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Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 365 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिनेहं पुप्फसुहुमं च पाणुत्तिंगं तहेव य । पणगं बीय हरियं च अंडसुहुमं च अट्ठमं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३६३
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 366 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवमेयाणि जाणित्ता सव्वभावेण संजए । अप्पमत्तो जए निच्चं सव्विंदियसमाहिए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३६३
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 367 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धुवं च पडिलेहेज्जा जोगसा पायकंबलं । सेज्जमुच्चारभूमिं च संथारं अदुवासणं ॥

Translated Sutra: संयमी साधु सदैव यथासमय उपयोगपूर्वक पात्र, कम्बल, शय्या, उच्चारभूमि, संस्तारक अथवा आसन का प्रतिलेखन करे। उच्चार, प्रस्रवण, कफ, नाक का मैल और पसीना आदि डालने के लिए प्रासुक भूमि का प्रतिलेखन करके उनका (यतनापूर्वक) परिष्ठापन करे। सूत्र – ३६७, ३६८
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 368 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाण जल्लियं । फासुयं पडिलेहित्ता परिट्ठावेज्ज संजए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३६७
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 369 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पविसित्तु परागारं पाणट्ठा भोयणस्स वा । जयं चिट्ठे मियं भासे न य रूवेसु मनं करे ॥

Translated Sutra: पानी या भोजन के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करके साधु यतना से खड़ा रहे, परिमित बोले और (वहाँ के) रूप में मन को डांवाडोल न करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 370 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहुं सुणेइ कण्णेहिं बहुं अच्छीहिं पेच्छइ । न य दिट्ठं सुयं सव्वं भिक्खू अक्खाउमरिहइ ॥

Translated Sutra: भिक्षु कानों से बहुत कुछ सुनता है तथा आँखों से बहुत – से रूप (या दृश्य) देखता है किन्तु सब देखते हुए और सुने हुए को कह देना उचित नहीं। यदि सुनी या देखी हुई (घटना औपघातिक हो तो नहीं कहनी तथा किसी भी उपाय से गृहस्थोचित आचरण नहीं करना)। सूत्र – ३७०, ३७१
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 371 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुयं वा जइ वा दिट्ठं न लवेज्जोवघाइयं । न य केणइ उवाएणं गिहिजोगं समायरे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३७०
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 372 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निट्ठाणं रसनिज्जूढं भद्दगं पावगं ति वा । पुट्ठो वा वि अपुट्ठो वा लाभालाभं न निद्दिसे ॥

Translated Sutra: पूछने पर अथवा बिना पूछे भी यह सरस (भोजन) है और यह नीरस है, यह (ग्राम आदि) अच्छा है और यह बुरा है, अथवा मिला या न मिला; यह भी न कहे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 373 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उंछं अयंपिरो । अफासुयं न भुंजेज्जा कीयमुद्देसियाहडं ॥

Translated Sutra: भोजन में गृद्ध न हो, व्यर्थ न बोलता हुआ उञ्छ भिक्षा ले। (वह) अप्रासुक, क्रीत, औद्देशिक और आहृत आहार का भी उपभोग न करे। अणुमात्र भी सन्निधि न करे, सदैव मुधाजीवी असम्बद्ध और जनपद के निश्रित रहे, रूक्षवृत्ति, सुसन्तुष्ट, अल्प इच्छावाला और थोड़े से आहार से तृप्त होने वाला हो। वह जिनप्रवचन को सुन कर आसुरत्व को प्राप्त
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 374 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सन्निहिं च न कुव्वेज्जा अणुमायं पि संजए । मुहाजीवो असंबद्धे हवेज्ज जगनिस्सिए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३७३
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 384 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अधुवं जीवियं नच्चा सिद्धिमग्गं वियाणिया । विनियट्टेज्ज भोगेसु आउं परिमियमप्पणो ॥

Translated Sutra: जीवन को अध्रुव और आयुष्य को परिमित जान तथा सिद्धिमार्ग का विशेषरूप से ज्ञान प्राप्त करके भोगों से निवृत्त हो जाए।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 385 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बलं थामं च पेहाए सद्धामारोगमप्पणो । खेत्तं कालं च विण्णाय तहप्पाणं निजुंजए ॥

Translated Sutra: अपने बल, शारीरिक शक्ति, श्रद्धा और आरोग्य को देख कर तथा क्षेत्र और काल को जान कर, अपनी आत्मा को धर्मकार्य में नियोजित करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 386 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जरा जाव न पीलेइ वाही जाव न वड्ढई । जाविंदिया न हायंति ताव धम्मं समायरे ॥

Translated Sutra: जब तक वृद्धावस्था पीड़ित न करे, व्याधि न बढ़े और इन्द्रियाँ क्षीण न हों, तब तक धर्म का सम्यक्‌ आचरण कर लो।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 387 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहं मानं च मायं च लोभं च पापवड्ढणं । वमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हियमप्पणो ॥

Translated Sutra: क्रोध, मान, माया और लोभ, पाप को बढ़ाने वाले हैं। आत्मा का हित चाहनेवाला इन चारों का अवश्यमेव वमन कर दे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 388 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहो पीइं पणासेइ मानो विनयनासणो । माया मित्ताणि नासेइ लोहो सव्वविनासणो ॥

Translated Sutra: क्रोध प्रीति का, मान विनय का, माया मित्रता का और लोभ तो सब का नाश करनेवाला है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 389 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवसमेण हणे कोहं मानं मद्दवया जिने । मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिने ॥

Translated Sutra: क्रोध को उपशम से, मान को मृदुता से, माया को सरलता से और लोभ पर संतोष द्वारा विजय प्राप्त करे
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 390 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहो य मानो य अनिग्गहीया माया य लोभो य पवड्ढमाणा । चत्तारि एए कसिणा कसाया सिंचंति मूलाइं पुणब्भवस्स ॥

Translated Sutra: अनिगृहीत क्रोध और मान, प्रवर्द्धमान माया और लोभ, ये चारों संक्लिष्ट कषाय पुनर्जन्म की जडें सींचते है
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 391 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] राइनिएसु विनयं पउंजे धुवसीलयं सययं न हावएज्जा । कुम्मो व्व अल्लीणपलीनगुत्तो परक्कमेज्जा तवसंजमम्मि ॥

Translated Sutra: (साधु) रत्नाधिकों के प्रति विनयी बने, ध्रुवशीलता को न त्यागे। कछुए की तरह आलीनगुप्त और प्रलीनगुप्त होकर तप – संयम में पराक्रम करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 392 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निद्दं च न बहुमन्नेज्जा संपहासं विवज्जए । मिहोकहाहिं न रमे सज्झायम्मि रओ सया ॥

Translated Sutra: साधु निद्रा को बहु मान न दे। अत्यन्त हास्य को वर्जित करे, पारस्परिक विकथाओं में रमण न करे, सदा स्वाध्याय में रत रहे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 393 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोगं च समणधम्मम्मि जुंजे अणलसो धुवं । जत्तो य समणधम्मम्मि अट्ठं लहइ अनुत्तरं ॥

Translated Sutra: साधु आलस्यरहित होकर श्रमणधर्म में योगों को सदैव नियुक्त करे; क्योंकि श्रमणधर्म में संलग्न साधु अनुत्तर अर्थ को प्राप्त करता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 394 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इहलोगपारत्तहियं जेणं गच्छइ सोग्गइं । बहुस्सुयं पज्जुवासेज्जा पुच्छेज्जत्थ विनिच्छयं ॥

Translated Sutra: जिस के द्वारा इहलोक और परलोक में हित होता है, सुगति होती है। वह बहुश्रुत (मुनि) की पर्युपासना करे और अर्थ के विनिश्चय के लिए पृच्छा करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 395 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हत्थं पायं च कायं च पणिहाय जिइंदिए । अल्लीनगुत्तो निसिए सगासे गुरुणो मुनी ॥

Translated Sutra: जितेन्द्रिय मुनि (अपने) हाथ, पैर और शरीर को संयमित करके आलीन और गुप्त होकर गुरु के समीप बैठे
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 396 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्ठओ । न य ऊरुं समासेज्जा चिट्ठेजा गुरुणंतिए ॥

Translated Sutra: आचार्य आदि के पार्श्व भाग में, आगे और पृष्ठभाग में न बैठे तथा गुरु के समीप उरु सटा कर (भी) न बैठे
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 397 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अपुच्छिओ न भासेज्जा भासमाणस्स अंतरा । पिट्ठिमंसं न खाएज्जा मायामोसं विवज्जए ॥

Translated Sutra: विनीत साधु बिना पूछे न बोले, (वे) बात कर रहे हों तो बीच में न बोले। चुगली न खाए और मायामृषा का वर्जन करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 398 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अप्पत्तियं जेण सिया आसु कुप्पेज्ज वा परो । सव्वसो तं न भासेज्जा भासं अहियगामिणिं ॥

Translated Sutra: जिससे अप्रीति उत्पन्न हो अथवा दूसरा शीघ्र ही कुपित होता हो, ऐसी अहितकर भाषा सर्वथा न बोले।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 399 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिट्ठं मियं असंदिद्धं पडिपुन्नं वियंजियं । अयंपिरमणुव्विग्गं भासं निसिर अत्तवं ॥

Translated Sutra: आत्मवान्‌ साधु दृष्ट, परिमित, असंदिग्ध, परिपूर्ण, व्यक्त, परिचित, अजल्पित और अनुद्विग्न भाषा बोले।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 400 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयारपन्नत्तिधरं दिट्ठिवायमहिज्जगं । वइविक्खलियं नच्चा न तं उवहसे मुनी ॥

Translated Sutra: आचारांग और व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के धारक एवं दृष्टिवाद के अध्येता साधु वचन से स्खलित हो जाऍं तो मुनि उनका उपहास न करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 401 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नक्खत्तं सुमिणं जोगं निमित्तं मंत भेसजं । गिहिणो तं न आइक्खे भूयाहिगरणं पयं ॥

Translated Sutra: नक्षत्र, स्वप्नफल, वशीकरणादि योग, निमित्त, मन्त्र, भेषज आदि अयोग्य बातें गृहस्थों को न कहे; क्योंकि ये प्राणियों के अधिकरण स्थान हैं।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 402 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अन्नट्ठं पगडं लयणं भएज्ज सयनासनं । उच्चारभूमिसंपन्नं इत्थीपसुविवज्जियं ॥

Translated Sutra: दूसरों के लिए बने हुए, उच्चारभूमि से युक्त तथा स्त्री और पशु से रहित स्थान, शय्या और आसन का सेवन करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 403 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विवित्ता य भवे सेज्जा नारीणं न लवे कहं । गिहिसंथवं न कुज्जा कुज्जा साहूहिं संथवं ॥

Translated Sutra: यदि उपाश्रय विविक्त हो तो केवल स्त्रियों के बीच धर्मकथा न कहे; गृहस्थों के साथ संस्तव न करे, साधुओं के साथ ही परिचय करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 404 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा कुक्कुडपोयस्स निच्चं कुललओ भयं । एवं खु बंभयारिस्स इत्थीविग्गहओ भयं ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार मुर्गे के बच्चे को बिल्ली से सदैव भय रहता है, इसी प्रकार ब्रह्मचारी को स्त्री के शरीर से भय होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 405 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चित्तभित्तिं न निज्झाए नारिं वा सुअलंकियं । भक्खरं पिव दट्ठूणं दिट्ठिं पडिसमाहरे ॥

Translated Sutra: चित्रभित्ति अथवा विभूषित नारी को टकटकी लगा कर न देखे। कदाचित्‌ सहसा उस पर दृष्टि पड़ जाए तो दृष्टि तुरंत उसी तरह वापस हटा ले, जिस तरह सूर्य पर पड़ी हुई दृष्टि हटा ली जाती है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 406 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हत्थपायपडिच्छिन्नं कण्णनासविगप्पियं । अवि वाससइं नारिं बंभयारी विवज्जए ॥

Translated Sutra: जिसके हाथ – पैर कटे हुए हों, जो कान और नाक से विकल हो, वैसी सौ वर्ष की नारी (के संसर्ग) का भी ब्रह्मचारी परित्याग कर दे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 407 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विभूसा इत्थिसंसग्गी पणीयरसभोयणं । नरस्सत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा ॥

Translated Sutra: आत्मगवेषी पुरुष के लिए विभूषा, स्त्रीसंसर्ग और स्निग्ध रस – युक्त भोजन तालपुट विष के समान है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 408 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अंगपच्चंगसंठाणं चारुल्लवियपेहियं । इत्थीणं तं न निज्झाए कामरागविवड्ढणं ॥

Translated Sutra: स्त्रियों के अंग, प्रत्यंग, संस्थान, चारु – भाषण और कटाक्ष के प्रति (साधु) ध्यान न दे, क्योंकि ये कामराग को बढ़ाने वाले हैं।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 409 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विसएसु मणुन्नेसु पेमं नाभिनिवेसए । अनिच्चं तेसिं विण्णाय परिणामं पोग्गलाण उ ॥

Translated Sutra: शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श, इन पुद्‌गलों के परिणमन को अनित्य जान कर मनोज्ञ विषयों में रागभाव स्थापित न करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 410 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पोग्गलाण परीणामं तेसिं नच्चा जहा तहा । विणीयतण्हो विहरे सीईभूएण अप्पणा ॥

Translated Sutra: उन (इन्द्रियों के विषयभूत) पुद्‌गलों के परिणमन को जैसा है, वैसा जान कर अपनी प्रशान्त आत्मा से तृष्णारहित होकर विचरण करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 411 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जाए सद्धाए निक्खंतो परियायट्ठाणमुत्तमं । तमेव अनुपालेज्जा गुणे आयरियसम्मए ॥

Translated Sutra: जिस (वैराग्यभावपूर्ण) श्रद्धा से घर से निकला और प्रव्रज्या को स्वीकार किया, उसी श्रद्धा से मूल – गुणों का अनुपालन करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 412 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्ठए । सूरे व सेनाए समत्तमाउहे अलमप्पणो होइ अलं परेसिं ॥

Translated Sutra: (जो मुनि) इस तप, संयमभोग और स्वाध्याययोग में सदा निष्ठापूर्वक प्रवृत्त रहता है, वह अपनी और दूसरों की रक्षा करने में उसी प्रकार समर्थ होता है, जिस प्रकार सेना से घिर जाने पर समग्र शस्त्रो से सुसज्जित शूरवीर।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 413 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सज्झायसज्झाणरयस्स ताइणो अपावभावस्स तवे रयस्स । विसुज्झई जं सि मलं पुरेकडं समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥

Translated Sutra: स्वाध्याय और सद्‌ध्यान में रत, त्राता, निष्पापभाव वाले (तथा) तपश्चरण में रत मुनि का पूर्वकृत कर्म उसी प्रकार विशुद्ध होता है, जिस प्रकार अग्नि द्वारा तपाए हुए रूप्य का मल।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 414 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से तारिसे दुक्खसहे जिइंदिए सुएण जुत्ते अममे अकिंचने । विरायई कम्मघणम्मि अवगए कसिणब्भपुडावगमे व चंदिमा ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जो (पूर्वोक्त) गुणों से युक्त है, दुःखों को सहन करने वाला है, जितेन्द्रिय है, श्रुत युक्त है, ममत्वरहित और अकिंचन है; वह कर्मरूपी मेघों के दूर होने पर, उसी प्रकार सुशोभित होता है, जिस प्रकार सम्पूर्ण अभ्रपटल से विमुक्त चन्द्रमा। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 415 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] थंभा व कोहा व मयप्पमाया गुरुस्सगासे विनयं न सिक्खे । सो चेव उ तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ॥

Translated Sutra: (जो साधक) गर्व, क्रोध, माया और प्रमादवश गुरुदेव के समीप विनय नहीं सीखता, (उसके) वे (अहंकारादि दुर्गुण) ही वस्तुतः उस के ज्ञानादि वैभव वांस के फल के समान विनाश के लिए होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 416 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे यावि मंदि त्ति गुरुं विइत्ता डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छं पडिवज्जमाणा करेंति आसायण ते गुरूणं ॥

Translated Sutra: जो गुरु की ‘ये मन्द, अल्पवयस्क तथा अल्पश्रुत हैं’ ऐसा जान कर हीलना करते हैं, वे मिथ्यात्व को प्राप्त करके गुरुओं की आशातना करते हैं। कईं स्वभाव से ही मन्द होते हैं और कोई अल्पवयस्क भी श्रुत और बुद्धि से सम्पन्न होते हैं। वे आचारवान्‌ और गुणों में सुस्थितात्मा आचार्य की अवज्ञा किये जाने पर (गुणराशि को उसी प्रकार)
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 417 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पगईए मंदा वि भवंति एगे डहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया । आयारमंता गुणसुट्ठिअप्पा जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४१६
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 418 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे यावि नागं डहरं ति नच्चा आसायए से अहियाय होइ । एवायरियं पि हु हीलयंतो नियच्छई जाइपहं खु मंदे ॥

Translated Sutra: जो कोई सर्प को ‘छोटा बच्चा है’ यह जान कर उसकी आशातना करता है, वह (सर्प) उसके अहित के लिए होता है, इसी प्रकार आचार्य की भी अवहेलना करने वाला मन्दबुद्धि भी संसार में जन्म – मरण के पथ पर गमन करता है। अत्यन्त क्रुद्ध हुआ भी आशीविष सर्प जीवन – नाश से अधिक और क्या कर सकता है ? परन्तु अप्रसन्न हुए पूज्यपाद आचार्य तो अबोधि
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 419 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसीविसो यावि परं सुरुट्ठो किं जीवनासाओ परं नु कुज्जा । आयरियपाया पुन अप्पसन्ना अबोहिआसायण नत्थि मोक्खो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४१८
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 420 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो पावगं जलियमवक्कमेज्जा आसीविसं वा वि हु कोवएज्जा । जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी एसोवमासायणया गुरूणं ॥

Translated Sutra: जो प्रज्वलित अग्नि को मसलता है, आशीविष सर्प को कुपित करता है, या जीवितार्थी होकर विषभक्षण करता है, ये सब उपमाऍं गुरुओं की आशातना के साथ (घटित होती हैं) कदाचित्‌ वह अग्नि न जलाए, कुपित हुआ सर्प भी न डसे, वह हलाहल विष भी न मारे; किन्तु गुरु की अवहेलना से (कदापि) मोक्ष सम्भव नहीं है। सूत्र – ४२०, ४२१
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 421 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिया हु से पावय नो डहेज्जा आसीविसो वा कुविओ न भक्खे । सिया विसं हालहलं न मारे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४२०
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 422 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो पव्वयं सिरसा भेत्तुमिच्छे सुत्तं व सीहं पडिबोहएज्जा । जो वा दए सत्तिअग्गे पहारं एसोवमासायणया गुरूणं ॥

Translated Sutra: जो पर्वत को सिर से फोड़ना चाहता है, सोये हुए सिंह को जगाता है, या जो शक्ति की नोक पर प्रहार करता है, गुरुओं की आशातना करने वाला भी इनके तुल्य है। सम्भव है, कोई अपने सिर से पर्वत का भी भेदन कर दे, कुपित हुआ सिंह भी न खाए अथवा भाले की नोंक भी उसे भेदन न करे; किन्तु गुरु की अवहेलना से मोक्ष (कदापि) सम्भव नहीं है। सूत्र – ४२२,
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-१ Hindi 423 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिया हु सीसेण गिरिं पि भिंदे सिया हु सीहो कुविओ न भक्खे । सिया न भिंदेज्ज व सत्तिअग्गं न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४२२
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