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Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-४१ राशियुग्मं, त्र्योजराशि, द्वापर युग्मं राशि

उद्देशक-१ थी १९६ Gujarati 1068 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! रासीजुम्मा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि रासीजुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चत्तारि रासीजुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे? गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए, सेत्तं रासीजुम्मकडजुम्मे। एवं जाव जे णं रासी चउ-क्कएणं अवहारेणं एगपज्जवसिए, सेत्तं रासीजुम्मकलियोगे। से तेणट्ठेणं जाव कलियोगे। रासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ जहा वक्कंतीए। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति? गोयमा! चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। ते

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! રાશિયુગ્મ કેટલા છે ? ગૌતમ ! ચાર – કૃતયુગ્મ યાવત્‌ કલ્યોજ. ભગવન્‌ ! એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ! જે રાશિમાં ચારથી અપહાર કરતા ચાર શેષ રહે, તે રાશિયુગ્મ, કૃતયુગ્મ છે. એ પ્રમાણે યાવત્‌ જે રાશિ ચાર વડે અપહાર કરાતા શેષ એક રહે તે રાશિયુગ્મ, કલ્યોજ કહેવાય. તેથી એમ કહ્યું કે યાવત્‌ કલ્યોજ છે. ભગવન્‌ ! રાશિયુગ્મ કૃતયુગ્મ નૈરયિક
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

उपसंहार

Gujarati 1085 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुयदेवयाए णमिमो जीए पसाएण सिक्खियं नाणं। अण्णं पवयणदेवी संतिकरी तं नमंसामि ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૮૦
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 119 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथिं च णं गिलायमाणिं पिया वा भाया वा पुत्तो वा पलिस्सएज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा मेहुणपडिसेवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: ग्लान साध्वी हो तो उसके पिता, भाई या पुत्र और ग्लान साधु हो तो उसकी माता, बहन या पुत्री वो साधु या साध्वी गिर रहे हो तो हाथ का सहारा दे, गिर गए हो तो खड़े करे, अपने आप खड़ा होना – बैठने के लिए असमर्थ हो तो सहारा दे तब वो साधु – साध्वी विजातीय व्यक्ति के स्पर्श की (पूर्वानुभूत मैथुन की स्मृति से) अनुमोदना करे तो अनुद्‌घातिक
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 52 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा–नो उक्खिण्णाइं नो विक्खिण्णाइं नो विइकिण्णाइं नो विप्पकिण्णाइं, रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिकडाणि वा कुलियाकडाणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमंतगिम्हासु वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५१
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 53 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा– नो रासिकडाइं नो पुंजकडाइं नो भित्तिकडाइं नो कुलियाकडाइं, कोट्ठाउत्ताणि वा पल्लाउत्ताणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा लित्ताणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५१
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 3 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाणं पक्के तालपलंबे भिन्ने वा अभिन्ने वा पडिगाहित्तए।

Translated Sutra: साधु को अखंड़ या टुकड़े किए गए केला लेने की कल्पे लेकिन, साध्वी को न कल्पे। साध्वी को टुकड़े किए गए केला ही ग्रहण करना कल्पता है। (अखंड़ केले का आकार लम्बा देखकर साध्वी के मन में विकार भाव पैदा हो सकता है। और उस केले से वो अनंगक्रीड़ा भी कर सकती है। वृत्तिकार बताते हैं कि केले के छोटे – छोटे टुकड़े होने चाहिए। बड़े टुकड़े
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 37 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वेरज्ज-विरुद्धरज्जंसि सज्जं गमनं सज्जं आगमनं सज्जं गमनागमनं करेत्तए जो खलु निग्गंथो वा निग्गंथी वा वेरज्ज-विरुद्धरज्जंसि सज्जं गमनं सज्जं आगमनं सज्जं गमनागमनं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: साधु – साध्वी की विरुद्ध – अराजक या विरोधी राज में जल्द या बार – बार आना – जाना या आवागमन न कल्पे। जो साधु – साध्वी इस प्रकार करे – करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो वो तीर्थंकर ओर राजा दोनों की आज्ञा का अतिक्रमण करता है और अनुद्‌घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त के योग्य होते हैं। (‘वेरज्ज’ शब्द
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 59 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा–नो उक्खिण्णाइं वा विक्खिण्णाइं वा विइकिण्णाइं वा विप्पइण्णाइं वा रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिकडाणि वा कुलियाकडाणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा। कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमंतगिम्हासु वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५८
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 60 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा– नो रासिकडाणि वा नो पुंजकडाणि वा नो भित्तिकडाणि वा नो कुलियाकडाणि वा कोट्ठाउत्ताणि वा पल्लाउत्ताणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा कुंभिउत्ताणि वा करभिउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा लित्ताणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५८
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 64 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिंडं बहिया अनीहडं असंसट्ठं वा संसट्ठं वा पडिग्गाहित्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को सागारिक पिंड़ यानि वसति दाता के घर का आहार, जो घर के बाहर न ले गए हो और शायद दूसरों के वहाँ बने आहार के साथ मिश्र हुआ हो या न हुआ हो – उसे लेना न कल्पे, यदि घर के बाहर वो पिंड़ ले गए हो लेकिन दूसरों के वहाँ बने आहार के साथ मिश्र न हुआ हो तो भी लेना न कल्पे, लेकिन यदि मिश्र आहार हो तो लेना कल्पे, यदि वो पिंड़
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 109 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव रायहाणीए वा बहिया सेनं सन्निविट्ठं पेहाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तद्दिवसं भिक्खायरियाए गंतूणं पडिएत्तए नो से कप्पइ तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेत्तए। जे खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेइ, उवाइणावेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: गाँव यावत्‌ पाटनगर के बाहर शत्रुसेना दल देखकर साधु – साध्वी को उसी दिन से वापस आना कल्पे लेकिन बाहर रहना न कल्पे, जो साधु – साध्वी बाहर रात्रि रहे, रहने का कहे, कहनेवाले की अनुमोदना करे तो जिनाज्ञा और राजाज्ञा का उल्लंघन करते हुए अनुद्‌घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त को प्राप्त करते हैं।
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 111 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ अनुग्घाइया पन्नत्ता, तं जहा–हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवमाणे राईभोयणं भुंजमाणे।

Translated Sutra: अनुद्‌घातिक प्रायश्चित्त पात्र इन तीनों बताए हैं – हस्तकर्म करनेवाले, मैथुन सेवन करनेवाले, रात्रि भोजन करनेवाले। (अनुद्‌घातिक जिस दोष की गुरु प्रायश्चित्त से कठिनता से शुद्धि हो सकती है, वो।)
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 143 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे य इत्थिरूवं विउव्वित्ता निग्गंथं पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथे साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: किसी देव या देवी स्त्रीरूप की विकुवर्णाकर साधु को और किसी देवी या देव पुरुष रूप विकुर्वकर साध्वी को आलिंगन करे और वो साधु या साध्वी स्पर्श का अनुमोदन करे तो मैथुन सेवन के दोष का हिस्सेदार होता है। और अनुद्‌घातिक चातुर्मासिक परिहार स्थान प्रायश्चित्त का भागी बनता है। सूत्र – १४३–१४६
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 148 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य उग्गयवित्तीए अनत्थमियसंकप्पे संथडिए निव्वितिगिच्छे असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा– अनुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अन्नेसिं वा दलमाणे राईभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: जो साधु सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले भिक्षाचर्या करने के प्रतिज्ञावाले हो वो समर्थ, स्वस्थ और हंमेशा प्रतिपूर्ण आहार करते हो या असमर्थ अस्वस्थ और हंमेशा प्रतिपूर्ण आहार न करते हो तो ऐसे दोनों को सूर्योदय सूर्यास्त हुआ कि नहीं ऐसा शक हो तो भी सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद जो आहार मुँह में, हाथ
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 152 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु निग्गंथस्स वा निग्गंथीए वा राओ वा वियाले वा सपाणे सभोयणे उग्गाले आगच्छेज्जा, तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ। तं उग्गिलित्ता पच्चोगिलमाणे राईभोयण-पडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी को रात्रि या संध्या के वक्त पानी और भोजन सहित ऊबाल आए तो उसे थूँककर वस्त्र आदि से मुँह साफ कर ले तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता। लेकिन यदि उछाला या उद्‌गाल को नीगल जाए तो रात्रि भोजन सेवन का दोष लगे और अनुद्‌घातिक – चातुर्मासिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त का हिस्सेदार बने।
BruhatKalpa बृहत्कल्पसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 155 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए राओ वा वियाले वा उच्चारं वा पासवणं वा विगिंचमाणीए वा विसोहेमाणीए वा अन्नयरे पसुजातीए वा पक्खिजातीए वा अन्नयरं इंदियजायं परामुसेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, हत्थकम्मपडिसेवणपत्ता आवज्जइ मासियं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: कोई साध्वी रात के या सन्ध्या के वक्त मल – मूत्र का परित्याग करे या शुद्धि करे उस वक्त किसी पशु के पंख के द्वारा साध्वी की किसी एक इन्द्रिय को छू ले, या साध्वी के किसी छिद्र में प्रवेश पा ले और वो स्पर्श या प्रवेश सुखद है (आनन्ददायक है) ऐसी प्रशंसा करे तो उसे हस्तकर्म का दोष लगता है और वो अनुद्‌घातिक मासिक प्रायश्चित्त
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 59 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा–नो उक्खिण्णाइं वा विक्खिण्णाइं वा विइकिण्णाइं वा विप्पइण्णाइं वा रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिकडाणि वा कुलियाकडाणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा। कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमंतगिम्हासु वत्थए।

Translated Sutra: પરંતુ જો એમ જાણે કે તે પદાર્થો ઉત્ક્ષિપ્તાદિ નથી, પરંતુ રાશીકૃત, પુંજકૃત, ભીંતે રાખેલ, કુલિકાકૃત, લાંછિત, મુફિત કે ઢાંકેલા છે, તો સાધુ – સાધ્વીને ત્યાં શિયાળો અને ઉનાળો – એ શેષકાળમાં રહેવું કલ્પે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 60 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा– नो रासिकडाणि वा नो पुंजकडाणि वा नो भित्तिकडाणि वा नो कुलियाकडाणि वा कोट्ठाउत्ताणि वा पल्लाउत्ताणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा कुंभिउत्ताणि वा करभिउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा लित्ताणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: જો જાણે કે પદાર્થ રાશિકૃત આદિ નથી. પણ કોઠા – પાલ્યમાં ભરેલ છે, માંચા કે માળા ઉપર સુરક્ષિત છે. કુંભી આદિમાં ધારણ કરેલ છે, માટી કે છાણથી લિપ્ત છે, ઢાંકેલ કે લાંછિત છે, તો ત્યાં વર્ષાવાસમાં રહેવું કલ્પે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 1 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा आमे तालपलंबे अभिन्ने पडिगाहित्तए।

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: છેદસૂત્રમાં બીજા છેદસૂત્ર રૂપે હાલ સ્વીકાર્ય એવા આ આગમમાં છ ઉદ્દેશાઓ છે. જેમાં કુલ – ૨૧૫ સૂત્રો છે. આ છેદસૂત્રનું ભાષ્ય પૂજ્ય મલયગિરિજી તથા પૂજ્ય ક્ષેમકીર્તિજી.ની વૃત્તિ પણ છે. અમારા આગમસુત્તાણી – સટીકં માં છપાયેલ છે. સામુદાયિક મર્યાદાના કારણે અમે ટીકા સહિત અનુવાદ પ્રકાશિત કરી શકતા નથી પરંતુ
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 37 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वेरज्ज-विरुद्धरज्जंसि सज्जं गमनं सज्जं आगमनं सज्जं गमनागमनं करेत्तए जो खलु निग्गंथो वा निग्गंथी वा वेरज्ज-विरुद्धरज्जंसि सज्जं गमनं सज्जं आगमनं सज्जं गमनागमनं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: સાધુ અને સાધ્વીઓને વૈરાજ્ય – અરાજક કે વિરોધી રાજ્યમાં શીઘ્ર – જલદી જવું, શીઘ્ર આવવું અને શીઘ્ર જવું કે આવવું એટલે કે આવાગમન કરવું કલ્પતું નથી. જે સાધુ – સાધ્વી વૈરાજ્ય અને વિરોધી રાજ્યમાં જલદી જવું, જલદી આવવું, જલદી આવાગમન કરે છે. તથા શીઘ્ર આવાગમન કરનારાનું અનુમોદન કરે છે. તે બંને અર્થાત્‌ તીર્થંકર અને રાજાની
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 45 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नन्नत्थ एगाए हरियाहडियाए, सा वि य परिभुत्ता वा धोया वा रत्ता वा घट्ठा वा मट्ठा वा संपधूमिया वा।

Translated Sutra: માત્ર એક હૃતાહૃતિક (પહેલા હરાઈ ગયેલ અને પછી) આહૃત કરેલ (પાછું મેળવેલ વસ્ત્ર). તે વસ્ત્ર પરિભુક્ત, ધૌત, રંગેલ, ધૃષ્ટ, મૃષ્ટ કે સંપ્રધૂમિત પણ કરી દેવાયેલ હોય તો પણ રાત્રે લેવું કલ્પે છે. પરિભુક્ત – તે વસ્ત્રાદિને ચોરી જનારે જો તેને ઓઢવા આદિના ઉપયોગમાં લીધેલું હોય. ધૌત – પાણીથી ધોયેલ હોય. રક્ત – પાંચ પ્રકારના રંગમાંથી
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 52 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा–नो उक्खिण्णाइं नो विक्खिण्णाइं नो विइकिण्णाइं नो विप्पकिण्णाइं, रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिकडाणि वा कुलियाकडाणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमंतगिम्हासु वत्थए।

Translated Sutra: જો એમ જાણે કે ઉપાશ્રયમાં શાલિ યાવત્‌ જુવાર ઉત્ક્ષિપ્ત, વિક્ષિપ્ત, વ્યતિકીર્ણ અને વિપ્રકીર્ણ નથી. પરંતુ રાશીકૃત – સરખા ઢગલારૂપે, પુંજકૃત – વ્યવસ્થિત પુંજ – એકત્ર કરેલ, ભિત્તિકૃત – એકતરફ ભીંતે રાખેલ, કુલકિ કૃત – કુંડી આદિમાં રખાયેલ, લાંછિત – ચિહ્ન કરાયેલ, મુદ્રિત – છાણ આદિથી લિંપીત, વિહત – ઢાંકેલ છે. તો ત્યાં
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 53 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा– नो रासिकडाइं नो पुंजकडाइं नो भित्तिकडाइं नो कुलियाकडाइं, कोट्ठाउत्ताणि वा पल्लाउत्ताणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा लित्ताणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: જો સાધુ – સાધ્વી એમ જાણે કે ઉપાશ્રયમાં શાલિ યાવત્‌ જુવાર રાશિકૃત, પુંજીકૃત, ભિત્તિકૃત કે કુલિકાકૃત નથી. પરંતુ કોઠામાં, પલ્યમાં ભરેલ છે, માંચા ઉપર કે માળા ઉપર સુરક્ષિત છે, માટી કે છાણથી લીંપેલ છે, ઢાંકેલ છે, ચિહ્ન કરેલ છે, મહોર લગાડેલ છે, તો તેને ત્યાં વર્ષાવાસ અર્થાત્‌ ચોમાસું રહેવાનું કલ્પે છે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 68 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिंडं बहिया नीहडं असंसट्ठं संसट्ठं करेत्तए जे खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा सागारियपिंडं बहिया नीहडं असंसट्ठं संसट्ठं करेइ करेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી ઘરની બહાર લઈ જવાયેલ તથા બીજાના આહારમાં અમિશ્રિત સાગારિક પીંડને મિશ્રિત કરાવે છે, કે કરાવનારનું અનુમોદન કરે છે. ... તે લૌકીક અને લોકોત્તર બંને મર્યાદાનું અતિક્રમણ કરતો ચાતુર્માસિક અનુદ્‌ઘાતિક પ્રાયશ્ચિત્તનો ભાગીદાર થાય છે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Gujarati 109 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव रायहाणीए वा बहिया सेनं सन्निविट्ठं पेहाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तद्दिवसं भिक्खायरियाए गंतूणं पडिएत्तए नो से कप्पइ तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेत्तए। जे खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेइ, उवाइणावेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: ગામ યાવત્‌ રાજધાનીની બહાર શત્રુસેનાનો પડાવ હોય તો સાધુ – સાધ્વીને ગૌચરી માટે વસતીમાં જઈને તે જ દિવસે પાછું આવવું કલ્પે છે. પણ ત્યાં રાત રહેવું ન કલ્પે. જો તેઓ રાત્રિ રહે કે રહેનારને અનુમોદે તે જિનાજ્ઞા અને રાજાજ્ઞા બંનેને અતિક્રમતા ચાતુર્માસિક અનુદ્‌ઘાતિક પ્રાયશ્ચિત્ત પામે છે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 111 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ अनुग्घाइया पन्नत्ता, तं जहा–हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवमाणे राईभोयणं भुंजमाणे।

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: બૃહત્કલ્પના આ ઉદ્દેશામાં સૂત્ર – ૧૧૧થી ૧૪૨ એટલે કે કુલ – ૩૨ સૂત્રો છે. જેનો ક્રમશઃ અનુવાદ આ પ્રમાણે છે – અનુવાદ: અનુદ્‌ઘાતિક પ્રાયશ્ચિત્તને યોગ્ય ત્રણ કહેલા છે, જેમ કે – ૧. હસ્તકર્મ કરનાર, ૨. મૈથુનસેવી, ૩. રાત્રિ ભોજનકર્તા.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 114 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ नो कप्पंति पव्वावेत्तए, तं जहा–पंडए वाइए कीवे।

Translated Sutra: આ ત્રણને પ્રવ્રજિત કરવા ન કલ્પે – પંડક એટલે કે જન્મ નપુંસક, વાતિક – કામવાસના દમિક, ક્લીબ – અસમર્થ.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 119 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथिं च णं गिलायमाणिं पिया वा भाया वा पुत्तो वा पलिस्सएज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा मेहुणपडिसेवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: ગ્લાન સાધ્વીના પિતા, ભાઈ કે પુત્ર પડતી એવી સાધ્વીને હાથનો ટેકો આપે, પડેલીને ઊભી કરે, જાતે ઉઠવા – બેસવામાં અસમર્થ હોય તેને ઉઠાડે – બેસાડે, તે સમયે તે સાધ્વી મૈથુનસેવી પરિણામથી પુરુષ સ્પર્શનું અનુમોદન કરે તો અનુદ્‌ઘાતિક ચૌમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 120 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथं च णं गिलायमाणं माया वा भगिनी वा धूया वा पलिस्सएज्जा, तं च निग्गंथे साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: ગ્લાન સાધુની માતા, બહેન, પુત્રી પડતા એવા સાધુને હાથનો ટેકો આપે – યાવત્‌ બેસાડે, ત્યારે તે સાધુ મૈથુન સેવન પરિણામથી સ્ત્રીસ્પર્શને અનુમોદે તો અનુદ્‌ઘાતિક પ્રાયશ્ચિત્ત.
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उद्देशक-४ Gujarati 121 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा पढमाए पोरिसीए पडिग्गाहित्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेत्तए। से य आहच्च उवाइणाविए सिया, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा नो अन्नेसिं अनुप्पदेज्जा, एगंते बहुफासुए थंडिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेयव्वे सिया। तं अप्पणा भुंजमाणे अन्नेसिं वा दलमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं।

Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વીને પહેલી પોરીસીમાં ગ્રહણ કરેલ અશન યાવત્‌ સ્વાદિમને છેલ્લી પોરીસી સુધી પાસે રાખવા ન કલ્પે. જો રહી જાય, તો સ્વયં ન ખાય, બીજાને ન આપે, એકાંત અને સર્વથા અચિત્ત સ્થંડિલ ભૂમિનું પ્રતિલેખન અને પ્રમાર્જન કરી તે આહારને પરઠવી દે. જો તે આહાર સ્વયં ખાય કે બીજાને આપે તો ઉદ્‌ઘાતિક ચાતુર્માસિક પ્રાયશ્ચિત્તને
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 143 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे य इत्थिरूवं विउव्वित्ता निग्गंथं पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथे साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: બૃહત્કલ્પના આ ઉદ્દેશામાં સૂત્ર – ૧૪૩ થી ૧૯૫ એટલે કે કુલ – ૫૩ સૂત્રો છે... જેનો ક્રમશઃ અનુવાદ આ પ્રમાણે છે – અનુવાદ: જો કોઈ દેવ વિકુર્વણા શક્તિથી સ્ત્રીનું રૂપ બનાવી સાધુને આલિંગન કરે – અને સાધુ તેના સ્પર્શનું અનુમોદન કરે તો ભાવથી મૈથુનસેવન દોષના ભાગી થાય છે. તેથી તે અનુદ્‌ઘાતિક ચાતુર્માસિક પ્રાયશ્ચિત્તના
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 144 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे य पुरिसरूवं विउव्वित्ता निग्गंथिं पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मासियं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જો કોઈ દેવ વિકુર્વણા શક્તિથી પુરુષનું રૂપ કરી સાધ્વીને આલિંગન કરે અને સાધુ તેના સ્પર્શનું અનુમોદન કરે તો ભાવથી મૈથુનસેવન દોષના ભાગી થાય છે. તેથી તે અનુદ્‌ઘાતિક ચાતુર્માસિક પ્રાયશ્ચિત્તના પાત્ર થાય છે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 145 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवी य इत्थिरूवं विउव्वित्ता निग्गंथं पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथे साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જો કોઈ દેવી વિકુર્વણા શક્તિથી સ્ત્રીનું રૂપ બનાવી સાધુને આલિંગન કરે અને સાધુ તેના સ્પર્શનું અનુમોદન કરે તો ભાવથી મૈથુનસેવન દોષના ભાગી થાય છે. તેથી તે અનુદ્‌ઘાતિક ચાતુર્માસિક પ્રાયશ્ચિત્તના પાત્ર થાય છે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 146 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवी य पुरिसरूवं विउव्वित्ता निग्गंथिं पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, मेहुणपडि-सेवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मासियं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જો કોઈ દેવી વિકુર્વણા શક્તિથી પુરુષ રૂપ કરીને સાધ્વીને આલિંગન કરે અને સાધુ તેના સ્પર્શનું અનુમોદન કરે તો ભાવથી મૈથુનસેવન દોષના ભાગી થાય છે. તેથી તે અનુદ્‌ઘાતિક ચાતુર્માસિક પ્રાયશ્ચિત્તના પાત્ર થાય છે.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 148 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य उग्गयवित्तीए अनत्थमियसंकप्पे संथडिए निव्वितिगिच्छे असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा– अनुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अन्नेसिं वा दलमाणे राईभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: સૂર્યોદય પછી અને સૂર્યાસ્ત પૂર્વે ગૌચરી કરવાની પ્રતિજ્ઞાવાળા સાધુ હોય, સૂર્યોદય અને સૂર્યાસ્તના સંબંધમાં – ૧. અસંદિગ્ધ અને સમર્થ સાધુ, ૨. સંદિગ્ધ પણ સમર્થ, ૩. અસંદિગ્ધ પણ અસમર્થ, તેમજ ૪. સંદિગ્ધ અને અસમર્થ સાધુ. અશન યાવત્‌ સ્વાદિમ આહાર કરતો જો એમ જાણે કે – સૂર્યોદય થયો નથી અથવા સૂર્યાસ્ત થઈ ગયો છે. તો તે સમયે
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 152 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु निग्गंथस्स वा निग्गंथीए वा राओ वा वियाले वा सपाणे सभोयणे उग्गाले आगच्छेज्जा, तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ। तं उग्गिलित्ता पच्चोगिलमाणे राईभोयण-पडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જો કોઈ સાધુ કે સાધ્વીને રાત્રે કે વિકાલે પાણી અને ભોજન સહિત ડકાર આવે તો તે સમયે તેને થૂંકી દઈ અને મુખ શુદ્ધ કરી લે તો જિજ્ઞાસાનું અતિક્રમણ ન થાય. પરંતુ જો તે ડકારને (ઉબકાને) ગળે ઊતારી જાય તો તેને રાત્રિભોજનનો દોષ લાગે અને તે અનુદ્‌ઘાતિક ચાતુર્માસિક પ્રાયશ્ચિત્ત પાત્ર થાય.
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 155 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए राओ वा वियाले वा उच्चारं वा पासवणं वा विगिंचमाणीए वा विसोहेमाणीए वा अन्नयरे पसुजातीए वा पक्खिजातीए वा अन्नयरं इंदियजायं परामुसेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, हत्थकम्मपडिसेवणपत्ता आवज्जइ मासियं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જો કોઈ સાધ્વી રાત્રિમાં કે વિકાલમાં મળ – મૂત્રનો ત્યાગ કરે કે શુદ્ધિ કરે, તે સમયે કોઈ પશુ – પક્ષી વડે સાધ્વીની કોઈ ઇન્દ્રિયનો સ્પર્શ થઈ જાય ત્યારે તે સ્પર્શનું – સાધ્વી મૈથુન ભાવથી અનુમોદન કરે તો તેમાં તેણીને હસ્તકર્મ દોષ લાગે. ત્યારે તેણી તેમાં અનુદ્‌ઘાતિક માસિક પ્રાયશ્ચિત્તને પાત્ર થાય,
BruhatKalpa બૃહત્કલ્પસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 156 Sutra Chheda-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए य राओ वा वियाले वा उच्चारं वा पासवणं वा विगिंचमाणीए वा विसोहेमाणीए वा अन्नयरे पसुजातीए वा पक्खिजातीए वा अन्नयरंसि सोयंसि ओगाहेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मासियं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જો કોઈ સાધ્વી રાત્રિમાં કે વિકાલમાં મળ – મૂત્રનો ત્યાગ કરે કે શુદ્ધિ કરે, તે સમયે કોઈ પશુ – પક્ષી સાધ્વીના કોઈ શ્રોતમાં અવગાહન કરે, ત્યારે તે અવગાહનનું – સાધ્વી મૈથુન ભાવથી અનુમોદન કરે – તો તેણીને મૈથુનસેવન દોષ લાગે. ત્યારે તેણી તેમાં અનુદ્‌ઘાતિક ચાતુર્માસિક પ્રાયશ્ચિત્ત પાત્ર થાય છે.
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 7 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कतिकट्ठा पोरिसिच्छाया? जोगे किं ते आहिए? । किं ते संवच्छराणादी? कइ संवच्छराइ य? ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ५
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 39 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते सेयताए संठिती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमा दुविधा संठिती पन्नत्ता, तं जहा–चंदिमसूरियसंठिती य तावक्खेत्तसंठिती य। ता कहं ते चंदिमसूरियसंठिती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता समचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता विसमचउरंससंठिता चंदिमसू-रियसंठिती पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु २ एवं समचउक्कोणसंठिता ३ विसमचउक्कोणसंठिता ४ समचक्कवालसंठिता ५ विसम-चक्कवालसंठिता ६ चक्कद्धचक्कवालसंठिता चंदिमसूरियसंठिती पन्नत्ता– एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु–ता छत्तागारसंठिता चंदिमसूरियसंठिती

Translated Sutra: श्वेत की संस्थिति किस प्रकार की है ? श्वेत संस्थिति दो प्रकार की है – चंद्र – सूर्य की संस्थिति और तापक्षेत्र की संस्थिति। चन्द्र – सूर्य की संस्थिति के विषय में यह सोलह प्रतिपत्तियाँ (परमतवादी मत) हैं। – कोई कहता है कि, (१) चन्द्र – सूर्य की संस्थिति समचतुरस्र हैं। (२) विषम चतुरस्र है। (३) समचतुष्कोण है। (४) विषम
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 44 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कतिकट्ठं ते सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ तत्थेगे एवमाहंसु–ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला संतप्पंति, ते णं पोग्गला संतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाइं संतावेंतीति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला नो संतप्पंति, ते णं पोग्गला असंतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाइं नो संतावेंतीति, एस णं से समिते ताव-क्खेत्ते–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु– ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला

Translated Sutra: कितने प्रमाणयुक्त पुरुषछाया से सूर्य परिभ्रमण करता है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। एक मत – वादी यह कहता है कि जो पुद्‌गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है वही पुद्‌गल उससे संतापित होते हैं। संतप्य – मान पुद्‌गल तदनन्तर बाह्य पुद्‌गलों को संतापित करता है। यही वह समित तापक्षेत्र है। दूसरा कोई कहता
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 45 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कतिकट्ठे ते सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वएज्जा २ एवं एएणं अभिलावेणं नेयव्वं, ता जाओ चेव ओयसंठितीए पणवीसं पडिवत्तीओ ताओ चेव नेयव्वाओ जाव अनुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहिताति वदेज्जा–एगे एवमाहंसु २५। वयं पुण एवं वयामो–ता सूरियस्स णं उच्चत्तं च लेसं च पडुच्च छाउद्देसे, उच्चत्तं च छायं च पडुच्च

Translated Sutra: कितने प्रमाणवाली पौरुषी छाया को सूर्य निवर्तित करता है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियाँ हैं – जो छठ्ठे प्राभृत के समान समझ लेना। जैसे की कोई कहता है कि अनुसमय में सूर्य पौरुषी छाया को उत्पन्न करता है, इत्यादि। भगवंत फरमाते हैं कि सूर्य से उत्पन्न लेश्या के सम्बन्ध में यथार्थतया जानकर मैं छायोद्देश कहता
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 46 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहितेति वदेज्जा, ता कहं ते जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता सव्वेवि णं नक्खत्ता कत्तियादिया भरणिपज्जवसाणा पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वेवि णं नक्खत्ता महादिया अस्सेसपज्जवसाणा पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वेवि णं नक्खत्ता धनिट्ठादिया सवणपज्जवसाणा पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वेवि णं नक्खत्ता अस्सिणीआदिया रेवइपज्जवसाणा पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वेवि णं नक्खत्ता

Translated Sutra: योग अर्थात्‌ नक्षत्रों की युति के सम्बन्ध में वस्तु का आवलिकानिपात कैसे होता है ? इस विषय में पाँच प्रतिपत्तियाँ हैं – एक कहता है – नक्षत्र कृतिका से भरणी तक है। दूसरा कहता है – मघा से अश्लेषा पर्यन्त नक्षत्र हैं। तीसरा कहता है – धनिष्ठा से श्रवण तक सब नक्षत्र हैं। चौथा – अश्विनी से रेवती तक नक्षत्र आवलिका
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 47 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मुहुत्तग्गे आहितेति वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अत्थि नक्खत्ते जे णं नव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोयं जोएति। अत्थि नक्खत्ता जे णं पन्नरस मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति। अत्थि नक्खत्ता जे णं तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति। अत्थि नक्खत्ता जे णं पणयालीसे मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति। ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ते जे णं नवमुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभाए मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोयं जोएति? कयरे नक्खत्ता जे णं पन्नरसमुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता

Translated Sutra: नक्षत्र का मुहूर्त्त प्रमाण किस तरह है ? भगवंत कहते हैं कि – इन अट्ठाईस नक्षत्रों में ऐसे भी नक्षत्र हैं, जो नवमुहूर्त्त एवं एक मुहूर्त्त के सत्ताईस सडसट्ठांश भाग पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योग करते हैं। फिर पन्द्रह मुहूर्त्त से – तीस मुहूर्त्त से – ४५ मुहूर्त्त से चन्द्रमा से योग करनेवाले विभिन्न नक्षत्र भी
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 48 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अत्थि नक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएति। अत्थि नक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं च मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति। अत्थि नक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते दुवालस य मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति। अत्थि नक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते तिन्नि य मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति। ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएति? कयरे नक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता जे णं तेरस

Translated Sutra: इन अट्ठावीश नक्षत्रोंमें सूर्य के साथ योग करनेवाले नक्षत्र भी हैं। एक नक्षत्र ऐसा है जो सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छ मुहूर्त्त तक योग करता है – अभिजित; छ नक्षत्र ऐसे हैं जो सूर्य के साथ छ अहोरात्र एवं २१ मुहूर्त्त पर्यन्त योग करते हैं – शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा, १५ नक्षत्र ऐसे हैं
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 49 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते एवंभागा आहिताति वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अत्थि नक्खत्ता जे णं नक्खत्ता पुव्वंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पन्नत्ता। अत्थि नक्खत्ता जे णं नक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पन्नत्ता। अत्थि नक्खत्ता जे णं नक्खत्ता नत्तंभागा अवड्ढखेत्ता पन्नरसमुहुत्ता पन्नत्ता। अत्थि नक्खत्ता जे णं नक्खत्ता उभयंभागा दिवड्ढखेत्ता पणयालीसइमुहुत्ता पन्नत्ता। ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ता जे णं नक्खत्ता पुव्वंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पन्नत्ता? कयरे नक्खत्ता जे णं नक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता

Translated Sutra: हे भगवंत! अहोरात्र भाग सम्बन्धी नक्षत्र कितने हैं ? इन २८ नक्षत्रों में ६ नक्षत्र ऐसे हैं जो पूर्व – भागा तथा समक्षेत्र कहलाते हैं, वे ३० मुहूर्त्तवाले होते हैं – पूर्वोप्रोष्ठपदा, कृतिका, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मूल और पूर्वाषाढा, दश नक्षत्र ऐसे हैं जो पश्चातभागा तथा समक्षेत्र कहलाते हैं, वे भी तीस मुहूर्त्तवाले
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 50 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते जोगस्स आदी आहिंतेति वदेज्जा? ता अभीईसवणा खलु दुवे नक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता सातिरेग-ऊतालीसइमुहुत्ता तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति, ततो पच्छा अवरं सातिरेगं दिवसं–एवं खलु अभिईसवणा दुवे नक्खत्ता एगं रातिं एगं च सातिरेगं दिवसं चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति, जोएत्ता जोयं अनुपरियट्टंति, अनुपरियट्टित्ता सायं चंदं धनिट्ठाणं समप्पेंति। ता धनिट्ठा खलु नक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, जोएत्ता ततो पच्छा रातिं अवरं च दिवसं–एवं खलु धनिट्ठा नक्खत्ते एगं रातिं एगं च दिवसं चंदेण सद्धिं जोयं जोएति,

Translated Sutra: नक्षत्रों के चंद्र के साथ योग का आदि कैसे प्रतिपादित किया है ? अभिजीत्‌ और श्रवण ये दो नक्षत्र पश्चात्‌ भागा समक्षेत्रा है, वे चन्द्रमा के साथ सातिरेक ऊनचालीश मुहूर्त्त योग करके रहते हैं अर्थात्‌ एक रात्रि और सातिरेक एक दिन तक चन्द्र के साथ व्याप्त रह कर अनुपरिवर्तन करते हैं और शाम को चंद्र धनिष्ठा के साथ
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 51 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते कुला आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमे बारस कुला बारस उवकुला चत्तारि कुलोवकुला पन्नत्ता। बारस कुला तं जहा–धनिट्ठा कुलं उत्तराभद्दवया कुलं अस्सिणी कुलं कत्तिया कुलं संठाणा कुलं पुस्सो कुलं महा कुलं उत्तराफग्गुणी कुलं चित्ता कुलं विसाहा कुलं मूलो कुलं उत्तरासाढा कुलं। बारस उवकुला, तं जहा–सवणो उवकुलं पुव्वभद्दवया उवकुलं रेवती उवकुलं भरणी उवकुलं रोहिणी उवकुलं पुन्नवसू उवकुलं अस्सेसा उवकुलं पुव्वाफग्गुणी उवकुलं हत्थो उवकुलं साती उवकुलं जेट्ठा उवकुलं पुव्वासाढा उवकुलं। चत्तारि कुलोवकुला, तं जहा–अभीई कुलोवकुलं सतभिसया कुलोवकुलं अद्दा कुलोवकुलं

Translated Sutra: कुल आदि नक्षत्र किस प्रकार कहे हैं ? बारह नक्षत्र कुल संज्ञक हैं – घनिष्ठा, उत्तराभाद्रपदा, अश्विनी, कृतिका, मृगशीर्ष, पुष्य, मघा, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल और उत्तराषाढा। बारह नक्षत्र उपकुल संज्ञक कहे हैं – फाल्गुनी, श्रवण, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त,
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 52 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते पुण्णिमासिणी आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ बारस पुण्णिमासिणीओ बारस अमावासाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–साविट्ठी पोट्ठवली आसोई कत्तिया मग्गसिरी पोसी माही फग्गुणी चेत्ती वइसाही जेट्ठामूली आसाढी। ता साविट्ठिणं पुण्णिमासिं कति नक्खत्ता जोएंति? ता तिन्नि नक्खत्ता जोएंति, तं जहा–अभिइ सवणो धनिट्ठा। ता पोट्ठवतिण्णं पुण्णिमं कति नक्खत्ता जोएंति? ता तिन्नि नक्खत्ता जोएंति, तं जहा–सतभिसया पुव्वापोट्ठवया उत्तरापोट्ठवया। ता आसोइण्णं पुण्णिमं कति नक्खत्ता जोएंति? ता दोन्नि नक्खत्ता जोएंति, तं जहा–रेवती अस्सिणी य। ता कत्तियण्णं पुण्णिमं कति नक्खत्ता जोएंति?

Translated Sutra: हे भगवंत्‌ ! पूर्णिमा कौन सी है ? १२ पूर्णिमा और १२ अमावास्या है। १२ पूर्णिमा इस प्रकार हैं – श्राविष्ठी, प्रौष्ठपदी, आसोजी, कार्तिकी, मृगशिर्षी, पौषी, माघी, फाल्गुनी, चैत्री, वैशाखी, ज्येष्ठामूली, आषाढ़ी। कौनसी पूनम किन नक्षत्रों से योग करती है बताते हैं – श्राविष्ठी पूर्णिमा – अभिजीत्‌, श्रवण, घनिष्ठा से, प्रौष्ठपदी
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 53 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता साविट्ठिण्णं पुण्णिमासिणिं किं कुलं जोएति? उवकुलं वा जोएति? कुलोवकुलं वा जोएति? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति। कुलं जोएमाणे धनिट्ठा नक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे सवणे नक्खत्ते जोएति, कुलोव-कुलं जोएमाणे अभिई नक्खत्ते जोएति। साविट्ठिण्णं पुण्णिमं कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति। कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कुलोवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया। ता पोट्ठवतिण्णं पुण्णिमं किं कुलं जोएति? उवकुलं जोएति? कुलोवकुलं वा जोएति? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति। कुलं जोएमाणे

Translated Sutra: श्राविष्ठा पूर्णिमा क्या कुल – उपकुल या कुलोपकुल नक्षत्र से योग करती है ? वह तीनों का योग करती है – कुल का योग करत हुए वह घनिष्ठा नक्षत्र का योग करती है, उपकुल से श्रवण नक्षत्र का और कुलोपकुल से अभिजीत्‌ नक्षत्र का योग करती है। इसी तरह से आगे – आगे की पूर्णिमा के सम्बन्ध में समझना चाहिए – जैसे कि प्रौष्ठपदी पूर्णिमा
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