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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३१. लेश्यासूत्र | Hindi | 534 | View Detail | ||
Mool Sutra: किण्हा नीला काऊ, तिण्णि वि एयाओ अहम्मलेसाओ।
एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइं उववज्जई बहुसो।।४।। Translated Sutra: कृष्ण, नील और कापोत ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध दुर्गतियों में उत्पन्न होता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३१. लेश्यासूत्र | Hindi | 535 | View Detail | ||
Mool Sutra: तेऊ पम्हा सुक्का, तिण्णि वि एयाओ धम्मलेसाओ।
एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई बहुसो।।५।। Translated Sutra: पीत (तेज), पद्म और शुक्ल ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 567 | View Detail | ||
Mool Sutra: सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ।
संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो।।१।। Translated Sutra: शरीर को नाव कहा गया है और जीव को नाविक। यह संसार समुद्र है, जिसे महर्षिजन तैर जाते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 568 | View Detail | ||
Mool Sutra: बहिया उड्ढमादाय, नावकंखे कयाइ वि।
पुव्वकम्मक्खयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे।।२।। Translated Sutra: ऊर्ध्व अर्थात् मुक्ति का लक्ष्य रखनेवाला साधक कभी भी बाह्य विषयों की आकांक्षा न रखे। पूर्वकर्मों का क्षय करने के लिए ही इस शरीर को धारण करे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 572 | View Detail | ||
Mool Sutra: चरे पयाइं परिसंकमाणो, जं किंचि पासं इह मन्नमाणो।
लाभंतरे जीविय वूहइत्ता, पच्चा परिण्णाय मलावधंसी।।६।। Translated Sutra: साधक पग-पग पर दोषों की आशंका (सम्भावना) को ध्यान में रखकर चले। छोटे से छोटे दोष को भी पाश समझे, उससे सावधान रहे। नये-नये लाभ के लिए जीवन को सुरक्षित रखे। जब जीवन तथा देह से लाभ होता हुआ दिखाई न दे तो परिज्ञानपूर्वक शरीर का त्याग कर दे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 588 | View Detail | ||
Mool Sutra: जावन्तऽविज्जापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा।
लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणन्तए।।१।। Translated Sutra: समस्त अविद्यावान् (अज्ञानी पुरुष) दुःखी हैं-दुःख के उत्पादक हैं। वे विवेकमूढ़ अनन्त संसार में बार-बार लुप्त होते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 589 | View Detail | ||
Mool Sutra: समिक्ख पंडिए तम्हा, पासजाइपहे बहू।
अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेत्तिं भूएसु कप्पए।।२।। Translated Sutra: इसलिए पण्डितपुरुष अनेकविध पाश या बन्धनरूप स्त्री-पुत्रादि के सम्बन्धों की, जो कि जन्म-मरण के कारण हैं, समीक्षा करके स्वयं सत्य की खोज करे और सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 591 | View Detail | ||
Mool Sutra: जीवाऽजीवा य बन्धो य, पुण्णं पावाऽऽसवो तहा।
संवरो निज्जरा मोक्खो, संतेए तहिया नव।।४।। Translated Sutra: जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष--ये नौ तत्त्व या पदार्थ हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 595 | View Detail | ||
Mool Sutra: नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो।
अज्झत्थहेउं निययऽस्स बन्धो, संसारहेउं च वयन्ति बन्धं।।८।। Translated Sutra: आत्मा (जीव) अमूर्त है, अतः वह इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। तथा अमूर्त पदार्थ नित्य होता है। आत्मा के आन्तरिक रागादि भाव ही निश्चयतः बन्ध के कारण हैं और बन्ध को संसार का हेतु कहा गया है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 609 | View Detail | ||
Mool Sutra: जहा महातलायस्स, सन्निरुद्धे जलागमे।
उस्सिंचणाए तवणाए, कमेण सोसणा भवे।।२२।। Translated Sutra: जैसे किसी बड़े तालाब का जल, जल के मार्ग को बन्द करने से, पहले के जल को उलीचने से तथा सूर्य के ताप से क्रमशः सूख जाता है, वैसे ही संयमी का करोड़ों भवों में संचित कर्म पापकर्म के प्रवेश-मार्ग को रोक देने पर तथा तप से निर्जरा को प्राप्त होता है--नष्ट होता है। संदर्भ ६०९-६१० | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 610 | View Detail | ||
Mool Sutra: एवं तु संजयस्सावि, पावकम्मनिरासवे।
भवकोडीसंचियं कम्मं, तवसा निज्जरिज्जइ।।२३।। Translated Sutra: कृपया देखें ६०९; संदर्भ ६०९-६१० | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 621 | View Detail | ||
Mool Sutra: निव्वाणं ति अवाहंति, सिद्धी लोगग्गमेव य।
खेमं सिवं अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो।।३४।। Translated Sutra: जिसे महर्षि ही प्राप्त करते हैं वह स्थान निर्वाण है, अबाध है, सिद्धि है, लोकाग्र है, क्षेम, शिव और अनाबाध है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Hindi | 624 | View Detail | ||
Mool Sutra: धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल जन्तवो।
एस लोगो त्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं।।१।। Translated Sutra: परमदर्शी जिनवरों ने लोक को धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव इस प्रकार छह द्रव्यात्मक कहा है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Hindi | 628 | View Detail | ||
Mool Sutra: धम्मो अहम्मो आगासं, दव्वं इक्किक्कमाहियं।
अणंताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल जंतवो।।५।। Translated Sutra: धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक हैं। (व्यवहार-) काल, पुद्गल और जीव ये तीनों द्रव्य अनंत-अनंत हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Hindi | 629 | View Detail | ||
Mool Sutra: धम्माधम्मे य दोऽवेए, लोगमित्ता वियाहिया।
लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए।।६।। Translated Sutra: धर्म और अधर्म ये दोनों ही द्रव्य लोकप्रमाण हैं। आकाश लोक और अलोक में व्याप्त है। (व्यवहार-) काल केवल समयक्षेत्र अर्थात् मनुष्यक्षेत्र में ही है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Hindi | 636 | View Detail | ||
Mool Sutra: जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए।
अजीवदेसमागासे, अलोए से वियाहिए।।१३।। Translated Sutra: यह लोक जीव और अजीवमय कहा गया है। जहाँ अजीव का एकदेश (भाग) केवल आकाश पाया जाता है, उसे अलोक कहते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३६. सृष्टिसूत्र | Hindi | 657 | View Detail | ||
Mool Sutra: सव्वजीवाण कम्मं तु, संगहे छद्दिसागयं।
सव्वेसु वि पएसेसु, सव्वं सव्वेण बद्धगं।।७।। Translated Sutra: सभी जीवों के लिए संग्रह (बद्ध) करने के योग्य कर्म-पुद्गल छहों दिशाओं में सभी आकाशप्रदेशों में विद्यमान हैं। वे सभी कर्म-पुद्गल आत्मा के सभी प्रदेशों के साथ बद्ध होते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३६. सृष्टिसूत्र | Hindi | 658 | View Detail | ||
Mool Sutra: तेणावि जं कयं कम्मं, सुहं वा जइ वा दुहं।
कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं।।८।। Translated Sutra: व्यक्ति सुख-दुःखरूप या शुभाशुभरूप जो भी कर्म करता है, वह अपने उन कर्मों के साथ ही परभव में जाता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३७. अनेकान्तसूत्र | Hindi | 661 | View Detail | ||
Mool Sutra: गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा।
लक्खणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे।।२।। Translated Sutra: द्रव्य गुणों का आश्रय या आधार है। जो एक द्रव्य के आश्रय रहते हैं, वे गुण हैं। पर्यायों का लक्षण द्रव्य या गुण दोनों के आश्रित रहता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३८. प्रमाणसूत्र | Hindi | 675 | View Detail | ||
Mool Sutra: तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिनिबोहियं।
ओहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं।।२।। Translated Sutra: वह ज्ञान पाँच प्रकार का है--आभिनिबोधिक या मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान। | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | English | 21 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिनवचनेऽनुरक्ताः, जिनवचनं ये कुर्विन्ति भावेन।
अमला असंक्लिष्टाः, ते भवन्ति परीतसंसारिणः।।५।। Translated Sutra: Those who are fully devoted to the preachings of the Worthy Souls and practise them with sincerity shall attain purity and freedom from miseries and shortly get emancipation from the cycle of birth and death. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
५. संसारचक्रसूत्र | English | 45 | View Detail | ||
Mool Sutra: अध्रुवेऽशाश्वते, संसारे दुःखप्रचुरके।
किं नाम भवेत् तत् कर्मकं, येनाहं दुर्गतिं न गच्छेयम्।।१।। Translated Sutra: In this world which is unstable, impermanent and full of misery, is there any thing by the performance of which I can be saved from taking birth in undesirable conditions. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
५. संसारचक्रसूत्र | English | 46 | View Detail | ||
Mool Sutra: क्षणमात्रसौख्या बहुकालदुःखाः, प्रकामदुःखाः अनिकामसौख्याः।
संसारमोक्षस्य विपक्षभूताः, खानिरनर्थानां तु कामभोगाः।।२।। Translated Sutra: Sensuous enjoyments give momentary pleasure, but prolonged misery, more of misery and less of pleasure and they are the obstructions to salvationa and a veritable mine of misfortunes. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
५. संसारचक्रसूत्र | English | 50 | View Detail | ||
Mool Sutra: भोगामिषदोषविषण्णः, हितनिःश्रेयसबुद्धिविपर्यस्तः।
बालश्च मन्दितः मूढः, वध्यते मक्षिकेव श्लेष्मणि।।६।। Translated Sutra: He who is immersed in carnal pleasures becomes perverted in knowing what is beneficial and conducive to spiritual welfare, becomes ignorant, dull and infatuated and entangles himself in his own Karamas like a fly cought in phlegm. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
५. संसारचक्रसूत्र | English | 55 | View Detail | ||
Mool Sutra: जन्म दुःखं,जरा दुःखं रोगाश्च मरणानि च।
अहो दुःखः खलु संसारः, यत्र क्लिश्यन्ति जन्तवः।।११।। Translated Sutra: Birth is painful, old age is painful, disease and death are painful. Oh: painful, indeed, is worldly existence, where living beings suffer afflictions. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२१. साधनासूत्र | English | 290 | View Detail | ||
Mool Sutra: तस्यैष मार्गो गुरुवृद्धसेवा, विवर्जना बालजनस्य दूरात्।
स्वाध्यायैकान्तनिवेशना च, सूत्रार्थसंचिन्तनता धृतिश्च।।३।। Translated Sutra: Devoted service bestowed on the preceptor and the elders, an absolute avoiding of the company of ignorant people, self-study, lonely residence, proper consideration of the meaning of scriptural texts, patience, these constitute the pathway to that emancipation. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२१. साधनासूत्र | English | 291 | View Detail | ||
Mool Sutra: आहारमिच्छेद् मितमेषणीयं, सखायमिच्छेद् निपुणार्थबुद्धिम्।
निकेतमिच्छेद् विवेकयोग्यं, समाधिकामः श्रमणस्तपस्वी।।४।। Translated Sutra: A monk observing the austerities and desirous of eqanimity of his mind should partake of limited and unobjectionable (pure) food, should have an intelligent companion well-versed in the meaning of scriptures and should select a secluded place for his shelter and for meditation. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२१. साधनासूत्र | English | 293 | View Detail | ||
Mool Sutra: रसाः प्रकामं न निषेवितव्याः, प्रायो रसा दीप्तिकरा नराणाम्।
दीप्तं च कामाः समभिद्रवन्ति, द्रुमं यथा स्वादुफलमिव पक्षिणः।।६।। Translated Sutra: One should not take delicious deshes in excessive quantity; for the delicious dishes normally stimulate lust in a person. Persons whose lusts are stimulated are mentally disturbed like trees laden with sweet fruits frequently infested with birds. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२१. साधनासूत्र | English | 294 | View Detail | ||
Mool Sutra: विविक्तशय्याऽसनयन्त्रितानाम्, अवमोऽशनानां दमितेन्द्रियाणाम्।
न रागशत्रुर्धर्षयति चित्तं, पराजितो व्याधिरिवौषधैः।।७।। Translated Sutra: A disease cured by medicine does not reappear; like wise enemies like attachment will not disturb the mind of monk who takes a bed or seat in a lonely place, takes little food and has controlled his senses. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२२. द्विविध धर्मसूत्र | English | 298 | View Detail | ||
Mool Sutra: सन्त्येकेभ्यो भिक्षुभ्यः, अगारस्थाः संयमोत्तराः।
अगारस्थेभ्यश्च सर्वेभ्यः, साधवः संयमोत्तराः।।३।। Translated Sutra: In some case house-holders are superior to certain monks in respect of conduct. But as a whole monks are superior in conduct to the house-holder. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Gujarati | 628 | View Detail | ||
Mool Sutra: धर्मोऽधर्म आकाशं, द्रव्यमेकैकमाख्यातम्।
अनन्तानि च द्रव्याणि, कालः (समयाः) पुद्गला जन्तवः।।५।। Translated Sutra: ધર્મ, અધર્મ, આકાશ - એટલાં દ્રવ્યો વ્યક્તિ તરીકે એક-એક છે. કાળ, પુદ્ગલ અને જીવ એ ત્રણ દ્રવ્યો અનંત-અનંત સંખ્યામાં છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Gujarati | 629 | View Detail | ||
Mool Sutra: धर्माऽधर्मो च द्वावप्येतौ, लोकमात्रौ व्याख्यातौ।
लोकेऽलोके च आकाशः, समयः समयक्षेत्रिकः।।६।। Translated Sutra: ધર્મ અને અધર્મનું કદ લોક જેટલું છે. આકાશ લોક અને અલોકમાં વ્યાપ્ત છે, વ્યાવહારિક કાળ માત્ર મનુષ્યક્ષેત્રમાં છે. | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Hindi | 230 | View Detail | ||
Mool Sutra: न कामभोगाः समतामुपयन्ति, न चापि भोगा विकृतिमुपयन्ति।
यस्तत्प्रद्वेषी च परिग्रही च, स तेषु मोहाद् विकृतिमुपैति।।१२।। Translated Sutra: (इसी तरह-) कामभोग न समभाव उत्पन्न करते हैं और न विकृति (विषमता)। जो उनके प्रति द्वेष और ममत्व रखता है वह उनमें विकृति को प्राप्त होता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 568 | View Detail | ||
Mool Sutra: बाह्यमूर्ध्वमादाय, नावकाङ्क्षेत् कदाचिद् अपि।
पूर्वकर्मक्षयार्थाय, इमं देहं समुद्धरेत्।।२।। Translated Sutra: ऊर्ध्व अर्थात् मुक्ति का लक्ष्य रखनेवाला साधक कभी भी बाह्य विषयों की आकांक्षा न रखे। पूर्वकर्मों का क्षय करने के लिए ही इस शरीर को धारण करे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 572 | View Detail | ||
Mool Sutra: चरेत्पदानि परिशङ्कमानः, यत्किंचित्पाशमिह मन्यमानः।
लाभान्तरे जीवितं बृंहयित्वा, पश्चात्परिज्ञाय मलावध्वंसी।।६।। Translated Sutra: साधक पग-पग पर दोषों की आशंका (सम्भावना) को ध्यान में रखकर चले। छोटे से छोटे दोष को भी पाश समझे, उससे सावधान रहे। नये-नये लाभ के लिए जीवन को सुरक्षित रखे। जब जीवन तथा देह से लाभ होता हुआ दिखाई न दे तो परिज्ञानपूर्वक शरीर का त्याग कर दे। | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
६. कर्मसूत्र | English | 58 | View Detail | ||
Mool Sutra: कायेन वचसा मत्तः, वित्ते गृद्धश्च स्त्रीषु।
द्विधा मलं संचिनोति, शिशुनाग इव मृत्तिकाम्।।३।। Translated Sutra: Whoever is careless about his physical activities and speech and covetous of wealth and woman. accumulates Karmic dirt of attachment and aversion just as an earth-worm accumulates mud by both way (i. e., internally and externally). | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
६. कर्मसूत्र | English | 59 | View Detail | ||
Mool Sutra: न तस्य विभजन्ते ज्ञातयः, न मित्रवर्गा न सुता न बान्धवाः।
एकः स्वयं प्रत्यनुभवति दुःखं, कर्तारमेवानुयाति कर्म।।४।। Translated Sutra: As Karmas pursue the doer, the doer must suffer misery all alone and neither his castemen, nor friends, nor sons, nor brothers can share his misery. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
६. कर्मसूत्र | English | 64 | View Detail | ||
Mool Sutra: ज्ञानस्यावरणीयं, दर्शनावरणं तथा।
वेदनीयं तथा मोहम्, आयुःकर्म तथैव च।।९।। Translated Sutra: In brief, the Karmas are of eight kinds: (1) jnanavaraniya (knowledge obscuring), (2) Darsanavaraniaya (Apprehension obscuring), (3) Vedaniya (feeling producing), (4) Mohaniya (causing delusion), Ayu (determining the life-span), (6) Nama (physique-determining), (7) Gotra 9status determining) and (8) Antaraya (obscuring the power of self). Refers 64-65 | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
६. कर्मसूत्र | English | 65 | View Detail | ||
Mool Sutra: नामकर्म च गोत्रं च, अन्तरायं तथैव च।
एवमेतानि कर्माणि, अष्टैव तु समासतः।।१०।। Translated Sutra: Please see 64; Refers 64-65 | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
८. राग-परिहारसूत्र | English | 71 | View Detail | ||
Mool Sutra: रागश्च द्वेषोऽपि च कर्मबीजं, कर्मं च मोहप्रभवं वदन्ति।
कर्मं च जातिमरणस्य मूलम्, दुःखं च जातिमरणं वदन्ति।।१।। Translated Sutra: Attachment and aversion and seeds of karma; karma orginates from infatuation; karma is the root- cause of birth and death. Birth and death are said to be sources of misery. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
८. राग-परिहारसूत्र | English | 76 | View Detail | ||
Mool Sutra: कामानुगृद्धिप्रभवं खलु दुःखं, सर्वस्य लोकस्य सदेवकस्य।
यत् कायिकं मानसिकं च किञ्चित्, तस्यान्तकं गच्छति वीतरागः।।६।। Translated Sutra: Bodily and mental misery of all human beings and of gods is to some extent born of their constant sensual desire; he who is free from desire can put an end to this misery. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
८. राग-परिहारसूत्र | English | 78 | View Detail | ||
Mool Sutra: एवं स्वसंकल्पविकल्पनासु, संजायते समतोपस्थितस्य।
अर्थांश्च संकल्पयतस्तस्य, प्रहीयते कामगुणेषु तृष्णा।।८।। Translated Sutra: He, who endeavours to recognise that the cause of his misery lies in desires and not in the objects of senses, acquires the equanimity of mind. When he ceases to desire the objects (of the senses), his thirst for sensual pleasure will become extinct. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
८. राग-परिहारसूत्र | English | 81 | View Detail | ||
Mool Sutra: भावे विरक्तो मनुजो विशोकः, एतया दुःखौघपरम्परया।
न लिप्यते भवमध्येऽपि सन्, जलेनेव पुष्करिणीपलाशम्।।११।। Translated Sutra: A person who is free from worldly attachments becomes free from sorrow. Just as the petals of lotus growing in the midst of a lake remain untouched by water, even so, a person who is detached from all passions will remain unaffected by sorrows in this world. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 93 | View Detail | ||
Mool Sutra: मृषावाक्यस्य पश्चाच्च पुरस्ताच्च, प्रयोगकाले च दुःखी दुरन्तः।
एवमदत्तानि समाददानः, रूपेऽतृप्तो दुःखितोऽनिश्रः।।१२।। Translated Sutra: A person suffers misery after telling a lie, before telling a lie and while telling a lie; thus suffers endless misery, similarly a person who steels or a person who is lustful also suffers misery and finds himself without support. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 97 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा लाभस्तथा लोभः, लाभाल्लोभः प्रवर्धते।
द्विमाषकृतं कार्यं, कोट्याऽपि न निष्ठितम्।।१६।। Translated Sutra: Greed grows with every gain, every gain increases greed. A work which could be done by two grams of gold, could not be done even by crores of grams. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 98 | View Detail | ||
Mool Sutra: सुवर्णरूप्यस्य च पर्वता भवेयुः स्यात् खलु कैलाससमा असंख्यकाः।
नरस्य लुब्धस्य न तैः किञ्चित्, इच्छा खलु आकाशसमा अनन्तिका।।१७।। Translated Sutra: Even if a greedy person comes to accumulate a numberless Kailasa-like mountains of gold and silver they mean nothing to him, for this desire is as endless as is the sky. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 109 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा पद्मं जले जातं, नोपलिप्यते वारिणा।
एवमलिप्तं कामैः, तं वयं ब्रूमो ब्राह्मणम्।।२८।। Translated Sutra: We call him a Brahmin who remains unaffected by objects of sensual pleasures like a lotus which remains untouched by water though born in it. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 110 | View Detail | ||
Mool Sutra: दुःखं हतं यस्य न भवति मोहः, मोहो हतो यस्य न भवति तृष्णा।
तृष्णा हता यस्य न भवति लोभः, लोभो हतो यस्य न किञ्चन।।२९।। Translated Sutra: He who has got rid of delusion has his misery destroyed, he who has got rid of craving has his delusion destroyed. He who has got rid of greed has his craving destroyed, he who owns nothing has his greed destroyed. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 118 | View Detail | ||
Mool Sutra: या या व्रजति रजनी, न सा प्रतिनिवर्तते।
अधर्मं कुर्वाणस्य, अफलाः यान्ति रात्रयः।।३७।। Translated Sutra: The nights that pass away cannot return back. The night of a person engaged in sinful activities, go waste. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 119 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा च त्रयो वणिजः, मूलं गृहीत्वा निर्गताः।
एकोऽत्र लभते लाभम्, एको मूलेन आगतः।।३८।। Translated Sutra: Three Merchants started (on business) with their capital; one of them made profit in his business; the other returned back with his capital only; the third one returned after losing all the capital that he had taken with him. Know that in practice, this simile is also applicable in religious matter. Refers 119-120 |