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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jitakalpa | જીતકલ્પ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Gujarati | 103 | Gatha | Chheda-05A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय एस जीयकप्पो समासओ सविहियाणुकम्माए ।
कहिओ देयोऽयं पुण पत्ते सुपरिच्छिय-गुणम्मि ॥ Translated Sutra: આ પ્રમાણે આ જીતકલ્પ અર્થાત્, જીત વ્યવહાર સંક્ષેપથી તેમજ સુવિહિત સાધુની અનુકંપા બુદ્ધિથી કહ્યો. સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણે જ સારી રીતે ગુણોને જાણીને, આ જીત કલ્પાનુસાર પ્રાયશ્ચિત્ દાન કરવું જોઈએ. નોંધ – અહીં માત્ર મૂળ ગાથાનો અને કિંચિત્ ચૂર્ણિના આશ્રય સહિતનો અનુવાદ અમોએ કરેલ છે.. પરંતુ જિજ્ઞાસુઓએ આ સૂત્રની | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 300 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] हारद्दीवे हारभद्द हारमहाभद्दा एत्थ हारसमुद्दे हारवरहारवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया हारवरे दीवे हारवरभद्दहारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया हारवरोए समुद्दे हारवरहारवर महावरा एत्थ हारवराभासे दीवे हारवरावभासभद्द हारवरावभासमहाभद्दा एत्थ हारवरावभासोए समुद्दे हारवराव-भासवर-हारवरावभासमहावरा एत्थ एवं सव्वेवि तिपडोयारा नेतव्वा जाव सूरवरोभासोए समुद्दे दीवेसु भद्दनामा वरणामा होंति उद्दहीसु जाव पच्छिमभावं च खोत्तवरादीसु सयंभूरमणपज्जंतेसु वावीओ खोओदगपडिहत्थाओ पव्वयका य सव्ववइरामया देवदीवे दीवे दो देवा महिड्ढीया देवभद्द देवमहाभद्दा एत्थ देवोदे Translated Sutra: हार द्वीप में हारभद्र और हारमहाभद्र नाम के दो देव हैं। हारसमुद्र में हारवर और हारवर – महावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरद्वीप में हारवरभद्र और हारवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरोदसमुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरावभासद्वीप में हारवरावभासभद्र और हारवरावभास | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत् पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 53 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं इत्थीओ? इत्थीओ तिविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–तिरिक्खजोणित्थीओ मनुस्सित्थीओ देवित्थीओ।
से किं तं तिरिक्खजोणित्थीओ? तिरिक्खजोणित्थीओ तिविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–जलयरीओ थलयरीओ खहयरीओ।
से किं तं जलयरीओ? जलयरीओ पंचविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मच्छीओ जाव सुंसुमारीओ। से तं जलयरीओ।
से किं तं थलयरीओ? थलयरीओ दुविहाओ पन्नत्ताओ, तं० चउप्पईओ य परिसप्पीओ य।
से किं तं चउप्पईओ? चउप्पईओ चउव्विहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–एगखुरीओ जाव सणप्फईओ। से तं चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीओ।
से किं तं परिसप्पीओ? परिसप्पीओ दुविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– उरपरिसप्पीओ य भुयपरिसप्पीओ य।
से किं तं उरपरिसप्पीओ? Translated Sutra: स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? तीन प्रकार की – तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ, मनुष्य स्त्रियाँ और देव स्त्रियाँ। तिर्यंच – योनिक स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? तीन प्रकार की – जलचरी, स्थलचरी और खेचरी। जलचरी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? पाँच प्रकार की – मत्स्यी यावत् सुंसुमारी। स्थलचरी स्त्रियाँ कितने प्रकार | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 55 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
जलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहा तिरिक्खजोणित्थीओ।
उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं भुयपरिसप्पतिरिक्खजोणित्थीओ।
एवं खहयरतिरिक्खत्थीणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो।
मनुस्सित्थीणं Translated Sutra: हे भगवन् ! तिर्यक्योनि स्त्रियों की स्थिति कितने समय की है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की। भगवन् ! जलचर तिर्यक् योनि स्त्रियों की स्थिति ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी की है। भगवन् ! चतुष्पद स्थलचरतिर्यक्स्त्रियों की स्थिति क्या है ? गौतम ! जैसे तिर्यंचयोनिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 64 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयाणि, जहेवित्थीणं जाव–
एतेसि णं भंते! देवपुरिसाणं–भवनवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं वेमाणियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा वेमानियदेवपुरिसा २. भवनवइदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३. वाणमंतरदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ४. जोतिसियदेव-पुरिसा संखेज्जगुणा।
एतेसि णं भंते! तिरिक्खजोणियपुरिसाणं–जलयराणं थलयराणं खहयराणं, मनुस्सपुरिसाणं–कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, देवपुरिसाणं–भवनवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं सोधम्माणं जाव सव्वट्ठसिद्धगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया Translated Sutra: स्त्रियों का जैसा अल्पबहुत्व कहा यावत् हे भगवन् ! देव पुरुषों – भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े वैमानिक देवपुरुष, उनसे भवनपति देवपुरुष असंख्येयगुण, उनसे वानव्यन्तर देवपुरुष असंख्येय गुण, उनसे ज्योतिष्क देवपुरुष संख्येयगुणा हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 70 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतासि णं भंते! इत्थीणं पुरिसाणं नपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! १. सव्वत्थोवा पुरिसा २. इत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. नपुंसगा अनंतगुणा।
एतासि णं भंते! तिरिक्खजोणिइत्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणियपुरिसा २. तिरिक्खजोणिइत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अनंतगुणा।
एतासि णं भंते! मनुस्सित्थीणं मनुस्सपुरिसाणं मनुस्सनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा Translated Sutra: (१) भगवन् ! इन स्त्रियों में, पुरुषों में और नपुंसकों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है? गौतम ! सबसे थोड़े पुरुष, स्त्रियाँ संख्यातगुणी और नपुंसक अनन्तगुण हैं। (२) इन तिर्यक्योनिक में, सबसे थोड़े तिर्यक्योनिक पुरुष, तिर्यक्योनिक स्त्रियाँ उनसे असंख्यातगुणी, उनसे तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 89 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ, चरिमंताओ केवतियुं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते? गोयमा! दुवालसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं दाहिणिल्लातो पच्चत्थिमिलातो उत्तरिल्लातो।
सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए पुरत्थिमिल्लातो चरिमंतातो केवतियं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते? गोयमा! तिभागूणेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं चउद्दिसिंपि।
वालुयप्पभाए णं भंते! पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ पुच्छा। गोयमा! सतिभागेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं चउद्दिसिंपि।
एवं सव्वासिं चउसुवि दिसासु पुच्छितव्वं–पंकप्पभाए चोद्दसहिं जोयणेहिं Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के उपरिमान्त से कितने अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा है ? गौतम ! १२ योजन के बाद। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम और उत्तरदिशा के उपरिमान्त से बारह योजन अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है। शर्कराप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से त्रिभाग कम तेरह योजन के अपान्तराल के | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Hindi | 90 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! छ जोयणाणि बाहल्लेणं पन्नत्ते।
सक्करप्पभाए पुढवीए घनोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! सतिभागाइं छजोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते।
वालुयप्पभाए पुच्छा। गोयमा! तिभागूणाइं सत्त जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते। एवं एतेणं अभिलावेणं– पंकप्पभाए सत्त जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते। धूमप्पभाए सतिभागाइं सत्त जोयणाइं। तमप्पभाए तिभागूणाइं अट्ठ जोयणाइं। तमतमप्पभाए अट्ठ जोयणाइं।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनवायवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! अद्धपंचमाइं जोयणाइं बाहल्लेणं।
सक्करप्पभाए Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधिवलय कितना मोटा है ? गौतम ! छह योजन, शर्कराप्रभापृथ्वी का घनोदधिवलय त्रिभागसहित छह योजन मोटा है। वालुकाप्रभा त्रिभागशून्य सात योजन का है। पंकप्रभा का घनोदधिवलय सात योजन का, धूमप्रभा का त्रिभागसहित सात योजन का, तमःप्रभा का त्रिभागन्यून आठ योजन का और तमस्तमःप्रभा का आठ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 98 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए अहिमडेति वा गोमडेति वा सुनमडेति वा मज्जारमडेति वा मनुस्समडेति वा महिसमडेति वा मूसगमडेति वा आसमडेति वा हत्थिमडेति वा सीहमडेति वा वग्घमडेति वा विगमडेति वा दीविय-मडेति वा मयकुहियविणट्ठकुणिमवावण्णदुरभिगंधे असुइविलीणविगय बीभच्छदरिसणिज्जे किमि-जालाउलसंसत्ते भवेयारूवे सिया? नो इणट्ठे समट्ठे। गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नरगा एत्तो अनिट्ठतरका चेव अकंततरका चेव अप्पियतरका चेव अमणुन्नतरका चेव अमनामतरका चेव गंधेणं पन्नत्ता। एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास गंध की अपेक्षा कैसे हैं ? गौतम ! जैसे सर्प का मृतकलेवर हो, गाय का मृतकलेवर हो, कुत्ते का मृतकलेवर हो, बिल्ली का मृतकलेवर हो, इसी प्रकार मनुष्य का, भैंस का, चूहे का, घोड़े का, हाथी का, सिंह का, व्याघ्र का, भेड़िये का, चीत्ते का मृतकलेवर हो जो धीरे – धीरे सूज – फूलकर सड़ गया हो और जिसमें | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 104 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केरिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति? गोयमा! जे पोग्गला अनिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं आहारस्सवि सत्तसुवि।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एक्का काउलेसा पन्नत्ता। एवं सक्करप्पभाएवि।
वालुयप्पभाए पुच्छा। दो लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नीललेसा काउलेसा य। ते बहुतरगा जे काउलेसा, ते थोवतरगा जे णीललेस्सा।
पंकप्पभाए पुच्छा। एक्का नीललेसा पन्नत्ता।
धूमप्पभाए पुच्छा। गोयमा! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य। ते बहुतरका जे नीललेस्सा, Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं ? गौतम! अनिष्ट यावत् अमणाम पुद्गल परिणत होते हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक जानना। इसी प्रकार जो पुद्गल अनिष्ट एवं अमणाम होते हैं, वे नैरयिकी के आहार रूप में परिणत होते हैं। ऐसा ही कथन रत्नप्रभादि सातों नरक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 105 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?
गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्व-पोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा नो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहुत्तंपि पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एगं महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं– मोग्गरमुसुंढिकरवतअसिसत्तीहलगतामुसलचक्का।
नारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! असत् कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्य पुद्गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: उस जगती के ऊपर और पद्मवरवेदिका के बाहर एक बड़ा विशाल वनखण्ड है। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोल विस्तार वाला है और उसकी परिधि जगती की परिधि के समान ही है। वह वनखण्ड काला है और काला ही दिखाई देता है। यावत् उस वनखण्ड के वृक्षों के मूल बहुत दूर तक जमीन के भीतर गहरे गये हुए हैं, वे प्रशस्त किशलय वाले, प्रशस्त पत्रवाले | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: उस काल और उस समय में विजयदेव विजया राजधानी की उपपातसभा में देवशयनीय में देवदूष्य के अन्दर अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण शरीर में विजयदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। तब वह उत्पत्ति के अनन्तर पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पूर्ण हुआ। वे पाँच पर्याप्तियाँ इस प्रकार हैं – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: तब वह विजयदेव शानदार इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त हो जाने पर सिंहासन से उठकर अभिषेकसभा के पूर्व दिशा के द्वार से बाहर नीकलता है और अलंकारसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशा के द्वार से उसमें प्रवेश करता है। फिर उस श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठा। तदनन्तर उस विजयदेव की सामानिकपर्षदा के देवों ने आभियोगिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 189 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नीलवंतद्दहस्स णं पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दसदस जोयणाइं अबाधाए, एत्थ णं दसदस कंचनगपव्वत्ता पन्नत्ता। ते णं कंचनगपव्वता एगमेगं जोयणसतं उड्ढं उच्चत्तेणं पणवीसं पणवीसं जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं, मज्झे पण्णत्तरिं जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले तिन्नि सोलसुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मज्झे दोन्नि सत्ततीसे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, उवरिं एगं अट्ठावण्णं जोयणसतं किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले वित्थिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पिं तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वकंचणामया अच्छा जाव पडिरूवा Translated Sutra: नीलवंत द्रह के पूर्व – पश्चिम में दस योजन आगे जाने पर दस दस काञ्चनपर्वत हैं। ये कांचन पर्वत एक सौ – एक सौ योजन ऊंचे, पच्चीस – पच्चीस योजन भूमि में, मूल में एक – एक सौ योजन चौड़े, मध्य में ७५ योजन चौड़े और ऊपर पचास – पचास योजन चौड़े हैं। इनकी परिधि मूल में ३१६ योजन से कुछ अधिक, मध्य में २२७ योजन से कुछ अधिक और ऊपर १५८ योजन | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 215 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आभरनवत्थगंधे, उप्पलतिलए य पुढविनिहिरयणे ।
वासहरदहनईओ, विजया वक्खारकप्पिंदा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१३ | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 288 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वतस्स जे चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? कप्पोववन्नगा? विमाणोववन्नगा? चारोववन्नगा? चारट्ठितीया? गतिरतिया? गति-समावन्नगा? गोयमा! ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा, नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा, नो चारट्ठितीया, गतिरतिया गतिसमावन्नगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयण-साहस्सि-तेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट गीत वादित तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहनाय-वोलकलकलरवेणं Translated Sutra: भदन्त ! मनुष्यक्षेत्र के अन्दर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण हैं, वे ज्योतिष्क देव क्या ऊर्ध्व विमानों में उत्पन्न हुए हैं या सौधर्म आदि कल्पों में उत्पन्न हुए हैं या (ज्योतिष्क) विमानों में उत्पन्न हुए हैं ? वे गतिशील हैं या गतिरहित हैं ? गतिशील और गति को प्राप्त हुए हैं ? गौतम ! वे देव ज्योतिष्क विमानों | |||||||||
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वैमानिक उद्देशक-१ | Hindi | 324 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेमाणियाणं देवाणं विमाना पन्नत्ता? कहि णं भंते! वेमाणिया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिमसूरियगहनक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसयसहस्साइं बहूइं जोयणकोडीओ बहूइं जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाणं सणंकुमार माहिंद बंभलोय लंतग महासुक्क सहस्सार आनय पाणय आरण अच्चुत गेवेज्ज अनुत्तरेसु य, एत्थ णं वेमाणियाणं चतुरासीतिं विमानावाससतसहस्सा सत्तानउतिं च सहस्सा तेवीसं च विमाना भवंतीति मक्खाया। ते णं विमाना सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। Translated Sutra: भगवन् ! वैमानिक देवों के विमान कहाँ हैं ? भगवन् ! वैमानिक देव कहाँ रहते हैं ? इत्यादि वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के स्थानपद समान कहना। विशेष रूप में यहाँ अच्युत विमान तक परिषदाओं का कथन भी करना यावत् बहुत से सौधर्मकल्पवासी देव और देवियों का आधिपत्य करते हुए सुखपूर्वक विचरण करते हैं। | |||||||||
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वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 326 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु कप्पेसु विमानपुढवी किंपइट्ठिया पन्नत्ता? गोयमा! घनोदहिपइट्ठिया पन्नत्ता।
सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु विमानपुढवी किंपइट्ठिया पन्नत्ता? गोयमा! घनवायपइट्ठिया पन्नत्ता।
बंभलोए णं भंते! कप्पे विमानपुढवी णं पुच्छा। घनवायपइट्ठिया पन्नत्ता।
लंतए तदुभयपइट्ठिया पन्नत्ता।
महासुक्कसहस्सारेसुवि तदुभयपइट्ठिया।
आनय जाव अच्चुएसु णं भंते! कप्पेसु पुच्छा। ओवासंतरपइट्ठिया पन्नत्ता।
गेवेज्जविमानपुढवीणं भंते! पुच्छा। गोयमा! ओवासंतरपइट्ठिया पन्नत्ता।
अनुत्तरोववाइयपुच्छा। ओवासंतरपइट्ठिया पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प की विमानपृथ्वी किसके आधार पर रही हुई है ? गौतम ! घनोदधि के आधार पर। सनत्कुमार और माहेन्द्र की विमानपृथ्वी घनवात पर प्रतिष्ठित है। ब्रह्मलोक विमान – पृथ्वी घनवात पर प्रतिष्ठित है। लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार विमान पृथ्वी घनोदधि – घनवात पर प्रतिष्ठित है। आनत यावत् अच्युत विमानपृथ्वी, | |||||||||
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वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 327 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानकप्पेसु विमानपुढवी केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ता? गोयमा! सत्तावीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं पन्नत्ता।
एवं पुच्छा–सणंकुमारमाहिंदेसु छव्वीसं जोयणसयाइं। बंभलंतएसु पंचवीसं। महासुक्क-सहस्सारेसु चउवीसं। आनयपाणयारणाच्चुएसु तेवीसं सयाइं। गेवेज्जविमाणपुढवी बावसं। अनुत्तर-विमानपुढवी एक्कवीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमानपृथ्वी कितनी मोटी है ? गौतम ! २७०० योजन मोटी है। सनत्कुमार और माहेन्द्र में विमानपृथ्वी २६०० योजन। ब्रह्मलोक और लांतक में २५०० योजन, महाशुक्र और सहस्रार में २४०० योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत कल्प में २३०० योजन, ग्रैवेयकों में २२०० योजन और अनुत्तर विमानों में विमानपृथ्वी | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 328 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं? गोयमा! पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं।
सणंकुमारमाहिंदेसु छ जोयणसयाइं। बंभलंतएसु सत्त। महासुक्कसहस्सारेसु अट्ठ। आनयपानयारणाच्चुएसु नव।
गेवेज्जविमानाणं भंते! केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं? गोयमा! दस जोयणसयाइं।
अनुत्तरविमानाणं एक्कारस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं। Translated Sutra: भगवन्! सौधर्म – ईशानकल्पमें विमान कितने ऊंचे हैं? गौतम!५०० योजन ऊंचे हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र में ६०० योजन, ब्रह्मलोक और लान्तक में ७०० योजन, महाशुक्र और सहस्रार में ८००योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत में ९०० योजन, ग्रैवेयकविमानमें १००० योजन और अनुत्तरविमान ११०० योजन ऊंचे हैं। | |||||||||
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वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 329 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेणं भंते! कप्पेसु विमाना किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आवलियापविट्ठा य आवलियाबाहिरा य। तत्थ णं जेते आवलियापविट्ठा ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–वट्टा तंसा चउरंसा। तत्थ णं जेते आवलियाबाहिरा ते णं नानासंठाणसंठिया पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जविमाना।
अनुत्तरविमाना दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–वट्टे य तंसा य। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों का आकार कैसा है ? गौतम ! वे विमान दो प्रकार के हैं – आवलिका – प्रविष्ट और आवलिका बाह्य। आवलिका – प्रविष्ट विमान तीन प्रकार के हैं – गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण। आवलिका – बाह्य हैं वे नाना प्रकार के हैं। इसी तरह का कथन ग्रैवेयकविमानों पर्यन्त कहना। अनुत्तरो – पपातिक विमान दो | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 330 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। एवं जाव गेवेज्जविमाना।
अनुत्तरविमाना पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य असंखेज्ज-वित्थडा य। तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से एगं जोयणसयसहस्सं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई – चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं – संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले। नरकों के कथन समान यहाँ कहना; यावत् अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं – संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 331 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी –नेवट्ठि नेव छिरा नेव ण्हारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं सरीरसंघातत्ताए परिणमंति। एवं जाव अनुत्तरोववातिया।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा सरीरा पन्नत्ता, तं जहा –भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते समचउरंस-संठाणसंठिता पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते नानासंठाणसंठिता पन्नत्ता जाव अच्चुओ।
गेवेज्जादेवाणं भंते! सरीरा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! एगे भवधारणिज्जे Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में देवों के शरीर का संहनन कौन सा है ? गौतम ! एक भी नहीं; क्योंकि उनके शरीर में न हड्डी होती है, न शिराएं होती हैं और न नसें ही होती हैं। जो पुद्गल इष्ट, कान्त यावत् मनोज्ञ – मनाम होते हैं, वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप में परिणत होते हैं। यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 332 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! कनगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पन्नत्ता।
सणंकुमारमाहिंदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पन्नत्ता। एवं बंभेवि।
लंतए णं भंते! गोयमा! सुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जा।
अनुत्तरोववातिया परमसुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? जहा विमानाणं गंधो जाव अनुत्तरोववाइयाणं।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पन्नत्ता? गोयमा! थिरमउणिद्धसुकुमालफासेणं पन्नत्ता। एवं जाव अनुत्तरोववातियाणं।
सोहम्मीसानेसु Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभा – युक्त। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 333 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अधे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते, उड्ढं जाव सगाइं विमानाइं, तिरियं जाव असंखेज्जा दीवसमुद्दा एवं– Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प के देव अवधिज्ञान के द्वारा कितने क्षेत्र को जानते हैं – देखते हैं ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र को और उत्कृष्ट से नीची दिशा में रत्नप्रभापृथ्वी तक, ऊर्ध्वदिशा में अपने – अपने विमानों के ऊपरी भाग ध्वजा – पताका तक और तिरछीदिशा में असंख्यात द्वीप – समुद्रों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 335 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आनयपाणयकप्पे, देवा पासंति पंचमिं पुढवीं ।
तं चेव आरणच्चुय, ओहीनाणेण पासंति ॥ Translated Sutra: आणत – प्राणत – आरण – अच्युत कल्प के देव पाँचवीं पृथ्वी तक अवधिज्ञान के द्वारा जानते – देखते हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 337 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं कति समुग्घाता पन्नत्ता? गोयमा! पंच समुग्घाता पन्नत्ता, तं जहा– वेदनासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते वेउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्घाते। एवं जाव अच्चुया।
गेवेज्जनुत्तराणं पुच्छा। गोयमा! पंच–वेदणासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते विउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्घाते। नो चेव णं वेउव्वियसमुग्घातेण वा तेयासमुग्घातेण वा समोहणिंसु वा समोहण्णंति वा समोहणिस्संति वा।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसयं खुहपिवासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! तेसि णं देवाणं नत्थि खुहपिवासा। एवं जाव अनुत्तरोववातिया।
सोहम्मीसानेसु Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्पों में देवों में कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! पाँच – वेदनासमुद्घात, कषाय – समुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात और तेजससमुद्घात। इसी प्रकार अच्युतदेवलोक तक कहना। ग्रैवेयकदेवों के आदि के तीन समुद्घात कहे गये हैं – भगवन् ! सौधर्म – ईशान देवलोक के देव कैसी भूख – प्यास | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 338 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसया विभूसाए पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं आभरनवसणरहिता पगतित्था विभूसाए पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णं हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा विभूसाए पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए पन्नत्ताओ?
गोयमा! दुविधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–भवधारणिज्जाओ य उत्तरवेउव्वियाओ य। तत्थ णं जाओ भवधारणिज्जाओ ताओ णं आभरनवसणरहिताओ पगतित्थाओ विभूसाए पन्नत्ताओ।
तत्थ णं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प के देव विभूषा की दृष्टि से कैसे हैं ? गौतम ! वे देव दो प्रकार के हैं – वैक्रिय – शरीर वाले और अवैक्रियशरीर वाले। उनमें जो वैक्रियशरीर वाले हैं वे हारों से सुशोभित वक्षस्थल वाले यावत् दसों दिशाओं को उद्योतित करनेवाले, यावत् प्रतिरूप हैं। जो अवैक्रियशरीर वाले हैं वे आभरण और वस्त्रों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 339 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! इट्ठे सद्दे इट्ठे रूवे इट्ठे गंधे इट्ठे रसे इट्ठे फासे पच्चणुभवमाणा विहरंति। एवं जाव गेवेज्जा।
अनुत्तरोववातियाणं अनुत्तरा सद्दा जाव अनुत्तरा फासा। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प में देव कैसे कामभोगों का अनुभव करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! इष्ट शब्द, यावत् इष्ट स्पर्शजन्य सुखों का। ग्रैवेयकदेवों तक यही कहना। अनुत्तरविमान के देव अनुत्तर शब्द यावत् अनुत्तर – स्पर्श जन्य सुख अनुभवते हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 341 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मे णं भंते! कप्पे बत्तीसाए विमानावाससतसहस्सेसु एगमेगंसि विमानावासंसि सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीक्काइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसनसयनखंभभंडमत्तो-वकरणत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो। एवमीसानेवि।
सणंकुमारे पुच्छा। हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए जाव गेवेज्जा।
पंचसु णं भंते! महतिमहालएसु अनुत्तरविमाणेसु सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीकाइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसणसयणखंभभंडमत्तोवकरणत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए वा देवित्ताए Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्पों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व पृथ्वीकाय के रूप में, देव के रूप में, देवी के रूप में, आसन – शयन यावत् भण्डपोकरण के रूप में पूर्व में उत्पन्न हो चूके हैं क्या ? हाँ, गौतम! हो चूके हैं। शेष कल्पों में ऐसा ही कहना, किन्तु देवी के रूप में उत्पन्न होना नहीं कहना। ग्रैवेयक विमानों | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહારની પદ્મવરવેદિકામાં અહીં એક મોટું વનખંડ કહ્યું છે. તે દેશોન બે યોજન ચક્રવાલ વિષ્કંભથી છે અને તેની પરિધિ જગતી સમાન છે. તે વનખંડ કૃષ્ણ, કૃષ્ણ આભાવાળું યાવત્ અનેક શકટ – રથ – યાન – યુગ્ય પરિમોચન, સુરમ્ય, પ્રાસાદીય, શ્લક્ષ્ણ, લષ્ટ, ઘૃષ્ટ, મૃષ્ટ, નીરજ, નિષ્પંક, નિર્મળ, નિષ્કંટકછાયા, પ્રભા – કિરણ – ઉદ્યોત | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 53 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं इत्थीओ? इत्थीओ तिविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–तिरिक्खजोणित्थीओ मनुस्सित्थीओ देवित्थीओ।
से किं तं तिरिक्खजोणित्थीओ? तिरिक्खजोणित्थीओ तिविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–जलयरीओ थलयरीओ खहयरीओ।
से किं तं जलयरीओ? जलयरीओ पंचविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मच्छीओ जाव सुंसुमारीओ। से तं जलयरीओ।
से किं तं थलयरीओ? थलयरीओ दुविहाओ पन्नत्ताओ, तं० चउप्पईओ य परिसप्पीओ य।
से किं तं चउप्पईओ? चउप्पईओ चउव्विहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–एगखुरीओ जाव सणप्फईओ। से तं चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीओ।
से किं तं परिसप्पीओ? परिसप्पीओ दुविहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– उरपरिसप्पीओ य भुयपरिसप्पीओ य।
से किं तं उरपरिसप्पीओ? Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 55 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
जलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहा तिरिक्खजोणित्थीओ।
उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं भुयपरिसप्पतिरिक्खजोणित्थीओ।
एवं खहयरतिरिक्खत्थीणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो।
मनुस्सित्थीणं Translated Sutra: ભગવન્ ! તિર્યંચયોનિ – સ્ત્રીઓની સ્થિતિ કેટલો કાળ છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ પલ્યોપમ છે. ભગવન્ ! જલચર તિર્યંચયોનિ – સ્ત્રીની સ્થિતિ કેટલો કાળ છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ પૂર્વકોડી. ભગવન્ ! ચતુષ્પદ સ્થલચર તિર્યંચ – સ્ત્રીની સ્થિતિ કેટલી છે ? ગૌતમ ! તિર્યંચ સ્ત્રી માફક | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 64 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयाणि, जहेवित्थीणं जाव–
एतेसि णं भंते! देवपुरिसाणं–भवनवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं वेमाणियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा वेमानियदेवपुरिसा २. भवनवइदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३. वाणमंतरदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ४. जोतिसियदेव-पुरिसा संखेज्जगुणा।
एतेसि णं भंते! तिरिक्खजोणियपुरिसाणं–जलयराणं थलयराणं खहयराणं, मनुस्सपुरिसाणं–कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, देवपुरिसाणं–भवनवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं सोधम्माणं जाव सव्वट्ठसिद्धगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया Translated Sutra: સ્ત્રીઓના અલ્પબહુત્વ માફક પુરુષોનું અલ્પબહુત્વ પણ દેવો પર્યંત કહેવું હે ભગવન્ ! આ દેવપુરુષોમાં ભવનવાસી, વ્યંતર, જ્યોતિષ્ક, વૈમાનિકમાં કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે ? ગૌતમ ! સૌથી થોડા વૈમાનિક દેવપુરુષો છે, તેનાથી ભવનપતિ દેવો અસંખ્યાતા છે, તેનાથી વ્યંતર દેવો અસંખ્યાતા છે, તેનાથી જ્યોતિષ્ક દેવપુરુષો | |||||||||
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त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 70 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतासि णं भंते! इत्थीणं पुरिसाणं नपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! १. सव्वत्थोवा पुरिसा २. इत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. नपुंसगा अनंतगुणा।
एतासि णं भंते! तिरिक्खजोणिइत्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणियपुरिसा २. तिरिक्खजोणिइत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अनंतगुणा।
एतासि णं भंते! मनुस्सित्थीणं मनुस्सपुरिसाणं मनुस्सनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा Translated Sutra: ભગવન્ ! આ સ્ત્રી, પુરુષ, નપુંસકમાં કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે ? ગૌતમ ! સૌથી ઓછા પુરુષો છે, તેનાથી સ્ત્રીઓ સંખ્યાતગણી છે, તેનાથી નપુંસકો અનંતગણા છે. ભગવન્ ! આ તિર્યંચોના સ્ત્રી – પુરુષ – નપુંસકોમાં કોણ કોનાથી અલ્પ બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે? ગૌતમ! સૌથી ઓછા તિર્યંચ પુરુષો છે, તિર્યંચ સ્ત્રીઓ અસંખ્યાતગણી, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Gujarati | 89 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ, चरिमंताओ केवतियुं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते? गोयमा! दुवालसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं दाहिणिल्लातो पच्चत्थिमिलातो उत्तरिल्लातो।
सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए पुरत्थिमिल्लातो चरिमंतातो केवतियं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते? गोयमा! तिभागूणेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं चउद्दिसिंपि।
वालुयप्पभाए णं भंते! पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ पुच्छा। गोयमा! सतिभागेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पन्नत्ते। एवं चउद्दिसिंपि।
एवं सव्वासिं चउसुवि दिसासु पुच्छितव्वं–पंकप्पभाए चोद्दसहिं जोयणेहिं Translated Sutra: ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીની પૂર્વદિશાના ઉપરીમથી કેટલા અપાંતરાલ પછી લોકાંત છે ? ગૌતમ ! બાર યોજનના અંતર પછી લોકાંત છે. આ પ્રમાણે દક્ષિણ, પશ્ચિમ, ઉત્તરમાં પણ જાણવુ. ભગવન્ ! શર્કરાપ્રભા પૃથ્વીના પૂર્વીય ચરમાંતથી કેટલા અંતરે લોક છે ? ગૌતમ ! ત્રણ ભાગ ન્યૂન ૧૩ યોજનના અંતરે લોકાંત છે. આ રીતે ચારે દિશામાં કહેવું. ભગવન્ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-१ | Gujarati | 90 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! छ जोयणाणि बाहल्लेणं पन्नत्ते।
सक्करप्पभाए पुढवीए घनोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! सतिभागाइं छजोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते।
वालुयप्पभाए पुच्छा। गोयमा! तिभागूणाइं सत्त जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते। एवं एतेणं अभिलावेणं– पंकप्पभाए सत्त जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते। धूमप्पभाए सतिभागाइं सत्त जोयणाइं। तमप्पभाए तिभागूणाइं अट्ठ जोयणाइं। तमतमप्पभाए अट्ठ जोयणाइं।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनवायवलए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! अद्धपंचमाइं जोयणाइं बाहल्लेणं।
सक्करप्पभाए Translated Sutra: ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીનું ઘનોદધિ વલય બાહલ્ય(જાડાઈ)થી કેટલું છે ? ગૌતમ ! છ યોજન. ભગવન્ ! શર્કરાપ્રભા પૃથ્વીનું ઘનોદધિ વલય કેટલું બાહલ્યવાળું છે ? ગૌતમ ! ત્રિભાગ સહિત છ યોજન. ભગવન્ ! વાલુકાપ્રભા પૃથ્વીનું ઘનોદધિ વલય કેટલું બાહલ્યવાળું છે ? ગૌતમ ! ત્રિભાગ ન્યૂન સાત યોજન. એ રીતે આ આલાવાથી પંકપ્રભાનું બાહલ્ય | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Gujarati | 98 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए अहिमडेति वा गोमडेति वा सुनमडेति वा मज्जारमडेति वा मनुस्समडेति वा महिसमडेति वा मूसगमडेति वा आसमडेति वा हत्थिमडेति वा सीहमडेति वा वग्घमडेति वा विगमडेति वा दीविय-मडेति वा मयकुहियविणट्ठकुणिमवावण्णदुरभिगंधे असुइविलीणविगय बीभच्छदरिसणिज्जे किमि-जालाउलसंसत्ते भवेयारूवे सिया? नो इणट्ठे समट्ठे। गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नरगा एत्तो अनिट्ठतरका चेव अकंततरका चेव अप्पियतरका चेव अमणुन्नतरका चेव अमनामतरका चेव गंधेणं पन्नत्ता। एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए Translated Sutra: [૧] ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નરકાવાસ વર્ણથી કેવા છે ? ગૌતમ ! કાળા – કાળી આભાવાળા, ગંભીર, રુંવાડા ઊભા કરી દે તેવા, ભયાનક, ત્રાસદાયી, પરમકૃષ્ણ વર્ણથી કહ્યા છે. એ રીતે યાવત્ અધઃસપ્તમી કહેવું. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નરકાવાસો કેવી ગંધવાળા છે ? ગૌતમ ! જેમ કોઈ સર્પ – ગાય – કૂતરા – બિલાડા – મનુષ્ય – ભેંસ – ઉંદર | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Gujarati | 104 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केरिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति? गोयमा! जे पोग्गला अनिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं आहारस्सवि सत्तसुवि।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एक्का काउलेसा पन्नत्ता। एवं सक्करप्पभाएवि।
वालुयप्पभाए पुच्छा। दो लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नीललेसा काउलेसा य। ते बहुतरगा जे काउलेसा, ते थोवतरगा जे णीललेस्सा।
पंकप्पभाए पुच्छा। एक्का नीललेसा पन्नत्ता।
धूमप्पभाए पुच्छा। गोयमा! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य। ते बहुतरका जे नीललेस्सा, Translated Sutra: ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિકોના શ્વાસોચ્છ્વાસ રૂપે કેવા પુદ્ગલો પરિણમે છે ? ગૌતમ ! જે પુદ્ગલો અનિષ્ટ યાવત્ અમણામ છે, તે તેમને શ્વાસોચ્છ્વાસ રૂપે પરિણમે છે. આ પ્રમાણે યાવત્ અધઃસપ્તમી કહેવું. સાતે નારકીમાં આહારકથન કરવું. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભાના નૈરયિકોને કેટલી લેશ્યા કહી છે ? ગૌતમ ! એક જ કાપોતલેશ્યા. | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Gujarati | 105 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?
गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्व-पोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा नो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहुत्तंपि पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एगं महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं– मोग्गरमुसुंढिकरवतअसिसत्तीहलगतामुसलचक्का।
नारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला Translated Sutra: ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિકો કેવી ભૂખ – તરસ અનુભવતા રહે છે ? ગૌતમ ! અસત્ કલ્પનાથી માનો કે જો કોઈ એક રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિકને બધાં સમુદ્રોનું જળ તથા બધા ખાદ્ય પુદ્ગલો તેના મુખમાં નાંખવામાં આવે, તો પણ તે રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિકની ભૂખ કે તરસ શાંત ન થઈ શકે. ગૌતમ ! રત્નપ્રભા નૈરયિકો આવી ભૂખ – તરસ અનુભવે છે. | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Gujarati | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: એકોરુકદ્વીપ દ્વીપનો અંદરનો ભૂમિભાગ ચર્મમઢિત મૃદંગ સમાનબહુસમ રમણીય કહેલ છે. એ રીતે શયનીય કહેવું યાવત્ પૃથ્વીશિલાપટ્ટકનું પણ વર્ણન કરવું જોઈએ. ત્યાં ઘણા એકોરુકદ્વીપક મનુષ્યો અને સ્ત્રીઓ બેસે છે સુવે છે, યાવત્ વિચરે છે. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! એકોરુક દ્વીપમાં તે – તે દેશમાં, ત્યાં – ત્યાં ઘણા ઉદ્દાલક, કોદ્દાલક, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે વિજયદેવ, વિજયા રાજધાનીમાં ઉપપાતસભામાં દેવશયનીયમાં દેવદૂષ્યથી ઢંકાયેલી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ શરીરમાં વિજયદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થયો. ત્યારે તે વિજયદેવ ઉત્પત્તિ પછી પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિથી પૂર્ણ થયો. તે આ રીતે – આહાર પર્યાપ્તિ, શરીર પર્યાપ્તિ, ઇન્દ્રિય પર્યાપ્તિ, આનપ્રાણ પર્યાપ્તિ, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: ત્યારપછી તે વિજયદેવ મહાન ઇન્દ્રાભિષેકથી અભિષિક્ત થયેલો હતો તે સિંહાસનથી ઊભો થાય છે. સિંહાસન થકી ઊભો થઈને અભિષેક સભાના પૂર્વ દિશાના દ્વારથી નીકળે છે, નીકળીને જ્યાં અલંકારિક સભા છે ત્યાં આવે છે, આવીને તે અલંકારિક સભામાં અનુપ્રદક્ષિણા કરતા – કરતા પૂર્વ દ્વારેથી અનુપ્રવેશે છે. પૂર્વના દ્વારેથી પ્રવેશીને | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ, જંબૂદ્વીપ કેમ કહેવાય છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની ઉત્તરે, નીલવંતની દક્ષિણે માલ્યવંત વક્ષસ્કાર પર્વતની પશ્ચિમે, ગંધમાદન વક્ષસ્કાર પર્વતની પૂર્વે ઉત્તરકુરા નામે કુરા ક્ષેત્ર છે. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબું અને ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળું, અર્દ્ધ ચંદ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વિષ્કંભથી | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 189 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नीलवंतद्दहस्स णं पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दसदस जोयणाइं अबाधाए, एत्थ णं दसदस कंचनगपव्वत्ता पन्नत्ता। ते णं कंचनगपव्वता एगमेगं जोयणसतं उड्ढं उच्चत्तेणं पणवीसं पणवीसं जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं, मज्झे पण्णत्तरिं जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले तिन्नि सोलसुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मज्झे दोन्नि सत्ततीसे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, उवरिं एगं अट्ठावण्णं जोयणसतं किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले वित्थिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पिं तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वकंचणामया अच्छा जाव पडिरूवा Translated Sutra: નીલવંત દ્રહની પૂર્વ – પશ્ચિમમાં દશ યોજન જતાં દશ – દશ કાંચન પર્વતો કહ્યા છે. તે કાંચન પર્વતો પ્રત્યેક ૧૦૦ ઊંચા, પચીશ – પચીશ યોજન ભૂમિમાં છે. મૂળમાં ૧૦૦ – ૧૦૦ યોજન પહોળા, મધ્યમાં ૭૫ યોજન લાંબા – પહોળા, ઉપર – ૫૦ યોજન પહોળા છે. મૂળમાં સાધિક ૩૧૬ યોજન પરિધિ, મધ્યમાં સાધિક ૨૨૭ યોજન પરિધિ, ઉપર સાધિક ૧૫૮ યોજનની પરિધિ છે. | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 215 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आभरनवत्थगंधे, उप्पलतिलए य पुढविनिहिरयणे ।
वासहरदहनईओ, विजया वक्खारकप्पिंदा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૯ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 288 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वतस्स जे चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? कप्पोववन्नगा? विमाणोववन्नगा? चारोववन्नगा? चारट्ठितीया? गतिरतिया? गति-समावन्नगा? गोयमा! ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा, नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा, नो चारट्ठितीया, गतिरतिया गतिसमावन्नगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयण-साहस्सि-तेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट गीत वादित तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहनाय-वोलकलकलरवेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! મનુષ્યક્ષેત્રની અંદર જે ચંદ્ર, સૂર્ય, ગ્રહ, નક્ષત્ર, તારાગણ છે, તેઓ હે ભદંત ! શું ઉર્ધ્વોત્પન્ન છે, કલ્પોત્પન્ન છે, વિમાનોત્પન્ન છે, ચારોત્પન્ન છે, ચારસ્થિતિક છે, ગતિરતિક છે કે ગતિસમાપન્નક છે ? ગૌતમ ! તે દેવો ઉર્ધ્વોત્પન્ન નથી, કલ્પોત્પન્ન નથી, વિમાનોત્પન્ન છે. તેઓ ગતિશીલ છે, સ્થિતિશીલ નથી, ગતિરતિક છે, |