Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (8482)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1255 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं । जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा ते कित्तइस्सामि अहानुपुव्विं ॥

Translated Sutra: जो राग, द्वेष और मोह का मूल से उन्मूलन चाहता है, उसे जिन – जिन उपायों को उपयोग में लाना चाहिए, उन्हें मैं क्रमशः कहूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1256 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रसा पगामं न निसेवियव्वा पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवंति दुमं जहा साउफलं व पक्खी ॥

Translated Sutra: रसों का उपयोग प्रकाम नहीं करना। रस प्रायः मनुष्य के लिए दृप्तिकर होते हैं। विषयासक्त मनुष्य को काम वैसे ही उत्पीड़ित करते हैं, जैसे स्वादुफल वाले वृक्ष को पक्षी।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1257 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा दवग्गी पउरिंधणे वणे समारुओ नोवसमं उवेइ । एविंदियग्गी वि पगामभोइणो न बंभयारिस्स हियाय कस्सई ॥

Translated Sutra: जैसे प्रचण्ड पवन के साथ प्रचुर ईन्धन वाले वन में लगा दावानल शान्त नहीं होता है, उसी प्रकार प्रकामभोजी की इन्द्रियाग्नि शान्त नहीं होती। ब्रह्मचारी के लिए प्रकाम भोजन कभी भी हितकर नहीं है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1258 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विवित्तसेज्जासणजंतियाणं ओमासणाणं दमिइंदियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ।

Translated Sutra: जो विविक्त शय्यासन से यंत्रित हैं, अल्पभोजी हैं, जितेन्द्रिय हैं, उनके चित्त को रागद्वेष पराजित नहीं कर सकते हैं, जैसे औषधि से पराजित व्याधि पुनः शरीर को आक्रान्त नहीं करती है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1259 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा बिरालावसहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे न बंभयारिस्स खमो निवासो ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार बिडालों के निवास – स्थान के पास चूहों का रहना प्रशस्त नहीं है, उसी प्रकार स्त्रियों के निवास – स्थान के पास ब्रह्मचारी का रहना भी प्रशस्त नहीं है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1260 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न रूवलावण्णविलासहासं न जंपियं इंगियपेहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता दट्ठुं ववस्से समणे तवस्सी ॥

Translated Sutra: श्रमण तपस्वी स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास, हास्य, आलाप, इंगित और कटाक्ष को मन में निविष्ट कर देखने का प्रयत्न न करे। जो सदा ब्रह्मचर्य में लीन हैं, उनके लिए स्त्रियों का अवलोकन, उनकी इच्छा, चिन्तन और वर्णन न करना हितकर है, तथा सम्यक्‌ ध्यान साधना के लिए उपयुक्त है। सूत्र – १२६०, १२६१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1261 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अदंसणं चेव अपत्थणं च अचिंतणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजनस्सारियज्झाणजोग्गं हियं सया बंभवए रयाणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1262 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कामं तु देवीहि विभूसियाहिं न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगंतहियं ति नच्चा विवित्तवासो मुनिनं पसत्थो ॥

Translated Sutra: यद्यपि तीन गुप्तियों से गुप्त मुनि को अलंकृत देवियाँ भी विचलित नहीं कर सकती, तथापि एकान्त हित की दृष्टि से मुनि के लिए विविक्तवास ही प्रशस्त है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1263 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मोक्खाभिकंखिस्स वि मानवस्स संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए जहित्थिओ बालमनोहराओ ॥

Translated Sutra: मोक्षाभिकांक्षी, संसारभीरु और धर्म में स्थित मनुष्य के लिए लोक में ऐसा कुछ भी दुस्तर नहीं है, जैसे कि अज्ञानियों के मन को हरण करनेवाली स्त्रियाँ दुस्तर हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1264 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए य संगे समइक्कमित्ता सुहुत्तरा चेव भवंति सेसा । जहा महासागरमुत्तरित्ता नई भवे अवि गंगासमाना ॥

Translated Sutra: स्त्री – विषयक इन उपर्युक्त संसर्गों का सम्यक्‌ अतिक्रमण करने पर शेष सम्बन्धों का अतिक्रमण वैसे ही सुखोत्तर हो जाता है, जैसे कि महासागर को तैरने के बाद गंगा जैसी नदियों को तैर जाना आसान है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1265 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स । जं काइयं मानसियं च किंचि तस्संतगं गच्छइ वीयरागो ॥

Translated Sutra: समस्त लोक के, यहाँ तक कि देवताओं के भी, जो कुछ भी शारीरिक और मानसिक दुःख हैं, वे सब कामासक्ति से पैदा होते हैं। वीतराग आत्मा ही उन दुःखों का अन्त कर पाते हैं। जैसे किंपाक फल रस और रूप – रंग की दृष्टि से देखने और खाने में मनोरम होते हैं, किन्तु परिणाम में जीवन का अन्त कर देते हैं, काम – गुण भी अन्तिम परिणाम में ऐसे
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1266 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा य किंपागफला मनोरमा रसेण वन्नेण य भुज्जमाणा । ते खुड्डए जीविय पच्चमाणा एओवमा कामगुणा विवागे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२६५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1267 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे इंदियाणं विसया मणुन्ना न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न यामनुन्नेसु मनं पि कुज्जा समाहिकामे समणे तवस्सी ॥

Translated Sutra: समाधि की भावनावाला तपस्वी श्रमण इन्द्रियों के शब्द – रूपादि मनोज्ञ विषयों में रागभाव न करे और इन्द्रियों के अमनोज्ञ विषयों में मन से भी द्वेषभाव न करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1268 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥

Translated Sutra: चक्षु का ग्रहण रूप है। जो रूप राग का कारण होता है, उसे मनोज्ञ कहते हैं और जो रूप द्वेष का कारण होता है, उसे अमनोज्ञ कहते हैं। इन दोनों में जो सम रहता है, वह वीतराग है। चक्षु रूप का ग्रहण है। रूप चक्षु का ग्राह्य विषय ह। जो राग का कारण है, उसे मनोज्ञ कहते हैं और जो द्वेष का कारण है, उसे अमनोज्ञ कहते हैं। सूत्र – १२६८,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1269 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवस्स चक्खुं गहणं वयंति चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२६८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1270 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विनासं । रागाउरे से जह वा पयंगे आलोयलोले समुवेइ मच्चुं ॥

Translated Sutra: जो मनोज्ञरूपों में तीव्र रूप से गृद्धि, आसक्ति रखता है, वह रागातुर अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है। जैसे प्रकाश – लोलुप पतंगा प्रकाश के रूप में आसक्त होकर मृत्यु को प्राप्त होता है। जो अमनोज्ञ रूप के प्रति तीव्र रूप से द्वेष करता है, वह उसी क्षण अपने दुर्दान्त (दुर्दभ) द्वेष से दुःख को प्राप्त होता है। इसमें
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1271 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दंत्तदोसेण सएण जंतू न किंचि रूवं अवरज्झई से ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२७०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1272 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगंतरत्ते रुइरंसि रूवे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुनी विरागो ॥

Translated Sutra: जो सुन्दर रूप में एकान्त आसक्त होता है और अतादृश में द्वेष करता है, वह अज्ञानी दुःख की पीड़ा को प्राप्त होता है। विरक्त मुनि उनमें लिप्त नहीं होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1273 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवानुगासानुगए य जीवे चराचरे हिंसइनेगरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्ठे ॥

Translated Sutra: मनोज्ञ रूप की आशा का अनुगमन करनेवाला व्यक्ति अनेकरूप त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। अपने प्रयोजन को ही अधिक महत्त्व देने वाला क्लिष्ट अज्ञानी विविध प्रकार से उन्हें परिताप देता है, पीड़ा पहुँचाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1274 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवानुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥

Translated Sutra: रूप में अनुपात और परिग्रह के कारण रूप के उत्पादन में, संरक्षण में और सन्नियोग में तथा व्यय और वियोग में उसे सुख कहाँ ? उसे उपभोग काल में भी तृप्ति नहीं मिलती।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1275 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठिं । अतुट्ठिदोसेन दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥

Translated Sutra: रूप में अतृप्त तथा परिग्रह में आसक्त और उपसक्त व्यक्ति सन्तोष को प्राप्त नहीं होता। वह असंतोष के दोष से दुःखी एवं लोभ से आविल व्यक्ति दूसरों की वस्तुऍं चुराता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1276 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥

Translated Sutra: रूप और परिग्रह में अतृप्त तथा तृष्णा से अभिभूत होकर वह दूसरों की वस्तुओं का अपहरण करता है। लोभ के दोष से उसका कपट और झूठ बढ़ता है। परन्तु कपट और झूठ का प्रयोग करने पर भी वह दुःख से मुक्त नहीं होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1277 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्तानि समाययंतो रूवे अतित्तो दुहिओ अनिस्सो ॥

Translated Sutra: झूठ बोलने के पहले, उसके पश्चात्‌ और बोलने के समय में भी वह दुःखी होता है। उसका अन्त भी दुःखरूप होता है। इस प्रकार रूप से अतृप्त होकर वह चोरी करने वाला दुःखी और आश्रयहीन हो जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1278 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवानुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार रूप में अनुरक्त मनुष्य को कहाँ, कब और कितना सुख होगा ? जिसे पाने के लिए मनुष्य दुःख उठाता है, उसके उपभोग में भी क्लेश और दुःख ही होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1279 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एमेव रूवम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥

Translated Sutra: इस प्रकार रूप के प्रति द्वेष करने वाला भी उत्तरोत्तर अनेक दुःखों की परम्परा को प्राप्त होता है। द्वेषयुक्त चित्त से जिन कर्मों का उपार्जन करता है, वे विपाक के समय में दुःख के कारण बनते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1280 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: रूप में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1281 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोयस्स सद्दं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥

Translated Sutra: श्रोत्र का ग्रहण शब्द है। जो शब्द राग में कारण है, उसे मनोज्ञ कहते हैं। जो शब्द द्वेष का कारण है, उसे अमनोज्ञ कहते हैं। श्रोत्र शब्द का ग्राहक है, शब्द श्रोत्र का ग्राह्य है। जो राग का कारण है उसे मनोज्ञ कहते हैं और जो द्वेष का कारण है उसे अमनोज्ञ कहते हैं। सूत्र – १२८१, १२८२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1282 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दस्स सोयं गहणं वयंति सोयस्स सद्दं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२८१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1283 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विनासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चुं ॥

Translated Sutra: जो मनोज्ञ शब्दों में तीव्र रूप से आसक्त है, वह रागातुर अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है, जैसे शब्द में अतृप्त मुग्ध हरिण मृत्यु को प्राप्त होता है, जो अमनोज्ञ शब्द के प्रति तीव्र द्वेष करता है, वह उसी क्षण अपने दुर्दान्त द्वेष से दुःखी होता है। इसमें शब्द का कोई अपराध नहीं है। सूत्र – १२८३, १२८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1284 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुद्दंतदोसेण सएण जंतू न किंचि सद्दं अवरज्झई से ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२८३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1285 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगंतरत्ते रुइरंसि सद्दे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुनी विरागो ॥

Translated Sutra: जो प्रिय शब्द में एकान्त आसक्त होता है और अप्रिय शब्द में द्वेष करता है, वह अज्ञानी दुःख की पीड़ा को प्राप्त होता है। विरक्त मुनि उनमें लिप्त नहीं होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1286 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दाणुगासानुगए य जीवे चराचरे हिंसइनेगरूवे । चित्तेहि ते परियावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्ठे ॥

Translated Sutra: शब्द की आशा का अनुगामी अनेकरूप चराचर जीवों की हिंसा करता है। अपने प्रयोजन को ही मुख्य मानने वाला क्लिष्ट अज्ञानी विविध प्रकार से उन्हें परिताप देता है, पीड़ा पहुँचाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1287 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दानुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥

Translated Sutra: शब्द में अनुराग और ममत्व के कारण शब्द के उत्पादन में, संरक्षण में, सन्नियोग में तथा व्यय और वियोग में, उसको सुख कहाँ है ? उसे उपभोग काल में भी तृप्ति नहीं मिलती है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1288 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठिं । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥

Translated Sutra: शब्द में अतृप्त तथा परिग्रह में आसक्त और उपसक्त व्यक्ति संतोष को प्राप्त नहीं होता। वह असंतोष के दोष से दुःखी व लोभग्रस्त व्यक्ति दूसरों की वस्तुऍं चुराता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1289 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥

Translated Sutra: शब्द और परिग्रह में अतृप्त, तृष्णा से पराजित व्यक्ति दूसरों की वस्तुओं का अपहरण करता है। लोभ के दोष से उसका कपट और झूठ बढ़ता है। कपट और झूठ से भी वह दुःख से मुक्त नहीं होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1290 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो सद्दे अतित्तो दुहिओ अनिस्सो ॥

Translated Sutra: झूठ बोलने के पहले, उसके बाद और बोलने के समय भी वह दुःखी होता है। उसका अन्त भी दुःखमय है। इस प्रकार शब्द में अतृप्त व्यक्ति चोरी करता हुआ दुःखी और आश्रयहीन हो जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1291 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दानुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार शब्द में अनुरक्त व्यक्ति को कहाँ, कब और कितना सुख होगा ? जिस उपभोग के लिए व्यक्ति दुःख उठाता है, उस उपभोग में भी क्लेश और दुःख ही होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1292 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एमेव सद्दम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥

Translated Sutra: इसी प्रकार जो अमनोज्ञ शब्द के प्रति द्वेष करता है, वह उत्तरोत्तर अनेक दुःखों की परम्परा को प्राप्त होता है। द्वेष – युक्त चित्त से जिन कर्मों का उपार्जन करता है, वे ही विपाक के समय में दुःख के कारण बनते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1293 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: शब्द में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे – जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1294 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घाणस्स गंधं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥

Translated Sutra: घ्राण का विषय गन्ध है। जो गन्ध राग में कारण है उसे मनोज्ञ कहते हैं और जो गन्ध द्वेष में कारण होती है, उसे अमनोज्ञ कहते हैं। घ्राण गन्ध का ग्राहक है। गन्ध घ्राण का ग्राह्य है। जो राग का कारण है, उसे मनोज्ञ कहते हैं। और जो द्वेष का कारण है, उसे अमनोज्ञ कहते हैं। सूत्र – १२९४, १२९५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1295 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधस्स घाणं गहणं वयंति घाणस्स गंधं गहनं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२९४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1296 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विनासं । रागाउरे ओसहिगंधगिद्धे सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ॥

Translated Sutra: जो मनोज्ञ गन्ध में तीव्र रूप से आसक्त है, वह अकाल में विनाश को प्राप्त होता है। जैसे औषधि की गन्ध में आसक्त रागानुरक्त सर्प बिल से निकलकर विनाश को प्राप्त होता है। जो अमनोज्ञ गन्ध के प्रति तीव्र रूप से द्वेष करता है, वह जीव उसी क्षण अपने दुर्दान्त द्वेष से दुःखी होता है। इसमें गन्ध का कोई अपराध नहीं है। सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1297 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दंतदोसेण सएण जंतू न किंचि गंधं अवरज्झई से ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२९६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1298 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगंतरत्ते रुइरंसि गंधे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुनी विरागो ॥

Translated Sutra: जो सुरभि गन्ध में एकान्त आसक्त होता है, और दुर्गन्ध में द्वेष करता है, वह अज्ञानी दुःख की पीड़ा को प्राप्त होता है। विरक्त मुनि उनमें लिप्त नहीं होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1299 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधानुगासानुगए य जीवे चराचरे हिंसइनेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्ठे ॥

Translated Sutra: गन्ध की आशा का अनुगामी अनेकरूप त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है, अपने प्रयोजन को ही मुख्य माननेवाला अज्ञानी विविध प्रकार से उन्हें परीताप देता है, पीड़ा पहुँचाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1300 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधानुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥

Translated Sutra: गन्ध में अनुराग और परिग्रह में ममत्त्व के कारण गन्ध के उत्पादन में, संरक्षण में और सन्नियोग में तथा व्यय और वियोग में उसे सुख कहाँ ? उसे उपभोग काल में भी तृप्ति नहीं मिलती है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1301 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठिं । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥

Translated Sutra: गन्ध में अतृप्त तथा परिग्रह में आसक्त तथा उपसक्त व्यक्ति संतोष को प्राप्त नहीं होता है। वह असंतोष के दोष से दुःखी, लोभग्रस्त व्यक्ति दूसरों की वस्तुऍं चुराता है। दूसरों की वस्तुओं का अपहरण करता है। लोभ के दोष से उसका कपट और झूठ बढ़ता है। कपट और झूठ से भी वह दुःख से मुक्त नहीं हो पाता है। सूत्र – १३०१, १३०२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1302 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १३०१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1303 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्तानि समाययंतो गंधे अतित्तो दुहिओ अनिस्सो ॥

Translated Sutra: झूठ बोलने के पहले, उसके बाद और बोलने के समय वह दुःखी होता है। उसका अन्त भी दुःखमय है। इस प्रकार गन्ध से अतृप्त होकर वह चोरी करनेवाला दुःखी और आश्रयहीन हो जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1304 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधानुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार गन्ध में अनुरक्त व्यक्ति को कहाँ, कब, कितना सुख होगा ? जिसके उपभोग के लिए दुःख उठाता है, उसके उपभोग में भी दुःख और क्लेश ही होता है।
Showing 6301 to 6350 of 8482 Results