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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 424 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयरियपाया पुन अप्पसन्ना अबोहिआसायण नत्थि मोक्खो । तम्हा अनाबाह सुहाभिकंखी गुरुप्पसायाभिमुहो रमेज्जा ॥

Translated Sutra: आचार्यप्रवर के अप्रसन्न होने पर बोधिलाभ नहीं होता तथा (उनकी) आशातना से मोक्ष नहीं मिलता। इसलिए निराबाध सुख चाहनेवाला साधु गुरु की प्रसन्नता के अभिमुख होकर प्रयत्नशील रहे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 425 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहाहियग्गी जलण नमंसे नाणाहुईमंतपयाभि सित्तं । एवायरियं उवचिट्ठएज्जा अनंतनाणोवगओ वि संतो ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार आहिताग्नि ब्राह्मण नाना प्रकार की आहुतियों और मंत्रपदों से अभिषिक्त की हुई अग्नि को नमस्कार करता है, उसी प्रकार शिष्य अनन्तज्ञान – सम्पन्न हो जाने पर भी आचार्य की विनयपूर्वक सेवा – भक्ति करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 426 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जस्संतिए धम्मपयाइ सिक्खे तस्संतिए वेणइयं पउंजे । सक्कारए सिरसा पंजलीओ कायग्गिरा भो! मनसा य निच्चं ॥

Translated Sutra: जिसके पास धर्म – पदों का शिक्षण ले, हे शिष्य ! उसके प्रति विनय का प्रयोग करो। सिर से नमन करके, हाथों को जोड़ कर तथा काया, वाणी और मन से सदैव सत्कार करो।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 427 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लज्जा दया संजम बंभचेरं कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसासयंति ते हं गुरू सययं पूययामि ॥

Translated Sutra: कल्याणभागी (साधु) के लिए लज्जा, दया, संयम और ब्रह्मचर्य; ये विशोधि के स्थान हैं। अतः जो गुरु मुझे निरन्तर शिक्षा देते हैं, उनकी मैं सतत पूजा करूं।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 428 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा निसंते तवणच्चिमाली पभासई केवलभारहं तु । एवायरिओ सुयसीलबुद्धिए विरायई सुरमज्झे व इंदो ॥

Translated Sutra: जैसे रात्रि के अन्त में प्रदीप्त होता हुआ सूर्य सम्पूर्ण भारत को प्रकाशित करता है, वैसे ही आचार्य श्रुत, शील और प्रज्ञा से भावों को प्रकाशित करते हैं तथा जिस प्रकार देवों के बीच इन्द्र सुशोभित होता है, (सुशोभित होते हैं)। जैसे मेघों से मुक्त अत्यन्त निर्मल आकाश में कौमुदी के योग से युक्त, नक्षत्र और तारागण से
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 429 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो नक्खत्ततारागणपरिवुडप्पा । खे सोहई विमले अब्भमुक्के एवं गणी सोहइ भिक्खुमज्झे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४२८
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 430 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] महागरा आयरिया महेसी समाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए । संपाविउकामे अनुत्तराइं आराहए तोसए धम्मकामी ॥

Translated Sutra: अनुत्तर ज्ञानादि की सम्प्राप्ति का इच्छुक तथा धर्मकामी साधु (ज्ञानादि रत्नों के) महान्‌ आकर, समाधि – योग तथा श्रुत, शील, और प्रज्ञा से सम्पन्न महर्षि आचार्यों को आराधे तथा उनकी विनयभक्ति से सदा प्रसन्न रखे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 431 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोच्चाण मेहावी सुभासियाइं सुस्सूसए आयरियप्पमत्तो । आराहइत्ताण गुणे अणेगे से पावई सिद्धिमणुत्तरं ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: मेधावी साधु (पूर्वोक्त) सुभाषित वचनों को सुनकर अप्रमत्त रहता हुआ आचार्य की शुश्रूषा करे। इस प्रकार वह अनेक गुणों की आराधना करके अनुत्तर सिद्धि प्राप्त करता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 432 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मूलाओ खंधप्पभवो दुमस्स खंधाओ पच्छा समुवेंति साहा । साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता तओ से पुप्फं च फलं रसो य ॥

Translated Sutra: वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है, स्कन्ध से शाखाऍं, शाखाओं से प्रशाखाऍं निकलती हैं। तदनन्तर पत्र, पुष्प, फल और रस उत्पन्न होता है। इसी प्रकार धर्म ( – रूप वृक्ष) का मूल विनय है और उसका परम रसयुक्त फल मोक्ष है। उस (विनय) के द्वारा श्रमण कीर्ति, श्रुत और निःश्रेयस्‌ प्राप्त करता है। सूत्र – ४३२, ४३३
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 433 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं धम्मस्स विनओ मूलं परमो से मोक्खो । जेण कित्तिं सुयं सिग्घं निस्सेसं चाभिगच्छई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३२
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 434 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे य चंडे मिए थद्धे दुव्वाई नियडी सढे । वुज्झइ से अविनीयप्पा कट्ठं सोयगयं जहा ॥

Translated Sutra: जो क्रोधी है, मृग – पशुसम अज्ञ, अहंकारी, दुर्वादी, कपटी और शठ है; वह अविनीतात्मा संसारस्रोत में वैसे ही प्रवाहित होता रहता है, जैसे जल के स्रोत में पड़ा हुआ काष्ठ।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 435 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विनयं पि जो उवाएणं चोइओ कुप्पई नरो । दिव्वं सो सिरिमेज्जंतिं दंडेण पडिसेहए ॥

Translated Sutra: (किसी भी) उपाय से विनय ( – धर्म) में प्रेरित किया हुआ जो मनुष्य कुपित हो जाता है, वह आती हुई दिव्यलक्ष्मी को डंडे से रोकता (हटाता) है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 436 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव अविनीयप्पा उववज्झा हया गया । दीसंति दुहमेहंता आभिओगमुवट्ठिया ॥

Translated Sutra: जो औपबाह्य हाथी और घोड़े अविनीत होते हैं, वे (सेवाकाल में) दुःख भोगते हुए तथा भार – वहन आदि निम्न कार्यों में जुटाये जाते हैं और जो हाथी और घोड़े सुविनीत होते हैं, वे सुख का अनुभव करते हुए महान्‌ यश और ऋद्धि को प्राप्त करते हैं। इसी तरह इस लोक में जो नर – नारी अविनीत होते हैं, वे क्षत – विक्षत, इन्द्रियविकल, दण्ड और
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 437 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव सुविनीयप्पा उववज्झा हया गया । दीसंति सुहमेहंता इड्ढिं पत्ता महायसा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३६
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 438 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव अविनीयप्पा लोगंसि नरनारिओ । दीसंति दुहमेहंता छाया विगलितेंदिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३६
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 439 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंडसत्थपरिजुण्णा असब्भ वयणेहि य । कलुणा विवन्नछंदा खुप्पिवासाए परिगया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३६
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 440 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव सुविनीयप्पा लोगंसि नरनारिओ । दीसंति सुहमेहंता इड्ढिं पत्ता महायसा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३६
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 441 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव अविनीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । दीसंति दुहमेहंता आभिओगमुवट्ठिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३६
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 442 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव सुविनीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । दीसंति सुहमेहंता इड्ढिं पत्ता महायसा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४३६
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 443 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे आयरियउवज्झायाणं सुस्सूसावयणंकरा । तेसिं सिक्खा पवड्ढंति जलसित्ता इव पायवा ॥

Translated Sutra: जो साधक आचार्य और उपाध्याय की सेवा – शुश्रूषा करते हैं, उनके वचनों का पालन करते हैं, उनकी शिक्षा उसी प्रकार बढ़ती है, जिस प्रकार जल से सींचे हुए वृक्ष बढ़ते हैं।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 444 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अप्पणट्ठा परट्ठा वा सिप्पा नेउणियाणि य । गिहिणो उवभोगट्ठा इहलोगस्स कारणा ॥

Translated Sutra: जो गृहस्थ लोग इस लोक के निमित्त, सुखोपभोग के लिए, अपने या दूसरों के लिए; शिल्पकलाऍं या नैपुण्यकलाऍं सीखते हैं। ललितेन्द्रिय व्यक्ति भी कला सीखते समय (शिक्षक द्वारा) घोर बन्ध, वध और दारुण परिताप को प्राप्त होते हैं। फिर भी वे गुरु के निर्देश के अनुसार चलने वाले उस शिल्प के लिए प्रसन्नतापूर्वक उस शिक्षकगुरु
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 445 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं । सिक्खमाणा नियच्छंति जुत्ता ते ललिइंदिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४४
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 446 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ते वि त गुरुं पूयंति तस्स सिप्पस्स कारणा । सक्कारेंति नमंसंति तुट्ठा निद्देसवत्तिणो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४४
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 447 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं पुन जे सुयग्गाही अनंतहियकामए । आयरिया जं वए भिक्खू तम्हा तं नाइवत्तए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४४
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 448 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नीयं सेज्जं गइं ठाणं नीयं च आसनानि य । नीयं च पाए वंदेज्जा नीयं कुज्जा य अंजलिं ॥

Translated Sutra: (साधु आचार्य से) नीची शय्या करे, नीची गति करे, नीचे स्थान में खड़ा रहे, नीचा आसन करे तथा नीचा होकर आचार्यश्री के चरणों में वन्दन और अंजलि करे। कदाचित्‌ आचार्य के शरीर का अथवा उपकरणों का भी स्पर्श हो जाए तो कहे – मेरा अपराध क्षमा करें, फिर ऐसा नहीं होगा। सूत्र – ४४८, ४४९
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 449 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संघट्टइत्ता काएणं तहा उवहिणामवि । खमेह अवराहं मे वएज्ज न पुणो त्ति य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४८
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 450 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुग्गओ वा पओएणं चोइओ वहई रहं । एवं दुबुद्धि किच्चाणं वुत्तो वुत्तो पकुव्वई ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार दुष्ट बैल चाबुक से प्रेरित किये जाने पर (ही) रथ को वहन करता है, उसी प्रकार दुर्बुद्धि शिष्य (भी) आचार्यों के बार – बार कहने पर (कार्य) करता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 451 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलवंते लवंते वा न निसेज्जाए पडिस्सुणे । मोत्तूणं आसणं धीरो सुस्सूसाए पडिस्सुणे ॥

Translated Sutra: गुरु के एक बार या बार – बार बुलाने पर बुद्धिमान्‌ शिष्य आसन पर से ही उत्तर न दे, किन्तु आसन छोड़ कर शुश्रूषा के साथ उनकी बात सुन कर स्वीकार करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 452 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालं छंदोवयारं च पडिलेहित्ताण हेउहिं । तेण तेण उवाएण तं तं संपडिवायए ॥

Translated Sutra: काल, गुरु के अभिप्राय, उपचारों तथा देश आदि को हेतुओं से भलीभाँति जानकर तदनुकूल उपाय से उस – उस योग्य कार्य को सम्पादित करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 453 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विवत्ती अविनीयस्स संपत्ती विनियस्स य । जस्सेयं दुहओ नायं सिक्खं से अभिगच्छइ ॥

Translated Sutra: अविनीत को विपत्ति और विनीत को सम्पत्ति (प्राप्त) होती है, जिसको ये दोनों प्रकार से ज्ञात है, वही शिक्षा को प्राप्त होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 454 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे यावि चंडे मइइड्ढिगारवे पिसुणे नरे साहस हीनपेसणे । अदिट्ठधम्मे विनए अकोविए असंविभागी न हु तस्स मोक्खो ॥

Translated Sutra: जो मनुष्य चण्ड, अपनी बुद्धि और ऋद्धि का गर्वी, पिशुन, अयोग्यकार्य में साहसिक, गुरु – आज्ञा – पालन से हीन, श्रमण – धर्म से अदृष्ट, विनय में अनिपुण और असंविभागी है, उसे (कदापि) मोक्ष (प्राप्त) नहीं होता।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-२ Hindi 455 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निद्देसवत्ती पुन जे गुरूणं सुयत्थधम्मा विनयम्मि कोविया । तरित्तु ते ओहमिणं दुरुत्तरं खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गय ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: किन्तु जो गुरुओं की आज्ञा के अनुसार प्रवृत्ति करते हैं, जो गीतार्थ हैं तथा विनय में कोविद हैं; वे इस दुस्तर संसार – सागर को तैर कर कर्मों का क्षय करके सर्वोत्कृष्ट गति में गए हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 456 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयरियं अग्गिमिवाहियग्गी सुस्सूसमाणो पडिजागरेज्जा । आलोइयं इंगियमेव नच्चा जो छंदमाराहयइ स पुज्जो ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार आहिताग्नि अग्नि की शुश्रूषा करता हुआ जाग्रत रहता है; उसी प्रकार जो आचार्य की शुश्रूषा करता हुआ जाग्रत रहता है तथा जो आचार्य के आलोकित एवं इंगित को जान कर उनके अभिप्राय की आराधना करता है, वही पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 457 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयारमट्ठा विनयं पउंजे सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं । जहोवइट्ठं अभिकंखमाणो गुरुं तु नासाययई स पुज्जो ॥

Translated Sutra: जो (शिष्य) आचार के लिए विनय करता है, जो सुनने की इच्छा रखता हुआ (उनके) वचन को ग्रहण कर के, उपदेश के अनुसार कार्य करना चाहता है और जो गुरु की आशातना नहीं करता, वह पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 458 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] राइणिएसु विनयं पउंजे डहरा वि य जे परियायजेट्ठा । नियत्तणे वट्टइ सच्चवाई ओवायवं वक्ककरे स पुज्जो ॥

Translated Sutra: अल्पवयस्क होते हुए भी पर्याय में जो ज्येष्ठ हैं; उन रत्नाधिकों के प्रति जो विनय करता है, नम्र रहता है, सत्यवादी है, गुरु सेवा में रहता है और गुरु के वचनों का पालन करता है, वह पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 459 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अण्णायउंछं चरइ विसुद्धं जवणट्ठया समुयाणं च निच्चं । अलद्धुयं नो परिदेवएज्जा लद्धु न विकत्थयई स पुज्जो ॥

Translated Sutra: जो संयमयात्रा के निर्वाह के लिए सदा विशुद्ध, सामुदायिक, अज्ञात, उञ्छ चर्या करता है, जो न मिलने पर विषाद नहीं करता और मिलने पर श्लाघा नहीं करता, वह पूजनीय है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 460 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संथारसेज्जासणभत्तपाने अप्पिच्छया अइलाभे वि संते । जो एवमप्पाणभितोसएज्जा संतोसपाहन्न रए स पुज्जो ॥

Translated Sutra: जो (साधु) संस्तारक, शय्या, आसन, भक्त और पानी का अतिलाभ होने पर भी अल्प इच्छा रखनेवाला है, इस प्रकार जो अपने को सन्तुष्ट रखता है तथा जो सन्तोषप्रधान जीवन में रत है, वह पूज्य है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 461 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सक्का सहेउं आसाए कंटया अओमया उच्छहया नरेणं । अनासए जो उ सहेज्ज कंटए वईमए कण्णसरे स पुज्जो ॥

Translated Sutra: मनुष्य लाभ की आशा से लोहे के कांटों को उत्साहपूर्वक सहता है किन्तु जो किसी लाभ की आशा के बिना कानों में प्रविष्ट होने वाले तीक्ष्ण वचनमाय कांटों को सहन करता है, वही पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 462 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मुहुत्तदुक्खा हु हवंति कंटया अओमया ते वि तओ सुउद्धरा । वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि वेरानुबंधीणि महब्भयाणि ॥

Translated Sutra: लोहमय कांटे मुहूर्त्तभर दुःखदायी होते हैं; फिर वे भी से सुखपूर्वक निकाले जा सकते हैं। किन्तु वाणी से निकले हुए दुर्वचनरूपी कांटे कठिनता से निकाले जा सकनेवाले, वैर परम्परा बढ़ानेवाले और महाभयकारी होते हैं
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 463 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समावयंता वयणाभिघाया कण्णंगया दुम्मणियं जणंति । धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे जिइंदिए जो सहई स पुज्जो ॥

Translated Sutra: आते हुए कटुवचनों के आघात कानों में पहुँचते ही दौर्मनस्य उत्पन्न करते हैं; (परन्तु) जो वीर – पुरुषों का परम अग्रणी जितेन्द्रिय पुरुष ‘यह मेरा धर्म है’ ऐसा मान कर सहन कर लेता है, वही पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 464 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवण्णवायं च परम्मुहस्स पच्चक्खओ पडिणीयं च भासं । ओहारिणिं अप्पियकारिणिं च भासं न भासेज्ज सया स पुज्जो ॥

Translated Sutra: जो मुनि पीठ पीछे कदापि किसी का अवर्णवाद नहीं बोलता तथा प्रत्यक्ष में विरोधी भाषा एवं निश्चयकारिणी और अप्रियकारिणी भाषा नहीं बोलता, वह पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 465 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अलोलुए अक्कुहए अमाई अपिसुणे यावि अदीनवित्ती । नो भावए नो वि य भावियप्पा अकोउहल्ले य सया स पुज्जो ॥

Translated Sutra: जो लोलुप नहीं होता, इन्द्रजालिक चमत्कार – प्रदर्शन नहीं करता, माया का सेवन नहीं करता, चुगली नहीं खाता, दीनवृत्ति नहीं करता, दूसरों से अपनी प्रशंसा नहीं करवाता और न स्वयं अपनी प्रशंसा करता है तथा जो कुतूहल नहीं करता, वह पूज्य है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 466 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गुणेहि साहू अगुणेहिसाहू गिण्हाहि साहूगुण मुंचसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो ॥

Translated Sutra: व्यक्ति गुणों से साधु होता है, अगुणों से असाधु। इसलिए साधु के योग्य गुणों को ग्रहण कर और असाधु – गुणों को छोडे। आत्मा को आत्मा से जान कर जो रागद्वेष में सम रहता है, वही पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 467 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थी पुमं पव्वइयं गिहिं वा । नो हीलए नो वि य खिंसएज्जा थंभं च कोहं च चए स पुज्जो ॥

Translated Sutra: इसी प्रकार अल्पवयस्क या वृद्ध को, स्त्री या पुरुष को, अथवा प्रव्रजित अथवा गृहस्थ को उसके दुश्चरित की याद दिला कर जो साधक न तो उसकी हीलना करता है और न ही झिड़कता है तथा जो अहंकार और क्रोध का त्याग करता है, वही पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 468 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे मानिया सययं मानयंति जत्तेण कन्नं च निवेसयंति । ते मानए मानरिहे तवस्सी जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो ॥

Translated Sutra: (अभ्युत्थान आदि द्वारा) सम्मानित किये गए आचार्य उन साधकों को सतत सम्मानित करते हैं, जैसे – (पिता अपनी कन्याओं को) यत्नपूर्वक योग्य कुल में स्थापित करते हैं, वैसे ही (आचार्य अपने शिष्यों को सुपथ में) स्थापित करते हैं; उन सम्मानार्ह, तपस्वी, जितेन्द्रिय, सत्यपरायण आचार्यों को जो सम्मानते है, वह पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 469 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेसिं गुरूणं गुणसागराणं सोच्चाण मेहावि सुभासियाइं । चरे मुनी पंचरए तिगुत्तो चउक्कसायावगए स पुज्जो ॥

Translated Sutra: जो मेधावी मुनि उन गुण – सागर गुरुओं के सुभाषित सुनकर, तदनुसार आचरण करता है; जो पंच महाव्रतों में रत, तीन गुप्तियों से गुप्त, चारों कषायों से रहित हो जाता है, वह पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 470 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गुरुमिह सययं पडियरिय मुनी जिणमयनिउणे अभिगमकुसले । धुणिय रयमलं पुरेकडं भासुरमउलं गइं गय ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जिन – (प्ररूपित) सिद्धान्त में निपुण, अभिगम में कुशल मुनि इस लोक में सतत गुरु की परिचर्या करके पूर्वकृत कर्म को क्षय कर भास्वर अतुल सिद्धि गति को प्राप्त करता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-४ Hindi 471 Sutra Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता। कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा– १. विनयसमाही २. सुयसमाही ३. तव-समाही ४. आयारसमाही।

Translated Sutra: आयुष्मन्‌ ! मैंने सुना है, उन भगवान्‌ ने कहा है – स्थविर भगवंतों ने विनयसमाधि के चार स्थान बताये हैं – विनय समाधि, श्रुतसमाधि, तपःसमाधि और आचारसमाधि। जो जितेन्द्रिय होते हैं, वे पण्डित अपनी आत्मा को इन चार स्थानों में निरत रखते हैं। सूत्र – ४७१, ४७२
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-४ Hindi 472 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विनए सुए अ तवे आयारे निच्चं पंडिया । अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंदिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४७१
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-४ Hindi 473 Sutra Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहा खलु विनयसमाही भवइ, तं जहा– १. अनुसासिज्जंतो सुस्सूसइ २. सम्मं संपडिवज्जइ ३. वेयमाराहयइ ४. न य भवइ अत्त-संपग्गहिए। चउत्थं पयं भवइ।

Translated Sutra: विनयसमाधि चार प्रकार की होती है। जैसे – अनुशासित किया हुआ (शिष्य) आचार्य के अनुशासन – वचनों को सुनना चाहता है; अनुशासन को सम्यक्‌ प्रकार से स्वीकारता है; शास्त्र की आराधना करता है; और वह आत्म – प्रशंसक नहीं होता। इस (विषय) में श्लोक भी है – आत्मार्थी मुनि हितानुशासन सुनने की इच्छा करता है; शुश्रूषा करता है, उस
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