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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 227 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए?
विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति।
ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव।
तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि।
से किं तं दुहविवागाणि?
दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति।
सेत्तं दुहविवागाणि।
से किं तं सुहविवागाणि?
सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया Translated Sutra: विपाकसूत्र क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है – दुःख विपाक और सुख – विपाक। इनमें दुःख – विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख – विपाक में भी दश अध्ययन हैं। यह दुःख विपाक क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दुःख – विपाक में | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 232 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: –सेत्तं पुव्वगए।
से किं तं अणुओगे?
अणुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य।
से किं तं मूलपढमाणुओगे?
मूलपढमाणुओगे–एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चव-णाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलनाणु-प्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो, सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ–संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिमाणं, जिणमनपज्जव-ओहिनाणी सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पातोवगता य जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा मुनिवरुत्तमा तम-रओघ-विप्पमुक्का Translated Sutra: वह अनुयोग क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। जैसे – मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या है ? मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवंतों के पूर्वभव, देवलोकगमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिबिका, प्रव्रज्या, तप, भक्त, केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 234 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवे रासी पन्नत्ता, तं जहा–जीवरासी अजीवरासी य।
अजीवरासी दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– रूविअजीवरासी अरूविअजीवरासी य।
से किं तं अरूविअजीवरासी?
अरूविअजीवरासी दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए। जाव–
से किं तं अनुत्तरोववाइआ?
अनुत्तरोववाइओ पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजित-सव्वट्ठसिद्धिया। सेत्तं अनुत्तरोववाइया। सेत्तं पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी।
दुविहा णेरइया पन्नत्ता, Translated Sutra: दो राशियाँ कही गई हैं – जीवराशि और अजीवराशि। अजीवराशि दो प्रकार की कही गई है – रूपी अजीव – राशि और अरूपी अजीवराशि। अरूपी अजीवराशि क्या है ? अरूपी अजीवराशि दश प्रकार की कही गई है। जैसे – धर्मास्तिकाय यावत् (धर्मास्तिकाय देश, धर्मास्तिकाय प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय देश, अधर्मास्तिकाय प्रदेश, आकाशा | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 263 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं पियरो होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पिता हुए। जैसे १.नाभि – राय, २. जितशत्रु, ३. जितारि, ४. संवर, ५. मेघ, ६. घर, ७. प्रतिष्ठ, ८. महासेन ९. सुग्रीव, १०. दृढ़रथ, ११. विष्णु, १२. वसुपूज्य, १३. कृतवर्मा, १४. सिंहसेन, १५. भानु, १६. विश्वसेन, १७. सूरसेन, १८. सुदर्शन, १९. कुम्भराज, २०. सुमित्र, २१. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 267 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया ।
तित्थप्पवत्तयाणं, एए पियरो जिनवराणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६३ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 268 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी में चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस माताएं हुई हैं। जैसे – १. मरु – देवी, २. विजया, ३. सेना, ४. सिद्धार्था, ५. मंगला, ६. सुसीमा, ७. पृथ्वी, ८. लक्ष्मणा, ९. रामा, १०. नन्दा, ११. विष्णु, १२. जया, १३. श्यामा, १४. सुयशा, १५. सुव्रता, १६. अचिरा, १७. श्री, १८. देवी, १९. प्रभावती, २०. पद्मा, २१. वप्रा, २२. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 270 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुजसा सुव्वय अइरा, सिरिया देवी पभावई ।
पउमा वप्पा सिवा य, वामा तिसला देवी य जिनमाया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६८ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 276 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थकराणं चउवीसं सीया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस शिबिकाएं (पालकियाँ) थीं। (जिन पर बिराजमान होकर तीर्थंकर प्रव्रज्या के लिए वन में गए।) जैसे – १. सुदर्शना शिबिका, २. सुप्रभा, ३. सिद्धार्था, ४. सुप्रसिद्धा, ५. विजया, ६. वैजयन्ती, ७. जयन्ती, ८. अपराजिता, ९. अरुणप्रभा, १०. चन्द्रप्रभा, ११. सूर्यप्रभा, १२. अग्निप्रभा, १३. सुप्रभा, १४. विमला, १५. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 280 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयातो सीयाओ, सव्वेसिं चेव जिनवरिंदाणं ।
सव्वजगवच्छलाणं, सव्वोतुयसुभाए छायाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७६ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 281 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं उक्खित्ता, मानुसेहिं साहट्ठरोमकूवेहिं ।
पच्छा वहंति सीयं, असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥ Translated Sutra: जिन – दिक्षा – ग्रहण करने के लिए जाते समय तीर्थंकरों की इन शिबिकाओं को सबसे पहले हर्ष से रोमांचित मनुष्य अपने कंधों पर उठाकर ले जाते हैं। पीछे असुरेन्द्र, सुरेन्द्र और नागेन्द्र उन शिबिकाओं को लेकर चलते हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 282 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउव्वियाभरणधारी ।
सुरअसुरवंदियाणं, वहंति सीयं जिणिंदाणं ॥ Translated Sutra: चंचल चपल कुण्डलों के धारक और अपनी ईच्छानुसार विक्रियामय आभूषणों को धारण करने वाले वे देवगण सुर – असुरों से वन्दित जिनेन्द्रों की शिबिकाओं को वहन करते हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 285 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेवि एगदूसेण, निग्गया जिनवरा चउवीसं ।
न य नाम अन्नलिंगे, न य गिहिलिंगे कुलिंगे व ॥ Translated Sutra: सभी चौबीसों जिनवर एक दूष्य (इन्द्र – समर्पित दिव्य वस्त्र) से दीक्षा – ग्रहण करने के लिए नीकले थे। न कोई अन्य पाखंडी लिंग से दीक्षित हुआ, न गृहीलिंग से और न कुलिंग से दीक्षित हुआ। (किन्तु सभी जिन – लिंग से ही दीक्षित हुए थे।) | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 286 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एक्को भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहिं-तिहिं सएहिं ।
भयवंपि वासुपुज्जो, छहिं पुरिससएहिं निक्खंतो ॥ Translated Sutra: दीक्षा – ग्रहण करने के लिए भगवान महावीर अकेले ही घर से नीकले थे। पार्श्वनाथ और मल्लि जिन तीन – तीन सौ पुरुषों के साथ नीकले। तथा भगवान वासुपूज्य छह सौ पुरुषों के साथ नीकले थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 288 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुमइत्थ निच्चभत्तेण, निग्गओ वासुपुज्जो जिनो चउत्थेणं ।
पासो मल्ली वि य, अट्ठमेण सेसा उ छट्ठेणं ॥ Translated Sutra: सुमति देव नित्य भक्त के साथ, वासुपूज्य चतुर्थ भक्त के साथ, पार्श्व और मल्ली अष्टमभक्त के साथ और शेष बीस तीर्थंकर षष्ठभक्त के नियम के साथ दीक्षित हुए थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 289 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमभिक्खादया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीसो तीर्थंकरों को प्रथम बार भिक्षा देने वाले चौबीस महापुरुष हुए हैं। जैसे – १. श्रेयांस, २. ब्रह्मदत्त, ३. सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. पद्म, ६. सोमदेव, ७. माहेन्द्र, ८. सोमदत्त, ९. पुष्य, १०. पुनर्वसु, ११. पूर्णनन्द, १२. सुनन्द, १३. जय, १४. विजय, १५. धर्मसिंह, १६. सुमित्र, १७. वर्गसिंह, १८. अपराजित, १९. विश्वसेन, २०. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 293 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एते विसुद्धलेसा, जिनवरभत्तीए पंजलिउडा य ।
तं कालं तं समयं, पडिलाभेई जिनवरिंदे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 296 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेसिंपि जिणाणं, जहियं लद्धाओ पढमभिक्खातो ।
तहियं वसुधाराओ, सरीरमेत्तीओ वुट्ठाओ ॥ Translated Sutra: सभी तीर्थंकर जिनों ने जहाँ जहाँ प्रथम भिक्षा प्राप्त की, वहाँ वहाँ शरीरप्रमाण ऊंची वसुधारा की वर्षा हुई। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 300 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चंपय वउले य तहा, वेडसिरुक्खे धायईरुक्खे ।
साले य वड्ढमाणस्स, चेइयरुक्खा जिनवराणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९७ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 302 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्ने व गाउयाइं, चेइयरुक्खो जिनस्स उसभस्स ।
सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरतो बारसगुणा उ ॥ Translated Sutra: ऋषभ जिन का चैत्यवृक्ष तीन गव्यूति (कोश) ऊंचा था। शेष तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष उनके शरीर की ऊंचाई से बारह गुण ऊंचे थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 303 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सच्छत्ता सपडागा, सवेइया तोरणेहिं उववेया ।
सुरअसुरगरुलमहिया, चेइयरुक्खा जिनवराणं ॥ Translated Sutra: जिनवरों के ये सभी चैत्यवृक्ष छत्र – युक्त, ध्वजा – पताका – सहित, वेदिका – सहित तोरणों से सुशोभित तथा सुरों, असुरों और गरुड़देवों से पूजित थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 304 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसीसा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस प्रथम शिष्य थे। जैसे – १. ऋषभदेव के प्रथम शिष्य ऋषभसेन और अजितजिन के प्रथम शिष्य सिंहसेन थे। पुनः क्रम से ३. चारु, ४. वज्रनाभ, ५. चमर, ६. सुव्रत, ७. विदर्भ, ८. दत्त, ९. वराह, १०. आनन्द, ११. गोस्तुभ, १२. सुधर्म, १३. मन्दर, १४. यश, १५. अरिष्ट, १६. चक्ररथ, १७. स्वयम्भू, १८. कुम्भ, १९. इन्द्र, २०. कुम्भ, २१. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 307 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया ।
तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सा जिनवराणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०४ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 308 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसिस्सिणीओ होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस प्रथम शिष्याएं थीं। जैसे – १. ब्राह्मी, २. फल्गु, ३. श्यामा, ४. अजिता, ५. काश्यपी, ६. रति, ७. सोमा, ८. सुमना, ९. वारुणी, १०. सुलसा, ११. धारिणी, १२. धरणी, १३. धरणिधरा, १४. पद्मा, १५. शिवा, १६. शुचि, १७. अंजुका, १८. भावितात्मा, १९. बन्धुमती, २०. पुष्पवती, २१. आर्या अमिला, २२. यशस्विनी, २३. पुष्पचूला और २४. आर्या | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 311 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जक्खिणी पुप्फचूला य, चंदनऽज्जा य आहिया उदितोदितकुलवंसा ।
विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सी जिनवराणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०८ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 312 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टिपियरो होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के इसी भारत वर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में उत्पन्न हुए चक्रवर्तियों के बारह पिता थे। जैसे – १. ऋषभजिन, २. सुमित्र, ३. विजय, ४. समुद्रविजय, ५. अश्वसेन, ६. विश्वसेन, ७. सूरसेन, ८. कार्तवीर्य, ९. पद्मोत्तर, १०. महाहरि, ११. विजय और १२. ब्रह्म। ये बारह चक्रवर्तियों के पिताओं के नाम हैं। सूत्र – ३१२–३१४ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 356 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदए पेढालपुत्ते य, पोट्टिले सतएति य ।
मुनिसुव्वए य अरहा, सव्वभावविदू जिने ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५५ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-९ |
Gujarati | 13 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पासे णं अरहा नव रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
अभीजिनक्खत्ते साइरेगे नव मुहुत्ते चंदेणं सद्धिं जोगं जोएइ।
अभीजियाइया नव नक्खत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा– अभीजि सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तरापोट्ठवया रेवई अस्सिणी भरणी।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नव जोयणसए उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ।
जंबुद्दीवे णं दीवे नवजोयणिया मच्छा पविसिंसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा।
विजयस्स णं दारस्स एगमेगाए बाहाए नव-नव भोमा पन्नत्ता।
वाणमंतराणं देवाणं सभाओ सुधम्माओ नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ताओ।
दंसणावरणिज्जस्स Translated Sutra: પુરુષાદાનીય પાર્શ્વઅર્હત્ નવ હાથ ઊર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી હતા. અભિજિત્ નક્ષત્ર સાધિક નવ મુહૂર્ત્ત ચંદ્ર સાથે યોગ કરે છે. અભિજિતાદિ નવ નક્ષત્રો ચંદ્ર સાથે ઉત્તરથી યોગને પામે છે. તે – અભિજિત, શ્રવણ યાવત્ ભરણી. રત્નપ્રભા પૃથ્વીના બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગથી ૯૦૦ યોજન ઉર્ધ્વ – ઉપરના ભાગે તારાઓ ચારને ચરે છે. જંબૂદ્વીપ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 356 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदए पेढालपुत्ते य, पोट्टिले सतएति य ।
मुनिसुव्वए य अरहा, सव्वभावविदू जिने ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-३५ |
Gujarati | 111 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पणतीसं सच्चवयणाइसेसा पन्नत्ता।
कुंथू णं अरहा पणतीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
दत्ते णं वासुदेवे पणतीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
नंदने णं बलदेवे पणतीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सोहम्मे कप्पे सुहम्माए सभाए माणवए चेइयक्खंभे हेट्ठा उवरिं च अद्धतेरस-अद्धतेरस जोयणाणि वज्जेत्ता मज्झे पणतीस जोयणेसु वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिन-सकहाओ पन्नत्ताओ।
बिंतियचउत्थीसु–दोसु पुढवीसु पणतीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: સત્ય વચનના અતિશયો ૩૫ – કહ્યા છે. અર્હત્ કુંથુ ૩૫ – ધનુષ ઉર્ધ્વ ઊંચાઈ વડે હતા. દત્ત વાસુદેવ ૩૫ ધનુષ ઉર્ધ્વ ઊંચાઈ વડે હતા. નંદન બલદેવ ૩૫ ધનુષ ઉર્ધ્વ ઊંચાઈથી હતા. સૌધર્મ દેવલોકે સુધર્મા નામની સભામાં માણવક ચૈત્યસ્તંભે નીચે અને ઉપર સાડાબાર – સાડાબાર યોજન વર્જીને મધ્ય ભાગના પાંત્રીશ યોજનમાં વજ્રમય ગોળ વર્તુલાકાર | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-७५ |
Gujarati | 153 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ पन्नत्तरिं जिनसया होत्था।
सीतले णं अरहा पन्नत्तरिं पुव्वसहस्साइं अगारमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारिअं पव्वइए।
संती णं अरहा पन्नत्तरिं वाससहस्साइं अगारवासमज्जावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। Translated Sutra: અરિહંત સુવિધિ – પુષ્પદંતને ૭૫૦૦ સામાન્ય કેવલી હતા. અરિહંત શીતલ ૭૫,૦૦૦ પૂર્વ ગૃહવાસ મધ્યે રહીને મુંડ યાવત્ પ્રવ્રજિત થયા. અરિહંત શાંતિ ૭૫,૦૦૦ વર્ષ ગૃહવાસ મધ્યે રહીને પછી મુંડ થઈને ઘર છોડીને અણગાર પ્રવ્રજિત થયા. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-८३ |
Gujarati | 162 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे बासीइराइंदिएहिं वीइक्कंतेहिं तेयासीइमे राइंदिए वट्टमाणे गब्भाओ गब्भं साहरिए।
सीयलस्स णं अरहओ तेसीति गणा तेसीति गणहरा होत्था।
थेरे णं मंडियपुत्ते तेसीइं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्व-दुक्खप्पहीणे।
उसभे णं अरहा कोसलिए तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारिअं पव्वइए।
भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अनगारमज्झावसित्ता जिने जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी। Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીર ૮૨ – રાત્રિદિન વીત્યા અને ૮૩મો રાત્રિદિન વર્તતો હતો ત્યારે એક ગર્ભથી બીજા ગર્ભમાં સંહરાયા. અરહંત શીતલને ૮૩ – ગણ, ૮૩ – ગણધરો હતા. સ્થવિર મંડલિ પુત્ર ૮૩ વર્ષનુ સર્વાયુ પાળી સિદ્ધ યાવત્ દુઃખ મુક્ત થયા. અરહંત ઋષભ કૌશલિક ૮૩ – લાખ પૂર્વ ગૃહવાસમાં રહી, મુંડ થઈ યાવત્ પ્રવ્રજિત થયા. ચાતુરંત ચક્રવર્તી | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 189 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बंभ-लंतएसु कप्पेसु विमाणा सत्त-सत्त जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त जिनसया होत्था।
समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त वेउव्वियसया होत्था।
अरिट्ठनेमी णं अरहा सत्त वाससयाइं देसूणाइं केवलपरियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स समे धरणितले, एस णं सत्त जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं रुप्पिकूडस्सवि। Translated Sutra: બ્રહ્મ અને લાંતક કલ્પમાં વિમાનો ૭૦૦ – ૭૦૦ યોજન ઊંચા છે. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને ૭૦૦ કેવલી હતા. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને ૭૦૦ વૈક્રિય લબ્ધિધર હતા. અરિષ્ઠનેમિ અરહંત કંઈક ન્યૂન ૭૦૦ વર્ષ કેવલીપર્યાય પાળીને સિદ્ધ, બુદ્ધ યાવત્ સર્વ દુઃખ રહિત થયા. મહાહિમવંત કૂટના ઉપલા ચરમાંતથી મહાહિમવંત વર્ષધર પર્વતના સમભૂમિતલ સુધી | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 215 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवालसंगे गणिपिडगे पन्नत्ते, तं जहा–आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विआहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुए दिट्ठिवाए।
से किं तं आयारे?
आयारे णं समणाणं निग्गंगाणं आयार-गोयर-विनय-वेनइय-ट्ठाण-गमन-चंकमण-पमाण-जोगजुंजण-भासा-समिति-गुत्ती-सेज्जोवहि-भत्तपाण-उग्गम-उप्पायणएसणाविसोहि-सुद्धासुद्धग्ग-हण-वय-नियम-तवोवहाण-सुप्पसत्थमाहिज्जइ।
से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे।
आयारस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा Translated Sutra: બાર અંગરૂપ ગણિપિટક કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – આચાર, સૂત્રકૃત, ઠાણ, સમવાય, વિવાહપ્રજ્ઞપ્તિ, નાયાધમ્મ – કહા, ઉવાસગદસા, અંતગડદસા, અનુત્તરોપપાતિક દશા, પણ્હાવાગરણ, વિપાકશ્રુત, દૃષ્ટિવાદ. તે ‘આચાર’ શું છે ? આચાર સૂત્રમાં શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોના આચાર, ગોચર, વિનય, વૈનયિક, સ્થાન, ગમન, સંક્રમણ, પ્રમાણ, યોગયુંજન, ભાષા, સમિતિ, ગુપ્તિ, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 216 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सूयगडे?
सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइ ज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जर-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमय-मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स किरिया वादिसतस्स चउरासीए वेनइय-वाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेनइयवाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अन्नदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति। Translated Sutra: તે ‘સૂયગડ’ શું છે ? સૂયગડ સૂત્રમાં સ્વસમયની સૂચના કરાય છે. પરસમયની સૂચના કરાય છે. સ્વસમય – પરસમય ની સૂચના કરાય છે. એ રીતે જીવ – અજીવ – જીવાજીવ સૂચિત કરાય છે. લોક – અલોક – લોકાલોક સૂચિત કરાય છે. સૂયગડ માં જીવ – અજીવ – પુન્ય – પાપ – આશ્રવ – સંવર – નિર્જરા – બંધ – મોક્ષ પર્યન્તના પદાર્થો સૂચિત કરાય છે. અલ્પકાળના પ્રવ્રજિત | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 219 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाइणं च परूवणया आघविज्जति।
ठाणस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जु-त्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ।
से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एक्कवीसं उद्देसनकाला एक्कवीसं समुद्देसनकाला बावत्तरिं पयसह-स्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।
से एवं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૧૭ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 220 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समवाए?
समवाए णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवुड्ढीय, दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समायारे आहिज्जति, तत्थ य नानाविहप्पगारा जीवाजीवा य वण्णिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग-तिरिय-मणुय-सुरगणाणं अहारुस्सास-लेस-आवास-संख-आययप्पमाण उववाय-चयन-ओगाहणोहि-वेयण-विहाण-उवओग-जोग-इंदिय-कसाय, विविहा य Translated Sutra: તે ‘સમવાય’ શું છે ? સમવાય સૂત્રમાં સ્વસમય સૂચવાય છે, પરસમય સૂચવાય છે, સ્વસમય – પરસમય સૂચવાય છે, જીવ – અજીવ – જીવાજીવ સૂચવાય છે, લોક – અલોક – લોકાલોક સૂચવાય છે. સમવાયમાં એક આદિથી લઈને એક – એક સ્થાનની પરિવૃદ્ધિ થકી દ્વાદશાંગીરૂપ ગણિપિટકના પર્યવોનું પરિમાણ કહેવાય છે. ૧૦૦ – સ્થાનક પરિમાણ કહે છે. તથા હજાર અને કોટાકોટી | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 221 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वियाहे?
वियाहे णं ससमया वियाहिज्जंति परसमया वियाहिज्जंति ससमयपरसमया वियाहिज्जंति जीवा वियाहिज्जंति अजीवा वियाहि-ज्जंति जीवाजीवा वियाहिज्जंति लोगे वियाहिज्जइ अलोगे वियाहिज्जइ लोगालोगे वियाहिज्जइ। वियाहे णं नाणाविह-सुर-नरिंद-राय-रिसि-विविहसंसइय-पुच्छियाणं जिणेणं वित्थरेण भासियाणं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पदेस-परिणाम-जहत्थिभाव-अणुगम-निक्खेव-नय-प्पमाण-सुनिउणोवक्कम-विविहप्पगार-पागड-पयंसियाणं लोगालोग-पगा-सियाणं संसारसमुद्द-रुंद-उत्तरण-समत्थाणं सुरपति-संपूजियाणं भविय-जणपय-हिययाभिनंदियाणं तमरय-विद्धंसणाणं सुदिट्ठं दीवभूय-ईहा-मतिबुद्धि-वद्धणाणं Translated Sutra: તે વ્યાખ્યા (વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ – ભગવતી) શું છે ? વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ અર્થાત ભગવતી સૂત્રમાં સ્વસમય કહેવાય છે, પરસમય કહેવાય છે, સ્વસમય – પરસમય કહે છે. એ રીતે જીવ – અજીવ – જીવાજીવ કહેવાય છે. લોક – અલોક – લોકાલોક કહેવાય છે. વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ અર્થાત ભગવતી સૂત્રમાં વડે વિવિધ દેવ, નરેન્દ્ર, રાજર્ષિઓના પૂછેલા વિવિધ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 222 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ?
नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसि-ज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।
नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिनसामि-सासनवरे संजम-पइण्ण-पालण-धिइ-मइ-ववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-निसहा-निसट्ठाणं, घोर परीसह-पराजिया-ऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं, Translated Sutra: તે ‘નાયાધમ્મકહા’ શું છે ? ‘નાયાધમ્મકહા’ સૂત્રમાં જ્ઞાતા અર્થાત કથા નાયકોના નગરો, ઉદ્યાનો, ચૈત્ય, વનખંડો, રાજાઓ, માતાપિતા, સમવસરણો, ધર્માચાર્યો, ધર્મકથા, આલોક – પરલોકની ઋદ્ધિ વિશેષ, ભોગ પરિત્યાગ, પ્રવ્રજ્યા, શ્રુતપરિગ્રહણ, તપોપધાન, દીક્ષા પર્યાય, સંલેખના, ભક્ત – પ્રત્યાખ્યાન, પાદોપગમન, દેવલોક ગમન, સુકુલમાં | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 223 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवासगदसाओ?
उवासगदसासु णं उवासयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वनसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, उवासयाणं च सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणयाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थर-धम्मसवणाणि बोहिलाभ-अभिगम-सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा ठिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमा-भिग्गहग्गहणं-पालणा उवसग्गाहियासणा Translated Sutra: તે ‘ઉવાસગદસા’ શું છે ? ઉપાસકદશા સૂત્રમાં ઉપાસકોના નગરો, ઉદ્યાનો, ચૈત્ય, વનખંડો, રાજાઓ, માતાપિતા, સમોસરણો, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આલૌકિક – પરલૌકિક ઋદ્ધિવિશેષ. ઉપાસકોના શીલવ્રત, વિરમણ, ગુણ, પ્રત્યાખ્યાન, પૌષધોપવાસ, એ સર્વેના અંગીકાર, શ્રુતનું ગ્રહણ, તપોપધાન, પ્રતિમા, ઉપસર્ગ, સંલેખના, ભક્તપ્રત્યાખ્યાન, પાદોપગમન, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 224 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअं च सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो उत्तमं च बंभं, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तहं अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हंपि लक्खणाइं।
पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउव्विहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरो Translated Sutra: હવે તે અંતકૃદ્દશા કઈ છે ? અંતકૃદ્દશામાં અંત કરનારના નગરો, ઉદ્યાનો, ચૈત્યો, વર્ણો, રાજા, માતાપિતા, સમોસરણો, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આલૌકિક – પારલૌકિક ઋદ્ધિ વિશેષ, ભોગપરિત્યાગ, પ્રવ્રજ્યા, શ્રુતગ્રહણ, તપ – ઉપધાન, બહુવિધ પ્રતિમા, ક્ષમા – આર્જવ – માર્દવ – શૌચ – સત્ય, ૧૭ ભેદે સંયમ, ઉત્તમ બ્રહ્મચર્ય, અકિંચનતા, તપ, ત્યાગ, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 225 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं Translated Sutra: તે અનુત્તરોપપાતિકદશા કઈ છે ? અનુત્તરોપપાતિકદશામાં અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પન્ન થનારના નગરો, ઉદ્યાનો, ચૈત્યો, વનખંડો, રાજા, માતાપિતા, સમોસરણ, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આલોક – પરલોક સંબંધી ઋદ્ધિ – વિશેષ, ભોગપરિત્યાગ, પ્રવ્રજ્યા, શ્રુતગ્રહણ, તપ – ઉપધાન, પર્યાય, પ્રતિમા, સંલેખના, ભક્ત – પાન પ્રત્યાખ્યાન, પાદોપગમન, અનુત્તરમાં | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 226 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाणि?
पण्हावागरणेसु अट्ठुत्तरं पसिणसयं अट्ठुत्तरं अपसिणसयं अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति।
पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय-पन्नवय-पत्तेयबुद्ध-विविहत्थ-भासा-भासियाणं अतिसय-गुण-उवसम-नाणप्पगार-आयरिय-भासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं विविहवित्थर-भासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खीम-आतिच्चमातियाणं विविहमहापसिण-विज्जा-मनपसिणविज्जा-देवय-पओगपहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयविगुणप्पभाव-नरगणमइ-विम्हयकारीणं अतिसयमतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगमदुर- वगाहस्स Translated Sutra: તે પ્રશ્ન વ્યાકરણ શું છે ? પ્રશ્ન વ્યાકરણમાં ૧૦૮ પ્રશ્ન, ૧૦૮ અપ્રશ્ન, ૧૦૮ પ્રશ્નાપ્રશ્ન, વિદ્યાતિશયો, નાગ – સુવર્ણ કુમારો સાથે દિવ્ય સંવાદો કહેવાય છે. પ્રશ્નવ્યાકરણદશામાં સ્વસમય – પરસમયને કહેનારા પ્રત્યેકબુદ્ધોએ વિવિધ અર્થવાળી ભાષા વડે કહેલ, અતિશય ગુણ, ઉપશમવાળા આચાર્યોએ વિસ્તારથી કહેલ તથા વીર મહર્ષિઓએ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 227 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए?
विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति।
ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव।
तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि।
से किं तं दुहविवागाणि?
दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति।
सेत्तं दुहविवागाणि।
से किं तं सुहविवागाणि?
सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया Translated Sutra: તે વિપાકશ્રુત શું છે ? વિપાકશ્રુતમાં સુકૃત અને દુષ્કૃત કર્મના ફળવિપાક કહેવાય છે. તે સંક્ષેપથી બે પ્રકારે છે – દુઃખવિપાક અને સુખવિપાક. તેમાં દશ દુઃખવિપાક અને દશ સુખવિપાક છે. તે દુઃખવિપાક કેવા છે ? દુઃખવિપાકમાં દુઃખવિપાકી જીવોના નગર, ઉદ્યાન, ચૈત્ય, વનખંડ, રાજા, માતાપિતા, સમવસરણ, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, નગર પ્રવેશ, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 232 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: –सेत्तं पुव्वगए।
से किं तं अणुओगे?
अणुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य।
से किं तं मूलपढमाणुओगे?
मूलपढमाणुओगे–एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चव-णाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलनाणु-प्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो, सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ–संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिमाणं, जिणमनपज्जव-ओहिनाणी सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पातोवगता य जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा मुनिवरुत्तमा तम-रओघ-विप्पमुक्का Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૨૮ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 267 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया ।
तित्थप्पवत्तयाणं, एए पियरो जिनवराणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 270 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुजसा सुव्वय अइरा, सिरिया देवी पभावई ।
पउमा वप्पा सिवा य, वामा तिसला देवी य जिनमाया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 280 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयातो सीयाओ, सव्वेसिं चेव जिनवरिंदाणं ।
सव्वजगवच्छलाणं, सव्वोतुयसुभाए छायाए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 285 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेवि एगदूसेण, निग्गया जिनवरा चउवीसं ।
न य नाम अन्नलिंगे, न य गिहिलिंगे कुलिंगे व ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 288 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुमइत्थ निच्चभत्तेण, निग्गओ वासुपुज्जो जिनो चउत्थेणं ।
पासो मल्ली वि य, अट्ठमेण सेसा उ छट्ठेणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 293 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एते विसुद्धलेसा, जिनवरभत्तीए पंजलिउडा य ।
तं कालं तं समयं, पडिलाभेई जिनवरिंदे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ |