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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Gujarati 467 View Detail
Mool Sutra: दर्शनज्ञाने विनय-श्चारित्रतप-औपचारिको विनयः। पञ्चविधः खलु विनयः, पञ्चमगतिनायको भणितः।।२९।।

Translated Sutra: દર્શનવિનય, જ્ઞાનવિનય, ચારિત્રવિનય, તપવિનય, ઔપચારિકવિનય - આ પાંચ પ્રકારનો વિનયતપ છે, જે પંચમ ગતિ અર્થાત્ મોક્ષમાં લઈ જાય છે.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Gujarati 515 View Detail
Mool Sutra: प्रत्येकं प्रत्येकं निजकं, कर्मफलमनुभवताम्। कः कस्य जगति स्वजनः? कः कस्य वा परजनो भणितः।।११।।

Translated Sutra: (એકત્વ.) જ્યાં પ્રત્યેક વ્યક્તિ પોતપોતાનાં કર્મફળ ભોગવે છે એવા આ જગતમાં કોને સ્વજન ગણવો અનો કોને પરજન?
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Gujarati 525 View Detail
Mool Sutra: जरामरणवेगेन,डह्यमानानां प्राणिनाम्। धर्मो द्वीपः प्रतिष्ठा च, गतिः शरणमुत्तमम्।।२१।।

Translated Sutra: (ધર્મ.) જન્મ-જરા-મરણના પ્રવાહમાં તણાતા જીવો માટે ધર્મ જ દરિયા વચ્ચેના દ્વીપ સમાન છે, આધાર છે, આશરો છે અને શ્રેષ્ઠ શરણ છે.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Gujarati 534 View Detail
Mool Sutra: कृष्णा नीला कापोता, तिस्रोऽप्येता अधर्मलेश्याः। एताभिस्तिसृभिरपि जीवो, दुर्गतिमुपपद्यते बहुशः।।४।।

Translated Sutra: કૃષ્ણ, નીલ અને કપોત એ ત્રણ લેશ્યાઓ અશુભ છે. આ ત્રણ લેશ્યાઓ જીવને અધોગતિમાં લઈ જાય છે.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Gujarati 535 View Detail
Mool Sutra: तेजः पद्मा शुक्ला, तिस्रोऽप्येता धर्मलेश्याः। एताभिस्तिसृभिरपि जीवः, सुगतिमुपपद्यते बहुशः।।५।।

Translated Sutra: તેજો, પદ્‌મ અને શુક્લ-આ ત્રણ લેશ્યાઓ શુભ છે. આ ત્રણ લેશ્યાઓ જીવને સદ્ગતિમાં લઈ જાય છે.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Gujarati 587 View Detail
Mool Sutra: परद्रव्यात् दुर्गतिः, स्वद्रव्यात् खलु सुगतिः भवति। इति ज्ञात्वा स्वद्रव्ये, कुरुत रतिं विरतिं इतरस्मिन्।।२१।।

Translated Sutra: પરદ્રવ્યની આસક્તિથી દુર્ગતિ થાય છે, સ્વદ્રવ્યની રુચિથી સદ્ગતિ થાય છે. એમ જાણીને સ્વદ્રવ્યમાં - આત્મામાં લીન બનો, પરદ્રવ્યથી વિરક્ત બનો.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Gujarati 622 View Detail
Mool Sutra: अलाबु च एरण्डफल-मग्निधूम इषुर्धनुर्विप्रमुक्तः। गतिः पूर्वप्रयोगेणैवं, सिद्धानामपि गतिस्तु।।३५।।

Translated Sutra: પત્થર વગેરે ભારના કારણે પાણીમાં ડૂબેલું તુંબડું ભાર નીકળી જતાં પાણી ઉપર આવી તરવા લાગે છે; એરંડિયાના ફળ સૂકાઈને ફાટે છે ત્યારે બી ઉછળીને ઉપર ઉડે છે; અગ્નિનો ધૂમાડો હમેશાં ઉપરની તરફ જાય છે; ધનુષ્યમાંથી છૂટેલું તીર તીવ્રગતિથી સીધું જાય છે - આ બધાંની ગતિ
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४३. समापनसूत्र Gujarati 747 View Detail
Mool Sutra: आत्मानं यः जानाति यश्च लोकं यः आगतिं नागतिं च। यः शाश्वतं जानाति अशाश्वतं च जातिं मरणं च च्यवनोपपातम्।।

Translated Sutra: જે પોતાને જાણે છે, જે લોકને જાણે છે, આગતિ - ગતિ, શાશ્વત - અશાશ્વત, જન્મ - મરણ, ચ્યવન - ઉપપાત, આત્માની નિમ્નતા - ઉચ્ચતા, આસ્રવ, સંવર, દુઃખ અને દુઃખનો નાશ - આ સઘળું જે જાણે છે તે જ સાચા આચારમાર્ગનું-ક્રિયામાર્ગનું નિરૂપણ કરી શકે છે. સંદર્ભ ૭૪૭-૭૪૮
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४३. समापनसूत्र Gujarati 749 View Detail
Mool Sutra: लब्धमलब्धपूर्वं, जिनवचन-सुभाषितं अमृतभूतम्। गृहीतः सुगतिमार्गो, नाहं मरणाद् बिभेमि।।५।।

Translated Sutra: અમૃત સમાન આ જિનવચન, જે પહેલાં કદી પ્રાપ્ત થયું ન હતું તે હવે મને મળ્યું છે. મેં સન્માર્ગ ગ્રહણ કરી લીધો છે; હવે મને કશાનો - મરણનો પણ - ભય નથી.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४४. वीरस्तवन Gujarati 751 View Detail
Mool Sutra: स सर्वदर्शी अभिभूतज्ञानी, निरामगन्धो धृतिमान् स्थितात्मा। अनुत्तरः सर्वजगति विद्वान्, ग्रन्थादतीतः अभयोऽनायुः।।२।।

Translated Sutra: એ ભગવાન સર્વદર્શી હતા, પ્રત્યક્ષજ્ઞાની હતા, નિર્મળ ચારિત્ર્યવાન હતા; ધૈર્યવાન, સ્થિર, જગતના સર્વોત્તમ વિદ્વાન, પરિગ્રહથી પર, અભય અને જન્મમરણથી મુક્ત હતા.
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१. मङ्गलसूत्र Hindi 7 View Detail
Mool Sutra: घनघातिकर्ममथनाः, त्रिभुवनवरभव्यकमलमार्तण्डाः। अर्हाः (अर्हन्तः) अनन्तज्ञानिनः, अनुपमसौख्या जयन्तु जगति।।

Translated Sutra: सघन घातिकर्मों का आलोडन करनेवाले, तीनों लोकों में विद्यमान भव्यजीवरूपी कमलों को विकसित करनेवाले सूर्य, अनन्तज्ञानी और अनुपम सुखमय अर्हतों की जगत् में जय हो।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

५. संसारचक्रसूत्र Hindi 45 View Detail
Mool Sutra: अध्रुवेऽशाश्वते, संसारे दुःखप्रचुरके। किं नाम भवेत् तत् कर्मकं, येनाहं दुर्गतिं न गच्छेयम्।।१।।

Translated Sutra: अध्रुव, अशाश्वत और दुःख-बहुल संसार में ऐसा कौन-सा कर्म है, जिससे मैं दुर्गति में न जाऊँ।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

५. संसारचक्रसूत्र Hindi 52 View Detail
Mool Sutra: यः खलु संसारस्थो, जीवस्ततस्तु भवति परिणामः। परिणामात् कर्म, कर्मतः भवति गतिषु गतिः।।८।।

Translated Sutra: संसारी जीव के (राग-द्वेषरूप) परिणाम होते हैं। परिणामों से कर्म-बंध होता है। कर्म-बंध के कारण जीव चार गतियों में गमन करता है-जन्म लेता है। जन्म से शरीर और शरीर से इन्द्रियाँ प्राप्त होती हैं। उनसे जीव विषयों का ग्रहण (सेवन) करता है। उससे फिर राग-द्वेष पैदा होता है। इस प्रकार जीव संसारचक्र में परिभ्रमण करता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

५. संसारचक्रसूत्र Hindi 53 View Detail
Mool Sutra: गतिमधिगतस्य देहो, देहादिन्द्रियाणि जायन्ते। तैस्तु विषयग्रहणं, ततो रागो वा द्वेषो वा।।९।।

Translated Sutra: कृपया देखें ५२; संदर्भ ५२-५४
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

७. मिथ्यात्वसूत्र Hindi 67 View Detail
Mool Sutra: हा ! यथा मोहितमतिना, सुगतिमार्गमजानता। भीमे भवकान्तारे, सुचिरं भ्रान्तं भयंकरे।।१।।

Translated Sutra: हा ! खेद है कि सुगति का मार्ग न जानने के कारण मैं मूढ़मति भयानक तथा घोर भव-वन में चिरकाल तक भ्रमण करता रहा।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१२. अहिंसासूत्र Hindi 158 View Detail
Mool Sutra: तुङ्गं न मन्दरात्, आकाशाद्विशालकं नास्ति। यथा तथा जगति जानीहि, धर्मोऽहिंसासमो नास्ति।।१२।।

Translated Sutra: जैसे जगत् में मेरु पर्वत से ऊँचा और आकाश से विशाल और कुछ नहीं है, वैसे ही अहिंसा के समान कोई धर्म नहीं है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१५. आत्मसूत्र Hindi 182 View Detail
Mool Sutra: चतुर्गतिभवसंभ्रमणं, जातिजरामरण-रोगशोकाश्च। कुलयोनिजीवमार्गणा-स्थानानि जीवस्य नो सन्ति।।६।।

Translated Sutra: शुद्ध आत्मा में चतुर्गतिरूप भव-भ्रमण, जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक तथा कुल, योनि, जीवस्थान और मार्गणास्थान नहीं होते।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१६. मोक्षमार्गसूत्र Hindi 199 View Detail
Mool Sutra: पुण्यमपि यः समिच्छति, संसारः तेन ईहितः भवति। पुण्यं सुगतिहेतुः, पुण्यक्षयेण एव निर्वाणम्।।८।।

Translated Sutra: जो पुण्य की इच्छा करता है, वह संसार की ही इच्छा करता है। पुण्य सुगति का हेतु (अवश्य) है, किन्तु निर्वाण तो पुण्य के क्षय से ही होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१९. सम्यग्ज्ञानसूत्र Hindi 249 View Detail
Mool Sutra: सम्यक्त्वरत्नभ्रष्टा, जानन्तो बहुविधानि शास्त्राणि। आराधनाविरहिता, भ्रमन्ति तत्रैव तत्रैव।।५।।

Translated Sutra: (किन्तु) सम्यक्त्वरूपी रत्न से शून्य अनेक प्रकार के शास्त्रों के ज्ञाता व्यक्ति भी आराधनाविहीन होने से संसार में अर्थात् नरकादिक गतियों में भ्रमण करते रहते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२३. श्रावकधर्मसूत्र Hindi 315 View Detail
Mool Sutra: विरताः परिग्रहात्-अपरिमिताद्-अनन्ततृष्णात्। बहुदोषसंकुलात्, नरकगतिगमनपथात्।।१५।।

Translated Sutra: अपरिमित परिग्रह अनन्ततृष्णा का कारण है, वह बहुत दोषयुक्त है तथा नरकगति का मार्ग है। अतः परिग्रह-परिमाणाणुव्रती विशुद्धचित्त श्रावक को क्षेत्र-मकान, सोना-चाँदी, धन-धान्य, द्विपद-चतुष्पद तथा भण्डार (संग्रह) आदि परिग्रह के अंगीकृत परिमाण का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। संदर्भ ३१५-३१६
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 404 View Detail
Mool Sutra: दुर्लभा तु मुधादायिनः, मुधाजीविनोऽपि दुर्लभाः। मुधादायिनः मुधाजीविनः, द्वावपि गच्छतः सुगतिम्।।२१।।

Translated Sutra: मुधादायी-निष्प्रयोजन देनेवाले--दुर्लभ हैं और मुधाजीवी--भिक्षा पर जीवन यापन करनेवाले--भी दुर्लभ हैं। मुधादायी और मुधाजीवी दोनों ही साक्षात् या परम्परा से सुगति या मोक्ष प्राप्त करते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 467 View Detail
Mool Sutra: दर्शनज्ञाने विनय-श्चारित्रतप-औपचारिको विनयः। पञ्चविधः खलु विनयः, पञ्चमगतिनायको भणितः।।२९।।

Translated Sutra: दर्शनविनय, ज्ञानविनय, चारित्रविनय, तपविनय और औपचारिकविनय--ये विनय तप के पाँच भेद कहे गये हैं, जो पंचमगति अर्थात् मोक्ष में ले जाते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 515 View Detail
Mool Sutra: प्रत्येकं प्रत्येकं निजकं, कर्मफलमनुभवताम्। कः कस्य जगति स्वजनः? कः कस्य वा परजनो भणितः।।११।।

Translated Sutra: यहाँ प्रत्येक जीव अपने-अपने कर्मफल को अकेला ही भोगता है। ऐसी स्थिति में यहाँ कौन किसका स्वजन है और कौन किसका परजन ?
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 525 View Detail
Mool Sutra: जरामरणवेगेन,डह्यमानानां प्राणिनाम्। धर्मो द्वीपः प्रतिष्ठा च, गतिः शरणमुत्तमम्।।२१।।

Translated Sutra: जरा और मरण के तेज प्रवाह में बहते-डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है तथा उत्तम शरण है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 526 View Detail
Mool Sutra: मानुष्यं विग्रहं लब्ध्वा, श्रुतिर्धर्मस्य दुर्लभा। यं श्रुत्वा प्रतिपद्यन्ते, तपः क्षान्तिमहिंस्रताम्।।२२।।

Translated Sutra: (प्रथम तो चतुर्गतियों में भ्रमण करनेवाले जीव को मनुष्य-शरीर ही मिलना दुर्लभ है, फिर) मनुष्य-शरीर प्राप्त होने पर भी ऐसे धर्म का श्रवण तो और भी कठिन है, जिसे सुनकर तप, क्षमा और अहिंसा को प्राप्त किया जाय।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 534 View Detail
Mool Sutra: कृष्णा नीला कापोता, तिस्रोऽप्येता अधर्मलेश्याः। एताभिस्तिसृभिरपि जीवो, दुर्गतिमुपपद्यते बहुशः।।४।।

Translated Sutra: कृष्ण, नील और कापोत ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध दुर्गतियों में उत्पन्न होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 535 View Detail
Mool Sutra: तेजः पद्मा शुक्ला, तिस्रोऽप्येता धर्मलेश्याः। एताभिस्तिसृभिरपि जीवः, सुगतिमुपपद्यते बहुशः।।५।।

Translated Sutra: पीत (तेज), पद्म और शुक्ल ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 587 View Detail
Mool Sutra: परद्रव्यात् दुर्गतिः, स्वद्रव्यात् खलु सुगतिः भवति। इति ज्ञात्वा स्वद्रव्ये, कुरुत रतिं विरतिं इतरस्मिन्।।२१।।

Translated Sutra: पर-द्रव्य अर्थात् धन-धान्य, परिवार व देहादि में अनुरक्त होने से दुर्गति होती है और स्व-द्रव्य अर्थात् अपनी आत्मा में लीन होने से सुगति होती है। ऐसा जानकर स्व-द्रव्य में रत रहो और पर-द्रव्य से विरत।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 622 View Detail
Mool Sutra: अलाबु च एरण्डफल-मग्निधूम इषुर्धनुर्विप्रमुक्तः। गतिः पूर्वप्रयोगेणैवं, सिद्धानामपि गतिस्तु।।३५।।

Translated Sutra: जैसे मिट्टी से लिप्त तुम्बी जल में डूब जाती है और मिट्टी का लेप दूर होते ही ऊपर तैरने लग जाती है अथवा जैसे एरण्ड का फल धूप से सूखने पर फटता है तो उसके बीज ऊपर को ही जाते हैं अथवा जैसे अग्नि या धूम की गति स्वभावतः ऊपर की ओर होती है अथवा जैसे धनुष से छूटा हुआ बाण पूर्व-प्रयोग से गतिमान् होता है, वैसे ही सिद्ध जीवों
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 633 View Detail
Mool Sutra: न च गच्छति धर्मास्तिकायः, गमनं न करोत्यन्यद्रव्यस्य। भवति गतेः स प्रसरो, जीवानां पुद्गलानां च।।१०।।

Translated Sutra: धर्मास्तिकाय स्वयं गमन नहीं करता और न अन्य द्रव्यों का गमन कराता है। वह तो जीवों और पुद्गलों की गति में उदासीन कारण है। यही धर्मास्तिकाय का लक्षण है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४३. समापनसूत्र Hindi 747 View Detail
Mool Sutra: आत्मानं यः जानाति यश्च लोकं यः आगतिं नागतिं च। यः शाश्वतं जानाति अशाश्वतं च जातिं मरणं च च्यवनोपपातम्।।

Translated Sutra: जो आत्मा को जानता है, लोक को जानता है, आगति और अनागति को जानता है, शाश्वत-अशाश्वत, जन्म-मरण, चयन और उपपाद को जानता है, आस्रव और संवर को जानता है, दुःख और निर्जरा को जानता है, वही क्रियावाद का अर्थात् सम्यक् आचार-विचार का कथन कर सकता है। संदर्भ ७४७-७४८
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४३. समापनसूत्र Hindi 749 View Detail
Mool Sutra: लब्धमलब्धपूर्वं, जिनवचन-सुभाषितं अमृतभूतम्। गृहीतः सुगतिमार्गो, नाहं मरणाद् बिभेमि।।५।।

Translated Sutra: जो मुझे पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ, वह अमृतमय सुभाषितरूप जिनवचन आज मुझे उपलब्ध हुआ है और तदनुसार सुगति का मार्ग मैंने स्वीकार किया है। अतः अब मुझे मरण का कोई भय नहीं है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४४. वीरस्तवन Hindi 751 View Detail
Mool Sutra: स सर्वदर्शी अभिभूतज्ञानी, निरामगन्धो धृतिमान् स्थितात्मा। अनुत्तरः सर्वजगति विद्वान्, ग्रन्थादतीतः अभयोऽनायुः।।२।।

Translated Sutra: वे भगवान् महावीर सर्वदर्शी, केवलज्ञानी, मूल और उत्तरगुणों सहित विशुद्ध चारित्र का पालन करनेवाले, धैर्यवान्, स्थिर, संपूर्णविश्व में अनुपम विद्वान् और ग्रन्थातीत अर्थात् अपरिग्रही थे, अभय थे और आयुकर्म से रहित थे।
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-१

Hindi 1 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोग-पज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियट्ट-च्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णुणा सव्व-दरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउका- मेणं

Translated Sutra: हे आयुष्मन्‌ ! उन भगवान ने ऐसा कहा है, मैने सूना है। [इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के अन्तिम समय में विद्यमान उन श्रमण भगवान महावीर ने द्वादशांग गणिपिटक कहा है, वे भगवान] – आचार आदि श्रुतधर्म के आदिकर हैं (अपने समय में धर्म के आदि प्रणेता हैं), तीर्थंकर हैं, (धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक हैं)। स्वयं सम्यक्‌ बोधि को
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-१७

Hindi 42 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तरसविहे असंजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायअसंजमे आउकायअसंजमे तेउकायअसंजमे वाउकायअसंजमे वणस्सइकायअसंजमे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चउरिंदियअसंजमे पंचिं-दियअसंजमे अजीवकायअसंजमे पेहाअसंजमे उपेहाअसंजमे अवहट्टुअसंजमे अप्पमज्जणा असंजमे मणअसंजमे वइअसंजमे कायअसंजमे। सत्तरसविहे संजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायसंजमे आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वणस्सइकायसंजमे बेइंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चउरिंदियसंजमे पंचिंदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उपेहासंजमे अवहट्टुसंजमे पमज्ज-णासंजमे मणसंजमे वइसंजमे कायसंजमे। मानुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: सत्तरह प्रकार का असंयम है। पृथ्वीकाय – असंयम, अप्काय – असंयम, तेजस्काय – असंयम, वायुकाय – असंयम, वनस्पतिकाय – असंयम, द्वीन्द्रिय – असंयम, त्रीन्द्रिय – असंयम, चतुरिन्द्रिय – असंयम, पंचेन्द्रिय – असंयम, अजीवकाय – असंयम, प्रेक्षा – असंयम, उपेक्षा – असंयम, अपहृत्य – असंयम, अप्रमार्जना – असंयम, मनःअसंयम, वचन – असंयम,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-२५

Hindi 59 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मिच्छादिट्ठिविगलिंदिए णं अपज्जत्तए संकिलिट्ठपरिणामे नामस्स कम्मस्स पणवीसं उत्तर पयडीओ निबंधति, तं जहा– तिरियगतिनामं विगलिंदियजातिनामं ओरालियसरीरनामं तेअगसरीरनामं कम्मगसरीरनामं हुंडसंठाणनामं ओरालियसरीरंगोवंगनामं सेवट्टसंघयणनामं वण्णनामं गंधनामं रसनामं फासनामं तिरियानुपुव्विनामं अगरुयलहुयनामं उवघायनामं तसनामं बादरनामं अपज्जत्तय- नामं पत्तेयसरीरनामं अथिरनामं असुभनामं दुभगनामं अनादेज्जनामं अजसोकित्तिनामं निम्माणनामं गंगासिंधुओ णं महानईओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहओ घडमुहपवित्तिएणं मुत्तावलि-हारसंठिएणं पवातेणं पवडंति। रत्तारत्तवतीओ

Translated Sutra: संक्लिष्ट परिणाम वाले अपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय जीव नामकर्म की पच्चीस उत्तर प्रकृतियों को बाँधते हैं। जैसे – तिर्यग्गतिनाम, विकलेन्द्रिय जातिनाम, औदारिकशरीरनाम, तैजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम, हुंडकसंस्थान नाम, औदारिकसाङ्गोपाङ्ग नाम, सेवार्त्तसंहनन नाम, वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम, स्पर्शनाम,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-२८

Hindi 62 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे पन्नत्ते, तं जहा– मासियाआरोवणा, सपंचरायमासिया आरोवणा, सदसरायमासिया आरोवणा, सपन्नरस-रायमासिया आरोवणा, सवीसइरायमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायमासिया आरोवणा। दोमासिया आरोवणा, सपंचरायदोमासिया आरोवणा, सदसरायदोमासिया आरोवणा, सपन्नरसरायदोमासिया आरोवणा, सवीसइरायदोमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायदोमासिया आरोवणा। तेमासिया आरोवणा, सपंचरायतेमासिया आरोवणा, सदसरायतेमासिया आरोवणा, सपन्नरसरायतेमासिया आरोवणा, सवीसइरायतेमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायतेमासिया आरोवणा। चउमासियाआरोवणा, सपंचरायचउमासियाआरोवणा, सदसरायचउमासियाआरोवणा, सपन्नरसरायचउमासिया

Translated Sutra: आचारप्रकल्प अट्ठाईस प्रकार का है। मासिकी आरोपणा, सपंचरात्रिमासिकी आरोपणा, सदशरात्रि – मासिकी आरोपणा, सपंचदशरात्रिमासिकी आरोपणा, सविशतिरात्रिकोमासिकी आरोपणा, सपंचविशत्तिरात्रि – मासिकी आरोपणा। इसी प्रकार छ द्विमासिकी आरोपणा, ६ त्रिमासिकी आरोपणा, ६ चतुर्मासिकी आरोपणा, उपघातिका आरोपणा, अनुपघातिका आरोपणा,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-३२

Hindi 108 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बत्तीसं देविंदा पन्नत्ता, तं जहा– चमरे बली धरणे भूयाणंदे वेणुदेवे वेणुदाली हरि हरिस्सहे अग्गिसहे अग्गिमानवे पुन्ने विसिट्ठे जलकंते जलप्पभे अमियगती अमितवाहणे वेलंबे पभंजणे घोसे महाघोसे चंद सूरे सक्के ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभे लंतए महासुक्के सहस्सारे पाणए अच्चुए। कुंथुस्स णं अरहओ बत्तीसहिया बत्तीसं जिणसया होत्था। सोहम्मे कप्पे बत्तीसं विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता। रेवइनक्खत्ते बत्तीसइतारे पन्नत्ते। बत्तीसतिविहे नट्टे पन्नत्ते। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं

Translated Sutra: बत्तीस देवेन्द्र कहे गए हैं। जैसे – १. चमर, २. बली, ३. धरण, ४. भूतानन्द, यावत्‌ (५. वेणुदेव, ६. वेणुदाली ७. हरिकान्त, ८. हरिस्सह, ९. अग्निशिख, १०. अग्निमाणव, ११. पूर्ण, १२. वशिष्ठ, १३. जलकान्त, १४. जलप्रभ, १५. अमितगति, १६. अमितवाहन, १७. वैलम्ब, १८. प्रभंजन) १९. घोष, २०. महाघोष, २१. चन्द्र, २२. सूर्य, २३. शक्र, २४. ईशान, २५. सनत्कुमार, यावत्‌
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-३६

Hindi 112 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छत्तीसं उत्तरज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– विणयसुयं परीसहो चाउरंगिज्जं असंखयं अकाममरणिज्जं पुरिसविज्जा उरब्भिज्जं काविलिज्जं नमिपव्वज्जा दुमपत्तयं बहुसुयपूया हरिएसिज्जं चित्तसंभूयं उसुकारिज्जं सभिक्खुगं समाहिठाणाइं पावसमणिज्जं संजइज्जं मिगचारिया अनाहपव्वज्जा समुद्दपालिज्जं रहनेमिज्जं गोयमकेसिज्जं समितीओ जण्णइज्जं सामायारी खलुंकिज्जं मोक्खम-ग्गगई अप्पमाओ तवोमग्गो चरणविही पमायठाणाइं कम्मपगडी लेसज्झयणं अनगारमग्गे जीवा-जीवविभत्ती य। चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुहम्मा छत्तीसं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स

Translated Sutra: उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस अध्ययन हैं। जैसे – विनयश्रुत, परीषह, चातुरङ्गीय, असंस्कृत, अकाममरणीय, क्षुल्लकनिर्ग्रन्थीय, औरभ्रीय, कापिलीय, नमिप्रव्रज्या, द्रुमपत्रक, बहुश्रुतपूजा, हरिकेशीय, चित्तसंभूतीय, इषुकारीय, सभिक्षु, समाधिस्थान, पापश्रमणीय, संयतीय, मृगापुत्रीय, अनाथप्रव्रज्या, समुद्रपालीय, रथनेमीय,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-४२

Hindi 118 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्त सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे। जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं बायालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाते अंतरे पन्नत्ते। एवं चउद्दिसिं पि दओभासे संखे दयसीमे य। कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा, बायालीसं सूरिया पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा। संमुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता। नामे णं कम्मे बायालीसविहे पन्नत्ते, तं जहा–

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर कुछ अधिक बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध यावत्‌ (कर्म – मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और) सर्व दुःखों से रहित हुए। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की जगती की बाहरी परिधि के पूर्वी चरमान्त भाग से लेकर वेलन्धर नागराज के गोस्तूभ नामक आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग तक मध्यवर्ती क्षेत्र
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-५९

Hindi 137 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चंदस्स णं संवच्छरस्स एगमेगे उदू एगूणसट्ठिं राइंदियाणि राइंदियग्गेणं पन्नत्ते। संभवे णं अरहा एगूणसट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं अगारमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारिअं पव्वइए। मल्लिस्स णं अरहओ एगूणसट्ठिं ओहिनाणिसया होत्था।

Translated Sutra:
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 216 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सूयगडे? सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइ ज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति। सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जर-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमय-मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स किरिया वादिसतस्स चउरासीए वेनइय-वाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेनइयवाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अन्नदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति।

Translated Sutra: सूत्रकृत क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? सूत्रकृत के द्वारा स्वसमय सूचित किये जाते हैं, पर – समय सूचित किये जाते हैं, स्वसमय और परसमय सूचित किये जाते हैं, जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं, जीव और अजीव सूचित किये जाते हैं, लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोकअलोक सूचित किया जाता है। सूत्रकृत
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 190 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] महासुक्क-सहस्सारेसु–दोसु कप्पेसु विमाणा अट्ठ-अट्ठ जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमे कंडे अट्ठसु जोयणसएसु वाणमंतर-भोमेज्ज-विहारा पन्नत्ता। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं गइकल्लाणाणं ठिइ-कल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिआ अनुत्तरोववाइयसंपया होत्था। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठहिं जोयणसएहिं सूरिए चारं चरति। अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स अट्ठ सयाइं वाईणं सदेवमणुयासुरम्मि लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था।

Translated Sutra: महाशुक्र और सहस्रार इन दो कल्पों में विमान आठ सौ योजन ऊंचे हैं। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम कांड के मध्यवर्ती आठ सौ योजनों में वानव्यवहार भौमेयक देवों के विहार कहे गए हैं। श्रमण भगवान महावीर के कल्याणमय गति और स्थिति वाले तथा भविष्य में मुक्ति प्राप्त करने वाले अनु – त्तरीपपातिक मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 222 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसि-ज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिनसामि-सासनवरे संजम-पइण्ण-पालण-धिइ-मइ-ववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-निसहा-निसट्ठाणं, घोर परीसह-पराजिया-ऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं,

Translated Sutra: ज्ञाताधर्मकथा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात अर्थात्‌ उदाहरणरूप मेघकुमार आदि पुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, दीक्षापर्याय, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 227 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए? विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति। ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव। तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि। से किं तं दुहविवागाणि? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति। सेत्तं दुहविवागाणि। से किं तं सुहविवागाणि? सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया

Translated Sutra: विपाकसूत्र क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है – दुःख विपाक और सुख – विपाक। इनमें दुःख – विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख – विपाक में भी दश अध्ययन हैं। यह दुःख विपाक क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दुःख – विपाक में
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 232 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: –सेत्तं पुव्वगए। से किं तं अणुओगे? अणुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य। से किं तं मूलपढमाणुओगे? मूलपढमाणुओगे–एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चव-णाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलनाणु-प्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो, सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ–संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिमाणं, जिणमनपज्जव-ओहिनाणी सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पातोवगता य जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा मुनिवरुत्तमा तम-रओघ-विप्पमुक्का

Translated Sutra: वह अनुयोग क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। जैसे – मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या है ? मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवंतों के पूर्वभव, देवलोकगमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिबिका, प्रव्रज्या, तप, भक्त, केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 233 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिंसु। इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टंति। इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति। इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवइंसु। इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्ने काले परित्ता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवयंति। इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले

Translated Sutra: इस द्वादशाङ्ग गणि – पिटक की सूत्र रूप, अर्थरूप और उभयरूप आज्ञा का विराधन करके अर्थात्‌ दुराग्रह के वशीभूत होकर अन्यथा सूत्रपाठ करके, अन्यथा अर्थकथन करके और अन्यथा सूत्रार्थ – उभय की प्ररूपणा करके अनन्त जीवों ने भूतकाल में चतुर्गतिरूप संसार – कान्तार (गहन वन) में परिभ्रमण किया है, इस द्वादशाङ्ग गणि – पिटक की
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 252 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! आउगबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउगबंधे पन्नत्ते, तं जहा– जाइनामनिधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके ठिइ-नामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके। नेरइयाणं भंते! कइविहे आउगबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– जातिनाम निधत्ताउके गइनामनिधत्ताउके ठिइनाम-निधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके। एवं जाव वेमाणियत्ति। निरयगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ते। एवं तिरियगई मनुस्सगई देवगई। सिद्धिगई णं भंते! केवइयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आयुकर्म का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! आयुकर्म का बन्ध छह प्रकार का कहा गया है। जैसे – जातिनामनिधत्तायुष्क, गतिनामनिधत्तायुष्क, स्थितिनामनिधत्तायुष्क, प्रदेशनामनिधत्तायुष्क, अनुभागनामनिधत्तायुष्क और अवगाहनानामनिधत्तायुष्क। भगवन्‌ ! नारकों का आयुबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 327 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला होत्था, तं जहा–उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-नयन-कंता ओहबला अतिबला महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाण-महणा सानुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल-पलाव-हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय-वच्छला सरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया मानुम्मान-पमाण-पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंग-सुंदरंगा ससि-सोमागार-कंत-पिय-दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धओ-व्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु-विकड्ढगा

Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप में इस भारतवर्ष के इस अवसर्पिणीकाल में नौ दशारमंडल (बलदेव और वासुदेव समुदाय) हुए हैं। सूत्रकार उनका वर्णन करते हैं – वे सभी बलदेव और वासुदेव उत्तम कुल में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुष थे, तीर्थंकरादि शलाका – पुरुषों के मध्य – वर्ती होने से मध्यम पुरुष थे, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम और सामान्य
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय-१७

Gujarati 42 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तरसविहे असंजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायअसंजमे आउकायअसंजमे तेउकायअसंजमे वाउकायअसंजमे वणस्सइकायअसंजमे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चउरिंदियअसंजमे पंचिं-दियअसंजमे अजीवकायअसंजमे पेहाअसंजमे उपेहाअसंजमे अवहट्टुअसंजमे अप्पमज्जणा असंजमे मणअसंजमे वइअसंजमे कायअसंजमे। सत्तरसविहे संजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायसंजमे आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वणस्सइकायसंजमे बेइंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चउरिंदियसंजमे पंचिंदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उपेहासंजमे अवहट्टुसंजमे पमज्ज-णासंजमे मणसंजमे वइसंजमे कायसंजमे। मानुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: ૧. અસંયમ(સાવધાનીપૂર્વક યમ – નિયમોનું પાલન ન કરવું તે)૧૭ – ભેદે કહ્યો છે – ૧.પૃથ્વીકાય, અપ્‌કાય, તેઉકાય, વાયુકાય, વનસ્પતિકાય, ૬.બેઇન્દ્રિય, તેઇન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય, પંચેન્દ્રિય, અજીવકાય, ૧૧.પ્રેક્ષા, ઉપેક્ષા, અપહૃત્ય, અપ્રમાર્જન, ૧૫. મન, વચન, કાયા એ ૧૭નો અસંયમ. ૨. સંયમ (સાવધાનીપૂર્વક યમ – નિયમોનું પાલન કરવું તે) ૧૭
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