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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय |
Hindi | 438 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ ता सि भोगे चइउं असत्तो अज्जाइं कम्माइं करेहि रायं! ।
धम्मे ठिओ सव्वपयानुकंपी तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४३७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय |
Hindi | 625 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अम्मताय! मए भोगा भुत्ता विसफलोवमा ।
पच्छा कडुयविवागा अणुबंधदुहावहा ॥ Translated Sutra: मैं भोगों को भोग चुका हूँ, वे विषफल के समान अन्त में कटु विपाक वाले और निरन्तर दुःख देने वाले हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय |
Hindi | 626 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इमं सरीरं अनिच्चं असुइं असुइसंभवं ।
असासयावासमिणं दुक्खकेसाण भायणं ॥ Translated Sutra: यह शरीर अनित्य है, अपवित्र है, अशुचि से पैदा हुआ है, यहाँ का आवास अशाश्वत है, तथा दुःख और क्लेश का स्थान है। इसे पहले या बाद में, कभी छोड़ना ही है। यह पानी के बुलबुले के समान अनित्य है। अतः इस शरीर में मुझे आनन्द नहीं मिल पा रहा है। व्याधि और रोगों के घर तथा जरा और मरण से ग्रस्त इस असार मनुष्यशरीर में एक क्षण भी मुझे | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय |
Hindi | 627 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] असासए सरीरम्मि रइं नोवलभामहं ।
पच्छा पुरा व चइयव्वे फेणबुब्बुयसन्निभे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६२६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय |
Hindi | 628 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मानुसत्ते असारम्मि वाहीरोगाण आलए ।
जरामरणघत्थम्मि खणं पि न रमामहं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६२६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय |
Hindi | 629 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं रोगा य मरणाणि य ।
अहो! दुक्खो हु संसारो जत्थ कीसंति जंतवो ॥ Translated Sutra: जन्म दुःख है। जरा दुःख है। रोग दुःख है। मरण दुःख है। अहो ! यह समग्र संसार ही दुःखरूप है, जहाँ जीव क्लेश पाते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय |
Hindi | 630 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खेत्तं वत्थुं हिरण्णं च पुत्तदारं च बंधवा ।
चइत्ताणं इमं देहं गंतव्वमवसस्स मे ॥ Translated Sutra: क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, पुत्र, स्त्री, बन्धुजन और इस शरीर छोड़कर एक दिन विवश होकर मुझे चले जाना है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय |
Hindi | 631 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहा किंपागफलाणं परिणामो न सुंदरो ।
एवं भुत्ताण भोगाणं परिणामो न सुंदरो ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार विष – रूप किम्पाक फलों का अन्तिम परिणाम सुन्दर नहीं होता है, उसी प्रकार भोगे हुए भोगों का परिणाम भी सुन्दर नहीं होता। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 1 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजोगा विप्पमुक्कस्स अनगारस्स भिक्खुणो ।
विनयं पाउकरिस्सामि आनुपुव्विं सुणेह मे ॥ Translated Sutra: जो सांसारिक संयोगो से मुक्त है, अनगार है, भिक्षु है, उसके विनय धर्म का अनुक्रम से निरूपण करूँगा, उसे ध्यानपूर्वक मुझसे सुनो। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 2 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आणानिद्देसकरे गुरूणमुववायकारए ।
इंगियागारसंपन्ने से विनीए त्ति वुच्चई ॥ Translated Sutra: जो गुरु की आज्ञा का पालन करता है, गुरु के सान्निध्य में रहता है, गुरु के इंगित एवं आकार – को जानता है, वह ‘विनीत’है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 3 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आणानिद्देसकरे गुरूणमनुववायकारए ।
पडिनीए असंबुद्धे अविनीए त्ति वुच्चई ॥ Translated Sutra: जो गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करता है, गुरु के सान्निध्य में नहीं रहता है, गुरु के प्रतिकूल आचरण करता है, असंबुद्ध है – वह ‘अविनीत’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 4 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहा सुणी पूइकण्णी निक्कसिज्जइ सव्वसो ।
एवं दुस्सीलपडिनीए मुहरी निक्कसिज्जई ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार सड़े कान की कुतिया घृणा के साथ सभी स्थानों से निकाल दी जाती है, उसी प्रकार गुरु के प्रतिकूल आचरण करने वाला दुःशील वाचाल शिष्य भी सर्वत्र अपमानित करके निकाला जाता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 5 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कणकुंडगं चइत्ताणं विट्ठं भुंजइ सूयरे ।
एवं सीलं चइत्ताणं दुस्सीले रमई मिए ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार सूअर चावलों की भूसी को छोड़कर विष्ठा खाता है, उसी प्रकार पशुबुद्धि शिष्य शील छोड़कर दुःशील में रमण करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 6 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुणियाभावं साणस्स सूयरस्स नरस्स य ।
विनए ठवेज्ज अप्पाणं इच्छंतो हियमप्पणो ॥ Translated Sutra: अपना हित चाहनेवाला भिक्षु, सड़े कान वाली कुतिया और विष्ठाभोजी सूअर के समान, दुःशील से होनेवाले मनुष्य की हीनस्थिति को समझ कर विनय धर्म में अपने को स्थापित करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 7 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा विनयमेसेज्जा सीलं पडिलभे जओ ।
बुद्धपुत्त नियागट्ठी न निक्कसिज्जइ कण्हुई ॥ Translated Sutra: इसलिए विनय का आचरण करना जिससे कि शील की प्राप्ति हो। जो बुद्धपुत्र है – वह कहीं से भी निकाला नहीं जाता। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 8 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निसंते सियामुहरी बुद्धाणं अंतिए सया ।
अट्ठजुत्ताणि सिक्खेज्जा निरट्ठाणि उ वज्जए ॥ Translated Sutra: शिष्य गुरुजनों के निकट सदैव प्रशान्त भाव से रहे, वाचाल न बने। अर्थपूर्ण पदों को सीखे। निरर्थक बातों को छोड़ दे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 9 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुसासिओ न कुप्पेज्जा खंति सेविज्ज पंडिए ।
खुड्डेहिं सह संसग्गिं हासं कीडं च वज्जए ॥ Translated Sutra: गुरु के द्वारा अनुशासित होने पर समझदार शिष्य क्रोध न करे, क्षमा की आराधना करे। क्षुद्र व्यक्तियों के सम्पर्क से दूर रहे, उनके साथ हंसी, मज़ाक और अन्य कोई क्रीड़ा भी न करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 10 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मा य चंडालियं कासी बहुयं मा य आलवे ।
कालेन य अहिज्जित्ता तओ ज्झाएज्ज एगगो ॥ Translated Sutra: शिष्य आवेश में आकर कोई चाण्डलिक कर्म न करे, बकवास न करे। अध्ययन काल में अध्ययन करे और उसके बाद एकाकी ध्यान करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 11 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहच्च चंडालियं कट्टु न निण्हविज्ज कयाइ वि ।
कडं कडे त्ति भासेज्जा अकडं नो कडे त्ति य ॥ Translated Sutra: आवेश – वश यदि शिष्य कोई चाण्डालिक व्यवहार कर भी ले तो उसे कभी भी न छिपाए। किया हो तो ‘किया’ और न किया हो तो ‘नहीं किया’ कहे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 12 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मा गलियस्से व कसं वयणमिच्छे पुणो पुणो ।
कसं व दट्ठुमाइन्ने पावगं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: जैसे कि गलिताश्व को बार – बार चाबुक की जरूरत होती है, वैसे शिष्य गुरु के बार – बार आदेश – वचनों की अपेक्षा न करे। किन्तु जैसे आकीर्ण अश्व चाबुक को देखते ही उन्मार्ग को छोड़ देता है, वैसे योग्य शिष्य गुरु के संकेतमात्र से पापकर्म छोड़ दे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 13 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनासवा थूलवया कुसीला मिउं पि चंडं पकरेंति सीसा ।
चित्तानुया लहु दक्खोववेया पसायए ते हु दुरासयं पि ॥ Translated Sutra: आज्ञा में न रहने वाले, बिना विचारे बोलने वाले दुष्ट शिष्य, मृदु स्वभाव वाले गुरु को भी क्रुद्ध बना देते हैं। और गुरु के मनोनुकूल चलनेवाले एवं पटुता से कार्य करनेवाले शिष्य शीघ्र ही कुपित होनेवाले दुराश्रय गुरु को भी प्रसन्न कर लेते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 14 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नापुट्ठो वागरे किंचि पुट्ठो वा नालियं वए ।
कोहं असच्चं कुव्वेज्जा धारेज्जा पियमप्पियं ॥ Translated Sutra: बिना पूछे कुछ भी न बोले, पूछने पर भी असत्य न कहे। यदि कभी क्रोध आ जाए तो उसे निष्फल करे – आचार्य की प्रिय और अप्रिय दोनों ही शिक्षाओं को धारण करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 15 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो ।
अप्पा दंतो सुही होइ अस्सिं लोए परत्थ य ॥ Translated Sutra: स्वयं पर ही विजय प्राप्त करना। स्वयं पर विजय प्राप्त करना ही कठिन है। आत्म – विजेता ही इस लोक और परलोक में सुखी होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 16 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेण य ।
माहं परेहि दम्मंतो बंधनेहि वहेहि य ॥ Translated Sutra: शिष्य विचार करे – ‘अच्छा है कि मैं स्वयं ही संयम और तप के द्वारा स्वयं पर विजय प्राप्त करूँ। बन्धन और वध के द्वारा दूसरों से मैं दमित किया जाऊं, यह अच्छा नहीं है।’ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 17 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिनीयं च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा ।
आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइ वि ॥ Translated Sutra: लोगों के समक्ष अथवा अकेले में वाणी से अथवा कर्म से, कभी भी आचार्यो के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 18 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्ठओ ।
न जुंजे ऊरुणा ऊरु सयणे नो पडिस्सुणे ॥ Translated Sutra: अर्थात् आचार्यों के बराबर या आगे न बैठे, न पीठ के पीछे ही सटकर बैठे, गुरु के अति निकट जांघ से जांघ सटाकर न बैठे। बिछौने पर बैठे – बैठे ही गुरु के कथित आदेश का स्वीकृतिरूप उत्तर न दे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 19 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेव पल्हत्थियं कुज्जा पक्खपिंडं व संजए ।
पाए पसारिए वावि न चिट्ठे गुरुनंतिए ॥ Translated Sutra: गुरु के समक्ष पलथी लगाकर न बैठे, दोनों हाथों से शरीर को बांधकर न बैठे तथा पैर फैलाकर भी न बैठे | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 20 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिएहिं वाहिंतो तुसिणीओ न कयाइ वि ।
पसायपेही नियागट्ठी उवचिट्ठे गुरु सया ॥ Translated Sutra: गुरु के प्रासाद को चाहने वाला मोक्षार्थी शिष्य, आचार्यों के द्वारा बुलाये जाने पर किसी भी स्थिति में मौन न रहे, किन्तु निरन्तर उनकी सेवा में उपस्थित रहे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 21 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आलवंते लवंते वा न निसीएज्ज कयाइ वि ।
चइऊणमासणं धीरो जओ जत्तं पडिस्सुणे ॥ Translated Sutra: गुरु के द्वारा बुलाए जाने पर बुद्धिमान् शिष्य कभी बैठा न रहे, किन्तु आसन छोड़कर उनके आदेश को यत्नपूर्वक स्वीकार करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 22 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आसनगओ न पुच्छेज्जा नेव सेज्जागओ कया ।
आगम्मुक्कुडुओ संतो पुच्छेज्जा पंजलीउडो ॥ Translated Sutra: आसन अथवा शय्या पर बैठा – बैठा कभी भी गुरु से कोई बात न पूछे, किन्तु उनके समीप आकर, उकडू आसन से बैठकर और हाथ जोड़कर पूछे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 23 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं विनयजुत्तस्स सुत्तं अत्थं च तदुभयं ।
पुच्छमाणस्स सीसस्स वागरेज्ज जहासुयं ॥ Translated Sutra: विनयी शिष्य के द्वारा इस प्रकार विनीत स्वभाव से पूछने पर गुरु सूत्र, अर्थ और तदुभय – दोनों का यथाश्रुत निरूपण करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 24 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणिं वए ।
भासादोसं परिहरे मायं च वज्जए सया ॥ Translated Sutra: भिक्षु असत्य का परिहार करे, निश्चयात्मक भाषा न बोले। भाषा के अन्य परिहास एवं संशय आदि दोषों को भी छोड़े। माया का सदा परित्याग करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 25 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं न निरट्ठं न मम्मयं ।
अप्पणट्ठा परट्ठा वा उभयस्संतरेण वा ॥ Translated Sutra: किसी के पूछने पर भी अपने, दूसरों के अथवा दोनों के लिए सावद्य भाषा न बोले, निरर्थक न बोले, मर्म – भेदक वचन न कहे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 26 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समरेसु अगारेसु संधीसु य महापहे ।
एगो एगित्थिए सद्धिं नेव चिट्ठे न संलवे ॥ Translated Sutra: लुहार की शाला, घरों, घरों की बीच की संधियों और राजमार्ग में अकेला मुनि अकेली स्त्री के साथ खड़ा न रहे, न बात करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 27 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं मे बुद्धानुसासंति सीएण फरुसेण वा ।
मम लाभो त्ति पेहाय पयओ तं पडिस्सुणे ॥ Translated Sutra: ’प्रिय अथवा कठोर शब्दों से आचार्य मुझ पर जो अनुशासन करते हैं, वह मेरे लाभ के लिए है’ – ऐसा विचार कर प्रयत्नपूर्वक उनका अनुशासन स्वीकार करे। आचार्य का प्रसंगोचित कोमल या कठोर अनुशासन दुष्कृत का निवारक है। उस अनुशासन को बुद्धिमान शिष्य हितकर मानता है। असाधु के लिए वही अनुशासन द्वेष का कारण बनता है। सूत्र – | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 38 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खड्डुया मे चवेडा मे अक्कोसा य वहा य मे ।
कल्लाणमनुसासंतो पावदिट्ठि त्ति मन्नई ॥ Translated Sutra: गुरु के कल्याणकारी अनुशासन को पापदृष्टिवाला शिष्य ठोकर और चांटा मारने, गाली देने और प्रहार करने के समान कष्टकारक समझता है। ‘गुरु मुझे पुत्र, भाई और स्वजन की तरह आत्मीय समझकर शिक्षा देते हैं’ – ऐसा सोचकर विनीत शिष्य उनके अनुशासन को कल्याणकारी मानता है। परन्तु पापदृष्टिवाला कुशिष्य हितानुशासन से शासित होने | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 46 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुज्जा जस्स पसीयंति संबुद्धा पुव्वसंथुया ।
पसन्ना लाभइस्संति विउलं अट्ठियं सुयं ॥ Translated Sutra: शिक्षण काल से पूर्व ही शिष्य के विनय – भाव से परिचित, संबुद्ध, पूज्य आचार्य उस पर प्रसन्न रहते हैं। प्रसन्न होकर वे उसे अर्थगंभीर विपुल श्रुतज्ञान का लाभ करवाते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 47 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] स पुज्जसत्थे सुविनीयसंसए मनोरुई चिट्ठइ कम्मसंपया ।
तवोसमायारिसमाहिसंवुडे महज्जुई पंचवयाइं पालिया ॥ Translated Sutra: वह शिष्य पूज्यशास्त्र होता है – उसके सारे संशय मिट जाते हैं। वह गुरु के मन को प्रिय होता है। वह कर्मसम्पदा युक्त होता है। तप समाचारी और समाधि सम्पन्न होता है। पांच महाव्रतों का पालन करके वह महान् तेजस्वी होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ विनयश्रुत |
Hindi | 48 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] स देवगंधव्वमनुस्सपूइए चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं ।
सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: वह देव, गन्धर्व और मनुष्यों से पूजित विनयी शिष्य मल पंक से निर्मित इस देह को त्याग कर शाश्वत सिद्ध होता है अथवा अल्प कर्म वाला महान् ऋद्धिसम्पन्न देव होता है। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 49 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–
इह खलु बावीसं परीसहा समणणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा।
कयरे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेजा?
इमे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा, तं जहा–
१. दिगिंछापरीसहे २. पिवासापरीसहे ३. सीयपरीसहे ४. उसिणपरीसहे ५. दंसमसयपरीसहे Translated Sutra: आयुष्मन् ! भगवान् ने कहा है – श्रमण जीवन में बाईस परीषह होते हैं, जो कश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा प्रवेदित हैं, जिन्हें सुनकर, जानकर, परिचित कर, पराजित कर, भिक्षाचर्या के लिए पर्यटन करता हुआ मुनि, परीषहों से स्पृष्ट – होने पर विचलित नहीं होता। वे बाईस परीषह कौन से हैं ? वे बाईस परीषह इस प्रकार | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 50 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परीसहाणं पविभत्ती कासवेणं पवेइया ।
तं भे उदाहरिस्सामि आनुपुव्विं सुणेह मे ॥ Translated Sutra: कश्यप – गोत्रीय भगवान् महावीर ने परीषहों के जो भेद बताए हैं, उन्हें मैं तुम्हें कहता हूँ। मुझसे तुम अनुक्रम से सुनो। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 51 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिगिंछापरिगए देहे तवस्सी भिक्खु थामवं ।
न छिंदे न छिंदावए न पए न पयावए ॥ Translated Sutra: बहुत भूख लगने पर भी मनोबल से युक्त तपस्वी भिक्षु फल आदि का न स्वयं छेदन करे, न कराए, उन्हें न स्वयं पकाए और न पकवाए। लंबी भूख के कारण काकजंघा के समान शरीर दुर्बल हो जाए, कृश हो जाए, धमनियाँ स्पष्ट नजर आने लगें, तो भी अशन एवं पानरूप आहार की मात्रा को जानने वाला भिक्षु अदीनभाव से विचरण करे। सूत्र – ५१, ५२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 52 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालीपव्वंगसंकासे किसे धमणिसंतए ।
मायन्ने असन-पानस्स अदीन-मनसो चरे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 53 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तओ पुट्ठो पिवासाए दोगुंछी लज्जसंजए ।
सीओदगं न सेविज्जा वियडस्सेसणं चरे ॥ Translated Sutra: असंयम से अरुचि रखनेवाला, लज्जावान् संयमी भिक्षु प्यास से पीड़ित होने पर भी सचित जल का सेवन न करे, किन्तु अचित जल की खोज करे। यातायात से शून्य एकांत निर्जन मार्गों में भी तीव्र प्यास से आतुर – होने पर, मुँह के सूख जाने पर भी मुनि अदीनभाव से प्यास को सहन करे। सूत्र – ५३, ५४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 54 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छिन्नावाएसु पंथेसु आउरे सुपिवासिए ।
परिसुक्कमुहेदीणे तं तितिक्खे परीसहं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 55 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चरंतं विरयं लूहं सीयं फुसइ एगया ।
नाइवेलं मुनी गच्छे सोच्चाणं जिनसासनं ॥ Translated Sutra: विरक्त और अनासक्त होकर विचरण करते हुए मुनि को शीतकाल में शीत का कष्ट होता ही है, फिर भी आत्मजयी जिनशासन को समझकर स्वाध्यायादि के प्राप्त काल का उल्लंघन न करे। शीत लगने पर मुनि ऐसा न सोचे कि ‘‘मेरे पास शीत – निवारण के योग्य साधन नहीं है। शरीर को ठण्ड से बचाने के लिए छवित्राण – वस्त्र भी नहीं हैं, तो मैं क्यों न | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 56 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न मे निवारणं अत्थि छवित्ताणं न विज्जई ।
अहं तु अग्गिं सेवामि इइ भिक्खू न चिंतए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 57 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उसिणपरियावेणं परिदाहेण तज्जिए ।
घिंसु वा परियावेणं सायं नो परिदेवए ॥ Translated Sutra: गरम भूमि, शिला एवं लू आदि के परिताप से, प्यास की दाह से, ग्रीष्मकालीन सूर्य के परिताप से अत्यन्त पीड़ित होने पर भी मुनि सात के लिए आकुलता न करे। स्नान को इच्छा न करे। जल से शरीर को सिंचित न करे, पंखे आदि से हवा न करे। सूत्र – ५७, ५८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 58 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उण्हाहितत्ते मेहावी सिणाणं नो वि पत्थए ।
गायं नो परिसिंचेज्जा न वीएज्जा य अप्पयं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 59 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुट्ठो य दंस-मसएहिं समरेव महामुनी ।
नागो संगामसीसे वा सूरो अभिहणे परं ॥ Translated Sutra: महामुनि डांस तथा मच्छरों का उपद्रव होने पर भी समभाव रखे। जैसे युद्ध के मोर्चे पर हाथी बाणों की परवाह न करता हुआ शत्रुओं का हनन करता है, वैसे मुनि परीषहों की परवाह न करते हुए राग – द्वेष रूपी अन्तरंग शत्रुओं का हनन करे। दंशमशक परीषह का विजेता साधक दंश – मशकों से संत्रस्त न हो, उन्हें हटाए नहीं। उनके प्रति मन में |