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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 37 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स मानवगस्स चेइयखंभस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठ जोयणाइं आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं एत्थ णं महेगे सीहासणे पन्नत्ते–सीहासनवण्णतो सपरिवारो।
तस्स णं मानवगस्स चेइयखंभस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठ जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं महेगे देवसयणिज्जे पन्नत्ते। तस्स णं देवसयणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–नानामणिमया पडिपाया, सोवण्णिया Translated Sutra: माणवक चैत्यस्तम्भ के पूर्व दिग्भाग में विशाल मणिपीठिका बनी हुई है। जो आठ योजन लम्बी – चौड़ी, चार योजन मोटी और सर्वात्मना मणिमय निर्मल यावत् प्रतिरूप है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल सिंहासन रखा है। भद्रासन आदि आसनों रूप परिवार सहित उस सिंहासन का वर्णन करना। उस माणवक चैत्य – स्तम्भ की पश्चिम दिशा में एक बड़ी | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 39 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सभाए णं सुहम्माए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगे सिद्धायतणे पन्नत्ते–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं सभागमएणं जाव गोमाणसियाओ, भूमिभागा उल्लोया तहेव।
तस्स णं सिद्धायतनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–सोलस जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं महेगे देवच्छंदए पन्नत्ते–सोलस जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे।
तत्थ णं अट्ठसयं जिनपडिमाणं जिनुस्सेहप्पमाणमित्ताणं संनिखित्तं Translated Sutra: सुधर्मा सभा के ईशान कोण में एक विशाल (जिनालय) सिद्धायतन है। वह सौ योजन लम्बा, पचास योजन चौड़ा और बहत्तर योजन ऊंचा है। तथा इस सिद्धायतन का गोमानसिकाओं पर्यन्त एवं भूमिभाग तथा चंदेवा का वर्णन सुधर्मासभा के समान जानना। उस सिद्धायतन (जिनालय) के ठीक मध्यप्रदेश में सोलह योजन लम्बी – चौड़ी, आठ योजन मोटी एक विशाल मणिपीठिका | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 41 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आनपानपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे पुव्विं पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसयाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ? ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामानियपरिसोववण्णगा देवा सूरियाभस्स Translated Sutra: उस काल और उस समय में तत्काल उत्पन्न होकर वह सूर्याभ देव आहार पर्याप्ति, शरीर – पर्याप्ति, इन्द्रिय – पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास – पर्याप्ति और भाषामनःपर्याप्ति – इन पाँच पर्याप्तियों से पर्याप्त अवस्था को प्राप्त हुआ। पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्तभाव को प्राप्त होने के अनन्तर उस सूर्याभदेव को | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 42 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ Translated Sutra: तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव उन सामानिकपरिषदोपगत देवों से इस अर्थ को सूनकर और हृदय में अवधारित कर हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से नीकला, नीकलकर ह्रद पर आया, ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ। पुर्वदिशावर्ती | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमानवासिणो वेमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदनकलस-हत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं से सूरियाभे देवे चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि य सूरियाभविमानवासीहिं Translated Sutra: तब उस सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देव तथा कितने ही अन्य बहुत से सूर्याभविमान वासी देव और देवी भी हाथों में उत्पल यावत् शतपथ – सहस्रपत्र कमलों कोल कर सूर्याभदेव के पीछे – पीछे चले। तत्पश्चात् उस सूर्याभदेव के बहुत – से अभियोगिक देव और देवियाँ हाथों में कलश यावत् धूप – दानों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 59 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से केसी कुमारसमणे अन्नया कयाइ पाडिहारियं पीढ फलग सेज्जा संथारगं पच्चप्पिणइ, सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव केयइ-अद्धे जनवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवने उज्जानेतेणेव उवागच्छइ, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणउम्मी इ वा जणसन्निवाए इ वा जाव परिसा निग्गच्छइ।
तए णं ते उज्जानपालगा Translated Sutra: तत्पश्चात् किसी समय प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि उन – उनके स्वामियों को सौंपकर केशी कुमारश्रमण श्रावस्ती नगरी और कोष्ठक चैत्य से बाहर नीकले। पाँच सौ अन्तेवासी अनगारों के साथ यावत् विहार करते हुए जहाँ केकयधर्म जनपद था, जहाँ सेयविया नगरी थी और उस नगरी का मृगवन नामक उद्यान था, वहाँ आए। यथाप्रतिरूप | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 65 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अह णं भंते! इहं उवविसामि? पएसी! साए उज्जानभूमीए तुमंसि चेव जाणए।
तए णं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धिं केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते उवविसइ, केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–तुब्भं णं भंते! समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं?
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पएसी! अम्हं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया – भदन्त ! क्या मैं यहाँ बैठ जाऊं ? हे प्रदेशी ! यह उद्यानभूमि तुम्हारी अपनी है, अत एव बैठने के विषय में तुम स्वयं समझ लो। तत्पश्चात् चित्त सारथी के साथ प्रदेशी राजा केशी कुमारश्रमण के समीप बैठ गया और पूछा – भदन्त ! क्या आप श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा है, प्रतिज्ञा | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 73 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमार-समणं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! इय छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला महामई विणीया विन्नाणपत्ता उवएसलद्धा, समत्था णं भंते! ममं करयलंसि वा आमलयं जीवं सरीराओ अभिणिवट्टित्ताणं उवदंसित्तए?
तेणं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रन्नो अदूरसामंते वाउयाए संवुत्ते। तणवणस्सइकाए एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ।
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पाससि णं तुमं पएसी राया! एयं तणवणस्सइकायं एयंतं वेयंतं चलंतं फंदंतं घट्टंतं उदीरंतं तं तं भावं परिणमंतं? हंता पासामि। जाणासि णं तुमं पएसी! एयं तणवणस्सइकायं किं देवो चालेइ? असुरो वा चालेइ? णागो Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! आप अवसर को जानने में निपुण हैं, कार्यकुशल हैं यावत् आपने गुरु से शिक्षा प्राप्त की है तो भदन्त ! क्या आप मुझे हथेली में स्थित आँबले की तरह शरीर से बाहर जीव को नीकालकर दिखाने में समर्थ हैं ? प्रदेशी राजा ने यह कहा, उसी काल और उसी समय प्रदेशी राजा से अति दूर नहीं अर्थात् निकट ही हवा | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 82 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता।
से णं सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति?
गोयमा! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति–अड्ढाइं दित्ताइं विउलाइं वित्थिण्ण विपुल भवन सयनासन जाण वाहनाइं बहुधन बहुजातरूव रययाइं आओग पओग संपउत्ताइं विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइं बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभू-याइं बहुजणस्स अपरिभूयाइं तत्थ अन्नयरेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चाइस्सइ।
तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिऊणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ।
तए णं तस्स Translated Sutra: गौतम – भदन्त ! उस सूर्याभदेव की आयुष्यमर्यादा कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। भगवन् ! आयुष्य पूर्ण होने, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर सूर्याभदेव उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल आढ्य, दीप्त, विपुल बड़े कुटुम्ब परिवार वाले, बहुत से भवनों, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 83 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिक्खित्ते–खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए, अन्नाहि बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणियाहिं वडभियाहिं बब्बरियाहिं बउसि-याहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारु-इणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं दमिलाहिं सिंहलीहिं पुलिंदीहिं आरबीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं नानादेसीहिं विदेस-परिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणयाहिं सदेश नेवत्थ गहिय देसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडिया-चक्कवाल वरतरुणिवंद परियाल संपरिवुडे वरिसधर कंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे-साहरिज्जमाणे Translated Sutra: उसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ शिशु, क्षीरधात्री, मंडनधात्री, मज्जनधात्री, अंकधात्री और क्रीडापनधात्री – इन पाँच धायमाताओं की देखरेख में तथा इनके अतिरिक्त इंगित, चिन्तित, प्रार्थित को जानने वाली, अपने – अपने देश के वेष को पहनने वाली, निपुण, कुशल – प्रवीण एवं प्रशिक्षित ऐसी कुब्जा, चिलातिका, वामनी, वडभी, बर्बरी, बकुशी, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 84 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणयमित्ते जोव्वणगमनुपत्ते बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्त-पडिबोहिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले सिंगारागार-चारुरूवे संगय गय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास निउण जुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ।
तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विन्नय-परिणयमित्तं जोव्वण-गमनुपत्तं बावत्तरिकलापंडियं नवंगसुतपडिबोहियं अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारयं गीयरइं गंधव्वनट्टकुसलं सिंगारागारचारुरूवं संगय गय हसिय Translated Sutra: इसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक बालभाव से मुक्त हो परिपक्व विज्ञानयुक्त, युवावस्थासंपन्न हो जाएगा। बहत्तर कलाओं में पंडित होगा, बाल्यावस्था के कारण मनुष्य के जो नौ अंग – जागृत हो जाएंगे। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो जाएगा, वह गीत का अनुरागी, गीत और नृत्य में कुशल हो जाएगा। अपने सुन्दर वेष से शृंगार | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 5 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे देवे सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाने सभाए सुहम्माए सूरियाभंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहिं बहूहिं सूरियाभ-विमानवासीहिं वेमानिएहिं देवेहिं देवीहिं य सद्धिं संपरिवुडे महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति।
तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे (दीवे?) भारहे Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે સૂર્યાભદેવ સૌધર્મકલ્પમાં સૂર્યાભવિમાનમાં સુધર્માસભામાં સૂર્યાભ સિંહાસન ઉપર ૪૦૦૦ સામાનિકો, સપરિવાર ચાર અગ્રમહિષીઓ, ત્રણ પર્ષદા, સાત સૈન્ય, સાત સૈન્યાધિપતિ, ૧૬,૦૦૦ આત્મરક્ષક દેવો, બીજા પણ ઘણા સૂર્યાભવિમાનવાસી વૈમાનિક દેવો – દેવીઓ સાથે સંપરીવરીને મોટેથી વગાડતા વાદ્ય, નૃત્ય, ગીત, વાજિંત્ર, | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 13 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते सूरियाभविमानवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य पायत्ताणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइना परमसोमनस्सिया हरिसवस विसप्प-माणहियया अप्पेगइया वंदनवत्तियाए अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए अप्पेगइया सम्मानवत्तियाए अप्पेगइया कोऊहलवत्तियाए अप्पेगइया असुयाइं सुणिस्सामो, अप्पेग-इया सुयाइं अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमनुयत्तेमाणा अप्पेगइया अन्नमन्नमनुवत्तेमाणा अप्पेगइया जिनभतिरागेणं अप्पेगइया धम्मो त्ति अप्पेगइया जीयमेयं Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૩. ત્યારે તે સૂર્યાભ વિમાનવાસી ઘણા વૈમાનિક દેવો અને દેવીઓ પદાતિ સૈન્યાધિપતિ દેવની પાસે આ અર્થ સાંભળી, સમજી, હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ પ્રસન્ન હૃદયી થઈને કેટલાક વંદન નિમિત્તે, કેટલાક પૂજન નિમિત્તે, કેટલાક સત્કાર નિમિત્તે, કેટલાક સન્માન – નિમિત્તે, કેટલાક કુતૂહલ નિમિત્તે, કેટલાક ન સાંભળેલુ સાંભળવાને, કેટલાક | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 36 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पन्नत्ता–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा।
सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं। ते णं दारा सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकनग-थूभियागा जाव वणमालाओ।
तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पन्नत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं Translated Sutra: તે મૂલ પ્રાસાદાવતંસકની પૂર્વે અહીં સુધર્માસભા કહી છે. તે ૧૦૦ યોજન લાંબી, ૫૦ યોજન પહોળી, ૭૨ યોજન ઊંચી, અનેકશત સ્તંભ સંનિવિષ્ટ છે, અભ્યુદ્ગત સુકૃત વજ્ર વેદિકા અને તોરણ, વર રચિત શાલભંજિકા યાવત્ અપ્સરાગણ સંઘથી વ્યાપ્ત, પ્રાસાદીય આદિ છે. તે સુધર્માસભામાં ત્રણ દિશામાં ત્રણ દ્વારો કહ્યા છે. તે આ – પૂર્વમાં, દક્ષિણમાં, | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 39 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सभाए णं सुहम्माए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगे सिद्धायतणे पन्नत्ते–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं सभागमएणं जाव गोमाणसियाओ, भूमिभागा उल्लोया तहेव।
तस्स णं सिद्धायतनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–सोलस जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं महेगे देवच्छंदए पन्नत्ते–सोलस जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे।
तत्थ णं अट्ठसयं जिनपडिमाणं जिनुस्सेहप्पमाणमित्ताणं संनिखित्तं Translated Sutra: સુધર્માસભાની ઈશાને એક મોટું સિદ્ધાયતન – જિનાલય કહ્યું છે. તે ૧૦૦ યોજન લાંબુ, ૫૦ યોજન પહોળું, ૭૨ યોજન ઊંચું છે. તેનું ગોમાનસિકા પર્યન્ત તથા ભૂમિભાગ, ચંદરવાનું વર્ણન પૂર્વવત્ કહેવું. તે સિદ્ધાયતનના બહુમધ્ય દેશભાગમાં એક મોટી મણિપીઠિકા કહી છે. તે ૧૬ યોજન લંબાઈ – પહોળાઈથી અને આઠ યોજન બાહલ્યથી છે. તે મણિપીઠિકા | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 41 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आनपानपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे पुव्विं पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसयाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ? ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामानियपरिसोववण्णगा देवा सूरियाभस्स Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૧. તે કાળે તે સમયે સૂર્યાભદેવ તત્કાળ ઉત્પન્ન થઈને પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિઓ પૂર્ણ કરી, તે આ – આહાર, શરીર, ઇન્દ્રિય, આનપ્રાણ,ભાષામન પર્યાપ્તિ. ત્યારે તે સૂર્યાભદેવને પંચવિધ પર્યાપ્તિથી પર્યાપ્તભાવ પામીને આવા સ્વરૂપનો અભ્યર્થિત, ચિંતિત, પ્રાર્થિત, મનોગત સંકલ્પ ઉત્પન્ન થયો – મારે પહેલા શું કરવું જોઈએ | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमानवासिणो वेमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदनकलस-हत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं से सूरियाभे देवे चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि य सूरियाभविमानवासीहिं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૩ | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Gujarati | 73 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमार-समणं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! इय छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला महामई विणीया विन्नाणपत्ता उवएसलद्धा, समत्था णं भंते! ममं करयलंसि वा आमलयं जीवं सरीराओ अभिणिवट्टित्ताणं उवदंसित्तए?
तेणं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रन्नो अदूरसामंते वाउयाए संवुत्ते। तणवणस्सइकाए एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ।
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पाससि णं तुमं पएसी राया! एयं तणवणस्सइकायं एयंतं वेयंतं चलंतं फंदंतं घट्टंतं उदीरंतं तं तं भावं परिणमंतं? हंता पासामि। जाणासि णं तुमं पएसी! एयं तणवणस्सइकायं किं देवो चालेइ? असुरो वा चालेइ? णागो Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭ | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 17 | View Detail | ||
Mool Sutra: जमल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणंतं।
तं सव्वजीवसरणं, णंददु जिणसासणं सुइरं।।१।। Translated Sutra: May the teachings of Jina which enable all souls to cross over the endless ocean of mundane existence and which afford protection to all living beings, flourish for ever. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 18 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिणवयणमोसहमिणं, विसयसुह-विरेयणं अमिदभयं।
जरमरणवाहिहरणं, खयकरणं सव्वदुक्खाणं।।२।। Translated Sutra: The teachings of Jina are nectar-like medicine for weaning away people from all mudane pleasures, for relief from all miseries. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 19 | View Detail | ||
Mool Sutra: अरहंतभासियत्थं, गणहरदेवेहिं गंथियं सम्मं।
पणमामि भत्तिजुत्तो, सुदणाणमहोदहिं सिरसा।।३।। Translated Sutra: I bow down my head with devotion to the vast ocean of scriptural knowledge preched by the worthy souls and properly composed in the form of scriptures by the Venerable Ganadharas (group leaders of ascetic order). | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 20 | View Detail | ||
Mool Sutra: तस्स मुहुग्गदवयणं, पुव्वावरदोसविरहियं सुद्धं।
आगममिदिपरिकहियं, तेण दु कहिया हवंति तच्चत्था।।४।। Translated Sutra: That which has come from the mouth of the worthy souls is pure and completely free from contradictions is called the agama or the Scripture and what is recorded in the Scriptures is verily true. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 21 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेण।
अमला असंकिलिट्ठा, ते होंति परित्तसंसारी।।५।। Translated Sutra: Those who are fully devoted to the preachings of the Worthy Souls and practise them with sincerity shall attain purity and freedom from miseries and shortly get emancipation from the cycle of birth and death. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 22 | View Detail | ||
Mool Sutra: जय वीयराय ! जयगुरू ! होउ मम तुह पभावओ भयवं !
भवणिव्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठफलसिद्धी।।६।। Translated Sutra: Oh the Conqueror of all attachments: Oh, the world teacher: Oh the blessed one: through your grace may I develop detachment to the mundane world, continue to follow the path of Salvation and attain fulfilment. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 23 | View Detail | ||
Mool Sutra: ससमय-परसमयविऊ, गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो।
गुणसयकलिओ जुत्तो, पवयणसारं परिकहेउं।।७।। Translated Sutra: He, who is conversant with the docrines of his own as well as that of others, is serene, illuminated, benevolent, gentle and possessed of hundreds of other virtues, is fit to expound the essence of the Scriptures. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 24 | View Detail | ||
Mool Sutra: जं इच्छसि अप्पणतो, जं च ण इच्छसि अप्पणतो।
तं इच्छ परस्स वि या, एत्तियगं जिणसासणं।।८।। Translated Sutra: What you desire for yourself desire for others too, what you do not desire for yourself do not desire for others too-this is the teaching of the Jina. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 17 | View Detail | ||
Mool Sutra: जमल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणंतं।
तं सव्वजीवसरणं, णंददु जिणसासणं सुइरं।।१।। Translated Sutra: જેનો આશ્રય લેનારા જીવો અનંત સંસાર સાગરને તરી જાય છે અને તેથી જ જે સર્વ જીવોને માટે શરણરૂપ છે, એ જિનશાસન ચિરકાળ સમૃદ્ધિમાન રહો. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 18 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिणवयणमोसहमिणं, विसयसुह-विरेयणं अमिदभयं।
जरमरणवाहिहरणं, खयकरणं सव्वदुक्खाणं।।२।। Translated Sutra: જિનવાણીરૂપી આ ઔષધિ અમૃત સમાન છે; એ વિષય સુખની અભિલાષાનું વિરેચન કરે છે, જરા-મરણરૂપી રોગને દૂર કરે છે અને સર્વ દુઃખોનો નાશ કરે છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 19 | View Detail | ||
Mool Sutra: अरहंतभासियत्थं, गणहरदेवेहिं गंथियं सम्मं।
पणमामि भत्तिजुत्तो, सुदणाणमहोदहिं सिरसा।।३।। Translated Sutra: અર્હંતોએ અર્થરૂપે જેનો ઉપદેશ કર્યો અને ગણધરદેવોએ સૂત્રરૂપે જેની રચના કરી એ શ્રુતજ્ઞાનના મહાસાગરને હું ભક્તિપૂર્વક મસ્તક નમાવી વંદન કરું છું. (શ્રુતજ્ઞાન = શાસ્ત્રો-આગમો દ્વારા મળતું જ્ઞાન.) | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 20 | View Detail | ||
Mool Sutra: तस्स मुहुग्गदवयणं, पुव्वावरदोसविरहियं सुद्धं।
आगममिदिपरिकहियं, तेण दु कहिया हवंति तच्चत्था।।४।। Translated Sutra: અર્હંતોના મુખમાંથી નીકળેલા, પૂર્વાપરદોષથી રહિત એટલે કે સુસંગત અને શુદ્ધ વચનોને આગમ કહેવામાં આવે છે. આવા આગમો દ્વારા તત્ત્વની સમજ મેળવી શકાય છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 21 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेण।
अमला असंकिलिट्ठा, ते होंति परित्तसंसारी।।५।। Translated Sutra: જિનવચનના અનુરાગી હોય અને જિનવચન અનુસાર આચરણ પણ કરતા હોય એવા નિર્મળ અને ક્લેશરહિત ચિત્તવાળા જીવો અલ્પસંસારી બને છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 22 | View Detail | ||
Mool Sutra: जय वीयराय ! जयगुरू ! होउ मम तुह पभावओ भयवं !
भवणिव्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठफलसिद्धी।।६।। Translated Sutra: હે વીતરાગ! હે જગદ્ગુરુ! આપનો જય હો! હે ભગવન્! આપના પ્રભાવથી મને ભવનિર્વેદ, માર્ગાનુસારિતા અને ઈષ્ટ ફળની પ્રાપ્તિ થજો. (ભવનિર્વેદ = સંસાર પ્રત્યે વિરક્તિ, માર્ગાનુસારિતા = ધર્મપ્રાપ્તિ માટે જરૂરી પ્રાથમિક સદ્ગુણો.) | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 23 | View Detail | ||
Mool Sutra: ससमय-परसमयविऊ, गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो।
गुणसयकलिओ जुत्तो, पवयणसारं परिकहेउं।।७।। Translated Sutra: સ્વશાસ્ત્ર અને પરશાસ્ત્રના જ્ઞાતા, ગંભીર, તેજસ્વી, પવિત્ર, સૌમ્ય અને એવા બીજા સેંકડો ગુણોથી સંપન્ન મુનિ જ જિનવચનના મર્મને સમજાવી શકે છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Gujarati | 24 | View Detail | ||
Mool Sutra: जं इच्छसि अप्पणतो, जं च ण इच्छसि अप्पणतो।
तं इच्छ परस्स वि या, एत्तियगं जिणसासणं।।८।। Translated Sutra: તું તારા પોતા માટે જે ઈચ્છે છે તેવું બીજા માટે પણ ઈચ્છ, તું તારા પોતા માટે જે નથી ઈચ્છતો તેવું બીજા માટે પણ ન ઈચ્છ - જિનનો ઉપદેશ આટલો જ છે. | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१५. आत्मसूत्र | Hindi | 181 | View Detail | ||
Mool Sutra: आरुहवि अंतरप्पा, बहिरप्पो छंडिऊण तिविहेण।
झाइज्जइ परमप्पा, उवइट्ठं जिणवरिंदेहिं।।५।। Translated Sutra: जिनेश्वरदेव का यह कथन है कि तुम मन, वचन और काया से बहिरात्मा को छोड़कर, अन्तरात्मा में आरोहण कर परमात्मा का ध्यान करो। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२४. श्रमणधर्मसूत्र | Hindi | 355 | View Detail | ||
Mool Sutra: न हु जिणे अज्ज दिस्सई, बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए।
संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए।।२०।। Translated Sutra: भविष्य में लोग कहेंगे, आज `जिन' दिखाई नहीं देते और जो मार्गदर्शक हैं वे भी एकमत के नहीं हैं। किन्तु आज तुझे न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है। अतः गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२४. श्रमणधर्मसूत्र | Hindi | 358 | View Detail | ||
Mool Sutra: पासंडीलिंगाणि व, गिहिलिंगाणि व बहुप्पयाराणि।
घित्तुं वदंति मूढा, लिंगमिणं मोक्खमग्गो त्ति।।२३।। Translated Sutra: लोक में साधुओं तथा गृहस्थों के तरह-तरह के लिंग प्रचलित हैं जिन्हें धारण करके मूढ़जन ऐसा कहते हैं कि अमुक लिंग (चिह्न) मोक्ष का कारण है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२४. श्रमणधर्मसूत्र | Hindi | 360 | View Detail | ||
Mool Sutra: भावो हि पढमलिंगं, ण दव्वलिंगं च जाण परमत्थं।
भावो कारणभूदो, गुणदोसाणं जिणा बिंति।।२५।। Translated Sutra: (वास्तव में) भाव ही प्रथम या मुख्य लिंग है। द्रव्य लिंग परमार्थ नहीं है, क्योंकि भाव को ही जिनदेव गुण-दोषों का कारण कहते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२५. व्रतसूत्र | Hindi | 364 | View Detail | ||
Mool Sutra: अहिंसा सच्चं च अतेणगं च, तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च।
पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि, चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विऊ।।१।। Translated Sutra: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच महाव्रतों का स्वीकार करके विद्वान् मुनि जिनोपदिष्ट धर्म का आचरण करे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३२. आत्मविकाससूत्र (गुणस्थान) | Hindi | 546 | View Detail | ||
Mool Sutra: जेहिं दु लक्खिज्जंते, उदयादिसु संभवेहिं भावेहिं।
जीवा ते गुणसण्णा, णिद्दिट्ठा सव्वदरिसीहिं।।१।। Translated Sutra: मोहनीय आदि कर्मों के उदय आदि (उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि) से होनेवाले जिन परिणामों से युक्त जीव पहचाने जाते हैं, उनको सर्वदर्शी जिनेन्द्रदेव ने `गुण' या `गुणस्थान' संज्ञा दी है। अर्थात् सम्यक्त्व आदि की अपेक्षा जीवों की अवस्थाएँ श्रेणियाँ-भूमिकाएँ गुणस्थान कहलाती हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३२. आत्मविकाससूत्र (गुणस्थान) | Hindi | 547 | View Detail | ||
Mool Sutra: मिच्छो सासण मिस्सो, अविरदसम्मो य देसविरदो य।
विरदो पमत्त इयरो, अपुव्व अणियट्टि सुहुमो य।।२।। Translated Sutra: मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसम्पराय, उपशान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगिकेवलीजिन, अयोगिकेवलीजिन-ये क्रमशः चौदह जीव-समास या गुणस्थान हैं। सिद्धजीव गुणस्थानातीत होते हैं। संदर्भ ५४७-५४८ | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 17 | View Detail | ||
Mool Sutra: जमल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणंतं।
तं सव्वजीवसरणं, णंददु जिणसासणं सुइरं।।१।। Translated Sutra: जिसमें लीन होकर जीव अनन्त संसार-सागर को पार कर जाते हैं तथा जो समस्त जीवों के लिए शरणभूत है, वह जिनशासन चिरकाल तक समृद्ध रहे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 18 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिणवयणमोसहमिणं, विसयसुह-विरेयणं अमिदभयं।
जरमरणवाहिहरणं, खयकरणं सव्वदुक्खाणं।।२।। Translated Sutra: यह जिनवचन विषयसुख का विरेचन, जरा-मरणरूपी व्याधि का हरण तथा सब दुःखों का क्षय करनेवाला अमृततुल्य औषध है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 19 | View Detail | ||
Mool Sutra: अरहंतभासियत्थं, गणहरदेवेहिं गंथियं सम्मं।
पणमामि भत्तिजुत्तो, सुदणाणमहोदहिं सिरसा।।३।। Translated Sutra: जो अर्हत् के द्वारा अर्थरूप में उपदिष्ट है तथा गणधरों के द्वारा सूत्ररूप में सम्यक् गुंफित है, उस श्रुतज्ञानरूपी महासिन्धु को मैं भक्तिपूर्वक सिर नमाकर प्रणाम करता हूँ। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 20 | View Detail | ||
Mool Sutra: तस्स मुहुग्गदवयणं, पुव्वावरदोसविरहियं सुद्धं।
आगममिदिपरिकहियं, तेण दु कहिया हवंति तच्चत्था।।४।। Translated Sutra: अर्हत् के मुख से उद्भूत, पूर्वापरदोष-रहित शुद्ध वचनों को आगम कहते हैं। उस आगम में जो कहा गया है वही सत्यार्थ है। (अर्हत् द्वारा उपदिष्ट तथा गणधर द्वारा संकलित श्रुत आगम है।) | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 21 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेण।
अमला असंकिलिट्ठा, ते होंति परित्तसंसारी।।५।। Translated Sutra: जो जिनवचन में अनुरक्त हैं तथा जिनवचनों का भावपूर्वक आचरण करते हैं, वे निर्मल और असंक्लिष्ट होकर परीतसंसारी (अल्प जन्म-मरणवाले) हो जाते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 22 | View Detail | ||
Mool Sutra: जय वीयराय ! जयगुरू ! होउ मम तुह पभावओ भयवं !
भवणिव्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठफलसिद्धी।।६।। Translated Sutra: हे वीतराग !, हे जगद्गुरु !, हे भगवन् ! आपके प्रभाव से मुझे संसार से विरक्ति, मोक्षमार्ग का अनुसरण तथा इष्टफल की प्राप्ति होती रहे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 23 | View Detail | ||
Mool Sutra: ससमय-परसमयविऊ, गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो।
गुणसयकलिओ जुत्तो, पवयणसारं परिकहेउं।।७।। Translated Sutra: जो स्वसमय व परसमय का ज्ञाता है, गम्भीर, दीप्तिमान, कल्याणकारी और सौम्य है तथा सैंकड़ों गुणों से युक्त है, वही निर्ग्रन्थ प्रवचन के सार को कहने का अधिकारी है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 24 | View Detail | ||
Mool Sutra: जं इच्छसि अप्पणतो, जं च ण इच्छसि अप्पणतो।
तं इच्छ परस्स वि या, एत्तियगं जिणसासणं।।८।। Translated Sutra: जो तुम अपने लिए चाहते हो वही दूसरों के लिए भी चाहो तथा जो तुम अपने लिए नहीं चाहते वह दूसरों के लिए भी न चाहो। यही जिनशासन है--तीर्थंकर का उपदेश है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
३. संघसूत्र | Hindi | 30 | View Detail | ||
Mool Sutra: कम्मरयजलोहविणिग्गयस्स, सुयरयणदीहनालस्स।
पंचमहव्वयथिरकण्णियस्स, गुणकेसरालस्स।।६।। Translated Sutra: संघ कमलवत् है। (क्योंकि) संघ कर्मरजरूपी जलराशि से कमल की तरह ही ऊपर तथा अलिप्त रहता है। श्रुतरत्न (ज्ञान या आगम) ही उसकी दीर्घनाल है। पंच महाव्रत ही उसकी स्थिर कर्णिका है तथा उत्तरगुण ही उसकी मध्यवर्ती केसर है। जिसे श्रावकजनरूपी भ्रमर सदा घेरे रहते हैं, जो जिनेश्वरदेवरूपी सूर्य के तेज से प्रबुद्ध होता है तथा |