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Chandravedyak Ardha-Magadhi

Gujarati 117 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह व अनियमियतुरगे अयाणमाणो नरो समारूढो । इच्छेज्ज पराणीयं अइगंतुं जो अकयजोगो ॥

Translated Sutra: (મરણગુણ દ્વાર) હવે સમાધિમરણના ગુણ વિશેષ એકાગ્ર થઈ સાંભળો. ૧૧૭. જેમ અનિયંત્રિત ઘોડા ઉપર બેઠેલો અજાણપુરુષ શત્રુસૈન્યને પરાસ્ત કરવા કદાચ ઇચ્છે. ૧૧૮. પરંતુ તે પુરુષ અને ઘોડો અગાઉ તેવી તાલીમ અને અભ્યાસ નહીં કરવાથી, સંગ્રામમાં શત્રુસૈન્યને જોતા જ નાશી જાય છે. ૧૧૯. તેમ ક્ષુધાદિ પરીષહો, લોચાદિ કષ્ટો અને તપનો જેણે
Chatusharan चतुश्शरण Ardha-Magadhi

चतुशरणं

Hindi 11 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरिहंत १ सिद्ध २ साहू ३ केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो ४ । एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धन्नो ॥

Translated Sutra: अरिहंत, सिद्ध, साधु और केवली भगवंतने बताया हुआ सुख देनेवाला धर्म, यह चार शरण, चार गति को नष्ट करनेवाले हैं और उसे भागशाली पुरुष पा सकता है।
Chatusharan चतुश्शरण Ardha-Magadhi

चतुशरणं

Hindi 36 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खंडियसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा । सुप्पुरिसमणभिरामा आयारामा मुनी सरणं ॥

Translated Sutra: स्नेह समान बंधन को तोड़ देनेवाले, निर्विकारी स्थान में रहनेवाले, विकाररहित सुख की ईच्छा करनेवाले, सत्पुरुष के मन को आनन्द देनेवाले और आत्मा में रमण करनेवाले मुनि मुझे शरणरूप हो।
Chatusharan चतुश्शरण Ardha-Magadhi

चतुशरणं

Hindi 42 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पवरसुकएहि पत्तं पत्तेहि वि नवरि केहि वि न पत्तं । तं केवलिपन्नत्तं धम्मं सरणं पवन्नो हं ॥

Translated Sutra: अति उत्कृष्ट पुण्य द्वारा पाया हुआ, कुछ भाग्यशाली पुरुषो ने भी शायद न पाया हो, केवली भगवान ने बताया हुआ वो धर्म मैं शरण के रूप में अंगीकार करता हूँ।
Chatusharan चतुश्शरण Ardha-Magadhi

उपसंहार

Hindi 61 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता एयं कायव्वं बुहेहि निच्चं पि संकिलेसम्मि । होइ तिकालं सम्मं असंकिलेसम्मि सुकयफलं ॥

Translated Sutra: उस के लिए पंड़ितपुरुषों को संक्लेशमें (रोग आदि वजहमें) यह आराधन हंमेशा करे, असंक्लेशपनमें भी तीनों कालमें अच्छी तरह से करना चाहिए, यह आराधन सुकृत के उपार्जन समान फल का निमित्त है।
Chatusharan ચતુશ્શરણ Ardha-Magadhi

चतुशरणं

Gujarati 11 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरिहंत १ सिद्ध २ साहू ३ केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो ४ । एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धन्नो ॥

Translated Sutra: ૧.અરહંત, ૨.સિદ્ધ, ૩.સાધુ, ૪.કેવલી કથિત સુખ આપનાર ધર્મ; આ ચારે શરણા ચાર ગતિના નાશક છે. તેને ધન્યો(ભાગ્યશાળી પુરુષો) પામે છે.
Chatusharan ચતુશ્શરણ Ardha-Magadhi

चतुशरणं

Gujarati 30 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धसरणेण नवबंभहेउसाहुगुणजणियअणुराओ । मेइणिमिलंतसुपसत्थमत्थओ तत्थिमं भणइ ॥

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: (સાધુનું શરણપણું) અનુવાદ: સૂત્ર– ૩૦. સિદ્ધના શરણ વડે નય(જ્ઞાન) અને બ્રહ્મના હેતુરૂપ સાધુના ગુણમાં પ્રગટેલ અનુરાગવાળો અતિ પ્રશસ્ત મસ્તકને પૃથ્વીએ મૂકી કહે છે – સૂત્ર– ૩૧. જીવલોકના બંધુ, કુગતિરૂપ સિંધુના પાર પામનાર, મહાભાગ્ય વાળા, જ્ઞાનાદિથી મોક્ષસુખ સાધક સાધુ મને શરણ થાઓ. સૂત્ર– ૩૨. કેવલી,
Chatusharan ચતુશ્શરણ Ardha-Magadhi

चतुशरणं

Gujarati 41 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पडिवन्नसाहुसरणो सरणं काउं पुणो वि जिनधम्मं । पहरिसरोमंचपवंचकंचुयंचियतणू भणइ ॥

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: (ધર્મનું શરણપણું) અનુવાદ: સૂત્ર– ૪૧. સાધુનું શરણ સ્વીકારીને, અતિ હર્ષથી રોમાંચિત શોભિત શરીરવાળો, જિનધર્મના શરણને સ્વીકારવા માટે બોલે છે – સૂત્ર– ૪૨. અતિ ઉત્કૃષ્ટ પુણ્ય વડે પામેલો, વળી ભાગ્યવાન પુરુષોએ પણ નહીં પણ પામેલ એવા તે કેવલી પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મને હું શરણરૂપે સ્વીકારું છું. સૂત્ર– ૪૩.
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-४ गणिसंपदा

Hindi 12 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पओगसंपदा? पओगसंपदा चउव्विधा पन्नत्ता, तं जहा– आतं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, परिसं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, खेत्तं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, वत्थुं विदाय वादं पउंजित्ता भवति। से तं पओगसंपदा।

Translated Sutra: वो प्रयोग संपत्ति कौन – सी है ? वो प्रयोग – संपत्ति चार प्रकार से है। वो इस प्रकार – अपनी शक्ति जानकर वादविवाद करना, सभा के भावों को जानकर, क्षेत्र की जानकारी पाकर, वस्तु विषय को जानकर पुरुष विशेष के साथ वाद – विवाद करना यह प्रयोग – संपत्ति।
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Hindi 35 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ। कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए,

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। यह (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है। स्थविर भगवंत ने कौन – सी ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है? स्थविर भगवंत ने जो ११ उपासक प्रतिमा बताई है, वो इस प्रकार है – (दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, दिन में ब्रह्मचर्य,
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ७ भिक्षु प्रतिमा

Hindi 49 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति। मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स

Translated Sutra: मासिकी भिक्षु प्रतिमा को धारण करनेवाले साधु काया को वोसिरा के तथा शरीर के ममत्व भाव के त्यागी होते हैं। देव – मानव या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई उपसर्ग आता है उसे वो सम्यक्‌ प्रकार से सहता है। उपसर्ग करनेवाले को क्षमा करते हैं, अदीन भाव से सहते हैं, शारीरिक क्षमतापूर्वक उसका सामना करता है। मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Hindi 54 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे नाम चेइए–वण्णओ, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया। अज्जोति! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी–एवं खलु अज्जो! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाइं, जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा–

Translated Sutra: उस काल उस समय में चम्पानगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। कोणिक राजा तथा धारिणी राणी थे। श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे। पर्षदा नीकली। भगवंतने देशना दी। धर्म श्रवण करके पर्षदा वापिस लौटी। बहुत साधु – साध्वी को भगवंत ने कहा – आर्यो ! मोहनीय स्थान ३० हैं। जो स्त्री या पुरुष इस स्थान का बारबार सेवन करते हैं, वे महामोहनीय
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 95 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे अन्नया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरसा कंठे मालकडे आवद्धमणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-पालंब-पलंबमाण-कडि-सुत्तय-सुकयसोभे पिणिद्धगेवेज्जे अंगुलेज्जगल-लियंगय-ललियकयाभरणे जाव कप्परुक्खए चेव अलंकित-विभूसिते नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! जाइं इमाइं रायगिहस्स

Translated Sutra: तब उस राजा श्रेणिक – बिंबिसारने एक दिन स्नान किया, बलिकर्म किया, विघ्नशमन के लिए ललाट पर तिलक किया, दुःस्वप्न दोष निवारणार्थ प्रायश्चित्तादि विधान किये, गले में माला पहनी, मणि – रत्नजड़ित सुवर्ण के आभूषण धारण किये, हार – अर्धहार – त्रिसरोहार पहने, कटिसूत्र पहना, सुशोभित हुआ। आभूषण व मुद्रिका पहनी, यावत्‌ कल्पवृक्ष
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 103 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति। न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे। जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने बहुत से साधु – साध्वीओं को कहा – श्रेणिक राजा और चेल्लणा रानी को देखकर क्या – यावत्‌ इस प्रकार के अध्यवसाय आपको उत्पन्न हुए यावत्‌ क्या यह बात सही है ? हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है – यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, श्रेष्ठ है, सिद्धि – मुक्ति, निर्याण और निर्वाण का यही
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 105 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ सब दुःखों का अन्त करता है। जो कोई निर्ग्रन्थ केवलि प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए तत्पर हुआ हो, परिषहों को सहता हो, यदि उसे कामवासना का उदय हो जाए तो उसके शमन का प्रयत्न करे इत्यादि पूर्ववत्‌। यदि वह किसी स्त्री को देखता
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 106 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया,

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करता है। यदि कोई निर्ग्रन्थी केवली प्रज्ञप्त धर्म के लिए तत्पर होती है, परिषह सहन करती है, उसे कदाचित्‌ कामवासना का प्रबल उदय हो जाए तो वह तप संयम की उग्र साधना से उसका शमन करे। यदि उस समय (पूर्व
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 107 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म बताया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ (प्रथम ‘‘निदान’’ समान जान लेना।) कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी धर्म शिक्षा के लिए तत्पर होकर विचरण करते हो, क्षुधादि परिषह सहते हो, फिर भी उसे कामवासना का प्रबल उदय हो जाए, तब उसके शमन के लिए तप – संयम की उग्र साधना से प्रयत्न
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दशा १0 आयति स्थान

Hindi 110 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है (शेष कथन प्रथम निदान समान जानना) मानुषिक विषयभोग अध्रुव यावत्‌ त्याज्य हैं। दिव्यकाम भोग भी अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत एवं अस्थिर हैं। जन्म – मरण बढ़ानेवाले हैं। पहले या पीछे अवश्य त्याज्य हैं। यदि मेरे तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं विशुद्ध जाति
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 111 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत्‌ (पहले निदान के समान सब कथन करना) मानुषिक, दिव्य कामभोग, भव परंपरा बढ़ानेवाले हैं। यदि मेरे सुचरित तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल विशेष हो तो मैं भी भविष्य में अन्त, प्रान्त, तुच्छ, दरिद्र, कृपण या भिक्षुकुल में पुरुष बनुं, जिस से प्रव्रजित होने के लिए
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-४ गणिसंपदा

Gujarati 12 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पओगसंपदा? पओगसंपदा चउव्विधा पन्नत्ता, तं जहा– आतं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, परिसं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, खेत्तं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, वत्थुं विदाय वादं पउंजित्ता भवति। से तं पओगसंपदा।

Translated Sutra: તે પ્રયોગ સંપત્તિ કઈ છે ? પ્રયોગ સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે. તે આ પ્રમાણે – ૧. પોતાની શક્તિ જાણીને વાદ – વિવાદ કરવો, ૨. સભાના ભાવો જાણીને વાદ કરવો, ૩. ક્ષેત્રની જાણકારી મેળવીને વાદ કરવો, ૪. વસ્તુ વિષયને જાણીને પુરુષવિશેષ સાથે વાદ – વિવાદ કરવો. તે પ્રયોગ સંપત્તિ.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Gujarati 35 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ। कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए,

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: જે આત્મા શ્રમણપણાના પાલન માટે અસમર્થ હોય તેવા આત્મા શ્રમણપણાનું લક્ષ્ય રાખી તેના ઉપાસક બને છે. તેને શ્રમણોપાસક કહે છે. ટૂંકમાં તેઓ ઉપાસક તરીકે ઓળખાય છે. આવા ઉપાસકને આત્મા સાધના માટે ૧૧ પ્રતિમા અર્થાત્‌ વિશિષ્ટ પ્રકારની ‘પ્રતિજ્ઞાનું આરાધન’ જણાવેલ છે, તેનું અહીં વર્ણન છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્‌
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ७ भिक्षु प्रतिमा

Gujarati 49 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति। मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स

Translated Sutra: હવે એક માસિકી ભિક્ષુપ્રતિમા કહે છે – માસિકી ભિક્ષુપ્રતિમાને ધારણ કરતા સાધુ કાયાને વોસીરાવી દીધેલા અને શરીરના મમત્વભાવના ત્યાગી હોય છે. દેવ, મનુષ્ય કે તિર્યંચ સંબંધી જે કાંઈ ઉપસર્ગ આવે છે. તેને તે સમ્યક્‌ પ્રકારે સહન કરે છે. ઉપસર્ગ કરનારને ક્ષમા કરે છે, અદીન ભાવે સહન કરે છે, શારીરિક ક્ષમાપૂર્વક તેનો સામનો
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 54 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे नाम चेइए–वण्णओ, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया। अज्जोति! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी–एवं खलु अज्जो! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाइं, जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा–

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આઠ કર્મોમાં મોહનીય કર્મ પ્રબળ છે. તેની સ્થિતિ પણ સૌથી વધુ લાંબી છે. તેનો સંપૂર્ણ ક્ષય થતાં જ ક્રમશઃ બાકીના કર્મો ક્ષય પામે છે. આ મોહનીય કર્મના બંધન માટે ત્રીશ સ્થાનો અર્થાત્‌ કારણો આ દશામાં કહેવાયેલા છે. તે આ રીતે – અનુવાદ: તે કાળે અને તે સમયે ચંપા નામક નગરી હતી. વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર. નગરી બહાર
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 95 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे अन्नया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरसा कंठे मालकडे आवद्धमणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-पालंब-पलंबमाण-कडि-सुत्तय-सुकयसोभे पिणिद्धगेवेज्जे अंगुलेज्जगल-लियंगय-ललियकयाभरणे जाव कप्परुक्खए चेव अलंकित-विभूसिते नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! जाइं इमाइं रायगिहस्स

Translated Sutra: ત્યારે તે શ્રેણિક રાજા ભિંભિસારે એક દિવસ સ્નાન કર્યું. પોતાના દેવ સમક્ષ નૈવૈદ્ય પૂજા – બલિકર્મ કર્યું. વિઘ્નશમન માટે પોતાના કપાળ ઉપર તિલક કર્યું. દુઃસ્વપ્નના દોષના નિવારણ માટે પ્રાયશ્ચિત્ત અર્થાત્‌ દહીં, ચોખા, દુર્વા આદિ ધારણ કર્યા કૌતુક – મંગલ – પ્રાયશ્ચિત્ત કર્યા.. ડોકમાં માળા પહેરી, મણિરત્ન જડિત સોનાના
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 97 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं से सेणिए राया तेसिं पुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जहा कोणिओ जाव वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता ते पुरिसे सक्कारेति सम्मानेति विपुलं जीवियारिहं पीतिदानं दलयति, दलयित्ता पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता नगरगुत्तियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! रायगिहं नगरं सब्भिंतर-बाहिरियं आसित्तसम्मज्जितोवलित्तं जाव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणति।

Translated Sutra: તે સમયે શ્રેણિક રાજા તે પુરુષો પાસે આ સંવાદ સાંભળી, અવધારી, હૃદયથી હર્ષિત અને સંતુષ્ટ થયા. – યાવત્‌ – તે સિંહાસન થકી ઊઠ્યા, ઊઠીને પછી જેમ ઉવવાઈ સૂત્રમાં કોણિક અધિકાર કહેલ છે, તે પ્રમાણે. વંદન, નમસ્કાર કર્યા. પછી તે સેવક પુરુષોના સત્કાર અને સન્માન કર્યા. પ્રીતિપૂર્વક આજીવિકા યોગ્ય વિપુલદાન આપ્યું. ત્યારપછી તે
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 103 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति। न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे। जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं

Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ઘણા નિર્ગ્રન્થ – નિર્ગ્રન્થીને આમંત્રિત કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – પ્રશ્ન – હે આર્યો ! શ્રેણિક રાજા અને ચેલ્લણા દેવીને જોઈને આવા પ્રકારનો અધ્યવસાય યાવત્‌ વિચાર ઉત્પન્ન થયો કે, અહો ! શ્રેણિક રાજા મહર્દ્ધિક છે યાવત્‌ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? અહો ! ચેલ્લણા દેવી મહર્દ્ધિક છે યાવત્‌ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? હે આર્યો
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 105 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્‌ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. જો કોઈ નિર્ગ્રન્થ કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે તત્પર થાય, તેને ભૂખ – તરસ ઇત્યાદિ પરીષહો સહન કરતા કદાચિત કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય થઈ જાય. ત્યારે તે તપ – સંયમની ઉગ્ર સાધના દ્વારા તે કામવાસનાને શમન
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 106 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया,

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે યાવત્‌ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. એવા તે કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે કોઈ સાધ્વી તત્પર થાય અને ક્ષુધા, તૃષા આદિ પરીષહ સહન કરે. પરંતુ તેમ સહન કરતા કદાચિત કોઈ કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય તેણીને થઈ પણ જાય તો – તે સંયમની ઉગ્ર સાધના થકી
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दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 107 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે. યાવત્‌ સર્વ દુઃખોનો અંત કરે છે, પૂર્વવત જાણવું. કોઈ સાધુ કે સાધ્વી કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આરાધના માટે ઉપસ્થિત થઈને વિચરણ કરતા – યાવત્‌ – સંયમમાં પરાક્રમ કરતા માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે આ પ્રમાણે વિચારે કે – ૧.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 108 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेजा– मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ णो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि,

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે. યાવત્‌ સંયમની સાધનામાં પરાક્રમ કરતા એવા સાધુ માનવ સંબંધી શબ્દાદિ કામ – ભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને એમ વિચારે કે – માનવસંબંધી કામભોગ અધ્રુવ યાવત્‌ ત્યાજ્ય છે. ઉપર દેવલોકમાં જે દેવ છે, તે ૧. ત્યાં અન્ય દેવીઓ સાથે વિષયસેવન કરતા નથી. ૨. પરંતુ પોતાની વિકુર્વિત દેવીઓ
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 109 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રરૂપણ કરેલું છે યાવત્‌ સંયમની સાધનામાં પરાક્રમ કરતો એવો નિર્ગ્રન્થ માનવ સંબંધી કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે એમ વિચારે કે – માનવ સંબંધી કામભોગ અધ્રુવ અને ત્યાજ્ય છે. જે ઉપર દેવલોકમાં દેવ છે, તે ત્યાં – ૧. બીજા દેવોની દેવી સાથે વિષય સેવન કરતા નથી. ૨. સ્વયંની વિકુર્વિત
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 110 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता

Translated Sutra: હે આયુષ્માન્‌ શ્રમણો! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે યાવત્‌ સંયમ સાધનામાં પરાક્રમ કરતો નિર્ગ્રન્થ દિવ્ય અને માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ એમ વિચારે કે – માનુષિક કામભોગ અધ્રુવ યાવત્‌ ત્યાજ્ય છે. દેવ સંબંધી કામભોગ પણ અધ્રુવ, અનિત્ય, શાશ્વત, ચલાચલ સ્વભાવવાળા, જન્મ – મરણ વધારનારા અને પહેલાં કે પછી અવશ્ય ત્યાજ્ય
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Gujarati 111 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે યથાવત્‌ સંયમની સાધનામાં પ્રયત્ન કરતો સાધુ દિવ્ય માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે એમ વિચારે કે, માનુષિક કામભોગો અધ્રુવ યાવત્‌ ત્યાજ્ય છે. દિવ્ય કામભોગો પણ અધ્રુવ યાવત્‌ ભવ – પરંપરાને વધારનાર છે. તથા પહેલાં કે પછી અવશ્ય ત્યાજ્ય છે. જો સમ્યક્‌ પ્રકારથી
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अध्ययन-१ द्रुमपुष्पिका

Hindi 5 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] महुकारसमा बुद्धा जे भवंति अणिस्सिया । नाणापिंडरया दंता तेण वुच्चंति साहुणो ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जो बुद्ध पुरुष मधुकर के समान अनिश्रित हैं, नाना [विध अभिग्रह से युक्त होकर] पिण्डों में रत हैं और दान्त हैं, वे अपने गुणों के कारण साधु कहलाते है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक

Hindi 16 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं करेंति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा । विणियट्टंति भोगेसु जहा से पुरिसोत्तमो ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: सम्बुध्ध, प्रविचक्षण और पण्डित ऐसा ही करते है। वे भोगों से उसी प्रकार निवृत्त हो जाते हैं, जिस प्रकार वह पुरुषोत्तम रथनेमि हुए।
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अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 179 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे ॥

Translated Sutra: भिक्षु भिक्षा काल में निकले और समय पर ही वापस लौटे अकाल को वर्ज कर जो कार्य जिस समय उचित हो, उसे उसी समय करे। हे मुनि ! तुम अकाल में जाते हो, काल का प्रतिलेख नहीं करते। भिक्षा न मिलने पर तुम अपने को क्षुब्ध करते हो और सन्निवेश की निन्दा करते हो। भिक्षु समय होने पर भिक्षाटन और पुरुषार्थ करे। भिक्षा प्राप्त नहीं
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अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 204 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इत्थियं पुरिसं वा वि डहरं वा महल्लगं । वंदमाणो न जाएज्जा नो य णं फरुसं वए ॥

Translated Sutra: स्त्री या पुरुष, बालक या वृद्ध वन्दना कर रहा हो, तो उससे किसी प्रकार की याचना न करे तथा आहार न दे तो उसे कठोर वचन भी न कहे।
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अध्ययन-७ वाकशुद्धि

Hindi 307 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव होले गोले त्ति साणे वा वसुले त्ति य । दमए दुहए वा वि नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥

Translated Sutra: इसी प्रकार प्रज्ञावान्‌ साधु, ‘रे होल !, रे गोल !, ओ कुत्ते !, ऐ वृषल (शूद्र) !, हे द्रमक !, ओ दुर्भग !’ इस प्रकार न बोले। स्त्री को – हे दादी !, हे परदादी !, हे मां !, हे मौसी !, हे बुआ !, ऐ भानजी !, अरी पुत्री !, हे नातिन, हे हला !, हे अन्ने!, हे भट्टे !, हे स्वामिनि !, हे गोमिनि ! – इस प्रकार आमंत्रित न करे। किन्तु यथायोग्य गुणदोष, वय आदि का
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अध्ययन-७ वाकशुद्धि

Hindi 348 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च दुट्ठं परिवज्जए सया । मियं अदुट्ठं अनुवीइ भासए सयाण मज्झे लहई पसंसनं ॥

Translated Sutra: जो मुनि श्रेष्ठ वचनशुद्धि का सम्यक्‌ सम्प्रेक्षण करके दोषयुक्त भाषा को सर्वदा सर्वथा छोड़ देता है तथा परिमित और दोषरहित वचन पूर्वापर विचार करके बोलता है, वह सत्पुरुषों के मध्य में प्रशंसा प्राप्त करता है।
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अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 407 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विभूसा इत्थिसंसग्गी पणीयरसभोयणं । नरस्सत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा ॥

Translated Sutra: आत्मगवेषी पुरुष के लिए विभूषा, स्त्रीसंसर्ग और स्निग्ध रस – युक्त भोजन तालपुट विष के समान है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 463 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समावयंता वयणाभिघाया कण्णंगया दुम्मणियं जणंति । धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे जिइंदिए जो सहई स पुज्जो ॥

Translated Sutra: आते हुए कटुवचनों के आघात कानों में पहुँचते ही दौर्मनस्य उत्पन्न करते हैं; (परन्तु) जो वीर – पुरुषों का परम अग्रणी जितेन्द्रिय पुरुष ‘यह मेरा धर्म है’ ऐसा मान कर सहन कर लेता है, वही पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 467 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थी पुमं पव्वइयं गिहिं वा । नो हीलए नो वि य खिंसएज्जा थंभं च कोहं च चए स पुज्जो ॥

Translated Sutra: इसी प्रकार अल्पवयस्क या वृद्ध को, स्त्री या पुरुष को, अथवा प्रव्रजित अथवा गृहस्थ को उसके दुश्चरित की याद दिला कर जो साधक न तो उसकी हीलना करता है और न ही झिड़कता है तथा जो अहंकार और क्रोध का त्याग करता है, वही पूज्य होता है।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

चूलिका-२ विविक्तचर्या

Hindi 539 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स धिइमओ सप्पुरिसस्स निच्चं । तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी सो जीवइ संजमजीविएणं ॥

Translated Sutra: जिस जितेन्द्रिय, धृतिमान्‌ सत्पुरुष के योग सदा इस प्रकार के रहते हैं, उसे लोक में प्रतिबुद्धजीवी कहते हैं, वही वास्तव में संयमी जीवन जीता है।
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

चूलिका-२ विविक्तचर्या

Gujarati 534 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न या लभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एक्को वि पावाइं विवज्जयंतो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩૪. કદાચિત્‌ ગુણોમાં અધિક અથવા ગુણોમાં સમાન નિપુણ સહાયક સાધુ ન મળે તો પાપકર્મોને વર્જિત કરતો, કામભોગોમાં અનાસક્ત રહીને એકલો જ વિચરણ કરે. સૂત્ર– ૫૩૫. વર્ષાકાળમાં ચાર માસ અને અન્ય ઋતુઓમાં એક માસ રહેવાનું ઉત્કૃષ્ટ પ્રમાણ છે. તેથી જ્યાં ચાતુર્માસ કે માસકલ્પ કરેલ હોય ત્યાં બીજા વર્ષે ચાતુર્માસ કે માસકલ્પ
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ द्रुमपुष्पिका

Gujarati 5 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] महुकारसमा बुद्धा जे भवंति अणिस्सिया । नाणापिंडरया दंता तेण वुच्चंति साहुणो ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: જે બુદ્ધ અર્થાત તત્ત્વના જાણકાર પુરુષ, મધુકર એટલે કે ભ્રમર સમાન અનિશ્રિત(પ્રતિબંધ રહિત) છે, તેઓ વિવિધ અભિગ્રહોથી યુક્ત થઈને પિંડમાં(આહાર ગ્રહણ કરવામાં) રત(પ્રવૃત્ત) તેમજ દાંત(ઈન્દ્રિયોનું દમન કરનાર) છે. તેને તે ગુણોને કારણે સાધુ કહે છે – તેમ હું તમને કહું છું.
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक

Gujarati 6 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए । पए पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ ॥

Translated Sutra: જે પુરુષ કામભોગનું નિવારણ ન કરી શકે, તે સંકલ્પને વશીભૂત થઈને પગલે – પગલે વિષાદ પામતો, શ્રામણ્યનું (સંયમભાવનું) પાલન કઈ રીતે કરશે ?
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक

Gujarati 8 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे य कंते पिए भोए, लद्धे वि पिट्ठिकुव्वई । साहीणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ ॥

Translated Sutra: જે પુરુષ કાંત(મનોહર) અને પ્રિય ભોગ પ્રાપ્ત થાય તો પણ તે તરફથી પોતાની પીઠ ફેરવી લે છે અને સ્વાધીન રૂપે પ્રાપ્ત ભોગોનો ત્યાગ કરે છે, તેને ત્યાગી કહેવાય છે.
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक

Gujarati 15 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाइ सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫. તે સંયતી – રાજીમતીના સુભાષિત વચનો સાંભળીને તે રથનેમિ, અંકુશથી હાથી સ્થિર થાય તેમ સ્થિર થઈ ગયા. સૂત્ર– ૧૬. સંબુદ્ધ, પ્રવિચક્ષણ અને પંડિત આમ જ કરે છે. તે પુરુષોત્તમ રથનેમિની માફક ભોગોથી નિવૃત્ત થઈ જાય છે. – ૦ – તેમ હું તમને કહું છું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૫, ૧૬
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अध्ययन-७ वाकशुद्धि

Gujarati 348 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च दुट्ठं परिवज्जए सया । मियं अदुट्ठं अनुवीइ भासए सयाण मज्झे लहई पसंसनं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૪૮. જે મુનિ શ્રેષ્ઠ વચનશુદ્ધિનું સમ્યક્‌ સંપ્રેક્ષણ કરીને દોષયુક્ત ભાષાને સર્વદા સર્વથા છોડી દે તથા પરિમિત અને દોષરહિત વચન પૂર્વાપર વિચારીને બોલે છે, તે સત્પુરુષો મધ્યે પ્રશંસાય છે. સૂત્ર– ૩૪૯. છ જીવનિકાય પ્રતિ સંયત તથા શ્રામણ્યભાવમાં સદા યત્નશીલ પ્રબુદ્ધ સાધુ ભાષાના દોષ અને ગુણોને જાણીને, સદોષ
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Gujarati 179 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૯. ભિક્ષુ, ભિક્ષા – કાળે ભિક્ષાર્થે નીકળે, કાળે જ પાછો ફરે. અકાલનેળે વર્જીને જે કાર્ય જ્યારે ઉચિત હોય, ત્યારે તે કાર્ય કરે. સૂત્ર– ૧૮૦. હે મુનિ ! જો તું અકાળમાં ભિક્ષાર્થે જઈશ અને કાળનું પ્રતિલેખન નહી કરે તો ભિક્ષા ન મળે ત્યારે તું તને પોતાને ક્ષુબ્ધ કરીશ અને સંનિવેશની નિંદા કરીશ. સૂત્ર– ૧૮૧. ભિક્ષુ સમય
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