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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 45 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: पमत्ते गारमावसे

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 46 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वगेणरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाती-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा वणस्सइ-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं

Translated Sutra: तू देख ! ज्ञानी हिंसा से लज्जित/विरत रहते हैं। ‘हम गृहत्यागी हैं’, यह कहते हुए भी कुछ लोग नाना प्रकार के शस्त्रों से, वनस्पतिकायिक जीवों का समारंभ करते हैं। वनस्पतिकाय की हिंसा करते हुए वे अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं। इस विषयमें भगवान ने परिज्ञा की है – इस जीवन के लिए, प्रशंसा, सम्मान, पूजा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 47 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। (जाव) अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि–इमंपि जाइधम्मयं, एयंपि जाइधम्मयं। इमंपि बुड्ढिधम्मयं, एयंपि बुड्ढिधम्मयं। इमंपि चित्तमंतयं, एयंपि चित्तमंतयं। इमंपि छिन्नं मिलाति, एयंपि छिन्नं मिलाति। इमंपि आहारगं, एयंपि आहारगं। इमंपि अनिच्चयं, एयंपि अनिच्चयं। इमंपि असासयं, एयंपि असासयं। इमंपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं। इमंपि विपरिनामधम्मयं, एयंपि विपरिनामधम्मयं।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – यह मनुष्य भी जन्म लेता है, यह वनस्पति भी जन्म लेती है। यह मनुष्य भी बढ़ता है, यह वनस्पति भी बढ़ती है। यह मनुष्य भी चेतना युक्त है, यह वनस्पति भी चेतना युक्त है। यह मनुष्य शरीर छिन्न होने पर म्लान हो जाता है। यह वनस्पति भी छिन्न होने पर म्लान होती है। यह मनुष्य भी आहार करता है, यह वनस्पति भी आहार करती
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 48 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी– नेव सयं वणस्सइ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वणस्सइ-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवन्नेवणस्सइ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते वणस्सइ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ करता है, वह उन आरंभो/आरंभजन्य कटुफलों से अनजान रहता है। जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का प्रयोग नहीं करता, उसके लिए आरंभ परिज्ञात है। यह जानकर मेधावी स्वयं वनस्पति का समारंभ न करे, न दूसरों से समारंभ करवाए और न समारंभ करने वालों का अनुमोदन करे जिसको यह वनस्पति सम्बन्धी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Hindi 49 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–संतिमे तसा पाणा, तं जहा–अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भिया ओव-वाइया। एस संसारेत्ति पवुच्चति।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – ये सब त्रस प्राणी हैं, जैसे – अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, सम्मूर्च्छिम, उद्‌भिज्ज और औपपातिक। यह संसार कहा जाता है। मंद तथा अज्ञानी जीव को यह संसार होता है। मैं चिन्तन कर, सम्यक्‌ प्रकार देखकर कहता हूँ – प्रत्येक प्राणी परिनिर्वाण चाहता है। सूत्र – ४९, ५०
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 22 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं।

Translated Sutra: मुनि की आज्ञा से लोक को – अर्थात्‌ अप्काय के जीवों का स्वरूप जानकर उन्हें अकुतोभय बना दे। संयत रहे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 23 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि– नेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा। जे लोयं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोयं अब्भाइक्खइ।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – मुनि स्वयं, लोक – अप्कायिक जीवों के अस्तित्व का अपलाप न करे। न अपनी आत्मा का अपलाप करे। जो लोक का अपलाप करता है, वह वास्तव में अपना ही अपलाप करता है। जो अपना अपलाप करता है, वह लोक के अस्तित्व को अस्वीकार करता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 24 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं सुबंज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं ‘विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: तू देख ! सच्चे साधक हिंसा (अप्काय की) करने में लज्जा अनुभव करते हैं। और उनको भी देख, जो अपने आपको ‘अनगार’ घोषित करते हैं, वे विविध प्रकार के शस्त्रों द्वारा जल सम्बन्धी आरंभ – समारंभ करते हुए जल – काय के जीवों की हिंसा करते हैं। और साथ ही तदाश्रित अन्य अनेक जीवों की भी हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 30 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थवि तेसिं नो णिकरणाए।

Translated Sutra: अपने शास्त्र का प्रमाण देकर जलकाय ही हिंसा करने वाले साधु, हिंसा के पाप से विरत नहीं हो सकते।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 31 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं उदय-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं उदय-सत्थं समारंभावेज्जा, उदय-सत्थं समारंभंतेवि अन्ने न समणुजाणेज्जा। जस्सेते उदय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णात-कम्मे।

Translated Sutra: जो यहाँ, शस्त्र – प्रयोग कर जलकाय के जीवों का समारम्भ करता है, वह इन आरंभों से अनभिज्ञ है। जो जलकायिक जीवों पर शस्त्र – प्रयोग नहीं करता, वह आरंभों का ज्ञाता है, वह हिंसा – दोष से मुक्त होता है। बुद्धिमान मनुष्य यह जानकर स्वयं जलकाय का समारंभ न करे, दूसरों से न करवाए, उसका समारंभ करने वालों का अनुमोदन न करे। जिसको
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 32 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘से बेमि’–नेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा। जे लोगं अब्भाइक्खवइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – वह कभी भी स्वयं लोक (अग्निकाय) के अस्तित्व का, अपलाप न करे। न अपनी आत्मा के अस्तित्व का अपलाप करे। क्योंकि जो लोक (अग्निकाय) का अपलाप करता है, वह अपने आप का अपलाप करता है। जो अपने आप का अपलाप करता है वह लोक का अपलाप करता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 33 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे। जे असत्थस्स खेयण्णे, से दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे।

Translated Sutra: जो दीर्घलोकशस्त्र (अग्निकाय) के स्वरूप को जानता है, वह अशस्त्र (संयम) का स्वरूप भी जानता है। जो संयम का स्वरूप जानता है वह दीर्घलोक – शस्त्र का स्वरूप भी जानता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 35 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे पमत्ते गुणट्ठिए, से हु दंडे पवुच्चति।

Translated Sutra: जो प्रमत्त है, गुणों का अर्थी है, वह हिंसक कहलाता है। यह जानकर मेधावी पुरुष (संकल्प करे) – अब मैं वह (हिंसा) नहीं करूँगा जो मैंने प्रमाद के वश होकर पहले किया था। सूत्र – ३५, ३६
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 37 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव अगणि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेहिं नायं भवति– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: तू देख ! संयमी पुरुष जीव – हिंसा में लज्जा का अनुभव करते हैं। और उनको भी देख, जो हम ‘अनगार हैं’ यह कहते हुए भी अनेक प्रकार के शस्त्रों से अग्निकाय की हिंसा करते हैं। अग्निकाय के जीवों की हिंसा करते हुए अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा का निरूपण किया है। कुछ मनुष्य इस
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 38 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि– अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे।(जाव) अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि– संति पाणा पुढवि- निस्सिया, तण- निस्सिया, पत्त- निस्सिया, कट्ठ- निस्सिया, गोमय- निस्सिया, कयवर- निस्सिया। संति संपातिमा पाणा, आहच्च संपयंति य। अगणिं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति। जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंति। जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उद्दायंति।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – बहुत से प्राणी – पृथ्वी, तृण, पत्र, काष्ठ, गोबर और कूड़ा – कचरा आदि के आश्रित रहते हैं। कुछ सँपातिम प्राणी होते हैं जो उड़ते – उड़ते नीचे गिर जाते हैं। ये प्राणी अग्नि का स्पर्श पाकर संघात को प्राप्त होते हैं। शरीर का संघात होने पर अग्नि की उष्मा से मूर्च्छित हो जाते हैं। बाद में मृत्यु को प्राप्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 39 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं अगणि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं अगणि-सत्थे समारंभावेज्जा, अगणि-सत्थं समारंभमाणे अन्ने न समणुजाणेज्जा। जस्सेते अगणि-कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: जो अग्निकाय के जीवों पर शस्त्र – प्रयोग करता है, वह इन आरंभ – समारंभ क्रियाओं के कटु परिणामों से अपरिज्ञात होता है। जो अग्निकाय पर शस्त्र – समारंभ नहीं करता है, वास्तव में वह आरंभ का ज्ञाता हो जाता है। जिसने यह अग्नि – कर्म – समारंभ भली भाँति समझ लिया है, वही मुनि है, वही परिज्ञात – कर्मा है। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Hindi 51 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निज्झाइत्ता पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं। सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अस्सायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति बेमि। तसंति पाणा पदिसोदिसासु य।

Translated Sutra: सब प्राणियों, सब भूतों, सब जीवों और सब सत्त्वों को असाता और अपरिनिर्वाण ये महाभयंकर और दुःखदायी हैं। मैं ऐसा कहता हूँ। ये प्राणी दिशा और विदिशाओं में, सब ओर से भयभीत/त्रस्त रहते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Hindi 53 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संति पाणा पुढो सिया। लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकाय-समारंभेणं तसकाय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव तसकाय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा तसकाय-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा तसकाय-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं ‘वा अंतिए’ इहमेगेसिं नायं भवइ– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए

Translated Sutra: तू देख ! संयमी साधक जीव हिंसा में लज्जा का अनुभव करते हैं और उनको भी देख, जो ‘हम गृहत्यागी हैं’ यह कहते हुए भी अनेक प्रकार के उपकरणों से त्रसकाय का समारंभ करते हैं। त्रसकाय की हिंसा करते हुए वे अन्य अनेक प्राणों की भी हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा है। कोई मनुष्य इस जीवन के लिए प्रशंसा, सम्मान, पूजा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Hindi 54 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि–अप्पेगे अच्चाए वहंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, अप्पेगे हिययाए वहंति, अप्पेगे पित्ताए वहंति, अप्पेगे वसाए वहंति, अप्पेगे पिच्छाए वहंति, अप्पेगे पुच्छाए वहंति, अप्पेगे बालाए वहंति, अप्पेगे सिंगाए वहंति, अप्पेगे विसाणाए वहंति, अप्पेगे दंताए वहंति, अप्पेगे दाढाए वहंति, अप्पेगे नहाए वहंति, अप्पेगे ण्हारुणीए वहंति, अप्पेगे अट्ठीए वहंति, अप्पेगे अट्ठिमिंजाए वहंति, अप्पेगे अट्ठाए वहंति, अप्पेगे अणुट्ठाए

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – कुछ मनुष्य अर्चा के लिए जीवहिंसा करते हैं। कुछ मनुष्य चर्म के लिए, माँस, रक्त, हृदय, पित्त, चर्बी, पंख, पूँछ, केश, सींग, विषाण, दाँत, दाढ़, नख, स्नायु, अस्थि और अस्थिमज्जा के लिए प्राणियों की हिंसा करते हैं। कुछ प्रयोजन – वश, कुछ निष्प्रयोजन ही जीवों का वध करते हैं। कुछ व्यक्ति (इन्होंने मेरे स्वजनादि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Hindi 55 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं तसकाय-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं तसकाय-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवन्नेतसकाय-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते तसकाय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: जो त्रसकायिक जीवों की हिंसा करता है, वह इन आरंभ (आरंभजनित कुपरिणामों) से अनजान ही रहता है जो त्रसकायिक जीवों की हिंसा नहीं करता है, वह इन आरंभों से सुपरिचित है। यह जानकर बुद्धिमान्‌ मनुष्य स्वयं त्रसकाय – शस्त्र का समारंभ न करे, दूसरों से समारंभ न करवाए, समारंभ करने वालों का अनुमोदन भी न करे। जिसने त्रसकाय –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Hindi 57 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयंकदंसी अहियं ति नच्चा। जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ। जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ। एयं तुलमन्नेसिं।

Translated Sutra: साधनाशील पुरुष हिंसा में आतंक देखता है, उसे अहित मानता है। जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य को भी जानता है। जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। इस तुला का अन्वेषण कर, चिन्तन कर।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Hindi 59 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव वाउ-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा वाउ-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा वाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवइ–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं

Translated Sutra: तू देख ! प्रत्येक संयमी पुरुष हिंसा में लज्जा का अनुभव करता है। उन्हें भी देख, जो ‘हम गृहत्यागी हैं’ यह कहते हुए विविध प्रकार के शस्त्रों से वायुकाय का समारंभ करते हैं। वायुकाय – शस्त्र का समारंभ करते हुए अन्य अनेक प्राणियों की हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा निरूपण किया है। कोई मनुष्य, इस जीवन
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Hindi 60 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि–संति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंति य। फरिसं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति। जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंति, जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उद्दायंति। एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं वाउ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वाउ-सत्थ समारंभावेज्जा, नेवन्नेवाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते वाउ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – संपातिम – प्राणी होते हैं। वे वायु से प्रताड़ित होकर नीचे गिर जाते हैं। वे प्राणी वायु का स्पर्श होने से सिकुड़ जाते हैं। जब वे वायु – स्पर्श से संघातित होते हैं, तब मूर्च्छित हो जाते हैं। जब वे जीव मूर्च्छा को प्राप्त होते हैं तो वहाँ मर भी जाते हैं। जो वहाँ वायुकायिक जीवों का समारंभ करता है, वह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Hindi 61 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थं पि जाणे उवादीयमाणा। जे आयारे न रमंति। आरंभमाणा विणयं वियंति। छंदोवणीया अज्झोववण्णा। ‘आरंभसत्ता पकरेंति संगं’।

Translated Sutra: तुम यहाँ जानो ! जो आचार में रमण नहीं करते, वे कर्मों से बंधे हुए हैं। वे आरंभ करते हुए भी स्वयं को संयमी बताते हैं अथवा दूसरों को विनय – संयम का उपदेश करते हैं। ये स्वच्छन्दचारी और विषयों में आसक्त होते हैं। वे आरंभ में आसक्त रहते हुए पुनः पुनः कर्म का संग करते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Hindi 62 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मं। तं णोअन्नेसिं। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवन्नेछज्जीवणिकाय-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते छज्जीव-णिकाय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: वह वसुमान्‌ (ज्ञान – दर्शन – चारित्र – रूप धनयुक्त) सब प्रकार के विषयों पर प्रज्ञापूर्वक विचार करता है, अन्तः करण से पापकर्म को अकरणीय जाने, तथा उस विषय में अन्वेषण भी न करे। यह जानकर मेधावी मनुष्य स्वयं षट्‌ – जीवनिकाय का समारंभ न करे। दूसरों से समारंभ न करवाए। समारंभ करने वालों का अनुमोदन न करे। जिसने षट्‌
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 63 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे। इति से गुणट्ठी महता परियावेणं वसे पमत्ते– माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि-सयण-संगंथ-संथुया मे, विवित्तोवगरण-परियट्टण-भोयण-अच्छायणं मे, इच्चत्थं गढिए लोए– वसे पमत्ते। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकाल-समुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विणि-विट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो। अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणवाणं, तं जहा–

Translated Sutra: जो गुण (इन्द्रियविषय) हैं, वह (कषायरुप संसार का) मूल स्थान है। जो मूल स्थान है, वह गुण है। इस प्रकार विषयार्थी पुरुष, महान परिताप से प्रमत्त होकर, जीवन बीताता है। वह इस प्रकार मानता है, ‘‘मेरी माता है, मेरा पिता है, मेरा भाई है, मेरी बहन है, मेरी पत्नी है, मेरा पुत्र है, मेरी पुत्री है, मेरी पुत्र – वधू है, मेरा सखा –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 64 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोय-परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं, चक्खु-परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं, घाण-परिण्णाणेहिं परिहाय-माणेहिं, रस-परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं, फास-परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं। अविक्कंतं च खलु वयं संपेहाए। तओ से एगया मूढभावं जणयंति।

Translated Sutra: श्रोत्र – प्रज्ञान के परिहीन हो जाने पर, इसी प्रकार चक्षु – प्रज्ञान के, घ्राण – प्रज्ञान के, रस – प्रज्ञान के और स्पर्श प्रज्ञान के परिहीन होने पर (वह अल्प आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।) वय – अवस्था को तेजी से जाते हुए देखकर वह चिंताग्रस्त हो जाता है और फिर वह एकदा मूढ़भाव को प्राप्त हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 65 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जेहिं वा सद्धिं संवसति ‘ते वा णं’ एगया नियगा तं पुव्विं परिवयंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिवएज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमं पि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा। से न हस्साए, न किड्डाए, न रतीए, न विभूसाए।

Translated Sutra: वह जिनके साथ रहता है, वे स्वजन उसका तिरस्कार करने लगते हैं, उसे कटु व अपमानजनक वचन बोलते हैं। बाद में वह भी उन स्वजनों की निंदा करने लगता है। हे पुरुष ! वे स्वजन तेरी रक्षा करने में या तुझे शरण देने में समर्थ नहीं हैं। तू भी उन्हें त्राण, या शरण देने में समर्थ नहीं है। वह वृद्ध पुरुष, न हँसी – विनोद के योग्य रहता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 67 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीविए इह जे पमत्ता। से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपित्ता विलुंपित्ता उद्दवित्ता उत्तासइत्ता। अकडं करिस्सामित्ति मन्नमाणे। जेहिं वा सद्धिं संवसति ‘ते वा णं’ एगया नियगा तं पुव्विं पोसेंति, सो वा ते नियगे पच्छा पोसेज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा।

Translated Sutra: जो इस जीवन के प्रति प्रमत्त है, वह हनन, छेदन, भेदन, चोरी, ग्रामघात, उपद्रव और उत्‌त्रास आदि प्रवृत्तियों में लगा रहता है। ‘अकृत काम मैं करूँगा’ इस प्रकार मनोरथ करता रहता है। जिन स्वजन आदि के साथ वह रहता है, वे पहले कभी उसका पोषण करते हैं। वह भी बाद में उन स्वजनों का पोषण करता है। इतना स्नेह – सम्बन्ध होने पर भी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 68 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवाइय-सेसेण वा सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ, इहमेगेसिं असंजयाणं भोयणाए। तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते वा णं एगया नियगा तं पुव्विं परिहरंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिहरेज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा।

Translated Sutra: (मनुष्य) उपभोग में आने के बाद बचे हुए धन से, तथा जो स्वर्ण एवं भोगोपभोग की सामग्री अर्जित – संचित करके रखी है उसको सुरक्षित रखता है। उसे वह कुछ गृहस्थों के भोग के लिए उपयोग में लेता है। (प्रभूत भोगोपभोग के कारण फिर) कभी उसके शरीर में रोग की पीड़ा उत्पन्न होने लगती है। जिन स्वजन – स्नेहीयों के साथ वह रहता आया है, वे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 71 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खणं जाणाहि पंडिए।

Translated Sutra: जो अवस्था (यौवन एवं शक्ति) अभी बीती नहीं है, उसे देखकर, हे पण्डित ! क्षण (समय) को/अवसर को जान।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 72 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाव- सोय-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव नेत्त-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव घाण-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव जीह-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव फास-पण्णाणा अपरिहीणा। इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं पण्णाणेहिं अपरिहीणेहिं आयट्ठं सम्मं समणुवासिज्जासि।

Translated Sutra: जब तक श्रोत्र – प्रज्ञान परिपूर्ण है, इसी प्रकार नेत्र – प्रज्ञान, घ्राण – प्रज्ञान, रसना – प्रज्ञान और स्पर्श – प्रज्ञान परिपूर्ण हैं, तब तक – इन नानारूप प्रज्ञानों के परिपूर्ण रहते हुए आत्महित के लिए सम्यक्‌ प्रकार से प्रयत्नशील बने। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 73 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरइं आउट्टे से मेहावी। खणंसि मुक्के।

Translated Sutra: जो अरति से निवृत्त होता है, वह बुद्धिमान है। वह बुद्धिमान विषय – तृष्णा से क्षणभर में ही मुक्त हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 74 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणाणाए पुट्ठा ‘वि एगे’ नियट्टंति। मंदा मोहेण पाउडा। ‘अपरिग्गहा भविस्सामो’ समुट्ठाए, लद्धे कामेहिगाहंति। अणाणाए मुनिनो पडिलेहंति। एत्थ मोहे पुनो पुनो सण्णा। नो हव्वाए नो पाराए।

Translated Sutra: अनाज्ञा में – (वीतराग विहित – विधि के विपरीत) आचरण करने वाले कोई – कोई संयम – जीवन में परीषह आने पर वापस गृहवासी भी बन जाते हैं। वे मंदबुद्धि – अज्ञानी मोह से आवृत्त रहते हैं। कुछ व्यक्ति – ‘हम अपरिग्रही होंगे’ – ऐसा संकल्प करके संयम धारण करते हैं, किन्तु जब काम – सेवन (इन्द्रिय विषयों के सेवन) का प्रसंग उपस्थित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 75 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विमुक्का हु ते जना, जे जना पारगामिणो। लोभं अलोभेण दुगंछमाणे, लद्धे कामे नाभिगाहइ।

Translated Sutra: जो विषयों के दलदल से पारगामी होते हैं, वे वास्तव में विमुक्त हैं। अलोभ (संतोष) से लोभ को पराजित करता हुआ साधक काम – भोग प्राप्त होने पर भी उनका सेवन नहीं करता (लोभ – विजय ही पार पहुँचने का मार्ग है)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 76 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विणइत्तु लोभं निक्खम्म, एस अकम्मे जाणति-पासति। पडिलेहाए नावकंखति। एस अनगारेत्ति पवुच्चति। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकालसमुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विनिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो से आय-बले, से नाइ-बले, से मित्त-बले, से पेच्च-बले, से देव-बले, से राय-बले, से चोर-बले, से अतिहि-बले, से किवण-बले, से समण-बले। इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंड-समायाणं। सपेहाए भया कज्जति। पाव-मोक्खोत्ति मन्नमाणे। अदुवा आसंसाए।

Translated Sutra: जो लोभ से निवृत्त होकर प्रव्रज्या लेता है, वह अकर्म होकर (कर्मावरण से मुक्त होकर) सब कुछ जानता है, देखता है। जो प्रतिलेखना कर, विषय – कषायों आदि के परिणाम का विचार कर उनकी आकांक्षा नहीं करता, वह अनगार कहलाता है। (जो विषयों से निवृत्त नहीं होता) वह रात – दिन परितप्त रहता है। काल या अकाल में सतत प्रयत्न करता रहता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 77 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभावेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभंतं समणुजाणेज्जा। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि।

Translated Sutra: यह जानकर मेधावी पुरुष पहले बताए गए प्रयोजनों के लिए स्वयं हिंसा न करे, दूसरों से हिंसा न करवाए तथा हिंसा करने वाले का अनुमोदन न करे। यह मार्ग आर्य पुरुषों ने बताया है। कुशलपुरुष इन विषयों में लिप्त न हों ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 78 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘से असइं उच्चागोए, असइं नीयागोए। नो हीणे, नो अइरित्ते, नो पीहए’। इति संखाय के गोयावादी? के मानावादी? कंसि वा एगे गिज्झे? तम्हा पंडिए नो हरिसे, नो कुज्झे। भूएहिं जाण पडिलेह सातं।

Translated Sutra: यह पुरुष अनेक बार उच्चगोत्र और अनेकबार नीच गोत्र को प्राप्त हो चूका हो। इसलिए यहाँ न तो कोई हीन है और न कोई अतिरिक्त है। यह जानकर उच्चगोत्र की स्पृहा न करे। यह जान लेने पर कौन गोत्रवादी होगा? कौन मानवादी होगा ? और कौन किस एक गोत्र में आसक्त होगा ? इसलिए विवेकशील मनुष्य उच्चगोत्र प्राप्त होने पर हर्षित न हो और
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 79 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समिते एयाणुपस्सी। तं जहा–अंधत्तं बहिरत्तं मूयत्तं काणत्तं कुटत्तं खुज्जत्तं वडभत्तं सामत्तं सबलत्तं। सहपमाएणं अनेगरूवाओ जोणीओ संधाति, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेइ।

Translated Sutra: यह तू देख, इस पर सूक्ष्मतापूर्वक विचार कर। जो समित है वह इसको देखता है। जैसे – अन्धापन, बहरा – पन, गूँगापन, कानापन, लूला – लंगड़ापन, कुबड़ापन, बौनापन, कालापन, चितकबरापन आदि की प्राप्ति अपने प्रमाद के कारण होती है। वह अपने प्रमाद के कारण ही नाना प्रकार की योनियों में जाता है और विविध प्रकार के आघातों – दुखों का अनुभव
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 80 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से अबुज्झमाणे ‘हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे’। जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं, खेत्त-वत्थ ममायमाणाणं। आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता। न एत्थ तवो वा, दमो वा, नियमो वा दिस्सति। संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: वह प्रमादी पुरुष कर्म – सिद्धान्त को नहीं समझाता हुआ शारीरिक दुःखों से हत तथा मानसिक पीड़ाओं से उपहत – पुनः पुनः पीड़ित होता हुआ जन्म – मरण के चक्र में बार – बार भटकता है। जो मनुष्य, क्षेत्र – खुली भूमि तथा वास्तु – भवन – मकान आदि में ममत्व रखता है, उनको यह असंयत जीवन ही प्रिय लगता है। वे रंग – बिरंगे मणि, कुण्डल,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 82 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो। सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा। सव्वेसिं जीवियं पियं। तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए। तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मुनिणा हु एयं पवेइयं। अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए । अतीरंगमा

Translated Sutra: काल का अनागमन नहीं है, मृत्यु किसी क्षण आ सकती है। सब को आयुष्य प्रिय है। सभी सुख का स्वाद चाहते हैं। दुःख से धबराते हैं। वध अप्रिय है, जीवन प्रिय है। वे जीवित रहना चाहते हैं। सब को जीवन प्रिय है। वह परिग्रह में आसक्त हुआ मनुष्य, द्विपद और चतुष्पद का परिग्रह करके उनका उपयोग करता है। उनको कार्य में नियुक्त करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 83 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उद्देसो पासगस्स नत्थि। बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्टं अणुपरियट्टइ।

Translated Sutra: जो द्रष्टा है, (सत्यदर्शी है) उसके लिए उपदेश की आवश्यकता नहीं होती। अज्ञानी पुरुष, जो स्नेह के बंधन में बंधा है, काम – सेवन में अनुरक्त है, वह कभी दुःख का शमन नहीं कर पाता। वह दुःखी होकर दुःखों के आवर्त में बार – बार भटकता रहता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 84 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते वा णं एगया णियया पुव्विं परिवयंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिवएज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा। जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं। भोगामेव अणुसोयंति। इहमेगेसिं माणवाणं।

Translated Sutra: तब कभी एक समय ऐसा आता है, जब उस अर्थ – संग्रही मनुष्य के शरीर में अनेक प्रकार के रोग – उत्पात उत्पन्न हो जाते हैं। वह जिनके साथ रहता है, वे ही स्व – जन एकदा उसका तिरस्कार व निंदा करने लगते हैं। बाद में वह भी उनका तिरस्कार व निंदा करने लगता है। हे पुरुष ! स्वजनादि तुझे त्राण देने में, शरण देने में समर्थ नहीं हैं। तू
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 85 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ–अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए। ततो से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवति। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: यहाँ पर कुछ मनुष्यों को अपने, दूसरों के अथवा दोनों के सम्मिलित प्रयत्न से अल्प या बहुत अर्थ – मात्रा हो जाती है। वह फिर उस अर्थ – मात्रा में आसक्त होता है। भोग के लिए उसकी रक्षा करता है। भोग के बाद बची हुई विपुल संपत्ति के कारण वह महान्‌ वैभव वाला बन जाता है। फिर जीवन में कभी ऐसा समय आता है, जब दायाद हिस्सा बँटाते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 86 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे। तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु। जेण सिया तेण णोसिया। इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा। थीभि लोए पव्वहिए। ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं। से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए। उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे। अलं कुसलस्स पमाएणं। संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए। नालं पास। अलं ते एएहिं।

Translated Sutra: हे धीर पुरुष ! तू आशा और स्वच्छन्दता त्याग दे। उस भोगेच्छा रूप शल्य का सृजन तूने स्वयं ही किया है। जिस भोगसामग्री से तुझे सुख होता है उससे सुख नहीं भी होता है। जो मनुष्य मोहकी सघनतासे आवृत हैं, ढ़ंके हैं, वे इस तथ्य को कि पौद्‌गलिक साधनों से कभी सुख मिलता है, कभी नहीं, वे क्षण – भंगुर हैं, तथा वे ही शल्य नहीं जानते यह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 87 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एयं पास मुनि! महब्भयं। नाइवाएज्ज कंचणं। एस वीरे पसंसिए, जे न निविज्जति आदाणाए। ‘न मे देति’ न कुप्पिज्जा, थोवं लद्धुं न खिंसए। ‘पडिसेहिओ परिणमिज्जा’। एयं मोणं समणुवासेज्जासि

Translated Sutra: हे मुनि ! यह देख, ये भोग महान भयरूप हैं। भोगों के लिए किसी प्राणी की हिंसा न कर। वह वीर प्रशंसनीय होता है, जो संयम से उद्विग्न नहीं होता। ‘यह मुझे भिक्षा नहीं देता’ ऐसा सोचकर कुपित नहीं होना चाहिए थोड़ी भिक्षा मिलने पर दाता की निंदा नहीं करनी चाहिए। गृहस्वामी दाता द्वारा प्रतिबंध करने पर शान्त भाव से वापस लौट
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 88 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जमिणं विरूवरूवेहिं ‘सत्थेहिं लोगस्स कम्म-समारंभा’ कज्जंति, तं जहा–अप्पनो से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं नातीणं धातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्मकराणं कम्मकरीणं आएसाए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पायरासाए। सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए।

Translated Sutra: असंयमी पुरुष अनेक प्रकार के शस्त्रों द्वारा लोक के लिए कर्म समारंभ करते हैं। जैसे – अपने लिए, पुत्र, पुत्री, पुत्र – वधू, ज्ञातिजन, धाय, राजा, दास – दासी, कर्मचारी, कर्मचारिणी, पाहुने आदि के लिए तथा विविध लोगों को देने के लिए एवं सायंकालीन तथा प्रातःकालीन भोजन के लिए। इस प्रकार वे कुछ मनुष्यों के भोजन के लिए सन्निधि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 89 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समुट्ठिए अनगारे आरिए आरियपण्णे आरियदंसी ‘अयं संधीति अदक्खु’। से नाइए, नाइआवए, न समणुजाणइ। सव्वामगंधं परिण्णाय, निरामगंधो परिव्वए।

Translated Sutra: संयम – साधना में तत्पर हुआ आर्य, आर्यप्रज्ञ और आर्यदर्शी अनगार प्रत्येक क्रिया उचित समय पर ही करता है। वह ‘यह शिक्षा का समय – संधि है’ यह देखकर (भिक्षा के लिए जाए)। वह सदोष आहार को स्वयं ग्रहण न करे, न दूसरों से ग्रहण करवाए तथा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन नहीं करे। वह (अनगार) सब प्रकार के आमगंध (आधाकर्मादि दोषयुक्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 90 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदिस्समाणे कय-विक्कएसु। से न किणे, न किनावए, किणंतं न समणुजाणइ। से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे विणयण्णे समयण्णे भावण्णे, परिग्गहं अममायमाणे, कालेणुट्ठाइ, अपडिण्णे।

Translated Sutra: वह वस्तु के क्रय – विक्रय में संलग्न न हो। न स्वयं क्रय करे, न दूसरों से क्रय करवाए और न क्रय करने वाले का अनुमोदन करे। वह भिक्षु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रज्ञ है, क्षेत्रज्ञ है, क्षणज्ञ है, विनयज्ञ है, समयज्ञ है, भावज्ञ है। परिग्रह पर ममत्व नहीं रखने वाला, उचित समय पर उचित कार्य करने वाला अप्रतिज्ञ है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 92 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लद्धे आहारे अनगारे मायं जाणेज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं। लाभो त्ति न मज्जेज्जा। अलाभो त्ति न सोयए। बहुं पि लद्धुं न णिहे। परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा।

Translated Sutra: आहार प्राप्त होने पर, आगम के अनुसार, अनगार को उसकी मात्रा का ज्ञान होना चाहिए। ईच्छित आहार आदि प्राप्त होने पर उसका मद नहीं करे। यदि प्राप्त न हो तो शोक न करे। यदि अधिक मात्रा में प्राप्त हो, तो उसका संग्रह न करे। परिग्रह से स्वयं को दूर रखे।
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