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Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१६. मोक्षमार्गसूत्र Hindi 205 View Detail
Mool Sutra: तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा आउक्खए चुया। उवेन्ति माणुसं जोणिं, सेदुसंगेऽभिजायए।।१४।।

Translated Sutra: (पुण्य के प्रताप से) देवलोक में यथास्थान रहकर आयुक्षय होने पर देवगण वहाँ से लौटकर मनुष्य-योनि में जन्म लेते हैं। वहाँ वे दशांग भोग-सामग्री से युक्त होते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१६. मोक्षमार्गसूत्र Hindi 206 View Detail
Mool Sutra: भोच्चा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं। पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे, केवलं बोहि बुज्झिया।।१५।।

Translated Sutra: जीवनपर्यन्त अनुपम मानवीय भोगों को भोगकर पूर्वजन्म में विशुद्ध समीचीन धर्माराधन के कारण निर्मल बोधि का अनुभव करते हैं और चार अंगों (मनुष्यत्व, श्रुति, श्रद्धा तथा वीर्य) को दुर्लभ जानकर वे संयम-धर्म स्वीकार करते हैं और फिर तपश्चर्या से कर्मों का नाश करके शाश्वत सिद्धपद को प्राप्त होते हैं। संदर्भ २०६-२०७
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१६. मोक्षमार्गसूत्र Hindi 207 View Detail
Mool Sutra: चउरंगं दुल्लहं मत्ता, संजमं पडिवज्जिया। तवसा धुयकम्मंसे, सिद्धे हवइ सासए।।१६।।

Translated Sutra: कृपया देखें २०६; संदर्भ २०६-२०७
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१७. रत्नत्रयसूत्र Hindi 209 View Detail
Mool Sutra: नाणेण जाणई भावे, दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई।।२।।

Translated Sutra: (मनुष्य) ज्ञान से जीवादि पदार्थों को जानता है, दर्शन से उनका श्रद्धान करता है, चारित्र से (कर्मास्रव का) निरोध करता है और तप से विशुद्ध होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१७. रत्नत्रयसूत्र Hindi 211 View Detail
Mool Sutra: नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं।।४।।

Translated Sutra: सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्रगुण नहीं होता। चारित्रगुण के बिना मोक्ष (कर्मक्षय) नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण (अनंतआनंद) नहीं होता।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 230 View Detail
Mool Sutra: न कामभोगा समयं उवेंति, न यावि भोगा विगइं उवेंति। जे तप्पओसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगइं उवेइ।।१२।।

Translated Sutra: (इसी तरह-) कामभोग न समभाव उत्पन्न करते हैं और न विकृति (विषमता)। जो उनके प्रति द्वेष और ममत्व रखता है वह उनमें विकृति को प्राप्त होता है।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 231 View Detail
Mool Sutra: निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उवबूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ।।१३।।

Translated Sutra: सम्यग्दर्शन के ये आठ अंग हैं : निःशंका, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि, उपगूहन, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 234 View Detail
Mool Sutra: नो सक्कियमिच्छई न पूयं, नो वि य वन्दणगं कुओ पसंसं ?। से संजए सुव्वए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू।।१६।।

Translated Sutra: जो सत्कार, पूजा और वन्दना तक नहीं चाहता, वह किसीसे प्रशंसा की अपेक्षा कैसे करेगा ? (वास्तव में) जो संयत है, सुव्रती है, तपस्वी है और आत्मगवेषी है, वही भिक्षु है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 238 View Detail
Mool Sutra: नाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेणं तहेव य। खन्तीए मुत्तीए, वड्ढमाणो भवाहि य।।२०।।

Translated Sutra: ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, शान्ति (क्षमा) एवं मुक्ति (निर्लोभता) के द्वारा आगे बढ़ना चाहिए--जीवन को वर्धमान बनाना चाहिए।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 241 View Detail
Mool Sutra: तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम ! मा पमायए।।२३।।

Translated Sutra: तूं महासागर को तो पार कर गया है, अब तट के निकट पहुँचकर क्यों खड़ा है ? उसे पार करने में शीघ्रता कर। हे गौतम ! क्षणभर का भी प्रमाद मत कर।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२०. सम्यक्‌चारित्रसूत्र Hindi 286 View Detail
Mool Sutra: सद्धं नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं। खन्तिं निउणपागारं, तिगुत्तं दुप्पघंसयं।।२५।।

Translated Sutra: श्रद्धा को नगर, तप और संवर को अर्गला, क्षमा को (बुर्ज, खाई और शतघ्नीस्वरूप) त्रिगुप्ति (मन-वचन-काय) से सुरक्षित तथा अजेय सुदृढ़ प्राकार बनाकर तपरूप वाणी से युक्त धनुष से कर्म-कवच को भेदकर (आंतरिक) संग्राम का विजेता मुनि संसार से मुक्त होता है। संदर्भ २८६-२८७
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२०. सम्यक्‌चारित्रसूत्र Hindi 287 View Detail
Mool Sutra: तवनारायजुत्तेण, भित्तूणं कम्मकंचुयं। मुणी विगयसंगामो, भवाओ परिमुच्चए।।२६।।

Translated Sutra: कृपया देखें २८६; संदर्भ २८६-२८७
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 289 View Detail
Mool Sutra: नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अण्णाणमोहस्स विवज्जणाए। रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं।।२।।

Translated Sutra: सम्पूर्णज्ञान के प्रकाशन से, अज्ञान और मोह के परिहार से तथा राग-द्वेष के पूर्णक्षय से जीव एकान्त सुख अर्थात् मोक्ष प्राप्त करता है।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 290 View Detail
Mool Sutra: तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगंतनिवेसणा य, सुत्तत्थ संचिंतणया धिई य।।३।।

Translated Sutra: गुरु तथा वृद्ध-जनों की सेवा करना, अज्ञानी लोगों के सम्पर्क से दूर रहना, स्वाध्याय करना, एकान्तवास करना, सूत्र और अर्थ का सम्यक् चिन्तन करना तथा धैर्य रखना--ये (दुःखों से मुक्ति के) उपाय हैं।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 291 View Detail
Mool Sutra: आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धिं। निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं समाहिकामे समणे तवस्सी।।४।।

Translated Sutra: समाधि का अभिलाषी तपस्वी श्रमण परिमित तथा एषणीय आहार की ही इच्छा करे, तत्त्वार्थ में निपुण (प्राज्ञ) साथी को ही चाहे तथा विवेकयुक्त अर्थात् विविक्त (एकान्त) स्थान में ही निवास करे।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 293 View Detail
Mool Sutra: रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं। दित्तं च कामा समभिद्दवंति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी।।६।।

Translated Sutra: रसों का अत्यधिक सेवन नहीं करना चाहिए। रस प्रायः उन्मादवर्धक होते हैं--पुष्टिवर्धक होते हैं। मदाविष्ट या विषयासक्त मनुष्य को काम वैसे ही सताता या उत्पीड़ित करता है जैसे स्वादिष्ट फलवाले वृक्ष को पक्षी।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 294 View Detail
Mool Sutra: विवित्तसेज्जाऽऽसणजंतियाणं, ओमाऽसणाणं दमिइंदियाणं। न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं।।७।।

Translated Sutra: जो विविक्त (स्त्री आदि से रहित) शय्यासन से नियंत्रित (युक्त) है, अल्प-आहारी है और दमितेन्द्रिय है, उसके चित्त को राग-द्वेषरूपी विकार पराजित नहीं कर सकते, जैसे औषधि से पराजित या विनष्ट व्याधि पुनः नहीं सताती।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२२. द्विविध धर्मसूत्र Hindi 298 View Detail
Mool Sutra: सन्ति एगेहिं भिक्खूहिं, गारत्था संजमुत्तरा। गारत्थेहिं य सव्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा।।३।।

Translated Sutra: यद्यपि शुद्धाचारी साधुजन सभी गृहस्थों से संयम में श्रेष्ठ होते हैं, तथापि कुछ (शिथिलाचारी) भिक्षुओं की अपेक्षा गृहस्थ संयम में श्रेष्ठ होते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 340 View Detail
Mool Sutra: न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो। न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण न तावसो।।५।।

Translated Sutra: केवल सिर मुँड़ाने से कोई श्रमण नहीं होता, ओम् का जप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता, कुश-चीवर धारण करने से कोई तपस्वी नहीं होता।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 341 View Detail
Mool Sutra: समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावसो।।६।।

Translated Sutra: (प्रत्युत) वह समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप से तपस्वी होता है।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 346 View Detail
Mool Sutra: निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु अ।।११।।

Translated Sutra: साधु ममत्वरहित, निरहंकारी, निस्संग, गौरव का त्यागी तथा त्रस और स्थावर जीवों के प्रति समदृष्टि रखता है।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 347 View Detail
Mool Sutra: लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो निन्दापसंसासु, तहा माणावमाणओ।।१२।।

Translated Sutra: वह लाभ और अलाभ में, सुख और दुःख में, जीवन और मरण में, निंदा और प्रशंसा में तथा मान और अपमान में समभाव रखता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 348 View Detail
Mool Sutra: गारवेसु कसाएसु, दंडसल्लभएसु य। नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबन्धणो।।१३।।

Translated Sutra: वह गौरव, कषाय, दण्ड, शल्य, भय, हास्य और शोक से निवृत्त अनिदानी और बन्धन से रहित होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 349 View Detail
Mool Sutra: अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ। वासीचन्दणकप्पो य, असणे अणसणे तहा।।१४।।

Translated Sutra: वह इस लोक व परलोक में अनासक्त, बसूले से छीलने या चन्दन का लेप करने पर तथा आहार के मिलने या न मिलने पर भी सम रहता है-- हर्ष-विषाद नहीं करता।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 350 View Detail
Mool Sutra: अप्पसत्थेहिं दारेहिं, सव्वओ पिहियासवो। अज्झप्पज्झाणजोगेहिं, पसत्थदमसासणे।।१५।।

Translated Sutra: ऐसा श्रमण अप्रशस्त द्वारों (हेतुओं) से आनेवाले आस्रवों का सर्वतोभावेन निरोध कर अध्यात्म-सम्बन्धी ध्यान-योगों से प्रशस्त संयम-शासन में लीन हो जाता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 354 View Detail
Mool Sutra: बुद्धे परिनिव्वुडे चरे, गाम गए नगरे व संजए। संतिमग्गं च बूहए, समयं गोयम ! मा पमायए।।१९।।

Translated Sutra: प्रबुद्ध और उपशान्त होकर संयतभाव से ग्राम और नगर में विचरण कर। शान्ति का मार्ग बढ़ा। हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 380 View Detail
Mool Sutra: सन्निहिं च न कुव्वेज्जा, लेवमायाए संजए। पक्खी पत्तं समादाय, निरवेक्खो परिव्वए।।१७।।

Translated Sutra: साधु लेशमात्र भी आहार का संग्रह न करे। पक्षी की तरह संग्रह से निरपेक्ष रहते हुए केवल संयमोपकरण के साथ विचरण करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 384 View Detail
Mool Sutra: इरियाभासेसणाऽऽदाणे, उच्चारे समिई इय। मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अट्ठमा।।१।।

Translated Sutra: ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और उच्चार (मलमूत्रादि विसर्जन)--ये पाँच समितियाँ हैं। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति--ये तीन गुप्तियाँ हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 386 View Detail
Mool Sutra: एयाओ पंच समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सव्वसो।।३।।

Translated Sutra: ये पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं। और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ विषयों से निवृत्ति के लिए हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 397 View Detail
Mool Sutra: इन्दियत्थे विवज्जित्ता, सज्झायं चेव पंचहा। तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे, उवउत्ते इरियं रिए।।१४।।

Translated Sutra: इन्द्रियों के विषय तथा पाँच प्रकार के स्वाध्याय का कार्य छोड़कर केवल गमन-क्रिया में ही तन्मय हो, उसीको प्रमुख महत्त्व देकर उपयोगपूर्वक (जागृतिपूर्वक) चलना चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 399 View Detail
Mool Sutra: न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं, न निरट्ठं न मम्मयं। अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सन्तरेण वा।।१६।।

Translated Sutra: (भाषा-समिति-परायण साधु) किसीके पूछने पर भी अपने लिए, अन्य के लिए अथवा दोनों के लिए न तो सावद्य अर्थात् पाप-वचन बोले, न निरर्थक वचन बोले और न मर्मभेदी वचन का प्रयोग करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 410 View Detail
Mool Sutra: चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमज्जेज्ज जयं जई। आइए निक्खिवेज्जा वा, दुहओवि समिए सया।।२७।।

Translated Sutra: यतना (विवेक-) पूर्वक प्रवृत्ति करनेवाला मुनि अपने दोनों प्रकार के उपकरणों को आँखों से देखकर तथा प्रमार्जन करके उठाये और रखे। यही आदान-निक्षेपण समिति है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 412 View Detail
Mool Sutra: संरंभसमारंभे, आरंभे य तहेव य। मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई।।२९।।

Translated Sutra: यतनासम्पन्न (जागरूक) यति संरम्भ, समारम्भ व आरम्भ में प्रवर्त्तमान मन को रोके--उसका गोपन करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 413 View Detail
Mool Sutra: संरंभसमारंभे, आरंभे य तहेव य। वयं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई।।३०।।

Translated Sutra: यतनासम्पन्न यति संरम्भ, समारम्भ व आरम्भ में प्रवर्त्तमान वचन को रोके--उसका गोपन करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 414 View Detail
Mool Sutra: संरंभसमारंभे, आरंभम्मि तहेव य। कायं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई।।३१।।

Translated Sutra: यतनासम्पन्न यति संरम्भ, समारम्भ व आरम्भ में प्रवर्त्तमान काया को रोके--उसका गोपन करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 416 View Detail
Mool Sutra: एया पवयणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिए।।३३।।

Translated Sutra: जो मुनि इन आठ प्रवचन-माताओं का सम्यक् आचरण करता है, वह ज्ञानी शीघ्र संसार से मुक्त हो जाता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 440 View Detail
Mool Sutra: सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरब्भंतरो तहा। बाहिरो छव्विहो वुत्तो, एवमब्भंतरो तवो।।२।।

Translated Sutra: तप दो प्रकार का है--बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप छह प्रकार का है। इसी तरह आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा गया है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 441 View Detail
Mool Sutra: अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य, बज्झो तवो होइ।।३।।

Translated Sutra: अनशन, अवमोदर्य (ऊनोदरिका), भिक्षाचर्या, रस-परित्याग, कायक्लेश और संलीनता-इस तरह बाह्यतप छह प्रकार का है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 448 View Detail
Mool Sutra: जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे। जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण ऊ भवे।।१०।।

Translated Sutra: जो जितना भोजन कर सकता है, उसमें से कम से कम एक सिक्थ अर्थात् एक कण अथवा एक ग्रास आदि के रूप में कम भोजन करना द्रव्यरूपेण ऊनोदरी तप है।
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द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 450 View Detail
Mool Sutra: खीरदहिसप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं। परिवज्जणं रसाणं तु, भणियं रसविवज्जणं।।१२।।

Translated Sutra: दूध, दही, घी आदि पौष्टिक भोजन-पान आदि के रसों के त्याग को रस-परित्याग नामक तप कहा गया है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 451 View Detail
Mool Sutra: एगंतमणावाए, इत्थीपसुविवज्जिए। सयणासणसेवणया, विवित्तसयणासणं।।१३।।

Translated Sutra: एकान्त, अनापात (जहाँ कोई आता-जाता न हो) तथा स्त्री-पुरुषादि से रहित स्थान में शयन एवं आसन ग्रहण करना, विविक्त-शयनासन (प्रतिसंलीनता) नामक तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 452 View Detail
Mool Sutra: ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा। उग्गा जहा धरिज्जंति, कायकिलेसं तमाहियं।।१४।।

Translated Sutra: गिरा, कन्दरा आदि भयंकर स्थानों में, आत्मा के लिए सुखावह, वीरासन आदि उग्र आसनों का अभ्यास करना या धारण करना कायक्लेश नामक तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 456 View Detail
Mool Sutra: पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झावो। झाणं च विउस्सग्गो, एसो अब्भिंतरो तवो।।१८।।

Translated Sutra: प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग) -- इस तरह छह प्रकार का आभ्यन्तर तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 466 View Detail
Mool Sutra: अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं, तहेवासणदायणं। गुरुभत्तिभावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ।।२८।।

Translated Sutra: गुरु तथा वृद्धजनों के समक्ष आने पर खड़े होना, हाथ जोड़ना, उन्हें उच्च आसन देना, गुरुजनों की भावपूर्वक भक्ति तथा सेवा करना विनय तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 480 View Detail
Mool Sutra: सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे। कायस्स विउस्सग्गो, छट्ठो सो परिकित्तिओ।।४२।।

Translated Sutra: भिक्षु का शयन, आसन और खड़े होने में व्यर्थ का कायिक व्यापार न करना, काष्ठवत् रहना, छठा कायोत्सर्ग तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२९. ध्यानसूत्र Hindi 492 View Detail
Mool Sutra: जे इंदियाणं विसया मणुण्णा, न तेसु भावं निसिरे कयाइ। न याऽमणुण्णेसु मणं पि कुज्जा, समाहिकामे समणे तवस्सी।।९।।

Translated Sutra: समाधि की भावनावाला तपस्वी श्रमण इन्द्रियों के अनुकूल विषयों (शब्द-रूपादि) में कभी रागभाव न करे और प्रतिकूल विषयों में मन से भी द्वेषभाव न करे। -- यह अर्थ समुचित नहीं लगता ।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 525 View Detail
Mool Sutra: जरामरणवेगेणं, वुज्झमाणाण पाणिणं। धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं।।२१।।

Translated Sutra: जरा और मरण के तेज प्रवाह में बहते-डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है तथा उत्तम शरण है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 526 View Detail
Mool Sutra: माणुस्सं विग्गहं लद्धुं, सुई धम्मस्स दुल्लहा। जं सोच्चा पविज्जंति तव खंतिमहिंसयं।।२२।।

Translated Sutra: (प्रथम तो चतुर्गतियों में भ्रमण करनेवाले जीव को मनुष्य-शरीर ही मिलना दुर्लभ है, फिर) मनुष्य-शरीर प्राप्त होने पर भी ऐसे धर्म का श्रवण तो और भी कठिन है, जिसे सुनकर तप, क्षमा और अहिंसा को प्राप्त किया जाय।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 527 View Detail
Mool Sutra: आहच्च सवणं लद्धुं, सद्धा परमदुल्लहा। सोच्चा नेआउयं मग्गं, बहवे परिभस्सई।।२३।।

Translated Sutra: कदाचित् धर्म का श्रवण हो भी जाय, तो उस पर श्रद्धा होना महा कठिन है। क्योंकि बहुत-से लोग न्यायसंगत मोक्षमार्ग का श्रवण करके भी उससे विचलित हो जाते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 528 View Detail
Mool Sutra: सुइं च लद्धं सद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं। बहवे रोयमाणा वि, नो एणं पडिवज्जए।।२४।।

Translated Sutra: धर्म-श्रवण तथा (उसके प्रति) श्रद्धा हो जाने पर भी संयम में पुरुषार्थ होना अत्यन्त दुर्लभ है। बहुत-से लोग संयम में अभिरुचि रखते हुए भी उसे सम्यक्‌रूपेण स्वीकार नहीं कर पाते।
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