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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१५,१६ |
Hindi | 40 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नयरी, काममहावणे चेइए।
तत्थ णं वाणारसीए अलक्के नामं राया होत्था।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ। परिसा निग्गया।
तए णं अलक्के राया इमीसे कहाए लद्धट्ठे हट्ठतुट्ठे जहा कोणिए जाव पज्जुवासइ। धम्मकहा।
तए णं से अलक्के राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए जहा उद्दायने तहा निक्खंते, नवरं–जेट्ठपुत्तं रज्जे अभिसिंचइ। एक्कारस अंगाइं। बहू वासा परियाओ जाव विपुले सिद्धे।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। Translated Sutra: उस काल और उस समय वाराणसी नगरी में काममहावन उद्यान था। अलक्ष नामक राजा था। उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर यावत् महावन उद्यान में पधारे। जनपरिषद् प्रभु – वंदन को नीकली, राजा अलक्ष भी प्रभु महावीर के पधारने की बात सूनकर प्रसन्न हुआ और कोणिक राजा के समान वह भी यावत् प्रभु की सेवा में उपासना करने लगा। प्रभु | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-७ नंद अदि अध्ययन-१ थी १३ |
Hindi | 41 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स वग्गस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्सतेरस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! यावत् मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अंतगडदशा के छट्ठे वर्ग का जो अर्थ बताया है, उसका मैंने श्रवण कर लिया है, अब श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान महावीर ने सातवें वर्ग का जो अर्थ कहा है उसे सूनाने की कृपा करें। हे जंबू ! सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन कहे गए हैं। | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-७ नंद अदि अध्ययन-१ थी १३ |
Hindi | 44 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्सतेरस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया–वन्नओ।
तस्स णं सेणियस्स रन्नो नंदा नामं देवी होत्था–वन्नओ। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तए णं सा नंदा देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा हट्ठतुट्ठा कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता जाणं दुरुहइ, जहा पउमावई जाव एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता वीसं वासाइं परियाओ जाव सिद्धा। Translated Sutra: ‘‘भगवन् ! प्रभु ने सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का हे पूज्य ! श्रमण यावत् मुक्ति – प्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामका नगर था। उसके बाहर गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था, नन्दा रानी थी। प्रभु महावीर पधारे। परिषद् वंदन करने को नीकली। नन्दा | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-७ नंद अदि अध्ययन-१ थी १३ |
Hindi | 45 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं तेरस वि देवीओ नंदा-गमेण नेयव्वाओ। Translated Sutra: नन्दवती आदि शेष बारह अध्ययन नन्दा के समान हैं। | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 46 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स वग्गस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठमस्स वग्गस्सदस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: ‘‘भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान महावीर ने अंतगडदशा के आठवें वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?’’ ‘‘हे जंबू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु महावीर ने आठवें अंग अंतगडदशा के आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं।काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेनकृष्णा | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 47 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. काली २. सुकाली ३. महाकाली, ४. कण्हा ५. सुकण्हा ६. महाकण्हा ।
७. वीरकण्हा य बोधव्वा, ८. रामकण्हा तहेव य ।
९. पिउसेनकण्हा नवमो, दसमो १०. महासेनकण्हा य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४६ | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 48 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुन्नभद्दे चेइए।
तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया–वन्नओ।
तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, काली नामं देवी होत्था–वन्नओ। जहा नंदा जाव सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ। बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा काली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा Translated Sutra: ‘‘भगवन् ! यदि आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल और उस समय चम्पा नामकी नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र चैत्य था। वहाँ कोणिक राजा था। श्रेणिक राजा की रानी और महाराजा कोणिक की छोटी माता काली देवी थी। (वर्णन)। नन्दा देवी के समान | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 50 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा काली अज्जा रयणावली-तवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहिं दोहि य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदनं अज्जं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएण उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठिचम्मावणद्धा किडिकिडियाभूया किसाधमनिसंतया जाया यावि होत्था जीवंजीवेण गच्छइ जाव सुहयहुयासणेइव भासरासिपलिच्छण्णा Translated Sutra: इस भाँति काली आर्या ने रत्नावली तप की पाँच वर्ष दो मास और अट्ठाईस दिनों में सूत्रानुसार यावत् आराधना पूर्ण करके जहाँ आर्या चन्दना थीं वहाँ आई और आर्या चन्दना को वंदना – नमस्कार किया। तदनन्तर बहुत से उपवास, बेला, तेला, चार, पाँच आदि अनशन तप से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात् काली आर्या | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 51 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुन्नभद्दे चेइए। कोणिए राया।
तत्थ णं सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, सुकाली नामं देवी होत्था। जहा काली तहा सुकाली वि निक्खंता जाव बहूहिं जाव तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा सुकाली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी कनगावली-तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। एवं जहा रयणावली तहा कनगावली वि, नवरं–तिसु ठाणेसु अट्ठमाइं करेइ, जहिं रयणावलीए छट्ठाइं।
एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य अहोरत्ता। Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था, कोणिक राजा था। श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता सुकाली नाम की रानी थी। काली की तरह सुकाली भी प्रव्रजित हुई और बहुत से उपवास आदि तपों से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। फिर वह सुकाली आर्या अन्यदा किसी दिन आर्या – चन्दना आर्या के | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 52 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महाकाली वि, नवरं–खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा–
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
सोलसमं Translated Sutra: काली की तरह महाकाली ने भी दीक्षा अंगीकार की। विशेष यह कि उसने लघुसिंह निष्क्रीडित तप किया जो इस प्रकार है – उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 53 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–कण्हा वि, नवरं–महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्मं जहेव खुड्डागं, नवरं–चोत्तीसइमं जाव नेयव्वं। तहेव ओसारेयव्वं। एक्काए वरिसं छम्मासा अट्ठारस य दिवसा। चउण्हं छव्वरिसा दो मासा बारस य अहोरत्ता। सेसं जहा कालीए जाव सिद्धा। Translated Sutra: इसी प्रकार कृष्णा रानी के विषय में भी समझना। विशेष यह कि कृष्णा ने महासिंह निष्क्रीडित तप किया। लघुसिंह निष्क्रीडित तप से इसमें इतनी विशेषता है कि इसमें एक से लेकर १६ तक अनशन तप किया जाता है और उसी प्रकार उतारा जाता है। एक परिपाटी में एक वर्ष, छह मास और अठारह दिन लगते हैं। चारों परिपाटियों में छह वर्ष, दो मास | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 54 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–सुकण्हा वि, नवरं–सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
पढमे सत्तए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स।
दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणयस्स पडिगाहेइ।
तच्चे सत्तए तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ भोयणस्स, तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ पाणयस्स।
चउत्थे सत्तए चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ भोयणस्स, चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ पाणयस्स।
पंचमे सत्तए पंच-पंच दत्तीओ भोयणस्स, पंच-पंच दत्तीओ पाणयस्स।
छट्ठे सत्तए छ-छ दत्तीओ भोयणस्स, छ-छ दत्तीओ पाणयस्स।
सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीओ भोयणस्स, सत्त-सत्त दत्तीओ पाणयस्स पडिगाहेइ।
एवं खलु एयं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं Translated Sutra: काली आर्या की तरह आर्या सुकृष्णा ने भी दीक्षा ग्रहण की। विशेष यह कि वह सप्त – सप्तमिका भिक्षु – प्रतिमा ग्रहण करके विचरने लगी, जो इस प्रकार है – प्रथम सप्तक में एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की। द्वितीय सप्तक में दो दत्ति भोजन की और दो दत्ति पानी। तृतीय सप्तक में तीन दत्ति भोजन की और तीन दत्ति पानी। | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 55 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महाकण्हा वि, नवरं–खुड्डागं सव्वओभद्दं पडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ–
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, Translated Sutra: इसी प्रकार महाकृष्णा ने भी दीक्षा ग्रहण की, विशेष – वह लघुसर्वतोभद्र प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगी, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर बेला, तेला, चौला और पचौला किया और सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, चौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 56 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–वीरकण्हा वि, नवरं–महालयं सव्वओभद्दं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा–
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं Translated Sutra: आर्या काली की तरह आर्या वीरकृष्णा ने भी दीक्षा अंगीकार की। विशेष यह कि उसने महत् सर्वतोभद्र तप कर्म अंगीकार किया, जो इस प्रकार है – उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, यावत् सात उपवास किए सब में सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया। यह प्रथम लता हुई। चोला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, इसी क्रम | |||||||||
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वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 57 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–रामकण्हा वि, नवरं–भद्दोत्तरपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा–
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं Translated Sutra: आर्या काली की तरह आर्या रामकृष्णा का भी वृत्तान्त समझना चाहिए। विशेष यह कि रामकृष्णा आर्या भद्रोत्तर प्रतिमा अंगीकार करके विचरण करने लगी, जो इस प्रकार है – पाँच उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके छह यावत् – नौ उपवास किये, सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया। यह प्रथम लता हुई। सात उपवास किये, | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 58 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–पिउसेनकण्हा वि, नवरं–मुत्तावलिं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा–
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ।
सोलसमं Translated Sutra: पितृसेनकृष्णा का चरित्र भी आर्या काली की तरह समझना। विशेष यह कि पितृसेनकृष्णा ने मुक्तावली तप अंगीकार किया है – उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके बेला, फिर उपवास, फिर तेला, फिर उपवास, फिर चौला, फिर उपवास और पचौला, फिर उपवास और छह, फिर उपवास और सात, इसी तरह क्रमशः बढ़ते बढ़ते उपवास और पंद्रह उपवास | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 59 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महासेनकण्हा वि, नवरं–आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा–
आयंबिलं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
बे आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
तिन्नि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
चत्तारि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
पंच आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
छ आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
एवं एक्कुत्तरियाए वड्ढीए आयंबिलाइं वड्ढंति चउत्थंतरियाइं जाव आयंबिलसयं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोद्दसहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता Translated Sutra: इसी प्रकार महासेनकृष्णा का वृत्तान्त भी समझना। विशेष यह कि इन्होंने वर्द्धमान आयंबिल तप अंगीकार किया जो इस प्रकार है – एक आयंबिल किया, करके उपवास किया, करके दो आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके तीन आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके चार आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके पाँच आयंबिल किये, करके उपवास किया। ऐसे | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 61 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमट्ठे पन्नत्ते। Translated Sutra: इस प्रकार हे जंबू ! यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा का यह अर्थ कहा है, ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 62 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतगडदसाणं अंगस्स एगो सुयखंधो। अट्ठ वग्गा। अट्ठसु चेव दिवसेसु उद्दिस्सति। तत्थ पढमबिइयवग्गे दस-दस उद्देसगा। तइयवग्गे तेरस उद्देसगा। चउत्थपंचमवग्गे दस-दस उद्देसगा। छट्ठवग्गे सोलस उद्देसगा। सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा। अट्ठमवग्गे दस उद्देसगा। सेसं जहा नायाधम्मकहाणं। Translated Sutra: अंतगडदशा अंग में एक श्रुतस्कंध है। आठ वर्ग हैं। आठ ही दिनों में इनकी वाचना होती है। इसमें प्रथम और द्वितीय वर्ग में दस दस उद्देशक हैं, तीसरे वर्ग में तेरह उद्देशक हैं, चौथे और पाँचवें में दस – दस उद्देशक हैं, छट्ठे वर्ग में सोलह उद्देशक हैं। सातवें वर्ग में तेरह उद्देशक हैं और आठवें वर्ग में दस उद्देशक हैं। | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-१ अध्ययन-१ गौतम |
Gujarati | 1 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुन्नभद्दे चेइए–वन्नओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए। परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा
जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिंपडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी– जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं आदिकरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासग-दसाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अंगस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पन्नत्ता।
जइ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧. તે કાળે, તે સમયે ચંપા નામે નગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું. (બન્નેનુંવર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર મુજબ જાણવું). તે કાળે, તે સમયે આર્ય સુધર્મા પધાર્યા, પર્ષદા નીકળી યાવત્ પાછી ગઈ. તે કાળે, તે સમયે આર્ય સુધર્માસ્વામીના શિષ્ય, આર્ય જંબૂસ્વામી યાવત્ પર્યુપાસના કરતા બોલ્યા કે – જો શ્રુતધર્મની આદિ કરનારા યાવત્ નિર્વાણને | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-१ अध्ययन-१ गौतम |
Gujarati | 2 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. गोयम २. समुद्द ३. सागर, ४. गंभीरे चेव होइ ५. थिमिए य ।
६. अयले ७. कंपिल्ले खलु, ८. अक्खोभ ९. पसेणई १०. विण्हू ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
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वर्ग-१ अध्ययन-१ गौतम |
Gujarati | 3 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेण के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा धणवति-मइणिम्मया चामीकरपागारा नाणामणि-पंचवन्न-कविसीसगमंडिया सुरम्मा अलकापुरिसंकासा पमुदियपक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं बारवईए णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवयए नामं पव्वए होत्था–वन्नओ।
तत्थ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
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वर्ग-१ अध्ययन-१ गौतम |
Gujarati | 4 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुमिणद्दंसण-कहणा जम्मं बालत्तणं कलाओ य ।
जोव्वण-पाणिग्गहणं कण्णा पासायभोगा य ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪. (જ્ઞાતાધર્મકથા સૂત્રમાં મહાબલકુમારમાં વર્ણિત) ૧.સ્વપ્નદર્શન, ૨.કથન, ૩.જન્મ, ૪.બાલ્યત્વ, ૫.કલા, ૬.યૌવન, ૭.પાણીગ્રહણ, ૮.કાંતા, ૯.પ્રસાદ અને ૧૦.ભોગ. (આટલી બાબતો અહી ગૌતમકુમારમાં પણ જાણવી) સૂત્ર– ૫. વિશેષ એ કે – કુમારનું નામ ગૌતમ રાખવામાં આવેલું), આઠ શ્રેષ્ઠ રાજકન્યા સાથે એક દિવસે જ પાણીગ્રહણ થયું, આઠ – આઠ સંખ્યામાં | |||||||||
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वर्ग-१ अध्ययन-१ गौतम |
Gujarati | 5 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवरं–गोयमो नामेणं। अट्ठण्हं रायवरकण्णाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेंति। अट्ठट्ठओ दाओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी आदिकरे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। चउव्विहा देवा आगया। कण्हे वि निग्गए।
तए णं तस्स गोयमस्स कुमारस्स तं महाजनसद्दं च जनकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था। जहा मेहे तहा निग्गए। धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठेजं नवरं–देवानुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तओ पच्छा देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि।
तए णं से गोयमे कुमारे एवं जहा मेहे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
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वर्ग-१ अध्ययन-२ थी १० |
Gujarati | 6 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते।
एवं जहा गोयमो तहा सेसा। अंधगवण्ही पिया, धारिणी माया। समुद्दे, सागरे, थिमिए, गंभीरे, अयले, कंपिल्ले, अक्खोभे, पसेणई, विण्हू एए एगगमा। Translated Sutra: હે જંબૂ ! ભગવંત મહાવીરે આ રીતે અંતકૃત દશા સૂત્રના પહેલા વર્ગના પહેલા અધ્યયનનો અર્થ કહ્યો. તે રીતે બાકીના નવે અધ્યયનો કહેવા. સમુદ્રથી વિષ્ણુ પર્યન્ત નવે (પુત્રો) કુમારોના પિતા અંધકવૃષ્ણિ અને ધારિણી માતા હતા. આ રીતે એકગમા દશ અધ્યયનો કહ્યા. | |||||||||
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वर्ग-२ अक्षोभ अदि अध्ययन-१ थी ८ |
Gujarati | 7 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पन्नत्तातेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था। अंधगवण्ही पिया। धारिणी माया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭. હે ભગવન! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના પહેલા વર્ગનો આ અર્થ કહ્યો છે તો ભગવંત મહાવીરે બીજા વર્ગનો શો અર્થ કહ્યો છે? તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરીમાં અંધકવૃષ્ણિ રાજા રાજ્ય કરતા હતા અને રાણીનું નામ ધારિણીદેવી હતું. સૂત્ર– ૮. અક્ષોભ, સાગર, સમુદ્ર, હિમવંત, અચલ, ધરણ, પૂરણ અને અભિચંદ્ર આ આઠ તેમના | |||||||||
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वर्ग-२ अक्षोभ अदि अध्ययन-१ थी ८ |
Gujarati | 8 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. अक्खोभ २. सागरे खलु, ३. समुद्द ४. हिमवंत ५. अचलनामे य ।
६. धरणे य ७. पूरणे य, ८. अभिचंदे चेव अट्ठमए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭ | |||||||||
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वर्ग-२ अक्षोभ अदि अध्ययन-१ थी ८ |
Gujarati | 9 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहा पढमे वग्गे तहा सव्वे अट्ठ अज्झयणा। गुणरयणं तवोकम्मं। सोलस वासाइं परियाओ। सेत्तुंजे मासियाए संलेहणाए सिद्धा। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭ | |||||||||
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वर्ग-३ अनीयश अदि अध्ययन-१ अनीयश |
Gujarati | 10 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते तच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–१. अनीयसे २. अनंतसेने ३. अजियसेने ४. अणिहयरिऊ ५. देवसेने ६. सत्तुसेने ७. सारणे ८. गए ९. समुद्दे १०. दुम्मुहे ११. कूवए १२. दारुए १३. अनाहिट्ठी।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं Translated Sutra: [૧] હે ભગવન! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના બીજા વર્ગનો આ અર્થ કહ્યો છે તો ભગવંત મહાવીરે ત્રીજા વર્ગનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશાના ત્રીજા વર્ગના તેર અધ્યયનો કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – ૧.અનીયસ, ૨.અનંતસેન, ૩.અનિહત, ૪.વિદ્વત, ૫.દેવયશ, ૬.શત્રુસેન, ૭.સારણ, ૮.ગજ, ૯.સુમુખ, ૧૦.દુર્મુખ, ૧૧.કૂપક, | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ अनीयश अदि अध्ययन-२ थी ६ |
Gujarati | 11 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं जहा अनीयसे। एवं सेसा वि। अज्झयणा एक्कगमा। बत्तीसओ दाओ। बीसं वासा परियाओ। चोद्दस पुव्वा। सेत्तुंजे सिद्धा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૧. આ પ્રમાણે અનીયસ માફક બાકીના અનંતસેનથી શત્રુસેન સુધીના છ અધ્યયનોનો આલાવો એક સમાન જાણવો. બધાને ૩૨ – ૩૨ વસ્તુનો દાયજો આપ્યો. બધા અણગારોનો સંયમ પર્યાય ૨૦ – વર્ષનો હતો. બધા અણગારોએ ચૌદ પૂર્વનો અભ્યાસ કર્યો, બધા અંતકૃત કેવલી થઇ શત્રુંજય પર્વતે સિદ્ધ થયા. સૂત્ર– ૧૨. તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. પ્રથમ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ अनीयश अदि अध्ययन-७ सारण |
Gujarati | 12 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे, नवरं–वसुदेवे राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे। सारणे कुमारे। पन्नासओ दाओ। चोद्दस पुव्वा। वीसं वासा परियाओ। सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ अनीयश अदि अध्ययन-८ गजसुकुमाल |
Gujarati | 13 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी छ अनगारा भायरो सहोदरा होत्था–सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम -कुंडलभद्दलया नलकूबरसमाणा।
तए णं ते छ अनगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं Translated Sutra: હે ભગવન ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના ત્રીજા વર્ગના અધ્યયન – ૭ નો આ અર્થ કહ્યો છે તો ભગવંત મહાવીરે અધ્યયન – ૮ નો શો અર્થ કહ્યો છે ? નિશ્ચે હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. પ્રથમ અધ્યયનમાં કહ્યા મુજબ યાવત્ અરહંત અરિષ્ટનેમિ પધાર્યા. તે કાળે તે સમયે અરિષ્ટનેમિના શિષ્યો છ સાધુઓ સહોદર ભાઈઓ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ अनीयश अदि अध्ययन-९ थी १३ |
Gujarati | 14 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया जहा पढमए जाव विहरइ।
तत्थ णं बारवईए बलदेवे नामं राया होत्था–वन्नओ।
तस्स णं बलदेवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–वन्नओ।
तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव नियगवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा। जहा गोयमे, नवरं–सुमुहे कुमारे। पण्णासं कण्णाओ। पण्णासओ दाओ। चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ। Translated Sutra: હે ભગવન ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના ત્રીજા વર્ગના અધ્યયન – ૧૨ નો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવંત મહાવીરે અધ્યયન – ૯ થી ૧૩ નો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે દ્વારવતી નગરીમાં (જેમ પ્રથમ અધ્યયનમાં વર્ણન કરેલ છે તેમ) યાવત ત્યાં કૃષ્ણ વાસુદેવ રાજ્ય કરતા હતા. ત્યાં તે નગરીમાં બલદેવ નામે રાજા પણ | |||||||||
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वर्ग-४ जालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 15 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: હે ભગવન! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના ત્રીજા વર્ગનો આ અર્થ કહ્યો છે તો ભગવંત મહાવીરે ચોથાવર્ગનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! શ્રમણ યાવત્ સંપ્રાપ્ત ભગવંતે ચોથા વર્ગના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે. તે આ છે – | |||||||||
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वर्ग-४ जालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 17 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी। तीसे णं बारवईए नयरीए जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ।
तत्थ णं बारवईए नगरीए वसुदेवे राया। धारिणी देवी–वन्नओ जहा गोयमो, नवरं–जालिकुमारे। पन्नासओ दाओ बारसंगी। सोलस वासा परियाओ। सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे।
एवं–मयाली उवयाली पुरिससेने य वारिसेने य।
एवं–पज्जुन्ने वि, नवरं–कण्हे पिया, रुप्पिणी माया।
एवं–संबे वि, नवरं–जंबवई माया।
एवं–अनिरुद्धे Translated Sutra: ભંતે ! શ્રમણ ભગવંતે ચોથા વર્ગના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે? જંબૂ! તે કાળે તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. પ્રથમ વર્ગમાં કહ્યા મુજબ, તેમાં કૃષ્ણ વાસુદેવ રાજ્ય શાસન કરતા યાવત્ ત્યાં વિચરતા હતા. તે દ્વારવતીમાં વસુદેવ રાજા પણ હતા, તેની પત્ની ધારિણી રાણી હતા. ગૌતમકુમાર જેવો જાલિકુમાર નામે | |||||||||
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वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 18 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स वग्गस्स अंगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮. ભંતે ! જો શ્રમણ યાવત્ સિદ્ધિપ્રાપ્ત ભગવંતે ચોથા વર્ગનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો તો ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ! શ્રમણ યાવત્ સિદ્ધિ પ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે. તે આ – સૂત્ર– ૧૯. પદ્માવતી, ગૌરી, ગાંધારી, લક્ષ્મણા, સુશીમા, જાંબવતી, સત્યભામા, રુકિમણી, | |||||||||
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वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 19 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. पउमावई य २. गोरी, ३. गंधारी ४. लक्खणा ५. सुसीमा य ।
६. जंबवइ ७. सच्चभामा, ८. रुप्पिणी ९. मूलसिरि १०. मूलदत्ता वि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮ | |||||||||
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वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 20 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ।
तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था–वन्नओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ।
तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जहा देवई देवी जाव पज्जुवासइ।
तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हस्स वासुदेवस्स Translated Sutra: ભંતે ! જો ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો ભંતે ! ભગવંતે પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી, પહેલા અધ્યયનમાં કહ્યા મુજબ યાવત્ કૃષ્ણવાસુદેવ ત્યાં રાજ્ય શાસન સંભાલતાવિચરતા હતા. કૃષ્ણને પદ્માવતી નામે એક રાણી હતી. તે કાળે તે સમયે અરિષ્ટનેમિ અરહંત પધાર્યા | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 21 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी। रेवयए पव्वए। उज्जाणे नंदनवने।
तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे वासुदेवे।
तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी–वन्नओ।
अरहा समोसढे। कण्हे णिग्गए। गोरी जहा पउमावई तहा निग्गया। धम्मकहा। परिसा पडिगया। कण्हे वि।
तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा निक्खंता जाव सिद्धा।
एवं–गंधारी, लक्खणा, सुसीमा, जंबवई, सच्चभामा, रुप्पिणी। अट्ठ वि पउमावईसरिसाओ अट्ठं अज्झयणा। Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી , રૈવતક પર્વત ઉપર, નંદનવન ઉદ્યાન હતું. દ્વારવતીમાં કૃષ્ણ વાસુદેવ રાજા, તેને ગૌરી રાણી હતી , અરહંત અરિષ્ટનેમિ પધાર્યા, કૃષ્ણ નીકળ્યા, પદ્માવતી માફક ગૌરી પણ નીકળી, ધર્મકથા કહી, પર્ષદા પાછી ગઈ, કૃષ્ણ પણ ગયા. ત્યારે પદ્માવતી માફક ગૌરીએ પણ દીક્ષા લીધી યાવત્ સિદ્ધપદ પામ્યા. એ પ્રમાણે | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 22 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए रेवयए पव्वए नंदनवने उज्जाणे कण्हे वासुदेवे।
तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवईए देवीए अत्तए संबे नामं कुमारे होत्था–अहीनपडिपुन्नपंचेंदियसरीरे।
तस्स णं संबस्स कुमारस्स मूलसिरी नामं भारिया होत्था–वन्नओ।
अरहा समोसढे। कण्हे निग्गए। मूलसिरी वि निग्गया, जहा पउमावई। जं नवरं–देवानुप्पिया! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि जाव सिद्धा।
एवं मूलदत्ता वि। Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી, રૈવતક પર્વત, નંદનવન ઉદ્યાન, કૃષ્ણ રાજા હતો. તે નગરીમાં કૃષ્ણ વાસુદેવના પુત્ર, જાંબવતી રાણીના આત્મજ શાંબ નામે કુમાર હતા. તે શાંબકુમારને મૂલશ્રી પત્ની હતી. અરિષ્ઠનેમિ અરહંત પધાર્યા, કૃષ્ણ નીકળ્યા, મૂલશ્રી નીકળી, પદ્માવતી માફક દીક્ષા લીધી. યાવત્ સિદ્ધ પદ પામી. આ પ્રમાણે મૂલદત્તા | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 23 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पंचमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। छट्ठस्स णं भंते! वग्गस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्ससोलस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩. ભંતે ! જો શ્રમણ યાવત્ સિદ્ધિપ્રાપ્ત ભગવંતે પાંચમા વર્ગનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવંત મહાવીરે છટ્ઠા વર્ગનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જમ્બૂ ! ભગવંતે છટ્ઠા વર્ગના સોળ અધ્યયનો કહેલા, તે આ પ્રમાણે – સૂત્ર– ૨૪. મંકાતિ, કિંકમ, મુદ્ગરપાણિ, કાશ્યપ, ક્ષેમક, ધુતિધર, કૈલાસ, હરિચંદન. તથા – સૂત્ર– ૨૫. વારત્ત, સુદર્શન, પૂર્ણભદ્ર, | |||||||||
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वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 24 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. मकाइ २. किंकमे चेव, ३. मोग्गरपाणी य ४. कासवे ।
५. खेमए ६. धिइहरे चेव, ७. केलासे ८. हरिचंदने ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૩ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 25 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ९. वारत्त १०. सुदंसण ११. पुन्नभद्द तह १२. सुमनभद्द १३. सुपइट्ठे ।
१४. मेहे १५. ऽतिमुत्त १६. अलक्के, अज्झयणाणं तु सोलसयं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૩ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 26 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्स सोलस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।
तत्थ णं मकाई नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिकरे गुणसिलए जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया।
तए णं से मकाई गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्ठे जहा पन्नत्तीए गंगदत्ते तहेव इमो वि जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठवेत्ता पुरिस-सहस्सवाहिणीए सीयाए निक्खंते जाव अनगारे जाए–इरियासमिए।
तए Translated Sutra: ભંતે! જો શ્રમણ યાવત્ સિદ્ધિપ્રાપ્ત ભગવંતે છઠ્ઠા વર્ગના સોળ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો છઠ્ઠા વર્ગના પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? નિશ્ચે હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. ત્યાં ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. શ્રેણિક નામે રાજા હતો, ચેલ્લણા નામે રાણી હતી. મંકાતી નામે ગાથાપતિ વસતો હતો, તે ધનાઢ્ય યાવત્ અપરિભૂત હતો. તે | |||||||||
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वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 27 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी।
तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुनए नामं मालागारे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था–किण्हे जाव महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुनयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. ત્યાં ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. શ્રેણિક નામે રાજા હતો, ચેલ્લણા નામે રાણી હતી. રાજગૃહમાં અર્જુન માલાકાર રહેતો હતો, તે ધનાઢ્ય યાવત્ અપરિભૂત હતો. તે અર્જુન માલાકારને બંધુમતી નામે સુકુમાર પત્ની હતી. તે અર્જુનને રાજગૃહ બહાર એક મોટું પુષ્પ – ઉદ્યાન હતું. તે કૃષ્ણ યાવત્ મેઘ સમૂહવત્ | |||||||||
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वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 28 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। कासवे नामं गाहावई परिवसइ। जहा मकाई। सोलस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૮. તે કાળે તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. શ્રેણિક રાજા હતો. કાશ્યપ નામે ગાથાપતિ હતો. મંકાતિ માફક બધું કહેવું. યાવત તેનો ૧૬ – વર્ષનો સંયમ પર્યાય હતો. તેઓ અંતકૃત કેવલી થઇ વિપુલ પર્વતે સિદ્ધ થયા. સૂત્ર– ૨૯. એ પ્રમાણે ક્ષેમક ગાથાપતિને પણ જાણવા. માત્ર નગરી કાકંદી, ૧૬ વર્ષનો સંયમ પર્યાય, વિપુલ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 29 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–खेमए वि गाहावई, नवरं–कायंदी नयरी। सोलस वासा परियाओ। विपुले पव्वए सिद्धे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૮ | |||||||||
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वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 30 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–धिइहरे वि गाहावई, कायंदीए नयरीए। सोलस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૮ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 31 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–केलासे वि गाहावई, नवरं–साएए नयरे। बारस वासाइं परियाओ। विपुले सिद्धे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૮ | |||||||||
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वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Gujarati | 32 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–हरिचंदणे वि गाहावई, साएए नयरे। बारस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૮ |