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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1090 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहियाणं तु भावाणं सब्भावे उवएसणं ।
भावेणं सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०८९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1091 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निसग्गुवएसरुई आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव ।
अभिगमवित्थाररुई किरियासंखेवधम्मरुई ॥ Translated Sutra: सम्यक्त्व के दस प्रकार हैं – निसर्ग – रुचि, उपदेश – रुचि, आज्ञा – रुचि, सूत्र – रुचि, बीज – रुचि, अभिगम – रुचि, विस्तार – रुचि, क्रिया – रुचि, संक्षेप – रुचि और धर्म – रुचि। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1092 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च ।
सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो ॥ Translated Sutra: परोपदेश के बिना स्वयं के ही यथार्थ बोध से अवगत जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव और संवर आदि तत्त्वों की जो रुचि है, वह ‘निसर्ग रुचि’ है। जिन दृष्ट भावों में, तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से विशिष्ट पदार्थों के विषय में – ‘यह ऐसा ही है, अन्यथा नहीं है’ – ऐसी जो स्वतः स्फूर्त श्रद्धा है, वह ‘निसर्गरुचि’ है। सूत्र – १०९२, | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1093 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जिनदिट्ठे भावे चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव ।
एमेव नन्नह त्ति य निसग्गरुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०९२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1094 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एए चेव उ भावे उवइट्ठे जो परेण सद्दहई ।
छउमत्थेण जिनेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: जो अन्य छद्मस्थ अथवा अर्हत् के उपदेश से जीवादि भावों में श्रद्धान् करता है, वह ‘उपदेशरुचि’ जानना | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1172 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
नाणसंपन्नयाए णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ। नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे न विणस्सइ। नाणविनयतवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरसमयसंघायणिज्जे भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! ज्ञान – सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ज्ञानसम्पन्नता से जीव सब भावों को जानता है। ज्ञान – सम्पन्न जीव चार गतिरूप अन्तों वाले संसार वन में नष्ट नहीं होता है। जिस प्रकार ससूत्र सुई कहीं गिर जाने पर भी विनष्ट नहीं होती, उसी प्रकार ससूत्र जीव भी संसार में विनष्ट नहीं होता। ज्ञान, विनय, तप और चारित्र | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1076 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मोक्खमग्गगइं तच्चं सुणेह जिनभासियं ।
चउकारणसंजुत्तं नाणदंसणलक्खणं ॥ Translated Sutra: ज्ञानादि चार कारणों से युक्त, ज्ञानदर्शन लक्षण स्वरूप, जिनभाषित, सम्यक् मोक्ष – मार्ग की गति को सुनो | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1077 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा ।
एस मग्गो त्ति पन्नत्तो जिनेहिं वरदंसिहिं ॥ Translated Sutra: वरदर्शी जिनवरों ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्ष का मार्ग बतलाया है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के मार्ग पर आरूढ हुए जीव सद्गति को प्राप्त करते हैं। सूत्र – १०७७, १०७८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1078 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा ।
एयं मग्गमनुप्पत्ता जीवा गच्छंति सोग्गइं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1079 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ पंचविहं नाणं सुयं आभिनिबोहियं ।
ओहीनाणं तइयं मणनाणं च केवलं ॥ Translated Sutra: उन में ज्ञान पाँच प्रकार का है – श्रुत ज्ञान, आभिनिबोधिक ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनो ज्ञान और केवल ज्ञान। यह पाँच प्रकार का ज्ञान सब द्रव्य, गुण और पर्यायों का ज्ञान है, ऐसा ज्ञानियों ने कहा है। सूत्र – १०७९, १०८० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1080 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं पंचविहं नाणं दव्वाण य गुणाण य ।
पज्जवाणं च सव्वेसिं नाणं नाणीहि देसियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1081 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा ।
लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ॥ Translated Sutra: द्रव्य गुणों का आश्रय है, जो प्रत्येक द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे गुण होते हैं। पर्यायों का लक्षण द्रव्य और गुणों के आश्रित रहना है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1082 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गलजंतवो ।
एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिनेहिं वरदंसिहिं ॥ Translated Sutra: वरदर्शी जिनवरों ने धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव – यह छह द्रव्यात्मक लोक कहा है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1083 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं ।
अनंताणि य दव्वाणि कालो पुग्गलजंतवो ॥ Translated Sutra: धर्म, अधर्म और आकाश – ये तीनों द्रव्य संख्या में एक – एक हैं। काल, पुद्गल और जीव – ये तीनों द्रव्य अनन्त – अनन्त हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1084 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गइलक्खणो उ धम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो ।
भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं ॥ Translated Sutra: गति धर्म का लक्षण है, स्थिति अधर्म का लक्षण है, सभी द्रव्यों का भाजन अवगाहलक्षण आकाश है। वर्तना काल का लक्षण है। उपयोग जीव का लक्षण है, जो ज्ञान, दर्शन, सुख और दुःख से पहचाना जाता है। सूत्र – १०८४, १०८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1085 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वत्तणालक्खणो कालो जीवो उवओगलक्खणो ।
नाणेणं दंसणेणं च सुहेण य दुहेण य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०८४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1095 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ ।
आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥ Translated Sutra: राग, द्वेष, मोह और अज्ञान जिसके दूर हो गये हैं, उसकी आज्ञा में रुचि रखना, ‘आज्ञा रुचि’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1096 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो सुत्तमहिज्जंतो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं ।
अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: जो अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य श्रुत का अवगाहन करता हुआ श्रुत से सम्यक्त्व की प्राप्ति करता है, वह ‘सूत्ररुचि’ जानना। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1097 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगेन अनेगाइं पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं ।
उदए व्व तेल्लबिंदू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: जैसे जल में तेल की बूँद फैल जाती है, वैसे ही जो सम्यक्त्व एक पद से अनेक पदों में फैलता है, वह ‘बीजरुचि’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1098 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिट्ठं ।
एक्कारस अंगाइं पइण्णगं दिट्ठिवाओ य ॥ Translated Sutra: जिसने ग्यारह अंग, प्रकीर्णक, दृष्टिवाद आदि श्रुतज्ञान अर्थ – सहित प्राप्त किया है, वह ‘अभिगमरुचि’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1099 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा ।
सव्वाहि नयविहीहि य वित्थाररुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: समग्र प्रमाणों और नयों से जो द्रव्यों के सभी भावों को जानता है, वह ‘विस्ताररुचि’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1100 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दंसणनाणचरित्ते तवविनए सच्चसमिइगुत्तीसु ।
जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ॥ Translated Sutra: दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति और गुप्ति आदि क्रियाओं में जो भाव से रुचि है, वह ‘क्रियारुचि’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1101 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो ।
अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ Translated Sutra: जो निर्ग्रन्थ – प्रवचन में अकुशल है, साथ ही मिथ्या प्रवचनों से भी अनभिज्ञ है, किन्तु कुदृष्टि का आग्रह न होने के कारण अल्प – बोध से ही जो तत्त्व श्रद्धा वाला है, वह ‘संक्षेपरुचि’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1102 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो अत्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च ।
सद्दहइ जिनाभिहियं सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: जिन – कथित अस्तिकाय धर्म में, श्रुत – धर्म में और चारित्र – धर्म में श्रद्धा करता है, वह ‘धर्मरुचि’ वाला है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1103 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थसंथवो वा सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि ।
वावन्नकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ Translated Sutra: परमार्थ को जानना, परमार्थ के तत्वद्रष्टाओं की सेवा करना, व्यापन्नदर्शन और कुदर्शन से दूर रहना, सम्यक्त्व का श्रद्धान् है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1104 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दंसणे उ भइयव्वं ।
सम्मत्तचरित्ताइं जुगवं पुव्वं व सम्मत्तं ॥ Translated Sutra: चारित्र सम्यक्त्व के बिना नहीं होता है, किन्तु सम्यक्त्व चारित्र के बिना हो सकता है। सम्यक्त्व और चारित्र युगपद् – एक साथ ही होते हैं। चारित्र से पूर्व सम्यक्त्व का होना आवश्यक है। सम्यक्त्व के बिना ज्ञान नहीं होता है, ज्ञान के बिना चारित्र – गुण नहीं होता है। चारित्र – गुण के बिना मोक्ष नहीं होता और मोक्ष | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1105 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा ।
अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११०४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1106 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य ।
उववूह थिरीकरणे वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥ Translated Sutra: निःशंका, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढ – दृष्टि उपबृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना – ये आठ सम्यक्त्व के अंग हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1107 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सामाइयत्थ पढमं छेओवट्ठावणं भवे बीयं ।
परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥ Translated Sutra: चारित्र के पाँच प्रकार हैं – सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और – पाँचवाँ यथाख्यात चारित्र है, जो सर्वथा कषायरहित होता है। वह छद्मस्थ और केवली – दोनों को होता है। ये चारित्र कर्म के चय को रिक्त करते हैं, अतः इन्हें चारित्र कहते हैं। सूत्र – ११०७, ११०८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1108 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकसायं अहक्खायं छउमत्थस्स जिनस्स वा ।
एयं चयरित्तकरं चारित्तं होइ आहियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११०७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1109 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तवो य दुविहो वुत्तो बाहिरब्भंतरो तहा ।
बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमब्भंतरो तवो ॥ Translated Sutra: तप के दो प्रकार हैं – बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप छह प्रकार का है, इसी प्रकार आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1110 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहे ।
चरित्तेण निगिण्हाइ तवेण परिसुज्झई ॥ Translated Sutra: आत्मा ज्ञान से जीवादि भावों को जानता है, दर्शन से उनका श्रद्धान् करता है, चारित्र से कर्म – आश्रव का निरोध करता है, और तप से विशुद्ध होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1111 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खवेत्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य ।
सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमंति महेसिणो ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: सर्व दुःखों से मुक्त होने के लिए महर्षि संयम और तप द्वारा पूर्व कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1135 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनुप्पेहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
अनुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ धनियबंधनबद्धाओ सिढिलबंधनबद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्ठिइयाओ हस्सकालट्ठिइयाओ पकरेइ, तिव्वानुभावाओ मंदानुभावाओ पकरेइ, बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ। असाया-वेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं खिप्पामेव वीइवयइ। Translated Sutra: भन्ते! अनुप्रेक्षा से जीव को क्या प्राप्त होता है? अनुप्रेक्षा से जीव आयुष् कर्म छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्म प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल करता है। उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन करता है। उनके तीव्र रसानुभाव को मन्द करता है। बहुकर्म प्रदेशों को अल्प – प्रदेशों में परिवर्तित करता है। आयुष् | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1187 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ ओरालियकम्माइं च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उड्ढं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्व-दुक्खाणमंतं करेइ। Translated Sutra: उसके बाद वह औदारिक और कार्मण शरीर को सदा के लिए पूर्णरूप से छोड़ता है। फिर ऋजु श्रेणि को प्राप्त होता है और एक समय में अस्पृशद्गतिरूप ऊर्ध्वगति से बिना मोड़ लिए सीधे लोकाग्र में जाकर साकारोपयुक्त – ज्ञानोपयोगी सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है। सभी दुःखों का अन्त करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1189 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहा उ पावगं कम्मं रागदोससमज्जियं ।
खवेइ तवसा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण ॥ Translated Sutra: भिक्षु राग और द्वेष से अर्जित पाप – कर्म का तप के द्वारा जिस पद्धति से क्षय करता है, उस पद्धति को तुम एकाग्र मन से सुनो। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1190 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पाणवहमुसावाया अदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ ।
राईभोयणविरओ जीवो भवइ अनासवो ॥ Translated Sutra: प्राण – वध, मृषावाद, अदत्त, मैथुन, परिग्रह और रात्रि भोजन की विरति से एवं पाँच समिति और तीन गुप्ति से – सहित, कषाय से रहित, जितेन्द्रिय, निरभिमानी, निःशल्य जीव अनाश्रव होता है। सूत्र – ११९०, ११९१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1191 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचसमिओ तिगुत्तो अकसाओ जिइंदिओ ।
अगारवो य निस्सल्लो जीवो होइ अनासवो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११९० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1192 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं तु विवच्चासे रागद्दोससमज्जियं ।
जहा खवयइ भिक्खू तं मे एगमणो सुण ॥ Translated Sutra: उक्त धर्म – साधना से विपरीत आचरण करने पर राग – द्वेष से अर्जित कर्मों को भिक्षु किस प्रकार क्षीण करता है, उसे एकाग्र मन से सुनो। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1193 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहा महातलायस्स सन्निरुद्धे जलागमे ।
उस्सिंचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे ॥ Translated Sutra: किसी बड़े तालाब का जल, जल आने के मार्ग को रोकने से, पहले के जल को उलीचने से और सूर्य के ताप से क्रमशः जैसे सूख जाता है – उसी प्रकार संयमी के करोड़ों भवों के संचित कर्म, पाप कर्म के आने के मार्ग को रोकने पर तप से नष्ट होते हैं। सूत्र – ११९३, ११९४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1194 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे ।
भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११९३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1195 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरब्भंतरो तहा ।
बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमब्भंतरो तवो ॥ Translated Sutra: वह तप दो प्रकार का है – बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप छह प्रकार का है। आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा है। अनशन, ऊनोदरिका, भिक्षाचर्या, रस – परित्याग, काय – क्लेश और संलीनता – यह बाह्य तप है। सूत्र – ११९५, ११९६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1196 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनसनमूनोयरिया भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ ।
कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११९५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1197 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इत्तिरिया मरणकाले दुविहा अनसना भवे ।
इत्तिरिया सावकंखा निरवकंखा बिइज्जिया ॥ Translated Sutra: अनशन तप के दो प्रकार हैं – इत्वरिक और मरणकाल। इत्वरिक सावकांक्ष होता है। मरणकाल निरवकांक्ष होता है।संक्षेप से इत्वरिक – तप छह प्रकार का है – श्रेणि, तप, धन – तप, वर्ग – तप – वर्ग – वर्ग तप और छठा प्रकीर्ण तप। इस प्रकार मनोवांछित नाना प्रकार के फल को देने वाला ‘इत्वरिक’ अनशन तप जानना। सूत्र – ११९७–११९९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1198 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो सो इत्तरियतवो सो समासेण छव्विहो ।
सेढितवो पयरतवो घनो य तह होइ वग्गो य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1199 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्तो य वग्गवग्गो उ पंचमो छट्ठओ पइण्णतवो ।
मनइच्छियचित्तत्थो नायव्वो होइ इत्तरिओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1200 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जा सा अनसना मरणे दुविहा सा वियाहिया ।
सवियारअवियारा कायचिट्ठं पई भवे ॥ Translated Sutra: कायचेष्टा के आधार पर मरणकालसम्बन्धी अनशन के दो भेद हैं – सविचार और अविचार अथवा मरणकाल अनशन के सपरिकर्म और अपरिकर्म ये दो भेद हैं। अविचार अनशन के निर्हांही और अनिर्हारी – ये दो भेद भी होते हैं। दोनों में आहार का त्याग होता है। सूत्र – १२००, १२०१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1201 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा सपरिकम्मा अपरिकम्मा य आहिया ।
नीहारिमनीहारी आहारच्छेओ य दोसु वि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२०० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1202 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहियं ।
दव्वओ खेत्तकालेणं भावेणं पज्जवेहि य ॥ Translated Sutra: संक्षेप में अवमौदर्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से पाँच प्रकार का हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३० तपोमार्गगति |
Hindi | 1203 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे ।
जहन्नेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे ॥ Translated Sutra: जो जितना भोजन कर सकता है, उसमें से कम – से – कम एक सिक्थ तथा एक ग्रास आदि के रूप में कम भोजन करना, द्रव्य से ‘ऊणोदरी’ तप है। |