्ठंसे

Translated Sutra: देखो सूत्र ३०२
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