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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1365 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मोहणिज्जं पि दुविहं दंसणे चरणे तहा ।
दंसणे तिविहं वुत्तं चरणे दुविहं भवे ॥ Translated Sutra: मोहनीय कर्म के भी दो भेद हैं – दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय। दर्शनमोहनीय के तीन और चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं। सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यक्मिथ्यात्व – ये तीन दर्शन मोहनीय की प्रकृतियाँ हैं। चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं – कषाय मोहनीय और नोकषाय मोहनीय। कषाय मोहनीय कर्म के सोलह भेद हैं। नोकषाय मोहनीय | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1366 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तमेव य ।
एयाओ तिन्नि पयडीओ मोहणिज्जस्स दंसणे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३६५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1367 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चरित्तमोहणं कम्मं दुविहं तु वियाहियं ।
कसायमोहणिज्जं तु नोकसायं तहेव य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३६५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1368 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोलसविहभेएणं कम्मं तु कसायजं ।
सत्तविहं नवविहं वा कम्मं नोकसायजं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३६५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1369 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेरइयतिरिक्खाउ मनुस्साउ तहेव य ।
देवाउयं चउत्थं तु आउकम्मं चउव्विहं ॥ Translated Sutra: आयु कर्म के चार भेद हैं – नैरयिकआयु, तिर्यग्आयु, मनुष्यआयु और देवआयु। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1370 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नामं कम्मं तु दुविहं सुहमसुहं च आहियं ।
सुहस्स उ बहू भेया एमेव असुहस्स वि ॥ Translated Sutra: नाम कर्म के दो भेद हैं – शुभ नाम और अशुभ – नाम। शुभ के अनेक भेद हैं। इसी प्रकार अशुभ के भी। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1371 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोयं कम्मं दुविहं उच्चं नीयं च आहियं ।
उच्चं अट्ठविहं होइ एवं नीयं पि आहियं ॥ Translated Sutra: गोत्र कर्म के दो भेद हैं – उच्च गोत्र और नीच गोत्र। इन दोनों के आठ – आठ भेद हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1372 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दाने लाभे य भोगे य उवभोगे वीरिए तहा ।
पंचविहमंतरायं समासेण वियाहियं ॥ Translated Sutra: संक्षेप से अन्तराय कर्म के पाँच भेद हैं – दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1373 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयाओ मूलपयडीओ उत्तराओ य आहिया ।
पएसग्गं खेत्तकाले य भावं चादुत्तरं सुण ॥ Translated Sutra: ये कर्मों की मूल प्रकृतियाँ और उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं। इसके आगे उनके प्रदेशाग्र – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को सूनो। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1374 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेसिं चेव कम्माणं पएसग्गमणंतगं ।
गंठियसत्ताईयं अंतो सिद्धाण आहियं ॥ Translated Sutra: एक समय में बद्ध होने वाले सभी कर्मों का कर्मपुद्गलरूप द्रव्य अनन्त होता है। वह ग्रन्थिभेद न करनेवाले अनन्त अभव्य जीवों से अनन्त गुण अधिक और सिद्धों के अन्तवे भाग जितना होता है। सभी जीवों के लिए संग्रह – कर्म – पुद्गल छहों दिशाओं में – आत्मा से स्पृष्ट सभी आकाश प्रदेशों में हैं। वे सभी कर्म – पुद्गल बन्ध | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1375 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वजीवाण कम्मं तु संगहे छद्दिसागयं ।
सव्वेसु वि पएसेसु सव्वं सव्वेण बद्धगं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३७४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1376 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदहीसरिनामाणं तीसई कोडिकोडिओ ।
उक्कोसिया ठिई होइ अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा वेदनीय और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटि – कोटि उदधि सदृश – सागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है। सूत्र – १३७६, १३७७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1377 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आवरणिज्जाण दुण्हं पि वेयणिज्जे तहेव य ।
अंतराए य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३७६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1378 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदहीसरिनामाणं सत्तरिं कोडिकोडिओ ।
मोहनिज्जस्स उक्कोसा अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर (७०) कोटि – कोटि सागरोपम की है। और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1379 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेत्तीस सागरोवमा उक्कोसेण वियाहिया ।
ठिई उ आउकम्मस्स अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: आयु – कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेंतीस सागरोपम की है; और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1380 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदहीसरिनामाणं वीसई कोडिकोडिओ ।
नामगोत्ताणं उक्कोसा अट्ठ मुहुत्ता जहन्निया ॥ Translated Sutra: नाम और गोत्र – कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटि – कोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त्त की है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1381 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धाणनंतभागो य अनुभागा हवंति उ ।
सव्वेसु वि पएसग्गं सव्वजीवेसुइच्छियं ॥ Translated Sutra: सिद्धों के अनन्तवें भाग जितने कर्मों के अनुभाग हैं। सभी अनुभागों का प्रदेश – परिमाण सभी भव्य और अभव्य जीवों से अतिक्रान्त है, अधिक है। इसलिए इन कर्मों के अनुभागों को जानकर बुद्धिमान साधक इनका संवर और क्षय करने का प्रयत्न करे। – ऐसा मैं कहता हूँ। सूत्र – १३८१, १३८२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1382 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एएसि कम्माणं अनुभागे वियाणिया ।
एएसिं संवरे चेव खवणे य जए बुहे ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1383 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लेसज्झयणं पवक्खामि आनुपुव्विं जहक्कमं ।
छण्हं पि कम्मलेसाणं अनुभावे सुणेह मे ॥ Translated Sutra: मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार लेश्याअध्ययन का निरूपण करूँगा। मुझसे तुम छहों लेश्याओं के अनुभावों – को सुनो। लेश्याओं के नाम, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयुष्य को मुझसे सुनो सूत्र – १३८३, १३८४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1384 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नामाइं वण्णरसगंध-फासपरिणामलक्खणे ।
ठाणं ठिइं गइं चाउं लेसाणं तु सुणेह मे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1385 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य ।
सुक्कलेस्सा य छट्ठा उ नामाइं तु जहक्कमं ॥ Translated Sutra: क्रमशः लेश्याओं के नाम इस प्रकार हैं – कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1386 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जीमूयनिद्धसंकासा गवलरिट्ठगसन्निभा ।
खंजणंजणनयणनिभा किण्हलेसा उ वण्णओ ॥ Translated Sutra: कृष्ण लेश्या का वर्ण सजल मेघ, महिष, शृंग, अरिष्टक खंजन, अंजन और नेत्र – तारिका के समान (काला) है। नील लेश्या का वर्ण – नील अशोक वृक्ष, चास पक्षी के पंख और स्निग्ध वैडूर्य मणि के समान (नीला) है। कापोत लेश्या का वर्ण – अलसी के फूल, कोयल के पंख और कबूतर की ग्रीवा के वर्ण के समान (कुछ काला और कुछ लाल – जैसा मिश्रित) है। तेजोलेश्या | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1387 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नीलासोगसंकासा चासपिच्छसमप्पभा ।
वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1388 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अयसीपुप्फसंकासा कोइलच्छदसन्निभा ।
पारेवयगीवनिभा काउलेसा उ वण्णओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1389 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हिंगुलुयधाउसंकासा तरुणाइच्चसन्निभा ।
सुयतुंडपईवनिभा तेउलेसा उ वण्णओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1390 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हरियालभेयसंकासा हलिद्दाभेयसंनिभा ।
सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1391 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखंककुंदसंकासा खीरपूरसमप्पभा ।
रययहारसंकासा सुक्कलेसा उ वण्णओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1399 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह सुरहिकुसुमगंधो गंधवासाण पिस्समाणाणं ।
एत्तो वि अनंतगुणो पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३९८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1400 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह करगयस्स फासो गोजिब्भाए व सागपत्ताणं ।
एत्तो वि अनंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥ Translated Sutra: क्रकच, गाय की जीभ और शाक वृक्ष के पत्रों का स्पर्श जैसे कर्कश होता है, उससे अनन्त गुण कर्कश स्पर्श तीनों अप्रशस्त लेश्याओं का है। बूर, नवनीत, सिरीष के पुष्पों का स्पर्श जैसे कोमल होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कोमल स्पर्श तीनों प्रशस्त लेश्याओं का है। सूत्र – १४००, १४०१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1401 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह बूरस्स व फासो नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं ।
एत्तो वि अनंतगुणो पसत्थलेसाणं तिण्हं पि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४०० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1402 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा ।
दुसओ तेयालो वा लेसाणं होइ परिणामो ॥ Translated Sutra: लेश्याओं के तीन, नौ, सत्ताईस, इक्कासी अथवा दो – सौ तेंतालीस परिणाम होते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1403 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचासवप्पवत्तो तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य ।
तिव्वारंभपरिणओ खुद्दो साहसिओ नरो ॥ Translated Sutra: जो मनुष्य पाँच आश्रवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों में अगुप्त है, षट्काय में अविरत है, तीव्र आरम्भ में संलग्न है, क्षुद्र है, अविवेकी है – निःशंक परिणामवाला है, नृशंस है, अजितेन्द्रिय है – इन सभी योगों से युक्त, वह कृष्णलेश्या में परिणत होता है। सूत्र – १४०३, १४०४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1404 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्धंधसपरिणामो निस्संसो अजिइंदिओ ।
एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु परिणमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४०३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1405 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इस्साअमरिसअतवो अविज्जमाया अहीरिया य ।
गेद्धी पओसे य सढे पमत्ते रसलोलुए साय गवेसए य ॥ Translated Sutra: जो ईर्ष्यालु है, अमर्ष है, अतपस्वी है, अज्ञानी है, मायावी है, लज्जारहित है, विषयासक्त है, द्वेषी है, धूर्त्त है, प्रमादी है, रस – लोलुप है, सुख का गवेषक है – जो आरम्भ से अविरत है, क्षुद्र है, दुःसाहसी है – इन योगों से युक्त मनुष्य नीललेश्या में पविवत होता है। सूत्र – १४०५, १४०६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1406 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आरंभाओ अविरओ खुद्दो साहस्सिओ नरो ।
एयजोगसमाउत्तो नीललेसं तु परिणमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४०५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1407 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वंके वंकसमायारे नियडिल्ले अणुज्जुए ।
पलिउंचग ओवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए ॥ Translated Sutra: जो मनुष्य वक्र है, आचार से टेढ़ा है, कपट करता है, सरलता से रहित है, प्रति – कुञ्चक है – अपने दोषों को छुपाता है, औपधिक है – सर्वत्र छद्म का प्रयोग करता है। मिथ्यादृष्टि है, अनार्य है – उत्प्रासक है – दुष्ट वचन बोलता है, चोर है, मत्सरी है, इन सभी योगों से युक्त वह कापोत लेश्या में परिणत होता है। सूत्र – १४०७, १४०८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1408 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उप्फालगदुट्ठवाई य तेणे यावि य मच्छरी ।
एयजोगसमाउत्तो काउलेसं तु परिणमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४०७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1409 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नीयावित्ती अचवले अमाई अकुऊहले ।
विणीयविनए दंते जोगवं उवहाणवं ॥ Translated Sutra: जो नम्र है, अचपल है, माया से रहित है, अकुतूहल है, विनय करने में निपुण है, दान्त है, योगवान् है, उपधान करनेवाला है। प्रियधर्मी है, दृढधर्मी है, पाप – भीरु है, हितैषी है – इन सभी योगों से युक्त वह तेजोलेश्या में परिणत होता है। सूत्र – १४०९, १४१० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1410 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पियधम्मे दढधम्मे वज्जभीरू हिएसए ।
एयजोगसमाउत्तो तेउलेसं तु परिणमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४०९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1411 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पयणुक्कोहमाणे य मायालोभे य पयणुए ।
पसंतचित्ते दंतप्पा जोगवं उवहाणवं ॥ Translated Sutra: क्रोध, मान, माया और लोभ जिसके अत्यन्त अल्प हैं, जो प्रशान्तचित्त है, अपनी आत्मा का दमन करता है, योगवान् है, उपधान करनेवाला है – जो मित – भाषी है, उपशान्त है, जितेन्द्रिय है – इन सभी योगों से युक्त वह पद्म लेश्या में परिणत होता है। सूत्र – १४११, १४१२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1412 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहा पयणुवाई य उवसंते जिइंदिए ।
एयजोगसमाउत्तो पम्हलेसं तु परिणमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४११ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1413 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता धम्मसुक्काणि ज्झायए ।
पसंतचित्ते दंतप्पा समिए गुत्ते य गुत्तिहिं ॥ Translated Sutra: आर्त्त और रौद्र ध्यानों को छोड़कर जो धर्म और शुक्लध्यान में लीन है, जो प्रशान्त – चित्त और दान्त है, पाँच समितियों से समित और तीन गुप्तियों से गुप्त है – सराग हो या वीतराग, किन्तु जो उपशान्त है, जितेन्द्रिय है – इन सभी योगों से युक्त वह शुक्ल लेश्या में परिणत होता है। सूत्र – १४१३, १४१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1414 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सरागे वीयरागे वा उवसंते जिइंदिए ।
एयजोगसमाउत्तो सुक्कलेसं तु परिणमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४१३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1415 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] असंखिज्जाणोसप्पिणीण उस्सप्पिणीण जे समया ।
संखाईया लोगा लेसाण हुंति ठाणाइं ॥ Translated Sutra: असंख्य अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के जितने समय होते हैं, असंख्य योजन प्रमाण लोक के जितने आकाश – प्रदेश होते हैं, उतने ही लेश्याओं के स्थान होते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1416 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा किण्हलेसाए ॥ Translated Sutra: कृष्ण – लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्त्तार्ध है और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त्त – अधिक तेंतीस सागर है। नील लेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर है। कापोत लेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1417 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दस उदही पलियमसंखभागमब्भहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा नीललेसाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४१६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1418 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तिण्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा काउलेसाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४१६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1419 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दोउदही पलियमसंखभागमब्भहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा तेउलेसाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४१६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1420 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दस होंति सागरा मुहुत्तहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा पम्हलेसाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४१६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३४ लेश्या |
Hindi | 1421 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४१६ |