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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ उपधान श्रुत |
उद्देशक-३ परीषह | Hindi | 314 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] मंसाणि छिन्नपुव्वाइं, उट्ठुभंति एगया कायं ।
परीसहाइं लुंचिंसु, अहवा पसुणा अवकिरिंसु ॥ Translated Sutra: उन अनार्यों ने पहले एक बार ध्यानस्थ खड़े भगवान के शरीर को पकड़कर माँस काट लिया था। उन्हें परीषहों से पीड़ित करते थे, कभी – कभी उन पर धूल फेंकते थे। | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ उपधान श्रुत |
उद्देशक-३ परीषह | Gujarati | 314 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] मंसाणि छिन्नपुव्वाइं, उट्ठुभंति एगया कायं ।
परीसहाइं लुंचिंसु, अहवा पसुणा अवकिरिंसु ॥ Translated Sutra: ક્યારેક તે અનાર્ય લોકો ભગવંતનું માંસ કાપી લેતા, ક્યારેક ભગવંતને અનેક પ્રકારના કષ્ટ આપતા હતા. ક્યારેક ધૂળ ફેંકતા. | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 41 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं?
जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं–पत्तय-पोत्थय-लिहियं।
अहवा सुयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं।
से किं तं अंडयं?
अंडयं–हंसगब्भाइ। से तं अंडयं।
से किं तं बोंडयं?
बोंडयं–फलिहमाइ। से तं बोंडयं।
से किं तं कीडयं?
कीडयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे। से तं कीडयं।
से किं तं वालयं?
वालयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–उन्निए उट्टिए मियलोमिए कुतवे किट्टिसे। से तं वालयं।
से किं तं वक्कयं? वक्कयं–सणमाइ। से तं वक्कयं।
से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं।
से तं Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त – द्रव्यश्रुत क्या है ? ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत हैं। अथवा वह पाँच प्रकार का है – अंडज, बोंडज, कीटज, वालज, बल्कज। अंडज किसे कहते हैं ? हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं। बोंडज किसे कहते हैं ? | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 45 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं?
लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा।
से तं लोइयं भावसुयं। Translated Sutra: लौकिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित महाभारत, रामायण, भीमासुरोक्त, अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शटकभद्रिका, कार्पासिक, नागसूत्र, कनकसप्तति, वैशेकिशास्त्र, बौद्धशास्त्र, कामशास्त्र, कपिलशास्त्र, लोकायतशास्त्र, षष्ठितंत्र, माठरशास्त्र, पुराण, व्याकरण, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 56 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–कसिणखंधे अकसिणखंधे अनेगदवियखंधे। Translated Sutra: अथवा ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध के तीन प्रकार हैं। कृत्स्नस्कन्ध, अकृत्स्नस्कन्ध और अनेकद्रव्यस्कन्ध। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 80 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा उवक्कमे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–
१. आनुपुव्वी २. नामं ३. पमाणं ४. वत्तव्वया ५. अत्थाहिगारे ६. समोयारे। Translated Sutra: अथवा उपक्रम के छह प्रकार हैं। आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार और समवतार। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 86 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया?
नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया–१. अत्थि आनुपुव्वी २. अत्थि अनानुपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए ४. अत्थि आनुपुव्वीओ ५. अत्थि अनानुपुव्वीओ ६. अत्थि अवत्तव्वयाइं।
अहवा १. अत्थि आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य ७. अहवा २. अत्थि आनुपुव्वी य अनानु-पुव्वीओ य ८. अहवा ३. अत्थि आनुपुव्वीओ य अनानुपुव्वी य ९. अहवा ४. अत्थि आनुपुव्वीओ य अनानुपुव्वीओ य १०।
अहवा १. अत्थि आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य ११. अहवा २. अत्थि आनुपुव्वी य अवत्तव्वयाइं च १२. अहवा ३. अत्थि आनुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य १३. अहवा ४. अत्थि आनुपुव्वीओ य अवत्तव्वयाइं च १४।
अहवा १. अत्थि अनानुपुव्वी Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तन क्या है ? वह ईस प्रकार हैं – आनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्य है, आनुपूर्वियाँ हैं, (अनेक) अवक्तव्य हैं। अथवा – आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी है, आनुपूर्वी और अनानुपूर्वियाँ हैं, आनुपूर्वियाँ और अनानुपूर्वी है, आनुपूर्वियाँ और अनानुपूर्वियाँ हैं। अथवा – आनुपूर्वि और | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 88 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया?
नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया–१. तिपएसिए आनुपुव्वी २. परमा-णुपोग्गले अनानुपुव्वी ३. दुपएसिए अवत्तव्वए ४. तिपएसिया आनुपुव्वीओ ५. परमाणुपोग्गला अनानुपुव्वीओ ६. दुपएसिया अवत्तव्वयाइं।
अहवा १. तिपएसिए य परमाणुपोग्गले य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य ७. अहवा २. तिपएसिए य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वीओ य ८. अहवा ३. तिपएसिया य परमाणुपोग्गले य आनुपुव्वीओ य अनानुपुव्वी य ९. अहवा ४. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वीओ अनानुपुव्वीओ य १०।
अहवा १. तिपएसिए य दुपएसिए य आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य ११. अहवा २. तिपएसिए य दुपएसिया य आनुपुव्वी Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत भंगोपदर्शनता क्या है ? वह इस प्रकार है – त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी है, द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्य है, त्रिप्रदेशिक अनेक स्कन्ध आनुपूर्वियाँ हैं, अनेक परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वियाँ हैं, अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्यक हैं। त्रिप्रदेशिक स्कन्ध | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 103 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं? एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया कीरइ।
से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया? संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया–१. अत्थि आनुपुव्वी २. अत्थि अनानुपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए अहवा ४. अत्थि आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अहवा ५. अत्थि आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. अत्थि अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. अत्थि आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य। एवं एए सत्त भंगा।
से तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया।
एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कि-त्तणयाए भंगोवदंसणया कीरइ। Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत इस अर्थपदप्ररूपणता का क्या प्रयोजन है ? ईसके द्वारा संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? उसका स्वरूप इस प्रकार है – आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्यक है। अथवा आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी है, आनुपूर्वी और अवक्तव्यक है, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 104 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया?
संगहस्स भंगोवदंसणया–१. तिपएसिया आनुपुव्वी २. परमाणुपोग्गला अनानुपुव्वी ३. दुपएसिया अवत्तव्वए अहवा ४. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अहवा ५. तिप-एसिया य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य। [एवं एए सत्त भंगा?] ।
से तं संगहस्स भंगोवदंसणया। Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत भंगोपदर्शनता क्या है ? उसका स्वरूप इस प्रकार है – त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में विवक्षित होते हैं। अथवा – त्रिप्रदेशिक स्कन्ध और परमाणुपुद्गल, आनुपूर्वी | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 111 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अनंतपएसिए असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसिए दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अनंतगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: अथवा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की है। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध रूप क्रमात्मक | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 114 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया खेत्तानुपुव्वी? नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया खेत्ता-नुपुव्वी पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अनुगमे।
से किं तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया?
नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया–तिपएसोगाढे आनुपुव्वी चउपएसोगाढे आनुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे आनुपुव्वी संखेज्जपएसोगाढे आनुपुव्वी असंखेज्जपएसोगाढे आनुपुव्वी। एगपएसो-गाढे अनानुपुव्वी। दुपएसोगाढे अवत्तव्वए। तिपएसोगाढा आनुपुव्वीओ चउपएसोगाढा आनुपुव्वीओ जाव दसपएसोगाढा आनु पुव्वीओ संखेज्जपएसोगाढा आनुपुव्वीओ असंखेज्जपएसोगाढा Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है ? इस के पाँच प्रकार हैं। – अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार, अनुगम। नैगम – व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् दस प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 117 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अनोवनिहिया खेत्तानुपुव्वी? पंचविहा, अट्ठपयपरूवणया भंगसमुक्कित्त-णया भंगोवदंसणया समोतारे अनुगमे से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया तिपएसोगाढेआनुपुव्वी चउप्पएसोगाढेआनुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे आनुपुव्वी संखिज्जपएसोगाढेआनुपुव्वी असंखिज्ज पएसोगाढे आनुपुव्वी एगपएसोगाढे अनानुपुव्वी दुपएसोगाढेअवत्तव्वए से तं संगहस्स अट्ठपय-परूवणया
एयाए णं सगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओअणं एयाए णं संगहस्स अट्ठपय परूवणयाए संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया कज्जति से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया अत्थि आनुपुव्वि अत्थि अनानुपुव्वी य अनानुपुव्वी य एवं जहा दव्वानुपुव्वी Translated Sutra: संग्रहनयसंमत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है ? संग्रहनयसंमत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी की तरह ही यहाँ द्रव्यानुपूर्वी अंतर्गत तीनों सूत्रों का अर्थ समझ लेना। सूत्र – ११७–११९ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 125 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सयंभुरमणे जाव जंबुद्दीवे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
उड्ढलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ९. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा १४. अनुत्तरविमाणा १५. ईसिप्पब्भारा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? स्वयंभूरमणसमुद्र, भूतद्वीप आदि से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त व्युत्क्रम से द्वीप – समुद्रों के उपन्यास करना मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी हैं। मध्यलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक से प्रारम्भ कर असंख्यात पर्यन्त की श्रेणी स्थापित कर उनका परस्पर | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 131 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया? नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया–१. तिसमयट्ठिईए आनुपुव्वी २. एगसमयट्ठिईए अनानुपुव्वी ३. दुसमयट्ठिईए अवत्तव्वए ४. तिसमयट्ठिईयाओ आनु-पुव्वीओ ५. एगसमयट्ठिईयाओ अनानुपुव्वीओ ६. दुसमयट्ठिईयाओ अवत्तव्वगाइं। अहवा १. तिसमयट्ठिईए य एगसमयट्ठिईए य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य।
एवं तहा चेव दव्वानुपुव्विगमेणं छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव। से तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता क्या है ? वह इस प्रकार है – त्रिसमयस्थितिक एक – एक परमाणु आदि द्रव्य आनुपूर्वी है, एक समय की स्थितिवाला एक – एक परमाणु आदि द्रव्य अनानुपूर्वी है और दो समय की स्थितिवाला परमाणु आदि द्रव्य अवक्तव्यक है। तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य ‘आनुपूर्वियाँ’ इस पद के वाच्य हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 138 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया कालानुपुव्वी? ओवनिहिया कालानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समए आवलिया आनापानू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयने संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा Translated Sutra: औपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक समय की स्थिति वाले, दो समय की स्थिति वाले, तीन समय की स्थिति वाले यावत् दस समय की स्थिति वाले यावत् संख्यात समय की स्थिति वाले, असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 150 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य।
से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए।
से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य।
से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे
से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए Translated Sutra: द्विनाम क्या है ? द्विनाम के दो प्रकार हैं – एकाक्षरिक और अनेकाक्षरिक। एकाक्षरिक द्विनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं। जैसे कि ह्री, श्री, धी, स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं। अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? उसके अनेक प्रकार हैं। यथा – कन्या, वीणा, लता, माला आदि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं। अथवा द्विनाम के | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 238 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं अवयवेणं।
से किं तं संजोगेणं? संजोगे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वसंजोगे खेत्तसंजोगे कालसंजोगे भावसंजोगे।
से किं तं दव्वसंजोगे? दव्वसंजोगे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए।
से किं तं सचित्ते? सचित्ते-गोहिं गोमिए, महिसीहिं माहिसिए, ऊरणीहिं ऊरणिए, उट्टीहिं उट्टिए। से त्तं सचित्ते।
से किं तं अचित्ते? अचित्ते–छत्तेण छत्ती, दंडेण दंडी, पडेण पडी, घडेण घडी, कडेण कडी। से त्तं अचित्ते।
से किं तं मीसए? मीसए–हलेणं हालिए, सगडेणं सागडिए, रहेणं रहिए, नावाए नाविए। से तं मीसए। से तं दव्वसंजोगे।
से किं तं खेत्तसंजोगे? खेत्तसंजोगे–भारहे एरवए हेमवए हेरन्नवए Translated Sutra: देखो सूत्र २३६ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 317 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा।
से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य।
से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा।
से तं कालियसुयपरिमाणसंखा।
से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा Translated Sutra: अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद् – असद्रूप औपम्यसंख्या है। जैसा – खर विषाण है वैसा ही शश विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है। परिमाणसंख्या क्या है ? दो प्रकार की है। जैसे – कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुतपरिमाण – संख्या। कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 322 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे।
नामट्ठवणाओ गयाओ जाव। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे।
से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुंडे वदराणि, तदुभयसमोयरेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य।
अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य Translated Sutra: समवतार क्या है ? समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे – नामसमवतार, स्थापनासमवतार, द्रव्यसमवतार, क्षेत्रसमवतार, कालसमवतार और भावसमवतार। नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् जानना। द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा है – आगमद्रव्यसमवतार, नोआगमद्रव्यसमवतार। यावत् आगमद्रव्यसमवतार का तथा नोआगमद्रव्यसमवतार के | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 41 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं?
जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं–पत्तय-पोत्थय-लिहियं।
अहवा सुयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं।
से किं तं अंडयं?
अंडयं–हंसगब्भाइ। से तं अंडयं।
से किं तं बोंडयं?
बोंडयं–फलिहमाइ। से तं बोंडयं।
से किं तं कीडयं?
कीडयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे। से तं कीडयं।
से किं तं वालयं?
वालयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–उन्निए उट्टिए मियलोमिए कुतवे किट्टिसे। से तं वालयं।
से किं तं वक्कयं? वक्कयं–सणमाइ। से तं वक्कयं।
से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं।
से तं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૮ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
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Gujarati | 45 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं?
लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा।
से तं लोइयं भावसुयं। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૪ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 56 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–कसिणखंधे अकसिणखंधे अनेगदवियखंधे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૬. અથવા જ્ઞાયકશરીર – ભવ્યશરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્યસ્કંધના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. કૃત્સ્ન સંપૂર્ણ. સ્કંધ, ૨. અકૃત્સ્ન સ્કંધ, ૩. અનેક દ્રવ્ય સ્કંધ. સૂત્ર– ૫૭. કૃત્સ્ન સ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે? અશ્વસ્કંધ, ગજસ્કંધ, યાવત્ વૃષભસ્કંધ. જે પૂર્વે સચિત્ત સ્કંધમાં કહ્યા છે, તે સર્વ નામ યાવત્ પદથી અહીં | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 80 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा उवक्कमे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–
१. आनुपुव्वी २. नामं ३. पमाणं ४. वत्तव्वया ५. अत्थाहिगारे ६. समोयारे। Translated Sutra: અથવા ઉપક્રમ છ પ્રકારના કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આનુપૂર્વી, ૨. નામ, ૩. પ્રમાણ, ૪. વક્તવ્યતા, ૫. અર્થાધિકાર, ૬. સમવતાર. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
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Gujarati | 86 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया?
नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया–१. अत्थि आनुपुव्वी २. अत्थि अनानुपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए ४. अत्थि आनुपुव्वीओ ५. अत्थि अनानुपुव्वीओ ६. अत्थि अवत्तव्वयाइं।
अहवा १. अत्थि आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य ७. अहवा २. अत्थि आनुपुव्वी य अनानु-पुव्वीओ य ८. अहवा ३. अत्थि आनुपुव्वीओ य अनानुपुव्वी य ९. अहवा ४. अत्थि आनुपुव्वीओ य अनानुपुव्वीओ य १०।
अहवा १. अत्थि आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य ११. अहवा २. अत्थि आनुपुव्वी य अवत्तव्वयाइं च १२. अहवा ३. अत्थि आनुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य १३. अहवा ४. अत्थि आनुपुव्वीओ य अवत्तव्वयाइं च १४।
अहवा १. अत्थि अनानुपुव्वी Translated Sutra: નૈગમ – વ્યવહારનય સંમત ભંગસમુત્કીર્તનનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નૈગમ – વ્યવહારનય સંમત ભંગસમુત્કીર્તન – ભંગોનું કથન આ પ્રમાણે કરી શકાય. ૧. એક આનુપૂર્વી છે, ૨. એક અનાનુપૂર્વી છે, ૩. એક અવક્તવ્ય, ૪. અનેક આનુપૂર્વી છે, ૫. અનેક અનાનુપૂર્વી છે, ૬. અનેક અવક્તવ્ય છે અથવા, ૧. એક આનુપૂર્વી અને એક અનાનુપૂર્વી છે, ૨. એક આનુપૂર્વી અને | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
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Gujarati | 88 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया?
नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया–१. तिपएसिए आनुपुव्वी २. परमा-णुपोग्गले अनानुपुव्वी ३. दुपएसिए अवत्तव्वए ४. तिपएसिया आनुपुव्वीओ ५. परमाणुपोग्गला अनानुपुव्वीओ ६. दुपएसिया अवत्तव्वयाइं।
अहवा १. तिपएसिए य परमाणुपोग्गले य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य ७. अहवा २. तिपएसिए य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वीओ य ८. अहवा ३. तिपएसिया य परमाणुपोग्गले य आनुपुव्वीओ य अनानुपुव्वी य ९. अहवा ४. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वीओ अनानुपुव्वीओ य १०।
अहवा १. तिपएसिए य दुपएसिए य आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य ११. अहवा २. तिपएसिए य दुपएसिया य आनुपुव्वी Translated Sutra: નૈગમ – વ્યવહારનય સંમત ભંગોપદર્શનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નૈગમ – વ્યવહારનય સંમત ભંગોના અર્થ કહેવા, ભંગોનું ઉપદર્શન કરાવવું તે ભંગોપદર્શનતા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ત્રિપ્રદેશીસ્કંધ એક આનુપૂર્વી છે, ૨. પરમાણુ પુદ્ગલ એક અનાનુપૂર્વી છે, ૩. દ્વિપ્રદેશી સ્કંધ એક અવક્તવ્ય છે, ૪. ત્રિપ્રદેશી સ્કંધો, અનેક આનુપૂર્વીઓ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 103 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं? एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया कीरइ।
से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया? संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया–१. अत्थि आनुपुव्वी २. अत्थि अनानुपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए अहवा ४. अत्थि आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अहवा ५. अत्थि आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. अत्थि अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. अत्थि आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य। एवं एए सत्त भंगा।
से तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया।
एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कि-त्तणयाए भंगोवदंसणया कीरइ। Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: [૧] સંગ્રહ નય સંમત અર્થપદ પ્રરૂપણાનું પ્રયોજન શું છે ? સંગ્રહ નય સંમત અર્થપદ પ્રરૂપણા દ્વારા સંગ્રહ નય સંમત ભંગસમુત્કીર્તનતા કરવામાં આવે છે. સંગ્રહ નય સંમત ભંગસમુત્કીર્તનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભંગોના નામોનું કથન કરવું તે ભંગ – સમુત્કીર્તનતા કહેવાય છે. સંગ્રહ નય સંમત ભંગોનું કથન આ પ્રમાણે | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 104 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया?
संगहस्स भंगोवदंसणया–१. तिपएसिया आनुपुव्वी २. परमाणुपोग्गला अनानुपुव्वी ३. दुपएसिया अवत्तव्वए अहवा ४. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अहवा ५. तिप-एसिया य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य। [एवं एए सत्त भंगा?] ।
से तं संगहस्स भंगोवदंसणया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૦૪. સંગ્રહ નય સંમત ભંગોપદર્શનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભંગોના નામ વાચ્યાર્થ સહિત બતાવવા તે ભંગોપદર્શનતા કહેવાય છે. અર્થ સહિત તે ભંગો આ પ્રમાણે બને છે. અસંયોગી ત્રણ ભંગ – ૧. ત્રિપ્રદેશી સ્કંધ આનુપૂર્વી છે. ૨. પરમાણુ પુદ્ગલ અનાનુપૂર્વી છે. ૩. દ્વિપ્રદેશી સ્કંધ અવક્તવ્ય છે. દ્વિસંયોગી ત્રણ ભંગ – ૧. ત્રિપ્રદેશી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 111 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अनंतपएसिए असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसिए दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अनंतगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: અથવા ઔપનિધિકી દ્રવ્યાનુપૂર્વી ત્રણ પ્રકારે કહી છે. જેમ કે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે? પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – પરમાણુ પુદ્ગલ, દ્વિપ્રદેશી સ્કંધ, ત્રિપ્રદેશી સ્કંધ યાવત્ દસ પ્રદેશી સ્કંધ, સંખ્યાત પ્રદેશી સ્કંધ, અસંખ્યાત પ્રદેશી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 114 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया खेत्तानुपुव्वी? नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया खेत्ता-नुपुव्वी पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अनुगमे।
से किं तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया?
नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया–तिपएसोगाढे आनुपुव्वी चउपएसोगाढे आनुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे आनुपुव्वी संखेज्जपएसोगाढे आनुपुव्वी असंखेज्जपएसोगाढे आनुपुव्वी। एगपएसो-गाढे अनानुपुव्वी। दुपएसोगाढे अवत्तव्वए। तिपएसोगाढा आनुपुव्वीओ चउपएसोगाढा आनुपुव्वीओ जाव दसपएसोगाढा आनु पुव्वीओ संखेज्जपएसोगाढा आनुपुव्वीओ असंखेज्जपएसोगाढा Translated Sutra: (૧) નૈગમ – વ્યવહાર નય સંમત અનૌપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે? નૈગમ – વ્યવહાર નય સંમત અનૌપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીના પાંચ પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. અર્થપદ – પ્રરૂપણા, ૨. ભંગ – સમુત્કીર્તનતા, ૩. ભંગોપદર્શનતા, ૪. સમવતાર અને ૫. અનુગમ. નૈગમ – વ્યવહારનય સંમત અર્થપદ પ્રરૂપણાનું સ્વરૂપ કેવુ છે? નૈગમ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 117 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अनोवनिहिया खेत्तानुपुव्वी? पंचविहा, अट्ठपयपरूवणया भंगसमुक्कित्त-णया भंगोवदंसणया समोतारे अनुगमे से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया तिपएसोगाढेआनुपुव्वी चउप्पएसोगाढेआनुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे आनुपुव्वी संखिज्जपएसोगाढेआनुपुव्वी असंखिज्ज पएसोगाढे आनुपुव्वी एगपएसोगाढे अनानुपुव्वी दुपएसोगाढेअवत्तव्वए से तं संगहस्स अट्ठपय-परूवणया
एयाए णं सगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओअणं एयाए णं संगहस्स अट्ठपय परूवणयाए संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया कज्जति से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया अत्थि आनुपुव्वि अत्थि अनानुपुव्वी य अनानुपुव्वी य एवं जहा दव्वानुपुव्वी Translated Sutra: સંગ્રહ નય સંમત અનૌપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પૂર્વકથિત સંગ્રહ નય સંમત દ્રવ્યાનુપૂર્વી જેવું જ સંગ્રહ નય સંમત ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ જાણવુ. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૧૭–૧૧૯ | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 125 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सयंभुरमणे जाव जंबुद्दीवे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
उड्ढलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ९. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा १४. अनुत्तरविमाणा १५. ईसिप्पब्भारा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: (૧). મધ્યલોકક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર, સ્વયંભૂરમણ દ્વીપ, ભૂત સમુદ્ર, ભૂત દ્વીપથી લઈ જંબૂદ્વીપ સુધી વિપરીત ક્રમથી દ્વીપ – સમુદ્રના સ્થાપનને મધ્યલોક ક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વી કહે છે. મધ્યલોકક્ષેત્ર અનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકથી શરૂ કરી, એક – એકની વૃદ્ધિ કરતા અસંખ્યાત | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 131 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया? नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया–१. तिसमयट्ठिईए आनुपुव्वी २. एगसमयट्ठिईए अनानुपुव्वी ३. दुसमयट्ठिईए अवत्तव्वए ४. तिसमयट्ठिईयाओ आनु-पुव्वीओ ५. एगसमयट्ठिईयाओ अनानुपुव्वीओ ६. दुसमयट्ठिईयाओ अवत्तव्वगाइं। अहवा १. तिसमयट्ठिईए य एगसमयट्ठिईए य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य।
एवं तहा चेव दव्वानुपुव्विगमेणं छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव। से तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया। Translated Sutra: નૈગમ – વ્યવહાર નય સંમત ભંગોપદર્શનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ત્રણ, ચાર આદિ સમયની સ્થિતિ વાળા એક – એક દ્રવ્ય આનુપૂર્વી, એક સમયની સ્થિતિવાળા એક – એક દ્રવ્ય અનાનુપૂર્વી અને બે સમયની સ્થિતિવાળા એક – એક દ્રવ્ય અવક્તવ્ય કહેવાય છે. ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળા અનેક દ્રવ્ય અનેક આનુપૂર્વી, એક સમયની સ્થિતિવાળા અનેક દ્રવ્ય અનેક | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 138 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया कालानुपुव्वी? ओवनिहिया कालानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समए आवलिया आनापानू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयने संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा Translated Sutra: (૧) ઔપનિધિકી કાલાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔપનિધિકી કાલાનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – એક સમયની સ્થિતિવાળા, બે સમયની સ્થિતિવાળા, ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળા યાવત્ દસ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 150 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य।
से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए।
से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य।
से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे
से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए Translated Sutra: [૧] ‘દ્વિનામ’નું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વિનામના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. એકાક્ષરિક અને ૨. અનેકાક્ષરિક. એકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકાક્ષરિક દ્વિનામના અનેક પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – હ્રી દેવી., શ્રી લક્ષ્મી દેવી., ધી બુદ્ધિ., સ્ત્રી વગેરે એકાક્ષરિક દ્વિનામ છે. અનેકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 238 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं अवयवेणं।
से किं तं संजोगेणं? संजोगे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वसंजोगे खेत्तसंजोगे कालसंजोगे भावसंजोगे।
से किं तं दव्वसंजोगे? दव्वसंजोगे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए।
से किं तं सचित्ते? सचित्ते-गोहिं गोमिए, महिसीहिं माहिसिए, ऊरणीहिं ऊरणिए, उट्टीहिं उट्टिए। से त्तं सचित्ते।
से किं तं अचित्ते? अचित्ते–छत्तेण छत्ती, दंडेण दंडी, पडेण पडी, घडेण घडी, कडेण कडी। से त्तं अचित्ते।
से किं तं मीसए? मीसए–हलेणं हालिए, सगडेणं सागडिए, रहेणं रहिए, नावाए नाविए। से तं मीसए। से तं दव्वसंजोगे।
से किं तं खेत्तसंजोगे? खेत्तसंजोगे–भारहे एरवए हेमवए हेरन्नवए Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩૮. [૧] સંયોગ નિષ્પન્ન નામનું સ્વરૂપ કેવું છે? સંયોગનિષ્પન્ન નામના ચાર પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. દ્રવ્ય સંયોગ, ૨. ક્ષેત્ર સંયોગ, ૩. કાળ સંયોગ અને ૪. ભાવ સંયોગ. [૨] દ્રવ્ય સંયોગ નિષ્પન્ન નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્ય સંયોગ નિષ્પન્ન નામ ત્રણ પ્રકારના કહ્યા છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. સચિત્ત દ્રવ્ય સંયોગ નિષ્પન્ન | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦૭ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 317 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा।
से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य।
से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा।
से तं कालियसुयपरिमाणसंखा।
से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा Translated Sutra: [૧] અવિદ્યમાન પદાર્થને અવિદ્યમાન પદાર્થથી ઉપમિત કરવામાં આવે તે અસદ્ – અસદ્રૂપ ઉપમા કહેવાય છે. જેમ કે ગધેડાના વિષાણ – શીંગડા, તેવા સસલાના શીંગડા. આ પ્રમાણે ઔપમ્ય સંખ્યાનુ સ્વરૂપ જાણવુ. [૨] પરિમાણ સંખ્યાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પરિમાણ સંખ્યાના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. કાલિકશ્રુત પરિમાણ સંખ્યા ૨. દૃષ્ટિવાદ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 322 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे।
नामट्ठवणाओ गयाओ जाव। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे।
से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुंडे वदराणि, तदुभयसमोयरेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य।
अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૨. [૧] સમવતારનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સમવતારના છ પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામ, ૨. સ્થાપના, ૩. દ્રવ્ય, ૪. ક્ષેત્ર, ૫. કાળ અને ૬. ભાવ. [૨] નામ સમવતારનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નામ સમવતાર અને સ્થાપના સમવતારનું સ્વરૂપ વર્ણન પૂર્વવત્ અર્થાત્ આવશ્યકના વર્ણન પ્રમાણે જાણવુ. દ્રવ્ય સમવતારનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્ય | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Hindi | 62 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ठितिट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–जहन्निया ठिती, समयाहिया जहन्निया ठिती, दुसमयाहिया जहन्निया ठिती जाव असंखेज्जसमयाहिया जहन्निया ठिती। तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जहन्नियाए ठितीए वट्टमाणा नेरइया किं–कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता?
गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा १. कोहोवउत्ता। २. अहवा कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ते य। ३.
अहवा कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ता Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक – एक नारकावास में रहने वाले नारक जीवों के कितने स्थिति – स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके असंख्य स्थान हैं। वे इस प्रकार हैं – जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, वह एक समय अधिक, दो समय अधिक – इस प्रकार यावत् जघन्य स्थिति असंख्यात समय अधिक है, तथा उसके योग्य | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Hindi | 63 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहन्नट्ठितीए वट्ठमाणा नेरइया किं– कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता?
गोयमा! कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य, मायोवउत्ते य, लोभोवउत्ते य। कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ता य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ता य। एवं असीतिभंगा नेयव्वा।
एवं जाव संखेज्जसमयाहियाए ठितीए, असंखेज्जसमयाहियाए ठितीए तप्पाउग्गुक्को-सियाए ठितीए सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक – एक नारकावास में रहने वाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने हैं ? गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात हैं। जघन्य अवगाहना (अंगुल के असंख्यातवें भाग), (मध्यम अवगाहना) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यावत् असंख्यात प्रदेशाधिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Hindi | 66 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउसट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एवमेगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमाराणं केवइया ठिति-ट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता। जहन्निया ठिई जहा नेरइया तहा, नवरं–पडिलोमा भंगा भाणियव्वा।
सव्वे वि ताव होज्ज लोभोवउत्ता।
अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ते य। अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ता य। एएणं गमेणं नेयव्वं जाव थणियकुमारा, नवरं–नाणत्तं जाणियव्वं। Translated Sutra: भगवन् ! चौसठ लाख असुरकुमारावासों में से एक – एक असुरकुमारावास में रहने वाले असुरकुमारों के कितने कितने स्थिति – स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके स्थिति – स्थान असंख्यात कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्य स्थिति, इत्यादि सब वर्णन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। विशेषता यह है कि इनमें जहाँ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-७ नैरयिक | Hindi | 81 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं विग्गहगइसमावण्णए? अविग्गहगइसमावण्णए?
गोयमा! सिय विग्गहगइसमावण्णए, सिय अविग्गहगइसमावण्णए।
एवं जाव वेमाणिए।
जीवा णं भंते! किं विग्गहगइसमावण्णया? अविग्गहगइसमावण्णया?
गोयमा! विग्गहगइसमावन्नगा वि, अविग्गहगइसमावन्नगा वि।
नेरइया णं भंते! किं विग्गहगइसमावन्नगा? अविग्गहगइसमावन्नगा?
गोयमा! सव्वे वि ताव होज्ज अविग्गहगइसमावन्नगा। अहवा अविग्गहगइसमावन्नगा, विग्गहगइ-समावन्नगे य। अहवा अविग्गहगइसमावन्नगा य, विग्गहगइसमावन्नगा य। एवं जीव–एगिंदिय-वज्जो तियभंगो। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव विग्रहगतिसमापन्न – विग्रहगति को प्राप्त होता है, अथवा विग्रहगतिसमापन्न – विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता ? गौतम ! कभी (वह) विग्रहगति को प्राप्त होता है, और कभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त जानना चाहिए। भगवन् ! क्या बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-४ सप्रदेशक | Hindi | 286 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! नियमा सपदेसे।
नेरइए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे।
एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! नियमा सपदेसा।
नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा २. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा सपदेसा य अपदेसा य।
एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! सपदेसा वि, अपदेसा वि।
एवं जाव वणप्फइकाइया।
सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा।
आहारगाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अनाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः सप्रदेश हैं। भगवन् ! क्या नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश हैं ? गौतम ! एक नैरयिक जीव कालादेश से कदाचित् सप्रदेश है और कदाचित् अप्रदेश है। इस प्रकार यावत् एक सिद्ध – जीव – पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन् ! कालादेश की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-१ पुदगल | Hindi | 387 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते दव्वा! किं पयोगपरिणया? मीसापरिणया? वीससापरिणया?
गोयमा! १. पयोगपरिणया वा २. मीसापरिणया वा ३. वीससापरिणया वा ४. अहवेगे पयोग-परिणए, एगे मीसापरिणए ५. अहवेगे पयोगपरिणए, एगे वीससापरिणए ६. अहवेगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए।
जइ पयोगपरिणया किं मनपयोगपरिणया? वइपयोगपरिणया? कायपयोगपरिणया?
गोयमा! १. मनपयोगपरिणया वा २. वइपयोगपरिणया वा ३. कायपयोगपरिणया वा ४. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे वइपयोगपरिणए ५. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए ६. अहवेगे वइपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए।
जइ मनपयोगपरिणया किं सच्चमनपयोगपरिणया? असच्चमनपयोगपरिणया? सच्चमोसमनपयोगपरिणया? असच्चमोसमनपयोगपरिणया?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! दो द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं ? गौतम ! वे प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होते हैं और दूसरा मिश्रपरिणत होता है; या एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा द्रव्य विस्रसापरिणत होता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-२ आशिविष | Hindi | 391 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे।
से किं तं आभिनिबोहियनाणे?
आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे।
अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे।
से किं तं मइअन्नाणे?
मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा।
से किं तं ओग्गहे?
ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान। भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। राजप्रश्नीयसूत्र में ज्ञानों के भेद के कथनानुसार ‘यह है वह केवल – ज्ञान’; यहाँ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-५ आजीविक | Hindi | 402 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं भंते! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ?
हंता भवइ।
से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते एवं वुच्चइ–जायं चरइ? नो अजायं चरइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–नो मे माता, नो मे पिता, नो मे भाया, नो मे भगिनी, नो मे भज्जा, नो मे पुत्ता, नो मे धूया, नो मे सुण्हा; पेज्जबंधने पुण से अव्वोच्छिन्ने भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जायं चरइ, नो अजायं चरइ।
समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव थूलए पाणाइवाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेइ?
गोयमा! तीयं पडिक्कमति, पडुप्पन्नं संवरेति, अनागयं पच्चक्खाति।
तीयं पडिक्कममाणे किं १. तिविहं तिविहेणं Translated Sutra: भगवन् ! उन शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास को स्वीकार किये हुए श्रावक का वह अपहृत भाण्ड उसके लिए तो अभाण्ड हो जाता है ? हाँ, गौतम ! वह भाण्ड उसके लिए अभाण्ड हो जाता है। भगवन् ! तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का नहीं ? गौतम ! सामायिक आदि करने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Hindi | 414 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–इरियावहियबंधे य, संपराइयबंधे य।
इरियावहियं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? तिरिक्खजोणिणी बंधइ? मनुस्सो बंधइ? मनुस्सी बंधइ? देवो बंधइ? देवी बंधइ?
गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ। पुव्व पडिवन्नए पडुच्च मनुस्सा य मनुस्सीओ य बंधंति, पडिवज्जमाणए पडुच्च १. मनुस्सो वा बंधइ २. मनुस्सी वा बंधइ ३. मनुस्सा वा बंधंति ४. मनुस्सीओ वा बंधंति ५. अहवा मनुस्सो य मनुस्सी य बंधइ ६. अहवा मनुस्सो य मनुस्सीओ य बंधंति ७. अहवा मनुस्सा य मनुस्सी य बंधंति Translated Sutra: भगवन् ! बंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! बंध दो प्रकार का – ईर्यापथिकबंध और साम्परायिकबंध। भगवन् ! ईर्यापथिककर्म क्या नैरयिक बाँधता है, या तिर्यंचयोनिक या तिर्यंचयोनिक स्त्री बाँधती है, अथवा मनुष्य, या मनुष्य – स्त्री बाँधती है, अथवा देव या देवी बाँधती है ? गौतम ! ईर्यापथिककर्म न नैरयिक बाँधता है, न तिर्यंच – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Hindi | 415 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] संपराइयं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? जाव देवी बंधइ?
गोयमा! नेरइओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ, मनुस्सो वि बंधइ, मनुस्सी वि बंधइ, देवो वि बंधइ, देवी वि बंधइ।
तं भंते! किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? तहेव जाव नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसगो बंधइ?
गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ जाव नपुंसगा वि बंधंति, अहवा एते य अवगयवेदो य बंधइ, अहवा एते य अवगयवेदा य बंधंति।
जइ भंते! अवगयवेदो य बंधइ, अवगयवेदा य बंधंति तं भंते! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ? पुरिसपच्छाकडो बंधइ? एवं जहेव इरियावहियबंधगस्स तहेव निरवसेसं जाव अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा Translated Sutra: भगवन् ! साम्परायिक कर्म नैरयिक बाँधता है, तिर्यंच या यावत् देवी बाँधती है ? गौतम ! नैरयिक भी बाँधता है; तिर्यंच भी बाँधता है, तिर्यंच – स्त्री भी बाँधती है, मनुष्य भी बाँधता है, मानुषी भी बाँधती है, देव भी बाँधता है और देवी भी बाँधती है। भगवन् ! साम्परायिक कर्म क्या स्त्री बाँधती है, पुरुष बाँधता है, यावत् नोस्त्री |