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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३१ अशोच्चा | Hindi | 449 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! किं उड्ढं होज्जा? अहे होज्जा? तिरियं होज्जा?
गोयमा! उड्ढं वा होज्जा, अहे वा होज्जा, तिरियं वा होज्जा। उड्ढं होमाणे सद्दावइ-वियडावइ-गंधावइ-मालवंतपरियाएसु वट्ट-वेयड्ढपव्वएसु होज्जा, साहरणं पडुच्च सोमनसवने वा पंडगवने वा होज्जा। अहे होमाणे गड्डाए वा दरीए वा होज्जा, साहरणं पडुच्च पायाले वा भवने वा होज्जा। तिरियं होमाणे पन्नरससु कम्मभूमीसु होज्जा, साहरणं पडुच्च अड्ढाइज्जदीव-समुद्द तदेक्कदे-सभाए होज्जा। ते णं भंते! एगसमए णं केवतिया होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं दस। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव Translated Sutra: भगवन् ! वे असोच्चा कवली ऊर्ध्वलोक में होते है, अधोलोक में होते हैं या तिर्यक्लोक में होते हैं ? गौतम ! वे तीनो लोक में भी होते हैं। यदि ऊर्ध्वलोक में होते हैं तो शब्दापाती, विकटापाती, गन्धापाती और माल्यवन्त नामक वृत (वैताढ्य) पर्वतों में होते हैं तथा संहरण की अपेक्षा सौमनसवन में अथवा पाण्डुकवन में होते हैं। यदि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३१ अशोच्चा | Hindi | 450 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलिउवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगस्सवा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवासगस्स वा, तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए?
गोयमा! सोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सोच्चा णं जाव नो लभेज्ज सवणयाए?
गोयमा! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं सोच्चा केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं Translated Sutra: भगवन् ! केवली यावत् केवलि – पाक्षिक की उपासिका से श्रवण कर क्या कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्म – बोध प्राप्त करता है ? गौतम ! कोई जीव प्राप्त करता है और कोई जीव प्राप्त नहीं करता। इस विषय में असोच्चा के समान ‘सोच्चा’ की वक्तव्यता कहना। विशेष यह कि सर्वत्र ‘सोच्चा’ ऐसा पाठ कहना। शेष पूर्ववत् यावत् जिसने मनःपर्यवज्ञानावरणीय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-२ आकाश | Hindi | 781 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! आगासे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे आगासे पन्नत्ते, तं जहा–लोयागासे य, अलोयागासे य।
लोयागासे णं भंते! किं जीवा? जीवदेसा? –एवं जहा बितियसए अत्थिउद्देसे तहेव इह वि भाणियव्वं, नवरं–अभिलावो जाव धम्मत्थिकाए णं भंते! केमहालए पन्नत्ते।
गोयमा! लोए लोयमेत्ते लोयप्पमाणे लोयफुडे लोयं चेव ओगाहित्ता णं चिट्ठति। एवं जाव पोग्गलत्थिकाए।
अहेलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवतियं ओगाढे?
गोयमा! सातिरेगं अद्धं ओगाढे। एवं एएणं अभिलावेणं जहा बितियसए जाव–
ईसिपब्भारा णं भंते! पुढवी लोयागासस्स किं संखेज्जइभागं ओगाढा–पुच्छा।
गोयमा! नो संखेज्जइभागं ओगाढा, असंखेज्जइभागं Translated Sutra: भगवन् ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का – लोकाकाश और अलोकाकाश। भगवन् ! क्या लोकाकाश जीवरूप है, अथवा जीवदेश – रूप है ? गौतम ! द्वीतिय शतक के अस्ति – उद्देशक अनुसार कहना चाहिए। विशेष में धर्मास्तिकाय से लेकर पुद्गलास्तिकाय तक यहाँ कहना चाहिए – भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा है ? गौतम ! धर्मास्तिकाय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-२ आकाश | Hindi | 782 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] धम्मत्थिकायस्स णं भंते! केवतिया अभिवयणा पन्नत्ता?
गोयमा! अनेगा अभिवयणा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मे इ वा, धम्मत्थिकाये इ वा, पाणाइवाय-वेरमणे इ वा, मुसावायवेरमणे इ वा, एवं जाव परिग्गहवेरमणे इ वा, कोहविवेगे इ वा जाव मिच्छादंसण-सल्लविवेगे इ वा, रियासमिती इ वा, भासासमिती इ वा, एसणासमिती इ वा, आयाणभंडमत्तनिक्खेव समिती इ वा, उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिती इ वा, मणगुत्ती इ वा, वइगुत्ती इ वा, कायगुत्ती इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते धम्मत्थिकायस्स अभिवयणा।
अधम्मत्थिकायस्स णं भंते! केवतिया अभिवयणा पन्नत्ता?
गोयमा! अनेगा अभिवयणा पन्नत्ता, तं जहा–अधम्मे इ वा, Translated Sutra: भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने अभिवचन हैं ? गौतम ! अनेक। यथा – धर्म, धर्मास्तिकाय, प्राणातिपात – विरमण, यावत् परिग्रहविरमण, अथवा क्रोध – विवेक, यावत् – मिथ्यादर्शन – शल्य – विवेक, अथवा ईर्यासमिति, यावत् उच्चार – प्रस्रवण – खेल – जल्ल – सिंघाण – परिष्ठापनिकासमिति, अथवा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति या कायगुप्ति; ये | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-३ प्राणवध | Hindi | 783 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले, पाणातिवायवेरमणे जाव मिच्छादंसण-सल्लविवेगे, उप्पत्तिया वेणइया कम्मया पारिणामिया, ओग्गहे ईहा अवाए धारणा, उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे, नेरइयत्ते, असुरकुमारत्ते जाव वेमानियत्ते, नाणावरणिज्जे जाव अंत-राइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी मिच्छदिट्ठी सम्मामिच्छदिट्ठी, चक्खुदंसणे अचक्खु-दंसणे ओहिदंसणे केवलदंसणे, आभिनिबोहियनाणे जाव विभंगनाणे, आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा, ओरालियसरीरे वेउव्वियसरीरे आहारगसरीरे तेयगसरीरे कम्मगसरीरे, मणजोगे वइजोगे कायजोगे, सागारोवओगे, अनागारोवओगे, Translated Sutra: भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, औत्पत्तिकी यावत् पारिणामिकी बुद्धि, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम; नैरयिकत्व, असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-३ प्राणवध | Hindi | 784 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भं वक्कममाणे कतिवण्णं कतिगंधं कतिरसं कतिफासं परिणामं परिणमइ?
गोयमा! पंचवण्णं, दुगंधं, पंचरसं, अट्ठफासं परिणामं परिणमइ।
कम्मओ णं भंते! जीवे नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ? कम्मओ णं जए नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ?
हंता गोयमा! कम्मओ णं जीवे नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ, कम्मओ णं जए नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले परिणामों से युक्त होता है ? गौतम ! बारहवें शतक के पंचम उद्देशक के अनुसार यहाँ भी – कर्म से जगत है, कर्म के बिना जीव में विविध (रूप से जगत का) परिणाम नहीं होता, यहाँ तक। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-४ उपचय | Hindi | 785 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! इंदियोवचए पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे इंदियोवचए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियोवचए, एवं बितिओ इंदियउद्देसओ निरवसेसो भाणियव्वो जहा पन्नवणाए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा है ? गौतम ! पाँच प्रकार का है, श्रोत्रेन्द्रियोपचय इत्यादि सब वर्णन प्रज्ञापनासूत्र के द्वीतिय इन्द्रियोद्देशक समान कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-५ परमाणु | Hindi | 786 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! कतिवण्णे, कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! एगवण्णे, एगगंधे, एगरसे, दुफासे पन्नत्ते। जइ एगवण्णे? सिय कालए, सिय नीलए, सिय लोहियए, सिय हालिद्दए, सिय सुक्किलए। जइ एगगंधे? सिय सुब्भिगंधे, सिय दुब्भिगंधे। जइ एगरसे? सिय तित्ते, सिय कडुए, सिय कसाए, सिय अंबिले, सिय महुरे। जइ दुफासे? १. सिय सीए य निद्धे य, २. सिय सीए य लुक्खे य, ३. सिय उसिणे य निद्धे य, ४. सिय उसिणे य लुक्खे य।
दुप्पएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय एगगंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते।
जइ एगवण्णे? Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु – पुद्गल कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम ! (वह) एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा गया है। यदि एक वर्ण वाला हो तो कदाचित् काला, कदाचित् नीला, कदाचित् लाल, कदाचित् पीला और कदाचित् श्वेत होता है। यदि एक गन्ध वाला होता है तो कदाचित् सुरभिगन्ध और कदाचित् दुरभिगन्ध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-५ परमाणु | Hindi | 787 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरपरिणए णं भंते! अनंतपएसिए खंधे कतिवण्णे? एवं जहा अट्ठारसमसए जाव सिय अट्ठफासे पन्नत्ते। वण्ण-गंध-रसा जहा दसपएसियस्स।
जइ चउफासे? १. सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए सव्वे निद्धे, २. सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए सव्वे लुक्खे, ३. सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे उसिणे सव्वे निद्धे, ४. सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे उसिणे सव्वे लुक्खे, ५. सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए सव्वे सीए सव्वे निद्धे, ६. सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए सव्वे सीए सव्वे लुक्खे, ७. सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए सव्वे उसिणे सव्वे निद्धे, ८. सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए सव्वे उसिणे सव्वे लुक्खे, ९. सव्वे मउए सव्वे गरुए सव्वे Translated Sutra: भगवन् ! बादर – परिणाम वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है ? गौतम ! अठारहवे शतक के छठे उद्देशक के समान ‘कदाचित् आठ स्पर्श वाला कहा गया है’, तक जानना। अनन्तप्रदेशी बादर परिणामी स्कन्ध के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के भंग, दशप्रदेशी स्कन्ध के समान कहने। यदि वह चार स्पर्श वाला होता है, तो कदाचित् सर्वकर्कश, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-५ परमाणु | Hindi | 788 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! परमाणू पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे परमाणू पन्नत्ते, तं० दव्वपरमाणू, खेत्तपरमाणू, कालपरमाणू, भावपरमाणू।
दव्वपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अच्छेज्जे, अभेज्जे, अडज्झे, अगेज्झे।
खेत्तपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अणद्धे, अमज्झे, अपदेसे, अविभाइमे।
कालपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे।
भावपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा – द्रव्यपरमाणु, क्षेत्रपरमाणु, काल – परमाणु और भावपरमाणु। भगवन् ! द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा – अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य। भगवन् ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा – अनर्द्ध, अमध्य, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-६ अंतर | Hindi | 789 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा? पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा?
गोयमा! पुव्विं वा उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा एवं जहा सत्तरसमसए छट्ठुद्देसे जाव से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पुव्विं वा जाव उववज्जेज्जा, नवरं–तेहिं संपाउणणा, इमेहिं आहारो भण्णति, सेसं तं चेव।
पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए ईसाने कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं चेव। Translated Sutra: भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी और शर्कराप्रभापृथ्वी के बीच में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करते हैं, अथवा पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होते हैं; इत्यादि वर्णन सत्तरहवे शतक के छठे उद्देशक के अनुसार, विशेष यह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-६ अंतर | Hindi | 790 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए? सेसं जहा पुढविक्काइयस्स जाव से तेणट्ठेणं। एवं पढम-दोच्चाणं अंतरा समोहए जाव ईसीपब्भाराए उववाएयव्वो। एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहेसत्तमाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जाव ईसीपब्भाराए उववाएयव्वो आउक्का-इयत्ताए।
आउयाए णं भंते! सोहम्मीसाणाणं सणंकुमार-माहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनोदहिघनोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? सेसं तं चेव। एवं एएहिं चेव अंतरा समोहओ जाव अहेसत्तमाए पुढवीए Translated Sutra: भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के बीच में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं, वह पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है या पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होता है ? गौतम ! शेष समग्र पृथ्वीकायिक के समान। इसी प्रकार पहली और दूसरी पृथ्वी के बीच में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयम सगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महा-वीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पास उत्कुटुकासन से नीचे सिर झुकाए हुए, ध्यान रूपी कोठे में प्रविष्ट श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। वह गौतम – गोत्रीय थे, सात हाथ ऊंचे, समचतुरस्र संस्थान एवं वज्रऋषभ – नाराच संहनन वाले थे। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 9 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी–
से नूनं भंते! चलमाणे चलिए? उदीरिज्जमाणे उदोरिए? वेदिज्जमाणे वेदिए? पहिज्जमाणे पहीने? छिज्जमाणे छिन्ने? भिज्जमाणे भिन्ने? Translated Sutra: तत्पश्चात् जातश्रद्ध (प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले), जातसंशय, जातकुतूहल, संजातश्रद्ध, समुत्पन्न श्रद्धा वाले, समुत्पन्न कुतूहल वाले गौतम अपने स्थान से उठकर खड़े होते हैं। उत्थानपूर्वक खड़े होकर श्रमण गौतम जहाँ श्रमण भगवान महावीर हैं, उस ओर आते हैं। निकट आकर श्रमण भगवान महावीर को उनके दाहिनी ओर से प्रारम्भ करके | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 10 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एए णं भंते! नव पदा किं एगट्ठा नानाघोसा नानावंजणा? उदाहु नाणट्ठा नानाघोसा नानावंजणा?
गोयमा! चलमाणे चलिए, उदीरिज्जमाणे उदीरिए, वेदिज्जमाणे वेदिए, पहिज्जमाणे पहीने–
एए णं चत्तारि पदा एगट्ठा नानाघोसा नानावंजणा उप्पन्नपक्खस्स।
छिज्जमाणे छिन्ने, भिज्जमाणे भिन्ने, दज्झमाणे दड्ढे, भिज्जमाणे मए, निज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे–
एए णं पंच पदा नाणट्ठा नानाघोसा नानावंजणा विगयपक्खस्स। Translated Sutra: भगवन् ! क्या ये नौ पद, नानाघोष और नाना व्यञ्जनों वाले एकार्थक हैं ? अथवा नाना घोष वाले और नाना व्यञ्जनों वाले भिन्नार्थक पद हैं ? हे गौतम ! १. जो चल रहा है, वह चला; २. जो उदीरा जा रहा है, वह उदीर्ण हुआ; ३. जो वेदा जा रहा है, वह वेदा गया; ४. और जो गिर (नष्ट) हो रहा है, वह गिरा (नष्ट हुआ), ये चारों पद उत्पन्न पक्ष की अपेक्षा से एकार्थक, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 11 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
नेरइया णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा? पाणमंति वा? ऊससंति वा? नीससंति वा? जहा उस्सासपदे।
नेरइया णं भंते! आहारट्ठी?
हंता गोयमा! आहारट्ठी। जहा पन्नवणाए पढमए आहारुद्देसए तहा भाणियव्वं– Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही है ? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की है। भगवन् ! नारक कितने काल (समय) में श्वास लेते हैं और कितने समय में श्वास छोड़ते हैं – कितने काल में उच्छ्वास लेते हैं और निःश्वास छोड़ते हैं ? (प्रज्ञापना – सूत्रोक्त) उच्छ्वास पद (सातवें पद) के अनुसार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 13 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पुव्वाहारिया पोग्गला परिणया?
आहारिया आहारिज्जमाणा पोग्गला परिणया?
अनाहारिया आहारिज्जिस्समाणा पोग्गला परिणया?
अनाहारिया अनाहारिज्जिस्समाणा पोग्गला परिणया?
गोयमा! नेरइयाणं पुव्वाहारिया पोग्गला परिणया।
आहारिया आहारिज्जमाणा पोग्गला परिणया, परिणमंति य।
अनाहारिया आहारिज्जिस्समाणा पोग्गला नो परिणया, परिणमिस्संति।
अनाहारिया अनाहारिज्जिस्समाणा पोग्गला नो परिणया, नो परिणमिस्संति। Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए ? आहारित तथा (वर्तमान में) आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं, वे तथा जो पुद्गल आहार के रूप में ग्रहण किए जाएंगे, वे परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं और आगे भी आहारित नहीं होंगे, वे परिणत हुए ? हे गौतम ! नारकों द्वारा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 14 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पुव्वाहारिया पोग्गला चिया? पुच्छा–
जहा परिणया तहा चियावि।
एवं–उवचिया, उदीरिया, वेइया, निज्जिण्णा। Translated Sutra: हे भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहारित पुद्गल चय को प्राप्त हुए ? हे गौतम ! जिस प्रकार वे परिणत हुए, उसी प्रकार चय को प्राप्त हुए; उसी प्रकार उपचय को प्राप्त हुए; उदीरणा को प्राप्त हुए, वेदन को प्राप्त हुए तथा निर्जरा को प्राप्त हुए। परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण, इस एक – एक पद में चार प्रकार के पुद्गल | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 16 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कइविहा पोग्गला भिज्जंति?
गोयमा! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति, तं जहा–अणू चेव, बादरा चेव।
नेरइया णं भंते! कइविहा पोग्गला चिज्जंति?
गोयमा! आहारदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिज्जंति, तं० अणू चेव, बादरा चेव।
एवं उवचिज्जंति।
नेरइया णं भंते! कइविहे पोग्गले उदीरेंति?
गोयमा! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहे पोग्गले उदीरेंति, तं जहा–अणू चेव, बादरा चेव।
सेसावि एवं चेव भाणियव्वा–वेदेंति, निज्जरेंति।
एवं–ओयट्टेंसु, ओयट्टेंति, ओयट्टिस्संति।
संकामिंसु, संकामेंति, संकामिस्संति।
निहत्तिंसु निहत्तेतिं, निहत्तिस्संति।
निकाएंसु, निकायंति, Translated Sutra: हे भगवन् ! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं ? गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं। अणु (सूक्ष्म) और बादर। भगवन् ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल चय किये जाते हैं ? गौतम ! आहार द्रव्यवर्गणा की अपेक्षा वे दो प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं, वे | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 17 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] भेदिया चिया उवचिया, उदीरिया वेदिया य निज्जिण्णा ।
ओयट्टण संकामण, निहत्तण निकायणे तिविहकालो ॥ Translated Sutra: भेदे गए, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हुए, उदीर्ण हुए, वेद गए और निर्जीण हुए (इसी प्रकार) अपवर्त्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन (इन पिछले चार) पदोंमें भी तीनों प्रकार काल कहना चाहिए। हे भगवन्! नारक जीव जिन पुद्गलों को तैजस और कार्मणरूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल में ग्रहण करते हैं ? प्रत्युत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 18 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेण्हंति, ते किं तीतकालसमए गेण्हंति? पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति? अनागयकालसमए गेण्हंति?
गोयमा! नो तीयकालसमए गेण्हंति, पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति, तो अनागयकालसमए गेण्हंति।
नेरइया णं भंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गहिए उदीरेंति, ते किं तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति? पडुप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति? गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति?
गोयमा! तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति, नो पडुप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, नो गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति।
एवं–वेदेंति, निज्जरेंति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या नारक जीवप्रदेशों से चलित कर्म को बाँधते हैं, या अचलित कर्म को बाँधते हैं ? गौतम ! (वे) चलित कर्म को नहीं बाँधते, (किन्तु) अचलित कर्म को बाँधते हैं। इसी प्रकार अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं, अचलित कर्म का ही वेदन करते हैं, अपवर्त्तन करते हैं, संक्रमण करते हैं, निधत्ति करते हैं और निकाचन करते हैं। इन सब | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 21 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं ठिई आहारो य भाणियव्वो। ठिती जहा–
ठितिपदे तहा भाणियव्वा सव्वजीवाणं। आहारो वि जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए तहा भाणियव्वो, एत्तो आढत्तो–नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? जाव दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति।
असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा ४? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं साइरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा ४ |
असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता, आहारट्ठी । [असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! असुरकुमाराणं दुविहे
आहारे पन्नत्ते। तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य, अनाभोगनिव्वत्तिए य।
तत्थ णं जे से अनाभोग निव्वत्तिए Translated Sutra: इसी तरह स्थिति और आहार के विषय में भी समझ लेना। जिस तरह स्थिति पद में कहा गया है उसी तरह स्थिति विषय में कहना चाहिए। सर्व जीव संबंधी आहार भी पन्नवणा सूत्र के प्रथम उद्देशक में कहा गया है उसी तरह कहना चाहिए। भगवन् ! असुरकुमारों की स्थिति कितने काल की है ? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम से | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 22 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं आयारंभा? परारंभा? तदुभयारंभा? अनारंभा?
गोयमा! अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अनारंभा।अत्थे-गइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अनारंभा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अनारंभा? अत्थे गइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अनारंभा?
गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य।
तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा, ते णं सिद्धा। सिद्धा णं नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयरंभा, अनारंभा।
तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा, ते दुविहा पन्नत्ता, Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या जीव आत्मारम्भी हैं, परारम्भी हैं, तदुभयारम्भी हैं, अथवा अनारम्भी हैं ? हे गौतम ! कितने ही जीव आत्मारम्भी भी हैं, परारम्भी भी हैं और उभयारम्भी भी हैं, किन्तु अनारम्भी नहीं है। कितने ही जीव आत्मारम्भी नहीं हैं, परारम्भी भी नहीं हैं, और न ही उभयारम्भी हैं, किन्तु अनारम्भी हैं। भगवन् ! किस कारण से आप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 23 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इहभविए भंते! नाणे? परभविए नाणे? तदुभयभविए नाणे?
गोयमा! इहभविए वि नाणे, परभविए वि नाणे, तदुभयभविए वि नाणे।
इहभविए भंते! दंसणे? परभविए दंसणे? तदुभयभविए दंसणे?
गोयमा! इहभविए वि दंसणे, परभविए वि दंसणे, तदुभयभविए वि दंसणे।
इहभविए भंते! चरित्ते? परभविए चरित्ते? तदुभयभविए चरित्ते?
गोयमा! इहभविए चरित्ते, नो परभविए चरित्ते, नो तदुभयभविए चरित्ते।
इहभविए भंते! तवे? परभविए तवे? तदुभयभविए तवे?
गोयमा! इहभविए तवे, नो परभविए तवे, नो तदुभयभविए तवे।
इहभविए भंते! संजमे? परभविए संजमे? तदुभयभविए संजमे?
गोयमा! इहभविए संजमे, नो परभविए संजमे, नो भदुभयभविए संजमे। Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या ज्ञान इहभविक है ? परभविक है ? या तदुभयभविक है ? गौतम ! ज्ञान इहभविक भी है, परभविक भी है, और तदुभयभविक भी है। इसी तरह दर्शन भी जान लेना चाहिए। हे भगवन् ! क्या चारित्र इहभविक है, परभविक है या तदुभयभविक है ? गौतम ! चारित्र इहभविक है, वह परभविक नहीं है और न तदुभय भविक है। इसी प्रकार तप और संयम के विषय में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 24 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] असंवुडे णं भंते! अनगारे सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाइ, सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–असंवुडे णं अनगारे नो सिज्झइ, नो बुज्झइ, नो मुच्चइ, नो परिनिव्वाइ, नो सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ?
गोयमा! असंवुडे अनगारे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनिय-बंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वानुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं Translated Sutra: भगवन् ! असंवृत अनगार क्या सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, निर्वाण प्राप्त करता है तथा समस्त दुःखों का अन्त करता है ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! वह किस कारण से सिद्ध नहीं होता, यावत् सब दुःखों का अन्त नहीं करता ? गौतम ! असंवृत्त अनगार आयुकर्म को छोड़कर शेष शिथिलबन्धन से बद्ध सात कर्मप्रकृतियों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 25 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्चा देवे सिया?
गोयमा! अत्थेगइए देवे सिया, अत्थेगइए नो देवे सिया।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मेव इओ चुए पेच्चा अत्थेगइए देवे सिया, अत्थेगइए नो देवे सिया?
गोयमा! जे इमे जीवा गामागर-नगर-निगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणा- सम-सन्निवेसेसु अकामतण्हाए, अकामछुहाए, अकामबंभचेरवासेनं, अकामसीता-तव-दंसमसग अण्हागय-सेय-जल्ल-मल-पंक-परिदाहेणं अप्पतरं वा भुज्जतरं वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु वाणमंतरेसु देवलोगेसु Translated Sutra: भगवन् ! असंयत, अविरत, तथा जिसने पापकर्म का हनन एवं त्याग नहीं किया है, वह जीव इस लोक में च्यव (मर) कर क्या परलोक में देव होता है ? गौतम ! कोई जीव देव होता है और कोई जीव देव नहीं होता। भगवन् ! यहाँ से च्यवकर परलोक में कोई जीव देव होता है, और कोई जीव देव नहीं होता; इसका क्या कारण है? गौतम ! जो ये जीव ग्राम, आकर, नगर, निगम, राजधानी, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Hindi | 26 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे समोसरणं। परिसा निग्गया जाव एवं वयासी–
जीवे णं भंते! सयंकडं दुक्खं वेदेइ?
गोयमा! अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइयं वेदेइ? अत्थेगइयं नो वेदेइ?
गोयमा! उदिण्णं वेदेइ, नो अनुदिण्णं वेदेइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ।
एवं–जाव वेमाणिए।
जीवा णं भंते! सयंकडं दुक्खं वेदेंति?
गोयमा! अत्थेगइयं वेदेंति, अत्थेगइयं नो वेदेंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइयं वेदेंति? अत्थेगइयं नो वेदेंति?
गोयमा! उदिण्णं वेदेंति, नो अनुदिण्णं वेदेंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– अत्थेगइयं Translated Sutra: राजगृह नगरमें (भगवान का) समवसरण हुआ। परीषद् नीकली। यावत् (श्री गौतमस्वामी) इस प्रकार बोले – भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख (कर्म) को भोगता है ? गौतम ! किसी को भोगता है, किसी को नहीं भोगता। भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! उदीर्ण दुःख को भोगता है, अनुदीर्ण दुःख – कर्म को नहीं भोगता; इसीलिए कहा गया है कि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Hindi | 27 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! सव्वे समाहारा? सव्वे समसरीरा? सव्वे समुस्सासनीसासा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया नो सव्वे समाहारा? नो सव्वे समसरीरा? नो सव्वे समुस्ससानीसासा?
गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–महासरीरा य, अप्पसरीरा य। तत्थ णं जे ते महासरीरा ते बहुत्तराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति; अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्ससंति, अभिक्खणं नीससंति।
तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी नारक समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास – निःश्वास वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; जैसे कि – महाशरीरी और अल्पशरीरी। इनमें जो बड़े शरीर वाले हैं, वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत पुद्गलों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Hindi | 29 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! छ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा।
लेस्साणं बीओ उद्देसो भाणियव्वो जाव इड्ढी। Translated Sutra: ‘भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही हैं ?’ गौतम ! लेश्याएं छह कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं – कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के लेश्यापद का द्वीतिय उद्देशक ऋद्धि की वक्तव्यता तक कहना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Hindi | 30 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवस्स णं भंते! तीतद्धाए आदिट्ठस्स कइविहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते, तं जहा– नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले, तिरिक्ख-जोणियसंसारसंचिट्ठणकाले, मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, देवसंसारसंचिट्ठणकाले।
नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले, असुन्नकाले, मिस्सकाले।
तिरिक्खजोणियसंसार संचिट्ठिणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–असुन्नकाले य, मिस्सकाले य।
मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले, Translated Sutra: भगवन् ! अतीतकाल में आदिष्ट – नारक आदि विशेषण – विशिष्ट जीव का संसार – संस्थानकाल कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! संसार – संस्थान – काल चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – नैरयिकसंसार – संस्थानकाल, तिर्यंचसंसार – संस्थानकाल, मनुष्यसंसार – संस्थानकाल और देवसंसार – संस्थानकाल। भगवन् ! नैरयिकसंसार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Hindi | 31 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! अंतकिरियं करेज्जा?
गोयमा! अत्थेगइए करेज्जा, अत्थेगइए नो करेज्जा। अंतकिरियापयं नेयव्वं। Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ? गौतम ! कोई जीव अन्तक्रिया करता है, कोई जीव नहीं करता। इस सम्बन्ध में प्रज्ञापनासूत्र का अन्तक्रिया पद जान लेना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Hindi | 33 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! असण्णिआउए पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे असण्णिआउए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयअसण्णिआउए, तिरिक्खजोणिय-असण्णि- आउए, मनुस्सअसण्णिआउए, देवअसण्णिआउए।
असण्णी णं भंते! जीवे किं नेरइयाउयं पकरेइ? तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ? मनुस्साउयं पकरेइ? देवाउयं पकरेइ?
हंता गोयमा! नेरइयाउयं पि पकरेइ, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेइ, मनुस्साउयं पि पकरेइ, देवाउयं पि पकरेइ।
नेरइयाउयं पकरेमाणे जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ।
तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ।
मनुस्साउयं पकरेमाणे जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! असंज्ञी का आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! असंज्ञी का आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – नैरयिक – असंज्ञी आयुष्य, तिर्यंच – असंज्ञी आयुष्य, मनुष्य – असंज्ञी आयुष्य और देव – असंज्ञी आयुष्य। भगवन् ! असंज्ञी जीव क्या नरक का आयुष्य उपार्जन करता है, तिर्यंचयोनिक का आयुष्य उपार्जन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 34 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं भंते! कंखामोहणिज्जे कम्मे कडे?
हंता कडे।
से भंते! किं १. देसेणं देसे कडे? २. देसेणं सव्वे कडे? ३. सव्वेणं देसे कडे? ४. सव्वेणं सव्वे
कडे?
गोयमा! १. नो देसेणं देसे कडे २. नो देसेणं सव्वे कडे ३. नो सव्वेणं देसे कडे ४. सव्वेणं
सव्वे कडे।
नेरइयाणं भंते! कंखामोहणिज्जे कम्मे कडे?
हंता कडे।
से भंते! किं १. देसेणं देसे कडे? २. देसेणं सव्वे कडे? ३. सव्वेणं देसे कडे? ४. सव्वेणं सव्वे
कडे?
गोयमा! १. नो देसेणं देसे कडे २. नो देसेणं सव्वे कडे ३. नो सव्वेणं देसे कडे ४. सव्वेणं
सव्वे कडे।
एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ भाणियव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीवों का कांक्षामोहनीय कर्म कृतक्रियानिष्पादित (किया हुआ) है ? हाँ, गौतम ! वह कृत है। भगवन् ! क्या वह देश से देशकृत है, देश से सर्वकृत है, सर्व से देशकृत है अथवा सर्व से सर्वकृत है ? गौतम ! वह देश से देशकृत नहीं है, देश से सर्वकृत नहीं है, सर्व से देशकृत नहीं है, सर्व से सर्वकृत है। भगवन् ! क्या नैरयिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 35 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं करिंसु?
हंता करिंसु।
तं भंते! किं १. देसेणं देसं करिंसु? २. देसेणं सव्वं करिंसु? ३. सव्वेणं देसं करिंसु? ४. सव्वेणं सव्वं करिंसु?
गोयमा! १. नो देसेणं देसं करिंसु, २. नो देसेणं सव्वं करिंसु, ३. नो सव्वेणं देसं करिंसु। ४. सव्वेणं सव्वं करिंसु।
एएणं अभिलावेणं दंडओ भाणियव्वो, जाव वेमाणियाणं।
एवं करेंति। एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं।
एवं करिस्संति। एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं।
एवं चिए, चिणिंसु, चिणंति, चिणिस्संति। उवचिए, उवचिणिंसु, उवचिणंति, उवचिणिस्संति। उदीरेंसु, दीरेंति उदीरिस्संति। वेदेंसु, वेदेंति, वेदिस्संति। निज्जरेंसु, निज्जरेंति, Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीवों ने कांक्षामोहनीय कर्म का उपार्जन किया है ? हाँ, गौतम ! किया है। भगवन् ! क्या वह देश से देशकृत है ? पूर्वोक्त प्रश्न वैमानिक तक करना। इस प्रकार ‘कहते हैं’ यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार ‘करते हैं’ यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार ‘करेंगे’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 37 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति?
हंता वेदेंति।
कहन्नं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति?
गोयमा! तेहिं तेहिं कारणेहिं संकिया, कंखिया, वितिगिंछिया, भेदसमावन्ना, कलुससमावन्ना–एव खलु जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति। Translated Sutra: ‘भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ?’ हाँ, गौतम ! वेदन करते हैं। भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म को किस प्रकार वेदते हैं ? गौतम ! उन – उन (अमुक – अमुक) कारणों से शंकायुक्त, कांक्षायुक्त, विचिकित्सायुक्त, भेदसमापन्न एवं कलुषसमापन्न होकर; इस प्रकार जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 38 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं?
हंता गोयमा! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं। Translated Sutra: भगवन् ! क्या वही सत्य और निःशंक हैं, जो जिन – भगवंतों ने निरूपित किया है? हाँ, गौतम ! वही सत्य और निःशंक है, जो जिनेन्द्रों द्वारा निरूपित है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 39 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! एवं मणं धारेमाणे, एवं पकरेमाणे, एवं चिट्ठेमाणे, एवं संवरेमाणे आणाए आराहए भवति?
हंता गोयमा! एवं मणं धारेमाणे एवं पकरेमाणे, एवं चिट्ठेमाणे, एवं संवरेमाणे आणाए आराहए भवति। Translated Sutra: भगवन् ! (वही सत्य और निःशंक है, जो जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित है) इस प्रकार मन में धारण (निश्चय) करता हुआ, उसी तरह आचरण करता हुआ, यों रहता हुआ, इसी तरह संवर करता हुआ जीव क्या आज्ञा का आराधक होता है ? हाँ, गौतम ! इसी प्रकार मन में निश्चय करता हुआ यावत् आज्ञा का आराधक होता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 40 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ? नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ?
हंता गोयमा! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ। नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ।
जं णं भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ, तं किं पयोगसा? वीससा?
गोयमा! पयोगसा वि तं [अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ।]
वीससा वि तं [अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्ते परिणमइ।]
जहा ते भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, तहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ? जहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ, तहा ते अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ?
हंता गोयमा! जहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, तहा Translated Sutra: भगवन् ! क्या अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है, तथा नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है ? हाँ, गौतम ! अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है। भगवन् ! वह जो अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है, सो क्या वह प्रयोग (जीव के व्यापार) | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 41 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जहा ते भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं, तहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं? जहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं, तहा ते अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं?
हंता गोयमा! जहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं, तहा मे नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं।
जहा मे नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं, तहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं।
जहा ते भंते! एत्थं गमणिज्जं, तहा ते इहं गमणिज्जं? जहा ते इहं गमणिज्जं, तहा ते एत्थं गमणिज्जं?
हंता गोयमा! जहा मे एत्थं गमणिज्जं, तहा मे इहं गमणिज्जं। जहा मे इहं गमणिज्जं तहा मे एत्थं गमणिज्जं। Translated Sutra: भगवन् ! जैसे आपके मत में यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है, उसी प्रकार इह (परात्मा में भी) गमनीय है, जैसे आपके मत में इह (परात्मा में) गमनीय है, उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) भी गमनीय है ? हाँ, गौतम ! जैसे मेरे मत में यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है, यावत् उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 42 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंति?
हंता बंधंति।
कहन्नं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंति?
गोयमा! पमादपच्चया, जोगनिमित्तं च।
से णं भंते! पमादे किंपवहे?
गोयमा! जोगप्पवहे।
से णं भंते! जीए किंपवहे?
गोयमा! वीरियप्पवहे।
से णं भंते! वीरिए किंपवहे?
गोयमा! सरीरप्पवहे।
से णं भंते! सरीरे किंपवहे?
गोयमा! जीवप्पवहे।
एवं सति अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं। भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बाँधते हैं ? गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से (जीव कांक्षामोहनीय कर्म बाँधते हैं)। ‘भगवन् ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ?’ गौतम ! प्रमाद, योग से उत्पन्न होता है। ‘भगवन् ! योग किससे उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 43 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति? अप्पणा चेव गरहति? अप्पणा चेव संवरेति?
हंता गोयमा! अप्पणा चेव उदीरेति। अप्पणा चेव गरहति। अप्पणा चेव संवरेति।
जं णं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति, अप्पणा चेव गरहति, अप्पणा चेव संवरेति, तं किं–१. उदिण्णं उदीरेति? २. अनुदिण्णं उदीरेति? ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति? ४. उदयानंतर-पच्छाकडं कम्मं उदीरेति?
गोयमा! १. नो उदिण्णं उदीरेति। २. नो अनुदिण्णं उदीरेति। ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति। ४. नो उदयानंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेति।
जं णं भंते! अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति, तं किं उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसक्कारपरक्कमेणं Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव अपने आपसे ही उस (कांक्षामोहनीय कर्म) की उदीरणा करता है, अपने आप से ही उसकी गर्हा करता है और अपने आप से ही उसका संवर करता है ? हाँ, गौतम ! जीव अपने आप से ही उसकी उदीरणा, गर्हा और संवर करता है। भगवन् ! वह जो अपने आप से ही उसकी उदीरणा करता है, गर्हा करता है और संवर करता है, तो क्या उदीर्ण की उदीरणा करता है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 44 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति?
जहा ओहिया जीवा तहा नेरइया जाव थणियकुमारा।
पुढविक्काइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति?
हंता वेदेंति।
कहन्नं भंते! पुढविक्काइया कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति?
गोयमा! तेसि णं जीवाणं नो एवं तक्का इ वा, सण्णा इ वा, पण्णा इ वा, मने इ वा, वई ति वा– अम्हे णं कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेमो, वेदेंति पुण ते।
से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं?
हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं।
सेसं तं चेव जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा।
एवं जाव चउरिंदिया।
पंचिंदियतिरिक्खजोणिया Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदन करते हैं। सामान्य (औघिक) जीवों के सम्बन्ध में जैसे आलापक कहे थे, वैसे ही नैरयिकों के सम्बन्ध में यावत् स्तनितकुमारों तक समझ लेने चाहिए। भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! वे वेदन करते हैं। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Hindi | 45 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति?
हंता अत्थि।
कहन्नं भंते! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति?
गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं, दंसणंतरेहिं, चरित्तंतरेहिं, लिंगंतरेहिं, पवयणंतरेहिं, पावयणंतरेहिं, कप्पंतरेहिं, मग्गंतरेहिं, मतंतरेहिं, भगंतरेहिं, नयतरेहिं, नियमंतरेहिं, पमाणंतरेहिं संकिता कंखिता वितिकिच्छता भेदसमावन्ना कलुससमावन्ना– एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा-मोहणिज्जं कम्मं वेदेंति।
से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं?
हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं।
एवं जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ Translated Sutra: भगवन् ! क्या श्रमणनिर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन् ! श्रमणनिर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन किस प्रकार करते हैं ? गौतम ! उन – उन कारणों से ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगान्तर, प्रवचनान्तर, प्रावचनिकान्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति | Hindi | 46 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, कम्मप्पगडीए पढमो उद्देसो नेयव्वो जाव अनुभागो समत्तो। Translated Sutra: भगवन् ! कर्म – प्रकृतियाँ कितनी कही है ? गौतम ! आठ। यहाँ ‘कर्मप्रकृति’ नामक तेईसवें पद का (यावत्) अनुभाग तक सम्पूर्ण जान लेना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति | Hindi | 48 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं उवट्ठाएज्जा?
हंता उवट्ठाएज्जा।
से भंते! किं वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा?
गोयमा! वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। नो अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा।
जइ वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा, किं–बालवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? पंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? बालपंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा?
गोयमा! बालवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। नो पंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। नो बालपंडिय-वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा।
जीवे णं भंते! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं अवक्कमेज्जा?
हंता अवक्कमेज्जा।
से भंते! किं वीरियत्ताए अवक्कमेज्जा? अवीरियत्ताए Translated Sutra: भगवन् ! कृतमोहनीय कर्म जब उदीर्ण हो, तब जीव उपस्थान – परलोक की क्रिया के लिए उद्यम करता है? हाँ, गौतम ! करता है। भगवन् ! क्या जीव वीर्यता – सवीर्य होकर उपस्थान करता है या अवीर्यता से ? गौतम ! जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, अवीर्यता से नहीं करता। भगवन् ! यदि जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, तो क्या बालवीर्य से करता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति | Hindi | 49 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो?
हंता गोयमा! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ नेरइयस्स वा तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो? एवं खलु मए गोयमा! दुविहे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा– पदेसकम्मे य, अनुभागकम्मे य।
तत्थ णं जं णं पदेसकम्मं तं नियमा वेदेइ। तत्थ णं जं णं अनुभागकम्मं तं अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ।
नायमेयं अरहया, Translated Sutra: भगवन् ! नारक तिर्यंचयोनिक, मनुष्य या देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना क्या मोक्ष नहीं होता? हाँ, गौतम ! नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना मोक्ष नहीं होता। भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! मैंने कर्म के दो भेद बताए हैं। प्रदेशकर्म और अनुभाग – कर्म। इनमें | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति | Hindi | 50 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! पोग्गले तीतं अनंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया?
हंता गोयमा! एस णं पोग्गले तीतं अनंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया।
एस णं भंते! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं भवतीति वत्तव्वं सिया?
हंता गोयमा! एस णं पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं भवतीति वत्तव्वं सिया।
एस णं भंते! पोग्गले अनागयं अनंतं सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया?
हंता गोयमा! एस णं पोग्गले अनागयं अनंतं सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया।
एस णं भंते! खंधे तीतं अनंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया?
हंता गोयमा! एस णं खंधे तीतं अनंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया।
एस णं भंते! खंधे पडुप्पन्नं Translated Sutra: भगवन् ! क्या यह पुद्गल – परमाणु अतीत, अनन्त, शाश्वत काल में था – ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! यह पुद्गल अतीत, अनन्त, शाश्वतकाल में था, ऐसा कहा जा सकता है। भगवन् ! क्या यह पुद्गल वर्तमान शाश्वत है ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है। हे भगवन् ! क्या यह पुद्गल अनन्त और शाश्वत भविष्यकाल में रहेगा, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति | Hindi | 51 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीतं अनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिणिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मनुस्से तीतं अनंतं सासयं समयं–केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं नो सिज्झिंसु? नो बुज्झिंसु? नो मुच्चिंसु? नो परिनिव्वाइंसु? नो सव्वदुक्खाणं अंतं करिंसु?
गोयमा! जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा–सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा– सव्वे Translated Sutra: भगवन् ! क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से, केवल ब्रह्म – चर्यवास से और केवल (अष्ट) प्रवचनमाता (के पालन) से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करने वाला हुआ है ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जो भी कोई मनुष्य | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Hindi | 52 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं० रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमप्पभा, तमतमा
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! (अधोलोक में) कितनी पृथ्वीयाँ (नरकभूमियाँ) कही गई हैं ? गौतम ! सात पृथ्वीयाँ हैं। रत्नप्रभा से लेकर यावत् तमस्तमःप्रभा तक। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नारकावास कहे गए हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं। नारकावासों की संख्या बताने वाली गाथा – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Hindi | 54 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! चोयट्ठी असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता। एवं– Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख आवास हैं ? गौतम ! इस प्रकार हैं। |