Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (1351)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Hindi 13 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! तइयं च अदिन्नादाणं–हर दह मरण भय कलुस तासण परसंतिगऽभेज्जलोभमूलं काल विसम संसियं अहोऽच्छिण्णतण्ह-पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्जं छिद्दमंतर विधुर वसण मग्गण उस्सव मत्त प्पमत्त पसुत्त वंचणाखिवण घायणपर अनिहुयपरिणामतक्करजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण मित्तजण भेदविप्पीतिकारकं रागदोस-बहुलं पुणो य उप्पूर समर संगाम डमर कलि कलह वेहकरणं दुग्गति विणिवायवड्ढणं भवपुनब्भवकरं चिरपरिचितमनुगयं दुरंतं। तइयं अधम्मदारं।

Translated Sutra: हे जम्बू ! तीसरा अधर्मद्वार अदत्तादान। यह अदत्तादान (परकीय पदार्थ का) हरण रूप है। हृदय को जलाने वाला, मरण – भय रूप, मलीन, परकीय धनादि में रौद्रध्यान स्वरूप, त्रासरूप, लोभ मूल तथा विषमकाल और विषमस्थान आदि स्थानों पर आश्रित है। यह अदत्तादान निरन्तर तृष्णाग्रस्त जीवों को अधोगति की ओर ले जाने वाली बुद्धि वाला है।
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Hindi 16 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अतिधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार निद्दय आरक्खिय खर फरुस वयण तज्जण गलत्थल्ल उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं। तत्थवि गोम्मिकप्पहार दूमण निब्भच्छण कडुयवयण भेसणग भयाभिभूया अक्खित्त नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच पास मग्गण परायणेहिं गोम्मिकभडेहिं विविहेहिं बंधणेहि, किं ते? हडि नियड बालरज्जुय कुदंडग वरत्त लोह-संकल हत्थंदुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहिं, अन्नेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण मोड-णाहि

Translated Sutra: इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कईं चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा – पीटा जाता है, बाँधा जाता है और कैद किया जाता है। उन्हें वेग के साथ घूमाया जाता है। तत्पश्चात्‌ चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर उन्हें कारागार में ठूंस देते। कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर – हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ अब्रह्म

Hindi 18 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य नामानि गोण्णाणि इमाणि होंति तीसं, तं जहा– १. अबंभं २. मेहुणं ३. चरंतं ४. संसग्गि ५. सेवणाधिकारो ६. संकप्पो ७. बाहणा पदाणं ८. दप्पो ९. मोहो १०. मणसंखोभो ११. अणिग्गहो १२. वुग्गहो १३. विघाओ १४. विभंगो १५. विब्भमो १६. अधम्मो १७. असीलया १८. गामधम्मतत्ती १९. रती २०. रागो २१. कामभोग-मारो २२. वेरं २३. रहस्सं २४. गुज्झं २५. बहुमानो २६. बंभ-चेरविग्घो २७. वावत्ति २८. विराहणा २९. पसंगो ३०. कामगुणो त्ति। अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होंति तीसं।

Translated Sutra: उस पूर्व प्ररूपित अब्रह्मचर्य के गुणनिष्पन्न अर्थात्‌ सार्थक तीस नाम हैं। अब्रह्म, मैथुन, चरंत, संसर्गि, सेवनाधिकार, संकल्पी, बाधनापद, दर्प, मूढ़ता, मनःसंक्षोभ, अनिग्रह, विग्रह, विघात, विभग, विभ्रम, अधर्म, अशीलता, ग्रामधर्मतप्ति, गति, रागचिन्ता, कामभोगमार, वैर, रहस्य, गुह्य, बहुमान, ब्रह्मचर्यविघ्न, व्यापत्ति,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Hindi 33 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ताणि उ इमाणि सुव्वय-महव्वयाइंलोकहिय-सव्वयाइं सुयसागर देसियाइं तव संजम महव्वयाइं सीलगुणवरव्वयाइं सच्चज्जवव्वयाइं नरग तिरिय मणुय देवगति विवज्जकाइं सव्वजिनसासणगाइं कम्मरयविदारगाइं भवसयविणासणकाइं दुहसयविमोयणकाइं सुहसयपवत्तणकाइं कापुरिस-दुरु-त्तराइं सप्पुरिसनिसेवियाइं निव्वाणगमणमग्गसग्गपणायगाइं संवरदाराइं पंच कहियाणि उ भगवया। तत्थ पढमं अहिंसा, जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति– दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा निव्वाणं निव्वुई समाही सत्ती कित्ती कंती रती य विरती य सुयंग तित्ती दया विमुत्ती खंती समत्ताराहणा महंती बोही बुद्धी धिती समिद्धी रिद्धी विद्धी ठिती

Translated Sutra: हे सुव्रत ! ये महाव्रत समस्त लोक के लिए हितकारी है। श्रुतरूपी सागर में इनका उपदेश किया गया है। ये तप और संयमरूप व्रत है। इन महाव्रतों में शील का और उत्तम गुणों का समूह सन्निहित है। सत्य और आर्जव – इनमें प्रधान है। ये महाव्रत नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति से बचाने वाले हैं – समस्त जिनों – तीर्थंकरों
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ सत्य

Hindi 36 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! बितियं च सच्चवयणं–सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिट्ठं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर नरवसभ पवर बलवग सुविहियजण बहुमयं परमसाहु-धम्मचरणं तव नियम परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग्गसिद्धिपहदेसकं अवितहं, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं। सच्चेण महासमुद्दमज्झे चिट्ठंति, न निमज्जंति मूढाणिया वि पोया। सच्चेण य उदगसंभमंसि

Translated Sutra: हे जम्बू ! द्वितीय संवर सत्यवचन है। सत्य शुद्ध, शुचि, शिव, सुजात, सुभाषित होता है। यह उत्तम व्रतरूप है और सम्यक्‌ विचारपूर्वक कहा गया है। इसे ज्ञानीजनों ने कल्याण के समाधान के रूप में देखा है। यह सुप्रतिष्ठित है, समीचीन रूप में संयमयुक्त वाणी से कहा गया है। सत्य सुरवरों, नरवृषभों, अतिशय बलधारियों एवं सुविहित
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-३ दत्तानुज्ञा

Hindi 38 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! दत्ताणुण्णायसंवरो नाम होति ततियं–सुव्वतं महव्वतं गुणव्वतं परदव्वहरणपडिविरइकरणजुत्तं अपरिमियमणं-ततण्हामणुगय महिच्छ मणवयणकलुस आयाणसुनिग्गहियं सुसंजमियमण हत्थ पायनिहुयं निग्गंथं नेट्ठिकं निरुत्तं निरासवं निब्भयं विमुत्तं उत्तमनरवसभ पवरबलवग सुविहिय-जनसंमतं परमसाहुधम्मचरणं। जत्थ य गामागर नगर निगम खेड कब्बड मडंब दोणमुह संवाह पट्टणासमगयं च किंचि दव्वं मणि मुत्त सिल प्पवाल कंस दूस रयय वरकणग रयणमादिं पडियं पम्हुट्ठं विप्पणट्ठं न कप्पति कस्सति कहेउं वा गेण्हिउं वा। अहिरण्णसुवण्णिकेण समलेट्ठुकंचनेनं अपरिग्गहसंवुडेणं लोगंमि विहरियव्वं। जं

Translated Sutra: हे जम्बू ! तीसरा संवरद्वार ‘दत्तानुज्ञात’ नामक है। यह महान व्रत है तथा यह गुणव्रत भी है। यह परकीय द्रव्य – पदार्थों के हरण से निवृत्तिरूप क्रिया से युक्त है, व्रत अपरिमित और अनन्त तृष्णा से अनुगत महा – अभिलाषा से युक्त मन एवं वचन द्वारा पापमय परद्रव्यहरण का भलिभाँति निग्रह करता है। इस व्रत के प्रभाव से मन
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Hindi 39 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! एत्तो य बंभचेरं–उत्तम तव नियम णाण दंसण चरित्त सम्मत्त विणयमूलं जम नियम गुणप्पहाणजुतं हिमवंत-महंत तेयमंतं पसत्थ गंभीर थिमित मज्झं अज्जवसाहुजणाचरितं मोक्खमग्गं विसुद्ध सिद्धिगति निलयंसासयमव्वाबाहमपुणब्भवं पसत्थं सोमं सुभं सिवमचल-मक्खयकरं जतिवर सारक्खियं सुचरियं सुसाहियं नवरि मुणिवरेहिं महापुरिस धीर सूर धम्मिय धितिमंताण य सया विसुद्धं भव्वं भव्वजणानुचिण्णं निस्संकियं निब्भयं नित्तुसं निरायासं निरुवलेवं निव्वुतिधरं नियम निप्पकंपं तवसंजममूलदलिय नेम्मं पंचमहव्वयसुरक्खियं समितिगुत्तिगुत्तं ज्झाणवरकवाडसुकयं अज्झप्पदिण्णफलिहं संणद्धोत्थइयदुग्गइपहं

Translated Sutra: हे जम्बू ! अदत्तादानविरमण के अनन्तर ब्रह्मचर्य व्रत है। यह ब्रह्मचर्य अनशन आदि तपों का, नियमों का, ज्ञान का, दर्शन का, चारित्र का, सम्यक्त्व का और विनय का मूल है। अहिंसा आदि यमों और गुणों में प्रधान नियमों से युक्त है। हिमवान्‌ पर्वत से भी महान और तेजोवान है। प्रशस्य है, गम्भीर है। इसकी विद्यमानता में मनुष्य
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Hindi 41 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तित्थकरेहिं सुदेसियमग्गं, नरयतिरिच्छविवज्जियमग्गं । सव्वपवित्त-सुनिम्मियसारं, सिद्धिविमाण-अवंगुयदारं ॥

Translated Sutra: तीर्थंकर भगवंतों ने ब्रह्मचर्य व्रत के पालन करने के मार्ग – भलीभाँति बतलाए हैं। यह नरकगति और तिर्यंच गति के मार्ग को रोकने वाला है, सभी पवित्र अनुष्ठानों को सारयुक्त बनाने वाला तथा मुक्ति और वैमानिक देवगति के द्वार को खोलने वाला है।
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Hindi 43 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू। स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्धं चरति बंभचेरे। इमं च रति राग दोस मोह पवड्ढणकरं किंमज्झ पमायदोस पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खसीसकरचरणवदणधोवण संबाहण गायकम्म परिमद्दण अनु-लेवण चुण्णवास धूवण सरीरपरिमंडण बाउसिक हसिय भणिय नट्टगीयवाइयनडनट्टकजल्ल-मल्लपेच्छण बेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव संजम बंभचेर घातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयव्वाइं सव्वकालं। भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव नियम सील जोगेहिं निच्चकालं, किं ते? – अण्हाणकऽदंतधोवण सेयमलजल्लधारण

Translated Sutra: ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्दोष परिपालन करने से सुब्राह्मण, सुश्रमण और सुसाधु कहा जाता है। जो शुद्ध ब्रह्मचर्य का आचरण करता है वही ऋषि है, वही मुनि है, वही संयत है और वही सच्चा भिक्षु है। ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने वाले पुरुष को रति, राग, द्वेष और मोह, निस्सार प्रमाददोष तथा शिथिलाचारी साधुओं का शील और घृतादि
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ अपरिग्रह

Hindi 45 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्धमूलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुल-जसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत ज्झाण सुभजोग नाण पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खर मोत्तिमग्गस्स सिहरभूओ संवर-वरपायवो। चरिमं संवरदारं। जत्थ न कप्पइ गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस थावरकाय दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं। न हिरण्ण सुवण्ण खेत्त वत्थुं, न दासी दास भयक पेस हय गय गवेलगं व, न जाण जुग्ग सयणासणाइं,

Translated Sutra: श्रीवीरवर – महावीर के वचन से की गई परिग्रहनिवृत्ति के विस्तार से यह संवरवर – पादप बहुत प्रकार का है। सम्यग्दर्शन इसका विशुद्ध मूल है। धृति इसका कन्द है। विनय इसकी वेदिका है। तीनों लोकों में फैला हुआ विपुल यश इसका सघन, महान और सुनिर्मित स्कन्ध है। पाँच महाव्रत इसकी विशाल शाखाएं हैं। भावनाएं इस संवरवृक्ष
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Gujarati 6 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य नामाणि इमाणि गोण्णाणि होंति तीसं, तं जहा– १-२. पाणवहुम्मूलणा सरीराओ ३. अवीसंभो ४. हिंसविहिंसा तहा ५. अकिच्चं च ६. घायणा ७. मारणा य ८. वहणा ९. उद्दवणा १०. तिवायणा य ११. आरंभ-समारंभो १२. आउय-कम्मस्स उवद्दवो [भेय-निट्ठवण-गालणा य संवट्टग-संखेवो] १३. मच्चू १४. असंजमो १५. कडग-मद्दणं १६. वीरमणं १७. परभव संकामकारओ १८. दुग्गतिप्पवाओ १९. पावकोवो य २०. पावलोभो २१. छविच्छेओ २२. जीवियंतकरणो २३. भयंकरो २४. अणकरो २५. वज्जो २६. परितावण-अण्हओ २७. विनासो २८. निज्जवणा २९. लुंपणा ३०. गुणाणं विराहणत्ति। अवि य तस्स एवमादीणि नामधेज्जाणि होंति तीसं पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफल-देसगाइं।

Translated Sutra: પ્રાણવધરૂપ હિંસાના ગુણવાચક આ ૩૦ – નામો છે. જેમ કે – પ્રાણવધ, શરીરથી પ્રાણનું ઉન્મૂલન, અવિશ્વાસ, હિંસાવિહિંસા, અકૃત્ય, ઘાતકારી, મારણ, વધકારી, ઉપદ્રવકારી, અતિપાતકારી, આરંભસમારંભ, આયુકર્મનો ઉપદ્રવ – ભેદ – નિષ્ઠાપના – ગાલના – સંવર્તક – સંક્ષેપ, મૃત્યુ, અસંયમ, કટકમર્દન, વ્યુપરમણ, પરભવ સંક્રામણકારક, દુર્ગતિપ્રપાત,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ मृषा

Gujarati 11 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल कडुय चडुलभावा कुद्धा लुद्धाभया य हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग कारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार कलाय कारुइज्जा वंचनपरा चारिय चडुयार नगरगुत्तिय परिचारग दुट्ठवायि सूयक अनवलभणिया य पुव्वकालियवयणदच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अनिग्गहा अनियता छंदेण मुक्कवायी भवंति अलियाहिं जे अविरया। अवरे नत्थिकवादिणो वामलोकवादी भणंति–सुण्णंति। नत्थि जीवो। न जाइ इहपरे वा लोए। न य किंचिवि फुसति

Translated Sutra: આ અસત્ય બોલનારા કેટલાક પાપી, અસંયત, અવિરત, કપટ કુટિલ કટુક ચટુલ ભાવવાળા, ક્રુદ્ધ, લુબ્ધ, ભયોત્પાદક, હાસ્યસ્થિત, સાક્ષી, ચોર – ગુપ્તચર, ખંડરક્ષક, જુગારમાં હારેલ, ગિરવી રાખનાર, કપટથી કોઈ વાતને વધારીને કહેનાર, કુલિંગી, ઉપધિકા, વણિક, ખોટા તોલમાપ કરનાર, નકલી સિક્કોથી આજીવિકા કરનાર, પડગાર, સોની, કારીગર, વંચન પર, દલાલ, ચાટુકાર,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ मृषा

Gujarati 12 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्ख-संकडं नरय-तिरिय-जोणिं। तेण य अलिएण समनुबद्धा आइद्धा पुनब्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गति-वसहिमुवगया। तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परव्वसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिताफुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना खरफरुस विरत्त ज्झाम ज्झुसिरा निच्छाया लल्ल विफल वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीनभिन्नघोसा विहिंसा जडबहिरंधया य मम्मणा अकंत विकय करणा नीया नीयजन निसेविणो लोग गरहणिज्जा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक वेद अज्झप्प समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि वियला। अलिएण

Translated Sutra: ઉક્ત અસત્યભાષણના ફળવિપાકથી અજાણ લોકો નરક અને તિર્યંચયોનિની વૃદ્ધિ કરે છે. જ્યાં મહાભયંકર, અવિશ્રામ, બહુ દુઃખોથી પરિપૂર્ણ અને દીર્ઘકાલિક વેદના ભોગવવી પડે છે. તે અસત્ય સાથે સારી રીતે જોડાયેલા ભયંકર અને દુર્ગતિને પ્રાપ્ત કરાવનારા અંધકાર રૂપ પુનર્ભવમાં ભટકે છે. તે પણ દુઃખે કરી અંત પામે તેવા, દુર્ગત, દુરંત, પરતંત્ર,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Gujarati 13 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! तइयं च अदिन्नादाणं–हर दह मरण भय कलुस तासण परसंतिगऽभेज्जलोभमूलं काल विसम संसियं अहोऽच्छिण्णतण्ह-पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्जं छिद्दमंतर विधुर वसण मग्गण उस्सव मत्त प्पमत्त पसुत्त वंचणाखिवण घायणपर अनिहुयपरिणामतक्करजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण मित्तजण भेदविप्पीतिकारकं रागदोस-बहुलं पुणो य उप्पूर समर संगाम डमर कलि कलह वेहकरणं दुग्गति विणिवायवड्ढणं भवपुनब्भवकरं चिरपरिचितमनुगयं दुरंतं। तइयं अधम्मदारं।

Translated Sutra: હે જંબૂ ! ત્રીજું અધર્મદ્વાર – અદત્તાદાન, હૃદયને બાળનાર – મરણભયરૂપ, કલુષતામય, બીજાના ધનાદિમાં મૂર્ચ્છા કે ત્રાસ સ્વરૂપ, જેનું મૂળ લોભ છે. વિષમકાળ – વિષમ સ્થાન આશ્રિત, નિત્ય તૃષ્ણાગ્રસ્ત જીવોને અધોગતિમાં લઈ જનારી બુદ્ધિવાળું છે, અપયશનું કારણ છે, અનાર્યપુરુષ આચરિત છે. છિદ્ર – અંતર – વિધુર – વ્યસન – માર્ગણાપાત્ર
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Gujarati 16 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अतिधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार निद्दय आरक्खिय खर फरुस वयण तज्जण गलत्थल्ल उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं। तत्थवि गोम्मिकप्पहार दूमण निब्भच्छण कडुयवयण भेसणग भयाभिभूया अक्खित्त नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच पास मग्गण परायणेहिं गोम्मिकभडेहिं विविहेहिं बंधणेहि, किं ते? हडि नियड बालरज्जुय कुदंडग वरत्त लोह-संकल हत्थंदुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहिं, अन्नेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण मोड-णाहि

Translated Sutra: આ પ્રમાણે કોઈ પરદ્રવ્યને શોધતા કેટલાક ચોર પકડાઈ જાય છે, તેને મારપીટ થાય છે, બંધનોથી બંધાય છે, કેદ કરાય છે, વેગથી જલદી ઘૂમાવાય છે. નગરમાં આરક્ષકોને સોંપી દેવાય છે. પછી ચોરને પકડનાર, ચાર ભટ, ચાટુકર – કારાગૃહમાં નાંખી દે છે. કપડાના ચાબૂકના પ્રહારોથી, કઠોર હૃદય આરક્ષકોના તીક્ષ્ણ અને કઠોર વચનો, તર્જના, ગરદન પકડી ધક્કો
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Gujarati 23 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी। पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा। उड्ढलोगवासी दुविहा

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩. પૂર્વોક્ત પરિગ્રહના લોભથી ગ્રસ્ત, પરિગ્રહ પ્રત્યે રુચિ રાખનાર, ઉત્તમ ભવન અને વિમાન નિવાસી, મમત્વપૂર્વક પરિગ્રહને ગ્રહણ કરે છે. પરિગ્રહરૂચિ, વિવિધ પરિગ્રહ કરવાની બુદ્ધિવાળા દેવનિકાય જેમ કે. અસુર, નાગ, સુવર્ણ, વિદ્યુત, અગ્નિ, દ્વીપ, ઉદધિ, દિશિ, વાયુ, સ્તનિત – કુમારો તથા અણપન્નિ, પણપન્નિ, ઋષિવાદી, ભૂતવાદી,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Gujarati 25 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएहिं पंचहिं असंवरेहिं रयमादिणित्तु अनुसमयं । चउव्विहगतिपेरंतं, अनुपरियट्टंति संसारं ॥

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: પાંચ ગાથા. અનુવાદ: સૂત્ર– ૨૫. આ પૂર્વોક્ત પાંચ આસ્રવદ્વારોના નિમિત્તે જીવ પ્રતિસમય કર્મરૂપી રજનો સંચય કરી ચાર ગતિરૂપ સંસારમાં ભમે છે. સૂત્ર– ૨૬. જે અકૃતપુન્યવાન્‌ ધર્મને સાંભળતા નથી, સાંભળીને જે પ્રમાદ કરે છે, તે અનંતકાળ સુધી ચાર ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે. સૂત્ર– ૨૭. જે પુરુષ મિથ્યાદૃષ્ટિ,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Gujarati 33 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ताणि उ इमाणि सुव्वय-महव्वयाइंलोकहिय-सव्वयाइं सुयसागर देसियाइं तव संजम महव्वयाइं सीलगुणवरव्वयाइं सच्चज्जवव्वयाइं नरग तिरिय मणुय देवगति विवज्जकाइं सव्वजिनसासणगाइं कम्मरयविदारगाइं भवसयविणासणकाइं दुहसयविमोयणकाइं सुहसयपवत्तणकाइं कापुरिस-दुरु-त्तराइं सप्पुरिसनिसेवियाइं निव्वाणगमणमग्गसग्गपणायगाइं संवरदाराइं पंच कहियाणि उ भगवया। तत्थ पढमं अहिंसा, जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति– दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा निव्वाणं निव्वुई समाही सत्ती कित्ती कंती रती य विरती य सुयंग तित्ती दया विमुत्ती खंती समत्ताराहणा महंती बोही बुद्धी धिती समिद्धी रिद्धी विद्धी ठिती

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૨
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ सत्य

Gujarati 36 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! बितियं च सच्चवयणं–सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिट्ठं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर नरवसभ पवर बलवग सुविहियजण बहुमयं परमसाहु-धम्मचरणं तव नियम परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग्गसिद्धिपहदेसकं अवितहं, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं। सच्चेण महासमुद्दमज्झे चिट्ठंति, न निमज्जंति मूढाणिया वि पोया। सच्चेण य उदगसंभमंसि

Translated Sutra: હે જંબૂ ! બીજું સંવર – સત્ય વચન છે. તે શુદ્ધ, શુચિ, શિવ, સુજાત, સુ – ભાષિત, સુવ્રત, સુકથિત, સુદૃષ્ટ, સુપ્રતિષ્ઠિત, સુપ્રતિષ્ઠિતયશ, સુસંયમિત વચનથી કહેવાયેલ છે. તે સુરવર, નર વૃષભ, પ્રવર બલધારી અને સુવિહિત લોકોને બહુમત છે. પરમ સાધુજનનું ધર્મ અનુષ્ઠાન, તપ – નિયમથી પરિગૃહીત, સુગતિના પથનું પ્રદર્શક અને લોકમાં ઉત્તમ આ વ્રત
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Gujarati 39 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! एत्तो य बंभचेरं–उत्तम तव नियम णाण दंसण चरित्त सम्मत्त विणयमूलं जम नियम गुणप्पहाणजुतं हिमवंत-महंत तेयमंतं पसत्थ गंभीर थिमित मज्झं अज्जवसाहुजणाचरितं मोक्खमग्गं विसुद्ध सिद्धिगति निलयंसासयमव्वाबाहमपुणब्भवं पसत्थं सोमं सुभं सिवमचल-मक्खयकरं जतिवर सारक्खियं सुचरियं सुसाहियं नवरि मुणिवरेहिं महापुरिस धीर सूर धम्मिय धितिमंताण य सया विसुद्धं भव्वं भव्वजणानुचिण्णं निस्संकियं निब्भयं नित्तुसं निरायासं निरुवलेवं निव्वुतिधरं नियम निप्पकंपं तवसंजममूलदलिय नेम्मं पंचमहव्वयसुरक्खियं समितिगुत्तिगुत्तं ज्झाणवरकवाडसुकयं अज्झप्पदिण्णफलिहं संणद्धोत्थइयदुग्गइपहं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૯. હે જંબૂ ! હવે બ્રહ્મચર્ય – જે ઉત્તમ તપ, નિયમ, જ્ઞાન, દર્શન, ચારિત્ર, સમ્યક્ત્વ, વિનયનું મૂળ છે. યમ, નિયમ, ગુણપ્રધાન યુક્ત છે. હિમવંત પર્વતથી મહાન, તેજોમય, પ્રશસ્ત – ગંભીર – સ્તિમિત – મધ્ય છે. સરળાત્મા સાધુજન દ્વારા આચરિત, મોક્ષનો માર્ગ છે. વિશુદ્ધ સિદ્ધિ ગતિના આવાસરૂપ છે. શાશ્વત – અવ્યાબાધ – પુનર્ભવ રહિતકર્તા
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Gujarati 43 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू। स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्धं चरति बंभचेरे। इमं च रति राग दोस मोह पवड्ढणकरं किंमज्झ पमायदोस पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खसीसकरचरणवदणधोवण संबाहण गायकम्म परिमद्दण अनु-लेवण चुण्णवास धूवण सरीरपरिमंडण बाउसिक हसिय भणिय नट्टगीयवाइयनडनट्टकजल्ल-मल्लपेच्छण बेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव संजम बंभचेर घातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयव्वाइं सव्वकालं। भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव नियम सील जोगेहिं निच्चकालं, किं ते? – अण्हाणकऽदंतधोवण सेयमलजल्लधारण

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯
Pushpika पूष्पिका Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ चंद्र

Hindi 3 Sutra Upang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासइ, पच्छा समणं भगवं महावीरं जहा सूरियाभे आभियोगं

Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय कहा है ? आयुष्मन्‌ जम्बू ! उस काल और समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा राज्य करता था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। दर्शनार्थ परिषद नीकली। उस काल और उस समय में ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान
Pushpika पूष्पिका Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ शुक्र

Hindi 7 Sutra Upang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गिं हुणइ, चरुं साहेइ, साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता अतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ। तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चछट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयं गेण्हइ, गेण्हित्ता दाहिणं दिसिं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सानिलमाहणरिसिंअभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन सोमिल ब्रह्मर्षी ने दूसरा षष्ठक्षपण अंगीकार किया। पारणे के दिन भी आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे, वल्कल वस्त्र पहने यावत्‌ आहार किया, इतना विशेष है कि इस बार वे दक्षिण दिशा में गए और कहा – ‘हे दक्षिण दिशा के यम महाराज ! प्रस्थान के लिए प्रवृत्त सोमिल ब्रह्मर्षी की रक्षा करें और यहाँ जो कन्द, मूल आदि
Pushpika पूष्पिका Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ बहुपुत्रिका

Hindi 8 Sutra Upang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाने सभाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं जहा सूरियाभे जाव भुंजमाणी विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण यावत्‌ निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है तो भदन्त ! चतुर्थ अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। राजा श्रेणिक था। स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद् नीकली। उस काल और उस समय में सौधर्मकल्प
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 5 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे देवे सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाने सभाए सुहम्माए सूरियाभंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहिं बहूहिं सूरियाभ-विमानवासीहिं वेमानिएहिं देवेहिं देवीहिं य सद्धिं संपरिवुडे महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति। तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे (दीवे?) भारहे

Translated Sutra: उस काल उस समय में सूर्याभ नामक देव सौधर्म स्वर्ग में सूर्याभ नामक विमान की सुधर्मा सभा में सूर्याभ सिंहासन पर बैठकर चार हजार सामानिक देवों, सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा और बहुत से सूर्याभ विमानवासी वैमानिक देवदेवियों सहित अव्याहत निरन्तर
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 8 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते आभिओगिया देवा सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमस्सिया हरिसवस विसप्पमाण हियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयनाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजनाणं अंजनंपुलगाणं रयनाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति,

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वे आभियोगिक देव सूर्याभदेव की इस आज्ञा को सूनकर हर्षित हुए, सन्तुष्ट हुए, यावत्‌ हृदय विकसित हो गया। उन्होंने दोनों हाथों को जोड़ मुकलित दस नखों के द्वारा किये गए सिरसावर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके विनयपूर्वक आज्ञा स्वीकार की। ‘हे देव ! ऐसा ही करेंगे’ इस प्रकार से सविनय आज्ञा स्वीकार करके ईशान
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 10 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते आभिओगिया देवा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिम दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयनाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजनाणं अंजनं-पुलगाणं रयनाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के इस कथन को सूनकर उन आभियोगिक देवों ने हर्षित यावत्‌ विकसितहृदय होकर भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। वे उत्तर – पूर्व दिग्‌भाग में गए। वहाँ जाकर उन्होंने वैक्रिय समुद्‌घात किया और संख्यात योजन का दण्ड बनाया जो कर्केतन यावत्‌ रिष्टरत्नमय था और उन रत्नों के यथाबादर पुद्‌गलों
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 14 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे ते सूरियाभविमानवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सव्विड्ढीए जाव अकालपरिहीनं चेव अंतियं पाउब्भवमाणे पासति, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परम-सोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए आभिओगियं देवं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! अनेगखंभसयसन्निविट्ठं लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामिय उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गय वइरवेइया परिगयाभिरामं विज्जाहर जमलजुयल जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवग-सहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ विलम्बि किये बिना उन सभी सूर्याभविमानवासी देवों और देवियों को अपने सामने उपस्थित देखकर हृष्ट – तुष्ट यावत्‌ प्रफुल्लहृदय हो सूर्याभदेव ने अपने आभियोगिक देव को बुलाया और बुलाकर उससे इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रिय ! तुम शीघ्र ही अनेक सैकड़ों स्तम्भों पर संनिविष्ट एक यान की विकुर्वणा करो। जिसमें
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 17 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिखित्तेणं वइरामयवट्ट लट्ठ संठिय सुसिलिट्ठ परिघट्ठ मट्ठ सुपतिट्ठिएणं विसिट्ठेणं अनेगवरपंचवण्णकुडभी सहस्सपरिमंडियाभिरामेणं वाउद्धुयविजयवेजयंती-पडागच्छत्तातिच्छत्तकलिएणं तुंगेणं गगनतलमनुलिहंतसिहरेणं जोयणसहस्समूसिएणं महतिमहा-लतेणं महिंदज्झएणं पुरतो कड्ढिज्जमाणेणं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं सत्तहिं अनियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्ख देवसाहस्सीहिं अन्नेहि य बहूहिं सूरियाभविमानवासीहिं वेमाणिएहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव नाइयरवेणं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ पाँच अनीकाधिपतियों द्वारा परिरक्षित वज्ररत्नमयी गोल मनोज्ञ संस्थान वाले यावत्‌ एक हजार योजन लम्बे अत्यंत ऊंचे महेन्द्रध्वज को आगे करके वह सूर्याभदेव चार हजार सामानिक देवों यावत्‌ सोलह हजार आत्मरक्षक देवों एवं सूर्याभविमान वासी और दूसरे वैमानिक देव – देवियों के साथ समस्त ऋद्धि यावत्‌ वाद्यनिनादों
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 24 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करेत्ता तं चेव भाणियव्वं जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवड पच्चावड सेढि पसेढि सोत्थिय सोवत्थिय पूसमाणव वद्धमाणग मच्छंडा मगरंडा जारा मारा फुल्लावलि पउमपत्त सागरतरंग वसंतलता पउमलयभत्तिचित्तं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति। एवं च एक्किक्कियाए नट्टविहीए समोसरणादिया एसा वत्तव्वया जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स ईहामिअ उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु

Translated Sutra: इसके बाद सभी देवकुमार और देवकुमारियाँ पंक्तिबद्ध होकर एक साथ मिले। सब एक साथ नीचे नमे और एक साथ ही अपना मस्तक ऊपर कर सीधे खड़े हुए। इसी क्रम से पुनः कर सीधे खड़े होकर नीचे नमे और फिर सीधे खड़े हुए। खड़े होकर एक साथ अलग – अलग फैल गए और फिर यथायोग्य नृत्य – गान आदि के उपकरणों – वाद्यों को लेकर एक साथ ही बजाने लगे, एक साथ
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 32 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहूओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुज्झ रयय वालुयाओ वेरुलिय मणि फालिय पडल पच्चोयडाओ सुओयार सुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछन्नपत्तभिस मुणालाओ बहुउप्पल कुमुय नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयवत्त सहस्सपत्त केसरफुल्लोवचियाओ छप्पयपरि-भुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभ अनेगसउणमिहुणग-पविचरिताओ पत्तेयं-पत्तेयं

Translated Sutra: उन वनखण्डों में जहाँ – तहाँ स्थान – स्थान पर अनेक छोटी – छोटी चौरस वापिकाएं – बावड़ियाँ, गोल पुष्करिणियाँ, दीर्घिकाएं, गुंजालिकाएं, फूलों से ढंकी हुई सरोवरों की पंक्तियाँ, सर – सर पंक्तियाँ एवं कूपपंक्तियाँ बनी हुई हैं। इन सभी वापिकाओं आदि का बाहरी भाग स्फटिमणिवत्‌ अतीव निर्मल, स्निग्ध है। इनके तट रजत – मय
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 42 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वह सूर्याभदेव उन सामानिकपरिषदोपगत देवों से इस अर्थ को सूनकर और हृदय में अवधारित कर हर्षित, सन्तुष्ट यावत्‌ हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से नीकला, नीकलकर ह्रद पर आया, ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ। पुर्वदिशावर्ती
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 44 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमानवासिणो वेमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदनकलस-हत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति। तए णं से सूरियाभे देवे चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि य सूरियाभविमानवासीहिं

Translated Sutra: तब उस सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव यावत्‌ सोलह हजार आत्मरक्षक देव तथा कितने ही अन्य बहुत से सूर्याभविमान वासी देव और देवी भी हाथों में उत्पल यावत्‌ शतपथ – सहस्रपत्र कमलों कोल कर सूर्याभदेव के पीछे – पीछे चले। तत्पश्चात्‌ उस सूर्याभदेव के बहुत – से अभियोगिक देव और देवियाँ हाथों में कलश यावत्‌ धूप – दानों
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 54 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्दे इ वा जनवूहे इ वा जनबोले इ वा जनकलकले इ वा जनउम्मी इ वा जनसन्निवाए इ वा बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमारसमणे जातिसंपन्ने पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रावस्ती नगरी के शृंगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों और मार्गों में लोग आपस में चर्चा करने लगे, लोगों के झुंड इकट्ठे होने लगे, लोगों के बोलने की घोंघाट सूनाई पड़ने लगी, जन – कोलाहल होने लगा, भीड़ के कारण लोग आपस में टकराने लगे, एक के बाद एक लोगों के टोले आते दिखाई देने लगे, इधर
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 59 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से केसी कुमारसमणे अन्नया कयाइ पाडिहारियं पीढ फलग सेज्जा संथारगं पच्चप्पिणइ, सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव केयइ-अद्धे जनवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवने उज्जानेतेणेव उवागच्छइ, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणउम्मी इ वा जणसन्निवाए इ वा जाव परिसा निग्गच्छइ। तए णं ते उज्जानपालगा

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ किसी समय प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि उन – उनके स्वामियों को सौंपकर केशी कुमारश्रमण श्रावस्ती नगरी और कोष्ठक चैत्य से बाहर नीकले। पाँच सौ अन्तेवासी अनगारों के साथ यावत्‌ विहार करते हुए जहाँ केकयधर्म जनपद था, जहाँ सेयविया नगरी थी और उस नगरी का मृगवन नामक उद्यान था, वहाँ आए। यथाप्रतिरूप
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 62 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चित्ते सारही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कय नियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते साओ गिहाओ निग्गच्छइ, जेणेव पएसिस्स रन्नो गिहे जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं कंबोएहिं चत्तारि आसा उवायणं उवणीया, ते य मए देवानुप्पियाणं अन्नया चेव विणइया। तं एह णं सामी! ते आसे चिट्ठं पासह। तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी–गच्छाहि णं तुमं चित्ता! तेहिं चेव चउहिं आसेहिं चाउग्घंटं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ कल रात्रि के प्रभात रूप में परिवर्तित हो जाने से जब कोमल उत्पल कमल विकसित हो चूके और धूप भी सुनहरी हो गई तब नियम एवं आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर जाज्वल्यमान तेज सहित सहस्ररश्मि दिनकर के चमकने के बाद चित्त सारथी अपने घर से नीकला। जहाँ प्रदेशी राजा था, वहाँ आया। दोनों हाथ जोड़ यावत्‌ अंजलि करके
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 67 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छति– एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेगगनणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणगदोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि। तए णं मम णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेंति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतं चेव अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि। तए णं अहं अन्नया

Translated Sutra: राजा प्रदेशी ने कहा – हे भदन्त ! जीव और शरीर की भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए अपने देवों के नहीं आने के कारण रूप में जो उपमा दी, वह तु बुद्धि से कल्पित एक दृष्टान्त मात्र है। परन्तु भदन्त ! किसी एक दिन मैं अपने अनेक गणनायक, दंड़नायक, राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इब्भ, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, मंत्री, महामंत्री,
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 81 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था –जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च रट्ठं च बलं च बाहणं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च ममं जनवयं च अनाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु मे पएसिं रायं केणवि सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमारं रज्जे ठवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणीए पालेमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च

Translated Sutra: तब सूर्यकान्ता रानी को इस प्रकार का आन्तरिक यावत्‌ विचार उत्पन्न हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि सूर्यकान्त कुमार प्रदेशी राजा के सामने मेरे इस रहस्य को प्रकाशित कर दे। ऐसा सोचकर सूर्यकान्ता रानी प्रदेशी राजा को मारने के लिए उसके दोष रूप छिद्रों को, कुकृत्य रूप आन्तरिक मर्मों को, एकान्त में सेवित निषिद्ध आचरण रूप
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 84 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणयमित्ते जोव्वणगमनुपत्ते बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्त-पडिबोहिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले सिंगारागार-चारुरूवे संगय गय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास निउण जुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ। तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विन्नय-परिणयमित्तं जोव्वण-गमनुपत्तं बावत्तरिकलापंडियं नवंगसुतपडिबोहियं अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारयं गीयरइं गंधव्वनट्टकुसलं सिंगारागारचारुरूवं संगय गय हसिय

Translated Sutra: इसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक बालभाव से मुक्त हो परिपक्व विज्ञानयुक्त, युवावस्थासंपन्न हो जाएगा। बहत्तर कलाओं में पंडित होगा, बाल्यावस्था के कारण मनुष्य के जो नौ अंग – जागृत हो जाएंगे। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो जाएगा, वह गीत का अनुरागी, गीत और नृत्य में कुशल हो जाएगा। अपने सुन्दर वेष से शृंगार
Rajprashniya રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Gujarati 32 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहूओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुज्झ रयय वालुयाओ वेरुलिय मणि फालिय पडल पच्चोयडाओ सुओयार सुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछन्नपत्तभिस मुणालाओ बहुउप्पल कुमुय नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयवत्त सहस्सपत्त केसरफुल्लोवचियाओ छप्पयपरि-भुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभ अनेगसउणमिहुणग-पविचरिताओ पत्तेयं-पत्तेयं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૧
Rajprashniya રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Gujarati 42 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧
Rajprashniya રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Gujarati 44 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमानवासिणो वेमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदनकलस-हत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति। तए णं से सूरियाभे देवे चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि य सूरियाभविमानवासीहिं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૩
Rajprashniya રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Gujarati 54 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्दे इ वा जनवूहे इ वा जनबोले इ वा जनकलकले इ वा जनउम्मी इ वा जनसन्निवाए इ वा बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमारसमणे जातिसंपन्ने पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन

Translated Sutra: ત્યારે શ્રાવસ્તી નગરીના શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક, ચત્વર, ચતુર્મુખ, મહાપથ – પથોમાં મહા જનશબ્દ, જનવ્યૂહ, જન કલકલ, જન બોલ, જનઉર્મિ, જનઉત્કલિક, જન સંનિપાતિક યાવત્‌ પર્ષદા સેવે છે. ત્યારે તે ચિત્તસારથી, તે મહા જનશબ્દ અને જન કલકલ સાંભળીને અને જોઈને આવા પ્રકારનો સંકલ્પ યાવત્‌ ઉત્પન્ન થયો. શું આજે શ્રાવસ્તી નગરીમાં ઇન્દ્ર
Rajprashniya રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Gujarati 84 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणयमित्ते जोव्वणगमनुपत्ते बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्त-पडिबोहिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले सिंगारागार-चारुरूवे संगय गय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास निउण जुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ। तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विन्नय-परिणयमित्तं जोव्वण-गमनुपत्तं बावत्तरिकलापंडियं नवंगसुतपडिबोहियं अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारयं गीयरइं गंधव्वनट्टकुसलं सिंगारागारचारुरूवं संगय गय हसिय

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૪. ત્યારપછી તે દૃઢપ્રતિજ્ઞ, બાલ્યભાવ છોડીને વિજ્ઞાત પરિણત માત્ર, બોંતેર કલા પંડિત, અઢાર ભેદે દેશી પ્રકારની ભાષામાં વિશારદ, સુપ્તનવાંગ જાગૃત થયેલ, ગીતરતી, ગંધર્વ – નૃત્ય કુશળ, શૃંગારાગારચારુવેશી, સંગત હસિત ભણિત ચેષ્ટિત વિલાસ સંલાપ નિપુણ યુક્તોપચાર કુશળ, અશ્વ – હાથી – બાહુયોધી, બાહુપ્રમર્દી, પર્યાપ્ત
Saman Suttam Saman Suttam Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१३. अप्रमादसूत्र English 168 View Detail
Mool Sutra: जागरह नरा ! णिच्चं, जागरमाणस्स वड्ढते बुद्धी। जो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो।।९।।

Translated Sutra: Oh: human beings; always be vigilant. He who is alert gains more and more knowledge. He who is invigilant is not blessed. Ever blessed is he who is vigilant.
Saman Suttam Saman Suttam Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र English 650 View Detail
Mool Sutra: पुढविजलतेयवाऊ-वणप्फदी विविहथावरेइंदी। बिगतिगचदुपंचक्खा, तसजीवा होंति संखादी।।२७।।

Translated Sutra: The earth, the water, the fire, the air and the plants are various kinds of immobile beings with one sense organ. The mobile beings like conches etc. are possessed of two, three, four and five sense- organs.
Saman Suttam Saman Suttam Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४३. समापनसूत्र English 747 View Detail
Mool Sutra: अत्ताण जो जाणइ जो य लोगं, जो आगतिं जाणइ णागतिं च। जो सासयं जाण असासयं च, जातिं मरणं च चयणोववातं।।३।।

Translated Sutra: One who knows about a soul, the world, the ensuing births, cessation of the ensuing births, the things, eternal and non-eternal, bith, death in general and that of deities soul in the tour and higher region, the karmic inflow. The stay of the stoppage karmic inflow, misery, the purging of karmas only he deserves to preach the dectrine of right action. Refers 747-748
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१५. आत्मसूत्र Hindi 182 View Detail
Mool Sutra: चउगइभवसंभमणं, जाइजरामरण-रोयसोका य। कुलजोणिजीवमग्गण-ठाणा जीवस्स णो संति।।६।।

Translated Sutra: शुद्ध आत्मा में चतुर्गतिरूप भव-भ्रमण, जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक तथा कुल, योनि, जीवस्थान और मार्गणास्थान नहीं होते।
Saman Suttam સમણસુત્તં Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१३. अप्रमादसूत्र Gujarati 168 View Detail
Mool Sutra: जागरह नरा ! णिच्चं, जागरमाणस्स वड्ढते बुद्धी। जो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो।।९।।

Translated Sutra: હે મનુષ્યો, સતત જાગતા રહો! જે જાગતો રહે છે તેનું જ્ઞાન વધે છે. સૂઈ રહેનારો ભાગ્યહીન છે, જાગનારો ભાગ્યશાળી છે.
Saman Suttam સમણસુત્તં Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Gujarati 650 View Detail
Mool Sutra: पुढविजलतेयवाऊ-वणप्फदी विविहथावरेइंदी। बिगतिगचदुपंचक्खा, तसजीवा होंति संखादी।।२७।।

Translated Sutra: પૃથ્વીકાય, અપ્કાય, તેઉકાય, વાયુકાય અને વનસ્પતિકાય - આ પાંચ પ્રકારનાં જીવોને એક જ ઈન્દ્રિય હોય છે અને તે બધા સ્થાવર હોય છે. જેમને બે, ત્રણ, ચાર કે પાંચ ઈન્દ્રિય હોય તેમને ત્રસ કહેવાય છે. (માટી, પાણી, અગ્નિ, વાયુ અને બધી જ વનસ્પતિ એકેન્દ્રિય સ્થાવર જી
Showing 801 to 850 of 1351 Results