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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 67 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सरे भरहेणं रन्ना निसट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता मागहतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवनंसि निवइए।
तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवनंसि सरं निवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी–केस णं भो! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीनपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं दिवानुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमन्नागयाए उप्पिं अप्पुस्सुए भवनंसि सरं निसिरइ त्तिकट्टु सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव से नामाहयके Translated Sutra: राजा भरत द्वारा छोड़े जाते ही वह बाण तुरन्त बारह योजन तक जाकर मागध तीर्थ के अधिपति – के भवन में गिरा। मागध तीर्थाधिपति देव तत्क्षण क्रोध से लाल हो गया, रोषयुक्त, कोपाविष्ट, प्रचण्ड और क्रोधाग्नि से उद्दीप्त हो गया। कोपाधिक्य से उसके ललाट पर तीन रेखाएं उभर आई। उसकी भृकुटि तन गई। वह बोला – ‘अप्रार्थित – मृत्यु | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 73 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं तं धरणितलगमनलहु ततोव्विद्ध लक्खणपसत्थं हिमवंत कंदरंतरणिवाय संवद्धिय चित्त तिनिसदलियं जंबूणयसुकयकुव्वरं कनयदंडियारं पुलय वइर इंदणील सासग पवाल फलिहवर रयण लेट्ठु मणि विद्दुमविभूसियं अडयालीसारर-इयतवणिज्जपट्टसंगहिय जुत्ततुंबं पघसियपसिय-निम्मियनवपट्ट पुट्ठ परिनिट्ठियं विसिट्ठलट्ठणवलोहवद्धकम्मं हरिपहरणरयणसरिसचक्कं कक्केयण-इंदणी सासगसुसमाहिय बद्धजालकंकडं पसत्थविच्छिण्णसमधुरं पुरवरं व गुत्तं सुकरणतवणिज्ज-जुत्तकलियं कंकडगणिजुत्तकप्पणं पहरणानुजायं खेडग कनग धनु मंडलग्ग वरसत्ति कोंत तोमर सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं कनगरयणचित्तं जुत्तं हलीमुह Translated Sutra: वह रथ पृथ्वी पर शीघ्र गति से चलनेवाला था। अनेक उत्तम लक्षण युक्त था। हिमालय पर्वत की वायु – रहित कन्दराओं में संवर्धित तिनिश नामक रथनिर्माणोपयोगी वृक्षों के काठ से बना था। उसका जुआ जम्बूनद स्वर्ण से निर्मित था। आरे स्वर्णमयी ताड़ियों के थे। पुलक, वरेन्द्र, नील सासक, प्रवाल, स्फटिक, लेष्टु, चन्द्रकांत, विद्रुम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 74 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्स-संपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहे पयाते यावि होत्था।
तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए तहेव जाव जेणेव सिंधूए देवीए भवनं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधूए देवीए भवनस्स अदूरसामंते Translated Sutra: प्रभास तीर्थकुमार को विजित कर लेने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के परिसम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। यावत् उसने सिन्धु महानदी के दाहिने किनारे होते हुए पूर्व दिशा में सिन्धु देवी के भवन की ओर प्रयाण किया। राजा भरत बहुत हर्षित हुआ, परितुष्ट हुआ। जहाँ सिन्धु | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 81 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेनाबलस्स नेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निन्नाणय दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेनावई सुसेने भरहस्स रन्नो अग्गाणीयं आवाड-चिलाएहिं हयमहियपवरवीर घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरुहइ,
तए णं तं असीइमंगुलमूसियं नवनउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसिय सिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाकं चउरंगुलजण्णुकं Translated Sutra: सेनापति सुषेण ने राजा भरत के सैन्य के अग्रभाग के अनेक योद्धाओं को आपात किरातों द्वारा हत, मथित देखा। सैनिकों को भागते देखा। सेनापति सुषेण तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल एवं कुपित हुआ। वह मिसमिसाहट करता हुआ – कमलामेल नामक अश्वरत्न पर – आरूढ़ हुआ। वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊंचा था, निन्यानवे अंगुल मध्य परिधियुक्त | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 84 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते आवाडचिलाया सुसेनसेनावइणा हयमहिय पवरवीरघाइय विवडियचिंधद्धयपडागा किच्छ- प्पाणोवगया दिसोदिसिं पडिसेहिया समाणा भीया तत्था वहिया उव्विग्गा संजायभया अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमितिकट्टु अनेगाइं जोयणाइं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता एगयओ मिलायंति, मिलायित्ता जेणेव सिंधू महानई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वालुयासंथारए संथरेंति, संथरेत्ता वालुयासंथारए दुरुहंति, दुरुहित्ता अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति, पगिण्हित्ता वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया जे तेसिं कुलदेवया मेहमुहा नामं नागकुमारा देवा ते मनसीकरेमाणा-मनसीकरेमाणा Translated Sutra: सेनापति सुषेण द्वारा हत – मथित किये जाने पर, मेदान छोड़कर भागे हुए आपात किरात बड़े भीत, त्रस्त, व्यथित, पीड़ायुक्त, उद्विग्न होकर घबरा गये। वे अपने को निर्बल, निर्वीर्य तथा पौरुष – पराक्रम रहित अनुभव करने लगे। शत्रु – सेना का सामना करना शक्य नहीं है, यह सोचकर वे वहाँ से अनेक योजन दूर भाग गये। यों दूर जाकर वे एक स्थान | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 103 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समसरीरं भरहे वासंमि सव्वमहिलप्पहाणं सुंदरथण जघन वरकर चरण नयन सिरसिजदसण जननहिदयरमण मनहरिं सिंगारागार चारुवेसं संगयगय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास संलाव निउण जुत्तोवयारकुसलं अमरबहूणं, सुरूवं रूवेणं अनुहरंति सुभद्दं भद्दंमि जोव्वणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं, नमी य रयणाणि य कडगाणि य तुडियाणिय गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं Translated Sutra: वह समचौरस दैहिक संस्थानयुक्त थी। भरतक्षेत्र में समग्र महिलाओं में वह प्रधान – थी। उसके स्तन, जघन, हाथ, पैर, नेत्र, केश, दाँत – सभी सुन्दर थे, देखने वाले पुरुष के चित्त को आह्लादित करनेवाले थे, आकृष्ट करनेवाले थे। वह मानो शृंगार – रस का आगार थी। लोक – व्यवहार में वह कुशल थी। वह रूप में देवांगनाओं के सौन्दर्य का | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 214 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति।
तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलियाइं पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमनागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं जम्मनमहिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवओ जम्मनमहिमं करेमो त्तिकट्टु एवं वयंति, वइत्ता पत्तेयं-पत्तेयं आभिओगिए Translated Sutra: जब वे अधोलोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने आसनों को चलित होते देखती हैं, वे अपने अवधिज्ञान का प्रयोग करती हैं। तीर्थंकर को देखती हैं। कहती हैं – जम्बूद्वीप में तीर्थंकर उत्पन्न हुए हैं। अतीत, प्रत्युत्पन्न तथा अनागत – अधोलोकवास्तव्या हम आठ महत्तरिका दिशाकुमारियों का यह परंपरागत आचार है कि हम भगवान् तीर्थंकर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 217 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं उड्ढलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति, एवं तं चेव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं जाव अम्हे णं देवानुप्पिए! उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी-महत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मनमहिमं करिस्सामो, तुब्भाहिं ण भाइयव्वं तिकट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति, ...
... से जहानामए–कम्मगरदारए Translated Sutra: तब उन देवी के आसन चलित होते हैं, शेष पूर्ववत्। वे दिक्कुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं – देवानुप्रिये ! हम उर्ध्वलोकवासिनी दिक्कुमारिकाएं भगवान् का जन्म – महोत्सव मनायेंगी। अतः आप भयभीत मत होना। यों कहकर वे – ईशान कोण में चली जाती हैं। यावत् वे आकाश में बादलों की विकुर्वणा करती हैं, वे | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 227 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने।
से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, Translated Sutra: उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 244 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सक्के देविंदे देवराया पंच सक्के विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे सक्के भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के वज्जपाणी पुरओ पकड्ढइ।
तए णं से सक्के देविंदे देवराया चउरासीईए सामानियसाहस्सीहिं जाव अन्नेहि य बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइस वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनणयरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवने Translated Sutra: तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र पाँच शक्रों की विकुर्वणा करता है। यावत् एक शक्र वज्र हाथ में लिये आगे खड़ा होता है। फिर शक्र अपने ८४००० सामानिक देवों, भवनपति यावत् वैमानिक देवों, देवियों से परिवृत, सब प्रकार की ऋद्धि से युक्त, वाद्य – ध्वनि के बीच उत्कृष्ट त्वरित दिव्य गति द्वारा, जहाँ भगवान् तीर्थंकर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 256 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरानंतरे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य बावीसे जोयणसए अडयालीसं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स अबाहाए अब्भंतरानंतरे सूरमंडले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य पणवीसे जोयणसए पणतीसं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स Translated Sutra: भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल जम्बूद्वीप स्थित मन्दर पर्वत से कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४४८२० योजन की दूरी पर है। सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से दूसरा सूर्य – मण्डल ४४८२२ – ४८/६१ योजन की दूरी पर है। सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से तीसरा सूर्य – मण्डल ४४८२५ – ३५/६१ योजन की दूरी पर है। यों प्रति दिन रात एक – एक | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 258 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तदा णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोन्नि य एगावण्णे जोयणसए एगूनतीसं च सट्ठिभाए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तदा णं इह-गयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य जोयणस्स सट्ठिभाएहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ।
जया णं भंते! सूरिए अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? Translated Sutra: भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर – मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो वह एक – एक मुहूर्त्त में कितने क्षेत्र को गमन करता है ? गौतम ! वह एक – एक मुहूर्त्त में ५२५१ – २९/६० योजन पार करता है। उस समय सूर्य यहाँ भरतक्षेत्र – स्थित मनुष्यों को ४७२६३ – २१/६० योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। वहाँ से निकलता हुआ सूर्य नव | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 259 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ? गोयमा! तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतरा मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ।
जया णं भंते! सूरिए अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ? गोयमा! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि य एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया।
से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि Translated Sutra: भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तब – उस समय दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! उत्तमावस्थाप्राप्त, उत्कृष्ट – १८ मुहूर्त्त का दिन होता है, जघन्य १२ मुहुर्त्त की रात होती है। वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नये संवत्सर में प्रथम अहोरात्र में दूसरे आभ्यन्तर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 260 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं किंसंठिया तावखेत्तसंठिई पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया तावखेत्तसंठिई पन्नत्ता– अंतो संकुया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासेणं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति– पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अनवट्ठियाओ हवंति, तं जहा–सव्वब्भंतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वब्भंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं नव जोयणसहस्साइं चत्तारि छलसीए जोयणसए नव य दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं।
एस णं Translated Sutra: भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो उसके ताप – क्षेत्र की स्थिति किस प्रकार है ? तब ताप – क्षेत्र की स्थिति ऊर्ध्वमुखी कदम्ब – पुष्प के संस्थान जैसी होती है – वह भीतर में संकीर्ण तथा बाहर विस्तीर्ण, भीतर से वृत्त तथा बाहर से पृथुल, भीतर अंकमुख तथा बाहर गाड़ी की धुरी के अग्रभाग जैसी | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 262 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तया णं भंते! किंसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढीमुहकलंबुया-पुप्फसंठाणसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता– अंतो संकुया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासे णं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति– पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अनवट्ठियाओ हवंति, तं जहा–सव्वब्भंतरिया चेव बाहा, सव्वबाहिरिया चेव बाहा।
तीसे णं सव्वब्भंतरीया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिन्नि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं।
से णं भंते! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा? गोयमा! जे णं मंदरस्स Translated Sutra: भगवन् ! तब अन्धकार – स्थिति कैसी होती है ? गौतम ! अन्धकार – स्थिति तब ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प का संस्थान लिये होती है। वह भीतर संकीर्ण, बाहर विस्तीर्ण इत्यादि होती है। उसकी सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में ६३२४ – ६/१० योजन – प्रमाण है। जो पर्वत की परिधि है, उसे दो से गुणित किया जाए, गुणनफल को दस | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 267 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, चारट्ठिइया गइरइया गइसमावन्नगा? गोयमा! अंतो णं मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय गहगण-नक्खत्त तारारूवा ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठिइया, गइरइया गइसमा-वण्णगा उड्ढीमुह-कलंबुया-पुप्फसंठाण-संठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं Translated Sutra: भगवन् ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं तारे – ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पातीत हैं ? कल्पोपपन्न हैं, चारोपपन्न हैं, चारस्थितिक हैं, गतिरतिक हैं – या गति समापन्न हैं ? गौतम ! मानुषोत्तर ज्योतिष्क देव विमानोत्पन्न हैं, चारोपपन्न हैं, गतिरतिक हैं, गतिसमापन्न हैं। ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प के आकारमें | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 273 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्भंतरए चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे चंदमंडले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरानंतरे चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य छप्पन्ने जोयणसए पणवीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाभाए अबाहाए अब्भंतरानंतरे चंदमंडले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४४८२० योजन की दूरी पर है। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से दूसरा आभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल ४४८५६ – २५/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से ४ भाग योजनांश की दूरी पर है। इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 274 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वब्भंतरे णं भंते! चंदमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं छच्चचत्ताले जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसहस्साइं पन्नरस जोयणसयसहस्साइं अउणानउइं च जोयणाइं किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते।
अब्भंतरानंतरे सा चेव पुच्छा। गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं सत्त य बारसुत्तरे जोयणसए एगावन्नं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुण्णियाभागं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसयसहस्साइं पन्नरस सहस्साइं तिन्नि य एगूनवीसे जोयणसए किंचि-विसेसाहिए परिक्खेवेणं।
अब्भंतरतच्चे णं जाव पन्नत्ते? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई तथा परिधि कितनी है ? गौतम ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९६४० योजन तथा उसकी परिधि कुछ अधिक ३१५०८९ योजन है। द्वितीय आभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९७१२ – ५१/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से १ भाग | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 275 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! चंदे सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साइं तेवत्तरिं च जोयणाइं सत्तत्तरिं च चोयाले भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहिं सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता। तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स चंदे चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ।
जया णं भंते! चंदे अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साइं सत्तत्तरिं च जोयणाइं छत्तीसं च चोवत्तरे भागसए गच्छइ Translated Sutra: भगवन् ! जब चन्द्र सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब वह प्रतिमुहूर्त्त कितना क्षेत्र पार करता है ? गौतम ! ५०७३ – ७७४४/१३७२५ योजन। तब वह यहाँ स्थित मनुष्यों को ४७२६३ – २१/६१ योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। जब चन्द्र दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब प्रतिमुहूर्त्त ५०७७ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 276 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहेत्ता, एत्थ णं दो नक्खत्तमंडला पन्नत्ता।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहेत्ता केवइयं नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं छ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे अट्ठ नक्खत्तमंडला भवंतीतिमक्खायं।
सव्वब्भंतराओ णं भंते! नक्खत्तमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए नक्खत्तमंडले पन्नत्ते? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! नक्षत्रमण्डल कितने बतलाये हैं ? गौतम ! आठ। जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दो नक्षत्रमण्डल हैं। लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर छ नक्षत्रमण्डल हैं। सर्वाभ्यन्तर नक्षत्र – मण्डल से सर्वबाह्य नक्षत्रमण्डल ५१० योजन की अव्यवहित दूरी पर है। एक नक्षत्रमण्डल से दूसरे नक्षत्रमण्डल | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 335 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संठाणं च पमाणं, वहंति सीहगई इड्ढिमंता य ।
तारंतरग्गमहिसी, तुडिय पहु ठिई य अप्पबहू ॥ Translated Sutra: ज्योतिष्क विमानों के संस्थान, ज्योतिष्क देवों की संख्या, चन्द्र आदि देवों के विमानों को करनेवाले देव, देवगति, देवऋद्धि, ताराओं के पारस्परिक अन्तर, चन्द्र आदि की अग्रमहिषियों, आभ्यन्तर परिषत् एवं देवियों के साथ भोग – सामर्थ्य, ज्योतिष्क देवों के आयुष्य तथा सोलहवाँ द्वार – ज्योतिष्क देवों के अल्पबहुत्व का | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 339 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए जोइसं चारं चरइ? गोयमा! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ।
लोगंताओ णं भंते! केवइयाए अबाहाए जोइसे पन्नत्ते? गोयमा! एक्कारस एक्कारसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसे पन्नत्ते।
धरणितलाओ णं भंते! [केवतियं अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति? केवतियं अबाहाए सूरविमाने चारं चरति? केवतियं अबाहाए चंदविमाने चारं चरति? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति? गोयमा!] सत्तहिं णउएहिं जोयणसएहिं जोइसे चारं चरइ। एवं सूरविमाने अट्ठहिं सएहिं, चंदविमाने अट्ठहिं असीएहिं, उवरिल्ले तारारूवे णवहिं जोयणसएहिं चारं चरइ।
जोइसस्स Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से कितने अन्तर पर गति करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी पर। ज्योतिश्चक्र – लोकान्त से अलोक से पूर्व ११११ योजन के अन्तर पर स्थित है। अधस्तन ज्योतिश्चक्र धरणितल से ७९० योजन की ऊंचाई पर गति करता है। इसी प्रकार सूर्यविमान धरणीतल से ८०० योजन की ऊंचाई पर, चन्द्र विमान ८८० योजन की | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 340 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्लं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वबाहिरं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वहिट्ठिल्लं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरइ? गोयमा! अभिई नक्खत्ते सव्वब्भंतरं चारं चरइ, मूलो सव्वबाहिरं चारं चरइ, भरणी सव्वहिट्ठिल्लगं चारं चरइ, साई सव्वुवरिल्लं चारं चरइ।
चंदविमाने णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! अद्धकविट्ठसंठाणसंठिए सव्वफालियामए अब्भुग्गयमूसियपहसिए एवं सव्वाइं नेयव्वाइं।
चंदविमाने णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं? केवइयं बाहल्लेणं? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में अठ्ठाईस नक्षत्रों में कौन सा नक्षत्र सर्व मण्डलों के भीतर, कौन सा नक्षत्र समस्त मण्डलों के बाहर, कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे और कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है ? गौतम ! अभिजित नक्षत्र सर्वाभ्यन्तर – मण्डल में से, मूल नक्षत्र सब मण्डलों के बाहर, भरणी नक्षत्र सब | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 344 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमानं भंते! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति? गोयमा! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति–चंदविमानस्स णं पुरत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतल विमलनिम्मलदहिधण गोखीर फेण रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउट्ठ वट्ट पीवरसु-सिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पल-पत्तमउयसूमालतालुजीहाणं महुगुलियपिंगलक्खाणं पीवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसय-सुहुमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं ऊसिय सुणमिय सुजाय अप्फोडिय नंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं वइरामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्ज जोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव परिवहन करते हैं ? गौतम ! सोलह हजार, चन्द्रविमान के पूर्व में श्वेत, सुभग, जनप्रिय, सुप्रभ, शंख के मध्यभाग, जमे हुए दहीं, गाय के दूध के झाग तथा रजतनिकर, उज्ज्वल दीप्तियुक्त, स्थिर, लष्ट, प्रकोष्ठक, वृत्त, पीवर, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, तीक्ष्ण, दंष्ट्राओं प्रकटित मुखयुक्त, रक्तोत्पल, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 348 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चंदिम सूरियगहगण नक्खत्त तारारूवाणं कयरे सव्वसिग्घगई? कयरे सव्वसिग्घ-गईतराए चेव? गोयमा! चंदेहिंतो सूरा सव्वसिग्घगई, सूरेहिंतो गहा सिग्घगई, गहेहिंतो नक्खत्ता सिग्घगई, नक्खत्तेहिंतो तारारूवा सिग्घगई, सव्व प्पगई, चंदा, सव्वसिग्घगई तारारूवा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों में कौन सर्वशीघ्रगति हैं ? कौन सर्वशीघ्रतर गतियुक्त हैं ? गौतम ! चन्द्रों की अपेक्षा सूर्य, सूर्यों की अपेक्षा ग्रह, ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्र तथा नक्षत्रों की अपेक्षा तारे शीघ्र गतियुक्त हैं। इनमें चन्द्र सबसे अल्प या मन्दगतियुक्त हैं तथा तारे सबसे | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 49 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमदूसमणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! ।
तीसे णं भंते! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! काले भविस्सई Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Gujarati | 344 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमानं भंते! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति? गोयमा! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति–चंदविमानस्स णं पुरत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतल विमलनिम्मलदहिधण गोखीर फेण रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउट्ठ वट्ट पीवरसु-सिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पल-पत्तमउयसूमालतालुजीहाणं महुगुलियपिंगलक्खाणं पीवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसय-सुहुमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं ऊसिय सुणमिय सुजाय अप्फोडिय नंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं वइरामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्ज जोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૪૪. ભગવન્ ! ચંદ્ર વિમાનને કેટલા હજાર દેવો વહન કરે છે ? ચંદ્ર વિમાનને પૂર્વમાં શ્વેત, સુભગ, સુપ્રભ, શંખતલ – વિમલ – નિર્મલ, ધન દહીં, ગાયના દૂધના ફીણ, રજતના સમૂહની જેમ પ્રકાશક, સ્થિર, લષ્ટ, પ્રકોષ્ઠ, વૃત્ત, પીવર, સુશ્લિષ્ટ, વિશિષ્ટ, તીક્ષ્ણ દાઢાથી વિડંબિત મુખવાળા, રક્ત ઉત્પલ – મૃદુ – સુકુમાલ તાળવું અને જીભવાળા, | |||||||||
Jitakalpa | जीतकल्प सूत्र | Ardha-Magadhi |
तप प्रायश्चित्तं |
Hindi | 45 | Gatha | Chheda-05A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धावण-डेवण-संघरिस-गमन-किड्डा-कुहावणाईसु ।
उक्कुट्ठि-गीय-छेलिय-जीवरुयाईसु य चउत्थं ॥ Translated Sutra: दौड़ना, पार करना, शीघ्र गति में जाना, क्रीड़ा करना, इन्द्रजाल बनाकर तैरना, ऊंची आवाझ में बोलना, गीत गाना, जोरों से छींकना, मोर – तोते की तरह आवाझ करना, सर्व में उपवास – तप प्रायश्चित्त। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत् पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 13 | Gatha | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सरीरोगाहणसंघयणसंठाणकसाय तह य हुंति सण्णाओ ।
लेसिंदियसमुग्घाओ, सन्नी वेए य पज्जत्ती ॥
[गाथा] दिट्ठी दंसणनाणे, जोगुवओगे तहा किमाहारे ।
उववायठिई समुग्घायचवणगइरागई चेव ॥ Translated Sutra: सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का २३ द्वारों द्वारा निरूपण किया जाएगा – १. शरीर, २. अवगाहना, ३. संहनन, ४. संस्थान, ५. कषाय, ६. संज्ञा, ७. लेश्या, ८. इन्द्रिय, ९. समुद्घात, १०. संज्ञी – असंज्ञी, ११. वेद, १२. पर्याप्ति, १३. दृष्टि, १४. दर्शन, १५. ज्ञान, १६. योग, १७. उपयोग, १८. आहार, १९. उपपात, २०. स्थिति, २१. समवहत – असमवहत मरण, २२. च्यवन और | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइ-भागं, उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संघयणा पन्नत्ता? गोयमा! छेवट्टसंघयणा पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संठिया पन्नत्ता? गोयमा! मसूरचंदसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए मानकसाए मायाकसाए लोहकसाए।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि सण्णाओ पन्नत्ताओ, Translated Sutra: हे भगवन् ! उन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट से भी अंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण है। भगवन् ! उन जीवों के शरीर के किस संहननवाले हैं ? गौतम ! सेवार्तसंहनन वाले। भगवन् ! उन जीवों के शरीर | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 16 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सण्हबायरपुढविकाइया? सण्हबायरपुढविकाइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हमत्तिया, भेओ जहा पन्नवणाए जाव–ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसतसहस्साइं। पज्जत्तग-निस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति–जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेज्जा। से त्तं खरबादरपुढविकाइया।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए तं चेव सव्वं, नवरं– चत्तारि Translated Sutra: श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय क्या है ? श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय सात प्रकार के हैं – काली मिट्टी आदि भेद प्रज्ञापनासूत्र अनुसार जानना यावत् वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। इस प्रकार सब कथन पूर्ववत् जानना। विशेषता | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आउक्काइया? आउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमआउक्काइया य बायर-आउक्काइया य। सुहुमआउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए जहेव सुहुमपुढविकाइयाणं, नवरं–थिबुगसंठिया पन्नत्ता, सेसं तं चेव जाव दुगइया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता। से त्तं सुहुमआउक्काइया। Translated Sutra: अप्कायिक क्या है ? अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं, सूक्ष्म अप्कायिक और बादर अप्कायिक। सूक्ष्म अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं, जैसे कि पर्याप्त और अपर्याप्त। भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। इस प्रकार सब वक्तव्यता सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह कहना। विशेषता यह है कि संस्थान | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बायरआउक्काइया? बायरआउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–ओसा हिमे महिया करए हरतनुए सुद्धोदए सीतोदए उसिणोदए खारोदए खट्टोदए अंबिलोदए लवणोदए वरुणोदए खीरोदए घओदए खोतोदए रसोदए...
...जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य, तं चेव सव्वं, नवरं– थिबुगसंठिया, चत्तारि लेसाओ, आहरो नियमा छद्दिसिं, उववाओ तिरिक्खजोणिय मनुस्स देवेहिंतो, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साइं, सेसं तं चेव जहा बायर-पुढविकाइया जाव दुगतिया तिआगतिआ, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता समणाउसो! सेत्तं बायरआउ-क्काइया। सेत्तं आउक्काइया। Translated Sutra: बादर अप्कायिक का स्वरूप क्या है ? बादर अप्कायिक अनेक प्रकार के हैं, ओस, हिम यावत् अन्य भी इसी प्रकार के जल रूप। वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। इस प्रकार पूर्ववत् कहना। विशेषता यह है कि उनका संस्थान स्तिबुक है। उनमें लेश्याएं चार पाई जाती हैं, आहार नियम से छहों दिशाओं का, तिर्यंच – | |||||||||
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Hindi | 20 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया? सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य तहेव, नवरं– अनित्थंथसंठिया, दुगतिया दुआगतिया, अपरित्ता अनंता, अवसेसं जहा पुढविक्काइयाणं। से तं सुहुमवणस्सइकाइया। Translated Sutra: सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव कैसे हैं ? सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त, इत्यादि वर्णन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान जानना। विशेषता यह है कि सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों का संस्थान अनियत है। वे जीव दो गति में जाने वाले और दो गतियों से आने वाले हैं। वे अप्रत्येकशरीरी (अनन्तकायिक) | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया? साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया अनेगविहा पन्नत्ता तं जहा–आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्ठिया, छिरिया, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वज्जकंदे, सूरणकंदे, खेलूडे, भद्दमोत्था, पिंडहलिद्दा, लोही, नीहू थोहू अस्सकण्णी, सीहकण्णी सीउंढी, मुसंढी।
जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा तेसिं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तगनिस्साए अपज्जत्तगा Translated Sutra: साधारण बादर वनस्पतिकाय क्या है ? वे अनेक प्रकार के हैं। आलू, मूला, अदरख, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिली, किट्टिका, क्षीरिका, क्षीरविडालिका, कृष्णकन्द, वज्रकन्द, सूरणकन्द, खल्लूट, कृमिराशि, भद्र, मुस्ता – पिंड़, हरिद्रा, लोहारी, स्निहु, स्तिभु, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिकुण्डी, मुषण्डी और अन्य भी इस प्रकार के साधारण वनस्पतिकायिक | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 32 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सुहुमतेउक्काइया? सुहुमतेउक्काइया जहा सुहुमपुढविक्काइया, नवरं– सरीरगा सूइकलाव-संठिया, एगगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता, सेसं तं चेव। सेत्तं सुहुमतेउक्काइया। Translated Sutra: सूक्ष्म तेजस्काय क्या हैं ? सूक्ष्म तेजस्काय सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह समझना। विशेषता यह है कि इनके शरीर का संस्थान सूइयों के समुदाय के आकार का जानना। ये जीव तिर्यंचगति में ही जाते हैं और मनुष्यों से आते हैं। ये जीव प्रत्येकशरीर वाले हैं और असंख्यात हैं। | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 33 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बादरतेउक्काइया? बादरतेउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगाले जाला मुम्मुरे अच्ची अलाए सुद्धागणी उक्का विज्जू असणी निग्घाए संघरिससमुट्ठिए सूरकंतमणिनिस्सिए।
जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एएसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तग-निस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति– जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेज्जा।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, Translated Sutra: बादर तेजस्कायिकों का स्वरूप क्या है ? बादर तेजस्कायिक अनेक प्रकार के हैं, कोयले की अग्नि, ज्वाला की अग्नि, मुर्मूर की अग्नि यावत् सूर्यकान्त मणि से निकली हुई अग्नि और भी अन्य इसी प्रकार की अग्नि। ये बादर तेजस्कायिक जीव संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 34 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वाउक्काइया? वाउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा–सुहुमवाउक्काइया य बायरवाउक्काइया य। सुहुमवाउक्काइया जहा तेउक्काइया, नवरं–सरीरगा पडागसंठिया। एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखिज्जा। सेत्तं सुहुमवाउक्काइया।
से किं तं बादरवाउक्काइया? बादरवाउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पाईणवाते पडीणवाते दाहिणवाए उदीणवाए उड्ढवाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउब्भामे वाउक्कलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संवट्टगवाए घनवाए तनुवाए सुद्धवाए
जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते Translated Sutra: वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ? वायुकायिक दो प्रकार के हैं, सूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक। सूक्ष्म वायुकायिक तेजस्कायिक की तरह जानना। विशेषता यह है कि उनके शरीर पताका आकार के हैं। ये एक गति में जानेवाले और दो गतियों से आने वाले हैं। ये प्रत्येकशरीरी और असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण हैं। बादर वायुकायिकों | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 36 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बेइंदिया? बेइंदिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाकिमिया जाव समुद्दलिक्खा, जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्ज-इभागं, उक्कोसेणं बारसजोयणाइं, छेवट्टसंघयणा, हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिन्नि लेसाओ, दो इंदिया, तओ समुग्घाया– वेयणा कसाया मारणंतिया, नोसन्नी असन्नी, नपुंसग-वेयगा, पंच पज्जत्तीओ, पंच अपज्जत्तीओ, सम्मद्दिट्ठीवि Translated Sutra: द्वीन्द्रिय जीव क्या हैं ? द्वीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं, पुलाकृमिक यावत् समुद्रलिक्षा। और भी अन्य इसी प्रकार के द्वीन्द्रिय जीव। ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। हे भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 37 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तेइंदिया? तेइंदिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा– ओवइया रोहिणिया जाव हत्थिसोंडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तहेव जहा बेइंदियाणं, नवरं–सरीरोगाहणा उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं, तिन्नि इंदिया, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपन्नराइंदियाइं, सेसं तहेव दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता। से तं तेइंदिया। Translated Sutra: त्रीन्द्रिय जीव कौन हैं ? त्रीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं, औपयिक, रोहिणीत्क, यावत् हस्तिशौण्ड और अन्य भी इसी प्रकार के त्रीन्द्रिय जीव। ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। इसी तरह वह सब कथन द्वीन्द्रिय समान करना। विशेषता यह है कि त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट शरीरावगाहना तीन कोस | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 40 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेरइया? नेरइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–रयणप्पभापुढवि नेरइया जाव अहेसत्तमपुढवि नेरइया । ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा सरीरोगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–भव धारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं धनुसहस्सं।
तेसि Translated Sutra: नैरयिक जीवों का स्वरूप कैसा है ? नैरयिक जीव सात प्रकार के हैं, यथा रत्नप्रभापृथ्वी – नैरयिक यावत् अधःसप्तमपृथ्वी – नैरयिक। ये नारक जीव दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – वैक्रिय, तैजस और कार्मण। भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! दो प्रकार | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 43 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जलयरा? जलयरा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–मच्छगा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा।
से किं तं मच्छा? एवं जहा पन्नवणाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयण-सहस्सं, छेवट्टसंघयणी, हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, सण्णाओवि, लेसाओ तिन्नि, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, नो सन्नी असन्नी, नपुंसगवेया, पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ य पंच, दो दिट्ठीओ, दो दंसणा, दो नाणा, दो अन्नाणा, दुविहे जोगे, Translated Sutra: जलचर कौन हैं ? जलचर पाँच प्रकार के हैं – मत्स्य, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार। मच्छ क्या हैं ? मच्छ अनेक प्रकार के हैं इत्यादि वर्णन प्रज्ञापना के अनुसार जानना यावत् इस प्रकार के अन्य भी मच्छ आदि ये सब जलचर संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं थलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? थलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– चउप्पयथलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पसंमुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खजोणिया।
से किं तं चउप्पयथलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? चउप्पयथलयरसंमुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– एगखुरा दुखुरा गंडीपया सणप्फया जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तओ सरीरगा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं Translated Sutra: स्थलचर संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कौन हैं ? स्थलचर संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं – चतुष्पद स्थलचर और परिसर्प स्थलचर। चतुष्पद स्थलचर० तिर्यंच कौन हैं ? चतुष्पद स्थलचर० चार प्रकार के हैं, एक खुर वाले, दो खुर वाले, गंडीपद और सनखपद। यावत् जो इसी प्रकार के अन्य भी चतुष्पद | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 46 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जलयरा? जलयरा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–मच्छा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा। सव्वेसिं भेदो भाणियव्वो तहेव जहा पन्नवणाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसिं णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए। सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, छव्विहसंघयणी पन्नत्ता, तं जहा–वइरोसभनारायसंघयणी उसभनारायसंघयणी नारायसंघयणी अद्धनारायसंघयणी कीलियासंघयणी छेवट्टसंघयणी।
छव्विहसंठिया पन्नत्ता, तं जहा–समचउरंससंठिया Translated Sutra: (गर्भज) जलचर क्या हैं ? ये जलचर पाँच प्रकार के हैं – मत्स्य, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार। इन सब के भेद प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना यावत् इस प्रकार के गर्भज जलचर संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् ! इन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण। इनकी शरीरावगाहना | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 47 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं थलयरा? थलयरा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–चउप्पया य परिसप्पा य।
से किं तं चउप्पया? चउप्पया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–एगखुरा सो चेव भेदो जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं छ गाउयाइं, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं, नवरं–उव्वट्टित्ता नेरइएसु चउत्थपुढविं ताव गच्छंति, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया चउआगतिया, परित्ता असंखिज्जा पन्नत्ता। से तं चउप्पया।
से किं तं परिसप्पा? परिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–उरपरिसप्पा य Translated Sutra: (गर्भज) स्थलचर क्या है ? (गर्भज) स्थलचर दो प्रकार के हैं, यथा – चतुष्पद और परिसर्प। चतुष्पद क्या है? चतुष्पद चार तरह के हैं, यथा – एक खुरवाले आदि भेद प्रज्ञापना के अनुसार कहना। यावत् ये स्थलचर संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। इन जीवों के चार शरीर होते हैं। अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 49 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य।
कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतो मनुस्सखेत्ते जाव अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। संघयण संठाण कसाय सण्णा लेसा जहा बेइंदियाणं, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, असन्नी, नपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठिदंसण अन्नाण जोग उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहा बेइंदियाणं, उववातो नेरइय देव तेउ वाउ असंखाउवज्जो, अंतोमुहुत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं Translated Sutra: मनुष्य का क्या स्वरूप है ? मनुष्य दो प्रकार के हैं, यथा – सम्मूर्च्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य। भगवन् ! सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर होते हैं, यावत् अन्तमुहूर्त्त की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। भन्ते ! उन जीवों के कितने शरीर होते हैं ? गौतम | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। एवं भेदो भाणियव्वो जहा पन्नवणाए। ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं तओ सरीरगा–वेउव्विए तेयए कम्मए। ओगाहणा दुविहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, सरीरगा छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुन्ना मणामा ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए Translated Sutra: देव क्या है ? देव चार प्रकार के, यथा – भवनवासी, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भवनवासी देव क्या हैं ? भवनवासी देव दस प्रकार के कहे हैं – असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार। वाणव्यन्तर क्या हैं ? (प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार) देवों के भेद कहने चाहिए। यावत् वे संक्षेप से पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 98 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए अहिमडेति वा गोमडेति वा सुनमडेति वा मज्जारमडेति वा मनुस्समडेति वा महिसमडेति वा मूसगमडेति वा आसमडेति वा हत्थिमडेति वा सीहमडेति वा वग्घमडेति वा विगमडेति वा दीविय-मडेति वा मयकुहियविणट्ठकुणिमवावण्णदुरभिगंधे असुइविलीणविगय बीभच्छदरिसणिज्जे किमि-जालाउलसंसत्ते भवेयारूवे सिया? नो इणट्ठे समट्ठे। गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नरगा एत्तो अनिट्ठतरका चेव अकंततरका चेव अप्पियतरका चेव अमणुन्नतरका चेव अमनामतरका चेव गंधेणं पन्नत्ता। एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास गंध की अपेक्षा कैसे हैं ? गौतम ! जैसे सर्प का मृतकलेवर हो, गाय का मृतकलेवर हो, कुत्ते का मृतकलेवर हो, बिल्ली का मृतकलेवर हो, इसी प्रकार मनुष्य का, भैंस का, चूहे का, घोड़े का, हाथी का, सिंह का, व्याघ्र का, भेड़िये का, चीत्ते का मृतकलेवर हो जो धीरे – धीरे सूज – फूलकर सड़ गया हो और जिसमें | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 104 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केरिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति? गोयमा! जे पोग्गला अनिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं आहारस्सवि सत्तसुवि।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एक्का काउलेसा पन्नत्ता। एवं सक्करप्पभाएवि।
वालुयप्पभाए पुच्छा। दो लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नीललेसा काउलेसा य। ते बहुतरगा जे काउलेसा, ते थोवतरगा जे णीललेस्सा।
पंकप्पभाए पुच्छा। एक्का नीललेसा पन्नत्ता।
धूमप्पभाए पुच्छा। गोयमा! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य। ते बहुतरका जे नीललेस्सा, Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं ? गौतम! अनिष्ट यावत् अमणाम पुद्गल परिणत होते हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक जानना। इसी प्रकार जो पुद्गल अनिष्ट एवं अमणाम होते हैं, वे नैरयिकी के आहार रूप में परिणत होते हैं। ऐसा ही कथन रत्नप्रभादि सातों नरक |