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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 48 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य ।
भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमंसामि ॥ Translated Sutra: अर्ध पुष्करवरद्वीप, घातकी खंड़ और जम्बूद्वीप में उन ढ़ाई द्वीप में आए हुए भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में श्रुतधर्म की आदि करनेवाले को यानि तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 48 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य ।
भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमंसामि ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૮. અર્દ્ધ પુષ્કરવરદ્વીપ, ધાતકીખંડ અને જંબૂદ્વીપ (એ અઢીદ્વીપ)માં આવેલ ભરત, ઐરવત અને વિદેહ ક્ષેત્રમાં રહેલા શ્રુત ધર્મના આદિ કરોને હું નમસ્કાર કરું છું. સૂત્ર– ૪૯. અજ્ઞાનરૂપી અંધકારના સમૂહનો નાશ કરનાર, દેવ અને નરેન્દ્રોના સમૂહથી પૂજાયેલ, મોહની જાળને તોડી નાંખનારા, મર્યાદાધરને વંદુ છું. સૂત્ર– ૫૦. જન્મ | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 510 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 520 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण के अभिप्राय को जानकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एवं देवियाँ अपने – अपने रूप से, अपने – अपने वस्त्रों में और अपने – अपने चिह्नों से युक्त होकर तथा अपनी – अपनी समस्त ऋद्धि, द्युति और समस्त बल – समुदाय सहित अपने – अपने यान – विमानों पर चढ़ते हैं फिर सब | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Gujarati | 510 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીર આ અવસર્પિણીમાં સુષમસુષમ આરો, સુષમ આરો અને સુષમદુષમ આરો વ્યતીત થયા પછી દુષમ – દુષમ આરો ઘણો વીત્યા પછી ૭૫ વર્ષ, સાડા આઠ માસ બાકી રહ્યા ત્યારે જે આ ગ્રીષ્મ ઋતુનો ચોથો માસ, આઠમો પક્ષ – અષાઢ સુદ, તે અષાઢ સુદ છટ્ઠી તિથિએ ઉત્તરાફાલ્ગુની નક્ષત્રમાં ચંદ્રનો યોગ થયો ત્યારે મહાવિજય સિદ્ધાર્થ પુષ્પોત્તરવર | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Gujarati | 520 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं Translated Sutra: ત્યાર પછી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરનો અભિનિષ્ક્રમણ અર્થાત સંયમગ્રહણનો અભિપ્રાય જાણીને ભવનપતિ, વ્યંતર, જ્યોતિષ્ક, વૈમાનિક દેવ – દેવીઓ પોતપોતાના રૂપ – વેશ અને ચિહ્નોથી યુક્ત થઈ, સર્વ ઋદ્ધિ – દ્યુતિ – સેના સમૂહની સાથે પોત – પોતાના યાન વિમાનો પર આરૂઢ થાય છે, થઈને બાદર પુદ્ગલોનો ત્યાગ કરી, સૂક્ષ્મ પુદ્ગલો ગ્રહણ કરી | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 20 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ।
तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था–वन्नओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ।
तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जहा देवई देवी जाव पज्जुवासइ।
तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हस्स वासुदेवस्स Translated Sutra: जम्बूस्वामी ने पुनः पूछा – ‘‘भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने पंचम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी, यावत् श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे। श्रीकृष्ण वासुदेव की पद्मावती नाम की महारानी थी। (राज्ञीवर्णन जान लेना)। उस काल उस | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 20 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ।
तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था–वन्नओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ।
तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जहा देवई देवी जाव पज्जुवासइ।
तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हस्स वासुदेवस्स Translated Sutra: ભંતે ! જો ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો ભંતે ! ભગવંતે પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી, પહેલા અધ્યયનમાં કહ્યા મુજબ યાવત્ કૃષ્ણવાસુદેવ ત્યાં રાજ્ય શાસન સંભાલતાવિચરતા હતા. કૃષ્ણને પદ્માવતી નામે એક રાણી હતી. તે કાળે તે સમયે અરિષ્ટનેમિ અરહંત પધાર્યા | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 121 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवे लवणे, धायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे ।
खीर-घय-खोय-नंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥ Translated Sutra: जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखंडद्वीप, कालोदधिसमुद्र, पुष्करद्वीप, (पुष्करोद) समुद्र, वरुणद्वीप, वरुणोदसमुद्र, क्षीरद्वीप, क्षीरोदसमुद्र, घृतद्वीप, घृतोदसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नन्दीद्वीप, नन्दीसमुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रुचकद्वीप, रुचकसमुद्र। जम्बूद्वीप | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 125 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सयंभुरमणे जाव जंबुद्दीवे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
उड्ढलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ९. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा १४. अनुत्तरविमाणा १५. ईसिप्पब्भारा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? स्वयंभूरमणसमुद्र, भूतद्वीप आदि से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त व्युत्क्रम से द्वीप – समुद्रों के उपन्यास करना मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी हैं। मध्यलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक से प्रारम्भ कर असंख्यात पर्यन्त की श्रेणी स्थापित कर उनका परस्पर | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 322 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे।
नामट्ठवणाओ गयाओ जाव। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे।
से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुंडे वदराणि, तदुभयसमोयरेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य।
अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य Translated Sutra: समवतार क्या है ? समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे – नामसमवतार, स्थापनासमवतार, द्रव्यसमवतार, क्षेत्रसमवतार, कालसमवतार और भावसमवतार। नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् जानना। द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा है – आगमद्रव्यसमवतार, नोआगमद्रव्यसमवतार। यावत् आगमद्रव्यसमवतार का तथा नोआगमद्रव्यसमवतार के | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 121 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवे लवणे, धायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे ।
खीर-घय-खोय-नंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥ Translated Sutra: મધ્યલોકક્ષેત્ર પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જંબૂદ્વીપ, લવણસમુદ્ર, ધાતકીખંડ દ્વીપ, કાલોદધિ સમુદ્ર, પુષ્કરદ્વીપ, પુષ્કરોદ સમુદ્ર, વરુણદ્વીપ, વરુણોદ સમુદ્ર, ક્ષીરદ્વીપ, ક્ષીરોદ સમુદ્ર, ધૃતદ્વીપ, ધૃતોદ સમુદ્ર, ઇક્ષુવરદ્વીપ, ઇક્ષુવર સમુદ્ર, નન્દીદ્વીપ, નંદી સમુદ્ર, અરુણ વરદ્વીપ, અરુણવર સમુદ્ર, કુંડલદ્વીપ, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 125 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सयंभुरमणे जाव जंबुद्दीवे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
उड्ढलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ९. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा १४. अनुत्तरविमाणा १५. ईसिप्पब्भारा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: (૧). મધ્યલોકક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર, સ્વયંભૂરમણ દ્વીપ, ભૂત સમુદ્ર, ભૂત દ્વીપથી લઈ જંબૂદ્વીપ સુધી વિપરીત ક્રમથી દ્વીપ – સમુદ્રના સ્થાપનને મધ્યલોક ક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વી કહે છે. મધ્યલોકક્ષેત્ર અનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકથી શરૂ કરી, એક – એકની વૃદ્ધિ કરતા અસંખ્યાત | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: [૧] નયપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નયપ્રમાણના ત્રણ પ્રકાર છે. ત્રણ દૃષ્ટાંતથી તેનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કર્યું છે.. ૧. પ્રસ્થકના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૨. વસતિના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૩. પ્રદેશના દૃષ્ટાંત દ્વારા. [૨] પ્રસ્થકનું દૃષ્ટાંત શું છે ? કોઈ પુરુષ કુહાડી લઈ વન તરફ જતો હોય, તેને વનમાં જતા જોઈને કોઈ મનુષ્યે પૂછ્યું, તમે ક્યાં | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 317 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा।
से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य।
से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा।
से तं कालियसुयपरिमाणसंखा।
से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा Translated Sutra: [૧] અવિદ્યમાન પદાર્થને અવિદ્યમાન પદાર્થથી ઉપમિત કરવામાં આવે તે અસદ્ – અસદ્રૂપ ઉપમા કહેવાય છે. જેમ કે ગધેડાના વિષાણ – શીંગડા, તેવા સસલાના શીંગડા. આ પ્રમાણે ઔપમ્ય સંખ્યાનુ સ્વરૂપ જાણવુ. [૨] પરિમાણ સંખ્યાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પરિમાણ સંખ્યાના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. કાલિકશ્રુત પરિમાણ સંખ્યા ૨. દૃષ્ટિવાદ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 322 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे।
नामट्ठवणाओ गयाओ जाव। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे।
से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुंडे वदराणि, तदुभयसमोयरेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य।
अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૨. [૧] સમવતારનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સમવતારના છ પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામ, ૨. સ્થાપના, ૩. દ્રવ્ય, ૪. ક્ષેત્ર, ૫. કાળ અને ૬. ભાવ. [૨] નામ સમવતારનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નામ સમવતાર અને સ્થાપના સમવતારનું સ્વરૂપ વર્ણન પૂર્વવત્ અર્થાત્ આવશ્યકના વર્ણન પ્રમાણે જાણવુ. દ્રવ્ય સમવતારનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્ય | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 52 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, Translated Sutra: भगवन् ! भावितात्मा अनगार केवलि – समुद्घात द्वारा आत्मप्रदेशों को देह से बाहर निकाल कर, क्या समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित होते हैं ? हाँ, गौतम ! स्थित होते हैं। भगवन् ! क्या उन निर्जरा – प्रधान पुद्गलों से समग्र लोक स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन् ! छद्मस्थ, विशिष्ट ज्ञानरहित मनुष्य क्या उन निर्जरा | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 52 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. ભગવન્! ભાવિતાત્મા અણગાર કેવલી સમુદ્ઘાતથી સમવહત થઈને કેવલકલ્પ લોકને સ્પર્શીને રહે છે? હા, રહે છે. ભગવન્ ! તેઓ શું કેવલકલ્પ લોકમાં તે નિર્જરા પુદ્ગલથી સ્પર્શે ? હા, સ્પર્શે. ભગવન્ ! છદ્મસ્થ મનુષ્ય તે નિર્જરા પુદ્ગલના કંઈક વર્ણથી વર્ણ, ગંધથી ગંધ, રસથી રસ, સ્પર્શથી સ્પર્શને જાણે – જુએ ? ગૌતમ ! આ અર્થ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-८ चमरचंचा | Hindi | 140 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तिगिंछिकूडे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते–सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं, दोन्निय बत्तीसुत्तरे Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के इन्द्र और अनेक राजा चमर की सुधर्मा – सभा कहाँ पर है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मध्य में स्थित मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में तीरछे असंख्य द्वीपों और समुद्रों को लाँघने के बाद अरुणवर द्वीप आता है। उस द्वीप की वेदिका के बाहिरी किनारे से आगे बढ़ने पर अरुणोदय नामक समुद्र आता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-९ समयक्षेत्र | Hindi | 141 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमिदं भंते! समयखेत्ते त्ति पवुच्चति?
गोयमा! अड्ढाइज्जा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं एवइए समयखेत्तेति पवुच्चति।
तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतरे। एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा जाव अब्भिंतर-पुक्खरद्धं जोइसविहूणं। Translated Sutra: भगवन् ! यह समयक्षेत्र किसे कहा जाता है ? गौतम ! अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र इतना यह (प्रदेश) ‘समयक्षेत्र’ कहलाता है। इनमें जम्बूद्वीप नामक द्वीप समस्त द्वीपों और समुद्रों के बीचोबीच है। इस प्रकार जीवाभिगम सूत्र में कहा हुआ सारा वर्णन यहाँ यावत् आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध तक कहना चाहिए; किन्तु ज्योतिष्कों का वर्णन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३ थी ३० अंतर्द्वीप | Hindi | 444 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं उत्तरपुरत्थिमे णं तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगुरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते–तिन्नि जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, नव एगूणवन्ने जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं।
से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। दोण्ह वि पमाणं वण्णओ य। एवं एएणं कमेणं एवं जहा जीवाभिगमे जाव सुद्धदंतदीवे जाव Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन् ! दक्षिण दिशा का ‘एकोरुक’ मनुष्यों का ‘एकोरुकद्वीप’ नामक द्वीप कहाँ बताया गया है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में ‘एकोरुक’ नामक द्वीप है।) जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति के अनुसार इसी क्रम के शुद्धदन्तद्वीप तक (जान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१० अस्तिकाय | Hindi | 149 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति?
गोयमा! नो संखेज्जइभागं फुसति, असंखेज्जइभागं फुसति, नो संखेज्जे भागे फुसति, नो असंखेज्जे भागे फुसति, नो सव्वं फुसति।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनोदही धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति?
जहा रयणप्पभा तहा घनोदहि-घनवाय-तणुवाया वि।
इमी से णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? Translated Sutra: भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी, क्या धर्मास्तिकाय के संख्यातभाग को स्पर्श करती है या असंख्यातभाग को स्पर्श करती है, अथवा संख्यातभागों को स्पर्श करती है या असंख्यात भागों को स्पर्श करती है अथवा समग्र को स्पर्श करती है? गौतम! यह रत्नप्रभापृथ्वी, धर्मास्तिकाय के संख्यातभाग को स्पर्श नहीं करती, अपितु असंख्यात भाग | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 152 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं मोयाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे नंदने नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गच्छइ, पडिगया परिसा।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासि– चमरे णं भंते! असुरिंदे असुरराया केमहिड्ढीए? केमहज्जुतीए? केमहाबले? केमहायसे? केमहासोक्खे? केमहानुभागे? केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए?
गोयमा! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए, महज्जुतीए, महाबले, महायसे, महासोक्खे, महानुभागे! Translated Sutra: उस काल उस समयमें ‘मोका’ नगरी थी। मोका नगरी के बाहर ईशानकोण में नन्दन चैत्य था। उस काल उस समयमें श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। परीषद् नीकली। धर्मोपदेश सूनकर परीषद् वापस चली गई उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर के द्वीतिय अन्तेवासी अग्निभूति नामक अनगार जिनका गोत्र गौतम था, तथा जो सात हाथ ऊंचे | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 155 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से तच्चे गोयमे वायुभूति अनगारे दोच्चे णं गोयमेणं अग्गिभूतिणा अनगारेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–जइ णं भंते! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, बली णं भंते! वइरोयणिंदे वइरोयणराया केमहिड्ढीए? जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए?
गोयमा! बली णं वइरोयणिंदे वइरोयणराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। जहा चमरस्स तहा बलिस्स वि नेयव्वं, नवरं–सातिरेगं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं भाणियव्वं, सेसं तं चेव निरवसेसं नेयव्वं, नवरं–नाणत्तं जाणियव्वं भवणेहिं सामाणिएहि य।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति तच्चे Translated Sutra: इसके पश्चात् तीसरे गौतम ( – गोत्रीय) वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार किया, और फिर यों बोले – भगवन् ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्व – णाशक्ति से सम्पन्न है, तब हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् वह कितनी विकुर्वणा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 156 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! सक्के देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासि तीसए नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडि-पुण्णाइं अट्ठ संवच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए सक्कस्स देविंदस्स Translated Sutra: भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र ऐसी महान ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने मे समर्थ है, तो आप देवानुप्रिय का शिष्य ‘तिष्यक’ नामक अनगार, जो प्रकृति से भद्र, यावत् विनीत था निरन्तर छठ – छठ की तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ, पूरे आठ वर्ष तक श्रामण्यपर्याय का पालन करके, एक मास की संलेखना से अपनी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 157 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं तच्चे गोयमे वायुभूई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी – जइ णं भंते! सक्के देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए, ईसाने णं भंते! देविंदे देवराया केमहिड्ढीए? एवं तहेव, नवरं–साहिए दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तहेव। Translated Sutra: तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके यावत् इस प्रकार कहा – भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र इतनी महाऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान कितनी महाऋद्धि वाला है, यावत् कितनी विकुर्वणा करने की शक्ति वाला है ? (गौतम ! शक्रेन्द्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 158 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नामं अनगारे पगतिभद्दए जाव विनीए अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं, पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोक-म्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईसाने कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए Translated Sutra: भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र इतनी बड़ी ऋद्धि से युक्त है, यावत् वह इतनी विकुर्वणाशक्ति रखता है, तो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत, तथा निरन्तर अट्ठम की तपस्या और पारणे में आयंबिल, ऐसी कठोर तपश्चर्या से आत्मा को भावित करता हुआ, दोनों हाथ ऊंचे रखकर सूर्य की ओर मुख करके आतापना – भूमि में आतापना लेने वाला | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 159 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सणंकुमारे वि, नवरं–चत्तारि केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेज्जे।
एवं लंतए वि, नवरं–सातिरेगे अट्ठ केवलकप्पे। महासुक्के सोलस केवलकप्पे। सहस्सारे सातिरेगे सोलस।
एवं पाणए वि, नवरं–बत्तीसं केवलकप्पे।
एवं अच्चुए वि, नवरं–सातिरेगे बत्तीसं केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अन्नं तं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति तच्चे गोयमे वायुभूई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ जाव विहरइ।
तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ मोयाओ नयरीओ नंदनाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। Translated Sutra: इसी प्रकार सनत्कुमार देवलोक के देवेन्द्र के विषय में भी समझना चाहिए। विशेषता यह है कि (सनत् – कुमारेन्द्र की विकुर्वणाशक्ति) सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीपों जितने स्थल को भरने की है और तीरछे उसकी विकुर्वणा – शक्ति असंख्यात (द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की) है। इसी तरह (सनत्कुमारेन्द्र के) सामानिक देव, त्राय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 160 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ जाव परिसा पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने देविंदे देवराया ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए, तामेव दिसिं पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी–अहो णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। ईसानस्स णं भंते! सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते? कहिं अनुपविट्ठे?
गोयमा! Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। यावत् परीषद् भगवान की पर्युपासना करने लगी। उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज, शूलपाणि वृषभ – वाहन लोक के उत्तरार्द्ध का स्वामी, अट्ठाईस लाख विमानों का अधिपति, आकाश के समान रजरहित निर्मल वस्त्रधारक, सिर पर माला से सुशोभित मुकुटधारी, नवीनस्वर्ण निर्मित सुन्दर, विचित्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 161 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया या वि होत्था।
तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सिं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासि–
एवं खलु देवानुप्पिया! बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवानुप्पिया! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, अयं च णं देवानुप्पिया! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणाज्झूसणाज्झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं तामलिं Translated Sutra: उस काल उस समय में बलिचंचा राजधानी इन्द्रविहीन और पुरोहित से विहीन थी। उन बलिचंचा राजधानी निवासी बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों ने तामली बालतपस्वी को अवधिज्ञान से देखा। देखकर उन्होंने एक दूसरे को बुलाया, और कहा – देवानुप्रियो ! बलिचंचा राजधानी इन्द्र से विहीन और पुरोहित से भी रहित है। हे देवानुप्रियो | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Hindi | 162 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने कप्पे अणिंदे अपुरोहिए या वि होत्था।
तए णं से तामली बालतवस्सी बहुपडिपुण्णाइं सट्ठिं वाससहस्साइं परियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सवीसं भत्तसयं अनसनाए छेदित्ता कालकासे कालं किच्चा ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइ-भागमेत्तीए ओगाहणाए ईसानदेविंदविरहियकालसमयंसि ईसानदेविंदत्ताए उववन्ने।
तए णं से ईसाने देविंदे देवराया अहुणोववण्णे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, [तं जहा–आहारपज्जत्तीए जाव भासा-मणपज्जत्तीए] ।
तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया Translated Sutra: उस काल और उस समय में ईशान देवलोक इन्द्रविहीन और पुरोहितरहित भी था। उस समय ऋषि तामली बालतपस्वी, पूरे साठ हजार वर्ष तक तापस पर्याय का पालन करके, दो महीने की संलेखना से अपनी आत्मा को सेवित करके, एक सौ बीस भक्त अनशन में काटकर काल के अवसर पर काल करके ईशान देवलोक के ईशावतंसक विमान में उपपातसभा की देवदूष्य – वस्त्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-२ चमरोत्पात | Hindi | 172 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए?
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था।
तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं Translated Sutra: भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि और यावत् वह सब, किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ? हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारत वर्ष (क्षेत्र) में, विन्ध्याचल की तलहटी में ‘बेभेल’ नामक सन्निवेश था। वहाँ ‘पूरण’ नामक एक गृहपति रहता था। वह आढ्य और दीप्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-५ स्त्री | Hindi | 189 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए?
नो इणट्ठे समट्ठे।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए?
हंता पभू।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइआइं पभू इत्थिरूवाइं विउव्वित्तए?
गोयमा! से जहानामए–जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणवारे वि भाविअप्पा वेउव्वियससमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थि-रूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं Translated Sutra: भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किए बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत् स्यन्द – मानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके क्या एक बड़े स्त्रीरूप की यावत् स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 194 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति लोगपाला पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे जमे वरुणे वेसमणे।
एएसि णं भंते! चउण्हं लोगपालाणं कति विमाना पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा– संज्झप्पभे वरसिट्ठे सयंजले वग्गू।
कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो संज्झप्पभे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने (पूछा – ) भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के कितने लोकपाल कहे गए हैं ? गौतम ! चार। सोम, यम, वरुण और वैश्रमण। भगवन् ! इन चारों लोकपालों के कितने विमान हैं ? गौतम ! चार। सन्ध्याप्रभ, वरशिष्ट, स्वयंज्वल और वल्गु। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम नामक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 195 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयण-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते–अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं–जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहानी तहेव जाव पासायपंतीओ।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो इमे देवा आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–जमकाइया इ वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेतकाइया इ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयपाला, Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल – यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ है ? गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्य हजार योजन आगे चलने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान बताया गया है, जो साढ़े बारह लाख योजन लम्बा – चौड़ा है, इत्यादि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 199 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो सयंजले नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स पच्चत्थिमे णं जहा सोमस्स तहा विमान-रायधानीओ भाणियव्वा जाव पासादवडेंसया, नवरं–नामनाणत्तं।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो इमे देवा आणाउववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वरुणकाइया इ वा, वरुणदेवयकाइया इ वा, नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहि-कुमारा, उदहिकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया, तप्पक्खिया, तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल – वरुण महाराज का स्वयंज्वल नामक महाविमान कहाँ है? गौतम ! उस सौधर्मावतंसक महाविमान से पश्चिम में सौधर्मकल्प से असंख्येय हजार योजन पार करने के बाद, स्वयंज्वल नाम का महाविमान आता है; इसका सारा वर्णन सोममहाराज के महाविमान की तरह जान लेना, राजधानी यावत् प्रासादावतंसकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Hindi | 200 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो वग्गू नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स उत्तरे णं जहा सोमस्स विमान-रायहाणि-वत्तव्वया तहा नेयव्वा जाव पासादवडेंसया।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो इमे देवा आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वेसमणकाइया इ वा, वेसमणदेवयकाइया इ वा, सुवण्णकुमारा, सुवण्णकुमारीओ, दीवकुमारा, दीवकुमारीओ, दिसाकुमारा, दिसाकुमारीओ, वाणमंतरा, वाणमंतरीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तप्पक्खिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के (चतुर्थ) लोकपाल – वैश्रमण महाराज का वल्गु नामक महाविमान कहाँ है? गौतम ! सौधर्मावतंसक नामक महाविमान के उत्तरमें है। इस सम्बन्ध में सारा वर्णन सोम महाराज के महा – विमान की तरह जानना चाहिए; और वह यावत् राजधानी यावत् प्रासादावतंसक तक का वर्णन भी उसी तरह जान लेना चाहिए देवेन्द्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४ |
उद्देशक-१ थी ८ लोकपाल विमान अने राजधानी | Hindi | 208 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–ईसानस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कइ लोगपाला पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
एएसि णं भंते! लोगपालाणं कइ विमाना पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा–सुमणे, सव्वओभद्दे, वग्गू, सुवग्गू।
कहि णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो सुमणे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाने नामं कप्पे पन्नत्ते।
तत्थ णं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं जहा– अंकवडेंसए, फलिहवडेंसए, रयणवडेंसए, जायरूव-वडेंसए, मज्झे ईसानवडेंसए।
तस्स Translated Sutra: राजगृह नगर में, यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा – भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के कितने लोकपाल कहे गए हैं ? हे गौतम ! उसके चार लोकपाल कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – सोम, यम, वैश्रमण और वरुण। भगवन् ! इन लोकपालों के कितने विमान कहे गए हैं ? गौतम ! इनके चार विमान हैं; वे इस प्रकार हैं – सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सुवल्गु। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 216 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं चंपाए नगरीए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–वण्णओ। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं जाव एवं वयासी– जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिण-मागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीण-मागच्छंति, दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीण-मागच्छंति, पडीण-उदीण-मुग्गच्छ उदीचि-पाईणमागच्छंति?
हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ जाव उदीचि-पाईणमागच्छंति।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। उस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र नामका चैत्य था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे यावत् परिषद् धर्मोपदेश सूनने के लिए गई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति अनगार थे, यावत् उन्होंने पूछा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 217 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि दिवसे भवइ; जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ?
हंता गोयमा! जया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे जाव उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे उवकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ; जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं जहन्निया Translated Sutra: भगवन् ! जब जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत से पूर्व – पश्चिम में जघन्य बारह मुहूर्त्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 218 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ?
हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स Translated Sutra: भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर – पर्वत से पूर्व में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पुरस्कृत समय में होता है ? हाँ, गौतम ! यह इसी तरह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 219 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो।
जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति।
एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ Translated Sutra: भगवन् ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर क्या अग्निकोण में जाते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम! जम्बूद्वीप में सूर्यों के समान यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहना। विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना। भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, इत्यादि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Hindi | 243 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते इह भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था, गोयमा! सत्त एव
तित्थयरमायरो पियरो पढमा सिस्सिणीओ चक्कवट्टिमायरो इत्थिरयणं बलदेवा वासुदेवा वासुदेव मायरो लदेव वासुदेव पियरो एएसिं पडिसत्तु जहा समवाए परिवाडी तहा नेयव्वा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ॥ Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में, इस भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणी काल में कितने कुलकर हुए हैं ? गौतम ! सात। इसी तरह तीर्थंकरों की माता, पिता, प्रथम शिष्याएं, चक्रवर्तियों की माताएं, स्त्रीरत्न, बलदेव, वासुदेव, वासुदेवों के माता – पिता, प्रतिवासुदेव आदि का कथन जिस प्रकार ‘समवायांगसूत्र’ अनुसार यहाँ भी कहना। ‘हे भगवन् ! यह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-५ तमस्काय | Hindi | 291 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति?
गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं।
तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए?
गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए।
सत्तरस-एक्कवीसे Translated Sutra: भगवन् ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-५ तमस्काय | Hindi | 294 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हरातीओ णं भंते! केवतियं आयामेणं? केवतियं विक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ताओ?
गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परि-क्खेवेणं पन्नत्ताओ।
कण्हरातीओ णं भंते! केमहालियाओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभावे इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबूदीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जाव एकाहं वा, दुयाहं वा, तियाहं वा, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णराजियों का आयाम, विष्कम्भ और परिक्षेप कितना है ? गौतम ! कृष्णराजियों का आयाम असंख्येय हजार योजन है, विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन कहा गया है। भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी बड़ी कही गई हैं ? गौतम ! तीन चुटकी बजाए, उतने समय में इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-७ शाली | Hindi | 312 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए उत्तिमट्ठपत्ताए, भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए–आलिंगपुक्खरे ति वा, एवं उत्तर-कुरुवत्तव्वया नेयव्वा जाव तत्थ णं बहवे भारया मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति। तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ-तत्थ देसे-देसे तहिं-तहिं बहवे उद्दाला कोद्दाला जाव कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव छव्विहा मनुस्सा अनुसज्जित्था, तं जहा–पम्हगंधा, मियगंधा, अममा, तेतली, सहा, सणिंचारी।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्तमार्थ – प्राप्त इस अवसर्पिणीकाल के सुषम – सुषमा नामक आरे में भरतक्षेत्र के आकार, भाव – प्रत्यवतार किस प्रकार के थे ? गौतम ! भूमिभाग बहुत सम होने से अत्यन्त रमणीय था। जैसे कोई मुरज नामक वाद्य का चर्मचण्डित मुखपट हो, वैसा बहुत ही सम भरतक्षेत्र का भूभाग था। इस प्रकार उस | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक | Hindi | 320 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति जावतिया रायगिहे नयरे जीवा, एवइयाणं जीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि सव्वलोए वि य णं सव्वजीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मास-मायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि, लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए।
से केणट्ठेणं? Translated Sutra: भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को बेर की गुठली जितना भी, बाल (एक धान्य) जितना भी, कलाय जितना भी, उड़द जितना भी, मूँग – प्रमाण, यूका प्रमाण, लिक्षा प्रमाण भी बाहर नीकाल कर नहीं दिखा सकता। भगवन् ! यह बात यों कैसे हो सकती है ? गौतम ! जो अन्यतीर्थिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-६ आयु | Hindi | 359 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए दुस्सम-दुस्समाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ?
गोयमा! कालो भविस्सइ हाहाभूए, भंभब्भूए कोलाहलभूए। समानुभावेण य णं खर-फरुस-धूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा वाया संवट्टगा य वाहिंति। इह अभिक्खं धूमाहिंति य दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुस-तमपडल-निरालोगा। समयलुक्खयाए य णं अहियं चंदा सीयं मोच्छंति। अहियं सूरिया तवइस्संति।
अदुत्तरं च णं अभिक्खणं बहवे अरसमेहा विरसमेहा खार-मेहा खत्तमेहा अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा असणिमेहा–अपिवणिज्जोदगा, वाहिरोगवेदणोदीरणा-परिणामसलिला, अमणुन्नपा-णियगा Translated Sutra: भगवन् ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल का दुःषमदुःषम नामक छठा आरा जब अत्यन्त उत्कट अवस्था को प्राप्त होगा, तब भारतवर्ष का आकारभाव – प्रत्यवतार कैसा होगा ? गौतम ! वह काल हाहाभूत, भंभाभूत (दुःखार्त्त) तथा कोलाहलभूत होगा। काल के प्रभाव से अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, असह्य, व्याकुल, भयंकर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-२ आशिविष | Hindi | 389 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आसीविसा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा आसीविसा पन्नत्ता, तं जहा– जातिआसीविसा य, कम्मआसीविसा य।
जातिआसीविसा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–विच्छुयजातिआसीविसे, मंडुक्कजातिआसीविसे, उरगजाति-आसीविसे, मनुस्सजातिआसीविसे।
विच्छुयजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते?
गोयमा! पभू णं विच्छुयजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेनं विसपरिगयं विसट्टमाणं पकरेत्तए। विसए से विस ट्ठयाए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा।
मंडुक्कजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते?
गोयमा! पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे Translated Sutra: भगवन् ! आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के हैं। जाति – आशीविष और कर्म – आशीविष भगवन् ! जाति – आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के जैसे – वृश्चिकजाति – आशीविष, मण्डूक – जाति – आशीविष, उरगजाति – आशीविष और मनुष्यजाति – आशीविष। भगवन् ! वृश्चिकजाति – आशीविष का कितना विषय है ? गौतम ! वह अर्द्धभरतक्षेत्र |