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Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2349 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा आयरिओ वावि ते इहं लोगं । जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2350 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघा न सोग्गतिं णेंति । जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2351 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघो व एति इहलोए । जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2355 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणचरणसंघातं रागद्दोसेहिं जो वि संघाए । सो भमिही संसारं चतुरंतं तं अनवयग्गं ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2378 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो अभिमुहेति लुद्धो संसारकडिल्लगंमि अप्पाणं । उम्मग्गदेसणाए तित्थगरासायणाए य ॥

Translated Sutra: Not Available
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

पिण्ड

Hindi 1 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य । इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुत्ती ॥

Translated Sutra: पिंड़ यानि समूह। वो चार प्रकार के – नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। यहाँ संयम आदि भावपिंड़ उपकारक द्रव्यपिंड़ है। द्रव्यपिंड़ के द्वारा भावपिंड़ की साधना की जाती है। द्रव्यपिंड़ तीन प्रकार के हैं। आहार, शय्या, उपधि। इस ग्रंथ में मुख्यतया आहारपिंड़ के बारे में सोचना है। पिंड़ शुद्धि आठ प्रकार से सोचनी है। उद्‌गम, उत्पादना,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 117 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं । भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥

Translated Sutra: संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 512 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रायगिहे धम्मरुई असाढभूई य खुड्डओ तस्स । रायनडगेहपविसण संभोइय मोयए लंभो ॥

Translated Sutra: आहार पाने के लिए दूसरों को पता न चले उस प्रकार से मंत्र, योग, अभिनय आदि से अपने रूप में बदलाव लाकर आहार पाना। इस प्रकार से पाया हुआ आहार मायापिंड़ नाम के दोष से दूषित माना जाता है। राजगृही नगरी में सिंहस्थ नाम का राजा राज्य करता था। उस नगर में विश्वकर्मा नाम का जानामाना नट रहता था। उसको सभी कला में कुशल अति स्वरूपवान
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 519 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लब्भंतंपि न गिण्हइ अन्नं अमुगंति अज्ज पेच्छामि । भद्दरसंति व काउं गिण्हइ खद्धं सिणिद्धाई ॥

Translated Sutra: रस की आसक्ति से सिंह केसरिया लड्डू, घेबर आदि आज मैं ग्रहण करूँगा। ऐसा सोचकर गोचरी के लिए जाए, दूसरा कुछ मिलता हो तो ग्रहण न करे लेकिन अपनी ईच्छित चीज पाने के लिए घूमे और ईच्छित चीज चाहिए उतनी पाए उसे लोभपिंड़ कहते हैं। साधु को ऐसी लोभपिंड़ दोषवाली भिक्षा लेना न कल्पे। चंपा नाम की नगरी में सुव्रत नाम के साधु आए
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 677 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घासेसणा उ भावे होइ पसत्था तहेव अपसत्था । अपसत्था पंचविहा तव्विवरीया पसत्थाउ ॥

Translated Sutra: अप्रशस्त भावग्रासएषणा – उसके पाँच प्रकार हैं वो इस प्रकार – संयोजना, खाने के दो द्रव्य स्वाद के लिए इकट्ठे करना। प्रमाण – जरुरत से ज्यादा आहार खाना। अंगार – खाते समय आहार की प्रशंसा करना। धूम्र – खाते समय आहार की नींदा करना। कारण – आहार लेने के छह कारण सिवा आहार लेना। संयोजना यानि द्रव्य इकट्ठा करना। वो दो
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

पिण्ड

Gujarati 94 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नामं ठवणा दविए भावंमि वे य गवेसणा मुनेयव्वा । दव्वंमि कुरंगगया उग्गमउप्पायणा भावे ॥

Translated Sutra: નામ, સ્થાપના, દ્રવ્ય અને ભાવને વિશે ગવેષણા જાણવી. તેમાં દ્રવ્યને વિશે મૃગ અને હસ્તી જાણવા. ભાવમાં ઉદ્‌ગમ અને ઉત્પાદના જાણવા. દ્રવ્યમાં કુરંગ (મૃગ)નું દૃષ્ટાંત ત્રણ ગાથા વડે કહે છે, જે વૃત્તિમાં કથાનક થકી આપેલ છે અને હાથીનું દૃષ્ટાંત બીજી બે ગાથા વડે કહે છે, જે વૃત્તિથી જાણવું..તેનો સાર એ છે કે – જેઓ આહાર લંપટત્વથી
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 14 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जीवपन्नवणा? जीवपन्नवणा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नजीवपन्नवणा य असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा य।

Translated Sutra: वह जीवप्रज्ञापना क्या है ? दो प्रकार की है। संसार – समापन्न जीवों की प्रज्ञापना और असंसार – समापन्न जीवों की प्रज्ञापना।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 15 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा य परंपरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा य।

Translated Sutra: वह असंसारसमापन्नजीव – प्रज्ञापना क्या है ? दो प्रकार की है। अनन्तरसिद्ध और परम्परसिद्ध – असंसार – समापन्नजीव – प्रज्ञापना।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 16 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगरसिद्धा सयंबुद्ध-सिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धबोहियसिद्धा इत्थीलिंगसिद्धा पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंगसिद्धा सलिंग सिद्धा अन्नलिंगसिद्धा गिहिलिंगसिद्धा एगसिद्धा अनेगसिद्धा। से त्तं अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: वह अनन्तरसिद्ध – असंसारसमापन्नजीव – प्रज्ञापना क्या है ? पन्द्रह प्रकार की है। (१) तीर्थसिद्ध, (२) अतीर्थसिद्ध, (३) तीर्थंकरसिद्ध, (४) अतीर्थंकरसिद्ध, (५) स्वयंबुद्धसिद्ध, (६) प्रत्येकबुद्धसिद्ध, (७) बुद्ध – बोधितसिद्ध, (८) स्त्रीलिंगसिद्ध, (९) पुरुषलिंगसिद्ध, (१०) नपुंसकलिंगसिद्ध, (११) स्वलिंगसिद्ध, (१२) अन्य – लिंगसिद्ध,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 17 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परंपरसिद्ध-असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? परंपरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–अपढमसमयसिद्धा दुसमयसिद्धा तिसमयसिद्धा चउसमयसिद्धा जाव संखेज्जसमयसिद्धा असंखेज्जसमयसिद्धा अनंतसमयसिद्धा। से त्तं परंपरसिद्ध-असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा। से त्तं असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: वह परम्परसिद्ध – असंसारसमापन्न – जीव – प्रज्ञापना क्या है ? अनेक प्रकार की है। अप्रथमसमयसिद्ध, द्विसमयसिद्ध, त्रिसमयसिद्ध, यावत्‌ – संख्यातसमयसिद्ध, असंख्यात समयसिद्ध और अनन्तसमयसिद्ध।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 18 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संसारसमावन्नजीवपन्नवणा? संसारसमावन्नजीवपन्नवणा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा बेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा तेंदियसंसारसमावन्नजीव-पन्नवणा चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा पंचेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: वह संसारसमापन्नजीव – प्रज्ञापना क्या है ? पाँच प्रकार की है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय संसार – समापन्न – जीवप्रज्ञापना।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 19 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं एगेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? एगेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा –पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया।

Translated Sutra: वह एकेन्द्रिय – संसारसमापन्नजीव – प्रज्ञापना क्या है ? पाँच प्रकार की है। पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 149 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बेंदिया? [से किं तं बेइंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा?] बेंदिया [बेइंदियसंसार-समावन्नजीवपन्नवणा] अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाकिमिया कुच्छिकिमिया गंडूयलगा गोलोमा नेउरा सोमंगलगा वंसीमुहा सूईमुहा गोजलोया जलोया जलोउया संखा संखणगा धुल्ला खुल्ला वराडा सोत्तिया मोत्तिया कलुया वासा एगओवत्ता दुहओवत्ता नंदियावत्ता संवुक्का माईबाहा सिप्पिसंपुडा चंदणा समुद्दलिक्खा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिया नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एएसि णं एवमादियाणं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्त जाइकुलकोडिजोणीपमुहसतसहस्सा

Translated Sutra: वे द्वीन्द्रिय जीव किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं। पुलाकृमिक, कुक्षिकृमिक, गण्डूयलग, गोलोम, नूपर, सौमंगलक, वंशीमुख, सूचीमुख, गौजलोका, जलोका, जलोयुक, शंख, शंखनक, घुल्ला, खुल्ला, गुडज, स्कन्ध, वराटा, सौक्तिक, मौक्तिक, कलुकावास, एकतोवृत्त, द्विधातोवृत्त, नन्दिकावर्त्त, शम्बूक, मातृवाह, शुक्ति – सम्पुट, चन्दनक,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 150 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? तेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा –ओवइया रोहिणीया कुंथू पिपीलिया उद्दंसगा उद्देहिया उक्कलिया उप्पाया उक्कडा उप्पाडा तणाहारा कट्ठाहारा मालुया पत्ताहारा तणबिंटिया पुप्फबिंटिया फलबिंटिया बीयबिंटिया तेदुरण-मज्जिया तउसमिंजिया कप्पासट्ठिसमिंजिया हिल्लिया झिल्लिया झिंगिरा झिंगिरिडा पाहुया सुभगा सोवच्छिया सुयबिंटा इंदिकाइया इंदगोवया उरुलुंचगा कोत्थलवाहगा जूया हालाहला पिसुया सतवाइया गोम्ही हत्थिसोंडा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिया नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं

Translated Sutra: वह (पूर्वोक्त) त्रीन्द्रिय – संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना कैसी है ? अनेक प्रकार की है। औपयिक, रोहिणीक, कंथु, पिपीलिका, उद्दंशक, उद्देहिका, उत्कलिक, उत्पाद, उत्कट, उत्पट, तृणहार, काष्ठाहार, मालुक, पत्राहार, तृणवृन्तिक, पत्रवृन्तिक, पुष्पवृन्तिक, फलवृन्तिक, बीजवृन्तिक, तेदुरणमज्जिक, त्रपुषमिंजिक, कार्पा –
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 151 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: वह चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना कैसी है ? अनेक प्रकार की है। अंधिक, नेत्रिक, मक्खी, मगमृगकीट, पतंगा, ढिंकुण, कुक्कुड, कुक्कुह, नन्द्यावर्त और शृंगिरिट। तथा – कृष्णपत्र, नीलपत्र, लोहितपत्र, हारिद्रपत्र, शुक्लपत्र, चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, अवभांजलिक, जलचारिक, गम्भीर, नीनिक, तन्तव, अक्षिरोट, अक्षिवेध,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 153 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हलिद्दपत्ता सुक्किलपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ओभंजलिया जलचारिया, गंभीरा णीणिया तंतवा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा नेउरा दोला भमरा भरिली जरुला तीट्ठा विच्छुता पत्तविच्छुया छाणविच्छुया जलविच्छुया पियंगाला कनगा गोमयकीडगा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिमा नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एतेसि णं एवमाइयाणं चउरिंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं नव जातिकुलकोडि-जोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। से त्तं चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: देखो सूत्र १५१
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 154 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पंचिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? पंचिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– नेरइयपंचिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा, तिरिक्खजोणियपंचिंदियसंसार-समावन्नजीवपन्नवणा, मनुस्सपंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपन्नवणा देवपंचिंदियसंसारसमावन्नजीव-पन्नवणा।

Translated Sutra: वह पंचेन्द्रिय – संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना कैसी है ? चार प्रकार की है। नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव – पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 191 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमानिया। से किं तं भवनवासी? भवनवासी दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–असुरकुमारा नागकुमारा सुवण्ण-कुमारा विज्जुकुमारा अग्गिकुमारा दीवकुमारा उदहिकुमारा दिसाकुमारा वाउकुमारा थणियकुमारा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से त्तं भवनवासी। से किं तं वाणमंतरा? वाणमंतरा अट्ठविहा पन्नत्ता, तं जहा–किन्नरा किंपुरिसा महोरगा गंधव्वा जक्खा रक्खसा भूया पिसाया। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से त्तं वाणमंतरा। से किं तं जोइसिया? जोइसिया पंचविहा पन्नत्ता,

Translated Sutra: देव कितने प्रकार के हैं ? चार प्रकार के हैं। भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भवन – वासी देव दस प्रकार के हैं – असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधि – कुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार और स्तनितकुमार। ये देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं। पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 235 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! सिद्धा परिवसंति? गोयमा! सव्वट्ठसिद्धस्स महाविमानस्स उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड्ढं अबाहाए, एत्थ णं ईसीपब्भारा नामं पुढवी पन्नत्ता– पणतालीसं जोयणसतसहस्साणि आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते, ततो अनंतरं च णं माताए माताए–पएसपरिहाणीए परिहायमाणी-परिहायमाणी सव्वेसु चरिमंतेसु मच्छियपत्तातो तनुयरी अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सिद्धों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम! सर्वार्थसिद्ध विमान की ऊपरी स्तूपिका के अग्रभाग से १२ योजन ऊपर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी है, जिसकी लम्बाई – चौड़ाई ४५ लाख योजन है। उसकी परिधि योजन १४२०३२४९ से कुछ अधिक है। ईषत्प्राग्भारा – पृथ्वी के बहुत मध्यभाग में ८ योजन का क्षेत्र है, जो आठ योजन मोटा है। उसके अनन्तर
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Hindi 297 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वत्तइस्सामि–१. सव्वत्थोवा गब्भक्कंतिया मनुस्सा, २. मनुस्सीओ संखेज्जगुणाओ, ३. बादरतेउक्काइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ४. अनुत्तरोववाइया देवा असंखेज्जगुणा, ५. उवरिमगेवेज्जगा देवा संखे-ज्जगुणा, ६. मज्झिमगेवेज्जगा देवा संखेज्ज-गुणा, ७. हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ८. अच्चुते कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ९. आरण कप्पे देवा संखेज्जगुणा, १०. पाणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ११. आणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ... ...१२. अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १३. छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १४. सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १५.

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! अब मैं समस्त जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण करने वाले महादण्डक का वर्णन करूँगा – १. सबसे कम गर्भव्युत्क्रान्तिक हैं, २. मानुषी संख्यातगुणी अधिक हैं, ३. बादर तेजस्कायिक – पर्याप्तक असंख्यात – गुणे हैं, ४. अनुत्तरौपपातिक देव असंख्यातगुणे हैं, ५. ऊपरी ग्रैवेयकदेव संख्यातगुणे हैं, ६. मध्यमग्रैवेयकदेव
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 389 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं भासगा अभासगा? गोयमा! जीवा भासगा वि अभासगा वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवा भासगा वि अभासगा वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जेते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं अभासगा। तत्थ णं जेते संसारसमावन्नगा ते णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवणन्नगा य असेलेसिपडिवणन्नगा य। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवणन्नगा ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते असेलेसिपडिवणन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदिया य अनेगिंदिया य। तत्थ णं जेते एगिंदिया ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते अनेगिंदिया ते दुविहा पन्नत्ता, तं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव भाषक हैं या अभाषक ? गौतम ! दोनों। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम! जीव दो प्रकार के हैं। संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक। जो असंसारसमापन्नक जीव हैं, वे सिद्ध हैं और सिद्ध अभाषक होते हैं, जो संसारसमापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के हैं – शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। जो शैलेषीप्रतिपन्नक
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१८ कायस्थिति

Hindi 488 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परित्ते णं भंते! परित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! परित्ते दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–कायपरित्ते य, संसारपरित्ते य। कायपरित्ते णं भंते! कायपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ। संसारपरित्ते णं भंते! संसारपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं– अनंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गल-परियट्टं देसूणं। अपरित्ते णं भंते! अपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! अपरित्ते दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–कायअपरित्ते य, संसारअपरित्ते

Translated Sutra: परीत दो प्रकार के हैं। कायपरीत और संसारपरीत। कायपरीत जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट पृथ्वीकाल तक, असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणियों तक उसी पर्यायमें रहता है। संसारपरीत जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, यावत्‌ देशोन अपार्द्ध पुद्‌गल – परावर्त्त उसी पर्याय में रहता है। अपरीत दो प्रकार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२२ क्रिया

Hindi 526 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जेते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अकिरिया। तत्थ णं जेते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलसि-पडिवणन्नगा य असेलेसिपडिवणन्नगा य। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवणन्नगा ते णं अकिरिया। तत्थ णं जेते असेलेसिपडिवणन्नगा ते णं सकिरिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि। अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जति? हंता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव सक्रिय होते हैं, अथवा अक्रिय ? गौतम ! दोनों। क्योंकि – गौतम ! जीव दो प्रकार के हैं, संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक। जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध अक्रिय हैं और जो संसारसमापन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं – शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। जो शैलेशी – प्रतिपन्नक होते हैं,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 14 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जीवपन्नवणा? जीवपन्नवणा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नजीवपन्नवणा य असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा य।

Translated Sutra: તે જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? બે ભેદે છે – સંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના અને અસંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના.
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 15 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा य परंपरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा य।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫. અસંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? અસંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના બે ભેદે કહેલ છે – અનંતર સિદ્ધ અસંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના અને પરંપર સિદ્ધ અસંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના. સૂત્ર– ૧૬. અનંતર સિદ્ધ અસંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? પંદર ભેદે છે – ૧. તીર્થસિદ્ધ, અતીર્થસિદ્ધ,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 16 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगरसिद्धा सयंबुद्ध-सिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धबोहियसिद्धा इत्थीलिंगसिद्धा पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंगसिद्धा सलिंग सिद्धा अन्नलिंगसिद्धा गिहिलिंगसिद्धा एगसिद्धा अनेगसिद्धा। से त्तं अनंतरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 17 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परंपरसिद्ध-असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? परंपरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–अपढमसमयसिद्धा दुसमयसिद्धा तिसमयसिद्धा चउसमयसिद्धा जाव संखेज्जसमयसिद्धा असंखेज्जसमयसिद्धा अनंतसमयसिद्धा। से त्तं परंपरसिद्ध-असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा। से त्तं असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: તે પરંપર સિદ્ધ અસંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? અનેક ભેદે કહી છે. તે આ – અપ્રથમ સમય સિદ્ધ, દ્વિતીય સમય સિદ્ધ, તૃતીય સમય સિદ્ધ, ચતુઃસમય સિદ્ધ યાવત્‌ સંખ્યાત સમય સિદ્ધ, અસંખ્યાત સમય સિદ્ધ, અનંત સમય સિદ્ધ. તે પરંપરસિદ્ધ અસંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના કહી છે.
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 18 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संसारसमावन्नजीवपन्नवणा? संसारसमावन्नजीवपन्नवणा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा बेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा तेंदियसंसारसमावन्नजीव-पन्नवणा चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा पंचेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: સંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? તે પાંચ ભેદે કહી છે. તે આ – એકેન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના, બેઇન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના, તેઇન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના, ચઉરિન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના અને પંચેન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના.
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 19 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं एगेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? एगेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा –पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया।

Translated Sutra: એકેન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપનાના કેટલા ભેદો છે ? તે પાંચ ભેદે છે – પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના, અપ્‌કાયિક૦ – તેઉકાયિક૦ – વાયુકાયિક૦ – વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિય સંસારી જીવ પ્રજ્ઞાપના.
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 149 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बेंदिया? [से किं तं बेइंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा?] बेंदिया [बेइंदियसंसार-समावन्नजीवपन्नवणा] अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाकिमिया कुच्छिकिमिया गंडूयलगा गोलोमा नेउरा सोमंगलगा वंसीमुहा सूईमुहा गोजलोया जलोया जलोउया संखा संखणगा धुल्ला खुल्ला वराडा सोत्तिया मोत्तिया कलुया वासा एगओवत्ता दुहओवत्ता नंदियावत्ता संवुक्का माईबाहा सिप्पिसंपुडा चंदणा समुद्दलिक्खा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिया नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एएसि णं एवमादियाणं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्त जाइकुलकोडिजोणीपमुहसतसहस्सा

Translated Sutra: બેઇન્દ્રિય જીવો કેટલા ભેદે છે ? અનેક ભેદે કહેલા છે – પુલાકૃમિ, કુક્ષીકૃમિ, ગંડોલગ, ગોલોમ, નેપુરા, સોમંગલગ, વંશીમુખ, શૂચિમુખ, ગોજલૌક, જલૌકા, જાલાઉય, શંખ, શંખનક, ઘુલ્લા, ખુલ્લા, ગુલયા, ખંધ, વરાટા, શૌકિતક, મૌકિતક, કલુયાવાસ, એકતઆવર્ત્ત, દ્વિધાવર્ત્ત, નંદિકાવર્ત્ત, શંબુક્ક, માતૃવાહ, શુકિતસંપુટ, ચંદનક, સમુદ્રલિક્ષા, તે
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 150 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? तेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा –ओवइया रोहिणीया कुंथू पिपीलिया उद्दंसगा उद्देहिया उक्कलिया उप्पाया उक्कडा उप्पाडा तणाहारा कट्ठाहारा मालुया पत्ताहारा तणबिंटिया पुप्फबिंटिया फलबिंटिया बीयबिंटिया तेदुरण-मज्जिया तउसमिंजिया कप्पासट्ठिसमिंजिया हिल्लिया झिल्लिया झिंगिरा झिंगिरिडा पाहुया सुभगा सोवच्छिया सुयबिंटा इंदिकाइया इंदगोवया उरुलुंचगा कोत्थलवाहगा जूया हालाहला पिसुया सतवाइया गोम्ही हत्थिसोंडा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिया नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं

Translated Sutra: તેઇન્દ્રિય સંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? અનેક ભેદે છે – ઔપયિક, રોહિણિય, કુંથુ, પિપીલિકા, ડાંસ, ઉદ્ધઈ, ઉક્કલિયા, ઉત્પાદ, ઉપ્પાડ, ઉત્પાટક, તૃણાહાર, કાષ્ઠાહાર, માલુકા, પત્રાહાર, તણબેંટિય, પત્રબેંટિય, પુષ્પબેંટિય, ફલબેંટિય, બીજબેંટિય, તેબુરણમિંજિયા, તઓસમિંજિયા, કપ્પાસઠ્ઠિમિંજિય, હિલ્લિય, ઝિલ્લિય,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 151 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૧. ચઉરિન્દ્રિય સંસાર સમાપન્ન જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? તે અનેક ભેદે છે. તે આ પ્રમાણે – સૂત્ર– ૧૫૨. અંધિય, પત્તિય, મક્ષિકા, મશક, કીટ, પતંગ, ઢંકુણ, કુક્કડ, કુક્કુહ, નંદાવર્ત્ત, સિંગિરિડ, સૂત્ર– ૧૫૩. કૃષ્ણપત્ર, નીલપત્ર, લોહિતપત્ર, શુક્લપત્ર, ચિત્રપક્ષ, વિચિત્રપક્ષ, ઓહંજલિયા, જલચારિકા, ગંભીર નીનિય, તંતવ,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 153 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हलिद्दपत्ता सुक्किलपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ओभंजलिया जलचारिया, गंभीरा णीणिया तंतवा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा नेउरा दोला भमरा भरिली जरुला तीट्ठा विच्छुता पत्तविच्छुया छाणविच्छुया जलविच्छुया पियंगाला कनगा गोमयकीडगा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिमा नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एतेसि णं एवमाइयाणं चउरिंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं नव जातिकुलकोडि-जोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। से त्तं चउरिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫૧
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 154 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पंचिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? पंचिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– नेरइयपंचिंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा, तिरिक्खजोणियपंचिंदियसंसार-समावन्नजीवपन्नवणा, मनुस्सपंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपन्नवणा देवपंचिंदियसंसारसमावन्नजीव-पन्नवणा।

Translated Sutra: પંચેન્દ્રિય સંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના કેટલા ભેદે છે ? ચાર ભેદે – નૈરયિક પંચેન્દ્રિય સંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના. તિર્યંચયોનિક પંચેન્દ્રિય સંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના, મનુષ્ય પંચેન્દ્રિય સંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના અને દેવ પંચેન્દ્રિય સંસાર સમાપન્નક જીવ પ્રજ્ઞાપના.
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 191 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमानिया। से किं तं भवनवासी? भवनवासी दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–असुरकुमारा नागकुमारा सुवण्ण-कुमारा विज्जुकुमारा अग्गिकुमारा दीवकुमारा उदहिकुमारा दिसाकुमारा वाउकुमारा थणियकुमारा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से त्तं भवनवासी। से किं तं वाणमंतरा? वाणमंतरा अट्ठविहा पन्नत्ता, तं जहा–किन्नरा किंपुरिसा महोरगा गंधव्वा जक्खा रक्खसा भूया पिसाया। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से त्तं वाणमंतरा। से किं तं जोइसिया? जोइसिया पंचविहा पन्नत्ता,

Translated Sutra: દેવો કેટલા ભેદે છે ? ચાર ભેદે – ભવનવાસી, વ્યંતર, જ્યોતિષ અને વૈમાનિક. ભવનવાસી કેટલા ભેદે છે ? દશ ભેદે છે – અસુરકુમાર, નાગકુમાર, સુવર્ણકુમાર, વિદ્યુત્કુમાર, અગ્નિકુમાર, દ્વીપકુમાર, ઉદધિકુમાર, દિશાકુમાર, વાયુકુમાર, સ્તનિતકુમાર. તે સંક્ષેપથી બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. આ ભવનવાસી કહ્યા. તે વ્યંતર કેટલા
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 235 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! सिद्धा परिवसंति? गोयमा! सव्वट्ठसिद्धस्स महाविमानस्स उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड्ढं अबाहाए, एत्थ णं ईसीपब्भारा नामं पुढवी पन्नत्ता– पणतालीसं जोयणसतसहस्साणि आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते, ततो अनंतरं च णं माताए माताए–पएसपरिहाणीए परिहायमाणी-परिहायमाणी सव्वेसु चरिमंतेसु मच्छियपत्तातो तनुयरी अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩૫. ભગવન્‌ ! સિદ્ધોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ભગવન્‌ ! સિદ્ધો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! સર્વાર્થસિદ્ધ મહા – વિમાનની ઉપરની સ્તૂપિકાથી બાર યોજન ઊંચે ઇષત્‌ પ્રાગ્ભારા નામે પૃથ્વી છે. તે ૪૫ – લાખ યોજન લંબાઈ – પહોળાઈથી છે. તેની પરિધિ ૧,૪૨,૩૦,૨૪૯ યોજનથી કંઈક અધિક છે. ઇષત્‌ પ્રાગ્ભારા પૃથ્વીના બહુમધ્ય દેશભાગનું આઠ
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 297 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वत्तइस्सामि–१. सव्वत्थोवा गब्भक्कंतिया मनुस्सा, २. मनुस्सीओ संखेज्जगुणाओ, ३. बादरतेउक्काइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ४. अनुत्तरोववाइया देवा असंखेज्जगुणा, ५. उवरिमगेवेज्जगा देवा संखे-ज्जगुणा, ६. मज्झिमगेवेज्जगा देवा संखेज्ज-गुणा, ७. हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ८. अच्चुते कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ९. आरण कप्पे देवा संखेज्जगुणा, १०. पाणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ११. आणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ... ...१२. अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १३. छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १४. सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १५.

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! હવે સર્વ જીવોના અલ્પબહુત્વ મહાદંડકનું વર્ણન કરીશ. ૧ – સૌથી થોડાં ગર્ભજ મનુષ્યો છે, ૨ – માનુષી તેનાથી સંખ્યાતગણી છે, ૩ – પર્યાપ્તા બાદર તેઉકાયિક તેનાથી અસંખ્યાતગણા, ૪ – અનુત્તરોપપાતિક દેવો તેનાથી અસંખ્યાતગણા, ૫ – ઉપલી ગ્રૈવેયકના દેવો તેનાથી સંખ્યાતગણા, ૬ – મધ્યમ ગ્રૈવેયક દેવો તેનાથી સંખ્યાતગણા, ૭
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Gujarati 389 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं भासगा अभासगा? गोयमा! जीवा भासगा वि अभासगा वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवा भासगा वि अभासगा वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जेते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं अभासगा। तत्थ णं जेते संसारसमावन्नगा ते णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवणन्नगा य असेलेसिपडिवणन्नगा य। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवणन्नगा ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते असेलेसिपडिवणन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदिया य अनेगिंदिया य। तत्थ णं जेते एगिंदिया ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते अनेगिंदिया ते दुविहा पन्नत्ता, तं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૮૯. ભગવન્‌ ! જીવો ભાષક છે કે અભાષક ? ગૌતમ ! તે બંને છે. ભગવન્‌! ‘બંને’ એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! જીવો બે ભેદે છે – સંસારી, અસંસારી. તેમાં જે અસંસારી છે તે સિદ્ધો છે, તેઓ અભાષક છે. તેમાં જે સંસારી છે તે બે ભેદે છે – શૈલેશીને પ્રાપ્ત અને અશૈલેશીને પ્રાપ્ત. તેમાં જે શૈલેશી પ્રાપ્ત છે, તે અભાષક છે. તેમાં જે અશૈલેશી પ્રાપ્ત
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१८ कायस्थिति

Gujarati 487 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भासए णं भंते! भासए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। अभासए णं भंते! अभासए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! अभासए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा– अनाईए वा अपज्जवसिए, अणाईए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणप्फइकालो।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૮૭. ભાષક વિશે પૃચ્છા – ગૌતમ ! જઘન્ય એક સમય, ઉત્કૃષ્ટ અંતર્મુહૂર્ત્ત. અભાષક વિશે પૃચ્છા – ગૌતમ ! અભાષક ત્રણ પ્રકારે – અનાદિ અનંત, અનાદિ સાંત, સાદિ સાંત. જે સાદિ સાંત છે તે જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ વનસ્પતિકાળ હોય. સૂત્ર– ૪૮૮. પરિત્ત વિશે પૃચ્છા – પરિત્ત બે ભેદે છે – કાય પરિત્ત, સંસાર પરિત્ત. કાય પરિત્ત
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१८ कायस्थिति

Gujarati 488 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परित्ते णं भंते! परित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! परित्ते दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–कायपरित्ते य, संसारपरित्ते य। कायपरित्ते णं भंते! कायपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ। संसारपरित्ते णं भंते! संसारपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं– अनंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गल-परियट्टं देसूणं। अपरित्ते णं भंते! अपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! अपरित्ते दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–कायअपरित्ते य, संसारअपरित्ते

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૭
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२२ क्रिया

Gujarati 526 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जेते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अकिरिया। तत्थ णं जेते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलसि-पडिवणन्नगा य असेलेसिपडिवणन्नगा य। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवणन्नगा ते णं अकिरिया। तत्थ णं जेते असेलेसिपडिवणन्नगा ते णं सकिरिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि। अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जति? हंता

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જીવો ક્રિયાવાળા છે કે ક્રિયારહિત ? ગૌતમ ! જીવો તે બંને છે. ભગવન્‌! એમ કેમ કહો છો ? જીવો બે પ્રકારના – સંસારી અને સિદ્ધ. જે સંસારી છે તે જીવો બે ભેદે છે – શૈલેશી પ્રાપ્ત, શૈલેશી અપ્રાપ્ત. શૈલેશી પ્રાપ્ત છે તે ક્રિયારહિત છે. શૈલેશી પ્રાપ્ત નથી તેઓ ક્રિયાસહિત છે માટે એમ કહ્યું કે જીવો સક્રિય અક્રિય બંને છે. ભગવન્‌
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ अब्रह्म

Hindi 20 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीरएसु। अवरे परदारेहिं हम्मंति विसुणिया घननासं सयणविप्पनासं च पाउणंति। परस्स दाराओ जे अविरया मेहुण-सण्णसंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मनुयगणा वानरा य पक्खी य विरुज्झंति, मित्ताणि खिप्पं भवंति सत्तू, समये धम्मे गणे य भिंदंति पारदारी। धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उल्लोट्टए चरित्तओ, जसमंतो सुव्वया य पावंति अयसकित्तिं, रोगत्ता वाहिया य वड्ढेंति रोय-वाही, दुवे य लोया दुआराहगा भवंति–इहलोए चेव परलोए–परस्स दाराओ जे अविरया। तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया

Translated Sutra: जो मनुष्य मैथुनसंज्ञा में अत्यन्त आसक्त है और मूढता अथवा से भरे हुए हैं, वे आपस में एक दूसरे का शस्त्रों से घात करते हैं। कोई – कोई विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली परकीय स्त्रियों में प्रवृत्त होकर दूसरों के द्वारा मारे जाते हैं। जब उनकी परस्त्रीलम्पटता प्रकट हो जाती है तब धन का विनाश और स्वजनों का सर्वथा
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Hindi 23 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी। पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा। उड्ढलोगवासी दुविहा

Translated Sutra: उस परिग्रह को लोभ से ग्रस्त परिग्रह के प्रति रुचि रखने वाले, उत्तम भवनों में और विमानों में निवास करने वाले ममत्वपूर्वक ग्रहण करते हैं। नाना प्रकार से परिग्रह को संचित करने की बुद्धि वाले देवों के निकाय यथा – असुरकुमार यावत्‌ स्तनितकुमार तथा अणपन्निक, यावत्‌ पतंग और पिशाच, यावत्‌ गन्धर्व, ये महर्द्धिक व्यन्तर
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Hindi 24 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमबादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग-साहारणसरीर पत्तेयसरीरेसु य, अंडज पोतज जराउय रसज संसेइम संमुच्छिम उब्भिय उववाइएसु य, नरग तिरिय देव मानुसेसु, जरा मरण रोग सोग बहुले, पलिओवम सागरोवमाइं अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति जीवा मोहवस-सन्निविट्ठा। एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति–एवमाहंसु नायकुलनंदनो महप्पा जिनो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स

Translated Sutra: परिग्रह में आसक्त प्राणी परलोक में और इस लोक में नष्ट – भ्रष्ट होते हैं। अज्ञानान्धकार में प्रविष्ट होते हैं। तीव्र मोहनीयकर्म के उदय से मोहित मति वाले, लोभ के वश में पड़े हुए जीव त्रस, स्थावर, सूक्ष्म और बादर पर्यायों में तथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक अवस्थाओं में यावत्‌ चार गति वाले संसार – कानन में परिभ्रमण
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Hindi 25 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएहिं पंचहिं असंवरेहिं रयमादिणित्तु अनुसमयं । चउव्विहगतिपेरंतं, अनुपरियट्टंति संसारं ॥

Translated Sutra: इन पूर्वोक्त पाँच आस्रवद्वारों के निमित्त से जीव प्रतिसमय कर्मरूपी रज का संचय करके चार गतिरूप संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं।
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