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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 541 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अणिच्चमावासमुवेंति जंतुणो, पलोयए सोच्चमिदं अणुत्तरं । विऊसिरे विण्णु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिग्गहं चए ॥

Translated Sutra: संसार के समस्त प्राणी जिन शरीर आदि में आत्माएं आवास प्राप्त करती हैं, वे सब स्थान अनित्य हैं। सर्वश्रेष्ठ मौनीन्द्र प्रवचन में कथित यह वचन सूनकर गहराई से पर्यालोचन करे तथा समस्त भयों से मुक्त बना हुआ विवेकी पुरुष आगारिक बंधनों का व्युत्सर्ग कर दे, एवं आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर दे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 546 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता । महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमं व तेजो तिदिसं पगासया ॥

Translated Sutra: षट्‌काय के त्राता, अनन्त ज्ञानादि से सम्पन्न राग – द्वेष विजेता, जिनेन्द्र भगवान से सभी एकेन्द्रियादि भाव – दिशाओं में रहने वाले जीवों के लिए क्षेम स्थान, कर्म – बन्धन से दूर करने में समर्थ महान गुरु – महाव्रतों का उनके लिए निरूपण किया है। जिस प्रकार तेज तीनों दिशाओं के अन्धकार को नष्ट करके प्रकाश कर देता है,
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Gujarati 524 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठेण उ भत्तेणं, अज्झवसाणेण सोहणेण जिनो । लेसाहिं विसुज्झंतो, आरुहइ उत्तमं सीयं ॥

Translated Sutra: તે ભગવંત છઠ્ઠ ભક્તની તપસ્યાથી યુક્ત, સુંદર અધ્યવસાયવાળા, વિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા હતા. તેઓ ઉક્ત શિબિકામાં આરૂઢ થયા.
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ अनीयश अदि

अध्ययन-८ गजसुकुमाल

Hindi 13 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी छ अनगारा भायरो सहोदरा होत्था–सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम -कुंडलभद्दलया नलकूबरसमाणा। तए णं ते छ अनगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तृतीय वर्ग के आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जंबू ! उस काल, उस समय में द्वारका नगरीमें प्रथम अध्ययनमें किये गये वर्णन के अनुसार यावत्‌ अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान पधारे। उस काल, उस समय भगवान नेमिनाथ के अंतेवासी – शिष्य छ मुनि सहोदर भाई थे। वे समान आकार, त्वचा और समान अवस्थावाले प्रतीत होते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 17 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं? जाणगसरीरदव्वावस्सयं– आवस्सए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं वव-गय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा– अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी। से तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं।

Translated Sutra: ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक क्या है ? आवश्यक इस पद के अर्थाधिकार को जानने वाले के चैतन्य से रहित, आयुकर्म के क्षय होने से प्राणों से रहित, आहार – परिणतिजनित वृद्धि से रहित, ऐसे जीवविप्रमुक्त शरीर को शैयागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धशिलागत देखकर कोई कहे – ‘अहो ! इस शरीररूप पुद्‌गलसंघात ने जिनोपदिष्ट भाव से आवश्यक पद
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 18 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वावस्सयं? भवियसरीरदव्वावस्सयं–जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्स-एणं जिनदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं।

Translated Sutra: भव्यशरीरद्रव्यावश्यक क्या है ? समय पूर्ण होने पर जो जीव जन्मकाल में योनिस्थान से बाहर निकला और उसी प्राप्त शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार भविष्य में आवश्यक पद को सीखेगा, किन्तु अभी सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यावश्यक है। इसका कोई दृष्टान्त है ? यह मधुकुंभ होगा, यह घृतकुंभ होगा। यह
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 325 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं निक्खेवे? निक्खेवे तिविहे पन्नत्ते, तं–ओहनिप्फन्ने नामनिप्फन्ने सुत्तालावगनिप्फन्ने। से किं तं ओहनिप्फन्ने? ओहनिप्फन्ने चउव्विहे पन्नत्ते, तं–अज्झयणे अज्झीणे आए ज्झवणा। से किं तं अज्झयणे? अज्झयणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झयणे भावज्झयणे। नाम-ट्ठवणाओ गयाओ। से किं तं दव्वज्झयणे? दव्वज्झयणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे? आगमओ दव्वज्झयणे–जस्स णं अज्झयणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं

Translated Sutra: निक्षेप किसे कहते हैं ? निक्षेप तीन प्रकार हैं। यथा – ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न, सूत्रालापकनिष्पन्न। ओघनिष्पन्ननिक्षेप के चार भेद हैं। उनके नाम हैं – अध्ययन, अक्षीण, आय, क्षपणा। अध्ययन के चार प्रकार हैं, यथा – नाम अध्ययन, स्थापना अध्ययन, द्रव्य अध्ययन, भाव अध्ययन। नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववत्‌
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 329 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झीणे। से तं भावज्झीणे। से तं अज्झीणे। से किं तं आए? आए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामाए ठवणाए दव्वाए भावाए। नाम-ट्ठवणाओ गयाओ। से किं तं दव्वाए? दव्वाए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वाए? आगमओ दव्वाए–जस्स णं आए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नाम-समं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु। नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ

Translated Sutra: इस प्रकार से नोआगमभाव – अक्षीण का स्वरूप जानना चाहिए। आय क्या है ? आय के चार प्रकार हैं। यथा – नाम – आय, स्थापना – आय, द्रव्य – आय, भाव – आय। नाम – आय और स्थापना – आय का ‘वर्ण’ पूर्ववत्‌ जानना। द्रव्य – आय के दो भेद हैं – आगम से, नोआगम से। जिसने आय यह पद सीख लिया हे, स्थिर कर लिया है किन्तु उपयोग रहित होने से द्रव्य हैं
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 22 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं? लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं–जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिरनुकंपा हया इव उद्दामा गया इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा तुप्पोट्ठा पंडुरपाउरणा जिनाणं अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं उभओकालं आवस्सयस्स उवट्ठंति। से तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीरवतिरत्तं दव्वावस्सयं। से त्तं नोआगमओ दव्वावस्सयं। से तं दव्वावस्सयं।

Translated Sutra: लोकोत्तरिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो श्रमण के गुणों से रहित हों, छह काय के जीवों के प्रति अनुकम्पा न होने के कारण अश्व की तरह उद्दाम हों, हस्तिवत्‌ निरंकुश हों, स्निग्ध पदार्थों के लेप से अंग – प्रत्यंगों को कोमल, सलौना बनाते हों, शरीर को धोते हों, अथवा केशों का संस्कार करते हों, ओठों को मुलायम रखने के लिए मक्खन
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 39 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीरदव्वसुयं? जाणगसरीरदव्वसुयं–सुए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा–अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं सुए त्ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी। से तं जाणगसरीरदव्वसुयं।

Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – द्रव्यश्रुत क्या है ? श्रुतपद के अर्थाधिकार के ज्ञाता के व्यपगत, च्युत, च्यावित, त्यक्त, जीवरहित शरीर को शय्यागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धाशिला देखकर कोई कहे – अहो ! इस शरीररूप परिणत पुद्‌गलसंघात द्वारा जिनोपदेशित भाव से ‘श्रुत’ इस पद की गुरु से वाचना ली थी, प्रज्ञापित, प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 40 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वसुयं? भवियसरीरदव्वसुयं–जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं सुए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्वसुयं।

Translated Sutra: भव्यशरीरद्रव्यश्रुत क्या है ? समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि में से निकला और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर – द्रव्यश्रुत है। इसका दृष्टान्त ? ‘यह मधुपट है, यह घृतघट है’ ऐसा कहा जाता है।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 70 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवक्कमे? उवक्कमे छव्वीहे पन्नत्ते तं जहा–१. नामोवक्कमे २. ठवणोवक्कमे ३. दव्वोवक्कमे ४. खेत्तोवक्कमे ५. कालोवक्कमे ६. भावोवक्कमे। से नामट्ठवणाओ गयाओ । से किं तं दव्वोवक्कमे? दव्वोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वोवक्कमे? आगमओ दव्वोवक्कमे–जस्स णं उवक्कमे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो

Translated Sutra: उपक्रम क्या है ? उपक्रम के छह भेद हैं। नाम – उपक्रम, स्थापना – उपक्रम, द्रव्य – उपक्रम, क्षेत्र – उपक्रम, काल – उपक्रम, भाव – उपक्रम। नाम और स्थापना – उपक्रम का स्वरूप नाम एवं स्थापना आवश्यक के समान जानना द्रव्य – उपक्रम क्या है ? दो प्रकार का है – आगमद्रव्य – उपक्रम, नोआगमद्रव्य – उपक्रम इत्यादि पूर्ववत्‌ जानना
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 82 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामानुपुव्वी? नामानुपुव्वी– जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आनुपुव्वी त्ति नामं कज्जइ। से तं नामानुपुव्वी। से किं तं ठवणानुपुव्वी? ठवणानुपुव्वी– जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा आनुपुव्वी त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणानुपुव्वी। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। से किं तं दव्वानुपुव्वी? दव्वानुपुव्वी दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ

Translated Sutra: नाम (स्थापना) आनुपूर्वी क्या है ? नाम और स्थापना आनुपूर्वी का स्वरूप नाम और स्थापना आवश्यक जैसा जानना। द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप भी ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के पहले तक सभेद द्रव्यावश्यक के समान जानना चाहिए। ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार की
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 152 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं पुण नामं तिविहं, इत्थी पुरिसं नपुंसगं चेव । एएसिं तिण्हंपि य, अंतम्मि परूवणं वोच्छं ॥

Translated Sutra: उस त्रिनाम के पुनः तीन प्रकार हैं। स्त्रीनाम, पुरुषनाम और नपुंसकनाम। इन तीनों प्रकार के नामों का बोध उनके अंत्याक्षरो द्वारा होता है। पुरुषनामों के अंत में ‘आ, ई, ऊ, ओ’ इन चार में से कोई एक वर्ण होता है तथा स्त्रीनामों के अंत में ‘ओ’ को छोड़कर शेष तीन वर्ण होते हैं। जिन शब्दों के अन्त में अं, इं या उं वर्ण हो, उनको
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 161 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए। से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य। से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए। से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य। से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे

Translated Sutra: छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं। औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक। औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। औदयिक और उदयनिष्पन्न। औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैं – जीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न। जीवोदयनिष्पन्न
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Hindi 213 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नवनामे? नवनामे–नव कव्वरसा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: नवनाम क्या है ? काव्य के नौ रस नवनाम कहलाते हैं। जिनके नाम हैं – वीररस, शृंगाररस, अद्‌भुतरस, रौद्ररस, व्रीडनकरस, बीभत्सरस, हास्यरस, कारुण्यरस और प्रशांतरस। सूत्र – २१३, २१४
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 219 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विम्हयकरो अपुव्वो, ऽनुभूयपुव्वो य जो रसो होइ । हरिसविसायुप्पत्तिलक्खणो अब्भुओ नाम ॥

Translated Sutra: पूर्व में कभी अनुभव में नहीं आये अथवा अनुभव में आये किसी विस्मयकारी – आश्चर्यकारक पदार्थ को देखकर जो आश्चर्य होता है, वह अद्‌भुतरस है। हर्ष और विषाद की उत्पत्ति अद्‌भुतरस का लक्षण है। इस जीवलोकमें इससे अधिक अद्‌भुत और क्या हो सकता है कि जिनवचन द्वारा त्रिकाल सम्बन्धी समस्त पदार्थ जान लिये जाते हैं। सूत्र
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 220 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुयतरमिह एत्तो, अन्नं किं अत्थि जीवलोगम्मि । जं जिनवयणेनत्था, तिकालजुत्ता वि नज्जंति ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २१९
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 282 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-उद्धार-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जति। से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे। से किं तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे? सुहुमे उद्धारपलिओवमे से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले– एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ। ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स

Translated Sutra: व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे किसी प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है। ये दोनों केवल प्ररूपणामात्र के लिए हैं। सूक्ष्म उद्धार पल्योपम क्या है ? इस प्रकार है – धान्य के पल्य के समान कोई एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एवं कुछ अधिक तीन योजन की परिधिवाला पल्य हो। इस पल्य
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 299 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए। नेरइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए। असुरकुमाराणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए। एवं तिन्नि-तिन्नि एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा। पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एए चेव तिन्नि सरीरा भाणियव्वा। वाउकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार – औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण। नैरयिकों के तीन शरीर हैं। – वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर। असुरकुमारों के तीन शरीर हैं। वैक्रिय, तैजस और कार्मण। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना। पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन, – औदारिक, तैजस और
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 309 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे। से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य। से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे। से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे। से किं तं पायसाहम्मे?

Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 310 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे? नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं। से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि। तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि। तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि। तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि। तं

Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन्‌ ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 311 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा। से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा। से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया

Translated Sutra: संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 312 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरवर-कवाड-वच्छा, फलिहभुया दुंदुहि-त्थणियघोसा । सिरिवच्छंकियवच्छा, सव्वे वि जिणा चउव्वीसं ॥

Translated Sutra: सभी चौबीस जिन – तीर्थंकर प्रधान – उत्तम नगर के कपाटों के समान वक्षःस्थल, अर्गला के समान भुजाओं, देवदुन्दुभि या स्तनित के समान स्वर और श्रीवत्स से अंकित वक्षःस्थल वाले होते हैं।
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 18 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वावस्सयं? भवियसरीरदव्वावस्सयं–जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्स-एणं जिनदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं।

Translated Sutra: ભવ્ય શરીર દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સમય પૂર્ણ થતાં જે જીવે યોનિસ્થાનમાંથી બહાર નીકળી જન્મને ધારણ કર્યો છે તેવું બાળક, તે પ્રાપ્ત શરીર સમુદાય દ્વારા જિનોપદિષ્ટ ભાવાનુસાર આવશ્યકપદ ભવિષ્યમાં શીખશે, વર્તમાનમાં શીખતો નથી, જીવના તે શરીરને ભવ્યશરીર દ્રવ્ય આવશ્યક કહે છે. તે માટે કોઈ દૃષ્ટાંત છે ? આ મધુકુંભ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 22 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं? लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं–जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिरनुकंपा हया इव उद्दामा गया इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा तुप्पोट्ठा पंडुरपाउरणा जिनाणं अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं उभओकालं आवस्सयस्स उवट्ठंति। से तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीरवतिरत्तं दव्वावस्सयं। से त्तं नोआगमओ दव्वावस्सयं। से तं दव्वावस्सयं।

Translated Sutra: લોકોત્તરિક દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે સાધુ શ્રમણગુણોથી રહિત હોય, છકાય જીવ પ્રત્યે અનુકંપા રહિત હોવાથી જેની ચાલ અશ્વની જેમ ઉદ્દામ હોય, હાથીની જેમ નિરંકુશ હોય, સ્નિગ્ધ પદાર્થના માલિશ દ્વારા અંગ – પ્રત્યંગને કોમળ રાખતા હોય, પાણીથી વારંવાર શરીરને ધોતા હોય અથવા તેલથી વાળ – શરીરને સંસ્કારિત કરતા હોય,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 70 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवक्कमे? उवक्कमे छव्वीहे पन्नत्ते तं जहा–१. नामोवक्कमे २. ठवणोवक्कमे ३. दव्वोवक्कमे ४. खेत्तोवक्कमे ५. कालोवक्कमे ६. भावोवक्कमे। से नामट्ठवणाओ गयाओ । से किं तं दव्वोवक्कमे? दव्वोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वोवक्कमे? आगमओ दव्वोवक्कमे–जस्स णं उवक्कमे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो

Translated Sutra: [૧] ઉપક્રમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉપક્રમના છ ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામોપક્રમ, ૨. સ્થાપનોપક્રમ, ૩. દ્રવ્યોપક્રમ, ૪. ક્ષેત્રોપક્રમ, ૫. કાલોપક્રમ, ૬. ભાવોપક્રમ. [૨] નામ અને સ્થાપના ઉપક્રમનું સ્વરૂપ, નામસ્થાપના આવશ્યક પ્રમાણે જાણવુ અર્થાત્‌ કોઈ સચેતન કે અચેતન વસ્તુનું ઉપક્રમ એવુ નામ રાખવુ, તે નામ ઉપક્રમ અને કોઈ પદાર્થમાં
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 82 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामानुपुव्वी? नामानुपुव्वी– जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आनुपुव्वी त्ति नामं कज्जइ। से तं नामानुपुव्वी। से किं तं ठवणानुपुव्वी? ठवणानुपुव्वी– जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा आनुपुव्वी त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणानुपुव्वी। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। से किं तं दव्वानुपुव्वी? दव्वानुपुव्वी दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ

Translated Sutra: નામાનુપૂર્વી અને સ્થાપનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નામ અને સ્થાપના આનુપૂર્વીના સ્વરૂપ નામ અને સ્થાપના આવશ્યકની જેમ જાણવુ. દ્રવ્યાનુપૂર્વીના સ્વરૂપ વર્ણનમાં ભવ્યશરીર દ્રવ્યાનુપૂર્વી સુધીનું સભેદ વર્ણન દ્રવ્ય આવશ્યક પ્રમાણે જાણવુ. ‘જાવ’ શબ્દથી તે સૂચિત કર્યું છે.. જ્ઞાયકશરીર – ભવ્યશરીર વ્યતિરિક્ત
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 161 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए। से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य। से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए। से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य। से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे

Translated Sutra: [૧] છ નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? છ નામમાં છ પ્રકારના ભાવ કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઔદારિક, ૨. ઔપશમિક, ૩. ક્ષાયિક, ૪. ક્ષાયોપશમિક, ૫. પારિણામિક, ૬. સાન્નિપાતિક. [૨] ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔદયિક ભાવના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ઉદય અને ઉદયનિષ્પન્ન. ઉદય – ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જ્ઞાનાવરણીયાદિ આઠ પ્રકારના
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 220 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुयतरमिह एत्तो, अन्नं किं अत्थि जीवलोगम्मि । जं जिनवयणेनत्था, तिकालजुत्ता वि नज्जंति ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૧૯
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 329 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झीणे। से तं भावज्झीणे। से तं अज्झीणे। से किं तं आए? आए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामाए ठवणाए दव्वाए भावाए। नाम-ट्ठवणाओ गयाओ। से किं तं दव्वाए? दव्वाए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वाए? आगमओ दव्वाए–जस्स णं आए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नाम-समं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु। नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૯. [૧] આયનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આય ના ચાર પ્રકાર છે, ૧. નામ આય, ૨. સ્થાપના આય, ૩. દ્રવ્ય આય, ૪. ભાવ આય. [૨] નામ આય અને સ્થાપના આયનું સ્વરૂપ પૂર્વોક્ત નામ – સ્થાપના આવશ્યક પ્રમાણે જાણવું. દ્રવ્ય આયનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્ય આયના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આગમથી, ૨. નોઆગમથી. આગમતઃ દ્રવ્ય આયનું સ્વરૂપ કેવું છે
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रथमा प्ररुपणा

Hindi 1 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देसिक्कदेसविरओ सम्मद्दिट्ठी मरिज्ज जो जीवो । तं होइ बालपंडियमरणं जिनसासने भणियं ॥

Translated Sutra: छ काय की हिंसा का एक हिस्सा जो त्रस की हिंसा, उसका एक देश जो मारने की बुद्धि से निरपराधी जीव की निरपेक्षपन से हिंसा, इसलिए और झूठ बोलना आदि से निवृत्त होनेवाला जो समकित दृष्टि जीव मृत्यु पाता है तो उसे जिनशासन में (पाँच मृत्यु में से) बाल पंड़ित मरण कहा है।
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रथमा प्ररुपणा

Hindi 2 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंच य अणुव्वयाइं सत्त उ सिक्खा उ देस-जइधम्मो । सव्वेण व देसेण व तेण जुओ होइ देसजई ॥

Translated Sutra: जिनशासन में सर्व विरति और देशविरति में दो प्रकार का यतिधर्म है, उसमें देशविरति का पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मिलाने से श्रावक के बारह व्रत बताए हैं। उन सभी व्रत से या फिर एक दो आदि व्रत समान उस के देश आराधन से जीव देशविरति होते हैं।
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रथमा प्ररुपणा

Hindi 10 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतसासने दिट्ठं । इत्तो पंडियमरणं तमहं वोच्छं समासेणं ॥

Translated Sutra: जिनशासन के लिए यह बाल पंड़ित मरण कहा गया है, अब मैं पंड़ितमरण संक्षेप में कहता हूँ।
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Hindi 12 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स । सेसाणं च जिनाणं सगणहराणं च सव्वेसिं ॥

Translated Sutra: जिनो में वृषभ समान वर्द्धमानस्वामी को और गणधर सहित बाकी सभी तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Hindi 17 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो । सद्दहे जिनपन्नत्तं पच्चक्खामि य पावगं ॥

Translated Sutra: सभी दुःख क्षय हुए हैं जिनके ऐसे सिद्ध को और अरिहंत को नमस्कार हो, जिनेश्वरों ने कहे हुए तत्त्व मैं सद्दहता हूँ, पापकर्म को पच्चक्खाण करता हूँ।
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Hindi 18 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नमोऽत्थु धुयपावाणं सिद्धाणं च महेसिणं । संथारं पडिवज्जामि जहा केवलिदेसियं ॥

Translated Sutra: जिन के पाप क्षय हुए हैं, ऐसे सिद्ध को और महा ऋषि को नमस्कार हो, जिस तरह से केवलीओंने बताया है वैसा संथारा मैं अंगीकार करता हूँ।
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

असमाधिमरणं

Hindi 44 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणे अनुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेणं । असबल असंकिलिट्ठा ते हुंति परित्तसंसारी ॥

Translated Sutra: जिन वचन में रागवाले, जो गुरु का वचन भाव से स्वीकार करते हैं, दूषण रहित हैं और संक्लेशरहित होते हैं, वे अल्प संसारवाले होते हैं। जो जिनवचन को नहीं जानते वो बेचारे (आत्मा) – बाल मरण और कईं बार बिना ईच्छा से मरण पाते हैं। सूत्र – ४४, ४५
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

असमाधिमरणं

Hindi 45 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामगाणि मरणाणि । मरिहिंति ते वराया जे जिनवयणं न याणंति ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

पंडितमरण एवं आराधनादि

Hindi 58 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयं सव्वुवएसं जिणदिट्ठं सद्दहामि तिविहेणं । तस-थावरखेमकरं पारं निव्वाणमग्गस्स ॥

Translated Sutra: इस प्रकार से त्रस और स्थावर का कल्याण करनेवाला, मोक्ष मार्ग का पार दिलानेवाला, जिनेश्वर ने बताए हुए सर्व उपदेश का मन, वचन, काया से मैं श्रद्धा करता हूँ।
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

पंडितमरण एवं आराधनादि

Hindi 64 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लद्धं अलद्धपुव्वं जिनवयणसुभासियं अमियभूयं । गहिओ सुग्गइमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि ॥

Translated Sutra: जिनेश्वर भगवान के आगम में कहा गया अमृत समान और पहले नहीं पानेवाला (आत्मतत्त्व) मैंने पाया है। और शुभ गति का मार्ग ग्रहण किया है इसलिए मैं मरण से नहीं डरता।
Aturpratyakhyan આતુર પ્રત્યાખ્યાન Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Gujarati 12 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स । सेसाणं च जिनाणं सगणहराणं च सव्वेसिं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨. જિનવર – વૃષભ વર્દ્ધમાન સ્વામીને તથા ગણધર સહિત બાકીના બધા તીર્થંકરોને હું નમસ્કાર કરું છું. સૂત્ર– ૧૩. હવે હું સર્વ પ્રાણીઓનો આરંભ, અસત્ય વચન(જુઠું બોલવું), સર્વ અદત્તાદાન(ચોરી), મૈથુન અને પરિગ્રહના પચ્ચક્‌ખાણ કરું છું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૨, ૧૩
Aturpratyakhyan આતુર પ્રત્યાખ્યાન Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Gujarati 17 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो । सद्दहे जिनपन्नत्तं पच्चक्खामि य पावगं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪
Aturpratyakhyan આતુર પ્રત્યાખ્યાન Ardha-Magadhi

प्रथमा प्ररुपणा

Gujarati 1 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देसिक्कदेसविरओ सम्मद्दिट्ठी मरिज्ज जो जीवो । तं होइ बालपंडियमरणं जिनसासने भणियं ॥

Translated Sutra: એક દેશવિરત સમ્યગ્‌દૃષ્ટિ જીવ જે મરે, તેને જિનશાસનમાં બાલપંડિત મરણ કહેલું છે.
Aturpratyakhyan આતુર પ્રત્યાખ્યાન Ardha-Magadhi

असमाधिमरणं

Gujarati 44 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणे अनुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेणं । असबल असंकिलिट्ठा ते हुंति परित्तसंसारी ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯
Aturpratyakhyan આતુર પ્રત્યાખ્યાન Ardha-Magadhi

असमाधिमरणं

Gujarati 45 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामगाणि मरणाणि । मरिहिंति ते वराया जे जिनवयणं न याणंति ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯
Aturpratyakhyan આતુર પ્રત્યાખ્યાન Ardha-Magadhi

पंडितमरण एवं आराधनादि

Gujarati 64 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लद्धं अलद्धपुव्वं जिनवयणसुभासियं अमियभूयं । गहिओ सुग्गइमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૪. જિનવચન સુભાષિત અમૃતરૂપ અને પૂર્વે નહીં પામેલ એવું આત્મતત્ત્વ પામીને મેં શુભ ગતિનો માર્ગ ગ્રહણ કર્યો છે, તેથી હું મરણથી બીતો નથી. સૂત્ર– ૬૫. ધીરપુરુષે પણ મરવું પડે છે અને કાયરપુરુષે પણ મરવું પડે છે. બંનેએ પણ નિશ્ચયે મરવાનું છે, તો ધીરપણે મરવું એ નિશ્ચે સુંદર છે. સૂત્ર– ૬૬. શીલવાળાએ પણ મરવું પડે, શીલ
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 2 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–चिराईए पुव्वपुरिस पन्नत्ते पोराणे सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते सज्झए सघंटे सपडागाइपडागमंडिए सलोमहत्थे कयवेयद्दिए लाउल्लोइय महिए गोसीससरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचुंलितले उवचिय-वंदनकलसे वंदनघड सुकय तोरण पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त विउल वट्ट वग्घारिय मल्लदाम-कलावे पंचवण्ण सरससुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु पवरकुंदुरुक्क तुरक्क धूव मघमघेंत गंधुद्धुयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग पवग कहग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय

Translated Sutra: उस चम्पा नगरी के बाहर ईशान कोण में पूर्णभद्र नामक चैत्य था। वह चिरकाल से चला आ रहा था। पूर्व पुरुष उसकी प्राचीनता की चर्चा करते रहते थे। वह सुप्रसिद्ध था। वह चढ़ावा, भेंट आदि के रूप में प्राप्त सम्पत्ति से युक्त था। वह कीर्तित था, न्यायशील था। वह छत्र, ध्वजा, घण्टा तथा पताका युक्त था। छोटी और बड़ी झण्डियों से
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 10 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे– ... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 11 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठ तुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवर परिहीए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव कोणियस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी– जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया!

Translated Sutra: प्रवृत्ति – निवेदन को जब यह बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने अपने मन में आनन्द तथा प्रीति का अनुभव किया। सौम्य मनोभाव व हर्षातिरेक से उसका हृदय खिल उठा। उसने स्नान किया, नित्य – नैमित्तिक कृत्य किये, कौतुक, तिलक, प्रायश्चित्त, मंगल – विधान किया, शुद्ध, प्रवेश्य – उत्तम वस्त्र भली भाँति पहने, थोड़े
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