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Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 95 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे अन्नया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरसा कंठे मालकडे आवद्धमणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-पालंब-पलंबमाण-कडि-सुत्तय-सुकयसोभे पिणिद्धगेवेज्जे अंगुलेज्जगल-लियंगय-ललियकयाभरणे जाव कप्परुक्खए चेव अलंकित-विभूसिते नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! जाइं इमाइं रायगिहस्स

Translated Sutra: तब उस राजा श्रेणिक – बिंबिसारने एक दिन स्नान किया, बलिकर्म किया, विघ्नशमन के लिए ललाट पर तिलक किया, दुःस्वप्न दोष निवारणार्थ प्रायश्चित्तादि विधान किये, गले में माला पहनी, मणि – रत्नजड़ित सुवर्ण के आभूषण धारण किये, हार – अर्धहार – त्रिसरोहार पहने, कटिसूत्र पहना, सुशोभित हुआ। आभूषण व मुद्रिका पहनी, यावत्‌ कल्पवृक्ष
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 96 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव पज्जुवासेति। तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता नामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्कमित्ता एवं वदासि– जस्स णं देवाणुप्पिया

Translated Sutra: उस काल उस समय में धर्म के आदिकर तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए, यावत्‌ गुणशील चैत्य में पधारे। उस समय राजगृह नगर के तीन रास्ते, चार रस्ते, चौक में होकर, यावत्‌ पर्षदा नीकली, यावत्‌ पर्युपासना करने लगी। श्रेणिक राजा के सेवक अधिकारी श्रमण भगवान महावीर के पास आए, प्रदक्षिणा की, वन्दन – नमस्कार किया,
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 98 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रहजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि जाव से वि पच्चप्पिणति। तए णं से सेणिए राया जाणसालियं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! धम्मियं जानप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेहि, उवट्ठवेत्ता मम एतमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तते णं से जानसालिए सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जानसालं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जाणाइं पच्चुवेक्खति, पच्चुवेक्खित्ता

Translated Sutra: उसके बाद श्रेणिक राजाने सेनापति को बुलाकर कहा – शीघ्र ही रथ, हाथी, घोड़ा एवं योद्धायुक्त चतुरंगिणी सेना को तैयार करो यावत्‌ मेरी यह आज्ञापूर्वक कार्य हो जाने का निवेदन करो। उसके बाद राजा श्रेणिक ने यानशाला अधिकारी को बुलाकर श्रेष्ठ धार्मिक रथ सुसज्ज करने की आज्ञा दी। यानशाला अधिकारी भी हर्षित – संतुष्ट होकर
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 101 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया चेल्लणाए देवीए सद्धिं धम्मियं जानप्पवरं दुरूढे। सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उववाइ गमेणं नेयव्वं जाव पज्जुवासइ एवं चेल्लणावि जाव महत्तरगपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति सेणियं रायं पुरओ काउं ठितिया चेव जाव पज्जुवासति। तए णं समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रन्नो भिंभिसारस्स चेल्लणाए देवीए तीसे य महतिमहालियाए परिसाए–इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जतिपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए जाव धम्मो कहितो। परिसा पडिगया। सेणितो राया पडिगतो।

Translated Sutra: तब श्रेणिक राजा चेल्लणादेवी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ में आरूढ़ हुआ यावत्‌ भगवान महावीर के पास आए यावत्‌ भगवन्‌ को वन्दन नमस्कार करके पर्युपासना करने लगे। उस वक्त भगवान महावीर ने ऋषि, यति, मुनि, मनुष्य और देवों की पर्षदा में तथा श्रेणिक राजा बिंबिसार और रानी चेल्लणा यावत्‌ पर्षदा को धर्मदेशना सुनाई। पर्षदा
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 103 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति। न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे। जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने बहुत से साधु – साध्वीओं को कहा – श्रेणिक राजा और चेल्लणा रानी को देखकर क्या – यावत्‌ इस प्रकार के अध्यवसाय आपको उत्पन्न हुए यावत्‌ क्या यह बात सही है ? हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है – यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, श्रेष्ठ है, सिद्धि – मुक्ति, निर्याण और निर्वाण का यही
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 104 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाया यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणो पासेज्जा–से जा इमा इत्थिया भवति– एगा एगजाया एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला

Translated Sutra: हे आयुष्मती श्रमणीयाँ ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है – जैसे कि यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है। यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करता है। जो कोई निर्ग्रन्थी धर्मशिक्षा के लिए उपस्थित होकर, परिषह सहती हुई, यदि उसे कामवासना का उदय हो तो उसके शमन का प्रयत्न करे। यदि उस समय वह साध्वी किसी स्त्री को देखे, जो अपने पति
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दशा १0 आयति स्थान

Hindi 105 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ सब दुःखों का अन्त करता है। जो कोई निर्ग्रन्थ केवलि प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए तत्पर हुआ हो, परिषहों को सहता हो, यदि उसे कामवासना का उदय हो जाए तो उसके शमन का प्रयत्न करे इत्यादि पूर्ववत्‌। यदि वह किसी स्त्री को देखता
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Hindi 106 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया,

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करता है। यदि कोई निर्ग्रन्थी केवली प्रज्ञप्त धर्म के लिए तत्पर होती है, परिषह सहन करती है, उसे कदाचित्‌ कामवासना का प्रबल उदय हो जाए तो वह तप संयम की उग्र साधना से उसका शमन करे। यदि उस समय (पूर्व
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Hindi 107 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म बताया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ (प्रथम ‘‘निदान’’ समान जान लेना।) कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी धर्म शिक्षा के लिए तत्पर होकर विचरण करते हो, क्षुधादि परिषह सहते हो, फिर भी उसे कामवासना का प्रबल उदय हो जाए, तब उसके शमन के लिए तप – संयम की उग्र साधना से प्रयत्न
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Hindi 108 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेजा– मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ णो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि,

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। (शेष सर्व कथन प्रथम ‘निदान’ के समान जानना।) देवलोक में जहाँ अन्य देव – देवी के साथ कामभोग सेवन नहीं करते, किन्तु अपनी देवी के साथ या विकुर्वित देव या देवी के साथ कामभोग सेवन करते हैं। यदि मेरे सुचरित तप आदि का फल हो तो (इत्यादि प्रथम निदानवत्‌) ऐसा व्यक्ति
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Hindi 109 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत्‌ जो स्वयं विकुर्वित देवलोक में कामभोग का सेवन करते हैं। (यहाँ तक सब कथन पूर्व सूत्र – १०८ के अनुसार जानना) हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी ऐसा निदान करके बिना आलोचना – प्रतिक्रमण किए यदि काल करे यावत्‌ देवलोक में उत्पन्न होकर
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Hindi 110 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है (शेष कथन प्रथम निदान समान जानना) मानुषिक विषयभोग अध्रुव यावत्‌ त्याज्य हैं। दिव्यकाम भोग भी अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत एवं अस्थिर हैं। जन्म – मरण बढ़ानेवाले हैं। पहले या पीछे अवश्य त्याज्य हैं। यदि मेरे तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं विशुद्ध जाति
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Hindi 111 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत्‌ (पहले निदान के समान सब कथन करना) मानुषिक, दिव्य कामभोग, भव परंपरा बढ़ानेवाले हैं। यदि मेरे सुचरित तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल विशेष हो तो मैं भी भविष्य में अन्त, प्रान्त, तुच्छ, दरिद्र, कृपण या भिक्षुकुल में पुरुष बनुं, जिस से प्रव्रजित होने के लिए
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दशा १0 आयति स्थान

Hindi 112 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिनेहा-तिक्कंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं वीरिएणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए तुट्ठीए अनुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल० परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडि पुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा। तते

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ तप संयम की साधना करते हुए, वह निर्ग्रन्थ सर्व काम, राग, संग, स्नेह से विरक्त हो जाए, सर्व चारित्र परिवृद्ध हो, तब अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन यावत्‌ परिनिर्वाण मार्ग में आत्मा को भावित करके अनंत, अनुत्तर आवरण रहित, सम्पूर्ण
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 75 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठियं पडिविरयं, संजयं सुतवस्सियं । वोकम्म धम्माओ भंसे, महामोहं पकुव्वइ ॥

Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૮ – જે પાપોથી વિરત દીક્ષાર્થીને અને તપસ્વી સાધુને ધર્મથી ભ્રષ્ટ કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 85 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे य आधम्मिए जोए, संपउंजे पुणो-पुणो । सहाहेउं सहीहेउं, महामोहं पकुव्वति ॥

Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૭ – જે પ્રશંસા અથવા મિત્રવર્ગને માટે અધાર્મિક યોગ કરીને વશીકરણાદિનો વારંવાર પ્રયોગ કરે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 91 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयार गुत्ते सुद्धप्पा, धम्मे ठिच्चा अनुत्तरे । ततो वमे सए दोसे, विसमासीविसो जहा ॥

Translated Sutra: જે સાધુ પંચાચારના પાલનથી સુરક્ષિત છે શુદ્ધાત્મા અને અનુત્તર ધર્મમાં સ્થિત છે. તે પોતાના દોષોને તજી દે, જેવી રીતે આશિવિષ સર્પ ઝેરનું વમન કરી દે છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 92 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुवंतदोसे सुद्धप्पा, धम्मट्ठी विदितापरे । इहेव लभते कित्तिं, पेच्चा य सुगतिं वरं ॥

Translated Sutra: એ પ્રમાણે દોષોનો ત્યાગ કરીને, તે શુદ્ધાત્મા, ધર્માર્થી એવો સાધુ મોક્ષના સ્વરૂપને જાણીને આ લોકમાં કીર્તિ પામીને અને પરલોકમાં સુગતિને પ્રાપ્ત કરે છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 93 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं अभिसमागम्म, सूरा दढपरक्कमा । सव्वमोहविनिम्मुक्का, जातीमरणमतिच्छिया ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: જે દૃઢ પરાક્રમી શૂરવીર સાધુ, આ બધા સ્થાનોને જાણીને તે મોહબંધા કારણોનો ત્યાગ કરી દે છે, તે જન્મ – મરણનું અતિક્રમણ કરે છે અર્થાત્‌ તે સંસારથી મુક્ત થઈ જાય છે. એ પ્રમાણે હું તમને કહું છું. સૂત્રાંતે કંઈક વિશેષ કથન – આ ત્રીશ મહામોહનીય સ્થાનો કહ્યા, તેમાં ૧. એક થી છ સ્થાનોમાં ક્રૂરતાયુક્ત હિંસક વૃત્તિને ૨. સાતમાં
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-३ आशातना

Gujarati 4 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ। कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– १. सेहे रातिनियस्स पुरतो गंता भवति, आसादना सेहस्स। २. सेहे रातिनियस्स सपक्खं गंता भवति, आसादना सेहस्स। ३. सेहे रातिनियस्स आसन्नं गंता भवति, आसादना सेहस्स। ४. सेहे रातिनियस्स पुरओ चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स। ५. सेहे रातिनियस्स सपक्खं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स। ६. सेहे रातिनियस्स आसन्नं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स। ७. सेहे रातिनियस्स

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આશાતના એટલે વિપરીત વર્તન, અપમાન કે તિરસ્કાર જે જ્ઞાન, દર્શનનું ખંડન કરે, તેની લઘુતા કે તિરસ્કાર કરે તેને આશાતના કહેવાય. આવી આશાતનાના અનેક ભેદ છે. તેમાંથી અહીં ફક્ત ૩૩ આશાતના જ કહેવાયેલી છે. જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર આદિ ગુણોમાં અધિકતાવાળા કે દીક્ષા – પદવી આદિમાં મોટા હોય તેમના પ્રત્યે થયેલ અધિક
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-४ गणिसंपदा

Gujarati 14 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिओ अंतेवासिं इमाए चउव्विधाए विणयपडिवत्तीए विनएत्ता निरिणत्तं गच्छति, तं जहा–आयारविनएणं, सुयविनएणं, विक्खेवणाविनएणं, दोसनिग्घायणाविनएणं। से किं तं आयारविनए? आयारविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–संजमसामायारी यावि भवति, तवसामायारी यावि भवति, गणसामायारी यावि भवति, एगल्लविहारसामायारी यावि भवति। से तं आयारविनए। से किं तं सुतविनए? सुतविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुतं वाएति, अत्थं वाएति, हियं वाएति, निस्सेसं वाएति। से तं सुतविनए। से किं तं विक्खेवणाविनए? विक्खेवणाविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अदिट्ठं दिट्ठपुव्वगताए विनएत्ता भवति, दिट्ठपुव्वगं साहम्मियत्ताए

Translated Sutra: આઠ પ્રકારે સંપદાના વર્ણન પછી હવે ગણિનું કર્તવ્ય કહે છે – આચાર્ય પોતાના શિષ્યોને આ ચાર પ્રકારની વિનય – પ્રતિપત્તિ શીખવીને પોતાના ઋણથી મુક્ત થાય. ૧. આચાર વિનય, ૨. શ્રુત વિનય, ૩. વિક્ષેપણા – મિથ્યાત્વમાંથી સમ્યક્‌ત્વમાં સ્થાપના કરવા રૂપ વિનય, ૪. દોષ નિર્ઘાતના વિનય – દોષનો નાશ કરવા રૂપ વિનય. તે આચારવિનય શું છે ? તે
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-४ गणिसंपदा

Gujarati 15 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्सेवं गुणजातीयस्स अंतेवासिस्स इमा चउव्विहा विनयपडिवत्ती भवति, तं जहा–उवगरण-उप्पायणया, साहिल्लया, वण्णसंजलणता, भारपच्चोरुहणता। से किं तं उवगरणउप्पायणया? उवगरणउप्पायणया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अणुप्पन्नाइं उवगरणाइं उप्पाएत्ता भवति, पोराणाइं उवगरणाइं सारक्खित्ता भवति संगोवित्ता भवति, परित्तं जाणित्ता पच्चुद्धरित्ता भवति, अहाविधिं संविभइत्ता भवति। से तं उवगरणउप्पायणया। से किं तं साहिल्लया? साहिल्लया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अनुलोमवइसहिते यावि भवति, अनुलोमकायकिरियता, पडिरूवकायसंफासणया, सव्वत्थेसु अपडिलोमया। से तं साहिल्लया। से किं तं वण्णसंजलणता?

Translated Sutra: આવા ગુણવાન આચાર્યના અંતેવાસી – શિષ્યની આ ચાર પ્રકારની વિનય પ્રતિપત્તિ છે. જેમ કે – ૧. સંયમના ઉપયોગી વસ્ત્ર, પાત્રાદિ પ્રાપ્ત કરવા. ૨. અશક્ત સાધુઓની સહાયતા કરવી. ૩. ગણ અને ગણીના ગુણો પ્રગટ કરવા. ૪. ગણના ભારનો નિર્વાહ કરવો. *** ઉપકરણ ઉત્પાદકતા શું છે ? તે ચાર પ્રકારે છે – ૧. નવા ઉપકરણો મેળવવા, ૨. પ્રાપ્ત ઉપકરણનું સંરક્ષણ
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Gujarati 16 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: જે રીતે સાંસારિક આત્માને ધન, વૈભવ, ભૌતિક વસ્તુની પ્રાપ્તિ આદિ થવાની ચિત્ત આનંદમય બને છે. તે જ રીતે મુમુક્ષુ આત્મા અથવા સાધુજન આત્મગુણોની અનુપમ ચિત્ત સમાધિ પ્રાપ્ત થાય છે. જે ચિત્ત સમાધિસ્થાનનું આ ‘દશા’માં વર્ણન કરાયેલ છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્‌ ! તે નિર્વાણપ્રાપ્ત ભગવંતના સ્વમુખેથી મેં એવું
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Gujarati 17 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जो! इति समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी– इह खलु अज्जो! निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इरियासमिताणं भासासमिताणं एसणा-समिताणं आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिताणं उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्लपारिट्ठावणिता-समिताणं मनसमिताणं वयसमिताणं कायसमिताणं मनगुत्ताणं वयगुत्ताणं कायगुत्ताणं गुत्ताणं गुत्तिंदियाणं गुत्तबंभयारीणं आयट्ठीणं आयहिताणं आयजोगीणं आयपरक्कमाणं पक्खियपोसहिएसु समाधिपत्ताणं ज्झियायमाणाणं इमाइं दस चित्तसमाहिट्ठाणाइं असमुप्पन्नपुव्वाइं समुप्पज्जिज्जा, तं जहा– १. धम्मचिंता वा से असमुप्पन्नपुव्वा समुप्पज्जेज्जा

Translated Sutra: હે આર્યો ! એમ સંબોધન કરી શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સાધુ અને સાધ્વીઓ કહેવા લાગ્યા. હે આર્યો! ઇર્યા સમિતિ – ભાષા સમિતિ – એષણા સમિતિ – આદાન ભાંડમાત્ર નિક્ષેપણા સમિતિ અને ઉચ્ચાર પ્રસ્રવણ ખેલ સિંધાણક જલ પરિષ્ઠાપના સમિતિ એ પાંચ સમિતિ યુક્ત, ગુપ્તેન્દ્રિય, ગુપ્ત બ્રહ્મચારી, આત્માર્થી, આત્મહિતકર, આત્મયોગી, આત્મપરાક્રમી,
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Gujarati 18 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओयं चित्तं समादाय, ज्झाणं समनुपस्सति । धम्मे ठिओ अविमनो, निव्वाणमभिगच्छइ ॥

Translated Sutra: રાગદ્વેષ રહિત નિર્મળ ચિત્તને ધારણ કરવાથી એકાગ્રતા રૂપ ધ્યાન ઉત્પન્ન થાય છે. શંકા રહિત ધર્મમાં સ્થિત આત્મા નિર્વાણને પ્રાપ્ત કરે છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 35 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ। कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए,

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: જે આત્મા શ્રમણપણાના પાલન માટે અસમર્થ હોય તેવા આત્મા શ્રમણપણાનું લક્ષ્ય રાખી તેના ઉપાસક બને છે. તેને શ્રમણોપાસક કહે છે. ટૂંકમાં તેઓ ઉપાસક તરીકે ઓળખાય છે. આવા ઉપાસકને આત્મા સાધના માટે ૧૧ પ્રતિમા અર્થાત્‌ વિશિષ્ટ પ્રકારની ‘પ્રતિજ્ઞાનું આરાધન’ જણાવેલ છે, તેનું અહીં વર્ણન છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્‌
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 37 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं नो सम्मं पट्ठविताइं भवंति। एवं दंसनसावगोत्ति पढमा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: પહેલી ઉપાસક પ્રતિમા – ક્રિયાવાદી મનુષ્ય સર્વ શ્રાવક અને શ્રમણ. ધર્મરૂચિ વાળો હોય છે. પણ તે સમ્યક પ્રકારે અનેક શીલવ્રત, ગુણવ્રત, પ્રાણાતિપાત આદિ વિરમણ, પચ્ચક્‌ખાણ, પૌષધોપવાસનો ધારક હોતો નથી. પરંતુ. સમ્યક્‌ શ્રદ્ધાવાળો હોય છે. આ પહેલી ‘દર્શન’ ઉપાસક પ્રતિમા જાણવી. આ પ્રતિમા ઉત્કૃષ્ટ એક માસની હોય છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 38 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा दोच्चा उवासगपडिमा– सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहो-ववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावकासियं नो सम्मं अनुपालित्ता भवति। दोच्चा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: બીજી ઉપાસક પ્રતિમા – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો હોય છે. શુદ્ધ સમ્યક્‌ત્વ ઉપરાંત યતિ શ્રમણ.ના દશે ધર્મોની દૃઢ શ્રદ્ધાવાળો હોય છે.. તે નિયમથી ઘણા શીલવ્રત, ગુણવ્રત, પ્રાણાતિપાત આદિ વિરમણ, પ્રત્યાખ્યાન અને પૌષધોપવાસનું સમ્યક્‌ પરિપાલન કરે છે. પણ સામાયિક અને દેશાવકાસિકનું સમ્યક્‌ પ્રતિપાલન કરી શકતો નથી. વ્રત પાલન
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 39 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा तच्चा उवासगपडिमा– सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण- पोसहोववा-साइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दस-ट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं नो सम्मं अनुपालित्ता भवति। तच्चा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: હવે ત્રીજી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો અને પૂર્વોક્ત બંને પ્રતિમાઓનો દર્શન અને વ્રતનો. સમ્યક્‌ પરિપાલક હોય છે. તે નિયમથી ઘણા શીલવ્રત, ગુણવ્રત, પ્રાણાતિપાતાદિ વિરમણ, પચ્ચક્‌ખાણ, પૌષધોપવાસનું સમ્યક્‌ પ્રકારે પ્રતિપાલન કરે છે. સામાયિક અને દેશાવકાસિક વ્રતનો પણ સમ્યક્‌ પાલક છે. પરંતુ તે ચૌદશ,
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 40 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा चउत्था उवासगपडिमा– सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोव-वासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठ मुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं नो सम्मं अनुपालेत्ता भवति। चउत्था उवासगपडिमा।

Translated Sutra: હવે ચોથી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો યાવત્‌ આ પૂર્વે કહેવાઈ તે દર્શન, વ્રત અને સામાયિક એ ત્રણે પ્રતિમાઓનું યથાયોગ્ય અનુપાલન કરનારો હોય છે. તેવો ઉપાસક –. તે નિયમથી ઘણા શીલવ્રત, ગુણવ્રત, પ્રાણાતિપાત આદિ વિરમણ, પચ્ચક્‌ખાણ, પૌષધોપવાસ તેમજ સામાયિક, દેશાવકાસિક એ બંનેનું સમ્યક્‌ પરિપાલન કરે છે. પરંતુ
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 41 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा पंचमा उवासगपडिमा– सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोव-वासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्ण-मासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिनाणए वियडभोई मउलिकडे दियाबंभचारी रत्तिं परिमाणकडे। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं पंचमासे विहरेज्जा। पंचमा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: હવે પાંચમી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો હોય છે. યાવત્‌ પૂર્વોક્ત દર્શન, વ્રત, સામાયિક અને પૌષધ એ ચારે પ્રતિમાનું સમ્યક્‌ પરિપાલન કરનાર હોય છે, તેવો ઉપાસક.. નિયમથી ઘણા શીલવ્રત, ગુણવ્રત, પ્રાણાતિપાત આદિ વિરમણ, પચ્ચક્‌ખાણ, પૌષધોપવાસનું સમ્યક્‌ રીતે પાલન કરે છે. તે સામાયિક, દેશાવકાસિક વ્રતનું યથાસૂત્ર,
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

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Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा छट्ठा उवासगपडिमा– सव्वधम्म रुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से अपरिण्णाते भवति। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे विहरेज्जा। छट्ठा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: હવે છઠ્ઠી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો યાવત્‌ એકરાત્રિકી ઉપાસક પ્રતિમાનો સમ્યક અનુપાલન કર્તા હોય છે. અર્થાત્‌ ૧. દર્શન, ૨. વ્રત, ૩. સામાયિક, ૪. પૌષધ, ૫. દિવસે બ્રહ્મચર્ય પ્રતિમા પાળે છે.. તે ઉપાસક સ્નાન ન કરનારો, દિવસે જ ખાનારો, ધોતીના પાટલી ન બાંધનારો હોય છે. તે દિવસે અને રાત્રે પૂર્ણ બ્રહ્મચર્ય
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 43 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा सत्तमा उवासगपडिमा–से सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से अपरिण्णाते भवति। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं सत्तमासे विहरेज्जा। सत्तमा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: હવે સાતમી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો હોય છે. યાવત્‌ દિન – રાત બ્રહ્મચારી અને સચિત્ત આહાર પરિત્યાગી હોય છે. દર્શન, વ્રત, સામાયિક, પૌષધ, દિવસે બ્રહ્મચર્ય, દિવસ રાત્રિ બ્રહ્મચર્ય એ છ પ્રતિમા પાલક તથા સચિત્ત પરિત્યાગી છે.. પરંતુ આ ઉપાસક ગૃહ આરંભના પરિત્યાગી ન હોય. આ પ્રકારના આચરણપૂર્વક વિચરતા તે
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 44 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा अट्ठमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से अपरिण्णाते भवति। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं अट्ठमासे विहरेज्जा। अट्ठमा

Translated Sutra: હવે આઠમી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો હોય છે. ૧. દર્શન, ૨. વ્રત, ૩. સામાયિક, ૪. પૌષધ, ૫. દિવસે બ્રહ્મચર્ય, ૬. દિવસ – રાત્રે બ્રહ્મચર્ય, ૭. સચિત્ત પરિત્યાગી એ પૂર્વની સાત પ્રતિમાના પાલન ઉપરાંત ઘરના સર્વે આરંભ કાર્યોનો પરિત્યાગી હોય છે. પરંતુ અન્ય સર્વે આરંભના પરિત્યાગી હોતા નથી. આ પ્રકારના આચરણપૂર્વક
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 45 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा नवमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलि-कडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परिण्णाते भवति, उद्दिट्ठभत्ते से अपरिण्णाते भवति।

Translated Sutra: હવે નવમી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો હોય છે. યાવત્‌ આરંભ પરિત્યાગી હોય છે. અર્થાત્‌ ૧. દર્શન, ૨. વ્રત, ૩. સામાયિક, ૪. પૌષધ, ૫. દિવસે બ્રહ્મચર્ય, ૬. દિવસ – રાત બ્રહ્મચર્ય, ૭. સચિત્ત પરિત્યાગ અને ૮. આરંભ પરિત્યાગ એ આઠ ઉપાસક પ્રતિમાના પાલનકર્તા, બીજા દ્વારા આરંભ કરાવવાના પણ પરિત્યાગી હોય છે. પરંતુ ઉદ્દિષ્ટ
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 46 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा दसमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परिण्णाते भवति, उद्दिट्ठभत्ते से परिण्णाते भवति। से णं खुरमुंडए वा छिधलिधारए वा। तस्स णं आभट्ठस्स समाभट्ठस्स कप्पंति

Translated Sutra: હવે દશમી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સર્વધર્મ રૂચિવાળો હોય છે. પૂર્વોક્ત નવે પ્રતિમાનો ધારક હોય છે. તે આ પ્રમાણે – દર્શન, વ્રત, સામાયિક, પૌષધ, દિવસે બ્રહ્મચર્ય, દિવસ – રાત્રિ બ્રહ્મચર્ય, સચિત્ત પરિત્યાગી, આરંભી પરિત્યાગી અને નવમી પ્રેષ્ય પરિત્યાગી પ્રતિમા પાલક હોય છે.. તદુપરાંત ઉદ્દિષ્ટ ભક્ત – તેમના નિમિત્તે
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 47 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण -पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परि-ण्णाते भवति, उद्दिट्ठभत्ते से परिण्णाते भवति। से णं खुरमुंडए वा लुत्तसिरए वा गहितायारभंडगनेवत्थे जे इमे समणाणं

Translated Sutra: હવે અગિયારમી ઉપાસક પ્રતિમા કહે છે – તે સાધુ અને શ્રાવક સર્વધર્મની રૂચિવાળો હોય છે. તે ઉક્ત દશે પ્રતિમા ૧. દર્શન, ૨. વ્રત, ૩. સામાયિક, ૪. પૌષધ, ૫. દિવસે બ્રહ્મચર્ય, ૬. દિવસ – રાત્રિ બ્રહ્મચર્ય, ૭. સચિત્ત પરિત્યાગી, ૮. આરંભ પરિત્યાગી, ૯. પ્રેષ્ય પરિત્યાગી અને ૧૦. ઉદ્દિષ્ટ ભક્ત પરિત્યાગીનો પાલક હોય છે. તે માથે મુંડન કરાવે
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ७ भिक्षु प्रतिमा

Gujarati 52 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अहोरातियावि, नवरं– छट्ठेणं भत्तेणं अपानएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस्स-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा। तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए। एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अनुपालिया यावि भवति। एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस अनगारस्स निच्चं

Translated Sutra: અગિયારમી ભિક્ષુપ્રતિમા – આ પ્રતિમાને એક અહોરાત્રિકી ભિક્ષુપ્રતિમા કહે છે. તેની વિધિ આદિ પૂર્વ પ્રતિમા મુજબ જાણવુ. વિશેષ વિધિ આ પ્રમાણે જાણવી – ૧. નિર્જળ છઠ્ઠભક્ત એટલે કે ચોવિહારો છઠ્ઠ કરીને ભોજન તથા પાનનું ગ્રહણ કરવું કલ્પે. ૨. ગામ યાવત્‌ રાજધાનીની બહાર બંને પગોને સંકોચીને, બે હાથ જાનુ પર્યન્ત લાંબા રાખી, તે
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 54 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे नाम चेइए–वण्णओ, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया। अज्जोति! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी–एवं खलु अज्जो! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाइं, जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा–

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આઠ કર્મોમાં મોહનીય કર્મ પ્રબળ છે. તેની સ્થિતિ પણ સૌથી વધુ લાંબી છે. તેનો સંપૂર્ણ ક્ષય થતાં જ ક્રમશઃ બાકીના કર્મો ક્ષય પામે છે. આ મોહનીય કર્મના બંધન માટે ત્રીશ સ્થાનો અર્થાત્‌ કારણો આ દશામાં કહેવાયેલા છે. તે આ રીતે – અનુવાદ: તે કાળે અને તે સમયે ચંપા નામક નગરી હતી. વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર. નગરી બહાર
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 72 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सप्पी जहा अंडउडं, भत्तारं जो विहिंसइ । सेणावतिं पसत्थारं, महामोहं पकुव्वति ॥

Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૫ – સાપણ જે રીતે પોતાના ઇંડાને ખાઈ જાય છે, તે પ્રમાણે જે પાલનકર્તા, સેનાપતિ તથા કલાચાર્ય અથવા ધર્માચાર્યને મારી નાંખે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 95 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे अन्नया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरसा कंठे मालकडे आवद्धमणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-पालंब-पलंबमाण-कडि-सुत्तय-सुकयसोभे पिणिद्धगेवेज्जे अंगुलेज्जगल-लियंगय-ललियकयाभरणे जाव कप्परुक्खए चेव अलंकित-विभूसिते नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! जाइं इमाइं रायगिहस्स

Translated Sutra: ત્યારે તે શ્રેણિક રાજા ભિંભિસારે એક દિવસ સ્નાન કર્યું. પોતાના દેવ સમક્ષ નૈવૈદ્ય પૂજા – બલિકર્મ કર્યું. વિઘ્નશમન માટે પોતાના કપાળ ઉપર તિલક કર્યું. દુઃસ્વપ્નના દોષના નિવારણ માટે પ્રાયશ્ચિત્ત અર્થાત્‌ દહીં, ચોખા, દુર્વા આદિ ધારણ કર્યા કૌતુક – મંગલ – પ્રાયશ્ચિત્ત કર્યા.. ડોકમાં માળા પહેરી, મણિરત્ન જડિત સોનાના
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 96 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव पज्जुवासेति। तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता नामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्कमित्ता एवं वदासि– जस्स णं देवाणुप्पिया

Translated Sutra: તે કાળે અને તે સમયમાં પંચયામ ધર્મપ્રવર્તક તીર્થંકર ભગવંત મહાવીર ભગવાન યાવત્‌ ગ્રામાનુગ્રામ વિચરતા યાવત્‌ આત્મસાધના કરતા ગુણશીલ ચૈત્યમાં પધાર્યા. તે સમયે રાજગૃહ નગરના ત્રણ રસ્તા, ચાર રસ્તા અને ચોકમાં થઈને યાવત્‌ પર્ષદા નગરની બહાર નીકળી યાવત્‌ પ્રભુને પર્યુપાસના કરવા લાગી. તે સમયે શ્રેણિક રાજાના સેવક
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 98 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रहजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि जाव से वि पच्चप्पिणति। तए णं से सेणिए राया जाणसालियं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! धम्मियं जानप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेहि, उवट्ठवेत्ता मम एतमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तते णं से जानसालिए सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जानसालं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जाणाइं पच्चुवेक्खति, पच्चुवेक्खित्ता

Translated Sutra: ત્યારપછી તે શ્રેણિક રાજાએ સેનાપતિને બોલાવીને કહ્યું કે – હે દેવાનુપ્રિયો ! જલદીથી રથ, ઘોડા, હાથી અને યોદ્ધા સહિતની ચતુરંગિણી સે તૈયાર કરો – યાવત્‌ – મારી આજ્ઞા મુજબ કાર્ય થયાની મને જાણ કરો. ત્યારપછી શ્રેણિક રાજાએ યાનશાળાના અધિકારીને આ પ્રમાણે કહ્યું કે, હે દેવાનુપ્રિય ! શ્રેષ્ઠ ધાર્મિક રથને તૈયાર કરીને અહીં
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 99 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे जानसालियस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवा-गच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दणमल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं

Translated Sutra: ત્યારે શ્રેણિક રાજા ભિંભિસાર યાનચાલક પાસે આ વૃત્તાંત સાંભળી હર્ષિત યાવત્‌ સંતુષ્ટ થયો. તે શ્રેણિક રાજા સ્નાનગૃહમાં પ્રવેશ્યો – યાવત્‌ – ત્યાંથી કલ્પવૃક્ષ સમાન અલંકૃત અને વિભૂષિત થયેલો તે શ્રેણિક નરેન્દ્ર સ્નાનગૃહથી બહાર નીકળ્યો. ત્યારપછી રાજા શ્રેણિક જ્યાં ચેલ્લણા દેવી હતા ત્યાં આવ્યો. આવીને ચેલ્લણા
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 101 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया चेल्लणाए देवीए सद्धिं धम्मियं जानप्पवरं दुरूढे। सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उववाइ गमेणं नेयव्वं जाव पज्जुवासइ एवं चेल्लणावि जाव महत्तरगपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति सेणियं रायं पुरओ काउं ठितिया चेव जाव पज्जुवासति। तए णं समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रन्नो भिंभिसारस्स चेल्लणाए देवीए तीसे य महतिमहालियाए परिसाए–इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जतिपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए जाव धम्मो कहितो। परिसा पडिगया। सेणितो राया पडिगतो।

Translated Sutra: ત્યારે તે શ્રેણિક રાજા ચેલ્લણા દેવીની સાથે શ્રેષ્ઠ ધાર્મિક રથમાં બેઠો. છત્ર ઉપર કોરંટ પુષ્પની માળા ધારણ કરેલ હતા – યાવત્‌ – પર્યુપાસના કરવા લાગ્યા. એ પ્રમાણે ચેલ્લણા દેવી પણ – યાવત્‌ – દાસ દાસી વૃંદથી પરિવરેલી, જ્યાં શ્રમણ ભગવંત મહાવીર હતા ત્યાં આવી. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વંદન – નમસ્કાર કર્યા. ત્યારપછી શ્રેણિક
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 103 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति। न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे। जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं

Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ઘણા નિર્ગ્રન્થ – નિર્ગ્રન્થીને આમંત્રિત કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – પ્રશ્ન – હે આર્યો ! શ્રેણિક રાજા અને ચેલ્લણા દેવીને જોઈને આવા પ્રકારનો અધ્યવસાય યાવત્‌ વિચાર ઉત્પન્ન થયો કે, અહો ! શ્રેણિક રાજા મહર્દ્ધિક છે યાવત્‌ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? અહો ! ચેલ્લણા દેવી મહર્દ્ધિક છે યાવત્‌ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? હે આર્યો
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 104 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाया यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणो पासेज्जा–से जा इमा इत्थिया भवति– एगा एगजाया एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલું છે. જેમ કે આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્‌ – બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. જો કોઈ શ્રમણી ધર્મની શિક્ષા માટે ઉપસ્થિત થઈને ભૂખ તરસ આદિ પરિગ્રહ સહન કરતા પણ – કદાચિત કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય થઈ જાય તો તે તપ – સંયમની ઉગ્ર સાધના થકી કામવાસનાના શમન માટે યત્ન કરે છે. તે
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 105 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્‌ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. જો કોઈ નિર્ગ્રન્થ કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે તત્પર થાય, તેને ભૂખ – તરસ ઇત્યાદિ પરીષહો સહન કરતા કદાચિત કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય થઈ જાય. ત્યારે તે તપ – સંયમની ઉગ્ર સાધના દ્વારા તે કામવાસનાને શમન
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 106 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया,

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે યાવત્‌ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. એવા તે કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે કોઈ સાધ્વી તત્પર થાય અને ક્ષુધા, તૃષા આદિ પરીષહ સહન કરે. પરંતુ તેમ સહન કરતા કદાચિત કોઈ કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય તેણીને થઈ પણ જાય તો – તે સંયમની ઉગ્ર સાધના થકી
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 107 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે. યાવત્‌ સર્વ દુઃખોનો અંત કરે છે, પૂર્વવત જાણવું. કોઈ સાધુ કે સાધ્વી કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આરાધના માટે ઉપસ્થિત થઈને વિચરણ કરતા – યાવત્‌ – સંયમમાં પરાક્રમ કરતા માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે આ પ્રમાણે વિચારે કે – ૧.
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