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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग) |
4. आकाश द्रव्य | Hindi | 301 | View Detail | ||
Mool Sutra: चेतनरहितममूर्त्तंमवगाहनलक्षणं च सर्वगतम्।
लोकालोकद्विभेदं, तन्नभोद्रव्यं जिनोद्दिष्टम् ।। Translated Sutra: आकाश द्रव्य अचेतन है, अमूर्तीक है, सर्वगत अर्थात् विभु है। सर्व द्रव्यों को अवगाह या अवकाश देना इसका लक्षण है। वह दो भागों में विभक्त है - लोकाकाश और अलोकाकाश। | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
7. निर्जरा तत्त्व (कर्म-संहार) | Hindi | 332 | View Detail | ||
Mool Sutra: तपसा तु निर्जरा इह, निर्जरणं क्षपणं नाश एकार्थाः।
कर्माभावापादानमिह, निर्जरा जिना ब्रुवते ।। Translated Sutra: तप के प्रभाव से कर्मों की निर्जरा होती है। निर्जरण, क्षपण, नाश, कर्मों के अभाव की प्राप्ति ये सब एकार्थवाची हैं। | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
7. निर्जरा तत्त्व (कर्म-संहार) | Hindi | 333 | View Detail | ||
Mool Sutra: तपसा चैव न मोक्षः, संवरहीनस्य भवति जिनवचने।
न हि स्रोतसि प्रविशन्ति, कृस्नं परिशुष्यति तडागम् ।। Translated Sutra: जिस प्रकार तालाब में जल का प्रवेश होता रहने पर, जल निकास का द्वार खोल देने से भी वह सूखता नहीं है, उसी प्रकार संवरहीन अज्ञानी को केवल तप मात्र से मोक्ष नहीं होता। | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
14. सृष्टि-व्यवस्था |
3. कर्म-कारणवाद | Hindi | 358 | View Detail | ||
Mool Sutra: जायते जीवस्येवं, भावः संसारचक्रवाले।
इति जिनवरैर्भणितोऽनादिनिधनः सनिधनो वा ।। Translated Sutra: कृपया देखें ३५६; संदर्भ ३५६-३५८ | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
18. आम्नाय अधिकार |
3. दिगम्बर-सूत्र | Hindi | 416 | View Detail | ||
Mool Sutra: नापि सिध्यति वस्त्रधरो, जिनशासने यद्यपि भवति तीर्थंकरः।
नग्नो विमोक्षमार्गः, शेषा उन्मार्गकाः सर्वे ।। Translated Sutra: भले ही तीर्थंकर क्यों न हो, वस्त्रधारी मुक्त नहीं हो सकता। एकमात्र नग्न या अचेल लिंग ही मोक्षमार्ग है, अन्य सर्व लिंग उन्मार्ग हैं। | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
18. आम्नाय अधिकार |
4. श्वेताम्बर सूत्र | Hindi | 422 | View Detail | ||
Mool Sutra: स्त्रीपुरुषसिद्धाश्च, तथैव च नपुंसकाः।
स्वलिंगाः अन्यलिंगाश्च, गृहिलिंगास्तथैव च ।। Translated Sutra: (सभी लिंगों से मोक्ष प्राप्त हो सकता है, क्योंकि सिद्ध कई प्रकार के कहे गये हैं) यथा-स्त्रीलिंग से मुक्त होने वाले सिद्ध, पुरुषलिंग से मुक्त होने वाले सिद्ध, नपुंसक-लिंग से मुक्त होनेवाले सिद्ध, जिन-लिंग से मुक्त होनेवाले सिद्ध, आजीवक आदि अन्य लिंगों से मुक्त होने वाले सिद्ध, और गृहस्थलिंग से मुक्त होने वाले | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
18. आम्नाय अधिकार |
4. श्वेताम्बर सूत्र | Hindi | 424 | View Detail | ||
Mool Sutra: जिनकल्पाऽपि द्विविधाः, पाणिपात्राः परिग्रहधराश्च।
सप्रावरणा अप्रावरणा, एकैकास्ते भवेयुः द्विविधाः ।। Translated Sutra: जिनकल्पी साधु भी दो प्रकार के होते हैं और उनमें से भी प्रत्येक दो दो प्रकार के हैं। अर्थात् चार प्रकार के होते हैं - सवस्त्र परन्तु पाणिपात्राहारी, अवस्त्र पाणिपात्राहारी, सवस्त्र पात्रधारी और अवस्त्र पात्रधारी। | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
18. आम्नाय अधिकार |
4. श्वेताम्बर सूत्र | Hindi | 425 | View Detail | ||
Mool Sutra: य एतान् वर्जयेद्दोषान्, धर्मोपकरणादृते।
तस्य त्वग्रहणं युक्तं, यः स्याज्जिन इव प्रभुः ।। Translated Sutra: जो साधु आचार विषयक दोषों को जिनेन्द्र भगवान् की भाँति बिना उपकरणों के ही टालने को समर्थ हैं, उनके लिए इनका न ग्रहण करना ही युक्त है (परन्तु जो ऐसा करने में समर्थ नहीं हैं वे अपनी सामर्थ्य व शक्ति के अनुसार हीनाधिक वस्त्र पात्र आदि उपकरण ग्रहण करते हैं।) | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
18. आम्नाय अधिकार |
4. श्वेताम्बर सूत्र | Hindi | 428 | View Detail | ||
Mool Sutra: सर्वत्रोपधिना बुद्धाः, संरक्षणपरिग्रहे।
अप्यात्मनोऽपि देहे, नाचरन्ति ममत्वम् ।। Translated Sutra: समता-भोगी जिन वीतरागियों को अपनी देह के प्रति भी कोई ममत्व नहीं रह गया है, वे इन वस्त्र पात्र आदि के प्रति ममत्व रखते होंगे, यह आशंका कैसे की जा सकती है? | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 55 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं विनीयाए रायहानीए भरहे नामं राया चाउरंतचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ।
बिइओ गमो रायवण्णगस्स इमो–तत्थ असंखेज्जकालवासंतरेण उपज्जए जसंसो उत्तमे अभिजाए सत्त-वीरियपरक्कमगुणे पसत्थवण्ण सर सार संघयण बुद्धि धारण मेहा संठाण सील प्पगई पहाणगारवच्छायागइए अनेगवयणप्पहाणे तेय आउ बल वीरियजुत्ते अझुसिरघननिचिय-लोहसंकल नारायवइरउसहसंघयणदेहधारी झस-जुग भिंगार वद्धमाणग भद्दासण संख छत्त वीयणि पडाग चक्क नंगल मुसल रह सोत्थिय अंकुस चंदाइच्च अग्गि जूव सागर इंदज्झय पुहवि पउम कुंजर सीहासन दंड कुम्भ गिरिवर तुरगवर Translated Sutra: विनीता राजधानी में भरत चक्रवर्ती राजा उत्पन्न हुआ। वह महाहिमवान् पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह राजा भरत राज्य का शासन करता था। राजा के वर्णन का दूसरा गम इस प्रकार है – वहाँ असंख्यात वर्ष बाद भरत नामक चक्रवर्ती उत्पन्न हुआ। वह यशस्वी, उत्तम, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 229 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सक्के देविंदे देवराया हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं सव्वालंकारविभूसियं उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता अट्ठहिं अग्ग-महिसीहिं सपरिवाराहिं नट्टाणीएणं गंधव्वाणीएण य सद्धिं तं विमानं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे-अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुव्विल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
एवं चेव सामानियावि उत्तरेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति। अवसेसा देवा य देवीओ Translated Sutra: पालक देव द्वारा दिव्य यान की रचना को सुनकर शक्र मन में हर्षित होता है। जिनेन्द्र भगवान् के सम्मुख जाने योग्य, दिव्य, सर्वालंकारविभूषित, उत्तरवैक्रिय रूप की विकुर्वणा करता है। सपरिवार आठ अग्रमहिषियों, नाट्यानीक, गन्धर्वानीक के साथ उस यान – विमान की अनुप्रदक्षिणा करता हुआ पूर्वदिशावर्ती त्रिसोपनक से – | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 230 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे सुरिंदे उत्तरड्ढलोगाहिवई अट्ठावीसविमनावाससयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे, एवं जहा सक्के, इमं नाणत्तं–महाघोसा घंटा, लहुपरक्कमो पायत्ताणियाहिवई, पुप्फओ विमानकारी, दक्खिणा निज्जाणभूमी, उत्तरपुरत्थिमिल्लो रइकरगपव्वओ, मंदरे समोसरिओ जाव पज्जुवासइ।
एवं अवसिट्ठावि इंदा भाणियव्वा जाव अच्चुओ, इमं नाणत्तं– Translated Sutra: उस काल, उस समय हाथ में त्रिशूल लिये, वृषभ पर सवार, सुरेन्द्र, उत्तरार्धलोकाधिपति, अठ्ठाईस लाख विमानों का स्वामी, निर्मल वस्त्र धारण किये देवेन्द्र, देवराज ईशान मन्दर पर्वत पर आता है। शेष वर्णन सौधर्मेन्द्र शक्र के सदृश है। अन्तर इतना है – घण्टा का नाम महाघोषा है। पदातिसेनाधिपति का नाम लघुपराक्रम है, विमानकारी | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 231 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउरासीइ असीई, बावत्तरि सत्तरी य सट्ठी य ।
पन्ना चत्तालीसा, तीसा वीसा दस सहस्सा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २३० | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 232 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बत्तीसट्ठावीसा बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा ।
पन्ना चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २३० | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 233 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आणयपाणयकप्पे, चत्तारि सयारनच्चुए तिन्नि ॥
एए विमाणा णं। इमे जाणविमानकारी देवा, तं जहा– Translated Sutra: देखो सूत्र २३० | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 234 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पालय पुप्फय सोमनसे सिरिवच्छे य नंदियावत्ते ।
कामगमे पीइगमे, मनोरमे विमल सव्वओभद्दे ॥ Translated Sutra: पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्दावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोरम, विमल तथा सर्वतोभद्र ये यान – विमानों की विकुर्वणा करनेवाले देवों के अनुक्रम से नाम हैं। सौधर्मेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र, ब्रह्मलोकेन्द्र, महाशुक्रेन्द्र तथा प्राणतेन्द्र की सुघोषा घण्टा, हरिनिगमेषी पदाति – सेनाधिपति, उत्तरवर्ती निर्याण – | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 235 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मगाणं सणंकुमारगाणं बंभलोयगाणं महासुक्कगाणं पाणयगाणं इंदाणं सुघोसा घंटा, हरि-नेगमेसी पायत्तणीयाहिवई, उत्तरिल्ला निज्जाणभूमी, दाहिणपुरत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए। ईसान-गाणं माहिंद लंतग सहस्सार अच्चुयगाण य इंदाणं महाघोसा घंटा, लहुपरक्कमो पायत्ताणीयाहिवई, दक्खिणिल्ले निज्जाणमग्गे, उत्तरपुरत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए, परिसाओ णं जहा जीवाभिगमे, आयरक्खा सामानियचउग्गुणा सव्वेसिं, जानविमाना सव्वेसिं जोयणसयसहस्सविच्छिण्णा, उच्चत्तेणं सविमानप्पमाणा, महिंदज्झया सव्वेसिं जोयणसाहस्सिया, सक्कवज्जा मंदरे समोसरंति जाव पज्जुवासंति। Translated Sutra: देखो सूत्र २३४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 236 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहानीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए सामानियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए तावत्तीसेहिं, चउहिं लोगपालेहिं, पंचहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, चउहिं चउ-सट्ठीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहि य जहा सक्के, नवरं– इमं नाणत्तं–दुमो पायत्तणीयाहिवई, ओघस्सरा घंटा, विमानं पन्नासं जोयणसहस्साइं, महिंदज्झओ पंचजोयणसयाइं, विमानकारी आभि-ओगिओ देवो, अवसिट्ठं तं चेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिंदे असुरराया एवमेव नवरं–सट्ठी Translated Sutra: उस काल, उस समय चमरचंचा राजधानी में, सुधर्मासभा में, चमर नामक सिंहासन पर स्थित असुरेन्द्र, असुरराज चमर अपने ६४००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, सपरिवार पाँच अग्रमहिषियों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, ६४००० अंगरक्षक देवों तथा अन्य देवों से संपरिवृत होता हुआ आता है। उसके | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 237 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउसट्ठी सट्ठी खलु, छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं ।
सामाणिया उ एए, चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥ Translated Sutra: चमरेन्द्र के चौसठ एवं बलीन्द्र के साठ हजार सामानिक देव हैं। असुरेन्द्रों को छोड़कर धरणेन्द्र आदि इन्द्रों के छह – छह हजार सामानिक देव हैं। सामानिक देवों से चार चार गुने अंगरक्षक देव हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 2 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिघसपह्मगोरे उग्ग-तवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबह्मचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्न-कोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले Translated Sutra: उसी समय की बात है, भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी – शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार – जो गौतम गोत्र में उत्पन्न थे, जिनकी ऊंचाई सात हाथ थी, समचतुरस्र संस्थानसंस्थित, जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन, कसौटी पर अंकित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौरवर्ण थे, जो उग्र तपस्वी, दीप्त तपस्वी, तप्त – तपस्वी, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कुडे पन्नत्ते?
गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं दाहिणड्ढभरहकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, छ सक्कोसाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे देसूनाइं पंच जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरि साइरेगाइं तिन्नि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले देसूनाइं वीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे देसूनाइं पन्नरस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइं नव जोयणाइं परिक्खेवेणं, मूले विच्छिन्नेमज्झे संखित्ते Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्व लवणसमुद्र के पश्चिम में, दक्षिणार्ध भरतकूट के पूर्व में है। वह छह योजन एक कोस ऊंचा, मूल में छह योजन एक कौस चौड़ा, मध्य में कुछ पाँच योजन चौड़ा तथा ऊपर कुछ अधिक तीन योजन चौड़ा है। मूल में उसकी परिधि कुछ कम बाईस योजन, मध्य में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 36 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं भंते! मनुया तमाहारमाहारेत्ता कहिं वसहिं उवेंति? गोयमा! रुक्खगेहालया णं ते मनुया पन्नत्ता समणाउसो! ।
तेसि णं भंते! रुक्खाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! कूडागारसंठिया पेच्छा च्छत्त-ज्झय थूभ तोरण गोपुर वेइया चोप्पालग अट्टालग पासाय हम्मिय गवक्ख वालग्गपोइया वलभीघरसंठिया, अन्ने इत्थ बहवे वरभवनविसिट्ठसंठाण-संठिया दुमगणा सुहसीयलच्छाया पन्नत्ता समणाउसो! । Translated Sutra: भगवन् ! वे मनुष्य वैसा आहार का सेवन करते हुए कहाँ निवास करते हैं ? हे गौतम ! वे मनुष्य वृक्ष – रूप घरों में निवास करते हैं। उन वृक्षों का आकार – स्वरूप कैसा है ? गौतम ! वे वृक्ष कूट, प्रेक्षागृह, छत्र, स्तूप, तोरण, गोपूर, वेदिका, चोप्फाल, अट्टालिका, प्रासाद, हर्म्य, हवेलियाँ, गवाक्ष, वालाग्रपोतिका तथा वलभीगृह सदृश संस्थान | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 43 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिंसि, एत्थ णं उसहे नामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था।
तए णं उसभे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारावासमज्झावसइ, अज्झावसित्ता तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसइ, तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झा-वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चोसट्ठिं महिला गुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिन्नि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावस, अज्झावसत्ता...
...जेसे Translated Sutra: नाभि कुलकर के, उन की भार्या मरुदेवी की कोख से उस समय ऋषभ नामक अर्हत्, कौशलिक, प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर चतुर्दिग्व्याप्त अथवा चार गतियों का अन्त करने में सक्षम धर्म – साम्राज्य के प्रथम चक्रवर्ती उत्पन्न हुए। कौशलिक अर्हत् ऋषभ ने बीस लाख पूर्व कुमार – अवस्था में व्यतीत किए। तिरेसठ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।
जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए Translated Sutra: कौशलिक अर्हत् ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात् निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत् यावत् जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक् भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान् ऐसे उत्तम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 46 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता, तेवट्ठिं पुव्वसय-सहस्साइं रज्जवासमज्झा वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे Translated Sutra: कौशलिक भगवान् ऋषभ वज्रऋषभनाराचसंहनन युक्त, समचौरससंस्थानसंस्थित तथा ५०० धनुष दैहिक ऊंचाई युक्त थे। वे २० लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा ६३ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे। यों ८३ लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात् मुंडित होकर अगारवास से अनगार – धर्म में प्रव्रजित हुए। १००० वर्ष छद्मस्थ – पर्याय | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 61 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्द-सन्नि-नाएणं आपूरेंते चेव अंबरतलं विनीयाए रायहानीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहे पयाते यावि होत्था।
तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, Translated Sutra: अष्ट दिवसीय महोत्सव के संपन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न आयुधगृहशाला – से निकला। निकलकर आकाश में प्रतिपन्न हुआ। वह एक सहस्र यक्षों से संपरिवृत था। दिव्य वाद्यों की ध्वनि एवं निनाद से आकाश व्याप्त था। वह चक्ररत्न विनीता राजधानी के बीच से निकला। निकलकर गंगा महानदी के दक्षिणी किनारे से होता हुआ पूर्व दिशा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 81 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेनाबलस्स नेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निन्नाणय दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेनावई सुसेने भरहस्स रन्नो अग्गाणीयं आवाड-चिलाएहिं हयमहियपवरवीर घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरुहइ,
तए णं तं असीइमंगुलमूसियं नवनउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसिय सिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाकं चउरंगुलजण्णुकं Translated Sutra: सेनापति सुषेण ने राजा भरत के सैन्य के अग्रभाग के अनेक योद्धाओं को आपात किरातों द्वारा हत, मथित देखा। सैनिकों को भागते देखा। सेनापति सुषेण तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल एवं कुपित हुआ। वह मिसमिसाहट करता हुआ – कमलामेल नामक अश्वरत्न पर – आरूढ़ हुआ। वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊंचा था, निन्यानवे अंगुल मध्य परिधियुक्त | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 121 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो निज्जियसत्तू उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे नवनिहिवई समिद्धकोसे बत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सण्णा हेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति।
तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह निग्गए Translated Sutra: राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया – । शत्रुओं को जीता। उसके यहाँ समग्र रत्न उद्भूत हुए। नौ निधियाँ प्राप्त हुईं। खजाना समृद्ध था – । बत्तीस हजार राजाओं से अनुगत था। साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र को साध लिया। तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियों ! शीघ्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 130 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चुल्लहिमवंते णं भंते! वासहरपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारस कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धायतनकूडे चुल्लहिमवंतकूडे भरहकूडे इलादेवीकूडे गंगाकूडे सिरिकूडे रोहियंसकूडे सिंधुकूडे सूरादेवीकूडे हेमवयकूडे वेसमणकूडे।
कहि णं भंते! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंचजोयणसयाइं विक्खंभेणं, मज्झे तिन्नि य पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं, उप्पिं अड्ढाइज्जे जोयणसए विक्खंभेणं, मूले Translated Sutra: भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! ग्यारह, सिद्धायतन, चुल्लहिमवान्, भरत, इलादेवी, गंगादेवी, श्री, रोहितांशा, सिन्धुदेवी, सुरादेवी, हैमवत तथा वैश्रवणकूट। भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, चुल्ल हिमवानकूट के पूर्व में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 132 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! हेमवए वासे सद्दावई नामं वट्टवेयड्ढपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! रोहियाए महानईए पच्चत्थिमेणं, रोहियंसाए महानईए पुरत्थिमेणं हेमवयवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं सद्दावई नामं वट्टवेयड्ढपव्वए पन्नत्ते–एगं जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं उव्वेहेणं, सव्वत्थसमे पल्लगसंठाणसंठिए एगं जोयणसहस्सं आयाम विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं सव्वरयणामए अच्छे। से णं एगाए पउमवर-वेइयाए एगेण य वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वेइयावनसंडवण्णओ भाणियव्वो।
सद्दावइस्स णं वट्टवेयड्ढपव्वयस्स Translated Sutra: भगवन् ! हैमवतक्षेत्र में शब्दापाती नामक वृत्तवैताढ्यपर्वत कहाँ है ? गौतम ! रोहिता महानदी के पश्चिम में, रोहितांशा महानदी के पूर्व में, हैमवत क्षेत्र के बीचोंबीच है। वह १००० योजन ऊंचा है, २५० योजन भूमिगत है, सर्वत्र समतल है। उस की आकृति पलंग जैसी है। लम्बाई – चौड़ाई १००० योजन है। परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 143 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए जमगा नामं दुवे पव्वया पन्नत्ता? गोयमा! निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणि-ल्लाओ चरिमंताओ अट्ठजोयणसए चोत्तीसे चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए, सीयाए महानईए पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं उभओ कूले, एत्थ णं जमगा नामं दुवे पव्वया पन्नत्ता–
जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं उव्वेहेणं मूले एगं जोयणसहस्सं आयामविक्खंभेणं, मज्झे अद्धट्ठमाणि जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं, उवरिं पंच जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परि-क्खेवेणं, मज्झे दो जोयणसहस्साइं, तिन्नि य बावत्तरे जोयणसए Translated Sutra: भगवन् ! उत्तरकुरु में यमक पर्वत कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण दिशा के अन्तिम कोने से ८३४ – ४/७ योजन के अन्तराल पर शीतोदा नदी के दोनों – पूर्वी, पश्चिमी तट पर यमक संज्ञक दो पर्वत हैं। वे १००० योजन ऊंचे, २५० योजन जमीन में गहरे, मूल में १००० योजन, मध्य में ७५० योजन तथा ऊपर ५०० योजन लम्बे – चौड़े हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 151 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नामं पेढे पन्नत्ते? गोयमा! निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, मंदरस्स उत्तरेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, सीयाए महानईए पुरत्थि-मिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नामं पेढे पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं, पन्नरस एक्कासीयाइं जोयणसयाइं किंचिविसेसाहियाइं परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोयणाइं बाहल्लेणं, तयनंतरं च णं मायाए-मायाए पदेसपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे सव्वेसु णं चरिमपेरंतेसु दो-दो गाउयाइं बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामए अच्छे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेणं सव्वओ Translated Sutra: भगवन् ! उत्तरकुरु में जम्बूपीठ कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दर पर्वत के उत्तर में माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं शीता महानदी के पूर्वी तट पर है। वह ५०० योजन लम्बा – चौड़ा है। उसकी परिधि कुछ अधिक १५८१ योजन है। वह पीठ बीच में बारह योजन मोटा है। फिर क्रमशः मोटाई में कम होता | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 180 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सव्वे पंचसइया कूडा, एएसिं पुच्छा दिसिविदिसाए भाणियव्वा जहा गंधमायनस्स, विमल-कंचनकूडेसु, नवरिं– देवयाओ सुवच्छा वच्छमित्ता य, अवसिट्ठेसु कूडेसु सरिसनामया देवा, रायहानीओ दक्खिणेणं।
कहि णं भंते! महाविदेहे वासे देवकुरा नामं कुरा पन्नत्ता? गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पहवक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, सोमनस-वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवकुरा नामं कुरा पन्नत्ता–पाईणपडीणायया उदीणदाहिण-विच्छिण्णा एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसए दुन्नि य एगूनवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, जहा उत्तरकुराए वत्तव्वया Translated Sutra: ये सब कूट ५०० योजन ऊंचे हैं। इनका वर्णन गन्धमादन के कूटों के सदृश है। इतना अन्तर है – विमलकूट तथा कंचनकूट पर सुवत्सा एवं वत्समित्रा नामक देवियाँ रहती हैं। बाकी के कूटों पर, कूटों के जो – जो नाम हैं, उन – उन नामों के देव निवास करते हैं। मेरु के दक्षिण में उनकी राजधानियाँ हैं। भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में देवकुरु | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 194 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरकुराए दक्खिणेणं, देवकुराए उत्तरेणं, पुव्वविदेहस्स वासस्स पच्चत्थिमेणं, अवरविदेहस्स वासस्स पुरत्थिमेणं, जंबुद्दीवस्स दीवस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरे नामं पव्वए पन्नत्ते–
नवनउतिजोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयण-सहस्साइं नवइं च जोयणाइं दस य एगारसभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, धरणितले दस जोयण-सहस्साइं विक्खंभेणं, तयनंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणे-परिहायमाणे उवरितले एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, मूले एकत्तीसं जोयणसहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में मन्दर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरकुरु के दक्षिण में, देवकुरु के उत्तर में, पूर्व विदेह के पश्चिम में और पश्चिम विदेह के पूर्व में है। वह ९९००० योजन ऊंचा है, १००० जमीन में गहरा है। वह मूल में १००९० – १०/१९ योजन तथा भूमितल पर १०००० योजन चौड़ा है। उसके बाद वह चौड़ाई की मात्रा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 199 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरे पव्वए पंडगवने नामं वने पन्नत्ते? गोयमा! सोमनसवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ छत्तीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सिहरतले पंडगवने नामं वने पन्नत्ते– चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवालविक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ– तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेणं जाव किण्हे देवा आसयंति।
पंडगवनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मंदरचूलिया नामं चूलिया पन्नत्ता–चत्तालीसं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस Translated Sutra: भगवन् ! पण्डकवन कहाँ है ? गौतम ! सोमनसवन के बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग से ३६००० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत के शिखर पर है। चक्रवाल विष्कम्भ से वह ४९४ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार जैसा उसका आकार है। वह मन्दर पर्वत की चूलिका को चारों ओर से परिवेष्टित कर स्थित है। उसकी परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है। वह एक | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 212 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं एक्कमेक्के चक्कवट्टिविजए भगवंतो तित्थयरा समुप्पज्जंति, तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामा णियसाहस्सीहिं चउहिं य महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अनियाहिवईहिं सोलसएहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहि य बहूहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडाओ महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणीओ विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: जब एक एक – किसी भी चक्रवर्ती – विजय में तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं, उस काल – उस समय – अधोलोकवा – स्तव्या, महत्तरिका – आठ दिक्कुमारिकाएं, जो अपने कूटों, भवनों और प्रासादों में अपने ४००० सामानिक देवों, सपरिवार चार महत्तरिकाओं, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, १६००० आत्मरक्षक देवों तथा अन्य अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 213 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भोगंकरा भोगवई, सुभोगा भोगमालिनी ।
तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिंदिया ॥ Translated Sutra: वह आठ दिक्कुमारिका है – भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला और अनिन्दिता। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 214 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति।
तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलियाइं पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमनागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं जम्मनमहिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवओ जम्मनमहिमं करेमो त्तिकट्टु एवं वयंति, वइत्ता पत्तेयं-पत्तेयं आभिओगिए Translated Sutra: जब वे अधोलोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने आसनों को चलित होते देखती हैं, वे अपने अवधिज्ञान का प्रयोग करती हैं। तीर्थंकर को देखती हैं। कहती हैं – जम्बूद्वीप में तीर्थंकर उत्पन्न हुए हैं। अतीत, प्रत्युत्पन्न तथा अनागत – अधोलोकवास्तव्या हम आठ महत्तरिका दिशाकुमारियों का यह परंपरागत आचार है कि हम भगवान् तीर्थंकर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 215 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं एवं तं चेव पुव्ववण्णियं जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: उस काल, उस समय, ऊर्ध्वलोकवास्तव्या – आठ दिक्कुमारिकाओं के, जो अपने कूटों पर, अपने भवनों में, अपने उत्तम प्रासादों में अपने चार हजार सामानिक देवों, यावत् अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर देव – देवियों से संपरिवृत्त, नृत्य, गीत एवं तुमुल वाद्य – ध्वनि के बीच विपुल सुखोपभोग में अभिरत होती हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 216 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मेहंकरा मेहवई, सुमेहा मेहमालिनी ।
सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेना बलाहगा ॥ Translated Sutra: यह दिक्कुमारिकाएं है – मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, सुवत्सा, वत्समित्रा, वारिषेणा तथा बलाहका। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 217 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं उड्ढलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति, एवं तं चेव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं जाव अम्हे णं देवानुप्पिए! उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी-महत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मनमहिमं करिस्सामो, तुब्भाहिं ण भाइयव्वं तिकट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति, ...
... से जहानामए–कम्मगरदारए Translated Sutra: तब उन देवी के आसन चलित होते हैं, शेष पूर्ववत्। वे दिक्कुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं – देवानुप्रिये ! हम उर्ध्वलोकवासिनी दिक्कुमारिकाएं भगवान् का जन्म – महोत्सव मनायेंगी। अतः आप भयभीत मत होना। यों कहकर वे – ईशान कोण में चली जाती हैं। यावत् वे आकाश में बादलों की विकुर्वणा करती हैं, वे | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 218 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: उस काल, उस समय पूर्वदिग्वर्ती रुचककूट – निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने – अपने कूटों पर सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार है – नन्दोत्तरा, नन्दा, आनन्दा, नन्दिवर्धना, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती तथा अपराजिता। सूत्र – २१८, २१९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 219 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नंदुत्तरा य नंदा, आनंदा नंदिवद्धणा ।
विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१८ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 220 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेसं तं चेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य पुरत्थिमेणं आदंसहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ तहेव जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: अवशिष्ट वर्णन पूर्ववत् है। देवानुप्रिये ! पूर्वदिशावर्ती रुचककूट निवासिनी हम आठ दिशाकुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर का जन्म – महोत्सव मनायेंगी। अतः आप भयभीत मत होना।’ यों कहकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के शृंगार, शोभा, सज्जा आदि विलोकन में उपयोगी, प्रयोजनीय दर्पण हाथ में लिये वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 221 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समाहारा सुप्पइण्णा, सुप्पबुद्धा जसोहरा ।
लच्छिमई सेसवई, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २२० | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 222 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य दाहिणेणं भिंगार-हत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं पच्चत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: वे भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं – ‘आप भयभीत न हों।’ यों कहकर वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता के स्नपन में प्रयोजनीय सजल कलश हाथ में लिए दक्षिण में आगान, परिगान करने लगती हैं। उस काल, उस समय पश्चिम रूचक कूट – निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – इलादेवी, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मावती, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 223 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इलादेवी सुरादेवी, पुहवी पउमावई ।
एगनासा नवमिया भद्दा सीया य अट्ठमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २२२ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 224 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य पच्चत्थिमेणं तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरिल्लरुयगवत्थव्वाओ जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 225 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अलंबुसा मिस्सकेसी, पुंडरीका य वारुणी ।
हासा सव्वप्पभा चेव, सिरि हिरि चेव उत्तरओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २२४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 226 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव वंदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति
तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसिरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जाव विहरंति, तं जहा–
चित्ता य चित्तकनगा, सतेरा य सोदामिणी ॥
तहेव जाव ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा–रूया रूयंसा सुरूया रूयगावई। तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स Translated Sutra: वे भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ में लिए आगान – परिगान करती हैं। उस काल, उस समय रुचककूट के मस्तक पर – चारों विदिशाओं में निवास करने वाली चार दिक्कुमारि – काएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – चित्रा, चित्रकनका, श्वेता तथा सौदामिनी। वे आकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के चारों विदिशाओं |