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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 169 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] आसबलं हत्थिबलं जोहबलं धनुबलं रहबलं च ।
पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 173 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] इत्थ समप्पइ इणमो पव्वज्जा मरणकालसमयम्मि ।
जो हु न मुज्झइ मरणे साहू आराहओ भणिओ ॥ दारं ७ ॥ Translated Sutra: इस तरह मरणकाल के वक्त मुनि को विशुद्ध प्रव्रज्या – चारित्र पैदा होता है, जो साधु मरण के वक्त मोह नहीं रखता, उसे आराधक कहा है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 97 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एक्कं पि पयं चिंतंतो तम्मि देस-कालम्मि ।
आराहणोवउत्तो जिनेहिं आराहगो भणिओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 98 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] आराहणोवउत्तो सम्मं काऊण सुविहिओ कालं ।
उक्कोसं तिन्निभवे गंतूण लभेज्ज निव्वाणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 25 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] कालन्नू ११ देसन्नू १२ सयमन्नू १३ अतुरियं १४ असंभंतं १५ ।
अनुवत्तयं १६ अमायं १७ तं आयरियं पसंसंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 48 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] कालन्नू देसन्नू समयन्नू सील-रूव-विनयन्नू ।
लोह-भय-मोहरहियं जियनिद्द-परीसहं चेव ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 120 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम्मि ।
भवइ य परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ अप्पा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 122 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] बाहिंति इंदियाइं पुव्वमकारियपइन्नचारिस्स ।
अकयपरिकम्म जीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 125 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपरव्वसविउत्तो ।
अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 144 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जं अज्जियं च कम्मं अनंतकालं पमायदोसेणं ।
तं निहयराग-दोसो खवेइ पुव्वाण कोडीए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 149 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छत्तं वमिऊणं सम्मत्तम्मि धणियं अहीगारो ।
कायव्वो बुद्धिमया मरणसमुग्घायकालम्मि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 157 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] पंचसमिओ तिगुत्तो सुचिरं कालं मुनी विहरिऊणं ।
मरणे विराहयंतो धम्ममणाराहओ भणिओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 158 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ ।
आराहणोवउत्तो जिनेहिं आराहओ भणिओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 167 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न वि माया, न वि य पिया, न बंधवा, न वि पियाइं मित्ताइं ।
पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 168 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न हिरण्ण-सुवण्णं वा दासी-दासं च जाण-जुग्गं च ।
पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 169 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] आसबलं हत्थिबलं जोहबलं धनुबलं रहबलं च ।
पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 173 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] इत्थ समप्पइ इणमो पव्वज्जा मरणकालसमयम्मि ।
जो हु न मुज्झइ मरणे साहू आराहओ भणिओ ॥ दारं ७ ॥ Translated Sutra: (ઉપસંહાર) ૧૭૩. આ રીતે મરણકાળના સમયે મુનિને વિશુદ્ધ પ્રવ્રજ્યા ઉત્પન્ન થાય છે. જે સાધુ મરણ સમયે મોહ પામતા નથી, તેને આરાધક કહેલા છે. ૧૭૪. હે મુમુક્ષુ આત્મા! વિનય, આચાર્યના ગુણ, શિષ્યના ગુણ, વિનય નિગ્રહના ગુણ, જ્ઞાનગુણ, ચરણ – ગુણ, મરણગુણની વિધિ સાંભળીને, ૧૭૫. તમે એવી રીતે વર્તો કે જેથી ગર્ભાવાસના વસવાટથી તથા મરણ, પુનર્ભવ, | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 19 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगाइ गिरा नेगे संदेहे देहिणं समं छित्ता ।
तिहुयणमणुसासिंता अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥ Translated Sutra: एक वचन द्वारा जीव के कईं संदेह को एक ही काल में छेदनेवाले और तीनों जगत को उपदेश देनेवाले अरिहंत मुझे शरणरूप हो। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 45 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालत्तए वि न मयं जम्मण-जर-मरण-वाहिसयसमयं ।
अमयं च बहुमयं जिनमयं च सरणं पवन्नो हं ॥ Translated Sutra: तीन काल में भी नष्ट न होनेवाले; जन्म, जरा, मरण और सेंकड़ों व्याधि का शमन करनेवाले अमृत की तरह बहुत लोगों को इष्ट ऐसे जिनमत को मैं शरण अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
सुकृत अनुमोदना |
Hindi | 58 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा सव्वं चिय वीयरायवयणानुसारि जं सुकडं ।
कालत्तए वि तिविहं अणुमोएमो तयं सव्वं ॥ Translated Sutra: या फिर वीतराग के वचन के अनुसार जो सर्व सुकृत तीन काल में किया हो वो तीन प्रकार से (मन, वचन और काया से) हम अनुमोदन करते हैं। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Hindi | 61 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता एयं कायव्वं बुहेहि निच्चं पि संकिलेसम्मि ।
होइ तिकालं सम्मं असंकिलेसम्मि सुकयफलं ॥ Translated Sutra: उस के लिए पंड़ितपुरुषों को संक्लेशमें (रोग आदि वजहमें) यह आराधन हंमेशा करे, असंक्लेशपनमें भी तीनों कालमें अच्छी तरह से करना चाहिए, यह आराधन सुकृत के उपार्जन समान फल का निमित्त है। | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 45 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालत्तए वि न मयं जम्मण-जर-मरण-वाहिसयसमयं ।
अमयं च बहुमयं जिनमयं च सरणं पवन्नो हं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
सुकृत अनुमोदना |
Gujarati | 58 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा सव्वं चिय वीयरायवयणानुसारि जं सुकडं ।
कालत्तए वि तिविहं अणुमोएमो तयं सव्वं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Gujarati | 61 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता एयं कायव्वं बुहेहि निच्चं पि संकिलेसम्मि ।
होइ तिकालं सम्मं असंकिलेसम्मि सुकयफलं ॥ Translated Sutra: તે માટે પંડિતોએ હંમેશા સંક્લેશ (રોગ આદિ કારણો)માં આ આરાધના નિત્ય કરવી અને અસંક્લેશમાં ત્રણ કાળ કરતા સારી રીતે આરાધતા સમ્યક્ સુકૃત ફળને પામે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-१ असमाधि स्थान |
Hindi | 2 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता l
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा–
१. दवदवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी यावि भवति। ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति। ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिनियपरिभासी। ६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।
८. संजलणे। ९. कोहणे। १०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ।
११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओधारित्ता।
१२. नवाइं अधिकरणाइं अणुप्पन्नाइं उप्पाइत्ता भवइ।
१३. पोराणाइं अधिकरणाइं खामित-विओस-विताइं उदीरित्ता भवइ।
१४. अकाले सज्झायकारए Translated Sutra: यह (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने बीस असमाधि स्थान बताए हैं। स्थविर भगवंत ने कौन – से बीस असमाधि स्थान बताए हैं ? १. अति शीघ्र चलनेवाले होना। २. अप्रमार्जिताचारी होना – रजोहरणादि से प्रमार्जन किया न हो ऐसे स्थान में चलना (बैठना – सोना आदि)। ३. दुष्प्रमार्जिताचारी होना – उपयोग रहितपन से या इधर – उधर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-३ आशातना |
Hindi | 4 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ।
कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. सेहे रातिनियस्स पुरतो गंता भवति, आसादना सेहस्स।
२. सेहे रातिनियस्स सपक्खं गंता भवति, आसादना सेहस्स।
३. सेहे रातिनियस्स आसन्नं गंता भवति, आसादना सेहस्स।
४. सेहे रातिनियस्स पुरओ चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
५. सेहे रातिनियस्स सपक्खं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
६. सेहे रातिनियस्स आसन्नं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
७. सेहे रातिनियस्स Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! उस निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्व – मुख से मैंने इस प्रकार सूना है। यह आर्हत् प्रवचन में स्थविर भगवंत ने वाकई में ३३ – आशातना प्ररूपी है। उस स्थविर भगवंत ने सचमुच कौन – सी ३३ – आशातना बताई है ? वो स्थविर भगवंत ने सचमुच जो ३३ – आशातना बताई है वह इस प्रकार है – १ – ९. शैक्ष (अल्प दीक्षा पर्यायवाले साधु) | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 11 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मतिसंपदा?
मतिसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–ओग्गहमतिसंपदा, ईहामतिसंपदा, अवायमतिसंपदा, धारणामतिसंपदा।
से किं तं ओग्गहमती? ओग्गहमती छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– खिप्पं ओगिण्हति, बहुं ओगिण्हति, बहुविहं ओगिण्हति, धुवं ओगिण्हति, अनिस्सियं ओगिण्हति, असंदिद्धं ओगिण्हति।
से तं ओग्गहमती। एवं ईहामती वि, एवं अवायमती वि।
से किं तं धारणामती? धारणामती छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुं धरेति, बहुविधं धरेति, पोराणं धरेति, दुद्धरं धरेति, अनिस्सियं धरेति, असंदिद्धं धरेति।
से तं धारणामती। से तं मतिसंपदा। Translated Sutra: वो मति संपत्ति कौन – सी है ? (मति यानि जल्द से चीज को ग्रहण करना) मति संपत्ति चार प्रकार से बताई है। वो इस प्रकार – अवग्रह सामान्य रूप में अर्थ को जानना, ईहा विशेष रूप में अर्थ जानना, अवाय – ईहित चीज का विशेष रूप से निश्चय करना, धारणा – जानी हुई चीज का कालान्तर में भी स्मरण रखना। वो अवग्रहमति संपत्ति कौन – सी है ? अवग्रहमति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 13 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहपरिण्णासंपदा? संगहपरिण्णासंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुजनपाओग्गताए वासावासासु खेत्तं पडिलेहित्ता भवति, बहुजनपाओग्गताए पाडिहारियपीढफलगसेज्जासंथारयं ओगेण्हित्ता भवति। कालेणं कालं समाणइत्ता भवति, अहागुरुं संपूएत्ता भवति।
से तं संगहपरिण्णासंपदा। Translated Sutra: वो संग्रह परिज्ञा संपत्ति कौन – सी है ? संग्रह परिज्ञा संपत्ति चार प्रकार से। वो इस प्रकार – वर्षावास के लिए कईं मुनि को रहने के उचित स्थान देखना, कईं मुनिजन के लिए वापस करना कहकर पीठ फलक शय्या संथारा ग्रहण करना, काल को आश्रित करके कालोचित कार्य करना, करवाना, गुरुजन का उचित पूजा – सत्कार करना। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 16 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण – प्राप्त भगवंत के मुख से मैंने ऐसा सूना है – इस (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने दश चित्त समाधि स्थान बताए हैं। वो कौन – से दश चित्त समाधि स्थान स्थविर भगवंत ने बताए हैं? जो दश चित्त समाधि स्थान स्थविर भगवंत ने बताए हैं वो इस प्रकार है – उस काल और उस समय यानि चौथे आरे में भगवान | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 26 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जदा से दंसणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं ।
तदा लोगमलोगं च, जिनो पासइ केवली ॥ Translated Sutra: जब जीव के समस्त दर्शनावरण कर्म का क्षय हो तब वो केवली जिन समस्त लोकालोक को देखते हैं। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 27 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिज्जे खयं गते ।
असेसं लोगमलोगं च, पासंति सुसमाहिया ॥ Translated Sutra: प्रतिमा यानि प्रतिज्ञा के विशुद्ध रूप से आराधना करनेवाले और मोहनीय कर्म का क्षय होने से सुसमाहित आत्मा पूरे लोकालोक को देखता है। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 35 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ।
कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। यह (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है। स्थविर भगवंत ने कौन – सी ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है? स्थविर भगवंत ने जो ११ उपासक प्रतिमा बताई है, वो इस प्रकार है – (दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, दिन में ब्रह्मचर्य, | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 38 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा दोच्चा उवासगपडिमा–
सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहो-ववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावकासियं नो सम्मं अनुपालित्ता भवति।
दोच्चा उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब दूसरी उपासक प्रतिमा कहते हैं – वो सर्व धर्म रुचिवाला होता है। (शुद्ध सम्यक्त्व के अलावा यति (श्रमण) के दश धर्म की दृढ़ श्रद्धावाला होता है) नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण और पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है। लेकिन सामायिक और देसावगासिक का सम्यक् प्रतिपालन नहीं कर सकता। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 39 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा तच्चा उवासगपडिमा–
सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण- पोसहोववा-साइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दस-ट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं नो सम्मं अनुपालित्ता भवति।
तच्चा उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब तीसरी उपासक प्रतिमा कहते हैं – वो सर्व धर्म रुचिवाला और पूर्वोक्त दोनों प्रतिमा का सम्यक् परिपालक होता है। वो नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात – आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का सम्यक् प्रकार से प्रतिपालन करता है। सामायिक और देसावकासिक व्रत का भी सम्यक् अनुपालक होता है। लेकिन वो चौदश, | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 40 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा चउत्था उवासगपडिमा–
सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोव-वासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठ मुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं नो सम्मं अनुपालेत्ता भवति। चउत्था उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब चौथी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला (यावत् यह पहले कही गई तीनों प्रतिमा का उचित अनुपालन करनेवाला होता है।) वो नियम से बहुत शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास और सामायिक, देशावकासिक का सम्यक् परिपालन करता है। (लेकिन) एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् परिपालन | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 49 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति।
मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स Translated Sutra: मासिकी भिक्षु प्रतिमा को धारण करनेवाले साधु काया को वोसिरा के तथा शरीर के ममत्व भाव के त्यागी होते हैं। देव – मानव या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई उपसर्ग आता है उसे वो सम्यक् प्रकार से सहता है। उपसर्ग करनेवाले को क्षमा करते हैं, अदीन भाव से सहते हैं, शारीरिक क्षमतापूर्वक उसका सामना करता है। मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 51 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमं सत्तरातिंदियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति।
कप्पति से चउत्थेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहानीए वा उत्ताणगस्स वा पासेल्लगस्स वा नेसज्जियस्स वा ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा।
तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि Translated Sutra: अब आठवीं भिक्षुप्रतिमा बताते हैं, प्रथम सात रात्रिदिन के आठवीं भिक्षुप्रतिमा धारक साधु सर्वदा काया के ममत्व रहित – यावत् उपसर्ग आदि को सहन करे वह सब प्रथम प्रतिमा समान जानना। उस साधु को निर्जल चोथ भक्त के बाद अन्न – पान लेना कल्पे, गाँव यावत् राजधानी के बाहर उत्तासन, पार्श्वासन या निषद्यासन से कायोत्सर्ग | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 52 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अहोरातियावि, नवरं– छट्ठेणं भत्तेणं अपानएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस्स-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा।
तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए।
एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अनुपालिया यावि भवति।
एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस अनगारस्स निच्चं Translated Sutra: इसी प्रकार ग्यारहवीं – एक अहोरात्र की भिक्षुप्रतिमा के सम्बन्ध में जानना। विशेष यह कि निर्जल षष्ठभक्त करके अन्न – पान ग्रहण करना, गाँव यावत् राजधानी के बाहर दोनों पाँव सकुड़कर और दोनों हाथ घुटने पर्यन्त लम्बे रखकर कायोत्सर्ग करना। शेष पूर्ववत् यावत् जिनाज्ञानुसार पालन करनेवाला होता है। अब बारहवीं भिक्षुप्रतिमा | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ८ पर्युषणा |
Hindi | 53 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे होत्था, तं जहा–हत्थुत्तराहिं चुए, चइत्ता गब्भं वक्कंते। हत्थुत्तराहिं गब्भातो गब्भं साहरिते। हत्थुत्तराहिं जाते। हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारितं पव्वइए। हत्थुत्तराहिं अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने। सातिणा परिनिव्वुए भयवं जाव भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइ।
Translated Sutra: उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर की पाँच घटनाएं उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुई। उत्तरा – फाल्गुनी नक्षत्र में – देवलोक से च्यवन, गर्भसंक्रमण, जन्म, दीक्षा तथा अनुत्तर अनंत अविनाशी निरावरण केवल ज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति। भगवंत स्वाति नक्षत्र में परिनिर्वाण प्राप्त हुए। यावत् इस पर्युषणकल्प | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 54 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे नाम चेइए–वण्णओ, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया।
अज्जोति! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी–एवं खलु अज्जो! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाइं, जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा– Translated Sutra: उस काल उस समय में चम्पानगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। कोणिक राजा तथा धारिणी राणी थे। श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे। पर्षदा नीकली। भगवंतने देशना दी। धर्म श्रवण करके पर्षदा वापिस लौटी। बहुत साधु – साध्वी को भगवंत ने कहा – आर्यो ! मोहनीय स्थान ३० हैं। जो स्त्री या पुरुष इस स्थान का बारबार सेवन करते हैं, वे महामोहनीय | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 94 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ, गुणसिलए चेइए।
रायगिहे नगरे सेणिए नामं राया होत्था–रायवण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सद्धिं विहरति। Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था। चेल्लणा रानी थी। (सब वर्णन औपपातिक सूत्रवत् जानना) | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 96 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव पज्जुवासेति।
तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता नामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्कमित्ता एवं वदासि–
जस्स णं देवाणुप्पिया Translated Sutra: उस काल उस समय में धर्म के आदिकर तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए, यावत् गुणशील चैत्य में पधारे। उस समय राजगृह नगर के तीन रास्ते, चार रस्ते, चौक में होकर, यावत् पर्षदा नीकली, यावत् पर्युपासना करने लगी। श्रेणिक राजा के सेवक अधिकारी श्रमण भगवान महावीर के पास आए, प्रदक्षिणा की, वन्दन – नमस्कार किया, | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 98 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रहजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि जाव से वि पच्चप्पिणति।
तए णं से सेणिए राया जाणसालियं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! धम्मियं जानप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेहि, उवट्ठवेत्ता मम एतमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
तते णं से जानसालिए सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जानसालं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जाणाइं पच्चुवेक्खति, पच्चुवेक्खित्ता Translated Sutra: उसके बाद श्रेणिक राजाने सेनापति को बुलाकर कहा – शीघ्र ही रथ, हाथी, घोड़ा एवं योद्धायुक्त चतुरंगिणी सेना को तैयार करो यावत् मेरी यह आज्ञापूर्वक कार्य हो जाने का निवेदन करो। उसके बाद राजा श्रेणिक ने यानशाला अधिकारी को बुलाकर श्रेष्ठ धार्मिक रथ सुसज्ज करने की आज्ञा दी। यानशाला अधिकारी भी हर्षित – संतुष्ट होकर | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 100 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया पीइमना परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहिया सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति सेणियस्स रण्णो एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाता कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता।
किं ते? वरपायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडग-खुड्ड-एगावली-कंठमुरज-तिसरय -वरवलय-हेमसुत्तय-कुंड-लुज्जोवियाणणा रयणभूसियंगी चीनंसुयं वत्थं परिहिता दुगुल्ल-सुकुमार-कंतरमणिज्ज-उत्तरिज्जा सव्वोउय-सुरभिकुसुम-सुंदररयित-पलंब-सोहंत-कंत-विकसंत-चित्तमाला Translated Sutra: राजा श्रेणिक से यह कथन सूनकर चेल्लणादेवी हर्षित हुई, संतुष्ट हुई यावत् स्नानगृह में जाकर स्नान कर के बलिकर्म किया, कौतुक – मंगल किया, अपने सुकुमार पैरों में झांझर, कमर में मणिजड़ित कन्दोरा, गले में एकावली हार, हाथ में कड़े और कंकण, अंगुली में मुद्रिका, कंठ से उरोज तक मरकतमणि का त्रिसराहार धारण किया। कान में पहने | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 103 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति।
न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे।
जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने बहुत से साधु – साध्वीओं को कहा – श्रेणिक राजा और चेल्लणा रानी को देखकर क्या – यावत् इस प्रकार के अध्यवसाय आपको उत्पन्न हुए यावत् क्या यह बात सही है ? हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है – यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, श्रेष्ठ है, सिद्धि – मुक्ति, निर्याण और निर्वाण का यही | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 104 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाया यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणो पासेज्जा–से जा इमा इत्थिया भवति– एगा एगजाया एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: हे आयुष्मती श्रमणीयाँ ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है – जैसे कि यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है। यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। जो कोई निर्ग्रन्थी धर्मशिक्षा के लिए उपस्थित होकर, परिषह सहती हुई, यदि उसे कामवासना का उदय हो तो उसके शमन का प्रयत्न करे। यदि उस समय वह साध्वी किसी स्त्री को देखे, जो अपने पति | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 105 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। जो कोई निर्ग्रन्थ केवलि प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए तत्पर हुआ हो, परिषहों को सहता हो, यदि उसे कामवासना का उदय हो जाए तो उसके शमन का प्रयत्न करे इत्यादि पूर्ववत्। यदि वह किसी स्त्री को देखता | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 106 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया, Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। यदि कोई निर्ग्रन्थी केवली प्रज्ञप्त धर्म के लिए तत्पर होती है, परिषह सहन करती है, उसे कदाचित् कामवासना का प्रबल उदय हो जाए तो वह तप संयम की उग्र साधना से उसका शमन करे। यदि उस समय (पूर्व | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 107 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म बताया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् (प्रथम ‘‘निदान’’ समान जान लेना।) कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी धर्म शिक्षा के लिए तत्पर होकर विचरण करते हो, क्षुधादि परिषह सहते हो, फिर भी उसे कामवासना का प्रबल उदय हो जाए, तब उसके शमन के लिए तप – संयम की उग्र साधना से प्रयत्न | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 108 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेजा– मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ णो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। (शेष सर्व कथन प्रथम ‘निदान’ के समान जानना।) देवलोक में जहाँ अन्य देव – देवी के साथ कामभोग सेवन नहीं करते, किन्तु अपनी देवी के साथ या विकुर्वित देव या देवी के साथ कामभोग सेवन करते हैं। यदि मेरे सुचरित तप आदि का फल हो तो (इत्यादि प्रथम निदानवत्) ऐसा व्यक्ति |