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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
उद्देशक-१ | Hindi | 492 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणिज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणए, तहप्पगारं ओग्गहं नो ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणिज्जा–थूणंसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, अन्नयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले नो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा– Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे अवग्रह को जाने, जो सचित्त, स्निग्ध पृथ्वी यावत्, जीव – जन्तु आदि से युक्त हो, तो इस प्रकार के स्थान की अवग्रह – अनुज्ञा एक बार या अनेक बार ग्रहण न करे। साधु या साध्वी यदि ऐसे अवग्रह को जाने, जो भूमि से बहुत ऊंचा हो, ठूँठ, देहली, खूँटी, ऊखल, मूसल आदि पर टिकाया हुआ एवं ठीक तरह से बंधा हुआ या गड़ा | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
उद्देशक-२ | Hindi | 493 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा, अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया ‘एत्ता, ताव’ ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।
से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ समनाण वा माहनाण वा छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा, तं नो अंतोहिंतो बाहिं णीणेज्जा, बहियाओ वा नो अंतो पवेसेज्जा, नो सुत्तं वा णं पडिबोहेज्जा, नो तेसिं Translated Sutra: साधु धर्मशाला आदि स्थानों में जाकर, ठहरने के स्थान को देखभाल कर विचारपूर्वक अवग्रह की याचना करे। वह अवग्रह की अनुज्ञा माँगते हुए उक्त स्थान के स्वामी या अधिष्ठाता से कहे कि आपकी ईच्छानुसार – जितने समय तक और जितने क्षेत्र में निवास करने की आप हमें अनुज्ञा देंगे, उतने समय तक और उतने ही क्षेत्र में हम ठहरेंगे। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-७ अवग्रह प्रतिमा |
उद्देशक-२ | Hindi | 494 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा अंबवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।
से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा, [पायए वा?]
सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं अंबं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा–अप्पंडं Translated Sutra: वह साधु या साध्वी आम के वन में ठहरना चाहे तो उस आम्रवन का जो स्वामी या अधिष्ठाता हो, उससे अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त करे उतने समय तक, उतने नियत क्षेत्र में आम्रवन में ठहरेंगे, इसी बीच हमारे समागत साधर्मिक भी इसी का अनुसरण करेंगे। अवधि पूर्ण होने के पश्चात् यहाँ से विहार कर जाएंगे। उस आम्रवन में अवग्रहानुज्ञा | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-८ [१] स्थान विषयक |
Hindi | 497 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा ठाणं ठाइत्तए, से अणुपविसेज्जा ‘गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा’, से अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणिं वा, सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणयं, तं तहप्प-गारं ठाणं–अफासुयं अणेस-णिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं। तहप्पगारे ठाणे पडिलेहित्ता Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि किसी स्थान में ठहरना चाहे तो तो वह पहले ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश में पहुँचे। वहाँ पहुँच कर वह जिस स्थान को जाने कि यह अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है, तो उस प्रकार के स्थान को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। इसी प्रकार यहाँ से उदकप्रसूत कंदादि तक का स्थानैषणा सम्बन्धी | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-९ [२] निषिधिका विषयक |
Hindi | 498 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा निसीहियं गमणाए, सेज्जं पुण निसीहियं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय मक्कडासंताणयं, तहप्पगारं निसीहियं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो चेतिस्सामि [चेएज्जा?]
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा निसीहियं गमणाए, सेज्जं पुण निसीहियं जाणेज्जा–अप्पडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयं, तहप्पगारं निसीहियं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते चेतिस्सामि [चेएज्जा?]
सेज्जं पुण निसीहियं जाणेज्जा– अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं Translated Sutra: जो साधु या साध्वी प्रासुक – निर्दोष स्वाध्याय – भूमि में जाना चाहे, वह यदि ऐसी स्वाध्याय – भूमि को जाने, जो अण्डों, जीव – जन्तुओं यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हो तो उस प्रकार की निषीधिका को अप्रासुक एवं अनैषणीय समझकर मिलने पर कहे कि मैं इसका उपयोग नहीं करूँगा। जो साधु या साध्वी यदि ऐसी स्वाध्याय – भूमि को जाने, | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक |
Hindi | 499 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चारपासवण-किरियाए उव्वाहिज्जमाणे सयस्स पायपुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाएज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग -दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए Translated Sutra: साधु या साध्वी को मल – मूत्र की प्रबल बाधा होने पर अपने पादपुञ्छनक के अभाव में साधर्मिक साधु से उसकी याचना करे। साधु या साध्वी ऐसी स्थण्डिल भूमि को जाने, जो कि अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर मल – मूत्र विसर्जन न करे। साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो प्राणी, बीज, यावत् | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक |
Hindi | 500 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ वा अंतो साहरंति, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–खंधंसि वा, पीढंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, अट्टंसि वा, पासायंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जान कि गृहपति या उसके पुत्र कन्द, मूल यावत् हरी जिसके अंदर से बाहर ले जा रहे हैं, या बाहर से भीतर ले जा रहे हैं, अथवा उस प्रकार की किन्हीं सचित्त वस्तुओं को इधर – उधर कर रहे हैं, तो वहाँ साधु – साध्वी मल – मूत्र विसर्जन न करे। ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि स्कन्ध पर, चौकी पर, मचान पर, | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक |
Hindi | 501 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सपाययं वा परपाययं वा गहाय से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा अनावायंसि असंलोयंसि अप्पपाणंसि अप्पबीअंसि अप्पहरियंसि अप्पोसंसि अप्पुदयंसि अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा उव-स्सयंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से तमायाए एगंतमवक्कमे अनावायंसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा, ज्झामथंडिलंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगा-रंसि थंडिलंसि अचित्तंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं परिट्ठवेज्जा।
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि। Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी स्वपात्रक या परपात्रक लेकर एकान्त स्थान में चला जाए, जहाँ पर न कोई आता – जाता हो और न कोई देखता हो, या जहाँ कोई रोक – टोक न हो, तथा जहाँ द्वीन्द्रिय आदि जीव – जन्तु, यावत् मकड़ी के जाले भी न हों, ऐसे बगीचे या उपाश्रय में अचित्त भूमि पर साधु या साध्वी यतनापूर्वक मल – मूत्र विसर्जन करे। उसके पश्चात् | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१३ [६] परक्रिया विषयक |
Hindi | 506 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं–नो तं साइए, नो तं नियमे।
‘से से’ परो पादाइं आमज्जेज्ज वा, ‘पमज्जेज्ज वा’ – नो तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा – नो तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं फूमेज्ज वा, रएज्ज वा–नो तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा–नो तं साइए, नो तं
नियमे।
से से परो पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो
तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा–नो तं साइए, नो तं नियमे।
से Translated Sutra: पर (गृहस्थ के द्वारा) आध्यात्मिकी मुनि के द्वारा कायव्यापार रूपी क्रिया (सांश्लेषिणी) कर्मबन्धन जननी है, (अतः) मुनि उसे मन से भी न चाहे, न उसके लिए वचन से कहे, न ही काया से उसे कराए। कदाचित् कोई गृहस्थ धर्म – श्रद्धावश मुनि के चरणों को वस्त्रादि से थोड़ा – सा पोंछे अथवा बार – बार पोंछ कर, साधु उस परक्रिया को मन से | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१४ [७] अन्योन्य क्रिया |
Hindi | 508 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नमन्नकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं फूमेज्ज वा, रएज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज Translated Sutra: साधु या साध्वी की अन्योन्यक्रिया जो कि परस्पर में सम्बन्धित है, कर्मसंश्लेषजननी है, इसलिए साधु या साध्वी इसको मन से न चाहे न वचन एवं काया से करने के लिए प्रेरित करे। साधु या साध्वी परस्पर एक दूसरे के चरणों को पोंछकर एक बार या बार – बार अच्छी तरह साफ करे तो मन से भी इसे न चाहे, न वचन और काया से करने की प्रेरणा करे। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 510 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 513 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे नाते नायपुत्ते नायकुल-विणिव्वत्ते विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसुमाले तीसं वासाइं विदेहत्ति कट्टु अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहिं देवलोगमणुपत्तेहिं समत्तपइण्णे चिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्चा वाहणं, चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सार-सावदेज्जं, विच्छड्डेत्ता विगोवित्ता विस्साणित्ता, दायारे सु णं ‘दायं पज्जभाएत्ता’, संवच्छरं दलइत्ता जे से हेमंताणं पढमेमासे पढमे पक्खे–मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिर बहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगोवगएणं अभिणिक्खमनाभिप्पाए यावि Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर, जो कि ज्ञातपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हो चूके थे, ज्ञात कुल से विनिवृत्त थे, देहासक्ति रहित थे, विदेहजनों द्वारा अर्चनीय थे, विदेहदत्ता के पुत्र थे, सुकुमार थे। भगवान महावीर तीस वर्ष तक विदेह रूप में गृह में निवास करके माता – पिता के आयुष्य पूर्ण करके देवलोक को प्राप्त हो | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 514 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरेण होहिति, अभिणिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स ।
तो अत्थ-संपदाणं, पव्वत्तई पुव्वसूराओ ॥ Translated Sutra: श्री जिनवरेन्द्र तीर्थंकर भगवान का अभिनिष्क्रमण एक वर्ष पूर्ण होते ही होगा, अतः वे दीक्षा लेने से एक वर्ष पहले सांवत्सरिक – वर्षी दान प्रारम्भ कर देते हैं। प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर एक प्रहर दिन चढ़ने तक उनके द्वारा अर्थ का दान होता है। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 515 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगा हिरण्णकोडी, अट्ठेव अणूणया सयसहस्सा ।
सुरोदयमाईयं, दिज्जइ जा पायरासो त्ति ॥ Translated Sutra: प्रतिदिन सूर्योदय से एक प्रहर पर्यन्त, जब तक वे प्रातराश नहीं कर लेते, तब तक, एक करोड़ आठ लाख से अन्यून स्वर्णमुद्राओं का दान दिया जाता है। इस प्रकार वर्ष में कुल तीन अरब, ८८ करोड़, ८० लाख स्वर्णमुद्राओं का दान भगवान ने दिया। सूत्र – ५१५, ५१६ | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 520 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण के अभिप्राय को जानकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एवं देवियाँ अपने – अपने रूप से, अपने – अपने वस्त्रों में और अपने – अपने चिह्नों से युक्त होकर तथा अपनी – अपनी समस्त ऋद्धि, द्युति और समस्त बल – समुदाय सहित अपने – अपने यान – विमानों पर चढ़ते हैं फिर सब | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 535 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ।
तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-२ पृथ्वीकाय | Gujarati | 17 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं ‘विरूवरूवेहिं सत्थेहिं’ पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसइ।
से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, Translated Sutra: પૃથ્વીકાયનો સમારંભ અર્થાત્ હિંસા, તે હિંસા કરનાર જીવોને અહિતને માટે થાય છે, અબોધી અર્થાત્ બોધી બીજના નાશને માટે થાય છે. જે સાધુ આ વાતને સારી રીતે સમજે છે, તે સંયમ – સાધનામાં તત્પર થઈ જાય છે. ભગવંત અને શ્રમણના મુખેથી ધર્મશ્રવણ કરીને કેટલાક મનુષ્યો એવું જાણે છે કે – આ પૃથ્વીકાયની હિંસા ગ્રંથિ અર્થાત્ કર્મબંધનું | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Gujarati | 24 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास।
अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे
विहिंसति।
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।
से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
से तं सुबंज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए।
इच्चत्थं गढिए लोए।
जमिणं ‘विरूवरूवेहिं Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અપ્કાયના જીવોની અનેક પ્રકારના શસ્ત્રો દ્વારા સમારંભ કરતા બીજા જીવોની પણ હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહેલ છે. અજ્ઞાની જીવ આ ક્ષણિક જીવિતના | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Gujarati | 25 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इह च खलु भो! अनगाराणं उदय-जीवा वियाहिया।
सत्थं चेत्थ अणुवीइ पासा। Translated Sutra: અહીં જિનપ્રવચનમાં નિશ્ચયથી હે શિષ્ય! સાધુઓને અપ્કાયને ‘જીવ’ રુપે જ ઓળખાવાયેલ છે. અપ્કાયના જે શસ્ત્રો છે, તેના વિશે ચિંતન કરીને જો. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-३ अप्काय | Gujarati | 31 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति।
एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति।
तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं उदय-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं उदय-सत्थं समारंभावेज्जा, उदय-सत्थं समारंभंतेवि अन्ने न समणुजाणेज्जा।
जस्सेते उदय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति,
से हु मुनी परिण्णात-कम्मे। Translated Sutra: જલકાય શસ્ત્રના સમારંભકર્તા મનુષ્ય પૂર્વોક્ત આરંભના ફળથી અજ્ઞાત છે. જેઓ જલકાય શસ્ત્રનો સમારંભ નથી કરતા એવા મુનિ આરંભોના ફળના જ્ઞાતા છે. આ જાણીને મેધાવી મુનિ અપ્કાય શસ્ત્રનો સમારંભ અર્થાત્ હિંસા જાતે કરતા નથી, બીજા પાસે કરાવતા નથી કે કરનારની અનુમોદના કરતા નથી. જે મુનિએ આ બધાં અપ્કાય શસ્ત્ર સમારંભને જાણેલા | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-४ अग्निकाय | Gujarati | 38 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि– अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे।(जाव)
अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए।
से बेमि– संति पाणा पुढवि- निस्सिया, तण- निस्सिया, पत्त- निस्सिया, कट्ठ- निस्सिया, गोमय- निस्सिया, कयवर- निस्सिया। संति संपातिमा पाणा, आहच्च संपयंति य। अगणिं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति। जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंति। जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उद्दायंति। Translated Sutra: તે હું તમને કહું છું કે – પૃથ્વી, તૃણ, પત્ર, લાકડું, છાણ અને કચરો એ સર્વેને આશ્રીને ત્રસ જીવો હોય છે, ઉડનારા જીવો પણ અગ્નિમાં પડે છે, આ જીવો અગ્નિના સ્પર્શથી સંકોચ પામે છે. અગ્નિમાં પડતા જ આ જીવો મૂર્ચ્છા પામે છે. મૂર્ચ્છા પામેલા તે મૃત્યુ પામે છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-६ त्रसकाय | Gujarati | 49 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–संतिमे तसा पाणा, तं जहा–अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भिया ओव-वाइया।
एस संसारेत्ति पवुच्चति। Translated Sutra: હું કહું છું કે – આ બધા ત્રસ પ્રાણી છે. તે આ પ્રમાણે – અંડજ, પોતજ, જરાયુજ, રસજ, સંસ્વેદજ, સંમૂર્ચ્છિમ, ઉદ્ભિજ્જ અને ઔપપાતિક. આ આઠ પ્રકારના ત્રસજીવોનો સમુદાય જ સંસાર કહેવાય છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-६ त्रसकाय | Gujarati | 54 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे।
अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए।
से बेमि–अप्पेगे अच्चाए वहंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, अप्पेगे हिययाए वहंति, अप्पेगे पित्ताए वहंति, अप्पेगे वसाए वहंति, अप्पेगे पिच्छाए वहंति, अप्पेगे पुच्छाए वहंति, अप्पेगे बालाए वहंति, अप्पेगे सिंगाए वहंति, अप्पेगे विसाणाए वहंति, अप्पेगे दंताए वहंति, अप्पेगे दाढाए वहंति, अप्पेगे नहाए वहंति, अप्पेगे ण्हारुणीए वहंति, अप्पेगे अट्ठीए वहंति, अप्पेगे अट्ठिमिंजाए वहंति, अप्पेगे अट्ठाए वहंति, अप्पेगे अणुट्ठाए Translated Sutra: હું કહું છું કે, કેટલાક લોકો દેવ – દેવીની પૂજાને માટે ત્રસકાય જીવોને હણે છે, કોઈ ચર્મને માટે, કોઈ માંસને માટે, કોઈ લોહી માટે, એ પ્રમાણે હૃદય, પિત્ત, ચરબી, પિંછા, પુચ્છ, વાળ, શીંગડું, વિષાણ, દાંત, દાઢા, નખ, સ્નાયુ, અસ્થિ, અસ્થિમિંજ માટે ત્રસકાયની હિંસા કરે છે. કોઈ સકારણ કે અકારણ હિંસા કરે છે. કોઈ મને માર્યો કે મને મારે | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-७ वायुकाय | Gujarati | 60 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे।
अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए।
से बेमि–संति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंति य। फरिसं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति। जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंति, जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उद्दायंति।
एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति।
एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति।
तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं वाउ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वाउ-सत्थ समारंभावेज्जा, नेवन्नेवाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा।
जस्सेते वाउ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया Translated Sutra: તે હું કહું છું – જે ઉડતા જીવ છે તે વાયુકાય સાથે એકઠા થઈને પીડા પામે છે. જેઓ આવા સંઘાતને પામે છે તે જીવો પરિતાપ પામે છે અને મૃત્યુ પામે છે. વાયુકાય – હિંસામાં પ્રવૃત્તને હિંસાદિ ક્રિયા કર્મબંધનું કારણ છે તેનું જ્ઞાન નથી. જેમણે આ શસ્ત્ર સમારંભનો ત્યાગ કર્યો છે તેઓ વાયુકાય હિંસાના પરિજ્ઞાતા છે. આ પ્રમાણે પરિજ્ઞા | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-३ मदनिषेध | Gujarati | 82 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो।
सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा।
सव्वेसिं जीवियं पियं।
तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा।
से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए।
तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ।
तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ।
इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ।
मुनिणा हु एयं पवेइयं।
अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए ।
अतीरंगमा Translated Sutra: મૃત્યુ માટે કોઈ અકાળ નથી, સર્વે પ્રાણીને આયુષ્ય પ્રિય છે, સર્વેને સુખ ગમે છે, દુઃખ પ્રતિકૂળ લાગે છે, બધાને જીવન પ્રિય છે, સૌ જીવવા ઇચ્છે છે. પરિગ્રહમાં આસક્ત પ્રાણી દ્વિપદ, ચતુષ્પદને કામમાં જોડીને ધન સંચય કરે છે. પોતાના, બીજાના, ઉભયના માટે તેમાં મત્ત બની અલ્પ કે ઘણું ધન ભેગું કરી તેમાં આસક્ત થઈને રહે છે. વિવિધ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-४ भोगासक्ति | Gujarati | 85 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ–अप्पा वा बहुगा वा।
से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए।
ततो से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवति।
तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा डज्झइ।
इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। Translated Sutra: સ્વ, પર કે ઉભય ત્રણ પ્રકારે તેની પાસે થોડી કે ઘણી મિલકત થાય છે. તેમાં ભોગી આસક્ત બનીને રહે છે. એ રીતે કોઈ વખતે તેની પાસે ભોગવ્યા પછી બચેલી સંપત્તિ એકઠી થાય છે. તેને પણ કોઈ વખતે સ્વજનો વહેંચી લે છે, ચોરો ચોરી લે છે, રાજા લૂંટી લે છે, નાશ કે વિનાશ પામે છે. આગ લાગવાથી તે બળી જાય છે. તે અજ્ઞાની બીજાને માટે ક્રૂર કર્મો કરતો | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Gujarati | 102 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सद्दे य फासे अहियासमाणे। निव्विंव नंदिं इह जीवियस्स।
मुनी मोनं समादाय, धुणे कम्म-सरीरगं॥ Translated Sutra: શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શજન્ય કષ્ટોને સહન કરતા હે મુનિ! આ લોકના પુદ્ગલજન્ય અર્થાત્ બાહ્ય આનંદરૂપ અસંયમ જીવિતથી વિરત થા. નિર્વેદભાવને પામ, હે મુનિ! સંયમને ગ્રહણ કરી કર્મ શરીરને ખંખેરી નાખ. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Gujarati | 131 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेज्जा दूरालइयं ।
जं जाणेज्जा दूरालइयं, तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥
पुरिसा! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि।
पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि।
सच्चस्स आणाए ‘उवट्ठिए से’ मेहावी मारं तरति।
सहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति। Translated Sutra: જે કર્મોને દૂર કરનાર છે તે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે અને જે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે તે કર્મોને દૂર કરનાર છે, એવું સમજીને હે પુરૂષ ! તું પોતાના આત્માનો નિગ્રહ કર, એમ કરવાથી તું દુઃખકર્મ) મુક્ત થઈશ. તું સત્યનું સેવન કર. કેમ કે સત્યની આજ્ઞામાં રહેનાર મેઘાવી સાધક સંસારને તરી જાય છે અને ધર્મનું યથાર્થ પાલન કરીને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा | Gujarati | 145 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘इहमेगेसिं तत्थ-तत्थ संथवो भवति। अहोववाइए फासे पडिसंवेदयंति।
चिट्ठं कूरेहिं कम्महिं चिट्ठं परिचिट्ठति ।
अचिट्ठं कूरेहिं कम्मेहिं, णोचिट्ठं परिचिट्ठति ॥
एगे वयंति अदुवा वि नाणी, नाणी वयंति अदुवा वि एगे। Translated Sutra: આ સંસારમાં કેટલાક એવા પ્રાણી છે જેને નરકાદિ દુઃખોનો પરિચય છે, તેઓ નરક આદિ સ્થાનોમાં દુઃખોનું વેદન કરે છે. અત્યંત ક્રૂર કર્મ કરવાથી અતિ ભયંકર દુઃખવાળા સ્થાનમાં ઉત્પન્ન થાય છે અને અતિ ક્રૂર કર્મ ન કરનારાઓને એવા દુઃખમય સ્થાનમાં ઉત્પન્ન થવું પડતું નથી. આ પ્રમાણે જે શ્રુત કેવળી કહે છે તે જ કેવળજ્ઞાની કહે છે, જે | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-४ अव्यक्त | Gujarati | 171 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे।
एगया गुणसमियस्स रीयतो कायसंफासमणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति।
इहलोग-वेयण वेज्जावडियं।
जं ‘आउट्टिकयं कम्मं’, तं परिण्णाए विवेगमेति।
एवं से अप्पमाएणं, विवेगं किट्टति वेयवी। Translated Sutra: તે સાધુ જતા – આવતા, અવયવોને સંકોચતા – ફેલાવતા, હિંસાદિથી નિવૃત્ત થતા પ્રમાર્જનાદિ ક્રિયા કરતા સદા ગુરુઆજ્ઞા પૂર્વક વિચરે. સદ્ગુણી અને યતનાપૂર્વક વર્તનાર મુનિના શરીરના સ્પર્શથી કદાચિત્ કોઈ પ્રાણી ઘાત પામે તો તેને આ જન્મમાં જ વેદન કરવા યોગ્ય કર્મનો બંધ થાય છે. જો કોઈ પાપ જાણીને કર્યું હોય તો તેને જ્ઞ પરિજ્ઞાથી | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Gujarati | 190 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मरणं तेसिं संपेहाए, उववायं चयणं च नच्चा ।
परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा ॥
संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया।
तामेव सइं असइं अतिअच्च उच्चावयफासे पडिसंवेदेंति।
बुद्धेहिं एयं पवेदितं।
संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो।
पाणा पाणे किलेसंति। पास लोए महब्भयं। Translated Sutra: આ ૧૬ રોગ કે તેવા અન્ય રોગ આદિથી પીડિત તે મનુષ્યોના મૃત્યુનું નિરિક્ષણ કરીને વિચાર કે – જેમને રોગ નથી તેવા દેવોને પણ જન્મ અને મરણ થાય છે. તેથીકર્મોના વિપાકને સારી રીતે વિચારી તેના ફળને કહું છું તે સાંભળો. એવા પણ પ્રાણી છે જે કર્મના વશ થઈ અંધપણું પામે છે, ઘોર અંધકારમય સ્થાનોમાં રહે છે, તે જીવો ત્યાં જ વારંવાર જન્મ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-२ कर्मविधूनन | Gujarati | 196 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अहेगे धम्म मादाय’ ‘आयाणप्पभिइं सुपणिहिए’ चरे।
अपलीयमाणे दढे।
सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी।
अइअच्च सव्वतो संगं ‘ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि।’
जयमाणे एत्थ विरते अनगारे सव्वओ मुंडे रीयंते।
जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए।
से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए वा।
पलियं पगंथे अदुवा पगंथे।
अतहेहिं सद्द-फासेहिं, इति संखाए।
एगतरे अन्नयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए।
जे य हिरी, जे य अहिरीमणा। Translated Sutra: કેટલાક લોકો ધર્મ પ્રાપ્ત કરીને ધર્મોપગરણથી યુક્ત થઈને સર્વજ્ઞ કથિત ધર્મ આચરે છે. લીધેલ પ્રતિજ્ઞામાં દૃઢ રહે છે. સર્વ આસક્તિને દુઃખમય જાણી તેનાથી દૂર રહે તે જ મહામુનિ છે. તે સર્વે પ્રપંચોને છોડી ‘‘મારું કોઈ નથી – હું એકલો છું’’ એમ વિચારી પાપક્રિયાથી નિવૃત્ત થઈ, યતના કરતો અણગાર દ્રવ્ય અને ભાવથી મુંડિત થઈ વિચરે, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन | Gujarati | 204 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नममाणा एगे जीवितं विप्परिणामेंति।
पुट्ठा वेगे णियट्ठंति, जीवियस्सेव कारणा।
णिक्खंतं पि तेसिं दुन्निक्खंतं भवति।
बालवयणिज्जा हु ते नरा, पुणो-पुनो जातिं पकप्पेंति।
अहे संभवंता विद्दायमाणा, अहमंसी विउक्कसे।
उदासीणे फरुसं वदंति।
पलियं पगंथे अदुवा पगंथे अतहेहिं।
तं मेहावी जाणिज्जा धम्मं। Translated Sutra: કેટલાક સાધકો પરીષહોથી ડરી અસંયમિત જીવન જીવવા માટે સંયમ છોડે છે. તેમની દીક્ષા કુદીક્ષા છે. કેમ કે તે સાધારણજન દ્વારા પણ તે નિંદિત થાય છે. પુનઃ પુનઃ જન્મ ધારણ કરે છે. નીચો હોવા છતાં પણ એ પોતાને વિદ્વાન માને છે કે, ‘‘જે છું તે હું જ છું’’ તેવો ગર્વ કરે છે. જે સાધક રાગ – દ્વેષ રહિત છે સાધકને કઠોર વચન કહે છે. તેમના પૂર્વ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन | Gujarati | 206 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमणेण भो! जणेण करिस्सामित्ति मण्णमाणा–‘एवं पेगे वइत्ता’,
मातरं पितरं हिच्चा, णातओ य परिग्गहं ।
‘वीरायमाणा समुट्ठाए, अविहिंसा सुव्वया दंता’ ॥
अहेगे पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे।
वसट्टा कायराजना लूसगा भवंति।
अहमेगेसिं सिलोए पावए भवइ, ‘से समणविब्भंते समणविब्भंते’।
पासहेगे समण्णागएहिं असमण्णागए, णममाणेहिं अणममाणे, विरतेहिं अविरते, दविएहिं अदविए।
अभिसमेच्चा पंडिए मेहावी णिट्ठियट्ठे वीरे आगमेणं सया परक्कमेज्जासि। Translated Sutra: કેટલાક સાધક વિચારે છે આ સ્વજનોથી મારું શું કલ્યાણ થવાનું છે? એવું માનતા અને કહેતા કેટલાક લોકો માતા, પિતા, જ્ઞાતિજન અને પરિગ્રહનો ત્યાગ કરી, વીર પુરુષ સમાન આચરણ કરતા દીક્ષા લે છે, અહિંસક બને છે, સુવ્રતધારી બને છે, જિતેન્દ્રિય બને છે. છતાં અશુભકર્મના ઉદયથી સંયમથી પતિત થઈ તે દીન બને છે, તેવા વિષયોથી પીડિત અને કાયર | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-५ उपसर्ग सन्मान विधूनन | Gujarati | 207 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से गिहेसु वा गिहंतरेसु वा, गामेसु वा गामंतरेसु वा, नगरेसु वा नगरंतरेसु वा, जणवएसु वा ‘जणवयंतरेसु वा’, संतेगइयाजना लूसगा भवति, अदुवा–फासा फुसंति ते फासे, पुट्ठो वीरोहियासए।
ओए समियदंसणे।
दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं, आइक्खे विभए किट्टे वेयवी।
से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए–संतिं, विरतिं, उवसमं, णिव्वाणं, सोयवियं,
अज्जवियं, मद्दवियं, लाघवियं, अणइवत्तियं।
सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खेज्जा। Translated Sutra: તે શ્રમણ ઘરોમાં, ઘરોની આસપાસમાં, ગામોમાં, ગામોના અંતરાલમાં, નગરોમાં, નગરોના અંતરાલમાં, જનપદોમાં, જનપદોના અંતરાલમાં, ગામ અને નગરોના અંતરાલમાં, ગામ અને જનપદોના અંતરાલમાં અથવા નગર અનેજનપદોના અંતરાલમાં વિચરતા કે કાયોત્સર્ગ સ્થિત મુનિને જોઈને કેટલાક લોકો હિંસક બની જાય છે. તેઓ ઉપસર્ગ કરે છે. ત્યારે અથવા કોઈ સંકટ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित | Gujarati | 221 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आहारोवचया देहा, परिसह-पभंगुरा।
पासगेहे सव्विंदिएहिं परिगिलायमाणेहिं। Translated Sutra: શરીર આહારથી વૃદ્ધિ પામે છે અને પરીષહોથી ક્ષીણ થાય છે. છતાં જુઓ કાયર મનુષ્ય શરીર ગ્લાન થતા સર્વ ઇન્દ્રિયોની ગ્લાનિને અનુભવે છે. તો પણ દયાવાન, રાગ – દ્વેષ રહિત ભિક્ષુ કોઇપણ સ્થિતિમાં સંયમ પાળે છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित | Gujarati | 222 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ओए दयं दयइ।
जे सन्निहाण सत्थस्स खेयण्णे।
से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खणण्णे विणयण्णे समयण्णे परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्ठाई अपडिण्णे।
दुहओ छेत्ता नियाइ। Translated Sutra: જે ભિક્ષુ કર્મરૂપ સંનિધાનના શસ્ત્ર અર્થાત્ સંયમને સારી રીતે સમજે છે તે નિપુણ ભિક્ષુ અવસરને, પોતાની શક્તિને, પરિમાણને, અભ્યાસકાળને, વિનયને તેમજ સિદ્ધાંતને સારી રીતે જાણે છે. તે ભિક્ષુ પરિગ્રહની મમતા છોડીને યથાસમય યથોચિત અનુષ્ઠાન કરી, મિથ્યા આગ્રહયુક્ત પ્રતિજ્ઞા રહિત બની, રાગદ્વેષના બંધનોનો નાશ કરી સંયમની | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Gujarati | 346 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएसु वा, पिंड-नियरेसु वा, इंद-महेसु वा, खंद-महेसु वा, रुद्द-महेसु वा, मुगुंद-महेसु वा, भूय -महेसु वा, जक्ख-महेसु वा, नाग-महेसु वा, थूभ-महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग-महेसु वा, दह-महेसु वा, णई-महेसु वा, सर-महेसु वा, सागर-महेसु वा, आगर-महेसु वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु......
बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे Translated Sutra: તે સાધુ કે સાધ્વી યાવત્ જાણે કે અશનાદિ માટે અહીં ઘણા લોકો એકઠા થયેલ છે, પિતૃ ભોજન છે કે ઇન્દ્ર – સ્કંદ – રુદ્ર – મુકુંદ – ભૂત – યક્ષ – નાગ – સ્તૂપ – ચૈત્ય – વૃક્ષ – પર્વત – ગુફા – કૂવા – તળાવ – દ્રહ – નદી – સરોવર – સાગર – આગર કે તેવા અન્ય પ્રકારના વિવિધ મહોત્સવ થઈ રહ્યા છે તેમાં શ્રમણ, બ્રાહ્મણ, અતિથિ, કૃપણ, વનીપકોને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
उद्देशक-४ | Gujarati | 356 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–मंसादियं वा, मच्छादियं वा, मंसं-खलं वा, मच्छ-खलं वा, आहेणं वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं वा हीरमाणं पेहाए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुओसा बहुउदया बहुउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगा, बहवे तत्थ समण-माहण-अतिथि-किवण-वणीमगा उवागता उवागमिस्संति, तत्थाइण्णावित्ती। नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परिय-ट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए। सेवं नच्चा तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा-संखडिं वा, संखडिं संखडि-पडियाए नो अभिसंधारेज्ज गमणाए।
से भिक्खू Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી આહાર માટે ગૃહસ્થના ઘરમાં પ્રવેશ કરીને યાવત્ એમ જાણે કે અહીં માંસ કે મત્સ્યપ્રધાન ભોજન છે, અથવા માંસ કે મત્સ્યોના ઢગલા રાખેલ છે અથવા વિવાહ સંબંધી – કન્યાવિદાયનું – મૃત કે સ્વજન સંબંધી ભોજન થઈ રહેલ છે. તે નિમિત્તે ભોજન લઈ જવાઈ રહેલ છે, માર્ગમાં ઘણા પ્રાણી, ઘણા બીજ, ઘણી લીલોતરી, ઘણા ઝાકળબિંદુ, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
उद्देशक-५ | Gujarati | 361 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: તે સાધુ કે સાધ્વી ભિક્ષા લેવા જતા એમ જાણે કે માર્ગમાં દુષ્ટ મદોન્મત્ત સાંઢ, પાડો ઊભો છે, એ જ પ્રમાણે મનુષ્ય, અશ્વ, હાથી, સિંહ, વાઘ, દીપડો, રીંછ, તરચ્છ, અષ્ટાપદ, શિયાળ, બિલાડો, કૂતરો, વરાહ, સૂવર, લોમડી, ચિત્તો, ચિલ્લલક, સાપ આદિ માર્ગમાં રહેલા હોય તો તે સીધે રસ્તે ન જતા, બીજા રસ્તેથી જાય. તે સાધુ – સાધ્વી ભિક્ષાર્થે માર્ગમાં | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
उद्देशक-५ | Gujarati | 363 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–समणं वा, माहणं वा, गामपिंडोलगं वा, अतिहिं वा पुव्वपविट्ठं पेहाए नो तेसिं संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठेज्जा।
‘केवली बूया आयाणमेयं–पुरा पेहाए तस्सट्ठाए परो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु दलएज्जा।
अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तेसिं संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठेज्जा।’से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अनावायमसंलोए चिट्ठेज्जा।
से से परो अनावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु दलएज्जा, सेयं वदेज्जा–आउसंतो Translated Sutra: તે સાધુ – સાધ્વી જો એમ જાણે કે તે ગૃહસ્થને ઘેર કોઈ શ્રમણ, બ્રાહ્મણ, ભિક્ષુક કે અતિથિ પહેલેથી પ્રવેશેલ છે, તે જોઈને તેમની સામે કે જે દ્વારેથી તેઓ નીકળતા હોય તે દ્વારે ઊભા ન રહે. પરંતુ કોઈને પહેલાં આવેલા જાણીને એકાંત સ્થાનમાં ચાલ્યા જાય, એકાંતમાં જઈને મુનિ એવા સ્થાને ઊભા રહે કે જ્યાં બીજાનું આવાગમન ન હોય, બીજા | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
उद्देशक-१० | Gujarati | 391 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ मणुण्णं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता पंतेण भोयणेण पलिच्छाएति मामेयं दाइयं संतं, दट्ठूणं सयमायए। आयरिए वा, उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा गनावच्छेइए वा। नो खलु मे कस्सइ किंचि वि दायव्वं सिया। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कट्टु– ‘इमं खलु’ इमं खलु त्ति आलोएज्जा, नो किंचि वि निगूहेज्जा। से एगइओ अन्नतरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता भद्दयं-भद्दयं भोच्चा, विवन्नं विरसमाहरइ। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। Translated Sutra: તે ભિક્ષુ ભિક્ષામાં મનોજ્ઞ ભોજન ગ્રહણ કરીને તે આહારને તુચ્છ ભોજનથી ઢાંકી દે અને એમ વિચારે કે આ મનોજ્ઞ આહાર દેખાડીશ તો આચાર્ય યાવત્ ગણાવચ્છેદક પોતે જ લઈ લેશે. આ ઉત્તમ ભોજનમાંથી મારે કોઈને કંઈ નથી આપવુ. એમ કરે તો તેમ કરનાર અને વિચારનાર સાધુ માયાસ્થાનને સ્પર્શે છે, સાધુએ આવું ન કરવું જોઈએ. પરંતુ મુનિ તે આહાર | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 398 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए, अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा, सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणयं। तहप्पगारे उवस्सए नो ‘ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा’।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं। तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं Translated Sutra: તે સાધુ કે સાધ્વી ઉપાશ્રયની ગવેષણા કરવા ઇચ્છે તો ગામ યાવત્ રાજધાનીમાં પ્રવેશીને તે જાણે કે આ ઉપાશ્રય ઇંડા યાવત્ જાળાથી યુક્ત છે, તો તેવા પ્રકારના ઉપાશ્રયમાં સ્થાન, શય્યા કે સ્વાધ્યાય ન કરે. પણ જે ઉપાશ્રયને ઇંડા યાવત્ જાળાથી રહિત જાણે તે પ્રકારના ઉપાશ્રયનું સારી રીતે પડિલેહણ – પ્રમાર્જન કરી ત્યાં સ્થાન, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-३ | Gujarati | 425 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–ससागारियं सागणियं सउदयं, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। Translated Sutra: સાધુ સાધ્વી જો એવો ઉપાશ્રય જાણે કે, આ ગૃહસ્થના સંસર્ગવાળો છે, અગ્નિ, જળથી યુક્ત છે, તો પ્રજ્ઞાવાન સાધુ નિષ્ક્રમણ, પ્રવેશ યાવત્ ધર્મ અનુચિંતાર્થે આવા ઉપાશ્રયમાં સ્થાન, શય્યાદિ ન કરે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-३ | Gujarati | 433 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं एसित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–सअंडं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं-अफासुयं अनेसणिज्जं त्ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, गरुयं, तहप्पगारं संथारगं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं Translated Sutra: કોઈ સાધુ – સાધ્વી સંથારાની ગવેષણા કરવા ઇચ્છે અને જે સંસ્તારકને ઇંડા યાવત્ કરોળીયાના જાળાથી યુક્ત જાણે, તેવા પ્રકારનો સંસ્તારક મળવા છતાં ગ્રહણ ન કરે. ૧) જો સાધુ – સાધ્વી તે સંસ્તારકને ઇંડા આદિથી રહિત જાણે પણ તે ભારે હોય તો પણ ગ્રહણ ન કરે. ૨) સાધુ – સાધ્વી સંથારાને ઇંડાદિથી રહિત અને હલકો જાણે તો પણ અપ્રાતિહારિક | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-३ | Gujarati | 438 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तिए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं नो पच्चप्पिणेज्जा। Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી સંથારો પાછો આપવા ઇચ્છે, પણ તે જાણે કે સંથારો ઇંડા યાવત્ જાળવાળો છે, તો તેવો સંથારો પાછો ન આપે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-३ | Gujarati | 439 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय, आयाविय-आयाविय, विणिद्धणिय-विणिद्धणिय तओ संजयामेव पच्चप्पिणेज्जा। Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી સંથારો પાછો આપવા ઇચ્છે અને તેને ઇંડાદિથી રહિત જાણે તો પડિલેહણ – પ્રમાર્જન કરી, તપાવી, ખંખેરી જયણા – પૂર્વક આપે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
उद्देशक-१ | Gujarati | 445 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुट्ठे, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया अहुणुब्भिन्ना, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहु-ओसा बहु-उदया बहु-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, अणभिक्कंता पंथा, नो विण्णाया मग्गा, सेवं नच्चा नो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा। Translated Sutra: સાધુ – સ્વામી જાણે કે વર્ષાકાળ આવ્યો, ઘણી વર્ષા થઈ, ઘણા જીવજંતુ ઉત્પન્ન થયા છે, ઘણા બીજો ઊગ્યા છે, તે માર્ગ મધ્યે ઘણા પ્રાણી, ઘણા બીજ યાવત્ કરોળીયાના જાળા થયા છે, માર્ગે ચાલવું કઠિન છે, માર્ગ બરાબર દેખાતો નથી. એમ જાણીને ગામ – ગામ વિહાર ન કરવો, જયણાપૂર્વક એક સ્થાને વર્ષાવાસ વ્યતીત કરવું જોઈએ. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
उद्देशक-१ | Gujarati | 447 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुणेवं जाणेज्जा–चत्तारि मासा वासाणं वीइक्कंता, हेमंताण य पंच-दस-रायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहु-ओसा बहु-उदया बहु-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, नो जत्थ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य। सेवं नच्चा नो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
अह पुणेवं जाणेज्जा–चत्तारि मासा वासाणं वीइक्कंता, हेमंताण य पंच-दस-रायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गा अप्पंडा अप्पपाणा अप्पबीआ अप्पहरिया अप्पोसा अप्पुदया अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य। सेवं नच्चा तओ Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી જાણે કે વર્ષાવાસના ચાર માસ વીતી ગયા છે, હેમંત ઋતુના પણ પાંચ – દસ દિવસ વીતી ગયા છે, પણ માર્ગમાં ઘણા પ્રાણી યાવત્ જાળા છે, ઘણા શ્રમણ – બ્રાહ્મણનું આવાગમન થયું નથી, એમ જાણીને સાધુ ગામ – ગામ વિહાર ન કરે, પરંતુ જો એમ જાણે કે ચાર માસ પૂરા થયા છે યાવત્ માર્ગમાં ઇંડા યાવત્ જાળા નથી, ઘણા શ્રમણ – બ્રાહ્મણનું | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
उद्देशक-१ | Gujarati | 453 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नावं दुरूहमाणे नो नावाए पुरओ दुरुहेज्जा, नो नावाए मग्गओ दुरुहेज्जा, नो नावाए मज्झतो दुरुहेज्जा, नो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय, अंगुलिए उवदंसिय-उवदंसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्झाएज्जा।
से णं परो नावा-गतो नावा-गयं वएज्जा–आउसंतो! समणा! एयं ता तुमं नावं उक्कसाहि वा, वोक्कसाहि वा, खिवाहि वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसाहि। नो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा।
से णं परो नावागओ नावागयं वएज्जा– आउसंतो! समणा! नो संचाएसि तुमं नावं उक्कसित्तए वा, वोक्कसित्तए वा, खिवित्तए वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसित्तए। आहर एतं नावाए रज्जूयं, सयं चेव णं Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી નૌકા પર ચઢે ત્યારે નૌકાના આગલા ભાગમાં ન બેસે, પાછલા ભાગમાં ન બેસે, મધ્ય ભાગે ન બેસે, નૌકાના બાજુના ભાગને પકડી – પકડીને, આંગળી ચીંધી – ચીંધીને, શરીરને ઊંચું – નીચું કરીને ન જુએ. જો નાવિક નૌકામાં ચઢેલ સાધુને કહે કે, હે આયુષ્માન્ શ્રમણ ! આ નૌકાને આગળ ખેંચો કે પાછળ ખેંચો, ચલાવો કે દોરડાઓ ખેંચો. આ સાંભળી |