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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 8 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अनुदिसाओ वा अनुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ सहेति।

Translated Sutra: यह पुरुष, जो अपरिज्ञातकर्मा है वह इन दिशाओं व अनुदिशाओं में अनुसंचरण करता है। अपने कृत – कर्मों के साथ सब दिशाओं/अनुदिशाओं में जाता है। अनेक प्रकार की जीव – योनियों को प्राप्त होता है। वहाँ विविध प्रकार के स्पर्शों का अनुभव करता है। इस सम्बन्धमें भगवान्‌ ने परिज्ञा विवेक का उपदेश किया है। सूत्र – ८–१०
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 42 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अड्ढं अहं तिरियं पाईणं ‘पासमाणे रूवाइं पासति’, ‘सुणमाणे सद्दाइं सुणेति’।

Translated Sutra: ऊंचे, नीचे, तीरछे, सामने देखने वाला रूपों को देखता है। सूनने वाला शब्दों को सूनता है। ऊंचे, नीचे, तीरछे, विद्यमान वस्तुओं में आसक्ति करने वाला, रूपों में मूर्च्छित होता है, शब्दों में मूर्च्छित होता है। यह (आसक्ति) ही संसार है। जो पुरुष यहाँ (विषयों में) अगुप्त है। इन्द्रिय एवं मन से असंयत है, वह आज्ञा – धर्म –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 21 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पणया वीरा महावीहिं।

Translated Sutra: वीर पुरुष महापथ के प्रति प्रणत – अर्थात्‌ समर्पित होते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 35 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे पमत्ते गुणट्ठिए, से हु दंडे पवुच्चति।

Translated Sutra: जो प्रमत्त है, गुणों का अर्थी है, वह हिंसक कहलाता है। यह जानकर मेधावी पुरुष (संकल्प करे) – अब मैं वह (हिंसा) नहीं करूँगा जो मैंने प्रमाद के वश होकर पहले किया था। सूत्र – ३५, ३६
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 37 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव अगणि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेहिं नायं भवति– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: तू देख ! संयमी पुरुष जीव – हिंसा में लज्जा का अनुभव करते हैं। और उनको भी देख, जो हम ‘अनगार हैं’ यह कहते हुए भी अनेक प्रकार के शस्त्रों से अग्निकाय की हिंसा करते हैं। अग्निकाय के जीवों की हिंसा करते हुए अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा का निरूपण किया है। कुछ मनुष्य इस
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Hindi 57 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयंकदंसी अहियं ति नच्चा। जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ। जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ। एयं तुलमन्नेसिं।

Translated Sutra: साधनाशील पुरुष हिंसा में आतंक देखता है, उसे अहित मानता है। जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य को भी जानता है। जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। इस तुला का अन्वेषण कर, चिन्तन कर।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-७ वायुकाय Hindi 59 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव वाउ-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा वाउ-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा वाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवइ–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं

Translated Sutra: तू देख ! प्रत्येक संयमी पुरुष हिंसा में लज्जा का अनुभव करता है। उन्हें भी देख, जो ‘हम गृहत्यागी हैं’ यह कहते हुए विविध प्रकार के शस्त्रों से वायुकाय का समारंभ करते हैं। वायुकाय – शस्त्र का समारंभ करते हुए अन्य अनेक प्राणियों की हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा निरूपण किया है। कोई मनुष्य, इस जीवन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 63 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे। इति से गुणट्ठी महता परियावेणं वसे पमत्ते– माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि-सयण-संगंथ-संथुया मे, विवित्तोवगरण-परियट्टण-भोयण-अच्छायणं मे, इच्चत्थं गढिए लोए– वसे पमत्ते। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकाल-समुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विणि-विट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो। अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणवाणं, तं जहा–

Translated Sutra: जो गुण (इन्द्रियविषय) हैं, वह (कषायरुप संसार का) मूल स्थान है। जो मूल स्थान है, वह गुण है। इस प्रकार विषयार्थी पुरुष, महान परिताप से प्रमत्त होकर, जीवन बीताता है। वह इस प्रकार मानता है, ‘‘मेरी माता है, मेरा पिता है, मेरा भाई है, मेरी बहन है, मेरी पत्नी है, मेरा पुत्र है, मेरी पुत्री है, मेरी पुत्र – वधू है, मेरा सखा –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 65 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जेहिं वा सद्धिं संवसति ‘ते वा णं’ एगया नियगा तं पुव्विं परिवयंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिवएज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमं पि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा। से न हस्साए, न किड्डाए, न रतीए, न विभूसाए।

Translated Sutra: वह जिनके साथ रहता है, वे स्वजन उसका तिरस्कार करने लगते हैं, उसे कटु व अपमानजनक वचन बोलते हैं। बाद में वह भी उन स्वजनों की निंदा करने लगता है। हे पुरुष ! वे स्वजन तेरी रक्षा करने में या तुझे शरण देने में समर्थ नहीं हैं। तू भी उन्हें त्राण, या शरण देने में समर्थ नहीं है। वह वृद्ध पुरुष, न हँसी – विनोद के योग्य रहता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 66 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेवं समुट्ठिए अहोविहाराए। अंतरं च खलु इमं संपेहाए– धीरे मुहुत्तमवि णोपमायए। वयो अच्चेइ जोव्वणं व।

Translated Sutra: इस प्रकार चिन्तन करता हुआ मनुष्य संयम – साधना के लिए प्रस्तुत हो जाए। इस जीवन को एक स्वर्णिम अवसर समझकर धीर पुरुष मुहूर्त्तभर भी प्रमाद न करे। अवस्थाएं बीत रही हैं। यौवन चला जा रहा है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 68 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवाइय-सेसेण वा सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ, इहमेगेसिं असंजयाणं भोयणाए। तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते वा णं एगया नियगा तं पुव्विं परिहरंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिहरेज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा।

Translated Sutra: (मनुष्य) उपभोग में आने के बाद बचे हुए धन से, तथा जो स्वर्ण एवं भोगोपभोग की सामग्री अर्जित – संचित करके रखी है उसको सुरक्षित रखता है। उसे वह कुछ गृहस्थों के भोग के लिए उपयोग में लेता है। (प्रभूत भोगोपभोग के कारण फिर) कभी उसके शरीर में रोग की पीड़ा उत्पन्न होने लगती है। जिन स्वजन – स्नेहीयों के साथ वह रहता आया है, वे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 77 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभावेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभंतं समणुजाणेज्जा। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि।

Translated Sutra: यह जानकर मेधावी पुरुष पहले बताए गए प्रयोजनों के लिए स्वयं हिंसा न करे, दूसरों से हिंसा न करवाए तथा हिंसा करने वाले का अनुमोदन न करे। यह मार्ग आर्य पुरुषों ने बताया है। कुशलपुरुष इन विषयों में लिप्त न हों ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 78 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘से असइं उच्चागोए, असइं नीयागोए। नो हीणे, नो अइरित्ते, नो पीहए’। इति संखाय के गोयावादी? के मानावादी? कंसि वा एगे गिज्झे? तम्हा पंडिए नो हरिसे, नो कुज्झे। भूएहिं जाण पडिलेह सातं।

Translated Sutra: यह पुरुष अनेक बार उच्चगोत्र और अनेकबार नीच गोत्र को प्राप्त हो चूका हो। इसलिए यहाँ न तो कोई हीन है और न कोई अतिरिक्त है। यह जानकर उच्चगोत्र की स्पृहा न करे। यह जान लेने पर कौन गोत्रवादी होगा? कौन मानवादी होगा ? और कौन किस एक गोत्र में आसक्त होगा ? इसलिए विवेकशील मनुष्य उच्चगोत्र प्राप्त होने पर हर्षित न हो और
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 80 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से अबुज्झमाणे ‘हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे’। जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं, खेत्त-वत्थ ममायमाणाणं। आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता। न एत्थ तवो वा, दमो वा, नियमो वा दिस्सति। संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: वह प्रमादी पुरुष कर्म – सिद्धान्त को नहीं समझाता हुआ शारीरिक दुःखों से हत तथा मानसिक पीड़ाओं से उपहत – पुनः पुनः पीड़ित होता हुआ जन्म – मरण के चक्र में बार – बार भटकता है। जो मनुष्य, क्षेत्र – खुली भूमि तथा वास्तु – भवन – मकान आदि में ममत्व रखता है, उनको यह असंयत जीवन ही प्रिय लगता है। वे रंग – बिरंगे मणि, कुण्डल,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 81 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इणमेव नावकंखंति, जे जना धुवचारिनो । जाती-मरणं परिण्णाय, चरे संकमणे दढे ॥

Translated Sutra: जो पुरुष ध्रुवचारी होते हैं, वे ऐसा विपर्यासपूर्ण जीवन नहीं चाहते। वे जन्म – मरण के चक्र को जानकर द्रढ़तापूर्वक मोक्ष के पथ पर बढ़ते रहें।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 82 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो। सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा। सव्वेसिं जीवियं पियं। तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए। तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मुनिणा हु एयं पवेइयं। अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए । अतीरंगमा

Translated Sutra: काल का अनागमन नहीं है, मृत्यु किसी क्षण आ सकती है। सब को आयुष्य प्रिय है। सभी सुख का स्वाद चाहते हैं। दुःख से धबराते हैं। वध अप्रिय है, जीवन प्रिय है। वे जीवित रहना चाहते हैं। सब को जीवन प्रिय है। वह परिग्रह में आसक्त हुआ मनुष्य, द्विपद और चतुष्पद का परिग्रह करके उनका उपयोग करता है। उनको कार्य में नियुक्त करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 83 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उद्देसो पासगस्स नत्थि। बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्टं अणुपरियट्टइ।

Translated Sutra: जो द्रष्टा है, (सत्यदर्शी है) उसके लिए उपदेश की आवश्यकता नहीं होती। अज्ञानी पुरुष, जो स्नेह के बंधन में बंधा है, काम – सेवन में अनुरक्त है, वह कभी दुःख का शमन नहीं कर पाता। वह दुःखी होकर दुःखों के आवर्त में बार – बार भटकता रहता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 84 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते वा णं एगया णियया पुव्विं परिवयंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिवएज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा। जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं। भोगामेव अणुसोयंति। इहमेगेसिं माणवाणं।

Translated Sutra: तब कभी एक समय ऐसा आता है, जब उस अर्थ – संग्रही मनुष्य के शरीर में अनेक प्रकार के रोग – उत्पात उत्पन्न हो जाते हैं। वह जिनके साथ रहता है, वे ही स्व – जन एकदा उसका तिरस्कार व निंदा करने लगते हैं। बाद में वह भी उनका तिरस्कार व निंदा करने लगता है। हे पुरुष ! स्वजनादि तुझे त्राण देने में, शरण देने में समर्थ नहीं हैं। तू
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 86 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे। तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु। जेण सिया तेण णोसिया। इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा। थीभि लोए पव्वहिए। ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं। से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए। उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे। अलं कुसलस्स पमाएणं। संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए। नालं पास। अलं ते एएहिं।

Translated Sutra: हे धीर पुरुष ! तू आशा और स्वच्छन्दता त्याग दे। उस भोगेच्छा रूप शल्य का सृजन तूने स्वयं ही किया है। जिस भोगसामग्री से तुझे सुख होता है उससे सुख नहीं भी होता है। जो मनुष्य मोहकी सघनतासे आवृत हैं, ढ़ंके हैं, वे इस तथ्य को कि पौद्‌गलिक साधनों से कभी सुख मिलता है, कभी नहीं, वे क्षण – भंगुर हैं, तथा वे ही शल्य नहीं जानते यह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 88 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जमिणं विरूवरूवेहिं ‘सत्थेहिं लोगस्स कम्म-समारंभा’ कज्जंति, तं जहा–अप्पनो से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं नातीणं धातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्मकराणं कम्मकरीणं आएसाए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पायरासाए। सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए।

Translated Sutra: असंयमी पुरुष अनेक प्रकार के शस्त्रों द्वारा लोक के लिए कर्म समारंभ करते हैं। जैसे – अपने लिए, पुत्र, पुत्री, पुत्र – वधू, ज्ञातिजन, धाय, राजा, दास – दासी, कर्मचारी, कर्मचारिणी, पाहुने आदि के लिए तथा विविध लोगों को देने के लिए एवं सायंकालीन तथा प्रातःकालीन भोजन के लिए। इस प्रकार वे कुछ मनुष्यों के भोजन के लिए सन्निधि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 93 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अन्नहा णं पासए परिहरेज्जा’। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले णोवलिंपिज्जासि

Translated Sutra: जिस प्रकार गृहस्थ परिग्रह को ममत्व भाव से देखते हैं, उस प्रकार न देखे – अन्य प्रकार से देखे और परिग्रह का वर्जन करे। यह मार्ग आर्यो ने प्रतिपादित किया है, जिससे कुशल पुरुष (परिग्रह में) लिप्त न हो। ऐसा मैं कहता हूँ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 94 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कामा दुरतिक्कमा। जीवियं दुप्पडिवूहणं। कामकामी खलु अयं पुरिसे। से सोयति जूरति तिप्पति पिड्डति परितप्पति।

Translated Sutra: ये काम दुर्लघ्य है। जीवन बढ़ाया नहीं जा सकता, यह पुरुष कामभोग की कामना रखता है (किन्तु यह परितृप्त नहीं होती, इसलिए) वह शोक करता है फिर वह शरीर से सूख जाता है, आँसू बहाता है, पीड़ा और परिताप से दुःखी होता रहता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 95 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ। गढिए अणुपरियट्टमाणे। संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं। एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए। जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो। अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताइं। पंडिए पडिलेहाए।

Translated Sutra: वह आयतचक्षु – दीर्घदर्शी लोकदर्शी होता है। यह लोक के अधोभाग को जानता है, ऊर्ध्व भाग को जानता है, तीरछे भाग को जानता है। (कामभोग में) गृद्ध हुआ आसक्त पुरुष संसार में अनुपरिवर्तन करता रहता है। यहाँ (संसार में) मनुष्यों के, (मरणधर्माशरीर की) संधि को जानकर (विरक्त हो)। वह वीर प्रशंसा के योग्य है जो (कामभोग में) बद्ध
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 96 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से मइमं परिण्णाय, मा य हु लालं पच्चासी। मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए। कासकंसे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई, कडेण मूढे पुनो तं करेइ लोभं। वेरं वड्ढेति अप्पणो। जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए। अमरायइ महासड्ढी। अट्ठमेतं पेहाए। अपरिण्णाए कंदति।

Translated Sutra: वह मतिमान्‌ साधक (उक्त विषय को) जानकर तथा त्यागकर लार को न चाटे। अपने को तिर्यक्‌मार्ग में, (कामभोग के बीच में) न फँसाए। यह पुरुष सोचता है – मैंने यह कार्य किया, यह कार्य करूँगा (इस प्रकार) वह दूसरों को ठगता है, माया – कपट रचता है, और फिर अपने रचे मायाजाल में स्वयं फँसकर मूढ़ बन जाता है। वह मूढ़भाव से ग्रस्त फिर लोभ करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Hindi 100 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे ममाइय-मतिं जहाति, से जहाति ममाइयं। से हु दिट्ठपहे मुनी, जस्स नत्थि ममाइयं। तं परिण्णाय मेहावी। विदित्ता लोगं, वंता लोगसण्णं, ‘से मतिमं’ परक्कमेज्जासि

Translated Sutra: जो ममत्व – बुद्धि का त्याग करता है, वह ममत्व का त्याग करता है। वही द्रष्ट – पथ मुनि है, जीसने ममत्व का त्याग कर दिया है। यह जानकर मेधावी लोकस्वरूप को जाने। लोक – संज्ञा का त्याग करे, तथा संयम में पुरुषार्थ करे। वास्तव में उसे ही मतिमान्‌ कहा गया है – ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Hindi 104 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुव्वसु मुनी अणाणाए। तुच्छए गिलाइ वत्तए। एस वीरे पसंसिए। अच्चेइ लोयसंजोयं। एस णाए पवुच्चइ।

Translated Sutra: जो पुरुष वीतराग की आज्ञा का पालन नहीं करता वह संयम – धन से रहित है। वह धर्म का कथन करने में ग्लानि का अनुभव करता है, (क्योंकि) वह चारित्र की द्रष्टि से तुच्छ जो है। वह वीर पुरुष (जो वीतराग की आज्ञा के अनुसार चलता है) सर्वत्र प्रशंसा प्राप्त करता है और लोक – संयोग से दूर हट जाता है, मुक्त हो जाता है। यही न्याय्य (तीर्थंकरों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Hindi 105 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं, तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति। इति कम्म परिण्णाय सव्वसो। जे अनन्नदंसी, से अणण्णारामे। जे अणण्णारामे, से अनन्नदंसी॥ जहा पुण्णस्स कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ । जहा तुच्छस्स कत्थइ, तहा पुण्णस्स कत्थइ ॥

Translated Sutra: यहाँ (संसार में) मनुष्यों के जो दुःख बताए हैं, कुशल पुरुष उस दुःख को परिज्ञा – विवेक बताते हैं। इस प्रकार कर्मों को जानकर सर्व प्रकार से (निवृत्ति करे)। जो अनन्य (आत्मा) को देखता है, वह अनन्य में रमण करता है। जो अनन्य में रमण करता है, वह अनन्य को देखता है। (आत्मदर्शी) साधक जैसे पुण्यवान व्यक्ति को धर्म – उपदेश करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Hindi 106 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अवि य हणे अनादियमाणे। एत्थंपि जाण, सेयंति नत्थि। के यं पुरिसे? कं च नए? एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए। उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिण्णचारी। न लिप्पई छणपएण वीरे। से मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे, जे य बंधप्पमोक्खमन्नेसि। कुसले पुण नोबद्धे, नोमुक्के।

Translated Sutra: कभी अनादर होने पर वह (श्रोता) उसको (धर्मकथी को) मारने भी लग जाता है। अतः यहाँ यह भी जाने धर्मकथा करना श्रेय नहीं है। पहले धर्मोपदेशक को यह जान लेना चाहिए की यह पुरुष कौन है ? किस देवता को मानता है ? वह वीर प्रशंसा के योग्य है, जो बद्ध मनुष्यों को मुक्त करता है। वह ऊंची, नीची और तीरछी दिशाओं में, सब प्रकार से समग्र परिज्ञा/विवेकज्ञान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Hindi 110 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं। समयं लोगस्स जाणित्ता, एत्थ सत्थोवरए। जस्सिमे सद्दा य रूवा य गंधा य रसा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति...

Translated Sutra: इस बात को जान लो कि लोक में अज्ञान अहित के लिए होता है। लोक में इस आचार को जानकर (संयम में बाधक) जो शस्त्र हैं, उनसे उपरत रहे। जिस पुरुष ने शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श को सम्यक्‌ प्रकार से परिज्ञात किया है – (जो उनमें रागद्वेष न करता हो)। वह आत्मवान्‌, ज्ञानवान्‌, वेदवान्‌, धर्मवान्‌ और ब्रह्मवान्‌ होता है। जो पुरुष
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Hindi 113 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पासिय आउरे पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए। मंता एयं मइमं! पास। आरंभजं दुक्खमिणं ति नच्चा। माई पमाई पुनरेइ गब्भं। उवेहमानो सद्द-रूवेसु अंजू, माराभिसंकी मरणा पमुच्चति। अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहिं, वीरे आयगुत्ते ‘जे खेयण्णे’। जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे। अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ। कम्मुणा उवाही जायइ। कम्मं च पडिलेहाए।

Translated Sutra: (सुप्त) मनुष्यों को दुःखों से आतुर देखकर साधक सतत अप्रमत्त होकर विचरण करे। हे मतिमान्‌ ! तू मननपूर्वक इन (दुखियों) को देख। यह दुःख आरम्भज है, यह जानकर (तू निरारम्भ होकर अप्रमत्त भाव से आत्महित में प्रवृत्त रह)। मया और प्रमाद के वश हुआ मनुष्य बार – बार जन्म लेता है। शब्द और रूप आदि के प्रति जो उपेक्षा करता है, वह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Hindi 116 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उम्मुंच पासं इह मच्चिएहिं। आरंभजीवी ‘उ भयाणुपस्सी’। कामेसु गिद्धा निचयं करेंति, संसिच्चमाणा पुणरेंति गब्भं॥

Translated Sutra: इस संसार में मनुष्यों के साथ पाश है, उसे तोड़ ड़ाल; क्योंकि ऐसे लोग हिंसादि पापरूप आरंभ करके जीते हैं और आरंभजीवी पुरुष इहलोक और परलोक में शारीरिक, मानसिक कामभोगों को ही देखते रहते हैं, अथवा आरंभजीवी होने से वह दण्ड आदि के भय का दर्शन करते हैं। ऐसे कामभोगों में आसक्त जन (कर्मों का) संचय करते रहते हैं। (कर्मों की
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Hindi 121 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनेगचित्ते खलु अयं पुरिसे, से केयण अरिहए पूरइत्तए। से अन्नवहाए अन्नपरियावाए अन्नपरिग्गहाए, जणवयवहाए जणवयपरियावाए जणवयपरिग्गहाए।

Translated Sutra: वह (असंयमी)पुरुष अनेक चित्तवाला है। वह चलनी को (जल से) भरना चाहता है। (तृष्णा की पूर्ति के लिए) दूसरों के वध, परिताप, तथा परिग्रह के लिए तथा जनपद के वध, परिताप और परिग्रह के लिए (प्रवृत्ति करता है)।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Hindi 123 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे निरयं महंतं । तम्हा हि वीरे विरते वहाओ, छिंदेज्ज सोयं लहुभूयगामी ॥

Translated Sutra: वीर पुरुष कषाय के आदि अंग – क्रोध और मान को मारे, लोभ को महान्‌ नरक के रूप में देखे। इसलिए लघुबूत बनने का अभिलाषी, वीर हिंसा से विरत होकर स्रोतों को छिन्न – भिन्न कर डाले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 128 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘अवरेण पुव्वं न सरंति एगे, किमस्सतीतं? किं वागमिस्सं? भासंति एगे इह माणव उ, जमस्सतीतं आगमिस्सं ॥

Translated Sutra: कुछ (मूढ़मति) पुरुष भविष्यकाल के साथ पूर्वकाल का स्मरण नहीं करते। वे चिन्ता नहीं करते की इसका अतीत क्या था, भविष्य क्या होगा ? कुछ (मिथ्याज्ञानी) मानव यों कह देते हैं कि जो इसका अतीत था, वही भविष्य होगा।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 130 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] का अरई? के आनंदे? एत्थंपि अग्गहे चरे। सव्वं हासं परिच्चज्ज, आलीण-गुतो परिव्वए ॥ पुरिसा! तुममेव तुमं मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि?

Translated Sutra: उस (धूत – कल्प)योगी के लिए भला क्या अरति है और क्या आनन्द है? वह इस विषय में बिलकुल ग्रहण रहित होकर विचरण करे। वह सभी प्रकार के हास्य आदि त्याग करके इन्द्रियनिग्रह तथा मन – वचन – काया को तीन गुप्तियों से गुप्त करते हुए विचरण करे। हे पुरुष ! तू ही मेरा मित्र है, फिर बाहर अपने से भिन्न मित्र क्यों ढूँढ़ रहा है ?
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 131 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेज्जा दूरालइयं । जं जाणेज्जा दूरालइयं, तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥ पुरिसा! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि। पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि। सच्चस्स आणाए ‘उवट्ठिए से’ मेहावी मारं तरति। सहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति।

Translated Sutra: जिसे तुम उच्च भूमिका पर स्थित समझते हो, उसका घर अत्यन्त दूर समझो, जिसे अत्यन्त दूर समझते हो उसे तुम उच्च भूमिका पर स्थित समझो। हे पुरुष ! अपना ही निग्रह कर। इसी विधि से तू दुःख से मुक्ति प्राप्त कर सकेगा। हे पुरुष ! तू सत्य को ही भलीभाँति समझ ! सत्य की आज्ञा में उपस्थित रहने वाला वह मेधावी मार (संसार) को तर जाता है। सत्य
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 133 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘सहिए दुक्खमत्ताए’ पुट्ठो नो झंझाए। पासंमि दविए लोयालोय-पवंचाओ मुच्चइ।

Translated Sutra: ज्ञानादि से युक्त साधक दुःख की मात्रा से स्पृष्ट होने पर व्याकुल नहीं होता। आत्मद्रष्टा वीतराग पुरुष लोक में आलोक के समस्त प्रपंचों से मुक्त हो जाता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-४ कषाय वमन Hindi 138 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी। जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी। जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी। जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी। जे जम्म-दंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से निरयदंसी। जे निरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी। से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च, गब्भं च, जम्मं च, मारं च, नरगं च, तिरियं च, दुक्खं च। एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स। आयाणं णिसिद्धा सगडब्भि। किमत्थि उवाही पासगस्स न विज्जइ? नत्थि।

Translated Sutra: जो क्रोधदर्शी होता है, वह मानदर्शी होता है, जो मानदर्शी होता है; जो मानदर्शी होता है, वह मायादर्शी होता है, जो मायादर्शी होता है, वह लोभदर्शी होता है; जो लोभदर्शी होता है, वह प्रेमदर्शी होता है; जो प्रेमदर्शी होता है, वह द्वेषदर्शी होता है; जो द्वेषदर्शी होता है, वह मोहदर्शी होता है; जो मोहदर्शी होता है, वह गर्भदर्शी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा Hindi 144 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं। अट्टा वि संता अदुआ पमत्ता। अहासच्चमिणं- ति बेमि। नानागमो मच्चुमुहस्स अत्थि, इच्छापणीया वंकाणिकेया । कालग्गहीआ णिचए णिविट्ठा, ‘पुढो-पुढो जाइं पकप्पयंति’ ॥

Translated Sutra: ज्ञानी पुरुष, इस विषयमें, संसारमें स्थित, सम्यक्‌ बोध पाने को उत्सुक एवं विज्ञान – प्राप्त मनुष्यों को उपदेश करते हैं। जो आर्त अथवा प्रमत्त होते हैं, वे भी धर्म का आचरण कर सकते हैं। यह यथातथ्य – सत्य है, ऐसा मैं कहता हूँ जीवों को मृत्यु के मुख में जाना नहीं होगा, ऐसा सम्भव नहीं है। फिर भी कुछ लोग ईच्छा द्वारा प्रेरित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-३ अनवद्यतप Hindi 148 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह आणाकंखी पंडिए अणिहे एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरं, कसेहि अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं। जहा जुण्णाइं कट्ठाइं, हव्ववाहो पमत्थति, एवं अत्तसमाहिए अणिहे। विगिंच कोहं अविकंपमाणे।

Translated Sutra: यहाँ (अर्हत्प्रवचनमें) आज्ञा का आकांक्षी पण्डित अनासक्त होकर एकमात्र आत्मा को देखता हुआ, शरीर को प्रकम्पित कर डाले। अपने कषाय – आत्मा को कृश करे, जीर्ण कर डाले। जैसे अग्नि जीर्ण काष्ठ को शीघ्र जला डालत है, वैसे ही समाहित आत्मा वाला वीतराग पुरुष प्रकम्पित, कृश एवं जीर्ण हुए कषायात्मा को शीघ्र जला डालता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-३ अनवद्यतप Hindi 149 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमं निरुद्धाउयं संपेहाए दुक्खं च जाण अदुवागमेस्सं। पुढो फासाइं च फासे। लोयं च पास विप्फंदमाणं। जे निव्वुडा पावेहिं कम्मेहिं, अनिदाणा ते वियाहिया। तम्हा तिविज्जो नो पडिसंजलिज्जासि।

Translated Sutra: यह मनुष्य – जीवन अल्पायु है, यह सम्प्रेक्षा करता हुआ साधक अकम्पित रहकर क्रोध का त्याग करे। (क्रोधादि से) वर्तमानमें अथवा भविष्यमें उत्पन्न होनेवाले दुःखों को जाने। क्रोधी पुरुष भिन्न – भिन्न नरकादि स्थानोंमें विभिन्न दुःखों का अनुभव करता है। प्राणीलोक को इधर – उधर भाग – दौड़ करते देख ! जो पुरुष पापकर्मों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 150 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं। तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं। विगिंच मंस-सोणियं। एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए । जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥

Translated Sutra: मुनि पूर्व – संयोग का त्याग कर उपशम करके (शरीर का) आपीड़न करे, फिर प्रपीड़न करे और तब निष्पीड़न करे। मुनि सदा अविमना, प्रसन्नमना, स्वारत, समित, सहित और वीर होकर (इन्द्रिय और मन का) संयमन करे। अप्रमत्त होकर जीवन – पर्यन्त संयम – साधन करने वाले, अनिवृत्तगामी मुनियों का मार्ग अत्यन्त दुरनुचर होता है। (संयम और मोक्षमार्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 152 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कओ सिया? से हु पण्णाणमंते बुद्धे आरंभोवरए। सम्ममेयंति पासह। जेण बंधं वहं घोरं, परितावं च दारुणं। पलिछिंदिय बाहिरगं च सोयं, णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहिं। ‘कम्मुणा सफलं’ दट्ठुं, तओ णिज्जाइ वेयवी।

Translated Sutra: जिसके (अन्तःकरण में भोगासक्ति का) पूर्व – संस्कार नहीं है और पश्चात्‌ का संकल्प भी नहीं है, बीच में उसके (मन में विकल्प) कहाँ से होगा ? (जिसकी भोगकांक्षाएं शान्त हो गई हैं।) वही वास्तव में प्रज्ञानवान्‌ है, प्रबुद्ध है और आरम्भ से विरत है। यह सम्यक्‌ है, ऐसा तुम देखो – सोचो। (भोगासक्ति के कारण) पुरुष बन्ध, वध, घोर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Hindi 154 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘आवंती केआवंति लोयंसि विप्परामुसंति, अट्ठाए अणट्ठाए वा’, एएसु चेव विप्परामुसंति। गुरू से कामा। तओ से मारस्स अंतो, जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे। नेव से अंतो, नेव से दूरे।

Translated Sutra: इस लोक में जितने भी कोई मनुष्य सप्रयोजन या निष्प्रयोजन जीवों की हिंसा करते हैं, वे उन्हीं जीवों में विविध रूप में उत्पन्न होते हैं। उनके लिए शब्दादि काम का त्याग करना बहुत कठिन होता है। इसलिए (वह) मृत्यु की पकड़ में रहता है, इसलिए अमृत (परमपद) से दूर होता है। वह (कामनाओं का निवारण करने वाला) पुरुष न तो मृत्यु की
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Hindi 155 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से पासति फुसियमिव, कुसग्गे पणुन्नं निवतितं वातेरितं । एवं बालस्स जीवियं, मंदस्स अविजाणओ ॥ कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मोहेण गब्भं मरनाति एति। एत्थ मोहे पुणो-पुनो

Translated Sutra: वह पुरुष (कामनात्यागी) कुश की नोंक को छुए हुए (बारंबार दूसरे जलकण पड़ने से) अस्थिर और वायु के झोंके से प्रेरित होकर गिरते हुए जलबिन्दु की तरह जीवन को (अस्थिर) जानता – देखता है। बाल, मन्द का जीवन भी इसी तरह अस्थिर है, परन्तु वह (जीवन के अनित्यत्व) को नहीं जान पाता। वह बाल – हिंसादि क्रूर कर्म उत्कृष्ट रूप से करता हुआ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Hindi 163 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से ‘सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति नच्चा’, पुरिसा! परमचक्खू! विपरक्कमा। एतेसु चेव बंभचेरं ति बेमि। से सुयं च मे अज्झत्थियं च मे, ‘बंध-पमोक्खो तुज्झ अज्झत्थेव’। एत्थ विरते अनगारे, दीहरायं तितिक्खए। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए ॥ एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि।

Translated Sutra: (परिग्रह महाभय का हेतु है) यह सम्यक्‌ प्रकार से प्रतिबुद्ध है और सुकथित है, यह जानकर परमचक्षुष्मान्‌ पुरुष! तू (परिग्रह से मुक्त होने) पुरुषार्थ कर। (जो परिग्रह से विरत हैं) उनमें ही ब्रह्मचर्य होता है। ऐसा मैं कहता हूँ। मैंने सूना है, मेरी आत्मा में यह अनुभूत हो गया है कि बन्ध और मोक्ष तुम्हारी आत्मा में ही स्थित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 177 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘हंतव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘अज्जावेयव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘परितावेयव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘परिघेतव्वं’ ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं ‘उद्दवेयव्वं’ ति मन्नसि। अंजू चेय-पडिबुद्ध-जीवी, तम्हा ण हंता न विघायए। अणुसंवेयणमप्पाणेणं, जं ‘हंतव्वं’ ति नाभिपत्थए।

Translated Sutra: तू वही है, जिसे तू हनन योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू आज्ञा में रखने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू परिताप देने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू दास बनाने हेतु ग्रहण करने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू मारने योग्य मानता है। ज्ञानी पुरुष ऋजु होते हैं, वह प्रतिबोध पाकर जीने वाला होता है। इसके कारण वह स्वयं
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 183 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: ‘आवट्टं तु उवेहाए’ ‘एत्थ विरमेज्ज वेयवी’। विणएत्तु सोयं णिक्खम्म, एस महं अकम्मा जाणति पासति। पडिलेहाए नावकंखति, इह आगतिं गतिं परिण्णाय।

Translated Sutra: (राग – द्वेषरूप) भावावर्त का निरीक्षण करके आगमविद्‌ पुरुष उससे विरत हो जाए। विषयासक्तियों के या आस्रवों के स्रोत हटाकर निष्क्रमण करनेवाला यह महान्‌ साधक अकर्म होकर लोक को प्रत्यक्ष जानता, देखता है। (इस सत्य का) अन्तर्निरीक्षण करनेवाला साधक इस लोकमें संसार – भ्रमण और उसके कारण की परिज्ञा करके उन (विषय – सुखों)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 184 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: अच्चेइ जाइ-मरणस्स वट्टमग्गं वक्खाय-रए। सव्वे सरा णियट्टंति। तक्का जत्थ न विज्जइ। मई तत्थ न गहिया। ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयन्ने। से न दोहे, न हस्से, न वट्टे, न तंसे, न चउरंसे, न परिमण्डले। न किण्हे, न णीले, न लोहिए, न हालिद्दे, न सुक्किल्ले। न सुब्भिगंधे, न दुरभिगंधे। न तित्ते, न कडुए, न कसाए, न अंबिले, न महुरे। न कक्खडे, न मउए, न गरुए, न लहुए, न सीए, न उण्हे, न णिद्धे, न लुक्खे। न काऊ। न रुहे। न संगे। न इत्थी, न पुरिसे, न अन्नहा। परिण्णे सण्णे। उवमा न विज्जए। अरूवी सत्ता। अपयस्स पयं नत्थि।

Translated Sutra: इस प्रकार वह जीवों की गति – आगति के कारणों का परिज्ञान करके व्याख्यानरत मुनि जन्म – मरण के वृत्त मार्ग को पार कर जाता है। (उस मुक्तात्मा का स्वरूप या अवस्था बताने के लिए) सभी स्वर लौट जाते हैं – वहाँ कोई तर्क नहीं है। वहाँ मति भी प्रवेश नहीं कर पाती, वह (बुद्धि ग्राह्य नहीं है)। वहाँ वह समस्त कर्ममल से रहित ओजरूप
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-१ स्वजन विधूनन Hindi 186 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से नरे। जस्सिमाओ जाईओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, अक्खाइ से नाणमणेलिसं। से किट्टति तेसिं समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं। एवं पेगे महावीरा विप्परक्कमंति। पासह एगेवसीयमाणे अणत्तपण्णे। से बेमि–से जहा वि कुम्मे हरए विनिविट्ठचित्ते, पच्छन्न-पलासे, उम्मग्गं से णोलहइ। भंजगा इव सन्निवेसं णोचयंति, एवं पेगे – ‘अनेगरूवेहिं कुलेहिं’ जाया, ‘रूवेहिं सत्ता’ कलुणं थणंति, नियाणाओ ते न लभंति मोक्खं। अह पास ‘तेहिं-तेहिं’ कुलेहिं आयत्ताए जाया–

Translated Sutra: इस मर्त्यलोक में मनुष्यों के बीच में ज्ञाता वह पुरुष आख्यान करता है। जिसे ये जीव – जातियाँ सब प्रकार से भली – भाँति ज्ञात होती हैं, वही विशिष्ट ज्ञान का सम्यग्‌ आख्यान करता है। वह (सम्बुद्ध पुरुष) इस लोक में उनके लिए मुक्ति – मार्ग का निरूपण करता है, जो (धर्माचरण के लिए) सम्यक्‌ उद्यत है, मन, वाणी और काया से जिन्होंने
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