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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1204 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गामे नगरे तह रायहानि-निगमे य आगरे पल्ली । खेडे कब्बडदोणमुह-पट्टणमडंबसंबाहे ॥

Translated Sutra: ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड़, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मण्डप, संबाध – आश्रम – पद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिबिर, सार्थ, संवर्त, कोट – पाडा, गली और घर – इन क्षेत्रों में तथा इसी प्रकार के दूसरे क्षेत्रों में निर्धारित क्षेत्र – प्रमाण के अनुसार भिक्षा के लिए जाना, क्षेत्र से ‘ऊणोदरी’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1205 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसमपए विहारे सन्निवेसे समायघोसे य । थलिसेणाखंधारे सत्थे संवट्टकोट्टे य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२०४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1206 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वाडेसु व रच्छासु व घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पइ उ एवमाई एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२०४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1207 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पेडा य अद्धपेडा गोमुत्तिपयंगवीहिया चेव । संबुक्कावट्टाययगंतु पच्चागया छट्ठा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२०४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1208 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिवसस्स पोरुसीणं चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे काले । एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्वो ॥

Translated Sutra: दिवस के चार प्रहर होते हैं। उन चार प्रहरों में भिक्षा का जो नियत समय है, तदनुसार भिक्षा के लिए जाना, यह काल से ‘ऊणोदरी’ तप है। अथवा कुछ भागन्यून तृतीय प्रहर में भिक्षा की एषणा करना, काल की अपेक्षा से ‘ऊणोदरी’ तप है। सूत्र – १२०८, १२०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1209 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसंतो । चउभागूणाए वा एवं कालेण ऊ भवे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२०८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1210 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वाणलंकिओ वा वि । अन्नयरवयत्थो वा अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥

Translated Sutra: स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत अथवा अनलंकृत, विशिष्ट आयु और अमुक वर्ण के वस्त्र – अथवा अमुक विशिष्ट वर्ण एवं भाव से युक्त दाता से ही भिक्षा ग्रहण करना, अन्यथा नहीं – इस प्रकार की चर्या वाले मुनि को भाव से ‘ऊणोदरी’ तप है। सूत्र – १२१०, १२११
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1211 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अन्नेणं विसेसेणं वन्नेणं भावमनुमुयंते उ । एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुनेयव्वो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२१०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1212 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दव्वे खेत्ते काले भावम्मि य आहिया उ जे भावा । एएहिं ओमचरओ पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥

Translated Sutra: द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में जो – जो पर्याय कथन किये हैं, उन सबसे ऊणोदरी तप करने वाला ‘पर्यवचरक’ होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1213 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठविहगोयरग्गं तु तहा सत्तेव एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया ॥

Translated Sutra: आठ प्रकार के गोचराग्र, सप्तविध एषणाऍं और अन्य अनेक प्रकार के अभिग्रह – ‘भिक्षाचर्या’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1214 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खीरदहिसप्पिमाई पणीयं पानभोयणं । परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं ॥

Translated Sutra: दूध, दहीं, घी आदि प्रणीत (पौष्टिक) पान, भोजन तथा रसों का त्याग, ‘रसपरित्याग’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1215 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जंति कायकिलेसं तमाहियं ॥

Translated Sutra: आत्मा को सुखावह अर्थात्‌ सुखकर वीरासनादि उग्र आसनों का अभ्यास, ‘कायक्लेश’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1216 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगंतमणावाए इत्थीपसुविवज्जिए । सयनासनसेवणया विवित्तसयनासनं ॥

Translated Sutra: एकान्त, अनापात तथा स्त्री – पशु आदि रहित शयन एवं आसन ग्रहण करना, ‘विविक्तशयनासन’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1217 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसो बाहिरगतवो समासेण वियाहिओ । अब्भिंतरं तवं एत्तो वुच्छामि अनुपुव्वसो ॥

Translated Sutra: संक्षेप में यह बाह्य तप का व्याख्यान है। अब क्रमशः आभ्यन्तर तप का निरूपण करूँगा। प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग – यह आभ्यन्तर तप हैं। सूत्र – १२१७, १२१८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1218 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । ज्झाणं च विउस्सग्गो एसो अब्भिंतरो तवो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२१७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1219 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलोयणारिहाईयं पायच्छित्तं तु दसविहं । जे भिक्खू वहई सम्मं पायच्छित्तं तमाहियं ॥

Translated Sutra: आलोचनार्ह आदि दस प्रकार का प्रायश्चित्त, जिसका भिक्षु सम्यक्‌ प्रकार से पालन करता है, ‘प्रायश्चित्त’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1220 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं तहेवासनदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा विनओ एस वियाहिओ ॥

Translated Sutra: खड़े होना, हाथ जोड़ना, आसन देना, गुरुजनों की भक्ति तथा भाव – पूर्वक शुश्रूषा करना, ‘विनय’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1221 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयरियमाइयम्मि य वेयावच्चम्मि दसविहे । आसेवनं जहाथामं वेयावच्चं तमाहियं ॥

Translated Sutra: आचार्य आदि से सम्बन्धित दस प्रकार के वैयावृत्य का यथाशक्ति आसेवन करना, ‘वैयावृत्य’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1222 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा । अनुप्पेहा धम्मकहा सज्झाओ पंचहा भवे ॥

Translated Sutra: वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा – यह पंचविध ‘स्वाध्याय’ तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1223 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता ज्झाएज्जा सुसमाहिए । धम्मसुक्काइं ज्झाणाइं ज्झाणं तं तु बुहा वए ॥

Translated Sutra: आर्त और रौद्र ध्यान को छोड़कर सुसमाहित मुनि जो धर्म और शुक्ल ध्यान ध्याता है, ज्ञानीजन उसे ही ‘ध्यान’ तप कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1224 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयनासनठाणे वा जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो छट्ठो सो परिकित्तिओ ॥

Translated Sutra: सोने, बैठने तथा खड़े होने में जो भिक्षु शरीर से व्यर्थ की चेष्टा नहीं करता है, यह शरीर का व्युत्सर्ग – ‘व्युत्सर्ग’ नामक छठा तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1225 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयं तवं तु दुविहं जे सम्मं आयरे मुनी । से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जो पण्डित मुनि दोनों प्रकार के तप का सम्यक्‌ आचरण करता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से विमुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1383 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लेसज्झयणं पवक्खामि आनुपुव्विं जहक्कमं । छण्हं पि कम्मलेसाणं अनुभावे सुणेह मे ॥

Translated Sutra: मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार लेश्याअध्ययन का निरूपण करूँगा। मुझसे तुम छहों लेश्याओं के अनुभावों – को सुनो। लेश्याओं के नाम, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयुष्य को मुझसे सुनो सूत्र – १३८३, १३८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1422 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसा खलु लेसाणं ओहेण ठिई उ वण्णिया होइ । चउसु वि गईसु एत्तो लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ॥

Translated Sutra: गति की अपेक्षा के बिना यह लेश्याओं की ओघ – सामान्य स्थिति है। अब चार गतियों की अपेक्षा से लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1438 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किण्हा नीला काऊ तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो दुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥

Translated Sutra: कृष्ण, नील और कापोत – ये तीनों अधर्म लेश्याऍं हैं। इन तीनों से जीव अनेक बार दुर्गति को प्राप्त होता है तेजो – लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ललेश्या – ये तीनों धर्म लेश्याऍं हैं। इन तीनों से जीव अनेक बार सुगति को प्राप्त होता है। सूत्र – १४३८, १४३९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1444 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुणेह मेगग्गमणा मग्गं बुद्धेहि देसियं । जमायरंतो भिक्खू दुक्खाणंतकरो भवे ॥

Translated Sutra: मुझ से ज्ञानियों द्वारा उपदिष्ट मार्ग को एकाग्र मन से सुनो, जिसका आचरण कर भिक्षु दुःखों का अन्त करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1445 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गिहवासं परिच्चज्ज पवज्जं अस्सिओ मुनी । इमे संगे वियाणिज्जा जेहिं सज्जंति मानवा ॥

Translated Sutra: गृहवास का परित्याग कर प्रव्रजित हुआ मुनि, इन संगों को जाने, जिनमें मनुष्य आसक्त होते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1446 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अबंभसेवनं । इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए ॥

Translated Sutra: संयत भिक्षु हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य, इच्छा – काम और लोभ से दूर रहे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1447 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मनोहरं चित्तहरं मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पंडुरुल्लोयं मनसा वि न पत्थए ॥

Translated Sutra: मनोहर चित्रों से युक्त, माल्य और धूप से सुवासित, किवाड़ों तथा सफेद चंदोवा से युक्त – ऐसे चित्ताकर्षक स्थान की मन से भी इच्छा न करे। काम – राग को बढ़ाने वाले इस प्रकार के उपाश्रय में इन्द्रियों का निरोध करना भिक्षु के लिए दुष्कर है। सूत्र – १४४७, १४४८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1448 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इंदियाणि उ भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराइं निवारेउं कामरागविवड्ढणे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४४७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1449 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुसाने सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एक्कओ । पइरिक्के परकडे वा वासं तत्थभिरोयए ॥

Translated Sutra: अतः एकाकी भिक्षु श्मशान में, शून्य गृह में, वृक्ष के नीचे तथा परकृत एकान्त स्थान में रहने की अभिरुचि रखे। परम संयत भिक्षु प्रासुक, अनावाध, स्त्रियों के उपद्रव से रहित स्थान में रहने का संकल्प करे। सूत्र – १४४९, १४५०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1450 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] फासुयम्मि अनाबाहे इत्थीहिं अनभिद्दुए । तत्थ संकप्पए वासं भिक्खू परमसंजए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४४९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1451 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न सयं गिहाइं कुज्जा णेव अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारंभे भूयाणं दीसई वहो ॥

Translated Sutra: भिक्षु न स्वयं घर बनाए और न दूसरों से बनवाए। चूँकि गृहकर्म के समारंभ में प्राणियों का वध देखा जाता है। त्रस और स्थावर तथा सूक्ष्म और बादर जीवों का वध होता है, अतः संयत भिक्षु गृह – कर्म के समारंभ का परित्याग करे। सूत्र – १४५१, १४५२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1452 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तसाणं थावराणं च सुहुमाणं बायराण य । तम्हा गिहसमारंभं संजओ परिवज्जए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४५१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1453 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव भत्तपानेसु पयण पयावणेसु य । पाणभूयदयट्ठाए न पये न पयावए ॥

Translated Sutra: इसी प्रकार भक्त – पान पकाने और पकवाने में हिंसा होती है। अतः प्राण और भूत जीवों की दया के लिए न स्वयं पकाए न दूसरे से पकवाए। भक्त और पान के पकाने में जल, धान्य, पृथ्वी और काष्ठ के आश्रित जीवों का वध होता है – अतः भिक्षु न पकवाए। सूत्र – १४५३, १४५४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1454 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जलधन्ननिस्सिया जीवा पुढवीकट्ठनिस्सिया । हम्मंति भत्तपानेसु तम्हा भिक्खू न पायए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४५३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1455 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विसप्पे सव्वओधारे बहुपाणविनासने । नत्थि जोइसमे सत्थे तम्हा जोइं न दीवए ॥

Translated Sutra: अग्नि के समान दूसरा शस्त्र नहीं है, वह सभी ओर से प्राणिनाशक तीक्ष्ण धार से युक्त है, बहुत अधिक प्राणियों की विनाशक है, अतः भिक्षु अग्नि न जलाए।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1456 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हिरण्णं जायरूवं च मनसा वि न पत्थए । समलेट्ठुकंचणे भिक्खू विरए कयविक्कए ॥

Translated Sutra: क्रय – विक्रय से विरक्त भिक्षु सुवर्ण और मिट्टी को समान समझनेवाला है, अतः वह सोने और चाँदी की मन से भी इच्छा न करे। वस्तु को खरीदने वाला क्रयिक होता है और बेचने वाला वणिक्‌ अतः क्रय – विक्रय में प्रवृत्त ‘साधु’ नहीं है। भिक्षावृत्ति से ही भिक्षु को भिक्षा करनी चाहिए, क्रय – विक्रय से नहीं। क्रय – विक्रय महान्‌
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1457 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किणंतो कइओ होइ विक्किणंतो य वाणिओ । कयविक्कयम्मि वट्टंतो भिक्खू न भवइ तारिसो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४५६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1458 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भिक्खयव्वं न केयव्वं भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा । कयविक्कओ महादोसो भिक्खावत्ती सुहावहा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४५६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1459 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समुयाणं उंछमेसिज्जा जहासुत्तमनिंदियं । लाभालाभम्मि संतुट्ठे पिंडवायं चरे मुनी ॥

Translated Sutra: मुनि श्रुत के अनुसार अनिन्दित और सामुदायिक उञ्छ की एषणा करे। वह लाभ और अलाभ में सन्तुष्ट रहकर भिक्षा – चर्या करे। अलोलुप, रस में अनासक्त, रसनेन्द्रिय का विजेता, अमूर्च्छित महामुनि यापनार्थ – जीवन – निर्वाह के लिए ही खाए, रस के लिए नहीं। सूत्र – १४५९, १४६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1460 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अलोले न रसे गिद्धे जिब्भादंते अमुच्छिए । न रसट्ठाए भुंजिज्जा जवणट्ठाए महामुनी ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४५९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1461 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अच्चणं रयणं चेव वंदणं पूयणं तहा । इड्ढीसक्कारसम्माणं मनसा वि न पत्थए ॥

Translated Sutra: मुनि अर्चना, रचना, पूजा, ऋद्धि, सत्कार और सम्मान की मन से भी प्रार्थना न करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1462 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुक्कज्झाणं ज्झियाएज्जा अनियाणे अकिंचने । वोसट्ठकाए विहरेज्जा जाव कालस्स पज्जओ ॥

Translated Sutra: मुनि शुक्ल ध्यान में लीन रहे। निदानरहित और अकिंचन रहे। जीवनपर्यन्त शरीर की आसक्ति को छोड़कर विचरण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1463 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निज्जूहिऊण आहारं कालधम्मे उवट्ठिए । जहिऊण मानुसं बोंदिं पहू दुक्खे विमुच्चई ॥

Translated Sutra: अन्तिम काल – धर्म उपस्थित होने पर मुनि आहार का परित्याग कर और मनुष्य – शरीर को छोड़कर दुःखों से मुक्तप्रभु हो जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३५ अनगार मार्गगति

Hindi 1464 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निम्ममो निरहंकारो वीयरागो अनासवो । संपत्तो केवलं नाणं सासयं परिणिव्वुए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: निर्मम, निरहंकार, वीतराग और अनाश्रव मुनि केवल – ज्ञान को प्राप्त कर शाश्वत परिनिर्वाण को प्राप्त होता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1526 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोयणस्स उ जो तस्स कोसो उवरिमो भवे । तस्स कोसस्स छब्भाए सिद्धाणोगाहणा भवे ॥

Translated Sutra: उस योजन के ऊपर का जो कोस है, उस कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना होती है। भवप्रपंच से मुक्त, महाभाग, परम गति ‘सिद्धि’ को प्राप्त सिद्ध वहाँ अग्रभाग में स्थित हैं। सूत्र – १५२६, १५२७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1531 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोएगदेसे ते सव्वे नाणदंसणसण्णिया । संसारपारनिच्छिन्ना सिद्धिं वरगइं गया ॥

Translated Sutra: ज्ञान – दर्शन से युक्त, संसार के पार पहुँचे हुए, परम गति सिद्धि को प्राप्त वे सभी सिद्ध लोक के एक देश में स्थित हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1719 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कंदप्पमाभिओगं किब्बिसियं मोहमासुरत्तं च । एयाओ दुग्गईओ मरणम्मि विराहिया होंति ॥

Translated Sutra: कांदर्पी, आभियोगी, किल्विषिकी, मोही और आसुरी भावनाऍं दुर्गति देनेवाली हैं। ये मृत्यु के समय में संयम की विराधना करती है।
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Gujarati 1078 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा । एयं मग्गमनुप्पत्ता जीवा गच्छंति सोग्गइं ॥

Translated Sutra: જ્ઞાન, દર્શન, ચારિત્ર અને તપના આ માર્ગ ઉપર આરૂઢ જીવ સદ્‌ગતિને પ્રાપ્ત કરે છે.
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