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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 335 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा– पाणेहिं वा, पणएहिं वा, बीएहिं वा, हरिएहिं वा– संसत्तं, उम्मिस्सं, सीओदएण वा ओसित्तं, रयसा वा परिवासियं, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा– परहत्थंसि वा परपायंसि वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे वि संते नो पडिग्गाहेज्जा। से य आहच्च पडिग्गाहिए सिया, से तं आयाय एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता– अहे आरामंसि वा अहे उवस्स-यंसि वा अप्पडे, अप्प-पाणे, अप्प-बीए, अप्प-हरिए, अप्पोसे, अप्पुदए, अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए विगिंचिय-विगिंचिय,

Translated Sutra: कोई भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा में आहार – प्राप्ति के उद्देश्य से गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होकर यह जाने कि यह अशन, पान, खाद्य तथा स्वाद्य रसज आदि प्राणियों से, फफुंदी से, गेहूँ आदि के बीजों से, हरे अंकुर आदि से संसक्त है, मिश्रित है, सचित्त जल से गीला है तथा सचित्त मिट्टी से सना हुआ है; यदि इस प्रकार का अशन, पान, खाद्य,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 336 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा–कसिणाओ, सासिआओ, अविदल-कडाओ, अतिरिच्छच्छिन्नाओ, अव्वोच्छि-न्नाओ, तरुणियं वा छिवाडिं अणभिक्कंता-भज्जियं पेहाए – अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा प्राप्त होने की आशा से प्रविष्ट हुआ भिक्षु या भिक्षुणी यदि इन औषधियों को जाने कि वे अखण्डित हैं, अविनष्ट योनि हैं, जिनके दो या दो से अधिक टुकड़े नहीं हुए हो, जिनका तिरछा छेदन नहीं हुआ है, जीव रहित नहीं है, अभी अधपकी फली है, जो अभी सचित्त या अभग्न है या अग्नि में भुँजी हुई नहीं है, तो उन्हें देखकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 337 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा– अकसिणाओ, असासियाओ, विदलकडाओ, तिरिच्छच्छिन्नाओ, वोच्छिन्नाओ, तरुणियं वा छिवाडिं अभिक्कंतं भज्जियं पेहाए– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं वा सइं भज्जियं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा लेने के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसी औषधियों को जाने कि वे अखण्डित नहीं है, यावत्‌ वे जीव रहित हैं, कच्ची फली अचित्त हो गई है, भग्न हैं या अग्नि में भुँजी हुई हैं, तो उन्हें देखकर, उन्हें प्रासुक एवं एषणीय समझकर प्राप्त होती हों तो ग्रहण कर ले। गृहस्थ के घर भिक्षा निमित्त गया
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 338 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं वा असइं भज्जियं– दुक्खुत्तो वा भज्जियं, तिक्खुत्तो वा भज्जियं– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे नो अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धिं गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमिं वा विहार-भूमिं वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा णोअन्नउ-त्थिएण वा, गारत्थिएण

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने के ईच्छुक भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ तथा पिण्डदोषों का परिहार करने वाला साधु अपारिहारिक साधु के साथ भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे, और न वहाँ से नीकले। वह भिक्षु या भिक्षुणी बाहर विचारभूमि या विहारभूमि से लौटते या वहाँ प्रवेश
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 339 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुइज्जमाणे–नो अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहा-रिएण वा सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे नो अन्नउत्थियस्स वा, गारत्थियस्स वा, परिहारिओ अपरिहारिअस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देज्जा वा अणुपदेज्जा वा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या परपिण्डोपजीवी याचक को तथैव उत्तम साधु पार्श्वस्थादि शिथिलाचारी साधु को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य तो स्वयं दे और न किसी से दिलाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 340 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं ‘समारब्भ समुद्दिस्स’ कीयं पामिच्च अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसं-तरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, ‘परिभुत्तं वा’ ‘अपरिभुत्तं वा’ आसेवियं वा अनासेवियं वा –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी जब यह जाने कि किसी भद्र गृहस्थ ने अकिंचन निर्ग्रन्थ के लिए एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके आहार बनाया है, साधु के निमित्त से आहार मोल लिया, उधार लिया है, किसी से जबरन छीनकर लाया है, उसके स्वामी की अनुमति के बिना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 341 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स, पाणाइं वा भूयाइं वा जीवाइं वा सत्ताइं वा समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अनासेवियं वा–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यावत्‌ गृहस्थ के घर प्रविष्ट होने पर जाने कि यह अशनादि आहार बहुत से श्रमणों, माहनों, अतिथियों, कृपणों, याचकों को गिन – गिनकर उनके उद्देश्य से बनाया हुआ है। वह आसेवन किया किया गया हो या न किया गया हो, उस आहार को अप्रासुक अनेषणीय समझकर मिलने पर ग्रहण न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 342 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यावत्‌ गृहस्थ के घर प्रविष्ट होने पर जाने कि यह चतुर्विध आहार बहुत – से श्रमणों, माहनों, अतिथियों, दरिद्रों और याचकों के उद्देश्य से प्राणादि आदि जीवों का समारम्भ करके यावत्‌ लाकर दे रहा है, उस प्रकार के आहार को जो स्वयं दाता द्वारा कृत हो, बाहर नीकाला हुआ न हो, दाता द्वारा अधिकृत न हो, दाता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 343 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे, सेज्जाइं पुण कुलाइं जाणेज्जा–इमेसु खलु कुलेसु नितिए पिंडे दिज्जइ, नितिए अग्ग-पिंडे दिज्जइ, नितिए भाए दिज्जइ, नितिए अवड्ढभाए दिज्जइ–तहप्पगाराइं कुलाइं नितियाइं नितिउमाणाइं, नो भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए।

Translated Sutra: गृहस्थ घरमें आहार – प्राप्ति की अपेक्षा से प्रवेश करने के ईच्छुक साधु साध्वी ऐसे कुलों को जान लें कि इन कुलों में नित्यपिण्ड दिया जाता है, नित्य अग्रपिण्ड दिया जाता है, प्रतिदिन भाग या उपार्द्ध भाग दिया जाता है; इस प्रकार के कुल, जो नित्य दान देते हैं, जिनमें प्रतिदिन भिक्षाचरों का प्रवेश होता है, ऐसे कुलों में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 344 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अट्ठमिपोसहिएसु वा, अद्धमासिएसु वा, मासिएसु वा, दोमासिएसु वा, तिमासिएसु वा, चाउमासिएसु वा, पंचमासिएसु वा, छमासिएसु वा उउसु वा, उउसंधीसु वा, उउपरियट्टेसु वा, बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगे एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, ‘तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए’ ‘चउहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए’, कुंभीमुहाओ वा कलोवाइओ वा सण्णिहि-‘सण्णिचयाओ वा’ परिएसिज्जमाणे पेहाए– तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार – प्राप्ति के निमित्त प्रविष्ट होने पर अशन आदि आहार के विषय में यह जाने कि यह आहार अष्टमी पौषधव्रत के उत्सवों के उपलक्ष्य में तथा अर्द्धमासिक, मासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, चातुर्मासिक, पंचमासिक और षाण्मासिक उत्सवों के उपलक्ष्य में तथा ऋतुओं, ऋतुसन्धियों एवं ऋतु
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 345 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जाइं पुण कुलाइं जाणेज्जा, तं जहा–उग्ग-कुलाणि वा, ‘भोग-कुलाणि’ वा, राइण्ण-कुलाणि वा, खत्तिय-कुलाणि वा, इक्खाग-कुलाणि वा, हरिवंस-कुलाणि वा, एसिय-कुलाणि वा, वेसिय-कुलाणि वा, गंडाग-कुलाणि वा, कोट्टाग-कुलाणि वा, गामरक्खकुलाणि वा, पोक्कसालिय-कुलाणि वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु कुलेसु अदुगुंछिएसु अगरहिएसु, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार प्राप्ति के लिए प्रविष्ट होने पर जिन कुलों को जाने वे इस प्रकार हैं – उग्रकुल, भोगकुल, राज्यकुल, क्षत्रियकुल, इक्ष्वाकुकुल, हरिवंशकुल, गोपालादिकुल, वैश्यकुल, नापित – कुल, बढ़ई – कुल, ग्रामरक्षककुल या तन्तुवायकुल, ये और इसी प्रकार के और भी कुल, जो अनिन्दित और अगर्हित हों,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 346 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएसु वा, पिंड-नियरेसु वा, इंद-महेसु वा, खंद-महेसु वा, रुद्द-महेसु वा, मुगुंद-महेसु वा, भूय -महेसु वा, जक्ख-महेसु वा, नाग-महेसु वा, थूभ-महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग-महेसु वा, दह-महेसु वा, णई-महेसु वा, सर-महेसु वा, सागर-महेसु वा, आगर-महेसु वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु...... बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होते समय वह जाने कि यहाँ मेला, पितृपिण्ड के निमित्त भोज तथा इन्द्र – महोत्सव, स्कन्ध, रुद्र, मुकुन्द, भूत, यक्ष, नाग – महोत्सव तथा स्तूप, चैत्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, कूप, तालाब, हृद, नदी, सरोवर, सागर या आकार सम्बन्धी महोत्सव एवं अन्य इसी प्रकार के विभिन्न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 347 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए संखडिं नच्चा संखडि-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा–पाईणं संखडिं नच्चा पडीणं गच्छे, अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं नच्चा पाईणं गच्छे, अणाढायमाणे, दाहिणं संखडिं नच्चा उदीणं गच्छे, अणाढायमाणे, उदीणं संखडिं नच्चा दाहिणं गच्छे, अणाढायमाणे। जत्थेव वा संखडी सिया, तं जहा–गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा ‘सन्निवेसंसि वा रायहाणिंसि वा’–संखडिं संखडि-पडियाए णोअभिसं-धारेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं–संखडिं संखडि-पडियाए अभिसंधारेमाणे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी अर्ध योजन की सीमा से पर संखड़ि हो रही है, यह जानकर संखड़ि में निष्पन्न आहार लेने के निमित्त जाने का विचार न करे। यदि भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि पूर्व दिशा में संखड़ि हो रही है, तो वह उसके प्रति अनादर भाव रखते हुए पश्चिम दिशा को चला जाए। यदि पश्चिम दिशा में संखड़ि जाने तो उसके प्रति अनादर भाव
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 348 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ अन्नतरं संखडिं आसित्ता पिबित्ता छड्डेज्ज वा, वमेज्ज वा, भुत्ते वा से नो सम्मं परिणमेज्जा, अन्नतरे वा से दुक्खे रोयातंके समुपज्जेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–

Translated Sutra: कदाचित्‌ भिक्षु अथवा अकेला साधु किसी संखड़ि में पहुँचेगा तो वहाँ अधिक सरस आहार एवं पेय खाने – पीने से उसे दस्त लग सकता है, या वमन हो सकता है अथवा वह आहार भलीभाँति पचेगा नहीं; कोई भयंकर दुःख या रोगांतक पैदा हो सकता है। इसलिए केवली भगवान न कहा – ‘यह (संखड़िगमन) कर्मों का उपादान कारण है।’
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 349 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु भिक्खू गाहावइहिं वा, गाहावइणीहिं वा, परिवायएहिं वा, परिवाइयाहिं वा, एगज्झ सद्धं सोडं पाउं भो! वतिमिस्सं हुरत्था वा, उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, तमेव उवस्सयं सम्मिस्सि-भावमावज्जेज्जा। अन्नमण्णे वा से मत्ते विप्परियासियभूए इत्थिविग्गहे वा, किलीवे वा, तं भिक्खुं उवसंकमित्तु बूया–आउसंतो! समणा! अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, राओ वा, वियाले वा, गामधम्म-णियंतियं कट्टु, रहस्सियं मेहुणधम्म-परियारणाए आउट्टामो। तं चेगइओ सातिज्जेज्जा। अकरणिज्जं चेयं संखाए। एते आयाणा संति संचिज्जमाणा, पच्चावाया भवंति। तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा-संखडिं

Translated Sutra: यहाँ भिक्षु गृहस्थों – गृहस्थपत्नीयों अथवा परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ एकचित्त व एकत्रित होकर नशीला पेय पीकर बाहर नीकलकर उपाश्रय ढूँढ़ने लगेगा, जब वह नहीं मिलेगा, तब उसी को उपाश्रय समझकर गृहस्थ स्त्री – पुरुषों व परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ ही ठहर जाएगा। उनके साथ धुलमिल जाएगा। वे गृहस्थ – गृहस्थपत्नीयाँ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 350 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अन्नयरं संखडिं सोच्चा निसम्म संपरिहावइ उस्सुय-भूयेणं अप्पाणेणं। धुवा संखडी। णोसंचाएइ तत्थ इतरेतरेहिं कुलेहिं सामुदानियं एसियं, वेसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेत्तए। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थितरेतरेहिं कुलेहिं सामुदानियं एसियं, वेसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी पूर्व – संखड़ि या पश्चात्‌ – संखड़ि में से किसी एक के विषय में सूनकर मन में विचार करके स्वयं बहुत उत्सुक मन से जल्दी – जल्दी जाता है। क्योंकि वहाँ निश्चित ही संखड़ि है। वह भिक्षु उस संखड़ि वाले ग्राम में संखड़ि से रहित दूसरे – दूसरे घरों से एषणीय तथा वेश से लब्ध उत्पादनादि दोषरहित भिक्षा से
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 351 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणज्जा–गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा। इमंसि खलु गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा, सन्निवेसंसि वा, रायहाणिंसि वा, संखडी सिया। तं पि य गामं वा जाव रायहाणिं वा, ‘संखडि-पडियाए’ नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं–आइण्णावमाणं संखडिं अणुपविस्समाणस्स–पाएण वा पाए अक्कंतपुव्वे भवइ, हत्थेण वा हत्थे संचालियपुव्वे भवइ, पाएण वा पाए आवडियपुव्वे भवइ, सीसेण वा सीसे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि अमुक गाँव, नगर यावत्‌ राजधानी में संखड़ि है। तो संखड़ि को (संयम को खण्डित करने वाली जानकर) उस गाँव यावत्‌ राजधानी में संखड़ि की प्रतिज्ञा से जाने का विचार भी न करे। केवली भगवान कहते हैं – यह अशुभ कर्मों के बन्ध का कारण है। चरकादि भिक्षाचरों की भीड़ से भरी – आकीर्ण – और हीन – अवमा ऐसी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 352 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा एसणिज्जे सिया, अणेसणिज्जे सिया– विचिगिच्छ समावण्णेणं अप्पाणेणं असमाहडाए लेस्साए, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: भिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि यह आहार एषणीय है या अनैषणीय ? यदि उसका चित्त विचिकित्सा युक्त हो, उसकी लेश्या अशुद्ध आहार की रही हो, तो वैसे आहार मिलने पर भी ग्रहण न करे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 353 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे सव्वं भंडगमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया विहार-भूमिं वा वियार-भूमिं वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहार-भूमिं वा वियार-भूमिं वा निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।

Translated Sutra: जो भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होना चाहता है, वह अपने सब धर्मोपकरण लेकर आहार – प्राप्ति उद्देश्य से गृहस्थ के घर में प्रवेश करे या नीकले। साधु या साध्वी बाहर मलोत्सर्गभूमि या स्वाध्यायभूमि में नीकलते या प्रवेश समय अपने सभी धर्मोपकरण लेकर वहाँ से नीकले या प्रवेश करे। एक ग्राम से दूसरे ग्राम
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 354 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहं पुण एवं जाणेज्जा–तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा महियं सण्णिवयमाणिं पेहाए, महावाएण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छं संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पेहाए, से एवं नच्चा नो सव्वं भंडगमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, निक्खमेज्ज वा। बहिया विहार-भूमिं वा वियार-भूमिं वा पविसेज्ज वा, निक्खमेज्ज वा, गामाणुगामं वा दूइज्जेज्जा।

Translated Sutra: यदि वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि बहुत बड़े क्षेत्र में वर्षा बरसती है, विशाल प्रदेश में अन्धकार रूप धुंध पड़ती दिखाई दे रही है, अथवा महावायु से धूल उड़ती दिखाई देती है, तिरछे उड़ने वाले या त्रस प्राणी एक साथ मिलकर गिरते दिखाई दे रहे हैं, तो वह ऐसा जानकर सब धर्मोपकरण साथ में लेकर आहार के निमित्त गृहस्थ के घर में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 355 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जाइं पुण कुलाइं जाणेज्जा, तं जहा–खत्तियाण वा, राईण वा, कुराईण वा, रायपे-सियाण वा, रायवंसट्ठियाण वा, अंतो वा बहिं वा गच्छंताण वा, सन्निविट्ठाण वा, निमंतेमानाण वा, अनिमंतेमानाण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। [एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए। –त्ति बेमि।]

Translated Sutra: भिक्षु एवं भिक्षुणी इन कुलों को जाने, जैसे कि चक्रवर्ती आदि क्षत्रियों के कुल, उनसे भिन्न अन्य राजाओं के कुल, कुराजाओं के कुल, राजभृत्य दण्डपाशिक आदि के कुल, राजा के मामा, भानजा आदि सम्बन्धीयों के कुल, इन कुलों के घर से, बाहर या भीतर जाते हुए, खड़े हुए या बैठे हुए, निमंत्रण किये जान पर या न किये जाने पर, वहाँ से प्राप्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-४ Hindi 356 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–मंसादियं वा, मच्छादियं वा, मंसं-खलं वा, मच्छ-खलं वा, आहेणं वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं वा हीरमाणं पेहाए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुओसा बहुउदया बहुउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगा, बहवे तत्थ समण-माहण-अतिथि-किवण-वणीमगा उवागता उवागमिस्संति, तत्थाइण्णावित्ती। नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परिय-ट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए। सेवं नच्चा तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा-संखडिं वा, संखडिं संखडि-पडियाए नो अभिसंधारेज्ज गमणाए। से भिक्खू

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते समय भिक्षु या भिक्षुणी यह जो कि इस संखड़ि के प्रारम्भ में माँस या मत्स्य पकाया जा रहा है, अथवा माँस या मत्स्य छीलकर सूखाया जा रहा है; विवाहोत्तर काल में नववधू के प्रवेश या पितृगृह में वधू के पुनः प्रवेश के उपलक्ष्य में भोज हो रहा है, या मृतक – सम्बन्धी भोज हो रहा है, अथवा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-४ Hindi 357 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे सेज्जं पुण जाणेज्जा–खीरिणीओ गावीओ खीरिज्जमाणीओ पेहाए, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उव-संखडिज्जमाणं पेहाए, पुरा अप्पजूहिए, सेवं नच्चा नो गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अनावायमसंलोए चिट्ठेज्जा। अह पुण एवं जाणेज्जा–खोरिणीओ गावीओ खीरियाओ पेहाए, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्ख-डियं पेहाए, पुरा पजूहिए, से एवं नच्चा तओ संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा।

Translated Sutra: भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करना चाहते हों; यह जान जाए कि अभी दुधारू गायों को दुहा जा रहा है तथा आहार अभी तैयार किया जा रहा है, उसमें से किसी दूसरे को दिया नहीं गया है। ऐसा जानकर आहार प्राप्ति की दृष्टि से न तो उपाश्रय से नीकले और न ही उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। किन्तु वह भिक्षु
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-४ Hindi 358 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु– ‘समाणे वा, वसमाणे’ वा, गामाणुगामं दूइज्जमाणे– ‘खुड्डाए खलु अयं गामे, संणिरुद्धाए, नो महालए, से हंता! भयंतारो! बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियाए वयह।’ संति तत्थेगइयस्स भिक्खुस्स पुरे-संथुया वा, पच्छा-संथुया वा परिवसंति, तं जहा–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तहप्प-गाराइं कुलाइं पुरे-संथुयाणि वा, पच्छा-संथुयाणि वा, पुव्वामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि अवि य इत्थ लभिस्सामि–पिंडं वा, लोयं वा, खीरं वा, दधिं वा, नवनीयं वा, घयं वा, गुलं वा, तेल्लं वा,

Translated Sutra: जंघादि बल क्षीण होने से एक ही क्षेत्र में स्थिरवास करने वाले अथवा मासकल्प विहार करने वाले कोई भिक्षु, अतिथि रूप से अपने पास आए हुए, ग्रामानुग्राम विचरण करने वाले साधुओं से कहते हैं – पूज्यवरो ! यह गाँव बहुत छोटा है, बहुत बड़ा नहीं है, उसमें भी कुछ घर सूतक आदि के कारण रूके हुए हैं। इसलिए आप भिक्षाचरी के लिए बाहर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-५ Hindi 359 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–अग्ग-पिंडं उक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं निक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं हीरमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं परिभाइज्जमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं परिभुज्जमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं परिट्ठवेज्जमाणं पेहाए, पुरा असिनाइ वा, अवहाराइ वा, पुरा जत्थण्णे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमगा खद्धं-खद्धं उवसंकमंति–से हंता अहमवि खद्धं उवसंकमामि। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने पर यह जाने कि अग्रपिण्ड नीकाला जाता हुआ, रखा जाता दिखाई दे रहा है, (कहीं) अग्रपिण्ड ले जाया जाता, बाँटा जाता, सेवन किया जाता दिख रहा है, कहीं वह फैंका या डाला जाता दृष्टिगोचर हो रहा है तथा पहले, अन्य श्रमण – ब्राह्मणादि भोजन कर गए हैं एवं कुछ भिक्षाचर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-५ Hindi 360 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे–अंतरा से वप्पाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा– सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा, ‘पक्खलेज्ज वा’, पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, ‘पक्खलमाणे वा’, पवडमाणे वा, तत्थ से काये उच्चारेण वा, पासवणेण वा, खेलेण वा, सिंघाणेण वा, वंतेण वा, पित्तेण वा, पूएण वा, सुक्केण वा, सोणिएण वा उवलित्ते सिया। तहप्पगारं कायं नो अनंतरहियाए पुढवीए, नो ससिणिद्धाए पुढवीए, नो ससरक्खाए पुढवीए, नो चित्तमंताए सिलाए, नो चित्तमंताए

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के यहाँ आहारार्थ जाते समय रास्ते के बीच में ऊंचे भू – भाग या खेत की क्यारियाँ हों या खाईयाँ हों, अथवा बाँस की टाटी हो, या कोट हो, बाहर के द्वार (बंद) हों, आगल हों, अर्गला – पाशक हों तो उन्हें जानकर दूसरा मार्ग हो तो संयमी साधु उसी मार्ग से जाए, उस सीधे मार्ग से न जाए; क्योंकि केवली भगवान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-५ Hindi 361 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी जिस मार्ग से भिक्षा के लिए जा रहे हों, यदि वे वह जाने की मार्ग में सामने मदोन्मत्त साँड़ है, या भैंसा खड़ा है, इसी प्रकार दुष्ट मनुष्य, घोड़ा, हाथी, सिंह, बाघ, भेड़िया, चीता, रींछ, व्याघ्र, अष्टापद, सियार, बिल्ला, कुत्ता, महाशूकर, लोमड़ी, चित्ता, चिल्लडक और साँप आदि मार्ग में खड़े या बैठे हैं, ऐसी स्थिति में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-५ Hindi 362 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलस्स दुवार-बाहं कंटक-बोंदियाए परिपिहियं पेहाए, तेसिं पुव्वामेव उग्गहं अणणुण्णविय अपडिलेहिय अपमज्जिय णोअवंगुणिज्ज वा, पविसेज्ज वा, निक्खमेज्ज वा। तेसिं पुव्वामेव उग्गहं अणुण्णविय, पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव अवंगुणिज्जे वा, पविसेज्ज वा, निक्खमेज्ज वा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी गृहस्थ के घर का द्वार भाग काँटों की शाखा से ढँका हुआ देखकर जिनका वह घर, उनसे पहले अवग्रह माँगे बिना, उसे अपनी आँखों से देखे बिना और प्रमार्जित किये बिना न खोले, न प्रवेश करे और न उसमें से नीकले; किन्तु जिनका घर है, उनसे पहले अवग्रह माँग कर अपनी आँखों से देखकर और प्रमार्जित करके उसे खोले, उसमें प्रवेश
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-५ Hindi 363 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–समणं वा, माहणं वा, गामपिंडोलगं वा, अतिहिं वा पुव्वपविट्ठं पेहाए नो तेसिं संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठेज्जा। ‘केवली बूया आयाणमेयं–पुरा पेहाए तस्सट्ठाए परो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु दलएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तेसिं संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठेज्जा।’से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अनावायमसंलोए चिट्ठेज्जा। से से परो अनावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु दलएज्जा, सेयं वदेज्जा–आउसंतो

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करते समय जाने कि बहुत – से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, दरिद्र, अतिथि और याचक आदि उस गृहस्थ के यहाँ पहले से ही हैं, तो उन्हें देखकर उनके सामने या जिस द्वार से वे नीकलते हैं, उस द्वार पर खड़ा न हो। केवली भगवान कहते हैं यह कर्मों का उपादान है कारण है। पहली ही
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-५ Hindi 364 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–समणं वा, माहणं वा, गाम-पिंडोलगं वा, अतिहिं वा पुव्वपविट्ठं पेहाए णोउवाइक्कम्म पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा। से त्तमायाए एगंतमव-क्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अनावायमसंलोए चिट्ठेज्जा। अहं पुणेवं जाणेज्जा–पडिसेहिए व दिन्ने वा, तओ तम्मि नियत्तिए। संजयामेव पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि यह जाने कि वहाँ शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, ग्रामपिण्डोलक या अतिथि आदि पहले से प्रविष्ट हैं, तो यह देख वह उन्हें लाँघकर उस गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे और न ही दाता से आहारादि की याचना करे परन्तु एकांत स्थान में चला जाए, वहाँ जाकर कोई न आए – जाए तथा न देखे, इस प्रकार से खड़ा रहे। जब यह जान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 365 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–रसेसिनो बहवे पाणा, घासेसणाए संथडे सण्णिवइए पेहाए, तं जहा–कुक्कुड-जाइयं वा, सूयर-जाइयं वा, अग्गपिंडंसि वा वायसा संथडा सन्निवइया पेहाए– सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी आहार के निमित्त जा रहे हों, उस समय मार्ग में यह जाने कि रसान्वेषी बहुत – से प्राणी आहार के लिए एकत्रित होकर (किसी पदार्थ पर) टूट पड़े हैं, जैसे कि – कुक्कुट जाति के जीव, शूकर जाति के जीव, अथवा अग्र – पिण्ड पर कौए झुण्ड के झुण्ड टूट पड़े हैं; इन जीवों को मार्ग में आगे देखकर संयत साधु या साध्वी अन्य
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 366 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे– नो गाहावइ-कुलस्स ‘दुवार-साहं’ अवलंबिय-अवलंबिय चिट्ठेज्जा। नो गाहावइ-कुलस्स दगच्छड्डणमत्ताए चिट्ठेज्जा। नो गाहावइ-कुलस्स चंदणिउयए चिट्ठेज्जा। नो गाहावइ-कुलस्स सिनाणस्स वा, वच्चस्स वा, संलोए सपडिदुवारे चिट्ठेज्जा। नो गाहावइ-कुलस्स आलोयं वा, थिग्गलं वा, संधिं वा, दग-भवणं वा बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय, अंगुलियाए वा उद्दिसिय-उद्दिसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्झाएज्जा। नो गाहावइं अंगुलियाए उद्दिसिय-उद्दिसिय जाएज्जा। नो गाहावइं अंगुलियाए चालिय-चालिय जाएज्जा। नो गाहावइं अंगुलियाए

Translated Sutra: आहारादि के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी उसके घर के दरवाजे की चौखट पकड़कर खड़े न हों, न उस गृहस्थ के गंदा पानी फेंकने के स्थान या उनके हाथ – मुँह धोने या पीने के पानी बहाये जाने की जगह खड़े न हों और न ही स्नानगृह, पेशाबघर या शौचालय के सामने अथवा निर्गमन – प्रवेश द्वार पर खड़े हों। उस घर के झरोखे आदि को, मरम्मत की हुई
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 367 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह तत्थ कंचि भूंजमाणं पेहाए, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अन्नयरं भोयणजायं? से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दव्विं वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा, मा एयं तुमं हत्थं वा, मत्तं वा, दव्विं वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा, पहोएहि वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि। से

Translated Sutra: गृहस्थ के यहाँ आहार के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी किसी व्यक्ति को भोजन करते हुए देखे, जैसे कि – गृहस्वामी, उसकी पत्नी, उसकी पुत्री या पुत्र, उसकी पुत्रवधू या गृहपति के दास – दासी या नौकर – नौकरानियों में से किसी को, पहले अपने मन में विचार करके कहे – आयुष्मन्‌ गृहस्थ इसमें से कुछ भोजन मुझे दोगे ? उस भिक्षु के ऐसा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 368 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिहुयं वा, बहुरयं वा, भज्जियं वा, मंथुं वा, चाउलं वा, चाउलपलंबं वा, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमत्ताए सिलाए, चित्तमत्ताए लेलुए, कोलावसंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय मक्कडासंताणाए कोट्टेसु वा, कोट्टिंति वा, कोट्टिस्संति वा, उप्पणिंसु वा, उप्पणिंति वा, उप्पणिस्संति वा–तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउपलंबं वा–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट साधु – साध्वी को यह ज्ञात हो जाए कि शालि – धान, जौ, गेहूँ आदि में सचित्तरज बहुत है, गेहूँ आदि अग्नि में भूँजे हुए हैं, किन्तु वे अर्धपक्व हैं, गेहूँ आदि के आटे में तथा कुटे हुए धान में भी अखण्ड दाने हैं, कण – सहित चावल के लम्बे दाने सिर्फ एक बार भुने हुए या कुटे हुए हैं, अतः असंयमी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 369 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–बिलं वा लोणं, उब्भियं वा लोणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडा संताणाए भिंदिसु वा, भिंदंति वा, भिंदिस्संति वा, रुचिंसु वा, रुचिंति वा, रुचिस्संति वा–बिल वा लोणं, उब्भियं वा लोणं– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु – साध्वी यदि यह जाने कि असंयमी गृहस्थ किसी विशिष्ट खान में उत्पन्न नमक या समुद्र के किनारे खार और पानी के संयोग से उत्पन्न उद्‌भिज्ज लवण के सचित्त शिला, सचित्त मिट्टी के ढेले पर, घुन लगे लक्कड़ पर या जीवाधिष्ठित पदार्थ पर अण्डे, प्राण, हरियाली, बीज या मकड़ी के जाले सहित शिला
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 370 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिनिक्खित्तं, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–अस्संजए भिक्खु-पडियाए उस्सिंचमाणे वा, निस्सिंचमाणे वा, आमज्जमाणे वा, पमज्ज-माणे वा, ओयारेमाणे वा, उव्वत्तमाणे वा, अगणिजीवे हिंसेज्जा। अह भिक्खूणं पव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे, तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणि-निक्खित्तं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते

Translated Sutra: गृहस्थ के घर आहार के लिए प्रविष्ट साधु – साध्वी यदि यह जान जाए कि अशनादि आहार अग्नि पर रखा हुआ है, तो उस आहार को अप्रासुक – अनैषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण न करे। केवली भगवान कहते हैं – यह कर्मों के आने का मार्ग है, क्योंकि असंयमी गृहस्थ साधु के उद्देश्य से अग्नि पर रखे हुए बर्तन में से आहार को नीकालता हुआ,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-७ Hindi 371 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा खंधंसि वा, थंभंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि उवनिक्खित्ते सिया–तहप्पगारं मालोहडं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुय अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–अस्संजए भिक्खु-पडियाए पीढं वा, फलगं वा, णिस्सेणिं वा, उदूहलं वा, अवहट्टु उस्स-विय आरुहेज्जा। से तत्थ दुरुहमाणे पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, पवडमाणे वा, हत्थं वा, पायं

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि अशनादि चतुर्विध आहार गृहस्थ के यहाँ भींत पर, स्तम्भ पर, मंच पर, घर के अन्य ऊपरी भाग पर, महल पर, प्रासाद आदि की छत पर या अन्य उस प्रकार के किसी ऊंचे स्थान पर रखा हुआ है, तो इस प्रकार के ऊंचे स्थान से उतारकर दिया जाता अशनादि चतुर्विध आहार अप्रासुक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-७ Hindi 372 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा मट्टिओलित्तं–तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–अस्संजए भिक्खू-पडियाए मट्टिओलित्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उब्भिंदमाणे पुढवीकायं समारंभेज्जा, तह तेउ-वाउ-वणस्सइ-तसकायं समारंभेज्जा, पुनरवि ओलिंपमाणे पच्छाकम्मं करेज्जा। अह भिक्खूण पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो जं तहप्पगारं मट्टिओलित्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं

Translated Sutra: साधु या साध्वी यह जाने कि वहाँ अशनादि आहार मिट्टी से लीपे हुए मुख वाले बर्तन में रखा हुआ है तो इस प्रकार का आहार प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। केवली भगवान कहते हैं – यह कर्म आने का कारण है। क्योंकि असंयत गृहस्थ साधु को आहार देने के लिए मिट्टी से लीपे आहार के बर्तन का मुँह खोलता हुआ पृथ्वीकाय का समारम्भ करेगा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-७ Hindi 373 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अच्चुसिणं, अस्सजए भिक्खु-पडियाए सूवेण वा, विहुवणेण वा, तालियंटेण वा, ‘पत्तेण वा’, साहाए वा, साहा-भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमेज्ज वा, वीएज्ज वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो! त्ति वा, भगिनि! त्ति वा मा एयं तुमं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अच्चुसिणं सूवेण वा, विहुवणेण वा, तालियंटेण वा, पत्तेण वा, साहाए वा, साहा-भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमाहि

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी को यह ज्ञात हो जाए कि साधु को देने के लिए यह अत्यन्त उष्ण आहार असंयत गृहस्थ सूप से, पँखे से, ताड़पत्र, खजूर आदि के पत्ते, शाखा, शाखाखण्ड से, मोर के पंख से अथवा उससे बने हुए पंखे से, वस्त्र से, वस्त्र के पल्ले से, हाथ से या मुँह से, पँखे आदि से हवा करके ठंडा करके देने
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-७ Hindi 375 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण ‘पाणग-जायं’ जाणेज्जा, तं जहा–उस्सेइम वा, संसेइम वा, चाउलोदगं वा–अन्नयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं अहुणा-घोयं, अणंबिल, अव्वो-क्कंतं, अपरिणयं, अविद्धत्थं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। अह पुण एव जाणेज्जा–चिराधोयं, अंबिलं, वुक्कंतं, परिणयं, विद्धत्थं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण ‘पाणग-जायं’ जाणेज्जा, तं जहा–तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि पानी के इन प्रकारों को जाने – जैसे कि – आटे के हाथ लगा हुआ पानी, तिल धोया हुआ पानी, चावल धोया हुआ पानी, अथवा अन्य किसी वस्तु का इसी प्रकार का तत्काल धोया हुआ पानी हो, जिसका स्वाद चलित – (परिवर्तित) न हुआ हो, जिसका रस अतिक्रान्त न हुआ (बदला न) हो, जिसके वर्ण आदि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-७ Hindi 376 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण ‘पाणग-जायं’ जाणेज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुए, कोलावसंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा सताणए ओद्धट्टु निक्खित्ते सिया। असंजए भिक्खु-पडियाए उदउल्लेण वा, ससिणिद्धेण वा, सकसाएण वा, मत्तेण वा, सीओदएण वा संभोएत्ता आहट्टु दलएज्जा– तहप्पगारं पाणग-जायं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं

Translated Sutra: गृहस्थ के यहाँ पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि इस प्रकार का पानी जाने कि गृहस्थ ने प्रासुक जल को व्यवधान रहित सचित्त पृथ्वी पर यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त पदार्थ पर रखा है, अथवा सचित्त पदार्थ से युक्त बर्तन से नीकालकर रखा है। असंयत गृहस्थ भिक्षु को देने के उद्देश्य से सचित्त जल टपकते हुए अथवा जरा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-८ Hindi 377 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा–अंब-पाणगं वा, अंबाडग-पाणगं वा, कविट्ठ-पाणगं वा, मातुलिंग-पाणगं वा, मुद्दिया-पाणगं वा, दाडिम-पाणगं वा, खज्जूर-पाणगं वा, णालिएर-पाणगं वा, करीर-पाणगं वा, कोल-पाणगं वा, आमलग-पाणगं वा, चिंचा-पाणगं वा–अन्नयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं सअट्ठियं सकणुयं सबीयगं अस्संजए भिक्खु-पडियाए छब्बेण वा, दूसेण वा, वालगेण वा, आवीलियाण वा, परिपीलियाण वा, परिस्सावियाण आहट्टु दलएज्जा–तहप्पगारं पाणग-जायं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संती नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि इस प्रकार का पानक जाने, जैसे कि आम्रफल का पानी, अंबाड़क, कपित्थ, बीजौरे, द्राक्षा, दाड़िम, खजूर, नारियल, करीर, बेर, आँवले अथवा इमली का पानी, इसी प्रकार का अन्य पानी है, जो कि गुठली सहित है, छाल आदि सहित है, या बीज सहित है और कोई असंयत गृहस्थ साधु के निमित्त बाँस की
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-८ Hindi 378 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा–अन्न-गंधाणि वा, पाण-गंधाणि वा, सुरभि-गंधाणि वा अग्घाय-अग्घाय–से तत्थ आसाय -पडियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने अहोगंधो-अहोगंधो नो गंधमाधाएज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी आहार प्राप्ति के लिए जाते पथिक – गृहों में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या परि – व्राजकों के मठों में अन्न की, पेय पदार्थ की, तथा कस्तूरी इत्र आदि सुगन्धित पदार्थों की सौरभ सूँघ कर उस सुगन्ध के आस्वादन की कामना से उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रस्त एवं आसक्त होकर – उस गन्ध की सुवास
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-८ Hindi 379 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–सालुयं वा, विरालियं वा, सासवणालियं वा–अन्नतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिप्पलिं वा, पिप्पलि-चुण्णं वा, मिरियं वा, मिरिय-चुण्णं वा, सिंगबेरं वा, सिंगबेर-चुण्णं वा–अन्नतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ कमलकन्द, पालाशकन्द, सरसों की बाल तथा अन्य इसी प्रकार का कच्चा कन्द है, जो शस्त्र – परिणत नहीं हुआ है, ऐसे कन्द आदि को अप्रासुक जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। यदि यह जाने के वहाँ पिप्पली, पिप्पली का चूर्ण, मिर्च या मिर्च का चूर्ण, अदरक या अदरक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-८ Hindi 380 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा–आमडागं वा, पूइपिण्णागं वा, महुं वा, ‘मज्जं वा’, सप्पिं वा, खोलं वा पुराणगं। एत्थ पाणा अणुप्पसूया, एत्थ पाणा जाया, एत्थ पाणा संवुड्ढा, एत्थ पाणा अवुक्कंता, एत्थ पाणा अपरिणया, एत्थ पाणा अविद्धत्था–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि जाने कि वहाँ भाजी है; सड़ी हुई खली है, मधु, मद्य, घृत और मद्य के नीचे का कीट बहुत पुराना है तो उन्हें ग्रहण न करे, क्योंकि उनमें प्राणी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें प्राणी जन्मते हैं, संवर्धित होते हैं, इनमें प्राणियों का व्युत्क्रमण नहीं होता, ये प्राणी शस्त्र – परिणत नहीं होते, न ये प्राणी विध्वस्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-८ Hindi 381 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–उच्छुमेरगं वा, अंक-करेलुयं वा, करेरुगं वा, सिंघाडगं वा, पूतिआलुगं वा–अन्नयरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–उप्पलं वा, उप्पल-नालं वा, भिसं वा, भिस-मुनालं वा, पोक्खलं वा, पोक्खल-विभंगं वा–अन्नतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ इक्षुखण्ड – है, अंककरेलु, निक्खा – रक, कसेरू, सिंघाड़ा एवं पूतिआलुक नामक वनस्पति है, अथवा अन्य इसी प्रकार की वनस्पति विशेष है, जो अपक्व तथा अशस्त्र – परिणत है, तो उसे अप्रासुक और अनैषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-८ Hindi 382 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–अग्ग-बीयाणि वा, मूल-बीयाणि वा, खंध-बीयाणि वा, पोर-बीयाणि वा, अग्ग-जायाणि वा, मूल-जायाणि वा, खंध-जायाणि वा, पोर-जायाणि वा, नन्नत्थ तक्कलि-मत्थएण वा, तक्कलि-सीसेण वा, नालिएरि-मत्थएण वा, खज्जूरि-मत्थएण वा, ताल-मत्थएण वा–अन्नयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थ-परिणयं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–उच्छुं वा काणगं अंगारियं समिस्सं विगदूमियं, वेत्तग्गं वा, कंदलीऊसुयं वा–अन्नयरं

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ अग्रबीज वाली, मूलबीज वाली, स्कन्धबीज वाली तथा पर्वबीज वाली वनस्पति है एवं अग्रजात, मूलजात, स्कन्धजात तथा पर्वजात वनस्पति है, तथा कन्दली का गूदा कन्दली का स्तबक, नारियल का गूदा, खजूर का गूदा, ताड़ का गूदा तथा अन्य इसी प्रकार की कच्ची और अशस्त्र – परिणत वनस्पति है, उसे अप्रासुक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-९ Hindi 383 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणाओ धम्माओ, नो खलु एएसिं कप्पइ आहाकम्मिए असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा, पायत्तए वा। सेज्जं पुण इमं अम्हं अप्पनो अट्ठाए णिट्ठियं, तं जहा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सव्वमेय समणाणं निसिरामो, अवियाइं वयं पच्छा वि अप्पनो अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं

Translated Sutra: यहाँ पूर्व में, पश्चिम में, दक्षिण में या उत्तर दिशा में कईं सद्‌गृहस्थ, उनकी गृहपत्नीयाँ, उनके पुत्र – पुत्री, उनकी पुत्रवधू, उनकी दास – दासी, नौकर – नौकरानियाँ होते हैं, वे बहुत श्रद्धावान्‌ होते हैं और परस्पर मिलने पर इस प्रकार बातें करते हैं – ये पूज्य श्रमण भगवान शीलवान्‌, व्रतनिष्ठ, गुणवान्‌, संयमी, आस्रवों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-९ Hindi 384 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, ‘समाणे वा, वसमाणे वा’, गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा। इमंसि खलु गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा, सन्निवेसंसि वा, रायहाणिंसि वा– संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा, पच्छासंथुया वा परिवसंति, तं जहा–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तहप्पगाराइं

Translated Sutra: एक ही स्थान पर स्थिरवास करनेवाले या ग्रामानुग्राम विचरण करनेवाले साधु या साध्वी किसी ग्राम में यावत्‌ राजधानीमें भिक्षाचर्या के लिए जब गृहस्थों के यहाँ जाने लगे, तब यदि वे जान जाए कि इस गाँव यावत्‌ राजधानी में किसी भिक्षु के पूर्व – परिचित या पश्चात्‌ – परिचित गृहस्थ, गृहस्थपत्नी, उसके पुत्र – पुत्री, पुत्रवधू,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-९ Hindi 385 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–मंसं वा मच्छं वा भज्जिज्जमाणं पेहाए, तेल्लपूयं वा आएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए, नो खद्धं-खद्धं उवसंकमित्तु ओभासेज्जा, नन्नत्थ गिलाणाए।

Translated Sutra: गृहस्थ के घरमें साधु – साध्वी के प्रवेश करने पर उसे यह ज्ञात हो जाए कि वहाँ किसी अतिथि के लिए माँस या मत्स्य भूना जा रहा है, तथा तेल के पुए बनाए जा रहे हैं, इसे देखकर वह अतिशीघ्रता से पास में जाकर याचना न करे। रुग्ण साधु के लिए अत्यावश्यक हो तो किसी पथ्यानुकूल सात्विक आहार की याचना कर सकता है।
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