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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
४१. समन्वयसूत्र | Hindi | 734 | View Detail | ||
Mool Sutra: स्वकं स्वकं प्रशंसन्तः, गर्हयन्तः, परं वचः।
ये तु तत्र विद्वस्यन्ते, संसारं ते व्युच्छ्रिता।।१३।। Translated Sutra: इसलिए जो पुरुष केवल अपने मत की प्रशंसा करते हैं तथा दूसरे के वचनों की निन्दा करते हैं और इस तरह अपना पांडित्य-प्रदर्शन करते हैं, वे संसार में मजबूती से जकड़े हुए हैं--दृढ़ रूप में आबद्ध हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१ |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–
इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोग-पज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियट्ट-च्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णुणा सव्व-दरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउका- मेणं Translated Sutra: हे आयुष्मन् ! उन भगवान ने ऐसा कहा है, मैने सूना है। [इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के अन्तिम समय में विद्यमान उन श्रमण भगवान महावीर ने द्वादशांग गणिपिटक कहा है, वे भगवान] – आचार आदि श्रुतधर्म के आदिकर हैं (अपने समय में धर्म के आदि प्रणेता हैं), तीर्थंकर हैं, (धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक हैं)। स्वयं सम्यक् बोधि को | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-८ |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ भयट्ठाणा पन्नत्ता, तं० जातिमए कुलमए बलमए रूवमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए।
अट्ठ पवयणमायाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– इरियासमिई भासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्त-निक्खेवणासमिई उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्लपारिट्ठावणियासमिई मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती
वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते।
जंबुद्दीवस्स णं जगई अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
अट्ठसामइए केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं Translated Sutra: आठ मदस्थान कहे गए हैं। जैसे – जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद। आठ प्रवचन – माताएं कही गई हैं। जैसे – ईयासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान – भाण्ड – मात्र निक्षेपणासमिति, उच्चार – प्रस्रवण – खेल सिंधारण – परिष्ठापनासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति। वाणव्यन्तर देवों के | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-९ |
Hindi | 13 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पासे णं अरहा नव रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
अभीजिनक्खत्ते साइरेगे नव मुहुत्ते चंदेणं सद्धिं जोगं जोएइ।
अभीजियाइया नव नक्खत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा– अभीजि सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तरापोट्ठवया रेवई अस्सिणी भरणी।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नव जोयणसए उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ।
जंबुद्दीवे णं दीवे नवजोयणिया मच्छा पविसिंसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा।
विजयस्स णं दारस्स एगमेगाए बाहाए नव-नव भोमा पन्नत्ता।
वाणमंतराणं देवाणं सभाओ सुधम्माओ नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ताओ।
दंसणावरणिज्जस्स Translated Sutra: पुरुषादानीय पार्श्वनाथ तीर्थंकर नौ रत्नी (हाथ) ऊंचे थे। अभिजित् नक्षत्र कुछ अधिक नौ मुहूर्त्त तक चन्द्रमा के साथ योग करता है। अभिजित् आदि नौ नक्षत्र चन्द्रमा का उत्तर दिशा की ओर से योग करते हैं। वे नौ नक्षत्र अभिजित् से लगाकर भरणी तक जानना चाहिए। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से नौ सौ योजन | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१६ |
Hindi | 41 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पासस्स णं अरहतो पुरिसादानीयस्स सोलस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ समण-संपदा होत्था।
आयप्पवायस्स णं पुव्वस्स सोलस वत्थू पन्नत्ता।
चमरबलीणं ओवारियालेणे सोलस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते।
लवणे णं समुद्दे सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सोलस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
महासुक्के कप्पे देवाणं Translated Sutra: पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् की उत्कृष्ट श्रमण – सम्पदा सोलह हजार श्रमणों की थी। आत्मप्रवाद पूर्व के वस्तु नामक सोलह अर्थाधिकार कहे गए हैं। चमरचंचा और बलीचंचा नामक राजधानियों के मध्य भाग में उतार – चढ़ाव रूप अवतारिकालयन वृत्ताकार वाले होने से सोलह हजार आयाम – विष्कम्भ वाले कहे गए हैं। लवणसमुद्र के मध्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२१ |
Hindi | 51 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एक्कवीसं सबला पन्नत्ता, तं जहा–
१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले।
२. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले।
३. राइभोयणं भुंजमाणे सबले।
४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले।
५. सागारियपिंडं भुंजमाणे सबले।
६. उद्देसियं, कीयं, आहट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले।
७. अभिक्खणं पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाणे सबले।
८. अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गणं संकममाणे सबले।
९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले।
१०. अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले।
११. रायपिंडं भुंजमाणे सबले।
१२. आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले।
१३. आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले।
१४. आउट्टिआए अदिन्नादाणं गिण्हमाणे सबले।
१५. आउट्टिआए अनंतरहिआए पुढवीए Translated Sutra: इक्कीस शबल हैं (जो दोष रूप क्रिया – विशेषों के द्वारा अपने चारित्र को शबल कर्बुरित, मलिन या धब्बों से दूषित करते हैं) १. हस्त – मैथुन करने वाला शबल, २. स्त्री आदि के साथ मैथुन करने वाला शबल, ३. रात में भोजन करने वाला शबल, ४. आधाकर्मिक भोजन को सेवन करने वाला शबल, ५. सागारिक का भोजन – पिंड ग्रहण करने वाला शबल, ६. औद्देशिक, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२६ |
Hindi | 60 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्वीसं दस-कप्प-ववहाराणं उद्देसनकाला पन्नत्ता, तं जहा–दस दसाणं, छ कप्पस्स, दस ववहारस्स।
अभवसिद्धियाणं जीवाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स छव्वीसं कम्मंसा संतकम्मा पन्नत्ता, तं जहा–मिच्छत्तमोहणिज्जं सोलस कसाया इत्थीवेदे पुरिसवेदे नपुंसकवेदे हासं अरति रति भयं सोगो दुगुंछा।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छव्वीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई Translated Sutra: दशासूत्र (दशाश्रुतस्कन्ध), (बृहत्) कल्पसूत्र और व्यवहारसूत्र के छब्बीस उद्देशनकाल कहे गए हैं। जैसे – दशासूत्र के दश, कल्पसूत्र के छह और व्यवहारसूत्र के दश। अभव्यसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म के छब्बीस कर्मांश (प्रकृतियाँ) सता में कहे गए हैं। जैसे – मिथ्यात्व मोहनीय, सोलह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुष वेद, नपुंसकवेद, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 75 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवगसंतंपि ज्झंपित्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं ।
भोगभोगे वियारेई, महामोहं पकुव्वइ ॥ (युग्मम्) Translated Sutra: जिसका सर्वस्व हरण कर लिया है, वह व्यक्ति भेंट आदि लेकर और दिन वचन बोलकर अनुकूल बनाने के लिए यदि किसी के समीप आता है, ऐसे पुरुष के लिए जो प्रतिकूल वचन बोलकर उसके भोग – उपभोग के साधनों को विनष्ट करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 76 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकुमारभूए जे केई, कुमारभूएत्तहं वए ।
इत्थीहिं गिद्धे वसए, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो पुरुष स्वयं अकुमार होते हुए भी ‘मैं कुमार हूँ’ ऐसा कहता है और स्त्रियों में गृद्ध और उनके अधीन रहता है, वह महामोहनीय कर्म क बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 77 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबंभयारी जे केई, बंभयारीत्तहं वए ।
गद्दभेव्व गवां मज्झे, विस्सरं नयई नदं ॥ Translated Sutra: जो कोई पुरुष स्वयं अब्रह्मचारी होते हुए भी ‘मैं ब्रह्मचारी हूँ’ ऐसा बोलता है, वह बैलों के मध्य में गधे के समान विस्वर (बेसुरा) नाद (शब्द) करता – रेंकता हुआ महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 78 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पणो अहिए बाले, मायामोसं बहुं भसे ।
इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वइ ॥ (युग्मम्) Translated Sutra: तथा उक्त प्रकार से जो अज्ञानी पुरुष अपना ही अहित करने वाले मायाचारयुक्त बहुत अधिक असत्य वचन बोलता है और स्त्रियों के विषयों में आसक्त रहता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 79 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे निस्सिए उव्वहइ, जससाअहिगमेण वा ।
तस्स लुब्भइ वित्तम्मि, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो राजा आदि की ख्याति से अर्थात् ‘यह उस राजा का या मंत्री आदि का सगासम्बन्धी है’ ऐसी प्रसिद्धि से अपना निर्वाह करता हो अथवा आजीविका के लिए जिस राजा के आश्रय में अपने को समर्पित करता है, अर्थात् उसकी सेवा करता है और फिर उसी के धन में लुब्ध होता है, वह पुरुष महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 80 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ईसरेण अदुदा गामेणं, अनिस्सरे ईसरीकए ॥
तस्स संपग्गहीयस्स, सिरी अतुलमागया ॥ Translated Sutra: किसी ऐश्वर्यशाली पुरुष के द्वारा, अथवा जन – समूह के द्वारा कोई अनीश्वर (ऐश्वर्यरहित निर्धन) पुरुष ऐश्वर्यशाली बना दिया गया, तब उस सम्पत्ति – विहीन पुरुष के अतुल (अपार) लक्ष्मी हो गई – | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 81 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ईसादोसेण आइट्ठे, कलुसाविलचेयसे ।
जे अंतरायं चेएइं, महामोहं पकुव्वइ ॥ (युग्मम्) Translated Sutra: यदि वह ईर्ष्या द्वेष से प्रेरित होकर, कलुषता – युक्त चित्त से उस उपकारी पुरुष के या जन – समूह के भोग – उपभोगादि में अन्तराय या व्यवच्छेद डालने का विचार करता है, तो वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 82 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सप्पी जहा अंडउडं, भत्तारं जो विहिंसइ ।
सेनावइं पसत्थारं, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जैसे सर्पिणी (नागिन) अपने ही अंडों को खा जाती है, उसी प्रकार जो पुरुष अपना ही भला करने वाले स्वामी का, सेनापति का अथवा धर्मपाठक का विनाश करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 84 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहुजनस्स नेयारं, दीवं ताणं च पाणिणं ।
एयारिसं नरं हंता, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो बहुत जनों के नेता का, दीपक के समान उनके मार्गदर्शक का और इसी प्रकार के अनेक जनों के उपकारी पुरुष का घात करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 85 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठियं पडिविरयं, संजयं सुतवस्सियं ।
वोकम्म धम्माओ भंसे, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो दीक्षा लेने के लिए उपस्थित या उद्यत पुरुष को, भोगों से विरक्त जनों को, संयमी मनुष्य को या परम तपस्वी व्यक्ति को अनेक प्रकारों से भड़का कर धर्म से भ्रष्ट करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 86 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवाणंतणाणीणं, जिणाणं वरदंसिणं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो अज्ञानी पुरुष अनन्तज्ञानी अनन्तदर्शी जिनेन्द्रों का अवर्णवाद करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 87 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेयाउअस्स मग्गस्स, दुट्ठे अवयरई बहुं ।
तं तिप्पयंतो भावेइ, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो दुष्ट पुरुष न्याय – युक्त मोक्षमार्ग का अपकार करता है और बहुत जनों को उससे च्युत करता है, तथा मोक्षमार्ग की निन्दा करता हुआ अपने आपको उसमें भावित करता है, अर्थात उन दुष्ट विचारों से लिप्त करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 88 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरियउवज्झाएहिं, सुयं विणयं च गाहिए ।
ते चेव खिंसई बाले, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो अज्ञानी पुरुष, जिन – जिन आचार्यों और उपाध्यायों से श्रुत और विनय धर्म को प्राप्त करता है, उन्हीं की यदि निन्दा करता है, अर्थात् ये कुछ नहीं जानते, ये स्वयं चारित्र से भ्रष्ट हैं, इत्यादि रूप से उनकी बदनामी करता है, तो वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 90 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबहुस्सुए य जे केई, सुएण पविकत्थइ ।
सज्झायवायं वयइ, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: अबहुश्रुत (अल्पश्रुत का धारक) जो पुरुष अपने को बड़ा शास्त्रज्ञानी कहता है, स्वाध्यायवादी और शास्त्र – पाठक बतलाता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 98 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे ।
अन्नाणि जिणपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो देवों, यक्षों और गृह्यकों (व्यन्तरों) को नहीं देखता हुआ भी ‘मैं उनकों देखता हूँ‘ ऐसा कहता है, वह जिनदेव के समान अपनी पूजा का अभिलाषी अज्ञानी पुरुष महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३४ |
Hindi | 110 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे। २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए। ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे। ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अद्दिस्से मंसचक्खुणा। ६. आगासगयं चक्कं। ७. आगासगयं छत्तं। ८. आगासियाओ सेयवर-चामराओ। ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं। १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरि-मंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ। ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं Translated Sutra: बुद्धों के अर्थात् तीर्थंकर भगवंतों के चौंतीस अतिशय कहे गए हैं। जैसे – १. नख और केश आदि का नहीं बढ़ना। २. रोगादि से रहित, मल रहित निर्मल देहलता होना। ३. रक्त और माँस का गाय के दूध के समान श्वेत वर्ण होना। ४. पद्मकमल के समान सुगन्धित उच्छ्वास निःश्वास होना। ५. माँस – चक्षु से अदृश्य प्रच्छन्न आहार और नीहार होना। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३८ |
Hindi | 114 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पासस्स णं अरहओ पुरिसादानीयस्स अट्ठतीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था।
हेमवतेरण्णवतियाणं जीवाणं धणुपट्ठे अट्ठतीसं जोयणसहस्साइं सत्त य चत्ताले जोयणसए दस एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचिविसेसूणा परिक्खेवेणं पन्नत्ते।
अत्थस्स णं पव्वयरण्णो बितिए कंडे अट्ठतीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते।
खुड्डियाए णं विमानपविभत्तीए बितिए वग्गे अट्ठतीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् के संघ में अड़तीस हजार आर्यिकाओं की उत्कृष्ट आर्यिकासम्पदा थी। हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रों की जीवाओं का घनःपृष्ठ अड़तीस हजार सात सौ चालीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दश भाग से कुछ कम परिक्षेप वाला कहा गया है। जहाँ सूर्य अस्त होता है, उस पर्वत राज मेरु का दूसरा कांड अड़तीस | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४४ |
Hindi | 120 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया पन्नत्ता।
विमलस्स णं अरहतो चोयालीसं पुरिसजुगाइं अणुपट्ठिं सिद्धाइं बुद्धाइं मुत्ताइं अंतगडाइं परिणिव्वुयाइं सव्वदुक्ख प्पहीणाइं।
धरणस्स णं नागिंदस्स नागरण्णो चोयालीसं भवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
महालियाए णं विमानपविभत्तीए चउत्थे वग्गे चोयालीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: चवालीस ऋषिभाषित अध्ययन कहे गए हैं, जिन्हें देवलोक से च्युत हुए ऋषियों ने कहा है। विमल अर्हत् के बाद चवालीस पुरुषयुग (पीढ़ी) अनुक्रम से एक के पीछे एक सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। नागेन्द्र, नागराज धरण के चवालीस लाख भवनावास कहे गए हैं। महालिका विमान प्रविभक्ति | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५० |
Hindi | 128 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ पंचासं अज्जियासाहस्सीओ होत्था।
अनंते णं अरहा पन्नासं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
पुरिसोत्तमे णं वासुदेवे पन्नासं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सव्वेवि णं दीहवेयड्ढा मूले पन्नासं - पन्नासं जोयणाणि विक्खंभेणं पन्नत्ता।
लंतए कप्पे पन्नासं विमानावाससहस्सा पन्नत्ता।
सव्वाओ णं तिमिस्सगुहाखंडगप्पवायगुहाओ पन्नासं - पन्नासं जोयणाइं आयामेणं पन्नत्ता।
सव्वेवि णं कंचणगपव्वया सिहरतले पन्नासं - पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: मुनिसुव्रत अर्हत् के संघ में पचास हजार आर्यिकाएं थीं। अनन्तनाथ अर्हत् पचास धनुष ऊंचे थे। पुरुषोत्तम वासुदेव पचास धनुष ऊंचे थे। सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वत मूल में पचास योजन विस्तार वाले कहे गए हैं। लान्तक कल्प में पचास हजार विमानावास कहे गए हैं। सभी तिमिस्र गुफाएं और खण्डप्रपात गुफाएं पचास – पचास योजन लम्बी | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५४ |
Hindi | 132 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीए एगमेगाए उस्सप्पिणीए चउप्पन्नं-चउप्पन्नं उत्तमपुरिसा उप्पज्जिंसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा, तं जहा–चउवीसं तित्थकरा, बारस चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा।
अरहा णं अरिट्ठनेमी चउप्पन्नं राइंदियाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी।
समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसेज्जाए चउप्पण्णाइं वागरणाइं वागरित्था।
अणंतस्स णं अरहओ चउप्पन्नं गणा चउप्पन्नं गणहरा होत्था। Translated Sutra: भरत और ऐरवत क्षेत्रों में एक एक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में चौपन चौपन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। जैसे – चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव। अरिष्टनेमि अर्हन् चौपन रात – दिन छद्मस्थ श्रमणपर्याय पालकर केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी जिन हुए। श्रमण | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 212 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता पंचमाए पुढवीए नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। Translated Sutra: पुरुषसिंह वासुदेव दश लाख वर्ष की कुल आयु को भोगकर पाँचवी नारकपृथ्वी में नारक रूप से उत्पन्न हुए। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 218 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सेला सलिला य समुद्द-सूरभवणविमाण आगर नदीओ ।
निहओ पुरिसज्जाया, सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥ Translated Sutra: तथा शैलों (पर्वतों) का गंगा आदि महानदियों का, समुद्रों, सूर्यों, भवनों, विमानों, आकरों, सामान्य नदियों, चक्रवर्ती की निधियों, एवं पुरुषों की अनेक जातियों का स्वरों के भेदों, गोत्रों और ज्योतिष्क देवों के संचार का वर्णन किया गया है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-७० |
Hindi | 148 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वीतिक्कंते सत्तरिए राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ।
पासे णं अरहा पुरिसादाणीए सत्तरिं वासाइं बहुपडिपुण्णाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
वासुपुज्जे णं अरहा सत्तरिं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
मोहनिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तरिं सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगे पन्नत्ते।
माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सत्तरिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ। Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर चतुर्मास प्रमाण वर्षाकाल के बीस दिन अधिक एक मास (पचास दिन) व्यतीत हो जाने पर और सत्तर दिनों के शेष रहने पर वर्षावास करते थे। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् परिपूर्ण सत्तर वर्ष तक श्रमण – पर्याय का पालन करके सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। वासुपूज्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-७२ |
Hindi | 150 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बावत्तरिं सुवण्णकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
लवणस्स समुद्दस्स बावत्तरिं नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारंति।
समणे भगवं महावीरे बावत्तरिं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
थेरे णं अयलभाया बावत्तरिं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
अब्भंतरपुक्खरद्धे णं बावत्तरिं चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा बावत्तरिं सूरिया तविंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा।
एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावत्तरिं पुरवरसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
बावत्तरिं कलाओ Translated Sutra: सुपर्णकुमार देवों के बहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गए हैं। लवण समुद्र की बाहरी वेला को बहत्तर हजार नाग धारण करते हैं। श्रमण भगवान महावीर बहत्तर वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त होकर सर्व दुःखों से रहित हुए। आभ्यन्तर पुष्करार्ध द्वीप में बहत्तर चन्द्र प्रकाश करते थे, प्रकाश | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१०० |
Hindi | 179 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेणं राइंदियसतेणं अद्धछट्ठेहिं भिक्खासतेहिं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए आराहिया यावि भवइ।
सयभिसयानक्खत्ते एक्कसयतारे पन्नत्ते।
सुविही पुप्फदंते णं अरहा एगं धनुसयं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
पासे णं अरहा पुरिसादानीए एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
थेरे णं अज्जसुहम्मे, एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
सव्वेवि णं दीहवेयड्ढपव्वया एगमेगं गाउयसयं Translated Sutra: दशदशमिका भिक्षुप्रतिमा एक सौ रात – दिनों में और साढ़े पाँचसौ भिक्षादत्तियों से यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्त्व से स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीर्तित और आराधित होती है। शतभिषक् नक्षत्र के एक सौ तारे होते हैं। सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् सौ धनुष ऊंचे थे। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् एक सौ वर्ष की समग्र आयु भोगकर | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 183 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुमई णं अरहा तिन्नि धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
अरिट्ठनेमी णं अरहा तिन्नि वाससयाइं कुमारवास मज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारिअं पव्वइए
वेमाणियाणं देवाणं विमानपागारा तिन्नि-तिन्नि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तिन्नि सयाणि चोद्दसपुव्वीणं होत्था।
पंचधनुसइयस्स णं अंतिमसारीरियस्स सिद्धिगयस्स सातिरेगाणि तिन्नि धनुसयानि जीवप्पदेसो-गाहणा पन्नत्ता। Translated Sutra: सुमति अर्हत् तीन सौ धनुष ऊंचे थे। अरिष्टनेमि अर्हत् तीनसौ वर्ष कुमारवास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। वैमानिक देवों के विमान – प्राकार तीन – तीन सौ योजन ऊंचे हैं। श्रमण भगवान महावीर के संघ में तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे। पाँच सौ धनुष की अवगाहना वाले चरमशरीरी सिद्धि को प्राप्त | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 184 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पासस्स णं अरहओ पुरिसादानीयस्स अद्धुट्ठसयाइं चोद्दसपुव्वीणं संपया होत्था।
अभिनंदने णं अरहा अद्धुट्ठाइं धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। Translated Sutra: पुरुषादानीय पार्श्व अर्हन् के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वीयों की सम्पदा थी। अभिनन्दन अर्हन् साढ़े तीन सौ धनुष ऊंचे थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 188 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सनंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु विमाणा छ-छ जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
चुल्लहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स समे धरणितले, एस णं छ जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं सिहरीकूडस्सवि।
पासस्स णं अरहओ छ सया वाईणं सदेवमणुयासुरे लोए वाए अपराजिआणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था।
अभिचंदे णं कुलगरे छ धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
वासुपुज्जे णं अरहा छहिं पुरिससएहिं सद्धि मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। Translated Sutra: सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में विमान छह सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं। क्षुल्लक हिमवन्त कूट के उपरिम चरमान्त से क्षुल्लक हिमवन्त वर्षधर पर्वत का समधरणीतल छह सौ योजन अन्तर वाला है। इसी प्रकार शिखरी कूट का भी अन्तर जानना चाहिए। पार्श्व अर्हत् के छह सौ अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा थी जो देव, मनुष्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 222 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ?
नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसि-ज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।
नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिनसामि-सासनवरे संजम-पइण्ण-पालण-धिइ-मइ-ववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-निसहा-निसट्ठाणं, घोर परीसह-पराजिया-ऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं, Translated Sutra: ज्ञाताधर्मकथा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात अर्थात् उदाहरणरूप मेघकुमार आदि पुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, दीक्षापर्याय, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 224 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअं च सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो उत्तमं च बंभं, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तहं अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हंपि लक्खणाइं।
पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउव्विहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरो Translated Sutra: अन्तकृद्दशा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? अन्तकृत्दशाओं में कर्मों का अन्त करने वाले महापुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, अनेक प्रकार की प्रतिमाएं, क्षमा, आर्जव, मार्दव, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 225 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं Translated Sutra: अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महा अनगारों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजगण, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धियाँ, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत का परिग्रहण, तप – उपधान, पर्याय, प्रतिमा, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 232 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: –सेत्तं पुव्वगए।
से किं तं अणुओगे?
अणुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य।
से किं तं मूलपढमाणुओगे?
मूलपढमाणुओगे–एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चव-णाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलनाणु-प्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो, सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ–संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिमाणं, जिणमनपज्जव-ओहिनाणी सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पातोवगता य जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा मुनिवरुत्तमा तम-रओघ-विप्पमुक्का Translated Sutra: वह अनुयोग क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। जैसे – मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या है ? मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवंतों के पूर्वभव, देवलोकगमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिबिका, प्रव्रज्या, तप, भक्त, केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 254 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! वेए पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे वेए पन्नत्ते, तं जहा–इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए।
नेरइया णं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया पन्नत्ता?
गोयमा! नो इत्थिवेया नो पुंवेया, नपुंसगवेया पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं भंते! किं इत्थिवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया?
गोयमा! इत्थिवेया पुरिसवेया, नो नपुंसगवेया जाव थणियत्ति।
पुढवि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइ-बि-ति-चउरिंदिय-संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख-संमुच्छिममनुस्सा नपुंसगवेया।
गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचेंदियतिरिया य तिवेया।
जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणियावि। Translated Sutra: भगवन् ! वेद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! वेद तीन हैं – स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद। भगवन् ! नारक जीव क्या स्त्री वेद वाले हैं, अथवा पुरुष वेद वाले हैं ? गौतम ! नारक जीव न स्त्री वेद वाले हैं, न पुरुष वेद वाले हैं, किन्तु नपुंसक वेद वाले होते हैं। भगवन् ! असुरकुमार देव स्त्री वेद वाले हैं, पुरुष वेद वाले हैं अथवा | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 286 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एक्को भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहिं-तिहिं सएहिं ।
भयवंपि वासुपुज्जो, छहिं पुरिससएहिं निक्खंतो ॥ Translated Sutra: दीक्षा – ग्रहण करने के लिए भगवान महावीर अकेले ही घर से नीकले थे। पार्श्वनाथ और मल्लि जिन तीन – तीन सौ पुरुषों के साथ नीकले। तथा भगवान वासुपूज्य छह सौ पुरुषों के साथ नीकले थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 287 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उग्गाणं भोगाणं, राइण्णाणं च खत्तियाणं च ।
चउहिं सहस्सेहिं उसभो, सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥ Translated Sutra: भगवान ऋषभदेव चार हजार उग्र, भोग राजन्य और क्षत्रिय जनों के परिवार के साथ दीक्षा ग्रहण करने के लिए घर से नीकले थे। शेष उन्नीस तीर्थंकर एक – एक हजार पुरुषों के साथ नीकले थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 289 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमभिक्खादया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीसो तीर्थंकरों को प्रथम बार भिक्षा देने वाले चौबीस महापुरुष हुए हैं। जैसे – १. श्रेयांस, २. ब्रह्मदत्त, ३. सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. पद्म, ६. सोमदेव, ७. माहेन्द्र, ८. सोमदत्त, ९. पुष्य, १०. पुनर्वसु, ११. पूर्णनन्द, १२. सुनन्द, १३. जय, १४. विजय, १५. धर्मसिंह, १६. सुमित्र, १७. वर्गसिंह, १८. अपराजित, १९. विश्वसेन, २०. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 327 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला होत्था, तं जहा–उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-नयन-कंता ओहबला अतिबला महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाण-महणा सानुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल-पलाव-हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय-वच्छला सरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया मानुम्मान-पमाण-पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंग-सुंदरंगा ससि-सोमागार-कंत-पिय-दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धओ-व्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु-विकड्ढगा Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप में इस भारतवर्ष के इस अवसर्पिणीकाल में नौ दशारमंडल (बलदेव और वासुदेव समुदाय) हुए हैं। सूत्रकार उनका वर्णन करते हैं – वे सभी बलदेव और वासुदेव उत्तम कुल में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुष थे, तीर्थंकरादि शलाका – पुरुषों के मध्य – वर्ती होने से मध्यम पुरुष थे, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम और सामान्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 328 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिविट्ठू य दुविट्ठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे ।
पुरिससीहे तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे कण्हे ॥
अयले विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे ।
आनंदे णंदणे पउमे, रामे यावि अपच्छिमे ॥ Translated Sutra: उनमें वासुदेवों के नाम इस प्रकार हैं – १. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयम्भू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुषसिंह, ६. पुरुषपुंडरीक, ७. दत्त, ८. नारायण (लक्ष्मण) और ९. कृष्ण। बलदेवों के नाम इस प्रकार हैं – १. अचल, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. आनन्द, ७. नन्दन, ८. पद्म और ९. अन्तिम बलदेव राम। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 335 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एते धम्मायरिया, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं ।
पुव्वभवे आसिण्हं, जत्थ निदानाइं कासी य ॥ Translated Sutra: ये नवों ही धर्माचार्य कीर्तिपुरुष वासुदेवों के पूर्व भव में धर्माचार्य थे। जहाँ वासुदेवों ने पूर्व भव में निदान किया था उन नगरों के नाम आगे कहते हैं – | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 340 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं नव पडिसत्तू होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन नवों वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु (प्रतिवासुदेव) थे। जैसे – १. अश्वग्रीव, २. तारक, ३. मेरक, ४. मधुकैटभ, ५. निशुम्भ, ६. बलि, ७. प्रभराज (प्रह्लाद), ८. रावण और ९. जरासन्ध। ये कीर्तिपुरुष वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु थे। ये सभी चक्रयोधी थे और सभी अपने ही चक्रों से युद्ध में मारे गए। सूत्र – ३४०–३४२ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 368 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं बाहसण्हं चक्कवट्टीणं बारस पियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति।
जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेव-पियरो भविस्संति,
नव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति,
नव दसारमंडला भविस्संति, तं जहा– उत्तमपुरिसा, मज्झिमपुरिसा, पहाणपुरिसा, ओयंसी तेयंसो एवं सो चेव वण्णओ भाणियव्वो जाव नीलग-पीतग-वसना दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति,
तं जहा– Translated Sutra: इन बारह चक्रवर्तियों के बारह पिता, बारह माता और बारह स्त्रीरत्न होंगे। इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में नौ बलदेवों और नौ वासुदेवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी, नौ दशार – मंडल होंगे। वे उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष, ओजस्वी, तेजस्वी | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 372 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिलए य लोहजंघे, वइरजंघे य केसरी पहराए ।
अपराइए य भीमे, महाभीमे य सुग्गीवे ॥ Translated Sutra: १. तिलक, २. लोहजंघ, ३. वज्रजंघ, ४. केशरी, ५. प्रभराज, ६. अपराजित, ७. भीम, ८. महाभीम और ९. सुग्रीव। कीर्तिपुरुष वासुदेवों के ये नौ प्रतिशत्रु होंगे। सभी चक्रयोधी होंगे और युद्ध में अपने चक्रों से मारे जाएंगे। सूत्र – ३७२, ३७३ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 382 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बारस चक्कवट्टी भविस्संति, बारस चक्कवट्टिपियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति।
नव बलदेव-वासुदेवपियरो भविस्संति, णव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति, नव दसारमंडला भविस्संति, उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा जाव दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति, नव पडिसत्तू भविस्संति, नव पुव्व-भवनामधेज्जा, नव धम्मायरिया, नव नियाण-भूमीओ, नव नियाणकारणा, आयाए, एरवए आगमिस्साए भाणियव्वा।
एवं दोसुवि आगमिस्साए भाणियव्वा। Translated Sutra: (इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में) बारह चक्रवर्ती होंगे, बारह चक्रवर्तियों के पिता होंगे, उनकी बारह माताएं होंगी, उनके बारह स्त्रीरत्न होंगे। नौ बलदेव और वासुदेवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी। नौ दशार मंडल होंगे, जो उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, |