Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 512 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था। ते णं बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा। तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे, दोनों श्रावक – धर्म का पालन करने वाले थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रावक – धर्म का पालन करके षड्जीवनिकाय के संरक्षण के निमित्त आलोचना, आत्मनिन्दा, आत्मगर्हा एवं पाप दोषों का प्रतिक्रमण करके, मूल और उत्तर गुणों के यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 519 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एए देवणिकाया, भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं ।
सव्वजगजीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहि ॥ Translated Sutra: ये सब देव निकाय (आकर) भगवान वीर – जिनेश्वर को बोधित (विज्ञप्त) करते हैं – हे अर्हन् देव ! सर्व जगत के लिए हितकर धर्म – तीर्थ का प्रवर्तन करें। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 535 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ।
तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 539 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं चउत्थं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं–से दिव्वं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा, नेवन्नेहिं मेहुणं गच्छावेज्जा, अन्नंपि मेहुणं गच्छंतं न समणुज्जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति।
तत्थिमा पढमा भावणा–नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया–निग्गंथे णं अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवली-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं Translated Sutra: इसके पश्चात् भगवन् ! मैं चतुर्थ महाव्रत स्वीकार करता हूँ, समस्त प्रकार के मैथुन – विषय सेवन का प्रत्या – ख्यान करता हूँ। देव – सम्बन्धी, मनुष्य – सम्बन्धी और तिर्यंच – सम्बन्धी मैथुन का स्वयं सेवन नहीं करूँगा, न दूसरे से मैथुन – सेवन कराऊंगा और न ही मैथुनसेवन करने वाले का अनुमोदन करूँगा। शेष समस्त वर्णन अदत्तादान | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 540 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पंचमं भंते! महव्वयं–सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि–से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं गिण्हेज्जा, नेवन्नेहिं परिग्गहं गिण्हावेज्जा, अन्नंपि परिग्गहं गिण्हंतं ण समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति।
तत्थिमा पढमा भावणा–सोयओ जीवे मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेइ। मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं नो सज्जेज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घाय-मावज्जेज्जा। केवली बूया– Translated Sutra: इसके पश्चात् हे भगवन् ! मैं पाँचवे महाव्रत को स्वीकार करता हूँ। पंचम महाव्रत के संदर्भ में मैं सब प्रकार के परिग्रह का त्याग करता हूँ। आज से मैं थोड़ा या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी प्रकार के परिग्रह को स्वयं ग्रहण नहीं करूँगा, न दूसरों से ग्रहण कराऊंगा, और न परिग्रहण करने वालों का अनुमोदन | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-४ अध्ययन-१६ विमुक्ति |
Hindi | 545 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विदू णते धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुनिस्स ज्झायओ ।
समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो य वड्ढइ ॥ Translated Sutra: अनुत्तर श्रमणधर्मपद में प्रवृत्ति करने वाला जो विद्वान् – कालज्ञ एवं विनीत मुनि होता है, उस तृष्णारहित, धर्मध्यान में संलग्न समाहित – मुनि के तप, प्रज्ञा और यश अग्निशिखा के तेज की भाँति निरंतर बढ़ते रहते हैं। | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-२ पृथ्वीकाय | Gujarati | 17 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं ‘विरूवरूवेहिं सत्थेहिं’ पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसइ।
से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, Translated Sutra: પૃથ્વીકાયનો સમારંભ અર્થાત્ હિંસા, તે હિંસા કરનાર જીવોને અહિતને માટે થાય છે, અબોધી અર્થાત્ બોધી બીજના નાશને માટે થાય છે. જે સાધુ આ વાતને સારી રીતે સમજે છે, તે સંયમ – સાધનામાં તત્પર થઈ જાય છે. ભગવંત અને શ્રમણના મુખેથી ધર્મશ્રવણ કરીને કેટલાક મનુષ્યો એવું જાણે છે કે – આ પૃથ્વીકાયની હિંસા ગ્રંથિ અર્થાત્ કર્મબંધનું | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Gujarati | 24 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास।
अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे
विहिंसति।
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।
से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं सुबंज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं ‘विरूवरूवेहिं Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અપ્કાયના જીવોની અનેક પ્રકારના શસ્ત્રો દ્વારા સમારંભ કરતા બીજા જીવોની પણ હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહેલ છે. અજ્ઞાની જીવ આ ક્ષણિક જીવિતના | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-४ अग्निकाय | Gujarati | 37 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास।
अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।
से सयमेव अगणि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेहिं नायं भवति– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं विरूवरूवेहिं Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી અગ્નિકાયના સમારંભ દ્વારા અગ્નિકાય જીવોની તથા અન્ય અનેક પ્રકારના જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહેલ છે કે | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-५ वनस्पतिकाय | Gujarati | 46 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास।
अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वगेणरूवे पाणे विहिंसति।
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाती-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।
से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा वणस्सइ-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી વનસ્પતિ કર્મ સમારંભથી વનસ્પતિ જીવોની હિંસા કરતા બીજા પણ અનેક જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહ્યો છે. આ જીવનને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-६ त्रसकाय | Gujarati | 53 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] संति पाणा पुढो सिया।
लज्जमाणा पुढो पास।
अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकाय-समारंभेणं तसकाय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति।
तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेइया।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।
से सयमेव तसकाय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा तसकाय-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा तसकाय-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा भगवओ, अनगाराणं ‘वा अंतिए’ इहमेगेसिं नायं भवइ– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી ત્રસકાયના સમારંભ દ્વારા ત્રસકાય જીવોની હિંસા કરતા તેઓ બીજા અનેક પ્રકારના જીવોની પણ હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં નિશ્ચયથી ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-७ वायुकाय | Gujarati | 58 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इह संतिगया दविया, नावकंखंति वीजिउं Translated Sutra: આ જૈનશાસનમાં આવેલ, શાંતિને પ્રાપ્ત થયેલ સંયમી મુનિ વાયુકાયની હિંસા કરી જીવવાની ઇચ્છા ન કરે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-७ वायुकाय | Gujarati | 59 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास।
अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति।
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।
से सयमेव वाउ-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा वाउ-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा वाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवइ–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી વાયુકાયનો સમારંભ કરતા વાયુજીવોની હિંસા કરવા વડે તેના આશ્રિત અન્ય અનેક જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક બતાવેલ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-१ स्वजन | Gujarati | 71 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खणं जाणाहि पंडिए। Translated Sutra: હે પંડિત ! અર્થાત્ હે જીવ ! તું ક્ષણને એટલે કે ધર્માનુષ્ઠાનના અવસરને ઓળખ. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-४ भोगासक्ति | Gujarati | 86 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे।
तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु।
जेण सिया तेण णोसिया।
इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा।
थीभि लोए पव्वहिए।
ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं।
से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए।
उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे।
अलं कुसलस्स पमाएणं।
संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए।
नालं पास।
अलं ते एएहिं। Translated Sutra: હે ધીર પુરૂષ ! તું વિષયભોગની આશા અને સંકલ્પ છોડી દે – આ ભોગશલ્યનું સર્જન તેં જ કર્યું છે. જે ભોગથી સુખ છે, તેનાથી જ દુઃખ પણ છે. આ વાત મોહથી ઘેરાયેલો મનુષ્ય સમજી શકતો નથી. આ સંસારના પ્રાણીઓ સ્ત્રીઓના મોહથી પરાજિત છે. હે પુરૂષ ! તે લોકો કહે છે કે આ સ્ત્રીઓ ભોગની સામગ્રી છે. આ કથન દુઃખ, મોહ, મૃત્યુ, નરકનાં કારણરૂપ છે. તથા | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-४ भोगासक्ति | Gujarati | 87 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एयं पास मुनि! महब्भयं।
नाइवाएज्ज कंचणं।
एस वीरे पसंसिए, जे न निविज्जति आदाणाए।
‘न मे देति’ न कुप्पिज्जा, थोवं लद्धुं न खिंसए।
‘पडिसेहिओ परिणमिज्जा’।
एयं मोणं समणुवासेज्जासि। Translated Sutra: હે મુનિ ! આ ભોગોને મહાભયરૂપ સમજ. કોઈના પ્રાણની હિંસા ન કરો, જે સંયમથી ઉદ્વેગ ન પામે તે વીર પ્રશંસાને પામે છે. કોઈ કંઈ ન આપે તો કોપ ન કરે, અલ્પ પ્રાપ્ત થાય તો નિંદા ન કરે, ગૃહસ્થ ના પાડે ત્યારે ત્યાંથી પાછા ફરી જવું જોઈએ. મુનિ આ મુનિ ધર્મનું સમ્યક્ પાલન કરે. તેમ હું કહું છું. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-५ लोकनिश्रा | Gujarati | 95 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ।
गढिए अणुपरियट्टमाणे।
संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं।
एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए।
जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो।
अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताइं।
पंडिए पडिलेहाए। Translated Sutra: દીર્ઘદર્શી અર્થાત્ આ – લોક પર – લોકના દુઃખને જોનાર, અને લોકદર્શી અર્થાત્ લોકના સ્વરૂપને જાણનાર – પુરુષ લોકના અધોભાગને, ઉર્ધ્વભાગને, તિર્છાભાગને જાણે છે. વિષયમાં આસક્ત લોકો સંસારમાં વારંવાર ભ્રમણ કરે છે. જે ‘સંધિ’ અર્થાત્ ધર્મના અવસરને જાણીને વિષયોથી દૂર રહે તે વીર છે, પ્રશંસનીય છે. જે સંસાર બંધનમાં બંધાયેલને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Gujarati | 104 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दुव्वसु मुनी अणाणाए। तुच्छए गिलाइ वत्तए। एस वीरे पसंसिए।
अच्चेइ लोयसंजोयं। एस णाए पवुच्चइ। Translated Sutra: જિન આજ્ઞા ન માનનાર, સ્વેચ્છાચારી મુનિ મોક્ષગમન માટે અયોગ્ય છે. તે ધર્મકથનમાં ગ્લાનિ પામે છે કેમ કે તે તુચ્છ છે અર્થાત્ જ્ઞાન આદિથી રહિત છે. તે સાધક ‘વીર’ પ્રશસ્ય છે જે લોક સંયોગ અર્થાત્ ધન, પરિવાર આદિ સંસારની જંજાળથી દૂર થઇ જાય છે. તીર્થંકર દ્વારા પ્રરૂપિત આ જ માર્ગને ન્યાય્યમાર્ગ કહેલ છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Gujarati | 105 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं, तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति।
इति कम्म परिण्णाय सव्वसो।
जे अनन्नदंसी, से अणण्णारामे। जे अणण्णारामे, से अनन्नदंसी॥
जहा पुण्णस्स कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ । जहा तुच्छस्स कत्थइ, तहा पुण्णस्स कत्थइ ॥ Translated Sutra: અહીં મનુષ્યોના જે દુઃખો અથવા દુઃખના કારણો બતાવ્યા છે. તેનાથી મુક્ત થવાનો માર્ગ તીર્થંકરો દેખાડે છે. દુઃખના આ કારણોને જાણીને, પ્રત્યાખ્યાન દ્વારા તેનો સર્વ પ્રકારે ત્યાગ કરવો સંયમ ગ્રહણ કરવો). જૈન સિવાયના તત્ત્વને માને તે અન્યદર્શી અને વસ્તુ તત્ત્વનાં યથાર્થ સ્વરૂપને જાણનાર તે અનન્યદર્શી, આવો સમ્યગ્દ્રષ્ટિ, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Gujarati | 106 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अवि य हणे अनादियमाणे। एत्थंपि जाण, सेयंति नत्थि।
के यं पुरिसे? कं च नए?
एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए।
उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिण्णचारी।
न लिप्पई छणपएण वीरे।
से मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे, जे य बंधप्पमोक्खमन्नेसि।
कुसले पुण नोबद्धे, नोमुक्के। Translated Sutra: ધર્મોપદેશ સમયે ક્યારેક કોઈ શ્રોતા પોતાનાં સિદ્ધાંત કે મતનો અનાદર થવાથી ક્રોધિત થઇ ઉપદેશકને મારવા લાગે, તો ધર્મકથા કરનાર એમ જાણે કે અહીં ધર્મકથા કરવી કલ્યાણકારી નથી. ઉપદેશકે પહેલાં એ જાણવું જોઈએ કે – શ્રોતા કોણ છે ? તે ક્યા દેવને કે ક્યા સિદ્ધાંતને માને છે? ઉર્ધ્વદિશામાં રહેલ – જ્યોતિષ્ક આદિ, અધોદિશામાં રહેલ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-१ भावसुप्त | Gujarati | 111 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से ‘आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बंभवं’।
पण्णाणेहिं परियाणइ लोयं, ‘मुनीति वच्चे’, धम्मविउत्ति अंजू।
आवट्टसोए संगमभिजाणति। Translated Sutra: જેણે આ શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ, સ્પર્શને યથાર્થપણે જાણી લીધા છે. તે જ આત્મ સ્વરૂપનો જ્ઞાતા, જ્ઞાની, શાસ્ત્રવેત્તા, ધર્મવાન્, બ્રહ્મજ્ઞાની છે. તે પ્રજ્ઞા વડે સમગ્ર લોકને જાણે છે; તે મુનિ કહેવાય છે. તે ધર્મને જાણનાર, સરળ હૃદયી મુનિ સંસાર, આશ્રવ અને કર્મબંધનાં સ્વરૂપને જાણે છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-१ भावसुप्त | Gujarati | 112 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सीओसिनच्चाई से निग्गंथे अरइ-रइ-सहे फरुसियं णोवेदेति।
जागर-वेरोवरए वीरे।
एवं दुक्खा पमोक्खसि।
जरामच्चुवसोवणीए नरे, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणति। Translated Sutra: તે નિર્ગ્રન્થ – મુનિ સુખ – દુઃખના ત્યાગી છે, અરતિ – રતિ સહન કરે છે. તેઓ કષ્ટ અને દુઃખનું વેદન કરતા નથી. તેઓ સદા જાગૃત રહે છે, વૈરથી દૂર રહે છે. હે વીર ! એ રીતે સંસારરૂપ દુઃખથી મુક્તિ પામીશ. વૃદ્ધત્વ અને મૃત્યુને વશ થયેલ મનુષ્ય સતત મૂઢ રહે છે તે ધર્મને જાણી શકતો નથી. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-१ भावसुप्त | Gujarati | 113 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पासिय आउरे पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए।
मंता एयं मइमं! पास।
आरंभजं दुक्खमिणं ति नच्चा।
माई पमाई पुनरेइ गब्भं।
उवेहमानो सद्द-रूवेसु अंजू, माराभिसंकी मरणा पमुच्चति।
अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहिं, वीरे आयगुत्ते ‘जे खेयण्णे’।
जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे।
अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ।
कम्मुणा उवाही जायइ। कम्मं च पडिलेहाए। Translated Sutra: સંસારમાં મનુષ્યને દુઃખથી પીડાતા જોઈને સાધક સતત અપ્રમત્ત બની સંયમમાં વિચરે. હે મતિમાન્ ! મનન કરી તું આ દુઃખી પ્રાણીને જો. તેઓના આ બધાં દુઃખ આરંભ અર્થાત્ હિંસાજનિત છે. તે જાણી તું અનારંભી બન. માયાવી, પ્રમાદી કષાયી પ્રાણી વારંવાર જન્મ – મરણ કરે છે. પરંતુ જે શબ્દાદિ વિષયમાં રાગ – દ્વેષ કરતા નથી, ઋજુતા આર્જવતા આદિ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Gujarati | 125 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] संधिं लोगस्स जाणित्ता। आयओ बहिया पास।
तम्हा न हंता न विघायए।
जमिणं अन्नमन्नवितिगिच्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्मं, किं तत्थ मुनी कारणं सिया? Translated Sutra: હે સાધક! ધર્માનુષ્ઠાન – રૂપ સુઅવસર જાણીને પ્રાણીઓને દુખ આપવા રૂપ પ્રમાદ ન કરે. પ્રત્યેક જીવોને પોતાના આત્મા સમાન જ જુએ. તેથી સ્વયં જીવ હિંસા ન કરે, ન અન્ય પાસે હિંસા કરાવે. શ્રમણ થઈ જે એકબીજાની આશંકાથી, શરમથી કે ભયથી પાપકર્મ કરતો નથી તો પાપકર્મ ન કરવાપણામાં શું એ તેનું મુનિપણું કારણભૂત કહેવાય? ના ન કહેવાય) | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Gujarati | 131 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेज्जा दूरालइयं ।
जं जाणेज्जा दूरालइयं, तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥
पुरिसा! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि।
पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि।
सच्चस्स आणाए ‘उवट्ठिए से’ मेहावी मारं तरति।
सहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति। Translated Sutra: જે કર્મોને દૂર કરનાર છે તે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે અને જે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે તે કર્મોને દૂર કરનાર છે, એવું સમજીને હે પુરૂષ ! તું પોતાના આત્માનો નિગ્રહ કર, એમ કરવાથી તું દુઃખકર્મ) મુક્ત થઈશ. તું સત્યનું સેવન કર. કેમ કે સત્યની આજ્ઞામાં રહેનાર મેઘાવી સાધક સંસારને તરી જાય છે અને ધર્મનું યથાર્થ પાલન કરીને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-४ कषाय वमन | Gujarati | 138 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी।
जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी।
जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी।
जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी।
जे जम्म-दंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से निरयदंसी।
जे निरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी।
से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च, गब्भं च, जम्मं च, मारं च, नरगं च, तिरियं च, दुक्खं च।
एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स।
आयाणं णिसिद्धा सगडब्भि।
किमत्थि उवाही पासगस्स न विज्जइ? नत्थि। Translated Sutra: જે ક્રોધના અનર્થકારી સ્વરૂપને જાણે છે અને તેનો પરિત્યાગ કરે છે તે માનદર્શી છે અર્થાત્ માનને પણ જાણે છે અને ત્યાગ કરે છે, એ જ પ્રમાણે જે માનદર્શી છે તે માયાને જાણીને તજે છે, જે માયાદર્શી છે તે લોભદર્શી છે, જે લોભદર્શી છે તે રાગદર્શી છે, જે રાગદર્શી છે તે દ્વેષદર્શી છે, જે દ્વેષદર્શી છે તે મોહદર્શી છે, જે મોહદર્શી | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ सम्यक्वाद | Gujarati | 139 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–जे अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघेतव्वा, न परितावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा।
एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए।
तं जहा–उट्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा। उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा। उवरयदंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा। सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा। संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा।
तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सिं चेयं पवुच्चइ। Translated Sutra: હે જમ્બૂ! હું તીર્થંકરના વચનથી કહું છું – ભૂતકાળમાં થયેલા, વર્તમાનમાં છે તે અને ભાવિમાં થશે તે બધા તીર્થંકર ભગવંતો આ પ્રમાણે કહે છે, આવું બોલે છે, આવું પ્રજ્ઞાપન કરે છે, પ્રરૂપણા કરે છે કે સર્વે પ્રાણી, સર્વે ભૂતો, સર્વે જીવો અને સર્વે સત્ત્વોને મારવા નહીં, તેના પર હૂકમ ન કરવો, નોકરની જેમકબજામાં ન રાખવા, ન સંતાપ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ सम्यक्वाद | Gujarati | 140 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तं आइइत्तु न णिहे न निक्खिवे, जाणित्तु धम्मं जहा तहा।
दिट्ठेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा। नो लोगस्सेसणं चरे। Translated Sutra: ધર્મના યથાર્થ સ્વરૂપને જાણીને તેના પર શ્રદ્ધા કરી પ્રમાદી ન થાય, તેનો ત્યાગ ન કરે. ધર્મનું જેવું સ્વરૂપ છે, તેવું જાણીને તેનું આચરણ કરે, પ્રાપ્ત વિષયોમાં વિરક્તિ પ્રાપ્ત કરે અને લોકૈષણા – સંસારપ્રવાહમાં ભટકે નહીં. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ सम्यक्वाद | Gujarati | 141 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स नत्थि इमा णाई, अण्णा तस्स कओ सिया?
दिट्ठं सुयं मयं विण्णायं, जमेयं परिकहिज्जइ।
समेमाणा पलेमाणा, पुणो-पुनो जातिं पकप्पेंति। Translated Sutra: જે સાધકને લોકૈષણા અર્થાત્ કામ – ભોગ આદિ સંસાર – પ્રવાહ નથી તેનાથી અન્ય સાવદ્ય પ્રવૃત્તિ કેમ થઈ શકે ? આ જે અહિંસાધર્મ કહેવાયછે તે સર્વ ભગવંતોએ કેવળજ્ઞાન દ્વારા જોયેલ છે, શ્રોતા દ્વારા સાંભળેલ છે, ભવ્ય જીવોએ માનેલ છે, સર્વજ્ઞ એ અનુભવેલ છે જે સંસારમાં અતિ આસક્ત, વિષયમાં લીન રહે છે તે વારંવાર સંસારમાં પરિભ્રમણ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ सम्यक्वाद | Gujarati | 142 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहो य राओ य जयमाणे, वीरे सया आगयपण्णाणे।
पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते सया परक्कमेज्जासि। Translated Sutra: રાત – દિવસ મોક્ષમાર્ગમાં પ્રયત્નશીલ, તત્ત્વદર્શી, ધીર સાધક પ્રમાદીઓને ધર્મથી બહિર્મુખ જાણી, સ્વયં અપ્રમત્ત થઈ પરાક્રમ કરે. તેમ હું કહું છું. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा | Gujarati | 144 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं।
अट्टा वि संता अदुआ पमत्ता। अहासच्चमिणं- ति बेमि।
नानागमो मच्चुमुहस्स अत्थि, इच्छापणीया वंकाणिकेया ।
कालग्गहीआ णिचए णिविट्ठा, ‘पुढो-पुढो जाइं पकप्पयंति’ ॥ Translated Sutra: જ્ઞાની આ વિષયમાં સંસાર સ્થિત, સારી રીતે સમજનાર, હિત – અહિતની સમજ રાખનાર મનુષ્યને ઉપદેશ આપે છે – જેના વડે આર્ત્તધ્યાન પીડિત કે પ્રમાદી પણ ધર્માચરણ કરી શકે છે. આ યથાતથ્ય સત્ય છે. તેમ હું કહું છું. જીવોને મૃત્યુ નહીં આવે એવું તો નથી છતાં ઇચ્છાવશ થઈ, અસંયમમાં લીન બનેલ પ્રાણી કાળના મુખમાં પડ્યો એવો કર્મનાં સંગ્રહમાં | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा | Gujarati | 146 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आवंति केआवंति लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवादं वदंति–से दिट्ठं च णे, सुयं च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो सुपडिलेहियं च णे– ‘सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता’ हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेतव्वा, परियावेयव्वा, उद्दवेयव्वा।
एत्थ वि जाणह नत्थित्थ दोसो।
अनारियवयणमेयं।
तत्थ जे ते आरिया, ते एवं वयासी–से दुद्दिट्ठं च भ, दुस्सुयं च भ, दुम्मयं च भे, दुव्विण्णायं च भे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो दुप्पडिलेहियं च भे, जण्णं तुब्भे एवमाइक्खह, एवं भासह, एवं ‘परूवेह, एवं पण्णवेह’– ‘सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा, Translated Sutra: આ લોકમાં કોઈ શ્રમણ – બૌદ્ધ સાધુ અને બ્રાહ્મણ પૃથક્ પૃથક્ રીતે ધર્મ – વિરુદ્ધ ભાષણો કરી કહે છે – અમે શાસ્ત્રમાં જોયું છે, સાંભળેલ છે, માન્યું છે, વિશેષ રૂપે જાણ્યું છે, વળી ઊંચી, નીચી, તીરછી બધી દિશાનું સમ્યક્ નિરીક્ષણ કરીને જાણ્યું છે કે સર્વે પ્રાણો, જીવો, ભૂતો, સત્ત્વોને મારવામાં, દબાવવામાં, પકડવામાં, પરિતાપવામાં | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-३ अनवद्यतप | Gujarati | 147 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] उवेह एणं बहिया य लोयं, से सव्वलोगंसि जे केइ विण्णू ।
अणुवीइ पास निक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति ॥
नरा मुयच्चा धम्मविदु त्ति अंजू।
आरंभजं दुक्खमिणंति नच्चा, एवमाहु समत्तदंसिणो।
ते सव्वे पावाइया दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति।
इति कम्म परिण्णाय सव्वसो। Translated Sutra: ધર્મથી વિમુખ લોકોની ઉપેક્ષા કરો. આમ કરનાર જ લોકમાં વિદ્વાનોમાં અગ્રણી છે. હે સાધક તું વિચાર કર અને જો! સત્ત્વશીલ સાધકો મન – વચન – કાયાથી દંડ અર્થાત્ હિંસાનો ત્યાગ કરે છે, તે જ કર્મનો ક્ષય કરે છે. જે શરીર પ્રત્યે અનાસક્ત છે, તે જ ધર્મને જાણી શકે છે. ધર્મને જાણનાર સરળ હોય છે. દુઃખ હિંસાથી ઉત્પન્ન થાય છે, એ જાણીને હિંસાનો | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-४ संक्षेप वचन | Gujarati | 152 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कओ सिया?
से हु पण्णाणमंते बुद्धे आरंभोवरए। सम्ममेयंति पासह।
जेण बंधं वहं घोरं, परितावं च दारुणं।
पलिछिंदिय बाहिरगं च सोयं, णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहिं।
‘कम्मुणा सफलं’ दट्ठुं, तओ णिज्जाइ वेयवी। Translated Sutra: જેને પૂર્વભવમાં ધર્મ – આરાધન કરેલ નથી, ભાવિમાં પણ તેવી યોગ્યતા નથી તેને વર્તમાનમાં તો ધર્મારાધન ક્યાંથી હોય ? જે ભોગ આદિથી નિવૃત્ત છે, તે જ પ્રજ્ઞાવાન, બુદ્ધ અને હિંસાથી વિરત છે. આ જ સમ્યક્ વ્યવહારછે એવું તું જો. સાધક જુએ કે હિંસાને કારણે બંધન, વધ, પરિતાપ આદિ ભયંકર દુઃખો સહન કરવા પડે છે. તેથી પાપના બાહ્ય – અભ્યંતર | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-१ एक चर | Gujarati | 158 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे।
‘एत्थ फासे’ पुणो-पुणो
आवंती केआवंती लोयंसि आरंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी।
एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहिं कम्मेहिं, ‘असरणे सरणं’ ति मन्नमाणे।
इहमेगेसिं एगचरिया भवति–से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोहे बहुरए बहुनडे बहुसढे बहुसंकप्पे, आसवसक्की पलिउच्छन्ने, उट्ठियवायं पवयमाणे ‘मा से केइ अदक्खू’ अण्णाण-पमाय-दोसेणं, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ। अट्ठा पया माणव! कम्मकोविया जे अणुवरया, अविज्जाए पलिमोक्खमाहु, आवट्टं अणुपरियट्टंति। Translated Sutra: વિવિધ કામભોગોમાં આસક્ત જીવોને જુઓ. જે નરકાદિ યાતના સ્થાનમાં પકાવાઈ રહ્યા છે. લોકમાં જેટલા સાવદ્ય અનુષ્ઠાન કરનારા છે તે આ સંસારમાં દુઃખોને વારંવાર ભોગવે છે. સાવદ્ય અનુષ્ઠાન કરનારા અન્યતિર્થીક સાધુ કે શિથીલાચારી, ગૃહસ્થ સમાન જ દુઃખના ભાગી હોય છે. સંયમ અંગીકાર કરવા છતાં વિષયાભિલાષાથી પીડિત અજ્ઞાની જીવો અશરણને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-२ विरत मुनि | Gujarati | 163 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से ‘सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति नच्चा’, पुरिसा! परमचक्खू! विपरक्कमा।
एतेसु चेव बंभचेरं ति बेमि।
से सुयं च मे अज्झत्थियं च मे, ‘बंध-पमोक्खो तुज्झ अज्झत्थेव’।
एत्थ विरते अनगारे, दीहरायं तितिक्खए। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए ॥
एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि। Translated Sutra: તે પરિગ્રહ છોડનારને જ સારી રીતે જ્ઞાનાદિ ગુણોની પ્રાપ્તી છે, તેમ જાણીને, હે માનવ! તમે સમ્યગ દૃષ્ટિને ધારણ કરીને સંયમ કે કર્મક્ષયમાં પરાક્રમ કરો. પરિગ્રહ થી વિરત થનાર અને સમ્યકદૃષ્ટિવાળા સાધકને જ પરમાર્થથી બ્રહ્મચર્ય છે. તેમ હું કહું છું. મેં સાંભળ્યું છે, અનુભવ્યું છે કે બંધનથી છૂટકારો પોતાના આત્માથી જ થાય | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-३ अपरिग्रह | Gujarati | 164 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आवंती केआवंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती।
सोच्चा वई मेहावी, पंडियाणं णिसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहिं पवेदिते ॥
जहेत्थ मए संधी झोसिए, एवमण्णत्थ संधी दुज्झोसिए भवति, तम्हा बेमि–नो निहेज्ज वीरियं। Translated Sutra: આ લોકમાં જે કોઈ અપરિગ્રહી છે, તે આ અલ્પાદિ દ્રવ્યના ત્યાગથી અપરિગ્રહી બને છે. મેધાવી સાધક) જિનવચન સાંભળીને તથા પંડિતોના વચન વિચારીને અપરિગ્રહી બને. તીર્થંકરોએ સમતામાં ધર્મ કહ્યો છે. જે રીતે મેં જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર એ ત્રણેની સંધીરૂપ સાધના કરી કર્મોનો ક્ષય કહ્યો છે, તે રીતે બીજા માર્ગમાં કર્મો ક્ષીણ કરવા | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-३ अपरिग्रह | Gujarati | 167 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘जुद्धारिहं खलु दुल्लहं’।
जहेत्थ कुसलेहि परिण्णा-विवेगे भासिए।
चुए हु बाले गब्भाइसु रज्जइ।
अस्सिं चेयं पव्वुच्चति, रूवंसि वा छणंसि वा।
से हु एगे संविद्धपहे मुनी, अन्नहा लोगमुवेहमाणे।
इति कम्मं परिण्णाय, सव्वसो से ण हिंसति। संजमति नोपगब्भति।
उवेहमानो पत्तेयं सायं।
वण्णाएसी नारभे कंचणं सव्वलोए।
एगप्पमुहे विदिसप्पइण्णे, निव्विन्नचारी अरए पयासु। Translated Sutra: હે સાધક આ કર્મ – શરીર સાથે યુદ્ધ કર, બીજા સાથે લડતા શું મળશે ? ભાવયુદ્ધ કરવા માટે જે ઔદારિક શરીર આદિ મળેલ છે, તે વારંવારપ્રાપ્ત થવા દુર્લભ છે. તીર્થંકરોએ આત્મયુદ્ધના સાધનરૂપે સમ્યક્ જ્ઞાન અને સમ્યક્ આચારરૂપ વિવેક બતાવેલ છે. ધર્મથી ચ્યુત અજ્ઞાની જીવ ગર્ભાદિમાં ફસાય છે. આ જિન – શાસનમાં એવું કહ્યું છે – જે રૂપાદિમાં | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-३ अपरिग्रह | Gujarati | 168 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से वसुभं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पाव कम्मं।
तं नो अन्नेसिं।
जं सम्मं ति पासहा, तं मोणं ति पासहा । जं मोणं ति पासहा, तं सम्मं ति पासहा ॥
न इमं सक्कं सिढिलेहिं अद्दिज्जमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं।
मुनी मोणं समायाए, धुणे कम्म-सरीरगं।
पंतं लूहं सेवंति, वीरा समत्तदंसिणो।
एस ओहंतरे मुनी, तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए। Translated Sutra: એવા સંયમવાન્ સાધુ સર્વ રીતે ઉત્તમ બોધને પ્રાપ્ત કરી ન કરવા યોગ્ય પાપકર્મ તરફ દૃષ્ટિ રાખતા નથી. જે સમ્યક્ત્વ છે અર્થાત્ સમ્યક્ આચરણવાળા છે તે મુનિધર્મ અર્થાત્ ભાવમુનિપણામાં છે અને જે ‘ભાવમુનિપણામાં છે તે સમ્યક્ આચરણવાળા છે’ એમ જાણો. શિથિલાચારી, સ્નેહમાં આસક્ત, વિષય આસ્વાદનમાં લોલુપ, કપટી, અને પ્રમાદી, તથા | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन | Gujarati | 184 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: अच्चेइ जाइ-मरणस्स वट्टमग्गं वक्खाय-रए।
सव्वे सरा णियट्टंति।
तक्का जत्थ न विज्जइ। मई तत्थ न गहिया।
ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयन्ने।
से न दोहे, न हस्से, न वट्टे, न तंसे, न चउरंसे, न परिमण्डले।
न किण्हे, न णीले, न लोहिए, न हालिद्दे, न सुक्किल्ले।
न सुब्भिगंधे, न दुरभिगंधे।
न तित्ते, न कडुए, न कसाए, न अंबिले, न महुरे।
न कक्खडे, न मउए, न गरुए, न लहुए, न सीए, न उण्हे, न णिद्धे, न लुक्खे।
न काऊ। न रुहे। न संगे।
न इत्थी, न पुरिसे, न अन्नहा।
परिण्णे सण्णे।
उवमा न विज्जए।
अरूवी सत्ता।
अपयस्स पयं नत्थि। Translated Sutra: સંસારના આવાગમનને જાણી જન્મ – મરણના માર્ગને તે પાર કરી લે છે અને મોક્ષને પ્રાપ્ત કરે છે. તે મુક્ત આત્માનું સ્વરૂપ બતાવવા માટે કોઈ શબ્દ સમર્થ નથી. તર્કની ત્યાં ગતિ નથી. બુદ્ધિનો ત્યાં પ્રવેશ નથી તે આત્મા સર્વ કર્મમળથી રહિત જ્યોતિ સ્વરૂપ છે. સમગ્ર લોકનો જ્ઞાતા છે. તે આત્મા લાંબો નથી, ટૂંકો નથી, ગોળ નથી, ત્રિકોણ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-२ कर्मविधूनन | Gujarati | 194 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आतुरं लोयमायाए, ‘चइत्ता पुव्वसंजोगं’ हिच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरम्मि वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा, ‘अहेगे तमचाइ कुसीला।’ Translated Sutra: કેટલાક વસુ અર્થાત્ સાધુ કે અનુવસુ અર્થાત્ શ્રાવક આ સંસારને દુઃખમય જાણી, માતા – પિતા – સ્વજન આદિ પૂર્વસંયોગોને છોડીને, ઉપશમ ભાવ ધારણ કરી, બ્રહ્મચર્ય ધારણ કરીને ધર્મને યથાર્થરૂપે જાણીને પણ કેટલાક ક્રમશ: પરિષહોથી ગભરાઈને શીલરહિત થઇ ધર્મપાલન કરતા નથી. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-२ कर्मविधूनन | Gujarati | 196 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अहेगे धम्म मादाय’ ‘आयाणप्पभिइं सुपणिहिए’ चरे।
अपलीयमाणे दढे।
सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी।
अइअच्च सव्वतो संगं ‘ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि।’
जयमाणे एत्थ विरते अनगारे सव्वओ मुंडे रीयंते।
जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए।
से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए वा।
पलियं पगंथे अदुवा पगंथे।
अतहेहिं सद्द-फासेहिं, इति संखाए।
एगतरे अन्नयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए।
जे य हिरी, जे य अहिरीमणा। Translated Sutra: કેટલાક લોકો ધર્મ પ્રાપ્ત કરીને ધર્મોપગરણથી યુક્ત થઈને સર્વજ્ઞ કથિત ધર્મ આચરે છે. લીધેલ પ્રતિજ્ઞામાં દૃઢ રહે છે. સર્વ આસક્તિને દુઃખમય જાણી તેનાથી દૂર રહે તે જ મહામુનિ છે. તે સર્વે પ્રપંચોને છોડી ‘‘મારું કોઈ નથી – હું એકલો છું’’ એમ વિચારી પાપક્રિયાથી નિવૃત્ત થઈ, યતના કરતો અણગાર દ્રવ્ય અને ભાવથી મુંડિત થઈ વિચરે, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-२ कर्मविधूनन | Gujarati | 197 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चिच्चा सव्वं विसोत्तियं, ‘फासे फासे’ समियदंसणे।
एते भो! नगिणा वुत्ता, जे लोगंसि अनागमणधम्मिणो।
आणाए मामगं धम्मं।
एस उत्तरवादे, इह माणवाणं वियाहिते।
एत्थोवरए तं झोसमाणे।
आयाणिज्जं परिण्णाय, परियाएण विगिंचइ।
‘इहमेगेसिं एगचरिया होति’।
तत्थियराइयरेहिं कुलेहिं सुद्धेसणाए सव्वेसणाए।
से मेहावी परिव्वए।
सुब्भिं अदुवा दुब्भिं।
अदुवा तत्थ भेरवा।
पाणा पाणे किलेसंति।
ते फासे पुट्ठो धीरो अहियासेज्जासि। Translated Sutra: સર્વ વિસ્રોતિકા અર્થાત્ શંકા કે વિકલ્પોને છોડીને સમ્યગ્ દર્શની મુનિ ઉત્પન્ન થયેલ દુઃખોને સમભાવે સહે. હે મુનિઓ ! જે ગૃહવાસ છોડીને ફરી તેમાં ફસાતા નથી તે જ સાચા મુનિ છે. હે શિષ્ય! ‘આજ્ઞામાં મારો ધર્મ છે.’ એ મનુષ્યો માટે ઉત્તમ વિધાન છે માટે વિષયોથી વિરમેલ સાધક સંયમલીન બની કર્મો ખપાવે છે. તે કર્મોના સ્વરૂપને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन | Gujarati | 198 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘एयं खु मुनी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता’।
जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ–परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइ-स्सामि, सूइं जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि।
अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसग-फासा फुसंति।
एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले।
‘लाघवं आगममाणे’।
तवे से अभिसमण्णागए भवति।
जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।
एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं Translated Sutra: તીર્થંકર દ્વારા પ્રરૂપિત ધર્મમાં સ્થિત, સંયમમાં ઉપસ્થિત અને આચારનું સમ્યક પાલન કરનાર અને તપ દ્વારા કર્મોનો નાશ કરનાર મુની જ સાચા મુની છે. જે મુનિ અચેલક રહે છે, તેને એવી ચિંતા હોતી નથી કે મારું વસ્ત્ર જીર્ણ થયું છે, હું વસ્ત્રની યાચના કરીશ, સીવવા માટે સોય – દોરા લાવીશ. વસ્ત્ર સાંધીશ – સીવીશ, બીજું વસ્ત્ર જોડીશ, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन | Gujarati | 200 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विरयं भिक्खुं रीयंतं, चिररातोसियं, अरती तत्थ किं विधारए?
संधेमाणे समुट्ठिए।
जहा से दीवे असंदीणे, एवं से धम्मे ‘आयरिय-पदेसिए’।
‘ते अणवकंखमाणा’ अणतिवाएमाणा दइया मेहाविनो पंडिया।
एवं तेसिं भगवओ अणुट्ठाणे जहा से दिया पोए।
एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइय। Translated Sutra: જે અસંયમથી નિવૃત્ત છે, અપ્રશસ્ત ભાવોથી નીકળી પ્રશસ્ત ભાવમાં રમણ કરનાર છે, દીર્ઘકાળથી સંયમનું પાલન કરી રહ્યા છે. એવા સંયમી મુનિને અરતિ વિચલિત કરી શકાતી નથી. એવા સાવધાન મુનિ શુભ પરિણામોની શ્રેણી ચઢતા જાય છે. જેમ પાણીથી ક્યારેય ન ઢંકાતા દ્વીપ યાત્રિકોનું આશ્વાસન સ્થાન છે, તેમ તીર્થંકર ઉપદિષ્ટ ધર્મ મુનિને આશ્રય | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन | Gujarati | 204 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नममाणा एगे जीवितं विप्परिणामेंति।
पुट्ठा वेगे णियट्ठंति, जीवियस्सेव कारणा।
णिक्खंतं पि तेसिं दुन्निक्खंतं भवति।
बालवयणिज्जा हु ते नरा, पुणो-पुनो जातिं पकप्पेंति।
अहे संभवंता विद्दायमाणा, अहमंसी विउक्कसे।
उदासीणे फरुसं वदंति।
पलियं पगंथे अदुवा पगंथे अतहेहिं।
तं मेहावी जाणिज्जा धम्मं। Translated Sutra: કેટલાક સાધકો પરીષહોથી ડરી અસંયમિત જીવન જીવવા માટે સંયમ છોડે છે. તેમની દીક્ષા કુદીક્ષા છે. કેમ કે તે સાધારણજન દ્વારા પણ તે નિંદિત થાય છે. પુનઃ પુનઃ જન્મ ધારણ કરે છે. નીચો હોવા છતાં પણ એ પોતાને વિદ્વાન માને છે કે, ‘‘જે છું તે હું જ છું’’ તેવો ગર્વ કરે છે. જે સાધક રાગ – દ્વેષ રહિત છે સાધકને કઠોર વચન કહે છે. તેમના પૂર્વ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन | Gujarati | 205 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहम्मट्ठी तुमंसि नाम बाले, आरंभट्ठी, अणुवयमाणे, हणमाणे, घायमाणे, हणओ यावि समणुजाणमाणे, घोरे धम्मे उदीरिए, उवेहइ णं अणाणाए।
एस विसण्णे वितद्दे वियाहिते Translated Sutra: સંયમને અંગીકાર કરવા છતાં પાપાચરણ કરનારને સાચો સંયમી આ પ્રમાણે ઉપદેશ આપે કે – તું અધર્મનો અર્થી છે, અજ્ઞાની છે, આરંભ અને પરિગ્રહનો અર્થી છે. ‘પ્રાણીને મારો’ એવો ઉપદેશ આપે છે, હિંસાની અનુમોદના કરે છે. જ્ઞાનીઓએ કઠીન ધર્મની પ્રરૂપણા કરી છે, પણ તું તેની આજ્ઞાની ઉપેક્ષા કરી રહ્યો છે. ધર્મની ઉપેક્ષા કરનાર આવા સાધુ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-५ उपसर्ग सन्मान विधूनन | Gujarati | 207 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से गिहेसु वा गिहंतरेसु वा, गामेसु वा गामंतरेसु वा, नगरेसु वा नगरंतरेसु वा, जणवएसु वा ‘जणवयंतरेसु वा’, संतेगइयाजना लूसगा भवति, अदुवा–फासा फुसंति ते फासे, पुट्ठो वीरोहियासए।
ओए समियदंसणे।
दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं, आइक्खे विभए किट्टे वेयवी।
से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए–संतिं, विरतिं, उवसमं, णिव्वाणं, सोयवियं,
अज्जवियं, मद्दवियं, लाघवियं, अणइवत्तियं।
सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खेज्जा। Translated Sutra: તે શ્રમણ ઘરોમાં, ઘરોની આસપાસમાં, ગામોમાં, ગામોના અંતરાલમાં, નગરોમાં, નગરોના અંતરાલમાં, જનપદોમાં, જનપદોના અંતરાલમાં, ગામ અને નગરોના અંતરાલમાં, ગામ અને જનપદોના અંતરાલમાં અથવા નગર અનેજનપદોના અંતરાલમાં વિચરતા કે કાયોત્સર્ગ સ્થિત મુનિને જોઈને કેટલાક લોકો હિંસક બની જાય છે. તેઓ ઉપસર્ગ કરે છે. ત્યારે અથવા કોઈ સંકટ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-५ उपसर्ग सन्मान विधूनन | Gujarati | 208 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: વિચાર કરી ધર્મ કહેનાર મુનિ એ ધ્યાનમાં રાખે કે તે ઉપદેશ આપતા પોતાના આત્માની આશાતના ન કરે, બીજાની આશાતના ન કરે કે અન્ય પ્રાણ, ભૂત, જીવ, સત્ત્વની આશાતના ન કરે. આ રીતે સ્વયં આશાતના ન કરતા, બીજા પાસે ન કરાવતા તે મુનિ વધ્યમાન પ્રાણી અર્થાત્ વિકલેન્દ્રિય, ભૂત અર્થાત્ વનસ્પતિ, જીવ અર્થાત્ પંચેન્દ્રિય, સત્ત્વ અર્થાત્ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
उद्देशक-१ असमनोज्ञ विमोक्ष | Gujarati | 211 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] धुवं चेयं जाणेज्जा – असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा, पायपुंछणं वा लभिय, भुंजिय णोभुंजिय, पंथं विउत्ता विउकम्म विभत्तं धम्मं झोसेमाणे समेमाणे पलेमाणे, पाएज्ज वा, निमंतेज्ज वा, कुज्जा वेयावडियं–परं अणाढायमाणे Translated Sutra: કદાચ તે શાક્યાદિ અન્ય શ્રમણ કહે કે, હુ મુનિઓ! તમે નિશ્ચિત સમજો કે – અમારે ત્યાં તમારે આવવાનું તમને અશન યાવત્ પાદપ્રોંછનક મળે કે ન મળે, તમે ભોગવ્યું હોય કે ન ભોગવ્યું હોય, માર્ગ સીધો હોય કે વક્ર હોય તો પણ અવશ્ય આવવું. આ રીતે જુદા ધર્મને પાળનારા આવતા કે જતા સમયે કંઈ આપે, આપવા નિમંત્રણ કરે કે, વૈયાવૃત્ત્ય કરે તો સદાચારી |