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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय-२५

Gujarati 59 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मिच्छादिट्ठिविगलिंदिए णं अपज्जत्तए संकिलिट्ठपरिणामे नामस्स कम्मस्स पणवीसं उत्तर पयडीओ निबंधति, तं जहा– तिरियगतिनामं विगलिंदियजातिनामं ओरालियसरीरनामं तेअगसरीरनामं कम्मगसरीरनामं हुंडसंठाणनामं ओरालियसरीरंगोवंगनामं सेवट्टसंघयणनामं वण्णनामं गंधनामं रसनामं फासनामं तिरियानुपुव्विनामं अगरुयलहुयनामं उवघायनामं तसनामं बादरनामं अपज्जत्तय- नामं पत्तेयसरीरनामं अथिरनामं असुभनामं दुभगनामं अनादेज्जनामं अजसोकित्तिनामं निम्माणनामं गंगासिंधुओ णं महानईओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहओ घडमुहपवित्तिएणं मुत्तावलि-हारसंठिएणं पवातेणं पवडंति। रत्तारत्तवतीओ

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय-२८

Gujarati 62 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे पन्नत्ते, तं जहा– मासियाआरोवणा, सपंचरायमासिया आरोवणा, सदसरायमासिया आरोवणा, सपन्नरस-रायमासिया आरोवणा, सवीसइरायमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायमासिया आरोवणा। दोमासिया आरोवणा, सपंचरायदोमासिया आरोवणा, सदसरायदोमासिया आरोवणा, सपन्नरसरायदोमासिया आरोवणा, सवीसइरायदोमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायदोमासिया आरोवणा। तेमासिया आरोवणा, सपंचरायतेमासिया आरोवणा, सदसरायतेमासिया आरोवणा, सपन्नरसरायतेमासिया आरोवणा, सवीसइरायतेमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायतेमासिया आरोवणा। चउमासियाआरोवणा, सपंचरायचउमासियाआरोवणा, सदसरायचउमासियाआरोवणा, सपन्नरसरायचउमासिया

Translated Sutra: આચાર – (જ્ઞાનાદિ વિષયક સાધુ આચાર) પ્રકલ્પ – (વ્યવસ્થા) ૨૮ ભેદે છે – માસિક આરોપણા, એક માસ અને પાંચ દિવસની આરોપણા, એક માસ દશ દિવસની આરોપણા, ૪૫ – દિવસની આરોપણા, ૫૦ દિવસની આરોપણા, ૫૫ – દિવસની આરોપણા, બે માસની આરોપણા, બે માસને પાંચ દિવસની આરોપણા, એ જ પ્રમાણે ત્રણ માસની આરોપણા. એ જ પ્રમાણે ચાર માસની આરોપણા, લઘુ પ્રાયશ્ચિત્ત
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 227 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए? विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति। ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव। तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि। से किं तं दुहविवागाणि? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति। सेत्तं दुहविवागाणि। से किं तं सुहविवागाणि? सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया

Translated Sutra: તે વિપાકશ્રુત શું છે ? વિપાકશ્રુતમાં સુકૃત અને દુષ્કૃત કર્મના ફળવિપાક કહેવાય છે. તે સંક્ષેપથી બે પ્રકારે છે – દુઃખવિપાક અને સુખવિપાક. તેમાં દશ દુઃખવિપાક અને દશ સુખવિપાક છે. તે દુઃખવિપાક કેવા છે ? દુઃખવિપાકમાં દુઃખવિપાકી જીવોના નગર, ઉદ્યાન, ચૈત્ય, વનખંડ, રાજા, માતાપિતા, સમવસરણ, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, નગર પ્રવેશ,
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 252 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! आउगबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउगबंधे पन्नत्ते, तं जहा– जाइनामनिधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके ठिइ-नामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके। नेरइयाणं भंते! कइविहे आउगबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– जातिनाम निधत्ताउके गइनामनिधत्ताउके ठिइनाम-निधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके। एवं जाव वेमाणियत्ति। निरयगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ते। एवं तिरियगई मनुस्सगई देवगई। सिद्धिगई णं भंते! केवइयं

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! આયુષ્યબંધ કેટલા ભેદે કહ્યો છે ? હે ગૌતમ ! છ ભેદે, તે આ રીતે – જાતિનામ નિધત્તાયુ, ગતિ નામ નિધત્તાયુ, સ્થિતિનામ નિધત્તાયુ, પ્રદેશ – અનુભાગ – અવગાહના નામ નિધત્તાયુ. હે ભગવન્‌ ! નારકીઓને કેટલા ભેદે આયુબંધ કહ્યો છે ? હે ગૌતમ ! છ ભેદે. તે આ – જાતિ, ગતિ, સ્થિતિ, પ્રદેશ, અનુભાગ, અવગાહના નામ નિધત્તાયુ. આ પ્રમાણે વૈમાનિક
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 6 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वंसाणं जिनवंसो, सव्वकुलाणं च सावयकुलाइं । सिद्धिगइ व्व गईणं, मुत्तिसुहं सव्वसोक्खाणं ॥

Translated Sutra: और वंश में जैसे श्री जिनेश्वर देव का वंश, सर्व कुल में जैसे श्रावककुल, गति के लिए जैसे सिद्धिगति, सर्व तरह के सुख में जैसे मुक्ति का सुख, तथा –
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 17 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमट्ठो परमउलं परमाययणं ति परमकप्पो त्ति । परमुत्तम तित्थयरो, परमगई परमसिद्धि त्ति ॥

Translated Sutra: यह संथारा सुविहित आत्मा के लिए अनुपम आलम्बन है। गुण का निवासस्थान है, कल्प – आचार रूप है और सर्वोत्तम श्री तीर्थंकर पद, मोक्षगति और सिद्धदशा का मूल कारण है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 93 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नरयगई-तिरियगई-मानुस-देवत्तणे वसंतेणं । जं पत्तं सुह-दुक्खं, तं अनुचिंते अनन्नमनो ॥

Translated Sutra: सावध होकर तू सोच। तूने नरक और तिर्यंच गति में और देवगति एवं मानवगति में कैसे कैसे सुख – दुःख भुगते हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 95 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवत्ते मनुयत्ते पराभिओगत्तणं उवगएणं । दुक्खपरिकिलेसकरी अनंतखुत्तो समनुभूओ ॥

Translated Sutra: और फिर देवपन में और मानवपन में पराये दासभाव को पाकर तूने दुःख, संताप और त्रास को उपजाने वाले दर्द को प्रायः अनन्तीबार महसूस किया है और हे पुण्यवान्‌ ! तिर्यञ्चगति को पाकर पार न पा सके ऐसी महावेदनाओं को तूने कईं बार भुगता है। इस तरह जन्म और मरण समान रेंट के आवर्त जहाँ हंमेशा चलते हैं, वैसे संसार में तू अनन्तकाल
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 404 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं जीवा नेरइयाउयत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा– महारंभताए, महापरिग्गहयाए, पंचिंदियवहेणं, कुणिमाहारेणं। चउहिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणिय आउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा– माइल्लताए, नियडि-ल्लताए, अलियवयणेणं, कूडतुलकूडमानेणं। चउहिं ठाणेहिं जीवा मनुस्साउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा– पगतिभद्दताए, पगतिविणीययाए, साणुक्कोसयाए, अमच्छरिताए। चउहिं ठाणेहिं जीवा देवाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा– सरागसंजमेणं, संजमासंजमेणं, बालतवो-कम्मेणं, अकामनिज्जराए।

Translated Sutra: चार कारणों से नरक में जाने योग्य कर्म बंधते हैं। महाआरम्भ करने से, महापरिग्रह करने से, पंचेन्द्रिय जीवों को मारने से, मांस आहार करने से। चार कारणों से तिर्यंचों में उत्पन्न होने योग्य कर्म बंधते हैं। यथा – मन की कुटिलता से। वेष बदलकर ठगने से झूठ बोलने से। खोटे तोल – माप बरतने से। चार कारणों से मनुष्यों में
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 73 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहा पुढविकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा आउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा तेउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा वाउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा वणस्सइकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा पुढविकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा आउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा तेउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा वाउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा वणस्सइकाइया

Translated Sutra: पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – सूक्ष्म और बादर। इस प्रकार यावत्‌ दो प्रकार के वनस्पतिकायिक जीव कहे गए हैं, यथा – सूक्ष्म और बादर। पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के हैं, यथा – पर्याप्त और अपर्याप्त। इस प्रकार यावत्‌ – दो प्रकार के वनस्पति – कायिक जीव कहे गए हैं, यथा – पर्याप्त और अपर्याप्त। पृथ्वीकायिक
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 75 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं दो सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउव्विए। देवाणं दो सरीरगा पन्नत्ता, तं– अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउव्विए पुढविकाइयाणं दो सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, बाहिरगे ओरालिए जाव वणस्सइकाइयाणं। बेइंदियाणं दो सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए। तेइंदियाणं दो सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए। चउरिंदियाणं

Translated Sutra: नैरयिक जीवों के दो शरीर कहे गए हैं, यथा – आभ्यन्तर और बाह्य। कार्मण आभ्यन्तर हैं और वैक्रिय बाह्य शरीर हैं। देवताओं के शरीर भी इसी तरह कहने चाहिए। पृथ्वीकायिक जीवों के दो शरीर कहे गए हैं, यथा – आभ्यन्तर और बाह्य। कार्मण आभ्यन्तर हैं और औदारिक बाह्य हैं। वनस्पतिकायिक जीव पर्यन्त ऐसा समझना चाहिए। द्वीन्द्रिय
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-२ Hindi 77 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे देवा उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा, तेसि णं देवाणं सता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति, अन्नत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति। नेरइयाणं सता समियं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति, अन्नत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। मनुस्साणं सत्ता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, इहगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति, अन्नत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति। मनुस्सवज्जा सेसा एक्कगमा।

Translated Sutra: जो देव ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं – वे चाहे कल्पोपपन्न हों चाहे विमानोपपन्न हों और जो ज्योतिष्चक्र में स्थित हों वे चाहे गतिरहित हों या सतत गमनशील हों – वे जो, सदा – सतत – पापकर्म ज्ञानावरणादि का बंध करते हैं उसका फल कतिपय देव तो उसी भव में अनुभव कर लेते हैं और कतिपय देव अन्य भव में वेदन करते हैं। नैरयिक जीव
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-२ Hindi 78 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता, तं जहा– नेरइए नेरइएसु उववज्जमाने मनुस्सेहिंतो वा पंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से नेरइए नेरइयत्तं विप्पजहमाने मनुस्सत्ताए वा पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं असुरकुमारावि, नवरं–से चेव णं से असुरकुमारे असुरकुमारत्तं विप्पजहमाने मनुस्सत्ताए वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं– सव्वदेवा। पुढविकाइया दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाने पुढवि-काएहिंतो वा नो पुढविकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए

Translated Sutra: नैरयिक जीवों की दो गति और दो आगति कही गई है, यथा – नैरयिक जीवों के बीच उत्पन्न होता हुआ या तो मनुष्यों में से या पंचेन्द्रय तिर्यंच जीवों में से उत्पन्न होता है। वही नैरयिक जीव नैरयिकत्व को छोड़ता हुआ मनुष्य अथवा पंचेन्द्रिय तिर्यंच के रूप में उत्पन्न होता है। इसी तरह असुरकुमार असुरकुमारत्व को छोड़ता हुआ मनुष्य
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-२ Hindi 79 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–भवसिद्धिया चेव, अभवसिद्धिया चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरोववन्नगा चेव, परंपरोववन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–गतिसमावन्नगा चेव, अगतिसमावन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमओववन्नगा चेव, अपढमसमओववन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–आहारगा चेव, अनाहारगा चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–उस्सासगा चेव, नोउस्सासगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–सइंदिया चेव, अनिंदिया चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया

Translated Sutra: नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक। इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त समझना चाहिए। नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – अनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक। इसी तरह वैमानिक पर्यन्त समझना चाहिए। नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – गतिसमापन्नक और अगतिसमापन्नक। इसी प्रकार वैमानिक
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 25 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगा गती।

Translated Sutra: गति एक है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 26 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगा आगती।

Translated Sutra: आगति एक है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 63 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दोहिं ठाणेहिं संपन्ने अनगारे अनादीयं अनवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीतिवएज्जा, तं जहा–विज्जाए चेव चरणेण चेव।

Translated Sutra: दो गुणों से युक्त अनगार अनादि, अनन्त, दीर्घकालीन चार गति रूप भवाटवी को पार कर लेता है, यथा – ज्ञान और चारित्र से।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 85 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दोण्हं उववाए पन्नत्ते, तं जहा–देवाणं चेव, नेरइयाणं चेव। दोण्हं उव्वट्टणा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइयाणं चेव, भवनवासीणं चेव। दोण्हं चयणे पन्नत्ते, तं जहा–जोइसियाणं चेव, वेमाणियाणं चेव। दोण्हं गब्भवक्कंती पन्नत्ता, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं आहारे पन्नत्ते, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्ढी पन्नत्ता, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं–निवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे आयाती मरणे पन्नत्ते, तं जहा– मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं

Translated Sutra: दो प्रकार के जीवों का जन्म उपपात कहलाता है, देवों और नैरयिकों का। दो प्रकार के जीवों का मरना उद्वर्तन कहलाता है, नैरयिकों का और भवनवासी देवों का। दो प्रकार के जीवों का मरना च्यवन कहलाता है, ज्योतिष्कों का और वैमानिकों का। दो प्रकार के जीवों की गर्भ में उत्पत्ति होती है, यथा – मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यंच
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 98 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो असुरकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–चमरे चेव, बली चेव। दो नागकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–धरणे चेव, भूयानंदे चेव। दो सुवण्णकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–वेणुदेवे चेव, वेणुदाली चेव। दो विज्जुकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–हरिच्चेव, हरिस्सहे चेव। दो अग्गिकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–अग्गिसिहे चेव, अग्गिमाणवे चेव। दो दीवकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–पुण्णे चेव, विसिट्ठे चेव। दो उदहिकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–जलकंते चेव, जलप्पभे चेव। दो दिसाकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–अमियगती चेव, अमितवाहने चेव। दो वायुकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–वेलंबे चेव, पभंजणे चेव। दो थणियकुमारिंदा

Translated Sutra: असुरकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – चमर और बलि। नागकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – धरन और भूता – नन्द सुवर्णकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, वेणुदेव और वेणुदाली। विद्युतकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – हरि और हरिसह। अग्निकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – अग्निशिख और अग्निमाणव। द्वीपकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 144 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं संपन्ने अनगारे अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीईवएज्जा, तं जहा–अनिदानयाए, दिट्ठिसंपन्नयाए, जोगवाहियाए।

Translated Sutra: तीन स्थानों (गुणों) से युक्त अनगार अनादि – अनन्त दीर्घ – मार्ग वाले चार गतिरूप संसार – कान्तार को पार कर लेता है वे इस प्रकार है, यथा – निदान (भोग ऋद्धि आदि की ईच्छा) नहीं करने से, सम्यक्‌दर्शन युक्त होने से, समाधि रहने से। अथवा उपधान – तपश्चर्या पूर्वक श्रुत का अभ्यास करने से।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-२ Hindi 176 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविधा लोगठिती पन्नत्ता, तं जहा–आगासपइट्ठिए वाते, वातपइट्ठिए उदही, उदहीपइट्ठिया पुढवी। तओ दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उड्ढा, अहा, तिरिया। तिहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए। तिहिं दिसाहिं जीवाणं–आगती, वक्कंती, आहारे, वुड्ढी, णिवुड्ढी, गतिपरियाए, समुग्घाते, काल-संजोगे, दंसणाभिगमे, जीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए। तिहिं दिसाहिं जीवाणं अजीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए। एवं–पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। एवं–मनुस्साणवि।

Translated Sutra: लोक – स्थिति तीन प्रकार की कही गई है, यथा – आकाश के आधार पर वायु रहा हुआ है, वायु के आधार पर उदधि, उदधि के आधार पर पृथ्वी। दिशाएं तीन कही गई हैं, यथा – ऊर्ध्व दिशा, अधो दिशा और तिर्छी दिशा। तीन दिशाओं में जीवों की गति होती है, ऊर्ध्व दिशा में, अधोदिशा में और तिर्छी दिशा में। इसी तरह आगति। उत्पत्ति, आहार, वृद्धि, हानि,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-३ Hindi 194 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविधा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–सम्मादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी। एवं–विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं। तओ दुग्गतीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नेरइयदुग्गती, तिरिक्खजोणियदुग्गती, मनुयदुग्गती। तओ सुगतीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–सिद्धसोगती, देवसोगती, मनुस्ससोगती। तओ दुग्गता पन्नत्ता, तं जहा–नेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता, मनुस्सदुग्गता। तओ सुगता पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धसोगता, देवसुग्गता, मनुस्ससुग्गता।

Translated Sutra: नैरयिक तीन प्रकार के कहे गए हैं, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि। इस प्रकार विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त समझ लेना चाहिए। तीन दुर्गतियाँ कही गई हैं, नरक दुर्गति, तिर्यंचयोनिक दुर्गति और मनुष्य दुर्गति। तीन सद्‌गतियाँ कही गई हैं, यथा – सिद्ध सद्‌गति, देव सद्‌गति और मनुष्य सद्‌गति। तीन
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-३ Hindi 204 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सवने नाणे य विन्नाणे पच्चक्खाणे य संजमे । अणण्हणे तवे चेव वोदाणे अकिरिय निव्वाणे ॥

Translated Sutra: श्रवण का फल ज्ञान, ज्ञान का फल विज्ञान, विज्ञान का फल प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का फल संयम, संयम का फल अनाश्रव, अनाश्रव का फल ‘तप’ तप का फल व्यवदान, व्यवदान का फल अक्रिया। अक्रिया का फल निर्वाण है। हे भगवन्‌ ! निर्वाण का क्या फल है ? हे श्रमणायुष्मन्‌ ! सिद्धगति में जाना ही निर्वाण का सर्वान्तिम प्रयोजन है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 222 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गुरुं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–आयरियपडिनीए, उवज्झायपडिनीए, थेरपडिनीए। गतिं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा– इहलोगपडिनीए, परलोगपडिनीए, दुहओलोग-पडिनीए। समूहं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा– कुलपडिनीए, गणपडिनीए, संघपडिनीए। अणुकंपं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–तवस्सिपडिनीए, गिलाणपडिनीए, सेहपडिनीए। भावं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–नाणपडिनीए, दंसणपडिनीए, चरित्तपडिनीए। सुयं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–सुत्तपडिनीए, अत्थपडिनीए, तदुभयपडिनीए।

Translated Sutra: गुरु सम्बन्धी तीन प्रत्यनीक ‘प्रतिकूल आचरण करने वाले कहे गए हैं, यथा – आचार्य का प्रत्यनीक, उपाध्याय का प्रत्यनीक, स्थविर का प्रत्यनीक। गति सम्बन्धी तीन प्रत्यनीक कहे गए हैं, यथा – इहलोक – प्रत्यनीक, परलोक – प्रत्यनीक, उभयलोक प्रत्यनीक समूह की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक कहे गए हैं, यथा – कुल प्रत्यनीक, गण – प्रत्यनीक,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 225 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे पोग्गलपडिघाते पन्नत्ते, तं जहा– परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलं पप्प पडिहण्णिज्जा, लुक्खत्ताए वा पडिहण्णिज्जा, लोगंते वा पडिहण्णिज्जा।

Translated Sutra: तीन प्रकार से पुद्‌गल की गति में प्रतिघात होना कहा गया है, यथा – एक परमाणु – पुद्‌गल का दूसरे परमाणु – पुद्‌गल से टकराने के कारण गति में प्रतिघात होता है, रूक्ष होने से गति मैं प्रतिघात होता है, लोकान्त में गति का प्रतिघात होता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 235 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ लेसाओ दुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। तओ लेसाओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। तओ लेसाओ– दोग्गतिगामिणीओ, संकिलिट्ठाओ, अमणुन्नाओ, अविसुद्धाओ, अप्पसत्थाओ, सीत-लुक्खाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। तओ लेसाओ– सोगतिगामिणीओ, असंकिलिट्ठाओ, मणुन्नाओ, विसुद्धाओ, पसत्थाओ, निद्‌धु-ण्हाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा।

Translated Sutra: तीन लेश्याएं दुर्गन्ध वाली कही गई हैं, यथा – कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या। तीन लेश्याएं सुगंध वाली कही गई हैं, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या। इसी तरह दुर्गति में ले जाने वाली, सुगति में ले जाने वाली लेश्या, अशुभ, शुभ, अमनोज्ञ, मनोज्ञ, अविशुद्ध, विशुद्ध, क्रमशः अप्रशस्त, प्रशस्त, शीतोष्ण और स्निग्ध,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 239 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं उक्कोसेणं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जंति। एगिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: नैरयिक जीवन उत्कृष्ट तीन समय वाली विग्रह – गति से उत्पन्न होते हैं। एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त ऐसा जानना चाहिए।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 270 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा– सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। एवं–बलिस्सवि– सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। धरणस्स– कालपाले, कोलपाले, सेलपाले, संखपाले। भूयाणंदस्स – कालपाले, कोलपाले, संखपाले, सेलपाले। वेणुदेवस्स– चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे। वेणुदालिस्स- चित्ते, विचित्ते, विचित्तपक्खे, चित्तपक्खे। हरिकंतस्स- पभे, सुप्पभे, पभकंते, सुप्पभकंते। हरिस्सहस्स- पभे, सुप्पभे, सुप्पभकंते, पभकंते। अग्गिसिहस्स– तेऊ, तेउसिहे, तेउकंते, तेउप्पभे। अग्गिमाणवस्स– तेऊ, तेउसिहे, तेउप्पभे, तेउकंते। पुण्णस्स– ‘रूवे, रूवंसे’, ‘रूवकंते,

Translated Sutra: असुरेन्द्र, असुरकुमार – राज चमर के चार लोकपाल कहे गए हैं, यथा – सोम, यम, वरुण और वैश्रमण। इसी तरह बलीन्द्र के भी सोम, यम, वैश्रमण और वरुण चार लोकपाल हैं। धरणेन्द्र के कालपाल, कोलपाल, शैलपाल और शंखपाल। इसी तरह भूतानन्द के कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल नामक चार लोकपाल हैं। वेणुदेव के चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 281 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि दुग्गतीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– नेरइयदुग्गती, तिरिक्खजोणियदुग्गती, मनुस्सदुग्गती, देव-दुग्गती। चत्तारि सोग्गईओ पन्नत्ताओ, तं जहा– सिद्धसोग्गती, देवसोग्गती, मणुयसोग्गती, सुकुलपच्चायाती। चत्तारि दुग्गता पन्नत्ता, तं जहा– नेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता, मनुयदुग्गता, देवदुग्गता। चत्तारि सुग्गता पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धसुग्गता, देवसुग्गता, मनुयसुग्गता, सुकुलपच्चायाया।

Translated Sutra: चार प्रकार की दुर्गतियाँ कही गई हैं, यथा – नैरयिकदुर्गति, तिर्यंचयोनिक दुर्गति, मनुष्यदुर्गति, देवदुर्गति। चार प्रकार की सुगतियाँ कही गई हैं, यथा – सिद्ध सुगति, देव सुगति, मनुष्य सुगति, श्रेष्ठ कुल में जन्म। चार दुर्गतिप्राप्त कहे गए हैं, यथा – नैरयिक दुर्गतिप्राप्त, तिर्यंचयोनिक दुर्गतिप्राप्त, मनुष्य
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 315 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा– पगतिबंधे, ठितिबंधे, अनुभावबंधे, पदेसबंधे। चउव्विहे उवक्कमे पन्नत्ते, तं जहा–बंधणोवक्कमे, उदीरणोवक्कमे, उवसमणोवक्कमे, विप्परिनाम-णोवक्कमे। बंधणोवक्कमे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पगतिबंधणोवक्कमे, ठितिबंधणोवक्कमे, अनुभावबंध-णोवक्कमे, पदेस-बंधणोवक्कमे। उदीरणोवक्कमे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पगतिउदीरणोवक्कमे, ठितिउदीरणोवक्कमे, अनुभाव-उदीरणोवक्कमे, पदेसउदीरणोवक्कमे। उवसामणोवक्कमे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पगतिउवसामणोवक्कमे, ठितिउवसामणोवक्कमे, अनुभावउवसामणोवक्कमे, पदेसउवसामणोवक्कमे। विप्परिनामणोवक्कमे चउव्विहे

Translated Sutra: बंध चार प्रकार का है। यथा – प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध। कर्मप्रकृतियों का बंध – प्रकृतिबंध है, कर्मप्रकृतियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति का बंध – स्थितिबंध है। कर्मप्रकृतियों में तीव्र – मंद रस का बंध – रसबंध है। आत्मप्रदेशों के साथ शुभाशुभ विपाक वाले अनंतानंत कर्मप्रदेशों का बंध – प्रदेश
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 348 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि अवायणिज्जा पन्नत्ता, तं जहा–अविनीए, विगइपडिबद्धे, अविओसवितपाहुडे, माई। [सूत्र] चत्तारि वायणिज्जा पन्नत्ता, तं जहा–विणीते, अविगतिपडिबद्धे, विओसवितपाहुडे, अमाई।

Translated Sutra: चार प्रकार के व्यक्ति आगम वाचना के अयोग्य होते हैं। यथा – अविनयी, दूध आदि पौष्टिक आहारों का अधिक सेवन करने वाला, अनुपशांत अर्थात्‌ अति क्रोधी मायावी। चार प्रकार के आगम वाचना के योग्य होते हैं। यथा – विनयी, दूध आदि पौष्टिक आहारों का अधिक सेवन न करने वाला, उपशान्त – क्षमाशील, कपट रहित।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 349 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–आतंभरे नाममेगे नो परंभरे, परंभरे नाममेगे नो आतंभरे, एगे आतंभरेवि परंभरेवि, एगे नो आतंभरे नो परंभरे। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–दुग्गए नाममेगे दुग्गए, दुग्गए नाममेगे सुग्गए, सुग्गए नाममेगे दुग्गए, सुग्गए नाममेगे सुग्गए। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–दुग्गए नाममेगे दुव्वए, दुग्गए नाममेगे सुव्वए, सुग्गए नाममेगे दुव्वए, सुग्गए नाममेगे सुव्वए। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–दुग्गए नाममेगे दुप्पडितानंदे, दुग्गए नाममेगे सुप्पडितानंदे, सुग्गए नाममेगे दुप्पडितानंदे, सुग्गए नाममेगे सुप्पडितानंदे। चत्तारि

Translated Sutra: पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। यथा – एक अपना भरण – पोषण करता है किन्तु दूसरे का भरण – पोषण नहीं करता। एक अपना भरण – पोषण नहीं करता किन्तु दूसरों का भरण – पोषण करता है। एक अपना भी और दूसरे का भी भरण – पोषण करता है। एक अपना भी भरण – पोषण नहीं करता और दूसरे का भी भरण – पोषण नहीं करता है। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। यथा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 359 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं जीवा य पोग्गला य नो संचाएंति बहिया लोगंता गमणयाए, तं जहा–गतिअभावेणं, निरुवग्गहयाए, लुक्खताए, लोगाणुभावेण।

Translated Sutra: जीव और पुद्‌गल चार कारणों से लोक के बाहर नहीं जा सकते। यथा – गति का अभाव होने से, सहायता का अभाव होने से, रुक्षता से, लोक की मर्यादा होने से।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 398 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया चउगइया चउआगइया पन्नत्ता, तं जहा– पंचिंदियतिरिक्खजोणिए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाने नेरइएहिंतो वा, तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मनुस्सेहिंतो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पंचिंदियतिरिक्खजोणिए पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्तं विप्पजहमाणे नेरइयत्ताए वा, तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मनुस्सत्ताए वा, देवत्ताए वा गच्छेज्जा। मनुस्सा चउगइआ चउआगइआ पन्नत्ता, तं जहा–मनुस्से मनुस्सेसु उववज्जमाणे नेरइएहिंतो वा, तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मनुस्सेहिंतो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से मनुस्से मनुस्सत्तं विप्पजहमाणे नेरइयत्ताए वा,

Translated Sutra: पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव मरकर चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं और चारों गतियों में से आकर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। यथा – नैरयिकों से, तिर्यंचों से, मनुष्यों से और देवताओं से। मनुष्य मरकर चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं और चारों गतियों में से आकर मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 424 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच वण्णा पन्नत्ता, तं जहा–किण्हा, निला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला। पंच रसा पन्नत्ता, तं जहा–तित्ता, कडुया, कसाया, अंबिला, मधुरा। पंच कामगुणा पन्नत्ता, तं जहा–सद्दा, रूवा, गंधा, रसा, फासा। पंचहिं ठाणेहिं जीवा सज्जंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा रज्जंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा मुच्छंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा गिज्झंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा अज्झोववज्जंति, तं जहा–सद्देहिं,

Translated Sutra: वर्ण पाँच कहे गए हैं। यथा – कृष्ण, नील, रक्त, पीत, शुक्ल। रस पाँच कहे गए हैं। यथा – तिक्त यावत्‌ – मधुर। काम गुण पाँच कहे गए हैं। यथा – शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श। इन पाँचों में जीव आसक्त हो जाते हैं। शब्द यावत्‌ स्पर्श में। इसी प्रकार पूर्वोक्त पाँचों में जीव राग भाव को प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार पूर्वोक्त पाँचों
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 425 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं जीवा दोग्गतिं गच्छंति, तं जहा– पाणातिवातेणं, मुसावाएणं, अदिन्नादाणेणं, मेहुणेणं, परिग्गहेणं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा सोगतिं गच्छंति, तं जहा– पाणातिवातवेरमणेणं, मुसावायवेरमणेणं, अदिन्ना-दानवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं, परिग्गहवेरमणेणं

Translated Sutra: पाँच कारणों से जीव दुर्गति को प्राप्त होते हैं। यथा – प्राणातिपात से, यावत्‌ परिग्रह से। पाँच कारणों से जीव सुगति को प्राप्त होते हैं। यथा – प्राणातिपात विरमण से, यावत्‌ परिग्रह विरमण से।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 440 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहा पडिहा पन्नत्ता, तं जहा–गतिपडिहा, ठितिपडिहा, बंधणपडिहा, भोगपडिहा, बल-वीरिय-पुरिसयारपरक्कमपडिहा।

Translated Sutra: पाँच प्रकार के प्रतिघात कहे गए हैं। यथा – गतिप्रतिघात – देवादि गतियों का प्राप्त न होना। स्थिति प्रतिघात – देवादि की स्थितियों का प्राप्त न होना। बंधन प्रतिघात – प्रशस्त औदारिकादि बंधनों का प्राप्त न होना। भोग प्रतिघात – प्रशस्त भोग – सुख का प्राप्त न होना। बल, वीर्य, पुरुषाकार पराक्रम प्रतिघात – बल आदि
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 455 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं निग्गंथा निग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति, तं जहा- १. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य एगं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धमडविमनुपविट्ठा, तत्थेगयतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति। २. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कव्वडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा निगमंसि वा आसमंसि वा सन्निवेसंसि वा रायहाणिंसि वा वासं उवागता एगतिया जत्थ उवस्सयं लभंति, एगतिया नो लभंति, तत्थेगतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति। ३. अत्थेगइया निग्गंथा

Translated Sutra: पाँच कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ एक जगह ठहरे, सोये या बैठे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्र – मण नहीं होता है। यथा – निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ कदाचित्‌ अनेक योजन लम्बी, निर्जन एवं अगम्य अटवी में पहुँच जावे तो – किसी ग्राम, नगर यावत्‌ राजधानी में निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थियों में से किसी एक को ही उपाश्रय
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 480 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच गतीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– निरयगती, तिरियगती, मणुयगती, देवगती, सिद्धिगती।

Translated Sutra: गति पाँच है, नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति, देवगति, सिद्धगति
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 496 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविधा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा– एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया। एगिंदिया पंचगतिया पंचागतिया पन्नत्ता, तं जहा– एगिंदिए एगिंदिएसु उववज्जमाणे एगिंदि-एहिंतो वा, बेइंदिएहिंतो वा, तेइंदिएहिंतो वा, चउरिंदिएहिंतो वा, पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। ‘से चेव णं से’ एगिंदिए एगिंदियत्तं विप्पजहमाने एगिंदियत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदिय-त्ताए वा, चउरिंदियत्ताए वा, पंचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा। बेइंदिया पंचगतिया पंचागतिया एवं चेव। एवं जाव पंचिंदिया पंचगतिया पंचागतिया पन्नत्ता, तं जहा–पंचिंदिए जाव गच्छेज्जा। पंचविधा सव्वजीवा

Translated Sutra: संसारी जीव पाँच प्रकार के हैं, यथा – एकेन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रिय। एकेन्द्रिय जीव पाँच गतियों में पाँच गतियों से आकर उत्पन्न होते हैं। एकेन्दिंय जीव एकेन्द्रियों में एके – न्द्रियों से यावत्‌ पंचेन्द्रियों से आकर उत्पन्न होता है। एकेन्द्रिय एकेन्द्रियपन को छोड़कर एकेन्द्रिय रूप में यावत्‌ पंचेन्द्रिय
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 500 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ससिसगलपुण्णमासीं, जोएइ विसमचारिनक्खत्ते । कडुओ बहूदओ वा, तमाहु संवच्छरं चंदं ॥

Translated Sutra: जिसमें सभी पूर्णिमाओं में चन्द्र का योग रहता है, जिसमें नक्षत्रों की विषम गति होती है। जिसमें अतिशीत और अति ताप पड़ता है, और जिसमें वर्षा अधिक होती है वह चंद्र संवत्सर होता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 504 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविधे जीवस्स निज्जाणमग्गे पन्नत्ते, तं जहा–पाएहिं, ऊरूहिं, उरेणं, सिरेणं, सव्वंगेहिं। पाएहिं निज्जायमाणे निरयगामी भवति, ऊरूहिं निज्जायमाणे तिरियगामी भवति, उरेणं निज्जाय-माणे मनुयगामी भवति, सिरेणं निज्जायमाणे देवगामी भवति, सव्वंगेहिं निज्जायमाणे सिद्धिगति-पज्जवसाणे पन्नत्ते।

Translated Sutra: शरीर से जीव के नीकलने के पाँच मार्ग हैं, यथा – पैर, उरू, वक्षःस्थल, शिर, सर्वाङ्ग। पैरों से नीकलने पर जीव नरकगामी होता है, उरू से नीकलने पर जीव तिर्यंचगामी होता है, वक्षःस्थल से नीकलने पर जीव मनुष्य गति प्राप्त होता है। शिर से नीकलने पर जीव देवगतिगामी होता है, सर्वाङ्ग से नीकलने पर जीव मोक्षगामी होता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 525 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया। पुढविकाइया छगतिया छआगतिया पन्नत्ता, तं जहा– पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाने पुढविकाइएहिंतो वा, आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहिंतो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वनस्सकाइएहिंतो वा, तसकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए वा, आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वनस्सइकाइयत्ताए वा तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा। आउकाइया छगतिया छआगतिया एवं चेव जाव तसकाइया।

Translated Sutra: संसारी जीव छः प्रकार के हैं, यथा – पृथ्वीकायिक यावत्‌ – त्रसकायिक। पृथ्वीकायिक जीव छः गति और छः आगति वाले हैं, यथा – १. पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाय में उत्पन्न होते हैं तो पृथ्वीकायिकों से – यावत्‌ – त्रस – कायिकों से उत्पन्न होते हैं। वही पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकपने को छोड़कर पृथ्वीकायिकपने को यावत्‌ –
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 544 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छद्दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– पाईणा, पडीणा, दाहिणा, उदीणा, उड्ढा, अधा। छहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति, तं जहा– पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अधाए। छहिं दिसाहिं जीवाणं– आगई वक्कंती आहारे वुड्ढी निवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे नाणाभिगमे जीवाभिगमे अजीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा– पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अघाए। एवं पंचिंदियतिरिक्खजोनियाणवि। मनुस्साणवि।

Translated Sutra: दिशाएं छः हैं यथा – पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ऊर्ध्व, अधो। उक्त छह दिशाओं में जीवों की गति होती है। इसी प्रकार जीवों की आगति, व्युत्क्रान्ति, आहार, शरीर की वृद्धि, शरीर की हानि, शरीर की विकुर्वणा, गतिपर्याय, वेदनादि समुद्‌घात, दिन – रात आदि काल का संयोग, अवधि आदि दर्शन से सामान्य ज्ञान, अवधि आदि ज्ञान से विशेष
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 586 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरचंचा णं रायहाणी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववातेणं। एगमेगे णं इंदट्ठाणे उक्कोसेणं छम्मासे विरहिते उववातेणं। अधेसत्तमा णं पुढवी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं। सिद्धिगती णं उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं।

Translated Sutra: चमरचंचा राजधानी में उत्कृष्ट विरह छः मास का है। प्रत्येक इन्द्रप्रस्थ में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है। सप्तम पृथ्वी तमस्तमा में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है। सिद्धगति में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 587 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विधे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिधत्ताउए, गतिनामनिधत्ताउए, ठितिनामनिधत्ताउए, ओगाहणानामनिधत्ताउए, पएसनामनिधत्ताउए, अणुभागनामनिधत्ताउए। छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिधत्ताउए, गतिनामनिधत्ताउए, ठितिनामनिध-त्ताउए, ओगाहणानामनिधत्ताउए, पएसनामनिधत्ताउए, अनुभागनामनिधत्ताउए। एवं जाव वेमाणियाणं। नेरइया नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति। एवं असुरकुमारावि जाव थणियकुमारा। असंखेज्जवासाउया सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिया नियमं छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति। असंखेज्जवासाउया सन्निमनुस्सा नियमं छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं

Translated Sutra: आयुबंध छः प्रकार का है, यथा – जातिनामनिधत्तायु – जातिनाम कर्म के साथ प्रति समय भोगने के लिए आयुकर्म के दलिकों की निषेक नाम की रचना। गतिमान निधत्तायु – गतिमान कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना। स्थिति – नाम निधत्तायु – स्थिति की अपेक्षा से निषेक रचना। अवगाहना नाम निधत्तायु – जिसमें आत्मा रहे वह अवगाहना औदारिक शरीर
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-७

Hindi 594 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविधे जोणिसंगहे पन्नत्ते, तं० अंडजा, पोतजा, जराउजा, रसजा, संसेयगा, संमुच्छिमा, उब्भिगा। अंडगा सत्तगतिया सत्तागतिया पन्नत्ता, तं जहा– अंडगे अंडगेसु उववज्जमाने अंडगेहिंतो वा, पोतजेहिंतो वा, जरा- उजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा, उब्भिगेहिंतो वा उववज्जेज्जा। सच्चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाने अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा, उब्भिगत्ताए वा गच्छेज्जा। पोतगा सत्तगतिया सत्तागतिया एवं चेव। सत्तण्हवि गतिरागती भाणियव्वा जाव उब्भियत्ति।

Translated Sutra: योनि संग्रह सात प्रकार का है, यथा – अंडज – पक्षी, मछलियाँ, सर्प इत्यादि अंडे से पैदा होने वाले। पोतज – हाथी, बागल आदि चमड़े से लिपटे हुए उत्पन्न होने वाले। जरायुज – मनुष्य, गाय आदि जर के साथ उत्पन्न होने वाले। रसज – रस में उत्पन्न होने वाले। संस्वेदज – पसीने से उत्पन्न होने वाले। सम्मूर्च्छिम – माता – पिता के
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 700 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठविधे जोणिसंगहे पन्नत्ते, तं जहा–अंडगा, पोतगा, जराउजा, रसजा, संसेयगा, संमुच्छिमा, उब्भिगा, उववातिया। अंडगा अट्ठगतिया अट्ठागतिया पन्नत्ता, तं जहा–अंडए अंडएसु उववज्जमाने अंडएहिंतो वा, पोतएहिंतो वा, जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा, उब्भिएहिंतो वा, उववातिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाने अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा, उब्भियत्ताए वा, उववातियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं पोतगावि जराउजावि सेसाणं गतिरागती

Translated Sutra: योनिसंग्रह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा – अंडज, पोतज यावत्‌ – उद्भिज और औपपातिक। अंडज आठ गति वाले हैं, और आठ आगति वाले हैं। अण्डज यदि अण्डजों में उत्पन्न हो तो अण्डजों से पोतजों से यावत्‌ – औपपातिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। वही अण्डज अण्डजपने को छोड़कर अण्डज रूप में यावत्‌ – औपपातिक रूप में उत्पन्न होता है। इसी
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 702 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु नो आलोएज्जा, नो पडिक्कमेज्जा, नो निंदेज्जा नो गरिहेज्जा, नो विउट्टेज्जा, नो विसोहेज्जा, नो अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, नो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिव-ज्जेज्जा, तं जहा– करिंसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अविनए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिहाइस्सइ अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, निंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा– १. मायिस्स णं अस्सिं लोए गरहिते भवति। २. उववाए

Translated Sutra: आठ कारणों से मायावी माया करके न आलोयणा करता है, न प्रतिक्रमण करता है, यावत्‌ – न प्रायश्चित्त स्वीकारता है, यथा – मैंने पापकर्म किया है अब मैं उस पाप की निन्दा कैसे करूँ ? मैं वर्तमान में भी पाप करता हूँ अतः मैं पाप की आलोचना कैसे करूँ ? मैं भविष्य में भी यह पाप करूँगा – अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? मेरी अपकीर्ति होगी
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 740 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ गतीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–निरयगती, तिरियगती, मनुयगती, देवगती, सिद्धिगती, गुरुगती, पणोल्लणगती, पब्भारगती।

Translated Sutra: गतियाँ आठ प्रकार की हैं, यथा – नरकगति, तिर्यंचगति, यावत्‌ सिद्धगति, गुरुगति, प्रणोदनगति और प्राग्भारगति
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