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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 431 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा निगिणा ठिआ, निगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्मं विन्नवेति, रहस्सियं वा मंतं मंतेंति, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी ऐसे उपाश्रय को जाने, जिसकी बस्ती में गृहपति, उसकी पत्नी, पुत्र – पुत्रियाँ यावत्‌ नौकरा – नियाँ आदि नग्न खड़ी रहती हैं या नग्न बैठी रहती हैं, और नग्न होकर गुप्त रूप से मैथुन – धर्म विषयक परस्पर वार्तालाप करती हैं, अथवा किसी रहस्यमय अकार्य के सम्बन्ध में गुप्त – मंत्रणा करती हैं; तो वहाँ प्राज्ञ –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 449 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दस्सुगाय-तणाणि मिलक्खूणि अनारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरि-भोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेवं–ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं ‘अच्छिंदेज्ज वा’, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णोतहप्पगाराणि विरूवरूवाणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिले तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों का आचार समझाया जा सकता है, जिन्हें दुःख से, धर्मबोध देकर अनार्यकर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल में जागने वाले, कुसमय में खाने –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 450 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं– ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा– एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि

Translated Sutra: साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यह जाने कि ये अराजक प्रदेश है, या यहाँ केवल युवराज का शासन है, जो कि अभी राजा नहीं बना है, अथवा दो राजाओं का शासन है, या परस्पर शत्रु दो राजाओं का राज्याधिकार है, या धर्मादि – विरोधी राजा का शासन है, ऐसी स्थिति में विहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते, इस प्रकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 465 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिंडिया गच्छेज्जा। ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा–आउसंतो! समणा! ‘आहर एयं’ वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा–देहि, णिक्खिवाहि। तं नो देज्जा, नो णिक्खिवेज्जा, नो वंदिय-वंदिय जाएज्जा, नो अंजलिं कट्टु जाएज्जा, नो कलुण-पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा। ते णं आमोसगा ‘सयं करणिज्जं’ ति कट्टु अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुंभंति वा, उद्दवंति वा। वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। तं नो गामसंसारियं कुज्जा, नो रायसंसारियं कुज्जा,

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु के पास यदि मार्ग में चोर संगठित होकर आ जाएं और वे कहें कि ‘‘ये वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोंछन आदि लाओ, हमें दे दो, या यहाँ पर रख दो।’ इस प्रकार कहने पर साधु उन्हें वे न दे, और न नीकाल कर भूमि पर रखे। अगर वे बलपूर्वक लेने लगे तो उन्हें पुनः लेने के लिए उनकी स्तुति करके हाथ जोड़कर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 466 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाइं वइ-आयाराइं सोच्चा निसम्म इमाइं अणायाराइं अनायरियपुव्वाइं जाणेज्जा–जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं सावज्जं वज्जेज्जा विवेगमायाए। धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा लभिय णोलभिय, भुंजिय णोभुंजिय, अदुवा आगए अदुवा णोआगए, अदुवा एइ अदुवा नो एइ, अदुवा एहिति अदुवा नो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि नो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि नो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि नो एहिति। अणुवीइ निट्ठाभासी, समियाए

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सूनकर, हृदयंगम करके, पूर्व – मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा – सम्बन्धी अनाचारों को जाने। जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक, जो छल – कपट सहित, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझकर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 468 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा–अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो ति वा, सावगे ति वा, उपासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोव-घाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो एवं वएज्जा–होले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साणे ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चे-याइं तुमं एयाइं ते जणगा वा–एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं आमंतेमाणे आमंतिए

Translated Sutra: साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमंत्रित कर रहे हों और आमंत्रित करने पर भी वह न सूने तो उसे इस प्रकार न कहे – अरे होल रे गोले ! या हे गोल ! अय वृषल ! हे कुपक्ष ! अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर अरे झूठे ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता – पिता हैं। साधु इस प्रकार की सावद्य, सक्रिय यावत्‌ जीवोपघातिनी भाषा न बोले। संयमशील
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन Hindi 470 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं रूवाइं पासेज्जा तहावि ताइं नो एवं वएज्जा, तं जहा–गंडी गंडी ति वा, कुट्ठी कुट्ठी ति वा, रायंसी रायंसी ति वा, अवमारियं अवमारिए ति वा, काणियं काणिए ति वा, ज्झिमियं ज्झिमिए ति वा, कुणियं कुणिए ति वा, खुज्जियं खुज्जिए ति वा, उदरी उदरी ति वा, मूयं भूए ति वा, सूणियं सूणिए ति वा, गिलासिणी गिलासिणी ति वा, वेवई वेवई ति वा, पीढसप्पी पीढसप्पी ति वा, सिलिवयं सिलिवए ति वाव, महुमेहणी महुमेहणी ति वा, हत्थछिन्नं हत्थछिन्ने ति वा, पादछिन्नं पादछिन्ने ति वा, नक्कछिन्नं नक्कछिन्ने ति वा, कण्णछिन्नं कण्णछिन्ने ति वा, ओट्ठछिन्नं ओट्ठछिन्ने ति वा जे यावण्णे

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं तथापि उन्हें देखकर इस प्रकार न कहे। जैसे कि गण्डी माला रोग से ग्रस्त या जिसका पैर सूझ गया हो को गण्डी, कुष्ठ – रोग से पीड़ित को कोढ़िया, यावत्‌ मधुमेह से पीड़ित रोगी को मधुमेही कहकर पुकारना, अथवा जिसका हाथ कटा हुआ है उसे हाथकटा, पैरकटे को पैरकटा, नाक कटा हुआ हो
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 477 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अनासेवियं वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं

Translated Sutra: साधु या साध्वी को यदि वस्त्र के सम्बन्ध में ज्ञात हो जाए कि कोई भावुक गृहस्थ धन के ममत्व से रहित निर्ग्रन्थ साधु को देने की प्रतिज्ञा करके किसी एक साधर्मिक साधु का उद्देश्य रखकर प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके यावत्‌ (पिण्डैषणा समान) अनैषणीय समझकर मिलने पर भी न ले। तथा पिण्डैषणा अध्ययन में जैसे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 480 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा–जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा–तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा। अहावरा दोच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव

Translated Sutra: इन दोषों के आयतनों को छोड़कर चार प्रतिमाओं से वस्त्रैषणा करनी चाहिए। पहली प्रतिमा – वह साधु या साध्वी मन में पहले संकल्प किये हुए वस्त्र की याचना करे, जैसे कि – जांगमिक, भांगिक, सानज, पोत्रक, क्षौमिक या तूलनिर्मित वस्त्र, उस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक और एषणीय होने पर ग्रहण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-६ पात्रैषणा

उद्देशक-१ Hindi 486 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पाय जाणेज्जा, तं जहा–अलाउपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा– तहप्पगारं पायं– जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, नो बीयं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए पाय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा– अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी यदि पात्र ग्रहण करना चाहे तो जिन पात्रों को जाने वे इस प्रकार हैं – तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र और मिट्टी का पात्र। इन तीनों प्रकार के पात्रों को साधु ग्रहण कर सकता है। जो निर्ग्रन्थ तरुण बलिष्ठ स्वस्थ और स्थिर – सहन वाला है, वह इस प्रकार का एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं। वह साधु, साध्वी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा

उद्देशक-१ Hindi 490 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णवेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसं-तस्स ओग्गहे, जाव साहम्मिया ‘एत्ता, ताव’ ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेण सयमेसियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा तेण ते साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवणिमंतेज्जा, नो चेव णं पर-पडियाए उगिज्झिय-उगिज्झिय उवणिमंतेज्जा।

Translated Sutra: साधु पथिकशालाओं, आरामगृहों, गृहस्थ के घरों और परिव्राजकों के आवासों में जाकर पहले साधुओं के आवास योग्य क्षेत्र भलीभाँति देख – सोचकर अवग्रह की याचना करे। उस क्षेत्र या स्थान का जो स्वामी हो, या जो वहाँ का अधिष्ठाता हो उससे इस प्रकार अवग्रह की अनुज्ञा माँगे ‘‘आपकी ईच्छानुसार – जितने समय तक रहने की तथा जितने
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा

उद्देशक-१ Hindi 491 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णवेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसं-तस्स ओग्गहे, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिसामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ साहम्मिया अन्नसंभोइया समणुण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेणं सयमेसियाए पोढे वा, फलए वा, सेज्जा-संथारए वा, तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुण्णे उवणिमंतेज्जा, नो चेव णं पर-वडियाए उगिज्झिय-उगिज्झिय उवणिमंतेज्जा। से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु

Translated Sutra: पथिकशाला आदि अवग्रह को अनुज्ञापूर्वक ग्रहण कर लेने पर, फिर वह साधु क्या करे ? यदि वहाँ अन्य साम्भोगिक, साधर्मिक एवं समनोज्ञ साधु अतिथि रूप में आ जाए तो जो स्वयं गवेषणा करके लाए हुए पीठ, फलक, शय्यासंस्तारक आदि हों, उन्हें उन वस्तुओं के लिए आमंत्रित करें, किन्तु जो दूसरे के द्वारा या रुग्णादि अन्य साधु के लिए लाये
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा

उद्देशक-१ Hindi 492 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणिज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणए, तहप्पगारं ओग्गहं नो ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणिज्जा–थूणंसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, अन्नयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले नो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा–

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे अवग्रह को जाने, जो सचित्त, स्निग्ध पृथ्वी यावत्‌, जीव – जन्तु आदि से युक्त हो, तो इस प्रकार के स्थान की अवग्रह – अनुज्ञा एक बार या अनेक बार ग्रहण न करे। साधु या साध्वी यदि ऐसे अवग्रह को जाने, जो भूमि से बहुत ऊंचा हो, ठूँठ, देहली, खूँटी, ऊखल, मूसल आदि पर टिकाया हुआ एवं ठीक तरह से बंधा हुआ या गड़ा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा

उद्देशक-२ Hindi 493 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा, अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया ‘एत्ता, ताव’ ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ समनाण वा माहनाण वा छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा, तं नो अंतोहिंतो बाहिं णीणेज्जा, बहियाओ वा नो अंतो पवेसेज्जा, नो सुत्तं वा णं पडिबोहेज्जा, नो तेसिं

Translated Sutra: साधु धर्मशाला आदि स्थानों में जाकर, ठहरने के स्थान को देखभाल कर विचारपूर्वक अवग्रह की याचना करे। वह अवग्रह की अनुज्ञा माँगते हुए उक्त स्थान के स्वामी या अधिष्ठाता से कहे कि आपकी ईच्छानुसार – जितने समय तक और जितने क्षेत्र में निवास करने की आप हमें अनुज्ञा देंगे, उतने समय तक और उतने ही क्षेत्र में हम ठहरेंगे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा

उद्देशक-२ Hindi 494 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा अंबवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा, [पायए वा?] सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं अंबं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा–अप्पंडं

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी आम के वन में ठहरना चाहे तो उस आम्रवन का जो स्वामी या अधिष्ठाता हो, उससे अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त करे उतने समय तक, उतने नियत क्षेत्र में आम्रवन में ठहरेंगे, इसी बीच हमारे समागत साधर्मिक भी इसी का अनुसरण करेंगे। अवधि पूर्ण होने के पश्चात्‌ यहाँ से विहार कर जाएंगे। उस आम्रवन में अवग्रहानुज्ञा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा

उद्देशक-२ Hindi 496 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! ते णं भगवया एवमक्खायं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं पंचविहे ओग्गहे पण्णत्ते, तंजहा–देविंदोग्गहे, रायोग्गहे, गाहावइ-ओग्गहे, सागारिय-ओग्गहे, साहम्मिय-ओग्गहे। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।

Translated Sutra: हे आयुष्मन्‌ शिष्य ! मैंने उन भगवान से इस प्रकार कहते हुए सूना है कि इस जिन प्रवचन में स्थविर भगवंतों ने पाँच प्रकार का अवग्रह बताया है, देवेन्द्र – अवग्रह, राजावग्रह, गृहपति – अवग्रह, सागारिक – अवग्रह और साधर्मिक अवग्रह। यही उस भिक्षु या भिक्षुणी का समग्र आचार है, जिसके लिए वह अपने सभी ज्ञानादि आचारों एवं समितियों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक

Hindi 499 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चारपासवण-किरियाए उव्वाहिज्जमाणे सयस्स पायपुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाएज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग -दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए

Translated Sutra: साधु या साध्वी को मल – मूत्र की प्रबल बाधा होने पर अपने पादपुञ्छनक के अभाव में साधर्मिक साधु से उसकी याचना करे। साधु या साध्वी ऐसी स्थण्डिल भूमि को जाने, जो कि अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त है, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर मल – मूत्र विसर्जन न करे। साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो प्राणी, बीज, यावत्‌
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१३ [६] परक्रिया विषयक

Hindi 506 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं–नो तं साइए, नो तं नियमे। ‘से से’ परो पादाइं आमज्जेज्ज वा, ‘पमज्जेज्ज वा’ – नो तं साइए, नो तं नियमे। से से परो पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा – नो तं साइए, नो तं नियमे। से से परो पादाइं फूमेज्ज वा, रएज्ज वा–नो तं साइए, नो तं नियमे। से से परो पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा–नो तं साइए, नो तं नियमे। से से परो पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, नो तं नियमे। से से परो पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा–नो तं साइए, नो तं नियमे। से

Translated Sutra: पर (गृहस्थ के द्वारा) आध्यात्मिकी मुनि के द्वारा कायव्यापार रूपी क्रिया (सांश्लेषिणी) कर्मबन्धन जननी है, (अतः) मुनि उसे मन से भी न चाहे, न उसके लिए वचन से कहे, न ही काया से उसे कराए। कदाचित्‌ कोई गृहस्थ धर्म – श्रद्धावश मुनि के चरणों को वस्त्रादि से थोड़ा – सा पोंछे अथवा बार – बार पोंछ कर, साधु उस परक्रिया को मन से
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 509 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था – १. हत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कंते, २. हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए, ३. हत्थुत्तराहिं जाए, ४. हत्थुत्तराहिं सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, ५. हत्थुत्तराहिं कसिणे पडिपुण्णे अव्वाघाए निरावरणे अणंते अनुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे। साइणा भगवं परिनिव्वुए।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पाँच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। भगवान का उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यवन हुआ, च्यवकर वे गर्भ में उत्पन्न हुए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से गर्भान्तर में संहरण किये गए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान का जन्म हुआ। उत्तराफाल्गुनी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 512 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था। ते णं बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा। तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे, दोनों श्रावक – धर्म का पालन करने वाले थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रावक – धर्म का पालन करके षड्‌जीवनिकाय के संरक्षण के निमित्त आलोचना, आत्मनिन्दा, आत्मगर्हा एवं पाप दोषों का प्रतिक्रमण करके, मूल और उत्तर गुणों के यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 519 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए देवणिकाया, भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं । सव्वजगजीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहि ॥

Translated Sutra: ये सब देव निकाय (आकर) भगवान वीर – जिनेश्वर को बोधित (विज्ञप्त) करते हैं – हे अर्हन्‌ देव ! सर्व जगत के लिए हितकर धर्म – तीर्थ का प्रवर्तन करें।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 535 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ। तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 538 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं तच्चं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं अदिन्नादानं–से गामे वा, नगरे वा, अरण्णे वा, अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गेण्हिज्जा, नेवन्नेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा, अन्नंपि अदिन्नं गेण्हंतं न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–अणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, णोअणणुवीइ-मिओग्गहजाई। केवली बूया–अणणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, अदिन्नं गेण्हेज्जा। अणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, णोअणणुवीइमिओग्गहजाई

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इसके पश्चात्‌ अब मैं तृतीय महाव्रत स्वीकार करता हूँ, इसके सन्दर्भ में मैं सब प्रकार से अदत्ता – दान का प्रत्याख्यान करता हूँ। वह इस प्रकार – वह (ग्राह्य पदार्थ) चाहे गाँव में हो, नगर में हो या अरण्य में हो, थोड़ा हो या बहुत, सूक्ष्म हो या स्थूल, सचेतन हो या अचेतन; उसे उसके स्वामी के बिना दिये न तो स्वयं ग्रहण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 539 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं चउत्थं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं–से दिव्वं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा, नेवन्नेहिं मेहुणं गच्छावेज्जा, अन्नंपि मेहुणं गच्छंतं न समणुज्जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया–निग्गंथे णं अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवली-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ भगवन्‌ ! मैं चतुर्थ महाव्रत स्वीकार करता हूँ, समस्त प्रकार के मैथुन – विषय सेवन का प्रत्या – ख्यान करता हूँ। देव – सम्बन्धी, मनुष्य – सम्बन्धी और तिर्यंच – सम्बन्धी मैथुन का स्वयं सेवन नहीं करूँगा, न दूसरे से मैथुन – सेवन कराऊंगा और न ही मैथुनसेवन करने वाले का अनुमोदन करूँगा। शेष समस्त वर्णन अदत्तादान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 540 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पंचमं भंते! महव्वयं–सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि–से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं गिण्हेज्जा, नेवन्नेहिं परिग्गहं गिण्हावेज्जा, अन्नंपि परिग्गहं गिण्हंतं ण समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–सोयओ जीवे मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेइ। मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं नो सज्जेज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घाय-मावज्जेज्जा। केवली बूया–

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ हे भगवन्‌ ! मैं पाँचवे महाव्रत को स्वीकार करता हूँ। पंचम महाव्रत के संदर्भ में मैं सब प्रकार के परिग्रह का त्याग करता हूँ। आज से मैं थोड़ा या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी प्रकार के परिग्रह को स्वयं ग्रहण नहीं करूँगा, न दूसरों से ग्रहण कराऊंगा, और न परिग्रहण करने वालों का अनुमोदन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 545 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विदू णते धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुनिस्स ज्झायओ । समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो य वड्ढइ ॥

Translated Sutra: अनुत्तर श्रमणधर्मपद में प्रवृत्ति करने वाला जो विद्वान्‌ – कालज्ञ एवं विनीत मुनि होता है, उस तृष्णारहित, धर्मध्यान में संलग्न समाहित – मुनि के तप, प्रज्ञा और यश अग्निशिखा के तेज की भाँति निरंतर बढ़ते रहते हैं।
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Gujarati 17 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं ‘विरूवरूवेहिं सत्थेहिं’ पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसइ। से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे,

Translated Sutra: પૃથ્વીકાયનો સમારંભ અર્થાત્ હિંસા, તે હિંસા કરનાર જીવોને અહિતને માટે થાય છે, અબોધી અર્થાત્ બોધી બીજના નાશને માટે થાય છે. જે સાધુ આ વાતને સારી રીતે સમજે છે, તે સંયમ – સાધનામાં તત્પર થઈ જાય છે. ભગવંત અને શ્રમણના મુખેથી ધર્મશ્રવણ કરીને કેટલાક મનુષ્યો એવું જાણે છે કે – આ પૃથ્વીકાયની હિંસા ગ્રંથિ અર્થાત્ કર્મબંધનું
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 24 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं सुबंज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं ‘विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અપ્‌કાયના જીવોની અનેક પ્રકારના શસ્ત્રો દ્વારા સમારંભ કરતા બીજા જીવોની પણ હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહેલ છે. અજ્ઞાની જીવ આ ક્ષણિક જીવિતના
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 37 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव अगणि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेहिं नायं भवति– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી અગ્નિકાયના સમારંભ દ્વારા અગ્નિકાય જીવોની તથા અન્ય અનેક પ્રકારના જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહેલ છે કે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 46 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वगेणरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाती-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा वणस्सइ-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી વનસ્પતિ કર્મ સમારંભથી વનસ્પતિ જીવોની હિંસા કરતા બીજા પણ અનેક જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહ્યો છે. આ જીવનને
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Gujarati 53 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संति पाणा पुढो सिया। लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकाय-समारंभेणं तसकाय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव तसकाय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा तसकाय-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा तसकाय-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं ‘वा अंतिए’ इहमेगेसिं नायं भवइ– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી ત્રસકાયના સમારંભ દ્વારા ત્રસકાય જીવોની હિંસા કરતા તેઓ બીજા અનેક પ્રકારના જીવોની પણ હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં નિશ્ચયથી ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Gujarati 58 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह संतिगया दविया, नावकंखंति वीजिउं

Translated Sutra: આ જૈનશાસનમાં આવેલ, શાંતિને પ્રાપ્ત થયેલ સંયમી મુનિ વાયુકાયની હિંસા કરી જીવવાની ઇચ્છા ન કરે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Gujarati 59 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव वाउ-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा वाउ-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा वाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवइ–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી વાયુકાયનો સમારંભ કરતા વાયુજીવોની હિંસા કરવા વડે તેના આશ્રિત અન્ય અનેક જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક બતાવેલ
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Gujarati 71 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खणं जाणाहि पंडिए।

Translated Sutra: હે પંડિત ! અર્થાત્ હે જીવ ! તું ક્ષણને એટલે કે ધર્માનુષ્ઠાનના અવસરને ઓળખ.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Gujarati 86 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे। तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु। जेण सिया तेण णोसिया। इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा। थीभि लोए पव्वहिए। ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं। से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए। उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे। अलं कुसलस्स पमाएणं। संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए। नालं पास। अलं ते एएहिं।

Translated Sutra: હે ધીર પુરૂષ ! તું વિષયભોગની આશા અને સંકલ્પ છોડી દે – આ ભોગશલ્યનું સર્જન તેં જ કર્યું છે. જે ભોગથી સુખ છે, તેનાથી જ દુઃખ પણ છે. આ વાત મોહથી ઘેરાયેલો મનુષ્ય સમજી શકતો નથી. આ સંસારના પ્રાણીઓ સ્ત્રીઓના મોહથી પરાજિત છે. હે પુરૂષ ! તે લોકો કહે છે કે આ સ્ત્રીઓ ભોગની સામગ્રી છે. આ કથન દુઃખ, મોહ, મૃત્યુ, નરકનાં કારણરૂપ છે. તથા
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Gujarati 87 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एयं पास मुनि! महब्भयं। नाइवाएज्ज कंचणं। एस वीरे पसंसिए, जे न निविज्जति आदाणाए। ‘न मे देति’ न कुप्पिज्जा, थोवं लद्धुं न खिंसए। ‘पडिसेहिओ परिणमिज्जा’। एयं मोणं समणुवासेज्जासि।

Translated Sutra: હે મુનિ ! આ ભોગોને મહાભયરૂપ સમજ. કોઈના પ્રાણની હિંસા ન કરો, જે સંયમથી ઉદ્વેગ ન પામે તે વીર પ્રશંસાને પામે છે. કોઈ કંઈ ન આપે તો કોપ ન કરે, અલ્પ પ્રાપ્ત થાય તો નિંદા ન કરે, ગૃહસ્થ ના પાડે ત્યારે ત્યાંથી પાછા ફરી જવું જોઈએ. મુનિ આ મુનિ ધર્મનું સમ્યક્‌ પાલન કરે. તેમ હું કહું છું.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Gujarati 93 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अन्नहा णं पासए परिहरेज्जा’। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले णोवलिंपिज्जासि

Translated Sutra: આ પ્રકારે જોઈને – વિચારીને અર્થાત્ ધર્મોપકરણને માત્ર સંયમનું સાધન સમજી પરિગ્રહનો ત્યાગ કરે. આ માર્ગ તીર્થંકરોએ બતાવેલ છે. જેથી કુશલ પુરૂષ પરિગ્રહમાં ન લેપાય. તેમ હું કહું છું.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Gujarati 95 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ। गढिए अणुपरियट्टमाणे। संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं। एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए। जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो। अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताइं। पंडिए पडिलेहाए।

Translated Sutra: દીર્ઘદર્શી અર્થાત્ આ – લોક પર – લોકના દુઃખને જોનાર, અને લોકદર્શી અર્થાત્ લોકના સ્વરૂપને જાણનાર – પુરુષ લોકના અધોભાગને, ઉર્ધ્વભાગને, તિર્છાભાગને જાણે છે. વિષયમાં આસક્ત લોકો સંસારમાં વારંવાર ભ્રમણ કરે છે. જે ‘સંધિ’ અર્થાત્ ધર્મના અવસરને જાણીને વિષયોથી દૂર રહે તે વીર છે, પ્રશંસનીય છે. જે સંસાર બંધનમાં બંધાયેલને
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Gujarati 104 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुव्वसु मुनी अणाणाए। तुच्छए गिलाइ वत्तए। एस वीरे पसंसिए। अच्चेइ लोयसंजोयं। एस णाए पवुच्चइ।

Translated Sutra: જિન આજ્ઞા ન માનનાર, સ્વેચ્છાચારી મુનિ મોક્ષગમન માટે અયોગ્ય છે. તે ધર્મકથનમાં ગ્લાનિ પામે છે કેમ કે તે તુચ્છ છે અર્થાત્ જ્ઞાન આદિથી રહિત છે. તે સાધક ‘વીર’ પ્રશસ્ય છે જે લોક સંયોગ અર્થાત્ ધન, પરિવાર આદિ સંસારની જંજાળથી દૂર થઇ જાય છે. તીર્થંકર દ્વારા પ્રરૂપિત આ જ માર્ગને ન્યાય્યમાર્ગ કહેલ છે.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Gujarati 105 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं, तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति। इति कम्म परिण्णाय सव्वसो। जे अनन्नदंसी, से अणण्णारामे। जे अणण्णारामे, से अनन्नदंसी॥ जहा पुण्णस्स कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ । जहा तुच्छस्स कत्थइ, तहा पुण्णस्स कत्थइ ॥

Translated Sutra: અહીં મનુષ્યોના જે દુઃખો અથવા દુઃખના કારણો બતાવ્યા છે. તેનાથી મુક્ત થવાનો માર્ગ તીર્થંકરો દેખાડે છે. દુઃખના આ કારણોને જાણીને, પ્રત્યાખ્યાન દ્વારા તેનો સર્વ પ્રકારે ત્યાગ કરવો સંયમ ગ્રહણ કરવો). જૈન સિવાયના તત્ત્વને માને તે અન્યદર્શી અને વસ્તુ તત્ત્વનાં યથાર્થ સ્વરૂપને જાણનાર તે અનન્યદર્શી, આવો સમ્યગ્દ્રષ્ટિ,
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Gujarati 106 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अवि य हणे अनादियमाणे। एत्थंपि जाण, सेयंति नत्थि। के यं पुरिसे? कं च नए? एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए। उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिण्णचारी। न लिप्पई छणपएण वीरे। से मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे, जे य बंधप्पमोक्खमन्नेसि। कुसले पुण नोबद्धे, नोमुक्के।

Translated Sutra: ધર્મોપદેશ સમયે ક્યારેક કોઈ શ્રોતા પોતાનાં સિદ્ધાંત કે મતનો અનાદર થવાથી ક્રોધિત થઇ ઉપદેશકને મારવા લાગે, તો ધર્મકથા કરનાર એમ જાણે કે અહીં ધર્મકથા કરવી કલ્યાણકારી નથી. ઉપદેશકે પહેલાં એ જાણવું જોઈએ કે – શ્રોતા કોણ છે ? તે ક્યા દેવને કે ક્યા સિદ્ધાંતને માને છે? ઉર્ધ્વદિશામાં રહેલ – જ્યોતિષ્ક આદિ, અધોદિશામાં રહેલ
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Gujarati 111 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से ‘आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बंभवं’। पण्णाणेहिं परियाणइ लोयं, ‘मुनीति वच्चे’, धम्मविउत्ति अंजू। आवट्टसोए संगमभिजाणति।

Translated Sutra: જેણે આ શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ, સ્પર્શને યથાર્થપણે જાણી લીધા છે. તે જ આત્મ સ્વરૂપનો જ્ઞાતા, જ્ઞાની, શાસ્ત્રવેત્તા, ધર્મવાન્‌, બ્રહ્મજ્ઞાની છે. તે પ્રજ્ઞા વડે સમગ્ર લોકને જાણે છે; તે મુનિ કહેવાય છે. તે ધર્મને જાણનાર, સરળ હૃદયી મુનિ સંસાર, આશ્રવ અને કર્મબંધનાં સ્વરૂપને જાણે છે.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Gujarati 112 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सीओसिनच्चाई से निग्गंथे अरइ-रइ-सहे फरुसियं णोवेदेति। जागर-वेरोवरए वीरे। एवं दुक्खा पमोक्खसि। जरामच्चुवसोवणीए नरे, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणति।

Translated Sutra: તે નિર્ગ્રન્થ – મુનિ સુખ – દુઃખના ત્યાગી છે, અરતિ – રતિ સહન કરે છે. તેઓ કષ્ટ અને દુઃખનું વેદન કરતા નથી. તેઓ સદા જાગૃત રહે છે, વૈરથી દૂર રહે છે. હે વીર ! એ રીતે સંસારરૂપ દુઃખથી મુક્તિ પામીશ. વૃદ્ધત્વ અને મૃત્યુને વશ થયેલ મનુષ્ય સતત મૂઢ રહે છે તે ધર્મને જાણી શકતો નથી.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Gujarati 113 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पासिय आउरे पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए। मंता एयं मइमं! पास। आरंभजं दुक्खमिणं ति नच्चा। माई पमाई पुनरेइ गब्भं। उवेहमानो सद्द-रूवेसु अंजू, माराभिसंकी मरणा पमुच्चति। अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहिं, वीरे आयगुत्ते ‘जे खेयण्णे’। जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे। अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ। कम्मुणा उवाही जायइ। कम्मं च पडिलेहाए।

Translated Sutra: સંસારમાં મનુષ્યને દુઃખથી પીડાતા જોઈને સાધક સતત અપ્રમત્ત બની સંયમમાં વિચરે. હે મતિમાન્‌ ! મનન કરી તું આ દુઃખી પ્રાણીને જો. તેઓના આ બધાં દુઃખ આરંભ અર્થાત્ હિંસાજનિત છે. તે જાણી તું અનારંભી બન. માયાવી, પ્રમાદી કષાયી પ્રાણી વારંવાર જન્મ – મરણ કરે છે. પરંતુ જે શબ્દાદિ વિષયમાં રાગ – દ્વેષ કરતા નથી, ઋજુતા આર્જવતા આદિ
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Gujarati 125 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संधिं लोगस्स जाणित्ता। आयओ बहिया पास। तम्हा न हंता न विघायए। जमिणं अन्नमन्नवितिगिच्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्मं, किं तत्थ मुनी कारणं सिया?

Translated Sutra: હે સાધક! ધર્માનુષ્ઠાન – રૂપ સુઅવસર જાણીને પ્રાણીઓને દુખ આપવા રૂપ પ્રમાદ ન કરે. પ્રત્યેક જીવોને પોતાના આત્મા સમાન જ જુએ. તેથી સ્વયં જીવ હિંસા ન કરે, ન અન્ય પાસે હિંસા કરાવે. શ્રમણ થઈ જે એકબીજાની આશંકાથી, શરમથી કે ભયથી પાપકર્મ કરતો નથી તો પાપકર્મ ન કરવાપણામાં શું એ તેનું મુનિપણું કારણભૂત કહેવાય? ના ન કહેવાય)
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Gujarati 131 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेज्जा दूरालइयं । जं जाणेज्जा दूरालइयं, तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥ पुरिसा! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि। पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि। सच्चस्स आणाए ‘उवट्ठिए से’ मेहावी मारं तरति। सहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति।

Translated Sutra: જે કર્મોને દૂર કરનાર છે તે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે અને જે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે તે કર્મોને દૂર કરનાર છે, એવું સમજીને હે પુરૂષ ! તું પોતાના આત્માનો નિગ્રહ કર, એમ કરવાથી તું દુઃખકર્મ) મુક્ત થઈશ. તું સત્યનું સેવન કર. કેમ કે સત્યની આજ્ઞામાં રહેનાર મેઘાવી સાધક સંસારને તરી જાય છે અને ધર્મનું યથાર્થ પાલન કરીને
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-४ कषाय वमन Gujarati 138 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी। जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी। जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी। जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी। जे जम्म-दंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से निरयदंसी। जे निरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी। से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च, गब्भं च, जम्मं च, मारं च, नरगं च, तिरियं च, दुक्खं च। एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स। आयाणं णिसिद्धा सगडब्भि। किमत्थि उवाही पासगस्स न विज्जइ? नत्थि।

Translated Sutra: જે ક્રોધના અનર્થકારી સ્વરૂપને જાણે છે અને તેનો પરિત્યાગ કરે છે તે માનદર્શી છે અર્થાત્ માનને પણ જાણે છે અને ત્યાગ કરે છે, એ જ પ્રમાણે જે માનદર્શી છે તે માયાને જાણીને તજે છે, જે માયાદર્શી છે તે લોભદર્શી છે, જે લોભદર્શી છે તે રાગદર્શી છે, જે રાગદર્શી છે તે દ્વેષદર્શી છે, જે દ્વેષદર્શી છે તે મોહદર્શી છે, જે મોહદર્શી
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ सम्यक्वाद Gujarati 139 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–जे अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघेतव्वा, न परितावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा। एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए। तं जहा–उट्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा। उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा। उवरयदंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा। सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा। संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा। तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सिं चेयं पवुच्चइ।

Translated Sutra: હે જમ્બૂ! હું તીર્થંકરના વચનથી કહું છું – ભૂતકાળમાં થયેલા, વર્તમાનમાં છે તે અને ભાવિમાં થશે તે બધા તીર્થંકર ભગવંતો આ પ્રમાણે કહે છે, આવું બોલે છે, આવું પ્રજ્ઞાપન કરે છે, પ્રરૂપણા કરે છે કે સર્વે પ્રાણી, સર્વે ભૂતો, સર્વે જીવો અને સર્વે સત્ત્વોને મારવા નહીં, તેના પર હૂકમ ન કરવો, નોકરની જેમકબજામાં ન રાખવા, ન સંતાપ
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ सम्यक्वाद Gujarati 140 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं आइइत्तु न णिहे न निक्खिवे, जाणित्तु धम्मं जहा तहा। दिट्ठेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा। नो लोगस्सेसणं चरे।

Translated Sutra: ધર્મના યથાર્થ સ્વરૂપને જાણીને તેના પર શ્રદ્ધા કરી પ્રમાદી ન થાય, તેનો ત્યાગ ન કરે. ધર્મનું જેવું સ્વરૂપ છે, તેવું જાણીને તેનું આચરણ કરે, પ્રાપ્ત વિષયોમાં વિરક્તિ પ્રાપ્ત કરે અને લોકૈષણા – સંસારપ્રવાહમાં ભટકે નહીં.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ सम्यक्वाद Gujarati 141 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स नत्थि इमा णाई, अण्णा तस्स कओ सिया? दिट्ठं सुयं मयं विण्णायं, जमेयं परिकहिज्जइ। समेमाणा पलेमाणा, पुणो-पुनो जातिं पकप्पेंति।

Translated Sutra: જે સાધકને લોકૈષણા અર્થાત્ કામ – ભોગ આદિ સંસાર – પ્રવાહ નથી તેનાથી અન્ય સાવદ્ય પ્રવૃત્તિ કેમ થઈ શકે ? આ જે અહિંસાધર્મ કહેવાયછે તે સર્વ ભગવંતોએ કેવળજ્ઞાન દ્વારા જોયેલ છે, શ્રોતા દ્વારા સાંભળેલ છે, ભવ્ય જીવોએ માનેલ છે, સર્વજ્ઞ એ અનુભવેલ છે જે સંસારમાં અતિ આસક્ત, વિષયમાં લીન રહે છે તે વારંવાર સંસારમાં પરિભ્રમણ
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