Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (564)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 48 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य । भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमंसामि ॥

Translated Sutra: अर्ध पुष्करवरद्वीप, घातकी खंड़ और जम्बूद्वीप में उन ढ़ाई द्वीप में आए हुए भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में श्रुतधर्म की आदि करनेवाले को यानि तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Hindi 3 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसंपि केवली ॥

Translated Sutra: लोक में उद्योत करनेवाले (चौदह राजलोक में रही सर्व वस्तु का स्वरूप यथार्थ तरीके से प्रकाशनेवाले) धर्मरूपी तीर्थ का प्रवर्तन करनेवाले, रागदेश को जीतनेवाले, केवली चोबीस तीर्थंकर का और अन्य तीर्थंकर का मैं कीर्तन करूँगा।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Hindi 7 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं मए अभिथुआ विहुय-रयमला पहीण-जरमरणा । चउवीसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥

Translated Sutra: इस प्रकार मेरे द्वारा स्तवना किये हुए कर्मरूपी कूड़े से मुक्त और विशेष तरह से जिनके जन्म – मरण नष्ट हुए हैं यानि फिर से अवतार न लेनेवाले चौबीस एवं अन्य जिनवर – तीर्थंकर मुझ पर कृपा करे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ चतुर्विंशतिस्तव

Hindi 8 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कित्तिय वंदिय महिया जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्ग-बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥

Translated Sutra: जो (तीर्थंकर) लोगों द्वारा स्तवना किए गए, वंदन किए गए और पूजे गए हैं। लोगों में उत्तमसिद्ध हैं। वो मुझे आरोग्य (रोग का अभाव), बोधि (ज्ञान, दर्शन और चारित्र का लाभ) तथा सर्वोत्कृष्ट समाधि प्रदान करे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 25 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय –
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 30 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमो चउव्वीसाए तित्थगराणं उसभादिमहावीरपज्जवसाणाणं।

Translated Sutra: ऋषभदेव से महावीर स्वामी तक चौबीस तीर्थंकर परमात्मा को मेरा नमस्कार।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 57 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि अट्ठदस दो य वंदिआ जिणवरा चउव्वीसं । परमट्ठ निट्ठिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ [इति सुयथय-सिद्धथव गाहाओ]

Translated Sutra: चार, आँठ, दश और दो ऐसे वंदन किए गए चौबीस तीर्थंकर और जिन्होंने परमार्थ (मोक्ष) को सम्पूर्ण सिद्ध किया है वैसे सिद्ध मुझे सिद्धि दो।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 63 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुव्वि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पयाउं वा नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं से य सम्मत्ते पसत्थ-समत्त-मोहणिय-कम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं

Translated Sutra: वहाँ (श्रमणोपासकों) – श्रावक पूर्वे यानि श्रावक बनने से पहले मिथ्यात्व छोड़ दे और सम्यक्त्व अंगीकार करे। उनको न कल्पे। (क्या न कल्पे वो बताते हैं) आजपर्यन्त अन्यतीर्थिक के देव, अन्य तीर्थिक की ग्रहण की हुई अरिहंत प्रतिमा को वंदन नमस्कार करना न कल्पे। पहले भले ही ग्रहण न की हो लेकिन अब वो (प्रतिमा) अन्यतीर्थिक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Hindi 37 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव अगणि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेहिं नायं भवति– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: तू देख ! संयमी पुरुष जीव – हिंसा में लज्जा का अनुभव करते हैं। और उनको भी देख, जो हम ‘अनगार हैं’ यह कहते हुए भी अनेक प्रकार के शस्त्रों से अग्निकाय की हिंसा करते हैं। अग्निकाय के जीवों की हिंसा करते हुए अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा का निरूपण किया है। कुछ मनुष्य इस
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Hindi 104 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुव्वसु मुनी अणाणाए। तुच्छए गिलाइ वत्तए। एस वीरे पसंसिए। अच्चेइ लोयसंजोयं। एस णाए पवुच्चइ।

Translated Sutra: जो पुरुष वीतराग की आज्ञा का पालन नहीं करता वह संयम – धन से रहित है। वह धर्म का कथन करने में ग्लानि का अनुभव करता है, (क्योंकि) वह चारित्र की द्रष्टि से तुच्छ जो है। वह वीर पुरुष (जो वीतराग की आज्ञा के अनुसार चलता है) सर्वत्र प्रशंसा प्राप्त करता है और लोक – संयोग से दूर हट जाता है, मुक्त हो जाता है। यही न्याय्य (तीर्थंकरों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा Hindi 143 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते आसवा, जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा – एए पए संबुज्झमाणे, लोयं च आणाए अभिसमेच्चा पुढो पवेइयं।

Translated Sutra: जो आस्रव (कर्मबन्ध) के स्थान हैं, वे ही परिस्रव – कर्मनिर्जरा के स्थान बन जाते हैं, जो परिस्रव हैं, वे आस्रव हो जाते हैं, जो अनास्रव – व्रत विशेष हैं, वे भी अपरिस्रव – कर्म के कारण हो जाते हैं, (इसी प्रकार) जो अपरिस्रव, वे भी अनास्रव नहीं होते हैं। इन पदों को सम्यक्‌ प्रकार से समझने वाला तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Hindi 159 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवंती केआवंती लोयंसि अणारंभजीवी, एतेसु चेव मनारंभजीवी। एत्थोवरए तं झोसमाणे ‘अयं संधी’ ति अदक्खु। जे ‘इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति मन्नेसी। एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते। उट्ठिए नोपमायए। जाणित्तु दुक्खं पत्तयं सायं’। पुढोछंदा इह माणवा, पुढो दुक्खं पवेदितं। से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विप्पणोल्लए।

Translated Sutra: इस मनुष्य लोक में जितने भी अनारम्भजीवी हैं, वे (अनारम्भ – प्रवृत्त गृहस्थों) के बीच रहते हुए भी अना – रम्भजीवी हैं। इस सावद्य से उपरत अथवा आर्हत्‌शासन में स्थित अप्रमत्त मुनि खयह सन्धि हैं। – ऐसा देखकर उसे क्षीण करता हुआ (क्षणभर भी प्रमाद न करे)। ‘इस औदारिक शरीर का यह वर्तमान क्षण है,’ इस प्रकार जो क्षणान्वेषी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Hindi 160 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस समिया-परियाए वियाहिते। जे असत्ता पावेहिं कम्मेहिं, उदाहु ते आयंका फुसंति। इति उदाहु वीरे ते फासे पुट्ठो हियासए। से पुव्वं पेयं पच्छा पेयं भेउर-धम्मं, विद्धंसण-धम्मं, अधुवं, अणितियं, असासयं, चयावचइयं, विपरिनाम धम्मं, पासह एयं रूवं।

Translated Sutra: ऐसा साधक शमिता या समता का पारगामी, कहलाता है। जो साधक पापकर्मों में आसक्त नहीं है, कदाचित्‌ उन्हें आतंक स्पर्श करे, ऐसे प्रसंग पर धीर (वीर) तीर्थंकर महावीर न कहा कि ‘उन दुःखस्पर्शों को (समभावपूर्वक) सहन करे।’ यह प्रिय लगने वाला शरीर पहले या पीछे अवश्य छूट जाएगा। इस रूप – देह के स्वरूप को देखो, छिन्न – भिन्न और
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-३ अपरिग्रह Hindi 164 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवंती केआवंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती। सोच्चा वई मेहावी, पंडियाणं णिसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहिं पवेदिते ॥ जहेत्थ मए संधी झोसिए, एवमण्णत्थ संधी दुज्झोसिए भवति, तम्हा बेमि–नो निहेज्ज वीरियं।

Translated Sutra: इस लोक में जितने भी अपरिग्रही साधक हैं, वे इन धर्मोपकरण आदि में (मूर्च्छा – ममता न रखने के कारण) ही अपरिग्रही हैं। मेधावी साधक (आगमरूप) वाणी सूनकर तथा पण्डितों के वचन पर चिन्तन – मनन करके (अपरिग्रही) बने। आर्यों (तीर्थंकरों) ने ‘समता में धर्म कहा है।’ (भगवान महावीर ने कहा) जैसे मैंने ज्ञान – दर्शन – चारित्र – इन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-३ अपरिग्रह Hindi 167 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘जुद्धारिहं खलु दुल्लहं’। जहेत्थ कुसलेहि परिण्णा-विवेगे भासिए। चुए हु बाले गब्भाइसु रज्जइ। अस्सिं चेयं पव्वुच्चति, रूवंसि वा छणंसि वा। से हु एगे संविद्धपहे मुनी, अन्नहा लोगमुवेहमाणे। इति कम्मं परिण्णाय, सव्वसो से ण हिंसति। संजमति नोपगब्भति। उवेहमानो पत्तेयं सायं। वण्णाएसी नारभे कंचणं सव्वलोए। एगप्पमुहे विदिसप्पइण्णे, निव्विन्नचारी अरए पयासु।

Translated Sutra: (अन्तर – भाव) युद्ध के योग अवश्य ही दुर्लभ है। जैसे कि तीर्थंकरों ने इस (भावयुद्ध) के परिज्ञा और विवेक (ये दो शस्त्र) बताए हैं। (मोक्ष – साधना के लिए उत्थित होकर) भ्रष्ट होनेवाला अज्ञानी साधक गर्भ आदि में फँस जाता है। इस अर्हत्‌ शासनमें यह कहा जाता है – रूप (तथा रसादि)में एवं हिंसामें (आसक्त होनेवाला उत्थित होकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-४ अव्यक्त Hindi 172 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह प्रभूतदर्शी, प्रभूत परिज्ञानी, उपशान्त, समिति से युक्त, सहित, सदा यतनाशील या इन्द्रियजयी अप्रमत्त मुनि (उपसर्ग करने) के लिए उद्यत स्त्रीजन को देखकर अपने आपका पर्यालोचन करता है – ‘यह स्त्रीजन मेरा क्या कर लेगा ?’ वह स्त्रियाँ परम आराम हैं। (किन्तु मैं तो सहज आत्मिक – सुख से सुखी हूँ, ये मुझे क्या सुख देंगी?) ग्रामधर्म
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-५ ह्रद उपमा Hindi 175 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं।

Translated Sutra: वही सत्य है, जो तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 179 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणाणाए एगे सोवट्ठाणा, आणाए एगे निरुवट्ठाणा। एतं ते मा होउ। एयं कुसलस्स दंसणं। तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए, तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे।

Translated Sutra: कुछ साधक अनाज्ञा में उद्यमी होते हैं और कुछ साधक आज्ञा में अनुद्यमी होते हैं। यह तुम्हारे जीवन में न हो। यह (अनाज्ञा में अनुद्यम और आज्ञा में उद्यम) मोक्ष मार्ग – दर्शन – कुशल तीर्थंकर का दर्शन है। साधक उसी में अपनी दृष्टि नियोजित करे, उसी मुक्ति में अपनी मुक्ति माने, सब कार्यों में उसे आगे करके प्रवृत्त हो,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 180 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अभिभूय अदक्खू, अणभिभूते पभू निरालंबणयाए। जे महं अबहिमणे। पवाएणं पवायं जाणेज्जा। सहसम्मइयाए, परवागरणेणं अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा।

Translated Sutra: जिसने परीषह – उपसर्गों – बाधाओं तथा घातिकर्मों को पराजित कर दिया है, उसीने तत्त्व का साक्षात्कार किया है। जो ईससे अभिभूत नहीं होता, वह निरालम्बनता पाने में समर्थ होता है। जो महान्‌ होता है उसका मन (संयम से) बाहर नहीं होता। प्रवाद (सर्वज्ञ तीर्थंकरों के वचन) से प्रवाद (विभिन्न दार्शनिकों या तीर्थिकों के बाद)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 181 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: निद्देसं नातिवट्टेज्जा मेहावी। सुपडिलेहिय सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया। इहारामं परिण्णाय, अल्लीण-गुत्तो परिव्वए। निट्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि

Translated Sutra: मेधावी निर्देश (तीर्थंकरादि के आदेश) का अतिक्रमण न करे। वह सब प्रकार से भली – भाँति विचार करके सम्पूर्ण रूप से पूर्वोक्त जाति – स्मरण आदि तीन प्रकार से साम्य को जाने। इस सत्य (साम्य) के परिशीलन में आत्म – रमण की परिज्ञा करके आत्मलीन होकर विचरण करे। मोक्षार्थी अथवा संयम – साधना द्वारा निष्ठितार्थ वीर मुनि आगम
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-१ स्वजन विधूनन Hindi 190 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मरणं तेसिं संपेहाए, उववायं चयणं च नच्चा । परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा ॥ संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया। तामेव सइं असइं अतिअच्च उच्चावयफासे पडिसंवेदेंति। बुद्धेहिं एयं पवेदितं। संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो। पाणा पाणे किलेसंति। पास लोए महब्भयं।

Translated Sutra: उन मनुष्यों की मृत्यु का पर्यालोचन कर, उपपात और च्यवन को जानकर तथा कर्मों के विपाक का भली – भाँति विचार करके उसके यथातथ्य को सूनो। (इस संसार में) ऐसे भी प्राणी बताए गए हैं, जो अंधे होते हैं और अन्धकार में ही रहते हैं। वे प्राणी उसीको एक बार या अनेक बार भोगकर तीव्र और मन्द स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करते हैं। बुद्धों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-२ कर्मविधूनन Hindi 196 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अहेगे धम्म मादाय’ ‘आयाणप्पभिइं सुपणिहिए’ चरे। अपलीयमाणे दढे। सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी। अइअच्च सव्वतो संगं ‘ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि।’ जयमाणे एत्थ विरते अनगारे सव्वओ मुंडे रीयंते। जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए। से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए वा। पलियं पगंथे अदुवा पगंथे। अतहेहिं सद्द-फासेहिं, इति संखाए। एगतरे अन्नयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए। जे य हिरी, जे य अहिरीमणा।

Translated Sutra: यहाँ कईं लोग, धर्म को ग्रहण करके निर्ममत्वभाव से धर्मोपकरणादि से युक्त होकर, अथवा धर्माचरण में इन्द्रिय और मन को समाहित करके विचरण करते हैं। वह अलिप्त/अनासक्त और सुदृढ़ रहकर (धर्माचरण करते हैं) समग्र आसक्ति को छोड़कर वह (धर्म के प्रति) प्रणत महामुनि होता है, (अथवा) वह महामुनि संयम में या कर्मों को धूनने में प्रवृत्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन Hindi 201 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइया ‘तेहिं महावीरेहिं’ पण्णाणमंतेहिं। तेसिंतिए पण्णाणमुवलब्भ हिच्चा उवसमं फारुसियं समादियंति। वसित्ता बंभचेरंसि आणं ‘तं णो’ त्ति मण्णमाणा। अग्घायं तु सोच्चा निसम्म समणुण्णा जीविस्सामो एगे णिक्खम्म ते– असंभवंता विडज्झमाणा, कामेहिं गिद्धा अज्झोववण्णा । समाहिमाघायमझोसयता, सत्थारमेव फरुसं वदंति ॥

Translated Sutra: इस प्रकार वे शिष्य दिन और रात में उन महावीर और प्रज्ञानवान द्वारा क्रमशः प्रशिक्षित किये जाते हैं। उनसे विशुद्ध ज्ञान पाकर उपशमभाव को छोड़कर कुछ शिष्य कठोरता अपनाते हैं। वे ब्रह्मचर्य में निवास करके भी उस आज्ञा को ‘यह (तीर्थंकरकी आज्ञा) नहीं है’, ऐसा मानते हुए (गुरुजनोंके वचनोंकी अवहेलना करते हैं।) कुछ व्यक्ति
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 400 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–तं जहा–खंधंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अन्नतरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि, नन्नत्थ आगाढाणागाढेहिं कारणेहिं ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। से य आहच्च चेतिते सिया णोतत्थ सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा हत्थाणि वा, पादाणि वा, अच्छीणि वा, दंताणि वा, मुहं वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा। णोतत्थ ऊसढं पगरेज्जा, तं जहा–उच्चारं वा, पासवणं वा, खेलं वा, सिंघाणं वा, वंतं वा, पित्तं वा, पूतिं वा, सोणियं वा, अन्नयरं वा सरीरावयवं। केवली बूया आयाणमेयं–से तत्थ ऊसढं पगरेमाणे पयलेज्ज

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो कि एक स्तम्भ पर है, या मचान पर है, दूसरी आदि मंजिल पर है, अथवा महल के ऊपर है, अथवा प्रासाद के तल पर बना हुआ है, अथवा ऊंचे स्थान पर स्थित है, तो किसी अत्यंत गाढ़ कारण के बिना उक्त उपाश्रय में स्थान – स्वाध्याय आदि कार्य न करे। कदाचित्‌ किसी अनिवार्य कारणवश ऐसे उपाश्रय में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 401 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–सइत्थियं, सखुड्डं, सपसुभत्तपाणं। तहप्पगारे सागारिए उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतज्जा। आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइ-कुलेण सद्धिं संवसमाणस्स–अलसगे वा, विसूइया वा, छड्डी वा उव्वाहेज्जा। अन्नतरे वा से दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा। अस्संजए कलुण-पडियाए तं भिक्खुस्स गातं तेल्लेण वा, घएण वा, नवनीएण वा, वसाए वा, अब्भंगेज्ज वा, मक्खेज्ज वा। सिनाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा, आधंसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उव्वट्टेज्ज वा। सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा, ‘उच्छोलेज्ज

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी जिस उपाश्रय को स्त्रियों से, बालकों से, क्षुद्र प्राणियों से या पशुओं से युक्त जाने तथा पशुओं या गृहस्थ के खाने – पीने योग्य पदार्थों से जो भरा हो, तो इस प्रकार के उपाश्रय में साधु कायोत्सर्ग कार्य न करे। साधु का गृहपतिकुल के साथ निवास कर्मबन्ध का उपादान कारण है। गृहस्थ परिवार के साथ निवास
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 402 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स सागारिए उवस्सए संवसमाणस्स–इह खलु गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुंभंति वा, उद्दवेंति वा। अह भिक्खू णं उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा–एत्ते खलु अन्नमन्नं अक्कोसंतु वा मा वा अक्कोसंतु, बंधंतु वा मा वा बंधंतु, रुंभंतु वा मा वा रुंभंतु, उद्दवेंतु वा मा वा उद्दवेंतु। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: साधु के लिए गृहस्थ – संसर्गयुक्त उपाश्रय में निवास करना अनेक दोषों का कारण है क्योंकि उसमें गृहपति, उसकी पत्नी, पुत्रियाँ, पुत्रवधूएं, दास – दासियाँ, नौकर – नौकरानियाँ आदि रहती हैं। कदाचित्‌ वे परस्पर एक – दूसरे को कटु वचन कहें, मारे – पीटे, बंद करे या उपद्रव करे। उन्हें ऐसा करते देख भिक्षु के मन में ऊंचे – नीचे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 403 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावई अप्पनो सअट्ठाए अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा, विज्झावेज्ज वा। अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा–एते खलु अगणिकायं उज्जालंतु वा मा वा उज्जालेंतु, पज्जालेंतु वा मा वा पज्जालेंतु, विज्झावेंतु वा मा वा विज्झावेंतु। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे [सागारिए?] उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ एक मकान में साधु का निवास करना इसलिए भी कर्मबन्ध का कारण है कि उसमें गृह – स्वामी अपने प्रयोजन के लिए अग्निकाय को उज्जवलित – प्रज्वलित करेगा, प्रज्वलित अग्नि को बुझाएगा। वहाँ रहते हुए भिक्षु के मन में कदाचित्‌ ऊंचे – नीचे परिणाम आ सकते हैं कि ये गृहस्थ अग्नि को उज्ज्वलित करे अथवा उज्जवलित न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 404 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइस्स कुंडले वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, ‘हिरण्णे वा’, ‘सुवण्णे वा’, कडगाणि वा, तुडियाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा, रयनावली वा, तरुणियं वा कुमारिं अलंकिय-विभूसियं पेहाए, अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा–एरिसिया वा सा नो वा एरिसिया–इति वा णं बूया, इति वा णं मणं साएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे [सागारिए?] उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ एक जगह निवास करना साधु के लिए कर्मबन्ध का कारण है। जैसे कि उस मकान में गृहस्थ के कुण्डल, करधनी, मणि, मुक्ता, चाँदी, सोना या सोने के कड़े, बाजूबंद, तीनलड़ा – हार, फूलमाला, अठारह लड़ी का हार, नौ लड़ी का हार, एकावली हार, मुक्तावली हार, या कनकावली हार, रत्नावली हार, अथवा वस्त्रा – भूषण आदि से अलंकृत और विभूषित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 405 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइणीओ वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ -सुण्हाओ वा, गाहावइ-धाईओ वा, गाहावइ-दासीओ वा, गाहावइ-कम्मकरीओ वा। तासिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणाओ धम्माओ, नो खलु एतेसिं कप्पइ मेहुणं धम्मं परियारणाए आउट्टित्तए। जा य खलु एएहिं सद्धिं मेहुणं धम्मं परियारणाए आउट्टेज्जा, पुत्तं खलु सा लभेज्जा–ओयस्सिं तेयस्सिं वच्चस्सिं जसस्सिं संप-राइयं आलोयण-दरिसणिज्जं। एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म तासिं च णं अन्नय्ररि सड्ढी तं तवस्सिं भिक्खुं

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ एक स्थान में निवास करने वाले साधु के लिए कि उसमें गृहपत्नीयाँ, गृहस्थ की पुत्रियाँ, पुत्रवधूएं, उसकी धायमाताएं, दासियाँ या नौकरानियाँ भी रहेंगी। उनमें कभी परस्पर ऐसा वार्तालाप भी होना सम्भव है कि, ‘ये जो श्रमण भगवान होते हैं, वे शीलवान, वयस्क, गुणवान, संयमी, शान्त, ब्रह्मचारी एवं मैथुन धर्म से
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-२ अकल्पनीय विमोक्ष Hindi 217 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खुं च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे आहच्च गंथा फुसंति– ‘से हंता! हणह, खणह, छिंदह, दहह, पचह, आलुंपह, विलुंपह, सहसाकारेह, विप्परामुसह’ – ते फासे ‘धीरो पुट्ठो’ अहियासए। अदुवा आयार-गोयरमाइक्खे, तक्किया ण मणेलिसं। ‘अनुपुव्वेण सम्मं पडिलेहाए आयगुत्ते। अदुवा गुत्ती गोयरस्स’। बुद्धेहिं एयं पवेदितं–

Translated Sutra: भिक्षु से पूछकर या बिना पूछे ही किसी गृहस्थ द्वारा ये (आहारादि पदार्थ) भिक्षु के समक्ष भेंट के रूप में लाकर रख देने पर (जब मुनि उन्हें स्वीकार नहीं करता), तब वह उसे परिताप देता है; मारता है, अथवा अपने नौकरों को आदेश देता है कि इसको पीटो, घायल कर दो, इसके हाथ – पैर आदि काट डालो, उसे जला दो, इसका माँस पकाओ, इसके वस्त्रादि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित Hindi 220 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मज्झिमेणं वयसा एगे, संबुज्झमाणा समुट्ठिता। ‘सोच्चा वई मेहावी’, पंडियाणं निसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहिं पवेदिते। ते अणवकंखमाणा अणतिवाएमाणा अपरिग्गहमाणा नो ‘परिग्गहावंतो सव्वावंतो’ च णं लोगंसि। णिहाय दंडं पाणेहिं, पावं कम्मं अकुव्वमाणे, एस महं अगंथे वियाहिए। ओए जुतिमस्स खेयण्णे उववायं चवणं च नच्चा।

Translated Sutra: कुछ व्यक्ति मध्यम वय में भी संबोधि प्राप्त करके मुनिधर्म में दीक्षित होने के लिए उद्यत होते हैं। तीर्थंकर तथा श्रुतज्ञानी आदि पण्डितों के वचन सूनकर, मेधावी साधक (समता का आश्रय ले, क्योंकि) आर्यों ने समता में धर्म कहा है, अथवा तीर्थंकरों ने समभाव से धर्म कहा है। वे कामभोगों की आकांक्षा न रखनेवाले, प्राणियों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-५ ग्लान भक्त परिज्ञा Hindi 230 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे–अहं च खलु पडिण्णत्तो अपडिण्णत्तेहिं, गिलानो अगिलाणेहिं, अभिकंख साह-म्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं सातिज्जिस्सामि। अहं वा वि खलु अपडिण्णत्तो पडिण्णत्तस्स, अगिलानो गिलाणस्स, अभिकंख साहम्मिअस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए। आहट्टु पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च णोसाति-ज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं णोआणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं णोआणक्खेस्सामि, आहडं च णोसाति-ज्जिस्सामि। ‘लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वताए

Translated Sutra: जिस भिक्षु का यह प्रकल्प होता है कि मैं ग्लान हूँ, मेरे साधर्मिक साधु अग्लान हैं, उन्होंने मुझे सेवा करने का वचन दिया है, यद्यपि मैंने अपनी सेवा के लिए उनसे निवेदन नहीं किया है, तथापि निर्जरा की अभिकांक्षा से साधर्मिकों द्वारा की जाने वाली सेवा मैं रुचिपूर्वक स्वीकार करूँगा। (१) (अथवा) मेरा साधर्मिक भिक्षु ग्लान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 270 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयणेहिं वितिमिस्सेहिं, इत्थीओ तत्थ से परिण्णाय । सागारियं न सेवे, इति से सयं पवेसिया झाति ॥

Translated Sutra: गृहस्थ और अन्यतीर्थिक साधु से संकुल स्थान में ठहरे हुए भगवान को देखकर, कामाकुल स्त्रियाँ वहाँ आकर प्रार्थना करती, किन्तु कर्मबन्ध का कारण जानकर सागारिक सेवन नहीं करते थे। अपनी अन्तरात्मा में प्रवेश कर ध्यान में लीन रहते।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 338 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं वा असइं भज्जियं– दुक्खुत्तो वा भज्जियं, तिक्खुत्तो वा भज्जियं– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे नो अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धिं गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमिं वा विहार-भूमिं वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा णोअन्नउ-त्थिएण वा, गारत्थिएण

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने के ईच्छुक भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ तथा पिण्डदोषों का परिहार करने वाला साधु अपारिहारिक साधु के साथ भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे, और न वहाँ से नीकले। वह भिक्षु या भिक्षुणी बाहर विचारभूमि या विहारभूमि से लौटते या वहाँ प्रवेश
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 339 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुइज्जमाणे–नो अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहा-रिएण वा सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे नो अन्नउत्थियस्स वा, गारत्थियस्स वा, परिहारिओ अपरिहारिअस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देज्जा वा अणुपदेज्जा वा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या परपिण्डोपजीवी याचक को तथैव उत्तम साधु पार्श्वस्थादि शिथिलाचारी साधु को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य तो स्वयं दे और न किसी से दिलाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 370 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिनिक्खित्तं, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–अस्संजए भिक्खु-पडियाए उस्सिंचमाणे वा, निस्सिंचमाणे वा, आमज्जमाणे वा, पमज्ज-माणे वा, ओयारेमाणे वा, उव्वत्तमाणे वा, अगणिजीवे हिंसेज्जा। अह भिक्खूणं पव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे, तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणि-निक्खित्तं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते

Translated Sutra: गृहस्थ के घर आहार के लिए प्रविष्ट साधु – साध्वी यदि यह जान जाए कि अशनादि आहार अग्नि पर रखा हुआ है, तो उस आहार को अप्रासुक – अनैषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण न करे। केवली भगवान कहते हैं – यह कर्मों के आने का मार्ग है, क्योंकि असंयमी गृहस्थ साधु के उद्देश्य से अग्नि पर रखे हुए बर्तन में से आहार को नीकालता हुआ,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-७ Hindi 372 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा मट्टिओलित्तं–तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–अस्संजए भिक्खू-पडियाए मट्टिओलित्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उब्भिंदमाणे पुढवीकायं समारंभेज्जा, तह तेउ-वाउ-वणस्सइ-तसकायं समारंभेज्जा, पुनरवि ओलिंपमाणे पच्छाकम्मं करेज्जा। अह भिक्खूण पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो जं तहप्पगारं मट्टिओलित्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं

Translated Sutra: साधु या साध्वी यह जाने कि वहाँ अशनादि आहार मिट्टी से लीपे हुए मुख वाले बर्तन में रखा हुआ है तो इस प्रकार का आहार प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। केवली भगवान कहते हैं – यह कर्म आने का कारण है। क्योंकि असंयत गृहस्थ साधु को आहार देने के लिए मिट्टी से लीपे आहार के बर्तन का मुँह खोलता हुआ पृथ्वीकाय का समारम्भ करेगा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-९ Hindi 384 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, ‘समाणे वा, वसमाणे वा’, गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा। इमंसि खलु गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा, सन्निवेसंसि वा, रायहाणिंसि वा– संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा, पच्छासंथुया वा परिवसंति, तं जहा–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तहप्पगाराइं

Translated Sutra: एक ही स्थान पर स्थिरवास करनेवाले या ग्रामानुग्राम विचरण करनेवाले साधु या साध्वी किसी ग्राम में यावत्‌ राजधानीमें भिक्षाचर्या के लिए जब गृहस्थों के यहाँ जाने लगे, तब यदि वे जान जाए कि इस गाँव यावत्‌ राजधानी में किसी भिक्षु के पूर्व – परिचित या पश्चात्‌ – परिचित गृहस्थ, गृहस्थपत्नी, उसके पुत्र – पुत्री, पुत्रवधू,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 406 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गाहावई नामेगे सुइ-समायारा भवंति, भिक्खू य असिनाणए मोयसमायारे, ‘से तग्गंधे’ दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि भवइ। जं पुव्वकम्मं तं पच्छाकम्मं, जं पच्छाकम्मं तं पुव्वकम्मं। तं भिक्खु-पडियाए वट्टमाणे करेज्जा वा, नो ‘वा करेज्जा’। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: कोई गृहस्थ शौचाचार – परायण होते हैं और भिक्षुओं के स्नान न करने के कारण तथा मोकाचारी होने के कारण उनके मोकलिप्त शरीर और वस्त्रों से आने वाली वह दुर्गन्ध उस गृहस्थ के लिए प्रतिकूल और अप्रिय भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त वे गृहस्थ जो कार्य पहले करते थे, अब भिक्षुओं की अपेक्षा से बाद में करेंगे और जो कार्य बाद में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 407 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खूस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइस्स अप्पनो सअट्ठाए विरू-वरूवे भोयण-जाए उवक्खडिए सिया, अह पच्छा भिक्खु-पडियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेज्ज वा, उवकरेज्ज वा, तं च भिक्खू अभिकंखेज्जा भोत्तए वा, पायए वा, वियट्टित्तए वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ में निवास करने वाले साधु के लिए वह कर्मबन्ध का कारण हो सकता है, क्योंकि वहाँ गृहस्थ ने अपने लिए नाना प्रकार के भोजन तैयार किये होंगे, उसके पश्चात्‌ वह साधुओं के लिए अशनादि चतुर्विध आहार तैयार करेगा। उस आहार को साधु भी खाना या पीना चाहेगा या उस आहार में आसक्त होकर वहीं रहना चाहेगा। इसलिए भिक्षुओं
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 408 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइणा सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइस्स अप्पनो सयट्ठाए विरूवरूवाइं दारुयाइं भिन्न-पुव्वाइं भवंति, अह पच्छा भिक्खु-पडियाए विरूवरूवाइं दारुयाइं भिंदेज्ज वा, किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा, दारुणा वा दारुपरिणामं कट्टु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा। तत्थ भिक्खू अभिकंखेज्जा आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, वियट्टित्तए वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के साथ ठहरने वाले साधु के लिए वह कर्मबन्ध का कारण हो सकता है, क्योंकि वहीं गृहस्थ अपने स्वयं के लिए पहले नाना प्रकार के काष्ठ – ईंधन को काटेगा, उसके पश्चात्‌ वह साधु के लिए भी विभिन्न प्रकार के ईंधन को काटेगा, खरीदेगा या किसी से उधार लेगा और काष्ठ से काष्ठ का घर्षण करके अग्निकाय को उज्ज्वलित एवं प्रज्वलित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 409 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चार-पासवणेणं उव्वाहिज्जमाणे राओ वा विआले वा गाहावइ-कुलस्स दुवारवाहं अवंगुणेज्जा, तेणे य तस्संधिचारी अणुपविसेज्जा। तस्स भिक्खुस्स णोकप्पइ एवं वदत्तिए–अयं तेण पविसइ वा णोवा पविसइ, उवल्लियइ वा नो वा उवल्लियइ, अइपतति वा नो वा अइपतति, वदति वा नो वा वदति, तेण हडं अन्नेण हडं, तस्स हडं अन्नस्स हडं, अयं तेणे अयं उवचरए, अयं हंता अयं एत्थमकासी तं तवस्सिं भिक्खुं अतेणं तेणं ति संकति। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी रात में या विकाल में मल – मूत्रादि की बाधा होने पर गृहस्थ के घर का द्वारभाग खोलेगा, उस समय कोई चोर या उसका सहचर घर में प्रविष्ट हो जाएगा, तो उस समय साधु को मौन रखना होगा। ऐसी स्थिति में साधु के लिए ऐसा कहना कल्पनीय नहीं है कि यह चोर प्रवेश कर रहा है, या प्रवेश नहीं कर रहा है, यह छिप रहा है या नहीं
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 422 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–खुड्डियाओ, खुड्ड-दुवारियाओ, निइयाओ संनिरुद्धाओ भवंति। तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा, पुरा हत्थेण पच्छा पाएण तओ संजयामेव निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं–जे तत्थ समनाण वा, माहनाण वा, छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, ‘नालिया वा, चेलं वा’, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा–दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले–भिक्खू य राओ वा वियाले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा,

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो छोटा है, या छोटे द्वारों वाला है, तथा नीचा है, या नित्य जिसके द्वार बंध रहते हैं, तथा चरक आदि परिव्राजकों से भरा हुआ है। इस प्रकार के उपाश्रय में वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर नीकलता हुआ या भीतर प्रवेश करता हुआ पहले हाथ से टटोल ले, फिर पैर से संयम पूर्वक नीकले
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 440 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा, वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव णं पण्णस्स उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेज्जा। केवली बूया आयाणमेवं–अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू वा भिक्खुणी वा राओ वा विआले वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा अन्नयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ वव-रोवेज्ज वा। अह

Translated Sutra: जो साधु या साध्वी स्थिरवास कर रहा हो, या उपाश्रय में रहा हुआ हो, अथवा ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ आकर ठहरा हो, उस प्रज्ञावान, साधु को चाहिए कि वह पहले ही उसके परिपार्श्व में उच्चार – प्रस्रवण – विसर्जन भूमि को अच्छी तरह देख ले। केवली भगवान ने कहा है – यह अप्रतिलेखित उच्चार – प्रस्रवण – भूमि कर्मबन्ध का कारण है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 449 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दस्सुगाय-तणाणि मिलक्खूणि अनारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरि-भोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेवं–ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं ‘अच्छिंदेज्ज वा’, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णोतहप्पगाराणि विरूवरूवाणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिले तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों का आचार समझाया जा सकता है, जिन्हें दुःख से, धर्मबोध देकर अनार्यकर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल में जागने वाले, कुसमय में खाने –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 450 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं– ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा– एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि

Translated Sutra: साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यह जाने कि ये अराजक प्रदेश है, या यहाँ केवल युवराज का शासन है, जो कि अभी राजा नहीं बना है, अथवा दो राजाओं का शासन है, या परस्पर शत्रु दो राजाओं का राज्याधिकार है, या धर्मादि – विरोधी राजा का शासन है, ऐसी स्थिति में विहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते, इस प्रकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 451 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया। सेज्जं पुण विहं जाणेज्जा–एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा पाउणेज्ज वा, नो पाउणेज्ज वा। तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं–अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा, पणएसु वा, बीएसु वा, हरिएसु वा, उदएसु वा, मट्टि-यासु वा अविद्धत्थाए। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारं विहं अणेगाह-गमणिज्जं, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि आगे लम्बा अटवी – मार्ग है। यदि उस अटवी के विषय में वह यह जाने कि यह एक, दो, तीन, चार, या पाँच दिनों में पार किया जा सकता है अथवा पार किया जा सकता है, तो विहार के योग्य अन्य मार्ग होते, उस अनेक दिनों में पार किये जा सकने वाले भयंकर अटवी – मार्ग से जाने का विचार न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 453 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नावं दुरूहमाणे नो नावाए पुरओ दुरुहेज्जा, नो नावाए मग्गओ दुरुहेज्जा, नो नावाए मज्झतो दुरुहेज्जा, नो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय, अंगुलिए उवदंसिय-उवदंसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्झाएज्जा। से णं परो नावा-गतो नावा-गयं वएज्जा–आउसंतो! समणा! एयं ता तुमं नावं उक्कसाहि वा, वोक्कसाहि वा, खिवाहि वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसाहि। नो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा। से णं परो नावागओ नावागयं वएज्जा– आउसंतो! समणा! नो संचाएसि तुमं नावं उक्कसित्तए वा, वोक्कसित्तए वा, खिवित्तए वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसित्तए। आहर एतं नावाए रज्जूयं, सयं चेव णं

Translated Sutra: साधु या साध्वी नौका पर चढ़ते हुए न नौका के अगले भाग में बैठे, न पिछले भाग में बैठे और न मध्य भागमें। तथा नौका के बाजुओं को पकड़ – पकड़ कर या अंगुली से बता – बताकर या उसे ऊंची या नीची करके एकटक जल को न देखे। यदि नाविक नौका में चढ़े हुए साधु से कहे कि ‘‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! तुम इस नौका को ऊपर की ओर खींचो, अथवा अमुक वस्तु को नौका
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 461 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोर-णाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, नूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वन-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मंताणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी मार्ग में आने वाले उन्नत भू – भाग या टेकरे, खाइयाँ, नगर को चारों ओर से वेष्टित करने वाली नहरें, किले, नगर के मुख्य द्वार, अर्गला, अर्गलापाशक, गड्ढे, गुफाएं या भूगर्भ मार्ग तथा कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 466 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाइं वइ-आयाराइं सोच्चा निसम्म इमाइं अणायाराइं अनायरियपुव्वाइं जाणेज्जा–जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं सावज्जं वज्जेज्जा विवेगमायाए। धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा लभिय णोलभिय, भुंजिय णोभुंजिय, अदुवा आगए अदुवा णोआगए, अदुवा एइ अदुवा नो एइ, अदुवा एहिति अदुवा नो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि नो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि नो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि नो एहिति। अणुवीइ निट्ठाभासी, समियाए

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सूनकर, हृदयंगम करके, पूर्व – मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा – सम्बन्धी अनाचारों को जाने। जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक, जो छल – कपट सहित, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझकर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते
Showing 1 to 50 of 564 Results