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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 107 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म बताया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् (प्रथम ‘‘निदान’’ समान जान लेना।) कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी धर्म शिक्षा के लिए तत्पर होकर विचरण करते हो, क्षुधादि परिषह सहते हो, फिर भी उसे कामवासना का प्रबल उदय हो जाए, तब उसके शमन के लिए तप – संयम की उग्र साधना से प्रयत्न | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 108 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेजा– मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ णो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। (शेष सर्व कथन प्रथम ‘निदान’ के समान जानना।) देवलोक में जहाँ अन्य देव – देवी के साथ कामभोग सेवन नहीं करते, किन्तु अपनी देवी के साथ या विकुर्वित देव या देवी के साथ कामभोग सेवन करते हैं। यदि मेरे सुचरित तप आदि का फल हो तो (इत्यादि प्रथम निदानवत्) ऐसा व्यक्ति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 109 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत् जो स्वयं विकुर्वित देवलोक में कामभोग का सेवन करते हैं। (यहाँ तक सब कथन पूर्व सूत्र – १०८ के अनुसार जानना) हे आयुष्मान् श्रमणों ! कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी ऐसा निदान करके बिना आलोचना – प्रतिक्रमण किए यदि काल करे यावत् देवलोक में उत्पन्न होकर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 110 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है (शेष कथन प्रथम निदान समान जानना) मानुषिक विषयभोग अध्रुव यावत् त्याज्य हैं। दिव्यकाम भोग भी अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत एवं अस्थिर हैं। जन्म – मरण बढ़ानेवाले हैं। पहले या पीछे अवश्य त्याज्य हैं। यदि मेरे तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं विशुद्ध जाति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 111 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत् (पहले निदान के समान सब कथन करना) मानुषिक, दिव्य कामभोग, भव परंपरा बढ़ानेवाले हैं। यदि मेरे सुचरित तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल विशेष हो तो मैं भी भविष्य में अन्त, प्रान्त, तुच्छ, दरिद्र, कृपण या भिक्षुकुल में पुरुष बनुं, जिस से प्रव्रजित होने के लिए | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-१ असमाधि स्थान |
Gujarati | 2 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता l
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा–
१. दवदवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी यावि भवति। ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति। ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिनियपरिभासी। ६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।
८. संजलणे। ९. कोहणे। १०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ।
११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओधारित्ता।
१२. नवाइं अधिकरणाइं अणुप्पन्नाइं उप्पाइत्ता भवइ।
१३. पोराणाइं अधिकरणाइं खामित-विओस-विताइं उदीरित्ता भवइ।
१४. अकाले सज्झायकारए Translated Sutra: આ જિન પ્રવચનમાં. નિશ્ચયથી સ્થવિર ભગવંતોએ વીસ અસમાધિસ્થાન કહેલા છે. એ સ્થાનો કયા છે? ૧. અતિ શીઘ્ર ચાલવાવાળા હોવું. ૨. અપ્રમાર્જિતાચારી હોવું – રજોહરણ આદિથી પ્રમાર્જના કર્યા સિવાયના સ્થાને ચાલવું ઇત્યાદિ. ૩. દુષ્પ્રમાર્જિતાચારી હોવું – ઉપયોગ રહિતપણે કે આમતેમ જોતા જોતા પ્રમાર્જના કરવી. ૪. વધારાના શય્યા – આસન | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 12 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पओगसंपदा? पओगसंपदा चउव्विधा पन्नत्ता, तं जहा– आतं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, परिसं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, खेत्तं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, वत्थुं विदाय वादं पउंजित्ता भवति। से तं पओगसंपदा। Translated Sutra: તે પ્રયોગ સંપત્તિ કઈ છે ? પ્રયોગ સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે. તે આ પ્રમાણે – ૧. પોતાની શક્તિ જાણીને વાદ – વિવાદ કરવો, ૨. સભાના ભાવો જાણીને વાદ કરવો, ૩. ક્ષેત્રની જાણકારી મેળવીને વાદ કરવો, ૪. વસ્તુ વિષયને જાણીને પુરુષવિશેષ સાથે વાદ – વિવાદ કરવો. તે પ્રયોગ સંપત્તિ. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Gujarati | 18 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ओयं चित्तं समादाय, ज्झाणं समनुपस्सति ।
धम्मे ठिओ अविमनो, निव्वाणमभिगच्छइ ॥ Translated Sutra: રાગદ્વેષ રહિત નિર્મળ ચિત્તને ધારણ કરવાથી એકાગ્રતા રૂપ ધ્યાન ઉત્પન્ન થાય છે. શંકા રહિત ધર્મમાં સ્થિત આત્મા નિર્વાણને પ્રાપ્ત કરે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Gujarati | 34 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं अभिसमागम्म, चित्तमादाय आउसो!
सेणिसोधिमुवागम्म, आतसोधिमुवेइइ ॥ Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્! આ રીતે સમાધિને જાણીને રાગદ્વેષ રહિત ચિત્ત ધારણ કરી શુદ્ધ શ્રેણીને પામી આત્મા શુદ્ધિ પ્રાપ્ત કરે છે. અર્થાત્ ક્ષપક શ્રેણી માંડી મોક્ષે જાય છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Gujarati | 35 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ।
कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: જે આત્મા શ્રમણપણાના પાલન માટે અસમર્થ હોય તેવા આત્મા શ્રમણપણાનું લક્ષ્ય રાખી તેના ઉપાસક બને છે. તેને શ્રમણોપાસક કહે છે. ટૂંકમાં તેઓ ઉપાસક તરીકે ઓળખાય છે. આવા ઉપાસકને આત્મા સાધના માટે ૧૧ પ્રતિમા અર્થાત્ વિશિષ્ટ પ્રકારની ‘પ્રતિજ્ઞાનું આરાધન’ જણાવેલ છે, તેનું અહીં વર્ણન છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Gujarati | 49 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति।
मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स Translated Sutra: હવે એક માસિકી ભિક્ષુપ્રતિમા કહે છે – માસિકી ભિક્ષુપ્રતિમાને ધારણ કરતા સાધુ કાયાને વોસીરાવી દીધેલા અને શરીરના મમત્વભાવના ત્યાગી હોય છે. દેવ, મનુષ્ય કે તિર્યંચ સંબંધી જે કાંઈ ઉપસર્ગ આવે છે. તેને તે સમ્યક્ પ્રકારે સહન કરે છે. ઉપસર્ગ કરનારને ક્ષમા કરે છે, અદીન ભાવે સહન કરે છે, શારીરિક ક્ષમાપૂર્વક તેનો સામનો | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 95 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे अन्नया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरसा कंठे मालकडे आवद्धमणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-पालंब-पलंबमाण-कडि-सुत्तय-सुकयसोभे पिणिद्धगेवेज्जे अंगुलेज्जगल-लियंगय-ललियकयाभरणे जाव कप्परुक्खए चेव अलंकित-विभूसिते नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! जाइं इमाइं रायगिहस्स Translated Sutra: ત્યારે તે શ્રેણિક રાજા ભિંભિસારે એક દિવસ સ્નાન કર્યું. પોતાના દેવ સમક્ષ નૈવૈદ્ય પૂજા – બલિકર્મ કર્યું. વિઘ્નશમન માટે પોતાના કપાળ ઉપર તિલક કર્યું. દુઃસ્વપ્નના દોષના નિવારણ માટે પ્રાયશ્ચિત્ત અર્થાત્ દહીં, ચોખા, દુર્વા આદિ ધારણ કર્યા કૌતુક – મંગલ – પ્રાયશ્ચિત્ત કર્યા.. ડોકમાં માળા પહેરી, મણિરત્ન જડિત સોનાના | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 96 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव पज्जुवासेति।
तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता नामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्कमित्ता एवं वदासि–
जस्स णं देवाणुप्पिया Translated Sutra: તે કાળે અને તે સમયમાં પંચયામ ધર્મપ્રવર્તક તીર્થંકર ભગવંત મહાવીર ભગવાન યાવત્ ગ્રામાનુગ્રામ વિચરતા યાવત્ આત્મસાધના કરતા ગુણશીલ ચૈત્યમાં પધાર્યા. તે સમયે રાજગૃહ નગરના ત્રણ રસ્તા, ચાર રસ્તા અને ચોકમાં થઈને યાવત્ પર્ષદા નગરની બહાર નીકળી યાવત્ પ્રભુને પર્યુપાસના કરવા લાગી. તે સમયે શ્રેણિક રાજાના સેવક | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 97 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं से सेणिए राया तेसिं पुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जहा कोणिओ जाव वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता ते पुरिसे सक्कारेति सम्मानेति विपुलं जीवियारिहं पीतिदानं दलयति, दलयित्ता पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता नगरगुत्तियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! रायगिहं नगरं सब्भिंतर-बाहिरियं आसित्तसम्मज्जितोवलित्तं जाव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणति। Translated Sutra: તે સમયે શ્રેણિક રાજા તે પુરુષો પાસે આ સંવાદ સાંભળી, અવધારી, હૃદયથી હર્ષિત અને સંતુષ્ટ થયા. – યાવત્ – તે સિંહાસન થકી ઊઠ્યા, ઊઠીને પછી જેમ ઉવવાઈ સૂત્રમાં કોણિક અધિકાર કહેલ છે, તે પ્રમાણે. વંદન, નમસ્કાર કર્યા. પછી તે સેવક પુરુષોના સત્કાર અને સન્માન કર્યા. પ્રીતિપૂર્વક આજીવિકા યોગ્ય વિપુલદાન આપ્યું. ત્યારપછી તે | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 103 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति।
न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे।
जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ઘણા નિર્ગ્રન્થ – નિર્ગ્રન્થીને આમંત્રિત કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – પ્રશ્ન – હે આર્યો ! શ્રેણિક રાજા અને ચેલ્લણા દેવીને જોઈને આવા પ્રકારનો અધ્યવસાય યાવત્ વિચાર ઉત્પન્ન થયો કે, અહો ! શ્રેણિક રાજા મહર્દ્ધિક છે યાવત્ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? અહો ! ચેલ્લણા દેવી મહર્દ્ધિક છે યાવત્ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? હે આર્યો | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 104 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाया यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणो पासेज्जा–से जा इमा इत्थिया भवति– एगा एगजाया एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલું છે. જેમ કે આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્ – બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. જો કોઈ શ્રમણી ધર્મની શિક્ષા માટે ઉપસ્થિત થઈને ભૂખ તરસ આદિ પરિગ્રહ સહન કરતા પણ – કદાચિત કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય થઈ જાય તો તે તપ – સંયમની ઉગ્ર સાધના થકી કામવાસનાના શમન માટે યત્ન કરે છે. તે | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 105 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. જો કોઈ નિર્ગ્રન્થ કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે તત્પર થાય, તેને ભૂખ – તરસ ઇત્યાદિ પરીષહો સહન કરતા કદાચિત કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય થઈ જાય. ત્યારે તે તપ – સંયમની ઉગ્ર સાધના દ્વારા તે કામવાસનાને શમન | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 106 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया, Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે યાવત્ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. એવા તે કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે કોઈ સાધ્વી તત્પર થાય અને ક્ષુધા, તૃષા આદિ પરીષહ સહન કરે. પરંતુ તેમ સહન કરતા કદાચિત કોઈ કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય તેણીને થઈ પણ જાય તો – તે સંયમની ઉગ્ર સાધના થકી | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 107 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે. યાવત્ સર્વ દુઃખોનો અંત કરે છે, પૂર્વવત જાણવું. કોઈ સાધુ કે સાધ્વી કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આરાધના માટે ઉપસ્થિત થઈને વિચરણ કરતા – યાવત્ – સંયમમાં પરાક્રમ કરતા માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે આ પ્રમાણે વિચારે કે – ૧. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 108 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेजा– मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ णो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે. યાવત્ સંયમની સાધનામાં પરાક્રમ કરતા એવા સાધુ માનવ સંબંધી શબ્દાદિ કામ – ભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને એમ વિચારે કે – માનવસંબંધી કામભોગ અધ્રુવ યાવત્ ત્યાજ્ય છે. ઉપર દેવલોકમાં જે દેવ છે, તે ૧. ત્યાં અન્ય દેવીઓ સાથે વિષયસેવન કરતા નથી. ૨. પરંતુ પોતાની વિકુર્વિત દેવીઓ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 109 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રરૂપણ કરેલું છે યાવત્ સંયમની સાધનામાં પરાક્રમ કરતો એવો નિર્ગ્રન્થ માનવ સંબંધી કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે એમ વિચારે કે – માનવ સંબંધી કામભોગ અધ્રુવ અને ત્યાજ્ય છે. જે ઉપર દેવલોકમાં દેવ છે, તે ત્યાં – ૧. બીજા દેવોની દેવી સાથે વિષય સેવન કરતા નથી. ૨. સ્વયંની વિકુર્વિત | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 110 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता Translated Sutra: હે આયુષ્માન્ શ્રમણો! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે યાવત્ સંયમ સાધનામાં પરાક્રમ કરતો નિર્ગ્રન્થ દિવ્ય અને માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ એમ વિચારે કે – માનુષિક કામભોગ અધ્રુવ યાવત્ ત્યાજ્ય છે. દેવ સંબંધી કામભોગ પણ અધ્રુવ, અનિત્ય, શાશ્વત, ચલાચલ સ્વભાવવાળા, જન્મ – મરણ વધારનારા અને પહેલાં કે પછી અવશ્ય ત્યાજ્ય | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 111 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે યથાવત્ સંયમની સાધનામાં પ્રયત્ન કરતો સાધુ દિવ્ય માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે એમ વિચારે કે, માનુષિક કામભોગો અધ્રુવ યાવત્ ત્યાજ્ય છે. દિવ્ય કામભોગો પણ અધ્રુવ યાવત્ ભવ – પરંપરાને વધારનાર છે. તથા પહેલાં કે પછી અવશ્ય ત્યાજ્ય છે. જો સમ્યક્ પ્રકારથી | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 378 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अनुग्गए ।
आहारमइयं सव्वं मनसा वि न पत्थए ॥ Translated Sutra: सूर्य के अस्त हो जाने पर और सूर्य उदय न हो जाए तब तक सब प्रकार के आहारादि पदार्थों की मन से भी इच्छा न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 32 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती।
कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता? सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती।
इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं धम्मपन्नत्ती, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया।
पुढवी चित्तमंतमक्खाया अनेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।
आऊ Translated Sutra: हे आयुष्मन् ! मैंने सुना हैं, उन भगवान् ने कहा – इस निर्ग्रन्थ – प्रवचन में निश्चित ही षड्जीवनिकाय नामक अध्ययन प्रवेदित, सुआख्यात और सुप्रज्ञप्त है। (इस) धर्मप्रज्ञप्ति (जिसमें धर्म की प्ररूपणा है) अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है ? वह ’षड्जीवनिकाय’ है – पृथ्वीकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 56 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए ।
अण्णाणी किं काही? किं वा नाहिइ छेय पावगं? ॥ Translated Sutra: ‘पहले ज्ञान और फिर दया है’ – इस प्रकार से सभी संयमी (संयम में) स्थित होते हैं। अज्ञानी क्या करेगा ? वह श्रेय और पाप को क्या जानेगा ? | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 171 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अह कोइ न इच्छेज्जा तओ भुंजेज्ज एक्कओ ।
आलोए भायणे साहू जयं अपरिसाडयं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 187 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा ।
अप्पत्तियं सिया होज्जा लहुत्तं पवयणस्स वा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 242 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विडमुब्भेइमं लोणं तेल्लं सप्पिं च फाणियं ।
न ते सन्निहिमिच्छंति नायपुत्तवओरया ॥ Translated Sutra: जो ज्ञानपुत्र के वचनों में रत हैं, वे बिडलवण, सामुद्रिक लवण, तैल, घृत, द्रव गुड़ आदि पदार्थों का संग्रह करना नहीं चाहते। यह संग्रह लोभ का ही विघ्नकारी अनुस्पर्श है, ऐसा मैं मानता हूँ। जो साधु कदाचित् पदार्थ की सन्निधि की कामना करता है, वह गृहस्थ है, प्रव्रजित नहीं है। जो भी वस्त्र, पात्र, कम्बल और रजोहरण रखते हैं, | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 318 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जुवं गवे त्ति णं बूया धेणुं रसदय त्ति य ।
रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे त्ति य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 363 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ सुहुमाइं पेहाए जाइं जाणित्तु संजए ।
दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा ॥ Translated Sutra: संयमी साधु जिन्हें जान कर समस्त जीवों के प्रति दया का अधिकारी बनता है, उन आठ प्रकार के सूक्ष्मों को भलीभांति देखकर ही बैठे, खड़ा हो अथवा सोए। वे आठ सूक्ष्म कौन – कौन से हैं ? तब मेधावी और विचक्षण कहे कि वे ये हैं – स्नेहसूक्ष्म, पुष्पसूक्ष्म, प्राणिसूक्ष्म, उत्तिंग सूक्ष्म, पनकसूक्ष्म, बीजसूक्ष्म, हरितसूक्ष्म | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-१ | Hindi | 427 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] लज्जा दया संजम बंभचेरं कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं ।
जे मे गुरू सययमणुसासयंति ते हं गुरू सययं पूययामि ॥ Translated Sutra: कल्याणभागी (साधु) के लिए लज्जा, दया, संयम और ब्रह्मचर्य; ये विशोधि के स्थान हैं। अतः जो गुरु मुझे निरन्तर शिक्षा देते हैं, उनकी मैं सतत पूजा करूं। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 526 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुसोयपट्ठिए बहुजनम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं ।
पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ॥ Translated Sutra: (नदी के जलप्रवाह में गिर कर समुद्र की ओर बहते हुए काष्ठ के समान) बहुत – से लोग अनुस्रोत संसार – समुद्र की ओर प्रस्थान कर रहे हैं, किन्तु जो मुक्त होना चाहता है, जिसे प्रतिस्रोत होकर संयम के प्रवाह में गति करने का लक्ष्य प्राप्त है, उसे अपनी आत्मा को प्रतिस्रोत की ओर ले जाना चाहिए। अनुस्रोत संसार है और प्रतिस्रोत | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Gujarati | 32 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती।
कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता? सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती।
इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं धम्मपन्नत्ती, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया।
पुढवी चित्तमंतमक्खाया अनेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।
आऊ Translated Sutra: (૧). મેં તે આયુષ્યમાન ભગવંતે એ પ્રમાણે કહે છે તે સાંભળેલ છે કે – આ ‘છ જીવનિકાય’ નામક અધ્યયન નિશ્ચે કાશ્યપગોત્રીય શ્રમણ ભગવંત મહાવીર દ્વારા પ્રવેદિત, સુઆખ્યાત, સુપ્રજ્ઞપ્ત છે. આ ‘ધર્મ પ્રાપ્તિ’નું અધ્યયન મારા માટે શ્રેષ્ઠ છે. (૨). તે છ જીવનિકાય અધ્યયન કેવું છે ? જે કાશ્યપ ગોત્રીય શ્રમણ ભગવંત મહાવીર દ્વારા પ્રવેદિત, | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Gujarati | 56 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए ।
अण्णाणी किं काही? किं वा नाहिइ छेय पावगं? ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૬. પહેલું જ્ઞાન પછી દયા એ પ્રમાણે બધા સંયત સ્થિત રહે. અજ્ઞાની શું કરશે? તે શ્રેય કે પાપને શું જાણશે? સૂત્ર– ૫૭. સાંભળીને જ કલ્યાણને જાણશે, સાંભળીને જ પાપને જાણશે, બંનેને સાંભળીને, જે શ્રેય છે, તેનું આચરણ કરે. સૂત્ર– ૫૮. જે જીવને જાણતો નથી, અજીવને જાણતો નથી. જીવાજીવને ન જાણતો. તે સંયમને કઈ રીતે જાણશે ? સૂત્ર– | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 171 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अह कोइ न इच्छेज्जा तओ भुंजेज्ज एक्कओ ।
आलोए भायणे साहू जयं अपरिसाडयं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Gujarati | 187 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा ।
अप्पत्तियं सिया होज्जा लहुत्तं पवयणस्स वा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૯ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Gujarati | 318 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जुवं गवे त्ति णं बूया धेणुं रसदय त्ति य ।
रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे त्ति य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૧૪ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Gujarati | 363 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ सुहुमाइं पेहाए जाइं जाणित्तु संजए ।
दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬૩. સંયમી સાધુ, જેને જાણીને સર્વ જીવો પ્રત્યે દયાનો અધિકાર બને છે, તે આઠ સૂક્ષ્મોને સારી રીતે જોઈને જ બેસે, સૂવે કે ઊભો રહે. સૂત્ર– ૩૬૪. તે આઠ સૂક્ષ્મો કયા છે? ત્યારે મેધાવી અને વિચક્ષણ સાધુ આ પ્રમાણે કહે – સૂત્ર– ૩૬૫. સ્નેહસૂક્ષ્મ, પુષ્પસૂક્ષ્મ, પ્રાણીસૂક્ષ્મ, ઉત્તિંગસૂક્ષ્મ, પનકસૂક્ષ્મ, બીજસૂક્ષ્મ, | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Gujarati | 367 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धुवं च पडिलेहेज्जा जोगसा पायकंबलं ।
सेज्जमुच्चारभूमिं च संथारं अदुवासणं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬૭, ૩૬૮. સંયત સાધુ – સાધ્વી સદૈવ મનોયોગપૂર્વક પાત્ર, કંબલ, શય્યા, ઉચ્ચારભૂમિ, સંસ્તારક કે આસનને પડિલેહે. સંયમી ઉચ્ચાર, પ્રસ્રવણ, કફ, નાકના મેલ, પરસેવો આદિને પ્રાસુક ભૂમિનું પ્રતિલેખન કરીને જયણાપૂર્વક પરઠવે. સૂત્ર– ૩૬૯. ભોજન કે પાણીને માટે ગૃહસ્થના ઘેર પ્રવેશતો સાધુ જયણાથી ઊભો રહે, પરિમિત બોલે અને રૂપમાં | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-१ | Gujarati | 425 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जहाहियग्गी जलण नमंसे नाणाहुईमंतपयाभि सित्तं ।
एवायरियं उवचिट्ठएज्जा अनंतनाणोवगओ वि संतो ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૨૫. જે પ્રમાણે આહિતાગ્નિ બ્રાહ્મણ વિવિધ આહૂતિ અને મંત્રપદોથી અભિષિક્ત કરેલ અગ્નિને નમસ્કાર કરે છે, તે પ્રકારે શિષ્ય અનંતજ્ઞાન યુક્ત થઈ જાય તો પણ આચાર્યશ્રી વિનયથી ભક્તિ કરે. સૂત્ર– ૪૨૬. જેમની પાસે ધર્મપદો શીખે, હે શિષ્ય! તેના પ્રત્યે વિનય કરો. મસ્તકે અંજલિ કરી, કાયા – વાણી – મનથી સદૈવ સત્કાર કરો. સૂત્ર– | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-१ | Gujarati | 427 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] लज्जा दया संजम बंभचेरं कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं ।
जे मे गुरू सययमणुसासयंति ते हं गुरू सययं पूययामि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૨૫ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Gujarati | 526 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुसोयपट्ठिए बहुजनम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं ।
पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨૫ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 123 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अडयालसयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साइं ।
दो य सय पुक्खरद्धे तारागणकोडिकोडीणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११८ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 130 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छावट्ठिं पिडयाइं चंदाऽऽइच्चाण मनुयलोगम्मि ।
दो चंदा दो सूरा य होंति एक्केक्कए पिडए ॥ Translated Sutra: मानवलोक में चन्द्र और सूर्य की ६६ पीटक है और एक पीटक में दो चन्द्र और सूर्य हैं। नक्षत्र आदि की ६६ पीटक और एक पीटक में ५६ नक्षत्र हैं। महाग्रह ११६ है। इसी तरह मानवलोक में चन्द्र – सूर्य की ४ – ४ पंक्ति है। हर एक पंक्ति में ६६ चन्द्र, ६६ सूर्य है। नक्षत्र की ५६ पंक्ति है और हर एक पंक्ति में ६६ – ६६ नक्षत्र है। ग्रह | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 131 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छावट्ठिं पिडयाइं नक्खत्ताणं तु मनुयलोगम्मि ।
छप्पन्नं नक्खत्ता य होंति एक्केक्कए पिडए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३० | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 132 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छावट्ठी पिडयाइं महग्गहाणं तु मनुयलोगम्मि ।
छावत्तरं गहसयं च होइ एक्केक्कए पिडए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३० | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 85 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगट्ठिभाग काऊण जोयणं तस्स भागछप्पन्नं ।
चंदपरिमंडलं खलु, अडयालीसा य सूरस्स ॥ Translated Sutra: एक योजन के ६१ हिस्से किए जाए तो ६१ वे हिस्से में ५६ वे हिस्से जितना चन्द्र परिमंड़ल होता है। और सूर्य का आयाम विष्कम्भ ४५ हिस्से जितना होता है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 88 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अडयालीसं भागा विच्छिन्नं सूरमंडलं होइ ।
चउवीसं च कलाओ बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८७ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 210 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वट्टं थ वलयगं पिव, तंसा सिंघाडयं पिव विमाना ।
चउरंसविमाना पुण अक्खाडयसंठिया भणिया ॥ Translated Sutra: गोल विमान कंकणाकृति जैसे, त्रिपाई शींगोड़े जैसे और चतुष्कोण पासा के आकार के होते हैं। |